आरति श्रीजनक-दुलारीकी ।
सीताजी रघुबर-प्यारीकी ॥
आरति श्रीजनक-दुलारीकी ।
सीताजी रघुबर-प्यारीकी ॥
*****
जगत-जननि जगकी विस्तारिणि।
नित्य सत्य साकेत-विहारिणि।।
परम दयामयि दीनोद्धारिणि।
मैयाभक्तन-हितकारीकी ॥
सीताजी रघुबर-प्यारीकी ॥
*****
सती शिरोमणि पति-हित-कारिणि।
पति-सेवा हित वन-वन चारिणि।।
पति-हित पति-वियोग-स्वीकारिणि।
त्याग-धर्म-मूरति-धारीकी ॥
सीताजी रघुबर-प्यारीकी ॥
*****
विमल-कीर्ति सब लोकन छाई।
नाम लेत पावन मति आई।।
सुमिरत कटत कष्ट दुखदाई।
शरणागत-जन-भय-हारीकी ॥
सीताजी रघुबर-प्यारीकी ॥
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सीताजी रघुबर-प्यारीकी ॥
आरति श्रीजनक-दुलारीकी ।
सीताजी रघुबर-प्यारीकी ॥
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जगत-जननि जगकी विस्तारिणि।
नित्य सत्य साकेत-विहारिणि।।
परम दयामयि दीनोद्धारिणि।
मैयाभक्तन-हितकारीकी ॥
सीताजी रघुबर-प्यारीकी ॥
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सती शिरोमणि पति-हित-कारिणि।
पति-सेवा हित वन-वन चारिणि।।
पति-हित पति-वियोग-स्वीकारिणि।
त्याग-धर्म-मूरति-धारीकी ॥
सीताजी रघुबर-प्यारीकी ॥
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विमल-कीर्ति सब लोकन छाई।
नाम लेत पावन मति आई।।
सुमिरत कटत कष्ट दुखदाई।
शरणागत-जन-भय-हारीकी ॥
सीताजी रघुबर-प्यारीकी ॥
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