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गुरुवार, 18 जनवरी 2024

राम प्रिया रघुपति रघुराई | Sita Mata Chalisa Lyrics in Hindi and English

राम प्रिया रघुपति रघुराई | Sita Mata Chalisa Lyrics in Hindi and English

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॥दोहा ॥
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बन्दौ चरण सरोज निज 
जनक लली सुख धाम ।
राम प्रिय किरपा करें 
सुमिरौं आठों धाम ॥
कीरति गाथा जो पढ़ें 
सुधरैं सगरे काम ।
मन मन्दिर बासा करें 
दुःख भंजन सिया राम ॥
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॥ चौपाई ॥
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राम प्रिया रघुपति रघुराई । 
बैदेही की कीरत गाई ॥१॥
चरण कमल बन्दों सिर नाई । 
सिय सुरसरि सब पाप नसाई ॥२॥
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जनक दुलारी राघव प्यारी । 
भरत लखन शत्रुहन वारी ॥३॥
दिव्या धरा सों उपजी सीता । 
मिथिलेश्वर भयो नेह अतीता ॥४॥
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सिया रूप भायो मनवा अति । 
रच्यो स्वयंवर जनक महीपति ॥५॥
भारी शिव धनुष खींचै जोई । 
सिय जयमाल साजिहैं सोई ॥६॥
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भूपति नरपति रावण संगा । 
नाहिं करि सके शिव धनु भंगा ॥७॥
जनक निराश भए लखि कारन । 
जनम्यो नाहिं अवनिमोहि तारन ॥८॥
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यह सुन विश्वामित्र मुस्काए । 
राम लखन मुनि सीस नवाए ॥९॥
आज्ञा पाई उठे रघुराई । 
इष्ट देव गुरु हियहिं मनाई ॥१०॥
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जनक सुता गौरी सिर नावा । 
राम रूप उनके हिय भावा ॥११॥
मारत पलक राम कर धनु लै । 
खंड खंड करि पटकिन भूपै ॥१२॥
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जय जयकार हुई अति भारी । 
आनन्दित भए सबैं नर नारी ॥१३॥
सिय चली जयमाल सम्हाले । 
मुदित होय ग्रीवा में डाले ॥१४॥
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मंगल बाज बजे चहुँ ओरा । 
परे राम संग सिया के फेरा ॥१५॥
लौटी बारात अवधपुर आई । 
तीनों मातु करैं नोराई ॥१६॥
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कैकेई कनक भवन सिय दीन्हा । 
मातु सुमित्रा गोदहि लीन्हा ॥१७॥
कौशल्या सूत भेंट दियो सिय । 
हरख अपार हुए सीता हिय ॥१८॥
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सब विधि बांटी बधाई । 
राजतिलक कई युक्ति सुनाई ॥१९॥
मंद मती मंथरा अडाइन । 
राम न भरत राजपद पाइन ॥२०॥
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कैकेई कोप भवन मा गइली । 
वचन पति सों अपनेई गहिली ॥२१॥
चौदह बरस कोप बनवासा । 
भरत राजपद देहि दिलासा ॥२२॥
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आज्ञा मानि चले रघुराई । 
संग जानकी लक्षमन भाई ॥२३॥
सिय श्री राम पथ पथ भटकैं । 
मृग मारीचि देखि मन अटकै ॥२४॥
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राम गए माया मृग मारन । 
रावण साधु बन्यो सिय कारन ॥२५॥
भिक्षा कै मिस लै सिय भाग्यो । 
लंका जाई डरावन लाग्यो ॥२६॥
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राम वियोग सों सिय अकुलानी । 
रावण सों कही कर्कश बानी ॥२७॥
हनुमान प्रभु लाए अंगूठी । 
सिय चूड़ामणि दिहिन अनूठी ॥२८॥
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अष्ठसिद्धि नवनिधि वर पावा । 
महावीर सिय शीश नवावा ॥२९॥
सेतु बाँधी प्रभु लंका जीती । 
भक्त विभीषण सों करि प्रीती ॥३०॥
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चढ़ि विमान सिय रघुपति आए । 
भरत भ्रात प्रभु चरण सुहाए ॥३१॥
अवध नरेश पाई राघव से । 
सिय महारानी देखि हिय हुलसे ॥३२॥
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रजक बोल सुनी सिय वन भेजी । 
लखनलाल प्रभु बात सहेजी ॥३३॥
बाल्मीक मुनि आश्रय दीन्यो । 
लव-कुश जन्म वहाँ पै लीन्हो ॥३४॥
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विविध भाँती गुण शिक्षा दीन्हीं । 
दोनुह रामचरित रट लीन्ही ॥३५॥
लरिकल कै सुनि सुमधुर बानी । 
रामसिया सुत दुई पहिचानी ॥३६॥
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भूलमानि सिय वापस लाए । 
राम जानकी सबहि सुहाए ॥३७॥
सती प्रमाणिकता केहि कारन । 
बसुंधरा सिय के हिय धारन ॥३८॥
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अवनि सुता अवनी मां सोई । 
राम जानकी यही विधि खोई ॥३९॥
पतिव्रता मर्यादित माता । 
सीता सती नवावों माथा ॥४०॥
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॥ दोहा ॥
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जनकसुता अवनिधिया 
राम प्रिया लव-कुश मात ।
चरणकमल जेहि उन बसै 
सीता सुमिरै प्रात ॥
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राम प्रिया रघुपति रघुराई | Sita Mata Chalisa Lyrics in Hindi and English

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॥dohā ॥
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Bandau charaṇ saroj nij 
Janak lalī sukh dhām ।
Rām priya kirapā karean 
Sumirauan āṭhoan dhām ॥
Kīrati gāthā jo paḍhaean 
Sudharaian sagare kām ।
Man mandir bāsā karean 
Duahkha bhanjan siyā rām ॥
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॥ chaupāī ॥
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Rām priyā raghupati raghurāī । 
Baidehī kī kīrat gāī ॥1॥
Charaṇ kamal bandoan sir nāī । 
Siya surasari sab pāp nasāī ॥2॥
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Janak dulārī rāghav pyārī । 
Bharat lakhan shatruhan vārī ॥3॥
Divyā dharā soan upajī sītā । 
Mithileshvar bhayo neh atītā ॥4॥
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Siyā rūp bhāyo manavā ati । 
Rachyo svayanvar janak mahīpati ॥5॥
Bhārī shiv dhanuṣh khīanchai joī । 
Siya jayamāl sājihaian soī ॥6॥
**
Bhūpati narapati rāvaṇ sangā । 
Nāhian kari sake shiv dhanu bhangā ॥7॥
Janak nirāsh bhae lakhi kāran । 
Janamyo nāhian avanimohi tāran ॥8॥
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Yah sun vishvāmitra muskāe । 
Rām lakhan muni sīs navāe ॥9॥
Ājnyā pāī uṭhe raghurāī । 
Iṣhṭa dev guru hiyahian manāī ॥10॥
**
Janak sutā gaurī sir nāvā । 
Rām rūp unake hiya bhāvā ॥11॥
Mārat palak rām kar dhanu lai । 
Khanḍa khanḍa kari paṭakin bhūpai ॥12॥
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Jaya jayakār huī ati bhārī । 
Ānandit bhae sabaian nar nārī ॥13॥
Siya chalī jayamāl samhāle । 
Mudit hoya grīvā mean ḍāle ॥14॥
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Mangal bāj baje chahu orā । 
Pare rām sanga siyā ke ferā ॥15॥
Lauṭī bārāt avadhapur āī । 
Tīnoan mātu karaian norāī ॥16॥
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Kaikeī kanak bhavan siya dīnhā । 
Mātu sumitrā godahi līnhā ॥17॥
Kaushalyā sūt bheanṭa diyo siya । 
Harakh apār hue sītā hiya ॥18॥
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Sab vidhi bāanṭī badhāī । 
Rājatilak kaī yukti sunāī ॥19॥
Manda matī mantharā aḍāin । 
Rām n bharat rājapad pāin ॥20॥
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Kaikeī kop bhavan mā gailī । 
Vachan pati soan apaneī gahilī ॥21॥
Chaudah baras kop banavāsā । 
Bharat rājapad dehi dilāsā ॥22॥
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Ājnyā māni chale raghurāī । 
Sanga jānakī lakṣhaman bhāī ॥23॥
Siya shrī rām path path bhaṭakaian । 
Mṛug mārīchi dekhi man aṭakai ॥24॥
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Rām gae māyā mṛug māran । 
Rāvaṇ sādhu banyo siya kāran ॥25॥
Bhikṣhā kai mis lai siya bhāgyo । 
Lankā jāī ḍarāvan lāgyo ॥26॥
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Rām viyog soan siya akulānī । 
Rāvaṇ soan kahī karkash bānī ॥27॥
Hanumān prabhu lāe aangūṭhī । 
Siya chūḍaāmaṇi dihin anūṭhī ॥28॥
**
Aṣhṭhasiddhi navanidhi var pāvā । 
Mahāvīr siya shīsh navāvā ॥29॥
Setu bādhī prabhu lankā jītī । 
Bhakta vibhīṣhaṇ soan kari prītī ॥30॥
**
Chaḍhai vimān siya raghupati āe । 
Bharat bhrāt prabhu charaṇ suhāe ॥31॥
Avadh naresh pāī rāghav se । 
Siya mahārānī dekhi hiya hulase ॥32॥
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Rajak bol sunī siya van bhejī । 
Lakhanalāl prabhu bāt sahejī ॥33॥
Bālmīk muni āshraya dīnyo । 
Lava-kush janma vahā pai līnho ॥34॥
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Vividh bhātī guṇ shikṣhā dīnhīan । 
Donuh rāmacharit raṭ līnhī ॥35॥
Larikal kai suni sumadhur bānī । 
Rāmasiyā sut duī pahichānī ॥36॥
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Bhūlamāni siya vāpas lāe । 
Rām jānakī sabahi suhāe ॥37॥
Satī pramāṇikatā kehi kāran । 
Basuandharā siya ke hiya dhāran ॥38॥
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Avani sutā avanī māan soī । 
Rām jānakī yahī vidhi khoī ॥39॥
Pativratā maryādit mātā । 
Sītā satī navāvoan māthā ॥40॥
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॥ dohā ॥
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Janakasutā avanidhiyā 
Rām priyā lava-kush māt ।
Charaṇakamal jehi un basai 
Sītā sumirai prāt ॥
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रविवार, 24 दिसंबर 2023

जय जय जय काली कपाली | Jay Jay Jay Kali Kapali | काली चालीसा | Kali Chalisa Lyrics in Hindi

जय जय जय काली कपाली | Jay Jay Jay Kali Kapali | काली चालीसा | Kali Chalisa Lyrics in Hindi 

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चौपाई
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जय काली जगदम्ब जय
हरनि ओघ अघ पुंज।
वास करहु निज दास के 
निशदिन हृदय निकुंज।।
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जयति कपाली कालिका 
कंकाली सुख दानि।
कृपा करहु वरदायिनी 
निज सेवक अनुमानि।।
**
चौपाई
**
जय जय जय काली कपाली । 
जय कपालिनी, जयति कराली।।
शंकर प्रिया, अपर्णा, अम्बा । 
जय कपर्दिनी, जय जगदम्बा।।
**
आर्या, हला, अम्बिका, माया । 
कात्यायनी उमा जगजाया।।
गिरिजा गौरी दुर्गा चण्डी । 
दाक्षाणायिनी शाम्भवी प्रचंडी।।
**
पार्वती मंगला भवानी । 
विश्वकारिणी सती मृडानी।।
सर्वमंगला शैल नन्दिनी । 
हेमवती तुम जगत वन्दिनी।।
**
ब्रह्मचारिणी कालरात्रि जय । 
महारात्रि जय मोहरात्रि जय।।
तुम त्रिमूर्ति रोहिणी कालिका । 
कूष्माण्डा कार्तिका चण्डिका।।
**
तारा भुवनेश्वरी अनन्या । 
तुम्हीं छिन्नमस्ता शुचिधन्या।।
धूमावती षोडशी माता । 
बगला मातंगी  विख्याता।।
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तुम भैरवी मातु तुम कमला । 
रक्तदन्तिका कीरति अमला।।
शाकम्भरी कौशिकी भीमा । 
महातमा अग जग की सीमा।।
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चन्द्रघण्टिका तुम सावित्री । 
ब्रह्मवादिनी मां गायत्री।।
रूद्राणी तुम कृष्ण पिंगला । 
अग्निज्वाला तुम सर्वमंगला।।
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मेघस्वना तपस्विनि योगिनी । 
सहस्त्राक्षि तुम अगजग भोगिनी।।
जलोदरी सरस्वती डाकिनी । 
त्रिदशेश्वरी अजेय लाकिनी।।
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पुष्टि तुष्टि धृति स्मृति शिव दूती।
कामाक्षी लज्जा आहूती।।
महोदरी कामाक्षि हारिणी।
विनायकी श्रुति महा शाकिनी।।
**
अजा कर्ममोही ब्रह्माणी । 
धात्री वाराही शर्वाणी।।
स्कन्द मातु तुम सिंह वाहिनी।
मातु सुभद्रा रहहु दाहिनी।।
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नाम रूप गुण अमित तुम्हारे।
शेष शारदा बरणत हारे।।
तनु छवि श्यामवर्ण तव माता।
नाम कालिका जग विख्याता।।
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अष्टादश तब भुजा मनोहर।
तिनमहं अस्त्र विराजत सुंदर।।
शंख चक्र अरू गदा सुहावन।
परिघ भुशण्डी घण्टा पावन।।
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शूल बज्र धनुबाण उठाए।
निशिचर कुल सब मारि गिराए।।
शुंभ निशुंभ दैत्य संहारे । 
रक्तबीज के प्राण निकारे।।
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चौंसठ योगिनी नाचत संगा । 
मद्यपान कीन्हैउ रण गंगा।।
कटि किंकिणी मधुर नूपुर धुनि।
दैत्यवंश कांपत जेहि सुनि-सुनि।।
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कर खप्पर त्रिशूल भयकारी । 
अहै सदा सन्तन सुखकारी।।
शव आरूढ़ नृत्य तुम साजा । 
बजत मृदंग भेरी के बाजा।।
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रक्त पान अरिदल को कीन्हा।
प्राण तजेउ जो तुम्हिं न चीन्हा।।
लपलपाति जिव्हा तव माता । 
भक्तन सुख दुष्टन दु:ख दाता।।
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लसत भाल सेंदुर को टीको । 
बिखरे केश रूप अति नीको।।
मुंडमाल गल अतिशय सोहत । 
भुजामल किंकण मनमोहन।।
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प्रलय नृत्य तुम करहु भवानी।
जगदम्बा कहि वेद बखानी।।
तुम मशान वासिनी कराला।
भजत करत काटहु भवजाला।।
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बावन शक्ति पीठ तव सुंदर । 
जहां बिराजत विविध रूप धर।।
विन्धवासिनी कहूं बड़ाई  ।  
कहं कालिका रूप सुहाई।।
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शाकम्भरी बनी कहं ज्वाला । 
महिषासुर मर्दिनी कराला।।
कामाख्या तव नाम मनोहर । 
पुजवहिं मनोकामना द्रुततर।।
**
चंड मुंड वध छिन महं करेउ।
देवन के उर आनन्द भरेउ।।
सर्व व्यापिनी तुम मां तारा । 
अरिदल दलन लेहु अवतारा।।
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खलबल मचत सुनत हुंकारी । 
अगजग व्यापक देह तुम्हारी।।
तुम विराट रूपा गुणखानी । 
विश्व स्वरूपा तुम महारानी।।
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उत्पत्ति स्थिति लय तुम्हरे कारण । 
करहु दास के दोष निवारण ।।
मां उर वास करहू तुम अंबा । 
सदा दीन जन की अवलंबा।।
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तुम्हारो ध्यान धरै जो कोई । 
ता कहं भीति कतहुं नहिं होई।।
विश्वरूप तुम आदि भवानी । 
महिमा वेद पुराण बखानी।।
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अति अपार तव नाम प्रभावा । 
जपत न रहन रंच दु:ख दावा।।
महाकालिका जय कल्याणी । 
जयति सदा सेवक सुखदानी।।
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तुम अनन्त औदार्य विभूषण । 
कीजिए कृपा क्षमिये सब दूषण।।
दास जानि निज दया दिखावहु । 
सुत अनुमानित सहित अपनावहु।।
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जननी तुम सेवक प्रति पाली । 
करहु कृपा सब विधि मां काली।।
पाठ  करै  चालीसा  जोई । 
तापर  कृपा  तुम्हारी  होई।।
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शनिवार, 23 दिसंबर 2023

जय काली कंकाल मालिनी | Jay Kali Kankal Malini | काली चालीसा | Kali Chalisa Lyrics in Hindi

जय काली कंकाल मालिनी | Jay Kali Kankal Malini | काली चालीसा | Kali Chalisa Lyrics in Hindi
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दोहा
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जय जय सीताराम के 
मध्यवासिनी अम्ब
देहु दरश जगदम्ब अब 
करहु न मातु विलम्ब ॥
जय तारा जय कालिका 
जय दश विद्या वृन्द,
काली चालीसा रचत 
एक सिद्धि कवि हिन्द ॥
प्रातः काल उठ जो पढ़े 
दुपहरिया या शाम,
दुःख दरिद्रता दूर हों 
सिद्धि होय सब काम ॥
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चौपाई
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जय काली कंकाल मालिनी
जय मंगला महाकपालिनी ॥
रक्तबीज वधकारिणी माता,
सदा भक्तन की सुखदाता ॥
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शिरो मालिका भूषित अंगे,
जय काली जय मद्य मतंगे ॥
हर हृदयारविन्द सुविलासिनी,
जय जगदम्बा सकल दुःख नाशिनी ॥
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ह्रीं काली श्रीं महाकाराली,
क्रीं कल्याणी दक्षिणाकाली ॥
जय कलावती जय विद्यावति,
जय तारासुन्दरी महामति ॥
**
देहु सुबुद्धि हरहु सब संकट,
होहु भक्त के आगे परगट ॥
जय ॐ कारे जय हुंकारे,
महाशक्ति जय अपरम्पारे ॥
**
कमला कलियुग दर्प विनाशिनी,
सदा भक्तजन की भयनाशिनी ॥
अब जगदम्ब न देर लगावहु,
दुख दरिद्रता मोर हटावहु ॥
**
जयति कराल कालिका माता,
कालानल समान घुतिगाता ॥
जयशंकरी सुरेशि सनातनि,
कोटि सिद्धि कवि मातु पुरातनी ॥ 
**
कपर्दिनी कलि कल्प विमोचनि,
जय विकसित नव नलिन विलोचनी ॥
आनन्दा करणी आनन्द निधाना,
देहुमातु मोहि निर्मल ज्ञाना ॥
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करूणामृत सागरा कृपामयी,
होहु दुष्ट जन पर अब निर्दयी ॥
सकल जीव तोहि परम पियारा,
सकल विश्व तोरे आधारा ॥ 
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प्रलय काल में नर्तन कारिणि,
जग जननी सब जग की पालिनी ॥
महोदरी माहेश्वरी माया,
हिमगिरि सुता विश्व की छाया ॥
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स्वछन्द रद मारद धुनि माही,
गर्जत तुम्ही और कोउ नाहि ॥
स्फुरति मणिगणाकार प्रताने,
तारागण तू व्योम विताने ॥
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श्रीधारे सन्तन हितकारिणी,
अग्निपाणि अति दुष्ट विदारिणि ॥
धूम्र विलोचनि प्राण विमोचिनी,
शुम्भ निशुम्भ मथनि वर लोचनि ॥
**
सहस भुजी सरोरूह मालिनी,
चामुण्डे मरघट की वासिनी ॥
खप्पर मध्य सुशोणित साजी,
मारेहु माँ महिषासुर पाजी ॥
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अम्ब अम्बिका चण्ड चण्डिका,
सब एके तुम आदि कालिका ॥
अजा एकरूपा बहुरूपा,
अकथ चरित्रा शक्ति अनूपा ॥
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कलकत्ता के दक्षिण द्वारे,
मूरति तोरि महेशि अपारे ॥
कादम्बरी पानरत श्यामा,
जय माँतगी काम के धामा ॥
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कमलासन वासिनी कमलायनि,
जय श्यामा जय जय श्यामायनि ॥
मातंगी जय जयति प्रकृति हे,
जयति भक्ति उर कुमति सुमति हे ॥
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कोटि ब्रह्म शिव विष्णु कामदा,
जयति अहिंसा धर्म जन्मदा ॥
जलथल नभ मण्डल में व्यापिनी,
सौदामिनी मध्य आलापिनि ॥
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झननन तच्छु मरिरिन नादिनी,
जय सरस्वती वीणा वादिनी ॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे,
कलित कण्ठ शोभित नरमुण्डा ॥
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जय ब्रह्माण्ड सिद्धि कवि माता,
कामाख्या और काली माता ॥
हिंगलाज विन्ध्याचल वासिनी,
अटठहासिनि अरु अघन नाशिनी ॥
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कितनी स्तुति करूँ अखण्डे,
तू ब्रह्माण्डे शक्तिजित चण्डे ॥
करहु कृपा सब पे जगदम्बा,
रहहिं निशंक तोर अवलम्बा ॥
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चतुर्भुजी काली तुम श्यामा,
रूप तुम्हार महा अभिरामा ॥
खड्ग और खप्पर कर सोहत,
सुर नर मुनि सबको मन मोहत ॥
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तुम्हारी कृपा पावे जो कोई,
रोग शोक नहिं ताकहँ होई ॥
जो यह पाठ करै चालीसा,
तापर कृपा करहिं गौरीशा ॥
**
दोहा
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जय कपालिनी जय शिवा,
जय जय जय जगदम्ब,
सदा भक्तजन केरि दुःख हरहु,
मातु अविलम्ब ॥
*****

शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

जयकाली कलिमलहरण | Jay Kali Kalimalharan | श्री काली चालीसा | Kali Chalisa Lyrics in Hindi

जयकाली कलिमलहरण | Jay Kali Kalimalharan | श्री काली चालीसा | Kali Chalisa Lyrics in Hindi

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दोहा
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जयकाली कलिमलहरण
महिमा अगम अपार
महिष मर्दिनी कालिका 
देहु अभय अपार
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अरि मद मान मिटावन हारी। 
मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥
अष्टभुजी सुखदायक माता । 
दुष्टदलन जग में विख्याता ॥
**
भाल विशाल मुकुट छवि छाजै । 
कर में शीश शत्रु का साजै ॥
दूजे हाथ लिए मधु प्याला । 
हाथ तीसरे सोहत भाला ॥
**
चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे । 
छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ॥
सप्तम करदमकत असि प्यारी । 
शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥
**
अष्टम कर भक्तन वर दाता । 
जग मनहरण रूप ये माता ॥
भक्तन में अनुरक्त भवानी । 
निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ॥
**
महशक्ति अति प्रबल पुनीता । 
तू ही काली तू ही सीता ॥
पतित तारिणी हे जग पालक । 
कल्याणी पापी कुल घालक ॥
**
शेष सुरेश न पावत पारा । 
गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥
तुम समान दाता नहिं दूजा । 
विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥
**
रूप भयंकर जब तुम धारा । 
दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥
नाम अनेकन मात तुम्हारे । 
भक्तजनों के संकट टारे ॥
**
कलि के कष्ट कलेशन हरनी । 
भव भय मोचन मंगल करनी ॥
महिमा अगम वेद यश गावैं । 
नारद शारद पार न पावैं ॥
**
भू पर भार बढ्यौ जब भारी । 
तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥
आदि अनादि अभय वरदाता । 
विश्वविदित भव संकट त्राता ॥
**
कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा । 
उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा । 
काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥
**
कलुआ भैंरों संग तुम्हारे । 
अरि हित रूप भयानक धारे ॥
सेवक लांगुर रहत अगारी । 
चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥
**
त्रेता में रघुवर हित आई । 
दशकंधर की सैन नसाई ॥
खेला रण का खेल निराला । 
भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥
**
रौद्र रूप लखि दानव भागे । 
कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो । 
स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥
**
ये बालक लखि शंकर आए । 
राह रोक चरनन में धाए ॥
तब मुख जीभ निकर जो आई । 
यही रूप प्रचलित है माई ॥
**
बाढ्यो महिषासुर मद भारी । 
पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥
करूण पुकार सुनी भक्तन की । 
पीर मिटावन हित जन-जन की ॥
**
तब प्रगटी निज सैन समेता । 
नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं । 
तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥
**
मान मथनहारी खल दल के । 
सदा सहायक भक्त विकल के ॥
दीन विहीन करैं नित सेवा । 
पावैं मनवांछित फल मेवा ॥
**
संकट में जो सुमिरन करहीं । 
उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥
प्रेम सहित जो कीरति गावैं । 
भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥
**
काली चालीसा जो पढ़हीं । 
स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा । 
केहि कारण मां कियौ विलम्बा ॥
**
करहु मातु भक्तन रखवाली । 
जयति जयति काली कंकाली ॥
सेवक दीन अनाथ अनारी । 
भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥
**
दोहा
**
प्रेम सहित जो करे 
काली चालीसा पाठ ।
तिनकी पूरन कामना 
होय सकल जग ठाठ ॥
*****

मंगलवार, 19 दिसंबर 2023

नित्य आनंद करिणी माता | Nitya Anand Karni Mata | Shri Annapurna Chalisa Lyrics in Hindi

नित्य आनंद करिणी माता | Nitya Anand Karni Mata | Shri Annapurna Chalisa Lyrics in Hindi

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संक्षिप्‍त परिचय - अन्नपूर्णा दो शब्दों से मिलकर बना है- 'अन्न' का अर्थ है भोजन और 'पूर्णा' का अर्थ है 'पूरी तरह से भरा हुआ'। अन्नपूर्णा भोजन और रसोई की देवी हैं। वह देवी पार्वती का अवतार हैं जो शिव की पत्नी हैं। वह पोषण की देवी हैं और अपने भक्तों को कभी भोजन के बिना नहीं रहने देतीं।
हिन्दू धर्म में मान्यता है कि अन्न की देवी माता अन्नपूर्णा (Goddess Annapurna) की तस्वीर रसोईघर में लगाने से घर में कभी भी अन्न और धन की कमी नहीं होती है। उनका दूसरा नाम 'अन्नदा' है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार पृथ्वी पर सूखा पड़ गया. जमीन बंजर हो गई. फसलें, फलों आदि की पैदावार ना होने से जीवन का संकट आ गया. तब भगवान शिव ने पृथ्वीवासियों के कल्याण के लिए भिक्षुक का स्वरूप धारण किया और माता पार्वती ने मां अन्नपूर्णा का अवतार लिया। देवी दुर्गा शक्ति और सुरक्षा का प्रतीक हैं, देवी लक्ष्मी धन और समृद्धि का प्रतिनिधित्व करती हैं, देवी सरस्वती ज्ञान और शिक्षा से जुड़ी हैं, देवी काली व्यक्तिगत राक्षसों और नकारात्मकता को दूर करने में मदद करती हैं, देवी अन्नपूर्णा की पूजा भोजन और पोषण के लिए की जाती है। वास्तु शास्त्र की मानें तो माता अन्नपूर्णा की तस्वीर के लिए सबसे शुभ दिशा पूर्व-दक्षिण यानी कि आग्नेय कोण का मध्य भाग होता है। इस दिशा में देवताओं का वास होता है। इसलिए यहां मां अन्नपूर्णा की तस्वीर रखने से घर में सुख-समृद्धि और सौभाग्य बना रहता है और कभी भी अन्न की कमी नहीं होती है।
आप सभी माता अन्‍नपूर्णा की प्राप्ति हेतु चालीसा का पाठ कर सकते हैं - 

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॥ दोहा ॥
विश्वेश्वर पदपदम की 
रज निज शीश लगाय ।
अन्नपूर्ण, तव सुयश 
बरनौं कवि मतिलाय ।
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॥ चौपाई ॥
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नित्य आनंद करिणी माता ।
वर अरु अभय भाव प्रख्याता ।।1
जय ! सौंदर्य सिंधु जग जननी ।
अखिल पाप हर भव-भय-हरनी ।।2
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श्वेत बदन पर श्वेत बसन पुनि ।
संतन तुव पद सेवत ऋषिमुनि ।।3
काशी पुराधीश्वरी माता ।
माहेश्वरी सकल जग त्राता ।।4
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वृषभारुढ़ नाम रुद्राणी ।
विश्व विहारिणि जय कल्याणी ।।5
पतिदेवता सुतीत शिरोमणि ।
पदवी प्राप्त कीन्ह गिरी नंदिनि ।।6
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पति विछोह दुःख सहि नहिं पावा ।
योग अग्नि तब बदन जरावा ।।7
देह तजत शिव चरण सनेहू ।
राखेहु जात हिमगिरि गेहू ।।8
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प्रकटी गिरिजा नाम धरायो ।
अति आनंद भवन मँह छायो ।19
नारद ने तब तोहिं भरमायहु ।
ब्याह करन हित पाठ पढ़ायहु ।।10
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ब्रहमा वरुण कुबेर गनाये ।
देवराज आदिक कहि गाये ।।11
सब देवन को सुजस बखानी ।
मति पलटन की मन मँह ठानी ।।12
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अचल रहीं तुम प्रण पर धन्या ।
कीहनी सिद्ध हिमाचल कन्या ।।13
निज कौ तब नारद घबराये ।
तब प्रण पूरण मंत्र पढ़ाये ।।14
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करन हेतु तप तोहिं उपदेशेउ ।
संत बचन तुम सत्य परेखेहु ।।15
गगनगिरा सुनि टरी न टारे ।
ब्रहां तब तुव पास पधारे ।।16
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कहेउ पुत्रि वर माँगु अनूपा ।
देहुँ आज तुव मति अनुरुपा ।।17
तुम तप कीन्ह अलौकिक भारी ।
कष्ट उठायहु अति सुकुमारी ।।18
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अब संदेह छाँड़ि कछु मोसों ।
है सौगंध नहीं छल तोसों ।।19
करत वेद विद ब्रहमा जानहु ।
वचन मोर यह सांचा मानहु ।।20
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तजि संकोच कहहु निज इच्छा ।
देहौं मैं मनमानी भिक्षा ।।21
सुनि ब्रहमा की मधुरी बानी ।
मुख सों कछु मुसुकाय भवानी ।।22
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बोली तुम का कहहु विधाता ।
तुम तो जगके स्रष्टाधाता ।।23
मम कामना गुप्त नहिं तोंसों ।
कहवावा चाहहु का मोंसों ।।24
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दक्ष यज्ञ महँ मरती बारा ।
शंभुनाथ पुनि होहिं हमारा ।।25
सो अब मिलहिं मोहिं मनभाये ।
कहि तथास्तु विधि धाम सिधाये ।।26
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तब गिरिजा शंकर तव भयऊ ।
फल कामना संशयो गयऊ ।।27
चन्द्रकोटि रवि कोटि प्रकाशा ।
तब आनन महँ करत निवासा ।।28
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माला पुस्तक अंकुश सोहै ।
कर मँह अपर पाश मन मोहै ।।29
अन्न्पूर्णे ! सदापूर्णे ।
अज अनवघ अनंत पूर्णे ।।30
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कृपा सागरी क्षेमंकरि माँ ।
भव विभूति आनंद भरी माँ ।।31
कमल विलोचन विलसित भाले ।
देवि कालिके चण्डि कराले ।।32
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तुम कैलास मांहि है गिरिजा ।
विलसी आनंद साथ सिंधुजा ।।33
स्वर्ग महालक्ष्मी कहलायी ।
मर्त्य लोक लक्ष्मी पदपायी ।।34
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विलसी सब मँह सर्व सरुपा ।
सेवत तोहिं अमर पुर भूपा ।।35
जो पढ़िहहिं यह तव चालीसा ।
फल पाइंहहि शुभ साखी ईसा ।।36
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प्रात समय जो जन मन लायो ।
पढ़िहहिं भक्ति सुरुचि अधिकायो ।।37
स्त्री कलत्र पति मित्र पुत्र युत ।
परमैश्रवर्य लाभ लहि अद्भुत ।।38
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राज विमुख को राज दिवावै ।
जस तेरो जन सुजस बढ़ावै ।।39
पाठ महा मुद मंगल दाता ।
भक्त मनोवांछित निधि पाता ।।40
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॥ दोहा ॥
जो यह चालीसा सुभग 
पढ़ि नावेंगे माथ ।
तिनके कारज सिद्ध सब 
साखी काशी नाथ ॥
*****

शनिवार, 9 दिसंबर 2023

नमस्कार चामुंडा माता | Namaskar Chamunda Mata | मॉं चामुंडा चालीसा | Ma Chamunda Chalisa Lyrics in Hindi

नमस्कार चामुंडा माता | Namaskar Chamunda Mata | मॉं चामुंडा चालीसा | Ma Chamunda Chalisa Lyrics in Hindi

***
॥ दोहा ॥ 
नीलवर्ण मॉं कालिका 
रहतीं सदा प्रचण्ड। 
दस हाथों में शस्त्र धर 
देतीं दुष्ट को दण्ड॥
** 
मधु कैटभ संहार कर 
करी धर्म की जीत। 
मेरी भी बाधा हरो 
हों जो कर्म पुनीत ॥
*****
॥ चौपाई॥ 
नमस्कार चामुंडा माता। 
तीनों लोकों में विख्याता ॥
हिमालय में पवित्र धाम है। 
महाशक्ति तुमको प्रणाम है॥ 
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मार्कण्डेय ऋषि ने घ्याया । 
कैसे प्रगटीं भेद बताया॥
शुभ निशुंभ दो दैत्य बलशाली। 
तीनों लोक जो कर दिए खाली ॥
**
वायु अग्नि यम कुबेर संग। 
सूर्य चंद्र वरुण हुए तंग ॥
अपमानित चरणों में आए। 
गिरिराज हिमालय को लाए॥ 
**
भद्रा-रौद्रा नित्या ध्याया । 
चेतन शक्ति करके बुलाया॥
क्रोधित होकर काली आई। 
जिसने अपनी लीला दिखाई॥
**
चंड मुंड और शुंभ पठाए। 
कामुक वैरी लड़ने आए ॥ 
पहले सुग्रीव दूत को मारा। 
भागा चंड भी मारा मारा॥ 
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अरबों सैनिक लेकर आया। 
धून लोचन क्रोध दिखाया॥ 
जैसे ही दुष्ट ललकारा। 
हूं हूं शब्द गुंजा के मारा ॥ 
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सेना ने मचाई भगदड़ । 
फाड़ा सिंह ने आया जो बढ़॥ 
हत्या करने चंड-मुंड आए। 
मदिरा पीकर के घुर्राए॥ 
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चतुरंगी सेना संग लाए। 
ऊंचे ऊंचे शिविर गिराए॥ 
तुमने क्रोधित रूप निकाला। 
प्रगटीं डाल गले मुंड माला॥
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चर्म की साड़ी चीते वाली। 
हड्डी ढांचा था बलशाली॥ 
विकराल मुखी आंखें दिखलाई। 
जिसे देख सृष्टि घबराई॥ 
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चंड मुंड ने चक्र चलाया। 
ले तलवार हूं शब्द गुंजाया॥
पापियों का कर दिया निस्तारा। 
चंड मुंड दोनों को मारा॥
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हाथ में मस्‍तक ले मुस्काई। 
पापी सेना फिर घबराई॥ 
सरस्वती मॉं तुम्हें पुकारा। 
पड़ा चामुंडा नाम तिहारा ॥
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चण्‍ड मुण्‍ड की मृत्यु सुनकर। 
कालक मौर्य आए रथ पर॥ 
अरब खरब युद्ध के पथ पर। 
झोंक दिए सब चामुंडा पर॥ 
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उग्र चंडिका प्रगटीं आकर। 
गीदड़ियों की वाणी भरकर ॥
काली खटवांग घूसों से मारा। 
ब्रह्माणी ने फेंकी जल धारा॥ 
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महेश्वरी ने त्रिशूल चलाया। 
मॉं वैष्णवी चक्र घुमाया॥
कार्तिकेय की शक्ति आई। 
नारसिंही दैत्यों पे छाई॥ 
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चुन चुन सिंह सभी को खाया। 
हर दानव घायल घबराया॥
रक्‍तबीज माया फैलाई। 
शक्ति उसने नई दिखाई॥
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रक्‍त गिरा जब धरती ऊपर। 
नया दैत्य प्रगटा था वहीं पर॥
चण्‍डी मॉं अब शूल घुमाया। 
मारा उसको लहू चुसाया॥
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शुंभ निशुंभ अब दौड़े आए। 
शत्रू सेना भरकर लाए॥
वज्रपात संग शूल चलाए। 
सभी देवता कुछ घबराए॥ 
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ललकारा फिर घूंसा मारा। 
ले त्रिशूल किया निस्तारा ॥ 
शुंभ निशुंभ धरती पर सोए। 
दैत्य सभी देखकर रोए ॥ 
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चामुण्‍डा मॉं धर्म बचाया। 
अपना शुभ मंदिर बनवाया॥
सभी देवता आके मनाते । 
हनुमत भैरव चंवर डुलाते ॥ 
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आश्विन चैत्र नवरात्रे आऊं। 
ध्वजा नारियल भेंट चढ़ाऊं॥
बडेर नदी स्नान कराऊं। 
चामुंडा मां तुमको ध्याऊं॥ 
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॥ दोहा ॥
शरणागत को शक्ति दो 
हे जग की आधार। 
'ओम' ये नैया डोलती 
कर दो भव से पार॥

सोमवार, 7 अगस्त 2023

श्री गोलू देव चालीसा || Shri Golu Dev Chalisa Lyrics in Hindi || Lyrics in English

श्री गोलू देव चालीसा || Shri Golu Dev Chalisa Lyrics in Hindi || Lyrics in English


॥ दोहा ॥

 

बुद्धिहीन हूँ नाथ मैं, करो बुद्धि का दान।

सत्य न्याय के धाम तुम, हे गोलू भगवान।।

 

जय काली के वीर सुत, हे गोलू भगवान।

सुमिरन करने मात्र से, कटते कष्ट महान।।

 

जप कर तेरे नाम को, खुले सुखों के द्वार।

जय जय न्याय गौरिया नमन करे स्वीकार।।

 

।। चौपाई ।।

 

जय जय ग्वेल महाबलवाना।

हम पर कृपा करो भगवाना।।

 

न्याय सत्य के तुम अवतारा।

दुखियों का दुख हरते सारा ।।

 

द्वार पे आके जो भी पुकारे।

मिट जाते पल में दुख सारे।।

 

तुम जैसा नहीं कोई दूजा ।

पुनित होके भी बिन सेवा पूजा ।।

 

शरण में आये नाथ तिहारी।

रक्षा करना हे अवतारी ।।

 

माँ की सौत थी अत्याचारी ।

तुमको कष्ट दिये अतिभारी ।।

 

झाड़ी में तुमको गिरवाया।

विविध भांतिथा तुम्हे सताया ।।

 

नदी मध्य जल में डुबवाया।

फिर भी मार तुम्हें नहीं पाया ।।

 

सरल हृदय था धेवरहे का।

हरिपद रति बहुनिगुनविवेका।।

 

भाना नाम सकल जग जाना।

जल में देख बाल भगवाना।।

 

मन प्रसन्न तन कुलकित भारी।

बोला जय हे नाथ तुम्हारी ।।

 

कर गयी बालक गोद उठायो।

हृदय लगा किहीं अति सुख पायो।।

 

मन प्रसन्न मुख वचन न आवा।

मन हूँ महानिधि धेवर पावा।।

 

नहूँ उरततेहि शिशु द्रिह ले आयो।

नाम गौरिया तब रखवायो।।

 

सकल काज तज शिशु संगरहयी।

देखी बाल लीला सुख लहयी ।।

 

करत खेल या चरज अनेका।

देखी चकित हुई बुद्धि विवेका।।

 

ध्यालु कथा सुनीं जब काना।

देखन चले ग्वेल भगवाना।।

 

देखनपति बालक मुस्काया।

जन्मकाल यें कांड सुनाया ।।

 

सौतेली जननी की करनी।

ग्वेल पति संग मुख सब बरनी ।।

 

निपति ग्वेल निज हृदय लगायो।

प्रेम पुरत नय नन जल पायो ।।

 

चल हूँ तात अब निजरज धामी।

दंड देव में सातों: रानी।।

 

काट - काट सिर कठिन कृपाना।

कुटिल नारी हरि लेहूँ में प्राणा ।।

 

हृदय कम्प ऊपजा अति क्रोधा।

दंड देहु सुत नारी अबोधा।।

 

सुनहुँ तात एक बात हमारी।

क्षमा करोहुँ ये सब नारी बिचारी।।

 

हम ही देखी होई मृतक समाना।

जब लगी जियें पड़ी पछताना।।

 

अयशतात केहि कारण लेहूँ।

मात सौत कह दंड न देहुँ ।।

 

दया वन्त प्रिय ग्वेल सुझाना।

मनुज नहीं तुम देव महाना ।।

 

अमर सदा हो नाम तुम्हारा।

ग्वेल गौरिया गोलू प्यारा ।।

 

राज करहुँ चम्पावत वीरा।

हरहुँ तात जन-जन की पीरा ।।

 

मात - पिता भय धन्य तुम्हारें।

उदय आज हुए पुण्य हमारे।।

 

पितुआ ज्ञाधर सविनय शीशा।

ग्वेल बनें चम्पावत ईशा।।

 

सत्य न्याय है तुम्हें प्यारा।

तीनों हित तुमने कनधारा।।

 

दुखियों के दुख देखन पाते।

सुनी पुकार तुम उस थल जाते।।

 

विश्व विविध है न्याय तुम्हारे।

निर्बल के तुम एक सहारे ।।

 

चितई नमला मंदिर तेरे।

बजते घंटे जहाज घनेरे ।।

 

घोड़ाखाल प्रिय धाम तुम्हारा।

चमड़खान तुमको अति प्यारा।।

 

ताड़ीखेत में महिमा न्यारी ।

चम्पावत रजधानी प्यारी ।।

 

गाँव - गाँव में थान तुम्हारें।

न्याय हेतु जन तुम ही पुकारें ।।

 

सदा कृपा करना हे स्वामी।

ग्वेल देव हे अन्तर्यामी ।।

 

ये दस बार पाठ कर जोई।

विपदा टरें सदा सुख होई ।।


।। दोहा ।।

जय गोलू जय गौरिया, जय काली के लाल।

मौसानी ना कर सकी, तेरा बांका बाल ।।

 

सुमिरन करके नाम का, मिटते कष्ट हजार ।

जय हे न्यायी देवता, हे गोलू अवतार ।।

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रविवार, 6 नवंबर 2022

श्री गायत्री चालीसा //Shri Gayatri Chalisa in Hindi// Jagat Janani Mangal Karani Gayatri Sukhdham //जगत जननी मङ्गल करनि गायत्री सुखधाम

श्री गायत्री चालीसा //Shri Gayatri Chalisa in Hindi// Jagat Janani Mangal Karani Gayatri Sukhdham //जगत जननी मंंगल करनि गायत्री सुखधाम



ह्रीं  श्रीं   क्लीं   मेधा  प्रभा  जीवन  ज्योति  प्रचण्ड ।
शान्ति   कान्ति  जागृत प्रगति रचना शक्ति अखण्ड ॥ 1॥

जगत जननी मंंगल करनि गायत्री सुखधाम ।
प्रणवों सावित्री स्वधा  स्वाहा  पूरन काम ॥ 2॥

भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।
गायत्री नित कलिमल दहनी ॥ 3॥

अक्षर चौविस परम पुनीता ।
इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता ॥ 4॥

शाश्वत सतोगुणी सत रूपा ।
सत्य सनातन सुधा अनूपा ।
हंसारूढ सितंबर धारी ।
स्वर्ण कान्ति शुचि गगन-बिहारी ॥ 5॥

पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला ।
शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥ 6॥

ध्यान धरत पुलकित हित होई ।
सुख उपजत दुःख दुर्मति खोई ॥ 7॥

कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।
निराकार की अद्भुत माया ॥ 8॥

तुम्हरी शरण गहै जो कोई ।
तरै सकल संकट सों सोई ॥ 9॥

सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।
दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥ 10॥

तुम्हरी महिमा पार न पावैं ।
जो शारद शत मुख गुन गावैं ॥ 11॥

चार वेद की मात पुनीता ।
तुम ब्रह्माणी गौरी सीता ॥ 12॥

महामन्त्र जितने जग माहीं ।
कोई गायत्री सम नाहीं ॥ 13॥

सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै ।
आलस पाप अविद्या नासै ॥ 14॥

सृष्टि बीज जग जननि भवानी ।
कालरात्रि वरदा कल्याणी ॥ 15॥

ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते ।
तुम सों पावें सुरता तेते ॥ 16॥

तुम भक्तन की भकत तुम्हारे ।
जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥ 17॥

महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।
जय जय जय त्रिपदा भयहारी ॥ 18॥

पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना ।
तुम सम अधिक न जगमे आना ॥ 19॥

तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा ।
तुमहिं पाय कछु रहै न कलेसा ॥ 20॥

जानत तुमहिं तुमहिं है जाई ।
पारस परसि कुधातु सुहाई ॥ 21॥

तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई ।
माता तुम सब ठौर समाई ॥ 22॥

ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे ।
सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥23॥

सकल सृष्टि की प्राण विधाता ।
पालक पोषक नाशक त्राता ॥ 24॥

मातेश्वरी दया व्रत धारी ।
तुम सन तरे पातकी भारी ॥ 25॥

जापर कृपा तुम्हारी होई ।
तापर कृपा करें सब कोई ॥ 26॥

मंद बुद्धि ते बुधि बल पावें ।
रोगी रोग रहित हो जावें ॥ 27॥

दरिद्र मिटै कटै सब पीरा ।
नाशै दूःख हरै भव भीरा ॥ 28॥

गृह क्लेश चित चिन्ता भारी ।
नासै गायत्री भय हारी ॥29॥

सन्तति हीन सुसन्तति पावें ।
सुख संपति युत मोद मनावें ॥ 30॥

भूत पिशाच सबै भय खावें ।
यम के दूत निकट नहिं आवें ॥ 31॥

जे सधवा सुमिरें चित ठाई ।
अछत सुहाग सदा शुबदाई ॥ 32॥

घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी ।
विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥ 33॥

जयति जयति जगदंब भवानी ।
तुम सम थोर दयालु न दानी ॥ 34॥

जो सद्गुरु सो दीक्षा पावे ।
सो साधन को सफल बनावे ॥ 35॥

सुमिरन करे सुरूयि बडभागी ।
लहै मनोरथ गृही विरागी ॥ 36॥

अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता ।
सब समर्थ गायत्री माता ॥ 37॥

ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी ।
आरत अर्थी चिन्तित भोगी ॥ 38॥

जो जो शरण तुम्हारी आवें ।
सो सो मन वांछित फल पावें ॥ 39॥

बल बुधि विद्या शील स्वभाओ ।
धन वैभव यश तेज उछाओ ॥ 40॥

सकल बढें उपजें सुख नाना ।
जे यह पाठ करै धरि ध्याना ॥ 

यह चालीसा भक्ति युत पाठ करै जो कोई ।
तापर कृपा प्रसन्नता गायत्री की होय ॥

*****

गुरुवार, 14 जुलाई 2022

धोली सती की स्तुति || धोली सती चालीसा || Dholi Sati Ki Stuti || Dholi Sati Ki Chalisa || Dholi Sati Ka Itihas Lyrics in Hindi

धोली सती की स्तुति || धोली सती चालीसा || Dholi Sati Ki Stuti || Dholi Sati Ki Chalisa || Dholi Sati Ka Itihas 



धोली सती मंदिर-फतेहपुर

अग्रसेनजी ने 18 राज्यों को मिला कर गणराज्य बनाया था। उन्होने गौड़ ब्राहमणों को अपना पुरोहित बनाया। उनके आदेश पर 18 यज्ञो का आयोजन किया गया और इनमें अलग-अलग पशुओं की बली दी गई। जब अठारहवें यज्ञ में बली का समय आया तो अग्रसेनजी निरीह पशुओं की बली देख कर करूणा से भर गये और उन्होने बली देने से मना कर दिया। जिसके दंड़ के परिणाम स्वरूप उन्होने क्षत्रिय धर्म छोड़ कर वैश्य धर्म अपनाना पड़ा, जिसे उन्होने सहर्ष स्वीकार किया और अपने राज्य में अहिंसा और शाकाहारी होने का नियम बना दिया। 18 यज्ञो कराने वाले पुरोहितों के नाम पर 18 गोत्रों की स्थापना कर के उन्होने अपने गणराज्य के 18 प्रतिनिधियों को एक-एक गोत्र दे कर सम्मानित किया। अब एक गोत्र वाले अपने गोत्र में विवाह नहीं कर सकते थे। वे दूसरे गोत्र में ही शादी कर सकते थे। अठारह प्रतिनिधियों में से एक थे नारनौंद के राजा बुधमानजी जिन्होने बिंदल गोत्र को चलाया।


धोली सती के जीवन के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं हैं। जो थोड़ी बहुत जानकारी हैं वह भी किद्वंतीयाँ हैं। कहा जाता हैं कि धोली सती का जन्म आज के हरियाणा राज्य के महेन्द्रगढ़ नगर में किशन लालजी और सरस्वती देवी के घर हुआ था। उनका विवाह हाँसी के पास के नगर नारनौंद निवासी बिंदल गोत्री नाथूरामजी के संग हुआ था।


माना जाता हैं कि जब वे मुकलावा कर के अपनी ससुराल नारनौंद आ रही थी, तब बीच रास्ते में किसी नवाब का राज्य क्षेत्र था, राजाज्ञा के कारण सिपाहियों ने डोली को आगे जाने से रोक लिया। नवाब की आज्ञा थी कि जो भी डोली उनके क्षेत्र में आयेगी वह सबसे पहले एक रात महल में रहेगी, उसके बाद ही वह आगे बढ़ेगी। नाथूरामजी के ना मानने पर उनमें और नवाब की सेना में महासंग्राम हुआ और नाथूरामजी को वीरगति को प्राप्त हुई।


दूसरी किद्वंती के अनुसार नारनौंद के राजा ने यह नियम बनाया था कि हर नववधू को सबसे पहले महल की दहलीज पर शीश झुका कर के पूजा करना होगा, तभी वह ससुराल जा सकती हैं। धोली सती के ना मानने पर नाथूरामजी और राजा की सेना में संग्राम हुआ और नाथूरामजी को वीरगति को प्राप्त हुई। यह समाचार पा कर धोली पति के साथ सती हो गई।


फतेहपुर में धोली सती मंदिर क्यों और कैसे बनाः

नारनौंद में सर्राफ परिवार का इतिहास 1000 साल का हैं। परिवार के कुल पुरोहित हरितवाल (भारद्वाज गोत्री) गौड़ ब्राहमण हैं। 750 वर्ष पूर्व धोली के सती होने के बाद परिवार में भय और असुरक्षा का भावना घर गई। परिवार की एक शाखा नारनौंद के आसपास के गाँव सुलचानी, खेड़ा, कुम्भा और पेटवाड़ आदि गाँवों में जा कर बस गई। दूसरी शाखा नारनौल जा कर बस गई और ये सर्राफ कहलाये। सन् 1451 में नारनौल से जा कर ये फतेहपुर में बस गये। नारनौंद में परिवार ने धोली सती का मंड़ बनवाया, जहाँ समय-समय पर परिवारजन पूजा करने के लिये आते थे। 450 वर्ष पूर्व जब परिवारजन पूजा करने के लिये नारनौंद जा रहे थे तब रास्ते में डाकुओं द्वारा लूट लिये गये। इसके बाद दादी का मंड़प वहाँ से  उठा कर फतेहपुर में स्थापित किया गया। नारनौंद में आज भी धोली सती का एक छोटा सा मंड हैं।


अग्रवाल समाज की पहली सती ‘धोली सती’ थी। उनके इस बलिदान के लिये बिंदल गोत्री उनकी देवी मान कर पूजा करते हैं। उनकी स्मृति में फतेहपुर में बहुत सुंदर विशाल मंदिर बना हैं। यहाँ बिंदल गोत्र के अलावा भी अन्य गोत्री लोग भी दर्शन के लिये आते हैं। कई बिंदल गोत्री हरा कपड़ा नहीं पहनते हैं क्योंकि नाथूरामजी ने मुस्लिम सेना से लड़ते हुये वीरगति पाई थी।  यहाँ हरा कपड़ा या हरी कोई भी वस्तु चढ़ाना या पहन कर आना वर्जित हैं। मंदिर के प्रागंण में ठहरने और भोजन की सारी व्यवस्था हैं।


धोली सती की स्तुति 

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके, 

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते।।


शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, 

सर्वस्यार्ति हरे देवी नारायणी नमोस्तुते।।


सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते, 

भयेभ्य स्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते।।


सर्व बाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि, 

एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशम्।


या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।


धोली सती चालीसा

भजो मन दादी दादी नाम

जपो मन दादी दादी नाम

जय जय जय धोली सती दादी ।।


जय फतेहपुर धाम,

जपो मन दादी दादी नाम,

भजो मन दादी दादी नाम ।।


कथा है धोली सती की 

है ये कलयुग की कहानी,     

राज्य हरयाणा में जन्मी 

फतेहपुर की महारानी।

पिता किशन लाल जी 

के घर गूंजी किलकारी,

माँ सरस्वती के मन में 

छा गयी खुशियां भारी ।।


शक्ति अंश से जन्मी कन्या,

धोली रखा नाम,

जपो मन दादी दादी नाम,

भजो मन दादी दादी नाम ।।


किशन जी के आँगन में 

समय शुभ दिन वो आया,

धोली का नाथूराम जी के 

संग में ब्याह रचाया ।

बिदा की घड़ी जो आई, 

आँख सब की भर आई,       

बहुत मन को समझा कर 

करी बेटी की बिदाई ।।


चल पड़ी धोली की डोली,

संग हैं नाथूराम,

जपो मन दादी दादी नाम,

भजो मन दादी दादी नाम ।।


हुक्म ये राजा का है,

ये डोली यहीं रुकेगी,

रात महल में रहकर 

पालकी आगे बढ़ेगी ।

जो मेरी राहें रोकी,

तो फिर संग्राम होगा,   

संभल जा अब भी राजा,

बुरा अंजाम होगा ।।


नाथूराम और मानसिंह में 

मचा महासंग्राम,

जपो मन दादी दादी नाम,

भजो मन दादी दादी नाम ।।


रूप चंडी का धारा,

मानसिंह को संहारा,

सती के तेज़ से धरती,

लाल हुआ अम्बर सारा ।

बैठ गयी अग्नि रथ पर,

ज्योत से ज्योत मिलायी,

गूँज उठा जयकारा,

जय श्री धोली सती माई ।।


सतवंती माँ धोली सती की 

सत की महिमा महान,

जपो मन दादी दादी नाम

भजो मन दादी दादी नाम ।।


धन्य है फतेहपुर नगरी, 

धन्य वो शेखावाटी,

जहां कण-कण में बसी है 

मेरी धोली सती दादी ।

बिंदल कुलदेवी माँ की 

है महिमा बड़ी निराली,       

कृपा भगतों पर करती 

दादी फतेहपुर वाली ।।


“सौरभ मधुकर” दादी के 

गुण गाये सुबहो शाम

जपो मन दादी दादी नाम

भजो मन दादी दादी नाम ।।


जय जय जय धोली सती दादी,

जय फतेहपुर धाम ।

जपो मन दादी दादी नाम,

भजो मन दादी दादी नाम ।।

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