शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

जयकाली कलिमलहरण | Jay Kali Kalimalharan | श्री काली चालीसा | Kali Chalisa Lyrics in Hindi

जयकाली कलिमलहरण | Jay Kali Kalimalharan | श्री काली चालीसा | Kali Chalisa Lyrics in Hindi

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दोहा
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जयकाली कलिमलहरण
महिमा अगम अपार
महिष मर्दिनी कालिका 
देहु अभय अपार
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अरि मद मान मिटावन हारी। 
मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥
अष्टभुजी सुखदायक माता । 
दुष्टदलन जग में विख्याता ॥
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भाल विशाल मुकुट छवि छाजै । 
कर में शीश शत्रु का साजै ॥
दूजे हाथ लिए मधु प्याला । 
हाथ तीसरे सोहत भाला ॥
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चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे । 
छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ॥
सप्तम करदमकत असि प्यारी । 
शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥
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अष्टम कर भक्तन वर दाता । 
जग मनहरण रूप ये माता ॥
भक्तन में अनुरक्त भवानी । 
निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ॥
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महशक्ति अति प्रबल पुनीता । 
तू ही काली तू ही सीता ॥
पतित तारिणी हे जग पालक । 
कल्याणी पापी कुल घालक ॥
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शेष सुरेश न पावत पारा । 
गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥
तुम समान दाता नहिं दूजा । 
विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥
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रूप भयंकर जब तुम धारा । 
दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥
नाम अनेकन मात तुम्हारे । 
भक्तजनों के संकट टारे ॥
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कलि के कष्ट कलेशन हरनी । 
भव भय मोचन मंगल करनी ॥
महिमा अगम वेद यश गावैं । 
नारद शारद पार न पावैं ॥
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भू पर भार बढ्यौ जब भारी । 
तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥
आदि अनादि अभय वरदाता । 
विश्वविदित भव संकट त्राता ॥
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कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा । 
उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा । 
काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥
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कलुआ भैंरों संग तुम्हारे । 
अरि हित रूप भयानक धारे ॥
सेवक लांगुर रहत अगारी । 
चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥
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त्रेता में रघुवर हित आई । 
दशकंधर की सैन नसाई ॥
खेला रण का खेल निराला । 
भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥
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रौद्र रूप लखि दानव भागे । 
कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो । 
स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥
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ये बालक लखि शंकर आए । 
राह रोक चरनन में धाए ॥
तब मुख जीभ निकर जो आई । 
यही रूप प्रचलित है माई ॥
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बाढ्यो महिषासुर मद भारी । 
पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥
करूण पुकार सुनी भक्तन की । 
पीर मिटावन हित जन-जन की ॥
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तब प्रगटी निज सैन समेता । 
नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं । 
तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥
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मान मथनहारी खल दल के । 
सदा सहायक भक्त विकल के ॥
दीन विहीन करैं नित सेवा । 
पावैं मनवांछित फल मेवा ॥
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संकट में जो सुमिरन करहीं । 
उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥
प्रेम सहित जो कीरति गावैं । 
भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥
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काली चालीसा जो पढ़हीं । 
स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा । 
केहि कारण मां कियौ विलम्बा ॥
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करहु मातु भक्तन रखवाली । 
जयति जयति काली कंकाली ॥
सेवक दीन अनाथ अनारी । 
भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥
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दोहा
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प्रेम सहित जो करे 
काली चालीसा पाठ ।
तिनकी पूरन कामना 
होय सकल जग ठाठ ॥
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