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मंगलवार, 16 सितंबर 2025

Kanya Sankranti 2025: कन्या संक्रांति व्रत कथा, पूजा विधि, दान का महत्व और लाभ

Kanya Sankranti: कन्या संक्रांति के दिन इस कथा का करें पाठ, सूर्यदेव की बनी रहेगी कृपा!

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Kanya Sankranti 2025: कन्या संक्रांति व्रत कथा, पूजा विधि, दान का महत्व और लाभ
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कन्‍या संक्रांति का परिचय (Kanya Sankranti Kya Hai)

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सनातन धर्म में सूर्य देव का विशेष महत्व है। जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, उस दिन को संक्रांति (Sankranti) कहा जाता है। वर्ष भर में कुल 12 संक्रांतियां होती हैं और प्रत्येक का अपना आध्यात्मिक व धार्मिक महत्व है।
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कन्या संक्रांति (Kanya Sankranti) तब होती है जब सूर्य कन्या राशि (Virgo) में प्रवेश करते हैं। ज्योतिष शास्त्र में इसे बेहद पवित्र और शुभ दिन माना गया है। इस दिन सूर्य देव की उपासना, व्रत, कथा पाठ और दान-पुण्य का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन सूर्यदेव की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि, संतान सुख और परिवार में खुशहाली आती है।
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कन्या संक्रांति पूजा विधि (Kanya Sankranti Ki Pooja Vidhi)

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कन्या संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए और शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद निम्नलिखित विधि से पूजा करने का विधान है –
1. स्नान और अर्घ्यदान – तांबे के लोटे में जल, लाल पुष्प, गुड़ और अक्षत डालकर उगते सूर्य को अर्घ्य दें।
2. सूर्य मंत्र का जाप – अर्घ्य देते समय “ॐ घृणि सूर्याय नमः” मंत्र का 11, 21 या 108 बार जाप करें।
3. प्रतिमा पूजन – सूर्य देव की प्रतिमा या चित्र पर लाल वस्त्र, चंदन, रोली और पुष्प चढ़ाएँ।
4. व्रत और आहार – व्रत रखने वाले भक्त केवल फलाहार करें और नमक का सेवन न करें।
5. दान-पुण्य – ब्राह्मणों को भोजन कराकर तांबा, गेहूँ, गुड़ और लाल वस्त्र का दान करें।
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कन्या संक्रांति की पौराणिक कथा (Kanya Sankranti Ki Katha)

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पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय पृथ्वी पर घोर अंधकार छा गया। सूर्यदेव क्रोधित होकर अपनी किरणें छिपा लिए। जीव-जंतु, मनुष्य और वनस्पतियाँ सभी कष्ट में पड़ गए। तब ऋषि कश्यप ने कठोर तपस्या करके सूर्यदेव को प्रसन्न किया। सूर्यदेव प्रकट हुए और कहा – “जो भी भक्त कन्या संक्रांति के दिन मेरी पूजा और इस कथा का पाठ करेगा, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होंगी और उसके जीवन में कभी अंधकार नहीं रहेगा।”
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एक कथा में उल्लेख है कि एक निर्धन ब्राह्मण, जिसकी संतान नहीं थी, उसने कन्या संक्रांति व्रत और कथा का पाठ किया। कुछ समय बाद उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और उसके जीवन में सुख-समृद्धि आ गई। तभी से यह परंपरा बनी कि कन्या संक्रांति पर व्रत, कथा पाठ और दान करने से संतान सुख और जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं।
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कन्या संक्रांति की कथा पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है, जो पितृ भक्ति, दान के महत्व और सूर्य उपासना की महिमा को उजागर करती है। विष्णु पुराण के अनुसार, बहुत प्राचीन काल में इक्ष्वाकु वंश में राजा दिलीप नामक एक धर्मात्मा राजा राज्य करते थे। वे सूर्य भक्त थे और प्रतिदिन सूर्योदय पर अर्घ्य देकर पूजन करते। उनका राज्य समृद्ध था, प्रजा सुखी थी, किंतु राजा को एक गहन चिंता सताती रहती। उनके पिता राजा भगीरथ की आत्मा को पितृलोक में शांति न मिल रही थी। पितृ पक्ष के दौरान पिता का आह्वान करने पर उन्हें दर्शन होते, लेकिन वे दुखी मुद्रा में कहते- पुत्र, मेरी आत्मा को मोक्ष नहीं मिल रहा है। तू मेरे लिए कुछ कर। राजा दिलीप ने ब्राह्मणों से परामर्श किया तो ज्ञात हुआ कि पितृ दोष के कारण ऐसा हो रहा है। ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन, सूर्य के कन्या राशि में गोचर के दिन, जो कन्या संक्रांति के नाम से विख्यात है, उस दिन पितृ तर्पण और सूर्य पूजन से पितरों को मुक्ति मिलेगी।
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राजा दिलीप ने संकल्प लिया। कन्या संक्रांति का दिन आया। प्रातःकाल वे गंगा तट पर पहुंचे। सूर्योदय होते ही उन्होंने तिल-जल मिलाकर स्नान किया। फिर सूर्य मंडल की ओर मुख करके खड़े हो गए। उनके हाथों में सरसों का तेल का दीपक था, जो सूर्य को समर्पित कर जलाया। ओम सूर्याय नमः का जाप करते हुए उन्होंने अर्क पुष्प चढ़ाए। पूजन के बाद पितृ तर्पण प्रारंभ किया। दक्षिण दिशा की ओर बैठकर उन्होंने पिता के नाम से काले तिल, दूध और जल का अर्घ्य दिया। पितृ सूक्त का पाठ किया। तर्पण के दौरान उन्होंने अपनी समस्त संपत्ति को दान स्वरूप गरीब ब्राह्मणों को वितरित करने का संकल्प लिया।
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अचानक आकाश में घनघोर बादल छा गए। एक तेज प्रकाश की किरण प्रकट हुई और राजा के पिता भगीरथ का दिव्य स्वरूप प्रकट हुआ। वे मुस्कुराते हुए बोले- पुत्र, तेरी भक्ति से मेरी आत्मा को शांति मिली। सूर्य देव प्रसन्न हैं। कन्या संक्रांति का पुण्य मुझे पितृलोक से मुक्त कर रहा है। अब मैं स्वर्गलोक को प्राप्त हो रहा हूं। तू और तेरी संतान हमेशा समृद्ध रहे। कहते हुए वे आकाश में विलीन हो गए। उसी क्षण वर्षा हुई, जो पितरों की कृपा का प्रतीक थी। राजा दिलीप का हृदय आनंद से भर गया। उनके राज्य में अकाल समाप्त हो गया, फसलें लहलहाने लगीं और वंश में पुत्रों की प्राप्ति हुई।
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संक्रांति पर दान का महत्व (Sankranti Par Dan Ka Mahatva)

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हिंदू शास्त्रों में दान को सर्वोत्तम धर्म बताया गया है। कहा गया है कि “दानात् प्राप्यते स्वर्गः” अर्थात दान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। कन्या संक्रांति पर विशेष रूप से इन वस्तुओं का दान शुभ माना गया है जैसे तांबे के पात्र, लाल वस्त्र, गेहूँ और गुड़, अनाज और फल तथा ब्राह्मणों को भोजन। मान्यता है कि इन दानों से पितृदोष और ग्रहदोष का निवारण होता है तथा पुण्यफल प्राप्त होता है।
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ज्योतिषीय महत्व (Kanya Sankranti 2025 Jyotish Mahatva)

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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसका सभी 12 राशियों पर प्रभाव पड़ता है। खासकर जिनकी जन्मकुंडली में सूर्य अशुभ स्थिति में होते हैं, उनके लिए यह दिन अत्यंत फलदायी होता है। इस दिन व्रत, दान और पूजा करने से सूर्यदेव की कृपा प्राप्ति होती है और साथ ही ग्रह दोषों का निवारण होता है। करियर और व्यवसाय में सफलता मिलती है। जीवन में नए अवसर प्राप्त होते हैं। आत्मविश्वास और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।
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कन्या संक्रांति के लाभ (Kanya Sankranti Ke Labh)

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कन्या संक्रांति धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं –
1. पितृदोष से मुक्ति – सूर्य देव की कृपा से पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
2. ग्रह दोष का निवारण – अशुभ ग्रहों का प्रभाव कम होता है।
3. संतान सुख की प्राप्ति – निःसंतान दंपत्ति को संतान सुख का आशीर्वाद मिलता है।
4. सुख-समृद्धि और धन लाभ – घर में खुशहाली और आर्थिक उन्नति होती है।
5. मानसिक शांति – मन में सकारात्मकता और आत्मबल का संचार होता है।
6. आयु वृद्धि और स्वास्थ्य लाभ – नियमित व्रत और पूजा से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
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कन्या संक्रांति पर करने योग्य उपाय (Kanya Sankranti Ke Upay)

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1. सुबह जल्दी उठकर नदी या पवित्र जलाशय में स्नान करें।
2. उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करें।
3. गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न और वस्त्र दान करें।
4. लाल पुष्प और लाल वस्त्र से सूर्य देव की पूजा करें।
5. “ॐ घृणि सूर्याय नमः” मंत्र का जाप अवश्य करें।
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कन्या संक्रांति 2025 (Kanya Sankranti 2025) एक ज्योतिषीय घटना के साथ ही आस्था, श्रद्धा और विश्वास का पर्व है। इस दिन व्रत, पूजा, कथा और दान से जहॉं एक ओर पितृदोष और ग्रहदोष दूर होते हैं, वहीं दूसरी ओर जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी आती है। सूर्यदेव की कृपा से व्यक्ति के जीवन में अंधकार का नाश होकर उज्ज्वल भविष्य का मार्ग प्रशस्त होता है। इसलिए हर भक्त को चाहिए कि इस दिन श्रद्धा भाव से पूजा और कथा का पाठ करें।
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Kanya Sankranti 2025: FAQ in Hindi

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Q1. कन्या संक्रांति कब मनाई जाती है?
कन्या संक्रांति उस दिन मनाई जाती है जब सूर्य देव सिंह राशि से निकलकर कन्या राशि में प्रवेश करते हैं। यह हर साल सितंबर माह में आती है।
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Q2. कन्या संक्रांति का महत्व क्या है?
कन्या संक्रांति का महत्व सूर्य पूजा, दान-पुण्य और पितृ दोष निवारण से जुड़ा हुआ है। इस दिन व्रत और कथा का पाठ करने से जीवन में सुख-समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
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Q3. कन्या संक्रांति पर क्या करना चाहिए?
कन्या संक्रांति पर प्रातः स्नान कर सूर्य देव को जल अर्पित करें, लाल वस्त्र पहनें, तांबे के लोटे से अर्घ्य दें, सूर्य मंत्र का जाप करें और ब्राह्मण को भोजन कराकर दान करें।
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Q4. कन्या संक्रांति की पूजा विधि क्या है?
इस दिन उगते सूर्य को जल, पुष्प, अक्षत और गुड़ से अर्घ्य दिया जाता है। व्रत रखने वाले फलाहार करें और नमक का त्याग करें। सूर्य देव की प्रतिमा पर लाल वस्त्र और चंदन चढ़ाएं।
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Q5. कन्या संक्रांति पर किस कथा का पाठ करना चाहिए?
इस दिन सूर्य देव की पौराणिक कथा का पाठ करना चाहिए, जिसमें बताया गया है कि कन्या संक्रांति के दिन पूजा और कथा करने से जीवन से अंधकार दूर होता है और समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
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Q6. कन्या संक्रांति पर क्या दान करना शुभ होता है?
गेहूँ, गुड़, तांबे के बर्तन, लाल वस्त्र और अनाज का दान कन्या संक्रांति पर सबसे शुभ माना जाता है। इससे पितृदोष और ग्रहदोष का निवारण होता है।
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Q7. कन्या संक्रांति के दिन व्रत करने का क्या लाभ है?
व्रत करने से संतान सुख, घर-परिवार में शांति, आर्थिक उन्नति और ग्रहदोष से मुक्ति मिलती है। यह व्रत सूर्य देव की विशेष कृपा पाने का माध्यम है।
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Q8. कन्या संक्रांति और पितृ दोष निवारण में क्या संबंध है?
कन्या संक्रांति पर सूर्य पूजा और दान-पुण्य करने से पितृदोष का निवारण होता है। इस दिन पितरों को जल अर्पण करना अत्यंत शुभ माना गया है।
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Q9. क्या कन्या संक्रांति का ज्योतिषीय महत्व भी है?
हाँ, ज्योतिष के अनुसार जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते हैं तो इसका प्रभाव सभी राशियों पर पड़ता है। जिनकी कुंडली में सूर्य अशुभ स्थिति में हो, उनके लिए यह दिन विशेष पूजा का महत्व रखता है।
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Q10. कन्या संक्रांति 2025 में क्या विशेष है?
कन्या संक्रांति 2025 में सूर्य का कन्या राशि में प्रवेश विशेष संयोग बना रहा है। इस वर्ष संक्रांति के दिन पूजा, दान और व्रत करने से साधक को दीर्घायु, संतान सुख और समस्त बाधाओं से मुक्ति मिलेगी।
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Kanya Sankranti 2025: Kanya Sankranti Ke Din Is Katha Ka Karein Paath, Suryadev Ki Bani Rahegi Kripa!

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Kanya Sankranti Ka Parichay (Kanya Sankranti Kya Hai)

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Sanatan dharm mein Surya Dev ka vishesh mahatva hai. Jab Surya ek rashi se doosri rashi mein pravesh karte hain, us din ko Sankranti (Sankranti) kaha jaata hai. Varsh bhar mein kul 12 Sankrantiyan hoti hain aur pratyek ka apna adhyatmik va dharmik mahatva hai.
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Kanya Sankranti (Kanya Sankranti) tab hoti hai jab Surya Kanya Rashi (Virgo) mein pravesh karte hain. Jyotish shastra mein ise behad pavitra aur shubh din mana gaya hai. Is din Surya Dev ki upasana, vrat, katha paath aur daan-punya ka vishesh mahatva bataya gaya hai. Manyata hai ki is din Suryadev ki kripa se jeevan mein sukh-samriddhi, santan sukh aur parivar mein khushhali aati hai.
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Kanya Sankranti Pooja Vidhi (Kanya Sankranti Ki Pooja Vidhi)

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Kanya Sankranti ke din Suryoday se pehle uthkar snaan karna chahiye aur shuddh vastra dharan karne chahiye. Iske baad nimnalikhit vidhi se pooja karne ka vidhan hai –
1. Snaan aur Arghyadan – Tambe ke lote mein jal, laal pushp, gud aur akshat daalkar ugte Surya ko arghya den.
2. Surya Mantra Ka Jaap – Arghya dete samay “Om Ghṛṇi Suryaya Namah” mantra ka 11, 21 ya 108 bar jaap karein.
3. Pratima Poojan – Surya Dev ki pratima ya chitra par laal vastra, chandan, roli aur pushp chadhayein.
4. Vrat aur Aahar – Vrat rakhne wale bhakt keval falahar karein aur namak ka sevan na karein.
5. Daan-Punya – Brahmano ko bhojan karakar tamba, gehun, gud aur laal vastra ka daan karein.
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Kanya Sankranti Ki Pauranik Katha (Kanya Sankranti Ki Katha)

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Pauranik kathao ke anusar, ek samay Prithvi par ghor andhkaar chha gaya. Suryadev krodhit hokar apni kirnein chhupa liye. Jeev-jantu, manushya aur vanaspatiyaan sabhi kasht mein pad gaye. Tab Rishi Kashyap ne kathor tapasya karke Suryadev ko prasann kiya. Suryadev prakat hue aur kaha – “Jo bhi bhakt Kanya Sankranti ke din meri pooja aur is katha ka paath karega, uski sabhi ichchhaayein poorn hongi aur uske jeevan mein kabhi andhkaar nahi rahega.”
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Ek katha mein ullekh hai ki ek nirdhan Brahman, jiski santan nahi thi, usne Kanya Sankranti vrat aur katha ka paath kiya. Kuch samay baad use putra ratna ki prapti hui aur uske jeevan mein sukh-samriddhi aa gayi. Tabhi se yeh parampara bani ki Kanya Sankranti par vrat, katha paath aur daan karne se santan sukh aur jeevan ki sabhi baadhaayein door hoti hain.
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Sankranti Par Daan Ka Mahatva (Sankranti Par Dan Ka Mahatva)

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Hindu shastron mein daan ko sarvottam dharm bataya gaya hai. Kaha gaya hai ki “Danat Prapyate Swargah” arthaat daan karne se swarg ki prapti hoti hai. Kanya Sankranti par vishesh roop se in vastuon ka daan shubh mana gaya hai jaise tambe ke patra, laal vastra, gehun aur gud, anaj aur phal tatha Brahmano ko bhojan. Manyata hai ki in daano se pitru dosh aur grah-dosh ka nivaran hota hai tatha punyaphal prapt hota hai.
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Jyotishiya Mahatva (Kanya Sankranti 2025 Jyotish Mahatva)

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Jyotish shastra ke anusar jab Surya Kanya Rashi mein pravesh karte hain, to iska sabhi 12 rashiyon par prabhav padta hai. Khaaskar jinki janmakundali mein Surya ashubh sthiti mein hote hain, unke liye yeh din atyant phaldayi hota hai. Is din vrat, daan aur pooja karne se Suryadev ki kripa prapti hoti hai aur sath hi grah doshon ka nivaran hota hai. Career aur vyavsay mein safalta milti hai. Jeevan mein naye avsar prapt hote hain. Atmavishwas aur mansik shanti ki prapti hoti hai.
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Kanya Sankranti Ke Labh (Kanya Sankranti Ke Labh)

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Kanya Sankranti dharmik, adhyatmik aur samajik drishti se atyant mahatvapurn hai. Is din ke pramukh labh nimnalikhit hain –
1. Pitru Dosh Se Mukti – Surya Dev ki kripa se pitron ka ashirwad milta hai.
2. Grah Dosh Ka Nivaran – Ashubh grahon ka prabhav kam hota hai.
3. Santan Sukh Ki Prapti – Nisantan dampatti ko santan sukh ka ashirwad milta hai.
4. Sukh-Samriddhi Aur Dhan Labh – Ghar mein khushhali aur aarthik unnati hoti hai.
5. Mansik Shanti – Man mein sakaratmakta aur atmabal ka sanchar hota hai.
6. Aayu Vriddhi Aur Swasthya Labh – Niyamit vrat aur pooja se uttam swasthya ki prapti hoti hai.
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Kanya Sankranti Par Karne Yogya Upay (Kanya Sankranti Ke Upay)

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1. Subah jaldi uthkar nadi ya pavitra jalashay mein snaan karein.
2. Ugte Surya ko arghya arpit karein.
3. Gareebon aur zaruratmandon ko ann aur vastra daan karein.
4. Laal pushp aur laal vastra se Surya Dev ki pooja karein.
5. “Om Ghṛṇi Suryaya Namah” mantra ka jaap avashya karein.
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Kanya Sankranti 2025 (Kanya Sankranti 2025) ek jyotishiya ghatna ke sath hi aasha, shraddha aur vishwas ka parv hai. Is din vrat, pooja, katha aur daan se jahan ek or pitru-dosh aur grah-dosh door hote hain, wahi doosri or jeevan mein sukh, shanti aur samriddhi bhi aati hai. Suryadev ki kripa se vyakti ke jeevan mein andhkaar ka naash hokar ujjwal bhavishya ka marg prashast hota hai. Isliye har bhakt ko chahiye ki is din shraddha bhav se pooja aur katha ka paath karein.
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रविवार, 7 नवंबर 2021

Ravivar Vrat || रविवार व्रत का महत्‍त्‍व || Ravivar Vrat ka Mahattva|| कैसे करें पूजा || Ravivar Puja Vrat Katha|| Surya Gayatri || lSurya yantra || सूर्यदेव की आरती एवं व्रतकथा का फल जय जय जय रविदेव भक्‍त बुढि़या की कहानी

Ravivar Vrat || रविवार व्रत का महत्‍त्‍व || Ravivar Vrat ka Mahattva|| कैसे करें पूजा || Ravivar Puja Vrat Katha|| Surya Gayatri || lSurya yantra || सूर्यदेव की आरती एवं व्रतकथा का फल जय जय जय रविदेव भक्‍त बुढि़या की कहानी




रविवार के दिन सूर्य देव की पूजा का विधान है। यह व्रत करने से जीवन में सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति और शत्रुओं से सुरक्षा मिलती है। सूर्यदेव का को प्रसन्‍न करने के लिए रविवार का व्रत करने व कथा सुनने से भक्‍तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं साथ ही मान-सम्मान, धन-यश तथा उत्तम स्वास्थ्य मिलता है।

रविवार व्रत की पूजन विधि :-

** यह व्रत व्रत एक वर्ष या 30 रविवारों तक अथवा 12 रविवारों तक करने का संकल्‍प लेकर प्रारम्‍भ करना चाहिए। 

** रविवार को सूर्योदय से पूर्व बिस्तर से उठकर शौच व स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ लाल रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए।

** इसके बाद किसी पवित्र एवं स्‍वच्‍छ स्थान पर भगवान सूर्य की स्वर्ण निर्मित मूर्ति या चित्र स्थापित करें। घर में एक स्‍थान ऐसा बना लें जहॉं स्‍वच्‍छता हो और नियमित पूजा की जा सकती हो।

** इसके बाद विधि-विधान से धूप, दीप, नैवेद्य, गंध-पुष्पादि से भगवान सूर्य का पूजन करना चाहिए। 

** पूजन के बाद व्रतकथा पढ़नी या सुननी चाहिए।

** व्रतकथा के पश्‍चात भगवान सूर्य देव की आरती करनी चाहिए।

** इसके उपरान्‍त सूर्य भगवान का स्मरण करते हुए 'ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:' इस मंत्र का 12 या 5 या 3 माला जप करें। यथाशक्ति एवं समय के अनुसार आप जप माला की संख्‍या बढ़ा या घटा सकते हैं। माला जप के पूर्व माला जप का संकल्‍प अवश्‍यक करें। संकल्‍प के लिए हाथ में कुश, अक्षत और जल लेकर भगवान सूर्यदेव का ध्‍यान करते हुए मनवांछित अभिलाषा की पूर्ति हेतु जप करने का संकल्‍प लें और जल को पृथ्‍वी पर छोड़ दें। यह प्रक्रिया प्रत्‍येक बार दोहरायें। 

** जप के बाद शुद्ध जल, रक्त चंदन (रोली), अक्षत (चावल के सबूत दाने), लाल पुष्प और दूर्वा(दूब) से सूर्य को अर्घ्य दें।

** इस दिन सात्विक भोजन व फलाहार करें। भोजन में गेहूं की रोटी, दलिया, दूध, दही, घी और चीनी खा सकते हैं। नमक का परहेज करें। 

रविवार व्रत की पौराणिक कथा || Ravivar Vrat ki Pauranik Katha-

प्राचीन काल में एक बुढ़िया रहती थी। वह नियमित रूप से रविवार का व्रत करती थी। रविवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर बुढ़िया स्नानादि से निवृत्त होकर अपने आंगन को गोबर से लीपकर स्वच्छ करती थी, उसके बाद सूर्य भगवान की पूजा करते हुए रविवार व्रत कथा सुनकर सूर्य भगवान का भोग लगाकर दिन में एक समय भोजन करती थी। सूर्य भगवान की अनुकंपा से बुढ़िया को किसी प्रकार की चिंता एवं कष्ट नहीं था। धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य से भर रहा था।


उस बुढ़िया को सुखी होते देख उसकी पड़ोसन उससे जलने लगी। बुढ़िया ने कोई गाय नहीं पाल रखी थी। अतः वह अपनी पड़ोसन के आंगन में बंधी गाय का गोबर ले आती थी। पड़ोसन ने कुछ सोचकर अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया। रविवार को गोबर न मिलने से बुढ़िया अपना आंगन नहीं लीप सकी। आंगन न लीप पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को भोग नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया। सूर्यास्त होने पर बुढ़िया भूखी-प्यासी सो गई।


प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उस बुढ़िया की आंख खुली तो वह अपने घर के आंगन में सुंदर गाय और बछड़े को देखकर हैरान हो गई। गाय को आंगन में बांधकर उसने जल्दी से उसे चारा लाकर खिलाया। पड़ोसन ने उस बुढ़िया के आंगन में बंधी सुंदर गाय और बछड़े को देखा तो वह उससे और अधिक ईर्ष्‍या करने लगी। तभी गाय ने सोने का गोबर किया। गोबर को देखते ही पड़ोसन की आंखें फट गईं।


पड़ोसन ने उस बुढ़िया को आसपास न पाकर तुरंत उस गोबर को उठाया और अपने घर ले गई तथा अपनी गाय का गोबर वहां रख आई। सोने के गोबर से पड़ोसन कुछ ही दिनों में धनवान हो गई। गाय प्रति दिन सूर्योदय से पूर्व सोने का गोबर किया करती थी और बुढ़िया के उठने के पहले पड़ोसन उस गोबर को उठाकर ले जाती थी।


बहुत दिनों तक बुढ़िया को सोने के गोबर के बारे में कुछ पता ही नहीं चला। बुढ़िया पहले की तरह हर रविवार को भगवान सूर्यदेव का व्रत करती रही और कथा सुनती रही। लेकिन सूर्य भगवान को जब पड़ोसन की चालाकी का पता चला तो उन्होंने तेज आंधी चलाई। आंधी का प्रकोप देखकर बुढ़िया ने गाय को घर के भीतर बांध दिया। सुबह उठकर बुढ़िया ने सोने का गोबर देखा उसे बहुत आश्चर्य हुआ।


उस दिन के बाद बुढ़िया गाय को घर के भीतर बांधने लगी। सोने के गोबर से बुढ़िया कुछ ही दिन में बहुत धनी हो गई। उस बुढ़िया के धनी होने से पड़ोसन बुरी तरह जल-भुनकर राख हो गई और उसने अपने पति को समझा-बुझाकर उसे नगर के राजा के पास भेज दिया। सुन्‍दर गाय को देखकर राजा बहुत खुश हुआ। सुबह जब राजा ने सोने का गोबर देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा।


उधर सूर्य भगवान को भूखी-प्यासी बुढ़िया को इस तरह प्रार्थना करते देख उस पर बहुत करुणा आई। उसी रात सूर्य भगवान ने राजा को स्वप्न में कहा, राजन, बुढ़िया की गाय व बछड़ा तुरंत लौटा दो, नहीं तो तुम पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ेगा। तुम्हारा राज-पाट नष्ट हो जाएगा। सूर्य भगवान के स्वप्न से बुरी तरह भयभीत राजा ने प्रातः उठते ही अपने मंत्रियों से मंत्रणा करके गाय और बछड़ा बुढ़िया को लौटा दिया।


राजा ने बहुत-सा धन देकर बुढ़िया से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी। राजा ने पड़ोसन और उसके पति को उनकी इस दुष्टता के लिए दंड दिया। फिर राजा ने पूरे राज्य में घोषणा कराई कि सभी स्त्री-पुरुष रविवार का व्रत किया करें। रविवार का व्रत करने से सभी लोगों के घर धन-धान्य से भर गए, राज्‍य  में चारों ओर खुशहाली छा गयी। स्त्री-पुरुष सुखी जीवन यापन करने लगे तथा सभी लोगों के शारीरिक कष्ट भी दूर हो गए।


||श्री सूर्य यन्‍त्र|| 

।।श्री सूर्य देव की आरती।। Shri Surya Dev Ki Aarti


जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव।

जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥


रजनीपति मदहारी, शतदल जीवनदाता।

षटपद मन मुदकारी, हे दिनमणि दाता॥


जग के हे रविदेव, जय जय जय रविदेव।

जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥


नभमंडल के वासी, ज्योति प्रकाशक देवा।

निज जन हित सुखरासी, तेरी हम सबें सेवा॥


करते हैं रविदेव, जय जय जय रविदेव।

जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥


कनक बदन मन मोहित, रुचिर प्रभा प्यारी।

निज मंडल से मंडित, अजर अमर छविधारी॥


हे सुरवर रविदेव, जय जय जय रविदेव।

जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥


।।श्री रविवार की आरती।। Shri Ravivar Ki Aarti

कहुं लगि आरती दास करेंगे,

सकल जगत जाकि जोति विराजे।


सात समुद्र जाके चरण बसे,

काह भयो जल कुंभ भरे हो राम।


कोटि भानु जाके नख की शोभा,

कहा भयो मंदिर दीप धरे हो राम।


भार अठारह रामा बलि जाके,

कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम।


छप्पन भोग जाके प्रतिदिन लागे,

कहा भयो नैवेद्य धरे हो राम।


अमित कोटि जाके बाजा बाजें,

कहा भयो झनकारा करे हो राम।


चार वेद जाके मुख की शोभा,

कहा भयो ब्रह्मावेद पढ़े हो राम।


शिव सनकादिक आदि ब्रह्मादिक,

नारद मुनि जाको ध्यान धरे हो राम।


हिम मंदार जाके पवन झकोरें,

कहा भयो शिव चंवर ढुरे हो राम।


लख चौरासी बंध छुड़ाए,

केवल हरियश नामदेव गाए हो राम।


रविवार व्रत करने का फल || Ravivar Vrat Karne Ka Fal

** इस व्रत के करने से मनुष्य को मोक्ष प्राप्त होता है।

** इस व्रत के करने से स्त्रियों का बांझपन दूर होता है।

** इससे सभी पापों का नाश होता है।

** इससे मनुष्य की बौद्धिक क्षमता का विस्‍तार होता है जिससे उसे धन, यश, मान-सम्मान तथा आरोग्य प्राप्त होता है।

** शारीरिक कष्‍टों से मुक्ति मिलती है। 


श्री सूर्यदेव चालीसा || Shri Surya Dev Chalisa

।।दोहा।।

कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग,

पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग।।


।।चौपाई।।

जय सविता जय जयति दिवाकर,

सहस्त्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।

भानु पतंग मरीची भास्कर,

सविता हंस सुनूर विभाकर ।।१।।


विवस्वान आदित्य विकर्तन,

मार्तण्ड हरिरूप विरोचन।

अम्बरमणि खग रवि कहलाते,

वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।।२।।


सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि,

मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।

अरुण सदृश सारथी मनोहर,

हांकत हय साता चढ़ि रथ पर।।३।।


मंडल की महिमा अति न्यारी,

तेज रूप केरी बलिहारी।

उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते,

देखि पुरन्दर लज्जित होते।।४।।


मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर,

सविता सूर्य अर्क खग कलिकर।

पूषा रवि आदित्य नाम लै,

हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै।।५।।


द्वादस नाम प्रेम सों गावैं,

मस्तक बारह बार नवावैं।

चार पदारथ जन सो पावै,

दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै।।६।।


नमस्कार को चमत्कार यह,

विधि हरिहर को कृपासार यह।

सेवै भानु तुमहिं मन लाई,

अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।।७।।


बारह नाम उच्चारन करते,

सहस जनम के पातक टरते।

उपाख्यान जो करते तवजन,

रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।।८।।


धन सुत जुत परिवार बढ़तु है,

प्रबल मोह को फंद कटतु है।

अर्क शीश को रक्षा करते,

रवि ललाट पर नित्य बिहरते।।९।।


सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत,

कर्ण देस पर दिनकर छाजत।

भानु नासिका वासकरहुनित,

भास्कर करत सदा मुखको हित।।१०।।


ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे,

रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे। 

कंठ सुवर्ण रेत की शोभा,

तिग्म तेजसः कांधे लोभा।।११।।


पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर,

त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर।

युगल हाथ पर रक्षा कारन,

भानुमान उरसर्म सुउदरचन।।१२।।


बसत नाभि आदित्य मनोहर,

कटिमंह, रहत मन मुदभर।

जंघा गोपति सविता बासा,

गुप्त दिवाकर करत हुलासा।।१३।।


विवस्वान पद की रखवारी,

बाहर बसते नित तम हारी।

सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै,

रक्षा कवच विचित्र विचारे।।१४।।


अस जोजन अपने मन माहीं,

भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ।

दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै,

जोजन याको मन मंह जापै।।१५।।


अंधकार जग का जो हरता,

नव प्रकाश से आनन्द भरता।


ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही,

कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।

मंद सदृश सुत जग में जाके,

धर्मराज सम अद्भुत बांके।।१६।।


धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा,

किया करत सुरमुनि नर सेवा।

भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों,

दूर हटतसो भवके भ्रम सों।।१७।।


परम धन्य सों नर तनधारी,

हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।

अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन,

मधु वेदांग नाम रवि उदयन।।१८।।


भानु उदय बैसाख गिनावै,

ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।

यम भादों आश्विन हिमरेता,

कातिक होत दिवाकर नेता।।१९।।


अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं,

पुरुष नाम रविहैं मलमासहिं।।२०।।


।।दोहा।।

भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।

सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य।।


सूर्य गायत्री मन्‍त्र का महत्‍त्‍व || Surya Gayatri Mantra ka Mahattva

सूर्य गायत्री मंत्र का जाप भगवान सूर्य देव की प्रसन्‍नता प्राप्‍त करने के लिया किया जाता है। सूर्य गायत्री मंत्र का जाप 108  बार करना चाहिए। इस मंत्र के जाप से आत्मशुद्धि एवं मन की शांति के साथ ही आत्म-सम्मान में वृद्धि होती हैं। आने वाली विपत्तियॉं टलती हैं और शरीर नीरोगी रहता है। इस मंत्र का जाप प्रात:काल करना चाहिए। सूर्य गायत्री मंत्र एक महामंत्र है और इस मन्त्र की शक्तियॉं अपार हैं। अगर इस सूर्य गायत्री मंत्र विधि विधान से पाठ किया जाये तो इसके चामत्कारिक परिणाम प्राप्त होतें हैं। कहा जाता हैं कि सूर्य की उपासना त्वरित फलवती होती हैं और पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण के पुत्र सांब की कुष्‍ठरोग से निवृत्ति सूर्योपसना से ही हुई थी। लोकमान्‍यता के अनुसार सूर्य मंत्र ॐ  सूर्याय नमः को यदि व्यक्ति चलते-चलते, दवा लेते, खाली समय में कभी भी करता रहे, तो इससे भी लाभ अवश्‍य मिलता है। भगवान सूर्य देव को इस संसार का साक्षात देव माना जाता है क्‍योंकि हम इन्‍हें साक्षात अपनी आंखों से देख सकते हैं। सूर्य ही समस्‍त प्राणियों के जीवन का आधार हैं। 

इसके अधिकतम प्रभाव के लिए इस गायत्री मंत्र का मतलब समझना आवश्‍यक है क्‍योंकि बिना अर्थ के जब का कोई महत्‍त्‍व नहीं होता।

सूर्य गायत्री मंत्र का हिंदी भावार्थ || Surya Gayatri Mantra ka Hindi Arth 

हे सूर्य देव हम आपकी आराधना करते हैं आप हमें ज्ञान का प्रकाश प्रदान करें, आप हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें

Om, Let me meditate on the Sun God, Oh, maker of the day, give me higher intellect, And let Sun God illuminate my mind.


सबसे प्रचलित सूर्य गायत्री मन्‍त्र || Surya Gayatri Mantra

।। ॐ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात।।

अनेक पौराणिक ग्रन्‍थों में सूर्य गायत्री के अन्‍य संस्‍करण भी प्राप्‍त होते हैं और सभी संस्‍करण समान रूप से प्रभावशाली हैं बशर्ते आराधना करते समय समस्‍त विधि विधानों का पूर्ण रूप से पालन किया जाय। 

।। ॐ भास्कराय विधमहे दिवा कराया धीमहि तन्नो सूर्य प्रचोदयात।।

।। ॐ आस्वादवजया विधमहे पासा हस्ताय धीमहि तन्नो सूर्य प्रचोदयात।।

।। ॐ सप्ततुरंगाय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि तन्नो रवि: प्रचोदयात्।।

सभी तस्‍वीरें गूगल सर्च इंजन के द्वारा ली गयी हैं। सभी तस्‍वीरों के लिए सम्‍बन्धितों के प्रति आभार

मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

आरती श्री सूर्यदेव जी की Aarti Shri Surya Dev Ji Ki

आरती श्री सूर्यदेव जी की Aarti Shri Surya Dev Ji Ki



जय जय जय रविदेव, 
जय जय जय रविदेव।
**
राजनीति मदहारी 
शतदल जीवन दाता।
**
षटपद मन मुदकारी 
हे दिनमणि ताता।
**
जग के हे रविदेव, 
जय जय जय रविदेव।
**
नभमंडल के वासी 
ज्योति प्रकाशक देवा।
**
निज जनहित सुखसारी 
तेरी हम सब सेवा।
**
करते हैं रवि देव, 
जय जय जय रविदेव।
**
कनक बदनमन मोहित 
रुचिर प्रभा प्यारी।
**
हे सुरवर रविदेव, 
जय जय जय रविदेव।।

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

श्री सूर्य चालीसा Shri Surya Chalisa || कनक बदन कुण्डल मकर || Kanak Badan Kundal Makar || जय सविता जय जयति दिवाकर || Jay Savita Jay Jayati Diwakar

श्री सूर्य चालीसा Shri Surya Chalisa || कनक बदन कुण्डल मकर || Kanak Badan Kundal Makar || जय सविता जय जयति दिवाकर || Jay Savita Jay Jayati Diwakar


दोहा

कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अंग।
पद्मासन स्थित ध्याइये, शंख चक्र के संग।।

चौपाई

जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।
भानु, पतंग, मरीची, भास्कर, सविता, हंस, सुनूर, विभाकर।

विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन।
अम्बरमणि, खग, रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।

सहस्रांशु, प्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढि़ रथ पर।

मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।
उच्चैश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते।

मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता,
सूर्य, अर्क, खग, कलिहर, पूषा, रवि,

आदित्य, नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै।
द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै।

चार पदारथ सो जन पावै, दुख दारिद्र अघ पुंज नसावै।
नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह।

सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।
बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते।

उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।
छन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबलमोह को फंद कटतु है।

अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते।
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देश पर दिनकर छाजत।

भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित।
ओठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।

कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजसः कांधे लोभा।
पूषा बाहु मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर।

युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्मं सुउदरचन।
बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि मंह हंस, रहत मन मुदभर।

जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा।
विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।

सहस्रांशु, सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे।
अस जोजजन अपने न माहीं, भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं।

दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै।
अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता।

ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।
मन्द सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके।

धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा।
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटत सो भव के भ्रम सों।

परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मध वेदांगनाम रवि उदय।

भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।
यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।

अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं।

दोहा

भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।
सुख सम्पत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य।।