रविवार, 17 दिसंबर 2017

श्री वैष्‍णो देवी माता की आरती || Shri Vaishno Devi Mata ki Aarti || हे मात मेरी, हे मात मेरी || He Maat Meri

श्री वैष्‍णो देवी माता की आरती || Shri Vaishno Devi Mata ki Aarti || हे मात मेरी, हे मात मेरी || He Maat Meri

हे मात मेरी, हे मात मेरी,

कैसी यह देर लगाई है दुर्गे।

हे मात मेरी, हे मात मेरी।।१।।


भवसागर में गिरा पड़ा हूँ,

काम आदि गृह में घिरा पड़ा हूँ।

मोह आदि जाल में जकड़ा पड़ा हूँ।

हे मात मेरी, हे मात मेरी।।२।।


न मुझ में बल है न मुझ में विद्या,

न मुझ में भक्ति न मुझमें शक्ति।

शरण तुम्हारी गिरा पड़ा हूँ।

हे मात मेरी, हे मात मेरी।।३।।


न कोई मेरा कुटुम्ब साथी,

ना ही मेरा शारीर साथी।

आप ही उबारो पकड़ के बाहीं।

हे मात मेरी, हे मात मेरी।।४।।


चरण कमल की नौका बनाकर,

मैं पार होउँगा ख़ुशी मनाकर।

यमदूतों को मार भगाकर।

हे मात मेरी, हे मात मेरी।।५।।


सदा ही तेरे गुणों को गाऊँ,

सदा ही तेरे स्वरूप को ध्याऊँ।

नित प्रति तेरे गुणों को गाऊँ।

हे मात मेरी, हे मात मेरी।।६।।


न मैं किसी का न कोई मेरा,

छाया है चारों तरफ अन्धेरा।

पकड़ के ज्योति दिखा दो रास्ता।

हे मात मेरी, हे मात मेरी।।७।।


शरण पड़े है हम तुम्हारी,

करो यह नैया पार हमारी।

कैसी यह देर लगाई है दुर्गे।

हे मात मेरी, हे मात मेरी।।८।।



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शनिवार, 16 दिसंबर 2017

श्री प्रेतराज सरकार की आरती || Shri Pretraj Sarkar Ki Aarti || जय प्रेतराज कृपालु || Jay Pretraj Kripalu Meri

श्री प्रेतराज सरकार की आरती || Shri Pretraj Sarkar Ki Aarti || जय प्रेतराज कृपालु || Jay Pretraj Kripalu Meri

श्री प्रेतराज सरकार

बालाजी मंदिर में प्रेतराज सरकार दण्डाधिकारी पद पर आसीन हैं। प्रेतराज सरकार के विग्रह पर भी चोला चढ़ाया जाता है। प्रेतराज सरकार को दुष्ट आत्माओं को दण्ड देने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। भक्तिभाव से उनकी आरती , चालीसा , कीर्तन , भजन आदि किए जाते हैं। बालाजी के सहायक देवता के रूप में ही प्रेतराज सरकार की आराधना की जाती है। प्रेतराज सरकार को पके चावल का भोग लगाया जाता है। 

|| आरती ||

जय प्रेतराज कृपालु मेरी अरज अब सुन लीजिये।

मैं शरण तुम्हारी आ गया हूँ, नाथ दर्शन दीजिये।।


मैं करूं विनती आपसे अब, तुम दयामय चित धरो।

चरणों का ले लिया आसरा, प्रभु वेग से मेरा दुःख हरो।।


सिर पर मोर मुकुट कर में धनुष, गलबीच मोतियन माल है।

जो करे दर्शन प्रेम से सब, कटत तन के जाल हैं।।


जब पहन बख्तर ले खड़ग, बांई बगल में ढाल है।

ऐसा भयंकर रूप जिनका, देख डरपत काल है।।


अति प्रबल सेना विकट योद्धा, संग में विकराल हैं।

तब भुत प्रेत पिशाच बांधे, कैद करते हाल हैं।।


तब रूप धरते वीर का, करते तैयारी चलन की।

संग में लड़ाके ज्वान जिनकी, थाह नहीं है बलन की।।


तुम सब तरह समर्थ हो, प्रभु सकल सुख के धाम हो।

दुष्टों के मारनहार हो, भक्तों के पूरण काम हो।।


मैं हूं मती का मन्द मेरी, बुद्धि को निर्मल करो।

अज्ञान का अन्धेर उर में, ज्ञान का दीपक धरो।।


सब मनोरथ सिद्ध करते, जो कोई सेवा करे।

तन्दुल बूरा घृत मेवा, भेंट ले आगे धरे।।


सुयश सुन कर आपका, दुखिया तो आये दूर के।

सब स्त्री अरू पुरूष आकर, पड़े हैं चरण हजूर के।।


लीला है अद्भुत आपकी, महिमा तो अपरंपार है।

मैं ध्यान जिस दम धरत हूँ , रच देना मंगलाचार है।।


सेवक गणेशपुरी महन्त जी, की लाज तुम्हारे हाथ है।

करना खता सब माफ, उनकी देना हरदम साथ है।।


दरबार में आओ अभी, सरकार में हाजिर खड़ा।

इन्साफ मेरा अब करो, चरणों में आकर गिर पड़ा।।


अर्जी बमूजिब दे चुका, अब गौर  इस पर कीजिये।

तत्काल इस पर हुक्म लिख दो, फैसला कर दीजिए।।


महाराज की यह स्तुति, कोई नेम से गाया करे।

सब सिद्ध कारज होय उनके, रोग पीड़ा सब टरे।।


‘‘सुखराम’’ सेवक आपका, उसको नहीं बिसराइये।

जै जै मनाऊं आपकी, बेड़े को पार लगाइये।।


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शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

श्री बृहस्‍पति देव जी की आरती || Shri Brihaspati Dev Ji Ki Aarti || जय बृहस्पति देवा || Jay Brihaspati Deva

श्री बृहस्‍पति देव जी की आरती || Shri Brihaspati Dev Ji Ki Aarti || जय बृहस्पति देवा || Jay Brihaspati Deva

जय बृहस्पति देवा, ॐ जय बृहस्पति देवा।

छिन छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा॥

ॐ जय बृहस्पति देवा ।।१।।


तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।

जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी॥

ॐ जय बृहस्पति देवा।।२।।


चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।

सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।।

ॐ जय बृहस्पति देवा।।३।।


तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।

प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े॥

ॐ जय बृहस्पति देवा।।४।।


दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।

पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी॥

ॐ जय बृहस्पति देवा।।५।।


सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारी।

विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी॥

ॐ जय बृहस्पति देवा।।६।।


जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे।

जेष्‍ठानंद आनंदकर, सो निश्चय पावे॥

ॐ जय बृहस्पति देवा।।७।।


सब बोलो विष्णु भगवान की जय!

बोलो बृहस्पतिदेव की जय!!


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गुरुवार, 30 नवंबर 2017

नर्मदाष्टकं || Narmadashtakam || सविंदुसिंधु-सुस्खलत्तरंगभंग-रंजितं || Savindusindhu

 नर्मदाष्टकं || Narmadashtakam || सविंदुसिंधु-सुस्खलत्तरंगभंग-रंजितं || Savindusindhu 

सविंदुसिंधु-सुस्खलत्तरंगभंग-रंजितं,
द्विषत्सु पापजात-जातकारि-वारिसंयुतम्।
कृतान्‍त-दूतकालभूत-भीतिहारि वर्मदे,
त्वदीयपादपंकजं नमामि देवि नर्मदे।।१।। 

त्वदम्‍बु-लीनदीन-मीन-दिव्य संप्रदायकं,
कलौ मलौध-भारहारि सर्वतीर्थनायकम्।
सुमत्स्य-कच्छ-नक्र-चक्र-चक्रवाक्-शर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।२।।

महागम्‍भीर-नीरपूर-पापधूत-भूतलं,
ध्वनत-समस्त-पातकारि-दारितापदाचलम्।
जगल्लये महामये मृकंडुसून-हर्म्यदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।३।।

गतं तदैव मे भयं त्वदंबुवीक्षितं यदा,
मृकंडुसूनु-शौनकासुरारिसेवि सर्वदा।
पुनर्भवाब्धि-जन्मजं भवाब्धि-दु:खवर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।४।।

अलक्ष-लक्ष-किन्नरामरासुरादिपूजितं,
सुलक्ष नीरतीर-धीरपक्षि-लक्षकूजितं।
वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।५।।

सनत्कुमार-नाचिकेत कश्यपात्रि-षट्पदै,
धृतं स्वकीयमानसेषु नारदादिषट्पदै:।
रवींदु-रन्तिदेव-देवराज-कर्म शर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।६।।

अलक्षलक्ष-लक्षपाप-लक्ष-सार-सायुधं,
ततस्तु जीव-जन्‍तु-तन्‍तु-भुक्ति मुक्तिदायकम्।
विरंचि-विष्णु-शंकर-स्वकीयधाम वर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।७।।

अहोsमृतं स्वनं श्रुतं महेश केशजातटे,
किरात-सूत वाडवेशु पण्डिते शठे-नटे।
दुरंत पाप-ताप-हारि-सर्वजंतु-शर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।८।।

इदं तु नर्मदाष्टकं त्रिकालमेव ये यदा,
पठन्ति ते निरंतरं न यांतिदुर्गतिं कदा।
सुलभ्‍य देहदुर्लभं महेश धाम गौरवं,
पुनर्भवा नरा: न वै विलोकयंति रौरवम्।।
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।९।।

(विश्‍ववन्दित भगवान आदि शंकराचार्य द्वारा रचित नर्मदाष्टकं)

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रविवार, 29 अक्तूबर 2017

श्री नर्मदा जी की आरती || Shri Narmada Ji Ki Aarti || जय जगदानन्‍दी, मैया जय जगदानन्‍दी || Jay Jagadanandi

श्री नर्मदा जी की आरती || Shri Narmada Ji Ki Aarti || जय जगदानन्‍दी, मैया जय जगदानन्‍दी || Jay Jagadanandi 

जय जगदानन्‍दी, मैया जय जगदानन्‍दी।
जय जगदानन्दी, मैया जय जगदानन्‍दी।
ब्रह्मा हरिहर शंकर, रेवा शिव हर‍ि शंकर
रुद्री पालन्ती।
ॐ जय जगदानन्दी।।

नारद शारद तुम वरदायक, अभिनव पद चण्डी।
हो मैया अभिनव पद चण्डी।
सुर नर मुनि जन सेवत, सुर नर मुनि जन सेवत।
शारद पद वन्‍दी।
ॐ जय जगदानन्दी।।

धूम्रक वाहन राजत, वीणा वादन्‍ती।
हो मैया वीणा वादन्‍ती।
झुमकत-झनकत-झनननझुमकत-झनकत-झननन
रमती राजन्ती।
ॐ जय जगदानन्दी।।

बाजत ताल मृदंगा, सुर मण्डल रमती। 
हो मैया सुर मण्डल रमती।
तुडितान- तुडितान- तुडितान, तुरडड तुरडड तुरडड
रमती सुरवन्ती।
ॐ जय जगदानन्दी।।

सकल भुवन पर आप विराजत, निशदिन आनन्दी।
हो मैया निशदिन आनन्दी।
गावत गंगा शंकर, सेवत रेवा शंकर
तुम भव भय हंती।
ॐ जय जगदानन्दी।। 

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
हो मैया अगर कपूर बाती।
अमरकंटक में राजत, घाट घाट में राजत
कोटि रतन ज्योति।
ॐ जय जगदानन्दी।। 

मैयाजी की आरती निशदिन जो गावे,
हो रेवा जुग-जुग जो गावे
भजत शिवानन्द स्वामी
जपत हर‍िहर स्वामी
मनवांछित पावे।
ॐ जय जगदानन्दी।।

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शनिवार, 7 अक्तूबर 2017

श्री नर्मदा चालीसा || Shri Narmada Chalisa || जय-जय-जय नर्मदा भवानी || Jay Jay Jay Narmada Bhawani

श्री नर्मदा चालीसा || Shri Narmada Chalisa || जय-जय-जय नर्मदा भवानी || Jay Jay Jay Narmada Bhawani

॥ दोहा ॥

देवि पूजित, नर्मदा, महिमा बड़ी अपार।
चालीसा वर्णन करत, कवि अरु भक्त उदार॥

इनकी सेवा से सदा, मिटते पाप महान।
तट पर कर जप दान नर, पाते हैं नित ज्ञान ॥

॥ चौपाई ॥

जय-जय-जय नर्मदा भवानी,
तुम्हरी महिमा सब जग जानी।

अमरकण्ठ से निकली माता,
सर्व सिद्धि नव निधि की दाता।

कन्या रूप सकल गुण खानी,
जब प्रकटीं नर्मदा भवानी।

सप्तमी सूर्य मकर रविवारा,
अश्वनि माघ मास अवतारा।

वाहन मकर आपको साजैं,
कमल पुष्प पर आप विराजैं।

ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावैं,
तब ही मनवांछित फल पावैं।

दर्शन करत पाप कटि जाते,
कोटि भक्त गण नित्य नहाते।

जो नर तुमको नित ही ध्यावै,
वह नर रुद्र लोक को जावैं।

मगरमच्‍छ तुम में सुख पावैं,
अंतिम समय परमपद पावैं।

मस्तक मुकुट सदा ही साजैं,
पांव पैंजनी नित ही राजैं।

कल-कल ध्वनि करती हो माता,
पाप ताप हरती हो माता।

पूरब से पश्चिम की ओरा,
बहतीं माता नाचत मोरा।

शौनक ऋषि तुम्हरौ गुण गावैं,
सूत आदि तुम्हरौं यश गावैं।

शिव गणेश भी तेरे गुण गावैं,
सकल देव गण तुमको ध्यावैं।

कोटि तीर्थ नर्मदा किनारे,
ये सब कहलाते दु:ख हारे।

मनोकमना पूरण करती,
सर्व दु:ख माँ नित ही हरतीं।

कनखल में गंगा की महिमा,
कुरुक्षेत्र में सरस्वती महिमा।

पर नर्मदा ग्राम जंगल में,
नित रहती माता मंगल में।

एक बार कर के स्नाना ,
तरत पिढ़ी है नर नारा।

मेकल कन्या तुम ही रेवा,
तुम्हरी भजन करें नित देवा।

जटा शंकरी नाम तुम्हारा,
तुमने कोटि जनों को तारा।

समोद्भवा नर्मदा तुम हो,
पाप मोचनी रेवा तुम हो।

तुम्हरी महिमा कहि नहिं जाई,
करत न बनती मातु बड़ाई।

जल प्रताप तुममें अति माता,
जो रमणीय तथा सुख दाता।

चाल सर्पिणी सम है तुम्हारी,
महिमा अति अपार है तुम्हारी।

तुम में पड़ी अस्थि भी भारी,
छुवत पाषाण होत वर वारि।

यमुना मे जो मनुज नहाता,
सात दिनों में वह फल पाता।

सरस्वती तीन दीनों में देती,
गंगा तुरत बाद हीं देती।

पर रेवा का दर्शन करके
मानव फल पाता मन भर के।

तुम्हरी महिमा है अति भारी,
जिसको गाते हैं नर-नारी।

जो नर तुम में नित्य नहाता,
रुद्र लोक मे पूजा जाता।

जड़ी बूटियां तट पर राजें,
मोहक दृश्य सदा हीं साजें|

वायु सुगंधित चलती तीरा,
जो हरती नर तन की पीरा।

घाट-घाट की महिमा भारी,
कवि भी गा नहिं सकते सारी।

नहिं जानूँ मैं तुम्हरी पूजा,
और सहारा नहीं मम दूजा।

हो प्रसन्न ऊपर मम माता,
तुम ही मातु मोक्ष की दाता।

जो मानव यह नित है पढ़ता,
उसका मान सदा ही बढ़ता।

जो शत बार इसे है गाता,
वह विद्या धन दौलत पाता।

अगणित बार पढ़ै जो कोई,
पूरण मनोकामना होई।

सबके उर में बसत नर्मदा,
यहां वहां सर्वत्र नर्मदा ।

॥ दोहा ॥
भक्ति भाव उर आनि के, जो करता है जाप।
माता जी की कृपा से, दूर होत संताप॥

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गुरुवार, 14 सितंबर 2017

गायत्री मंत्र || Gayatri Mantra || Savita Mantra || ॐ भूर्भुवः स्वः || Om Bhurbhuvah Swah

गायत्री मंत्र || Gayatri Mantra || Savita Mantra || ॐ भूर्भुवः स्वः || Om Bhurbhuvah Swah


गायत्री मंत्र के जाप से हृदय में शुद्धता आती है और विचार सकारात्‍मक हो जाते हैं तथा शरीर में अद्भुत शक्ति का संचार होता है। परिणामस्‍वरूप समस्‍त मानसिक अथवा शारीरिक विकार दूर हो जाते हैं। गायत्री मंत्र के निरंतर उच्‍चारण से मेधा बढ्ती है, स्‍मरण शक्ति  तेज होती है और ज्ञान व़ृद्धि भी होती है। गायत्री मंत्र का जाप करने के तीन समय बताये गये हैं। पहला सूर्योदय से पूर्व, दूसरा मध्‍याह्न में एवं तीसरा सूर्यास्‍त से पहले। गायत्री मंत्र का जाप सदैव शुद्ध उच्‍चारण के साथ ही करना श्रेयस्‍कर है। साथ ही यह भी ध्‍यान देने योग्‍य है कि बिना अर्थ जाने जपे गये किसी भी मंत्र का कोई फल प्राप्‍त नहीं होता है। अर्थ से तात्‍पर्य केवल शाब्द‍िक अर्थ ही नहीं है वरन भावार्थ भी है। गायत्री मंत्र इस प्रकार है-

|| ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् , भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ||


अर्थ

उस प्राण स्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

भावार्थ 

अर्थात् सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के दिव्‍य तेज का (हम) ध्यान करते हैं, वे परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्‍मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें।
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मंगलवार, 22 अगस्त 2017

श्री रुद्राष्‍टकम् || Shree Rudrashtakam || Namami Shamisham || नमामीशमीशान

श्री रुद्राष्‍टकम् || Shree Rudrashtakam || Namami Shamisham || नमामीशमीशान

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥१॥

निराकारमोङ्करमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोऽहम्॥२॥

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं 
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा॥३॥

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि॥४॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं।
त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥५॥

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥६॥

न यावद् उमानाथपादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥७॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो॥८॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति॥९॥

इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ।

गुरुवार, 3 अगस्त 2017

श्री रामरक्षा स्‍तोत्र || Shri Ram Raksha Stotra || चरितं रघुनाथस्य || Charitam Raghunathasya

श्री रामरक्षा स्‍तोत्र || Shri Ram Raksha Stotra || चरितं रघुनाथस्य || Charitam Raghunathasya

|| विनियोग: ||
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः श्री सीतारामचन्द्रो देवता अनुष्टुप्‌ छन्दः सीता शक्तिः श्रीमान् हनुमान्‌ कीलकं‌ श्रीरामचन्द्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः।

 || ध्यानम्‌ ||
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं
पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌।
वामाङ्कारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचन्द्रम्॥

|| स्तोत्रम् ||

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌॥१॥

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम्‌ ॥२॥

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्‌।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥३॥

रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्‌।
शिरो में राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥४॥

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः॥५॥

जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः।
स्कंधौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः॥६॥

करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः॥७॥

सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः।
उरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत्‌॥८॥

जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तकः।
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः॥९॥

एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्‌।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌॥१०॥

पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः।
न दृष्टुमति शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥११॥

रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन्‌।
नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥

जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्‌।
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥१३॥

वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌।
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमङ्गलम्‌ ॥१४॥

आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः।
तथा लिखितवान्प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥१५॥

आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्‌।
अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान्सनः प्रभुः ॥१६॥

तरुणौ रूप सम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥

फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥

शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌।
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥१९॥

आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषङ्गसङ्गिनौ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम्‌॥२०॥

सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा।
गच्छन्मनोरथान्नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ॥२१॥

रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥२२॥

वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः।
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥२३॥

इत्येतानि जपन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयाऽन्वितः।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥२४॥

रामं दूवार्दलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्‌।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नराः ॥२५॥

रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌।

राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌॥२६॥

रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥२७॥

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥

माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः
स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः।
सर्वस्वं में रामचन्द्रो दयालु-
र्नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम्‌ ॥३१॥

लोकाभिरामं रणरङ्धीरं
राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्‌ ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं
श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥

मनोजवं मारुततुल्यवेगं
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं
श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥

कूजन्तं राम रामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्‌।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥३५॥

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम्‌।
तर्जनं यमदूतानां राम रामेति गर्जनम्‌ ॥३६॥

रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रामेशं भजे
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं
रामे चित्तलयः सदा भवतु में भो राम मामुद्धर ॥३७॥

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥


इति श्रीबुधकौशिकमुनिविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं सम्पूर्णम्।

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