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शनिवार, 23 मई 2020

हनुमान स्‍तुति || Hanuman Stuti || नमो अंजनि नंदनं वायुपूतम् || Namo Anjani Nandanam Vayuputam

हनुमान स्‍तुति || Hanuman Stuti || नमो अंजनि नंदनं वायुपूतम्  || Namo Anjani Nandanam Vayuputam 


नमो अंजनि नंदनं वायुपूतम्  

सदा मंगलागार श्री राम दूतम् 


महावीर वीरेश त्रिकाल वेशम् 

घनानन्द निर्द्वन्द हर्तां कलेशम् 


सजीवन जड़ी लाय नागेश काजे

गयी मूर्छना राम भ्राता निवाजे


सकल दीन जन के हरो दुःख स्वामी

नमो वायुपुत्रं नमामि नमामि


नमो अंजनि नंदनं वायुपूतम्  

सदा मंगलागार श्री राम दूतम्


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बुधवार, 2 अगस्त 2017

ऋणमोचन मंगल स्‍तोत्र || Rin Mochan Mangal Stotra || मङ्गलो भूमिपुत्रश्च || Mangalo Bhumiputrashcha

ऋणमोचन मंगल स्‍तोत्र || Rin Mochan Mangal Stotra || मङ्गलो भूमिपुत्रश्च || Mangalo Bhumiputrashcha

भूमिपुत्र भगवान मंगलदेव ऋणमोचक हैं एवं सुखों को देने वाले हैं। जब किसी व्‍यक्ति पर कर्ज की स्थिति बहुत अधिक बढ़ जाये तब किसी शुभ तिथि से लाल वस्त्र धारण कर मंगल देव (मंगल यन्त्र को प्राण प्रतिष्ठित कर) व हनुमान जी के समक्ष इस स्तोत्र का नियमित 3, 5, 8, 9 अथवा 11 पाठ 45 दिन तक प्रतिदिन करे | इस पाठ को करने से पूर्व लाल वस्त्र बिछा कर मंगल यन्त्र व महावीर हनुमान जी को स्थापित करे, सिंदूर व चमेली के तेल का चोला अर्पित कर अपने बाये हाथ की तरफ देसी घी का दीपक व दाहिने हाथ की तरफ सरसो के तेल या तिल के तेल का दीपक स्थापित करे साथ ही हनुमान जी को गुड चने व बेसन का कुछ भोग अवश्य लगाये इस पाठ को करने से निश्‍चय ही ऋणमुक्ति मिलेगी। ऋणमोचन मंगल स्‍तोत्र इस प्रकार है-

मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।
स्थिरासनो महाकायः सर्वकर्मविरोधकः ॥१॥

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥२॥

अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥३॥

एतानि कुजनामानि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्॥४॥

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥५॥

स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्॥६॥

अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय॥७॥

ऋणरोगादिदारिघ्र्यं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥८॥

अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्क्षणात्॥९॥

विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः॥१०॥

पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः॥११॥

एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा॥१२॥


इति श्रीस्कन्दपुराणे भार्गवप्रोक्तं ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम्

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