सोमवार, 29 नवंबर 2021

श्री काल भैरव अष्टक || Shri Kal Bhairav Astak || देवराजसेव्यमान || Devraj Sevyaman || Bhairavastaka || Kal Bhairav

 श्री काल भैरव अष्टक || Shri Kal Bhairav Astak || देवराजसेव्यमान || Devraj Sevyaman || Bhairavastaka || Kal Bhairav 


देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं 

व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्।

नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। १ ।।


भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं 

नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम्।

कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। २।।


शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं 

श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम्।

भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। ३ ।।


भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं 

भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम्।

विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। ४ ।।


धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशनं 

कर्मपाशमोचकं सुशर्मधायकं विभुम्।

स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। ५ ।।


रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं 

नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम्।

मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। ६ ।।


अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं 

दृष्टिपात्तनष्टपापजालमुग्रशासनम्।

अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। ७ ।।


भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं 

काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम्।

नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। ८ ।।


।। फल श्रुति ।।


कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं 

ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम्।

शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं 

प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम्।।

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रविवार, 28 नवंबर 2021

श्री भैरव चालीसा || जय डमरूधर नयन विशाला || Jaya Damrudhar Nayan Vishala || Shri Bhairav Chalisa || Shri Bhairav Nath Kashi Vishwanath Varanasi

श्री भैरव चालीसा || जय डमरूधर नयन विशाला || Jaya Damrudhar Nayan Vishala ||  Shri Bhairav Chalisa || Shri Bhairav Nath Kashi Vishwanath Varanasi 

(चित्र गूगल से साभार)

।। दोहा ।।

श्री भैरव संकट हरन

मंगल करन कृपालु।

करहु दया निज दास पे

निशिदिन दीनदयालु।।


।। चौपाई ।।


जय डमरूधर नयन विशाला।

श्याम वर्ण वपु महा कराला।।


जय त्रिशूलधर जय डमरूधर।

काशी कोतवाल संकटहर।।


जय गिरिजासुत परमकृपाला।

संकटहरण हरहु भ्रमजाला।।


जयति बटुक भैरव भयहारी।

जयति काल भैरव बलधारी।।


अष्टरूप तुम्हरे सब गायें।

सकल एक ते एक सिवाये।।


शिवस्वरूप शिव के अनुगामी।

गणाधीश तुम सबके स्वामी।।


जटाजूट पर मुकुट सुहावै।

भालचन्द्र अति शोभा पावै।।


कटि करधनी घुँघरू बाजै।

दर्शन करत सकल भय भाजै।।


कर त्रिशूल डमरू अति सुन्दर।

मोरपंख को चंवर मनोहर।।


खप्पर खड्ग लिये बलवाना।

रूप चतुर्भुज नाथ बखाना।।


वाहन श्वान सदा सुखरासी।

तुम अनन्त प्रभु तुम अविनाशी।।


जय जय जय भैरव भय भंजन।

जय कृपालु भक्तन मनरंजन॥


नयन विशाल लाल अति भारी।

रक्तवर्ण तुम अहहु पुरारी।।


बं बं बं बोलत दिनराती।

शिव कहँ भजहु असुर आराती।।


एकरूप तुम शम्भु कहाये।

दूजे भैरव रूप बनाये।।


सेवक तुमहिं तुमहिं प्रभु स्वामी।

सब जग के तुम अन्तर्यामी।।


रक्तवर्ण वपु अहहि तुम्हारा।

श्यामवर्ण कहुं होई प्रचारा।।


श्वेतवर्ण पुनि कहा बखानी।

तीनि वर्ण तुम्हरे गुणखानी।।


तीनि नयन प्रभु परम सुहावहिं।

सुरनर मुनि सब ध्यान लगावहिं।।


व्याघ्र चर्मधर तुम जग स्वामी।

प्रेतनाथ तुम पूर्ण अकामी।।


चक्रनाथ नकुलेश प्रचण्डा।

निमिष दिगम्बर कीरति चण्डा।।


क्रोधवत्स भूतेश कालधर।

चक्रतुण्ड दशबाहु व्यालधर।।


अहहिं कोटि प्रभु नाम तुम्हारे।

जयत सदा मेटत दुःख भारे।।


चौंसठ योगिनी नाचहिं संगा।

क्रोधवान तुम अति रणरंगा।।


भूतनाथ तुम परम पुनीता।

तुम भविष्य तुम अहहू अतीता।।


वर्तमान तुम्हरो शुचि रूपा।

कालजयी तुम परम अनूपा।।


ऐलादी को संकट टार्यो।

साद भक्त को कारज सारयो।।


कालीपुत्र कहावहु नाथा।

तव चरणन नावहुं नित माथा।।


श्री क्रोधेश कृपा विस्तारहु।

दीन जानि मोहि पार उतारहु।।


भवसागर बूढत दिनराती।

होहु कृपालु दुष्ट आराती।।


सेवक जानि कृपा प्रभु कीजै।

मोहिं भगति अपनी अब दीजै।।


करहुँ सदा भैरव की सेवा।

तुम समान दूजो को देवा।।


अश्वनाथ तुम परम मनोहर।

दुष्टन कहँ प्रभु अहहु भयंकर।।


तम्हरो दास जहाँ जो होई।

ताकहँ संकट परै न कोई।।


हरहु नाथ तुम जन की पीरा।

तुम समान प्रभु को बलवीरा।।


सब अपराध क्षमा करि दीजै।

दीन जानि आपुन मोहिं कीजै।।


जो यह पाठ करे चालीसा।

तापै कृपा करहुँ जगदीशा।।


।। दोहा ।।

जय भैरव जय भूतपति

जय जय जय सुखकन्‍द।

करहु कृपा नित दास पे

देहुँ सदा आनन्द।।

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श्री भैरव चालीसा || जय जय श्री काली के लाला || Jay Jay Shri Kali Ke Lala || Shri Bhairav Chalisa || Kashi Kotwal Chalisa || Bhairav Stuti lyrics in Hindi

श्री भैरव चालीसा ||जय जय श्री काली के लाला ||  Jay Jay Shri Kali Ke Lala || Shri Bhairav Chalisa || Kashi Kotwal Chalisa || Bhairav Stuti lyrics in Hindi 

(चित्र गूगल से साभार)

।। दोहा ।।


श्री गणपति गुरु गौरी पद प्रेम सहित धरि माथ।

चालीसा वंदन करो श्री शिव भैरवनाथ॥

श्री भैरव संकट हरण मंगल करण कृपाल।

श्याम वरण विकराल वपु लोचन लाल विशाल॥


।। चालीसा ।। 


जय जय श्री काली के लाला।

जयति जयति काशी-कुतवाला॥


जयति बटुक-भैरव भय हारी।

जयति काल-भैरव बलकारी॥


जयति नाथ-भैरव विख्याता।

जयति सर्व-भैरव सुखदाता॥


भैरव रूप कियो शिव धारण।

भव के भार उतारण कारण॥


बटुक नाथ हो काल गंभीरा। 

श्‍वेत रक्त अरु श्याम शरीरा॥


करत नीनहूं रूप प्रकाशा। 

भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा।।


रत्‍न जड़ित कंचन सिंहासन। 

व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन।।


तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं। 

विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं।।


जय प्रभु संहारक सुनन्द जय। 

जय उन्नत हर उमा नन्द जय।।


भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय। 

वैजनाथ श्री जगतनाथ जय।।


महा भीम भीषण शरीर जय। 

रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय।।


अश्‍वनाथ जय प्रेतनाथ जय। 

स्वानारूढ़ सयचंद्र नाथ जय।।


निमिष दिगंबर चक्रनाथ जय। 

गहत अनाथन नाथ हाथ जय।।


त्रेशलेश भूतेश चंद्र जय। 

क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय।।


श्री वामन नकुलेश चण्ड जय। 

कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय।।


रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर। 

चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर।।


करि मद पान शम्भु गुणगावत। 

चौंसठ योगिन संग नचावत।।


करत कृपा जन पर बहु ढंगा। 

काशी कोतवाल अड़बंगा।।


देय काल भैरव जब सोटा। 

नसै पाप मोटा से मोटा।।


जनकर निर्मल होय शरीरा। 

मिटै सकल संकट भव पीरा।।


श्री भैरव भूतों के राजा। 

बाधा हरत करत शुभ काजा।।


ऐलादी के दुख निवारयो। 

सदा कृपाकरि काज सम्हारयो।।


सुन्दर दास सहित अनुरागा। 

श्री दुर्वासा निकट प्रयागा।।


श्री भैरव जी की जय लेख्यो। 

सकल कामना पूरण देख्यो।।


।। दोहा ।।


जय जय जय भैरव बटुक स्वामी संकट टार।

कृपा दास पर कीजिए शंकर के अवतार।।

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श्री ललिता माता की आरती || श्री मातेश्वरि जय त्रिपुरेश्वरि || Shri Lalita Mata Ki Aarti || Shri Mateshwari Jay Tripureshwari || Lalita Mata Prayagraj Allahabad

श्री ललिता माता की आरती || श्री मातेश्वरि जय त्रिपुरेश्वरि || Shri Lalita Mata Ki Aarti || Shri Mateshwari Jay Tripureshwari || Lalita Mata Prayagraj Allahabad


श्री मातेश्वरि जय त्रिपुरेश्वरि।

राजेश्वरि जय नमो नम:।।


करुणामयी सकल अघ हारिणि।

अमृत वर्षिणि नमो नम:।।


जय शरणं वरणं नमो नम:

श्री मातेश्वरि जय त्रिपुरेश्वरि।

राजेश्वरि जय नमो नम:।।


अशुभ विनाशिनि, सब सुखदायिनि।

खलदल नाशिनि नमो नम:।।


भंडासुर वध कारिणि जय मां।

करुणा कलिते नमो नम:।।


जय शरणं वरणं नमो नम:

श्री मातेश्वरि जय त्रिपुरेश्वरि।

राजेश्वरि जय नमो नम:।।


भव भय हारिणि कष्ट निवारिणि।

शरण गती दो नमो नम:।।


शिव भामिनि साधक मन हारिणि।

आदि शक्ति जय नमो नम:।।


जय शरणं वरणं नमो नम:!

श्री मातेश्वरि जय त्रिपुरेश्वरि।

राजेश्वरि जय नमो नम:।।


जय त्रिपुर सुंदरी नमो नम:।

जय राजेश्वरि जय नमो नम:।।


जय ललितेश्वरि जय नमो नम:।

जय अमृत वर्षिणि नमो नम:।।


जय करुणा कलिते नमो नम:।

श्री मातेश्वरि जय त्रिपुरेश्वरि।

राजेश्वरि जय नमो नम:।।

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ललिता माता चालीसा || जयति-जयति जय ललिते माता || Shri Lalita Mata Chalisa || Jayati Jayati Jay Lalita Mata || Lalita Mata Stuti || Arti Lyrics in Hindi

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ललिता माता चालीसा || जयति-जयति जय ललिते माता || Shri Lalita Mata Chalisa || Jayati Jayati Jay Lalita Mata || Lalita Mata Stuti || Arti Lyrics in Hindi

ललिता माता चालीसा || जयति-जयति जय ललिते माता || Shri Lalita Mata Chalisa || Jayati Jayati Jay Lalita Mata || Lalita Mata Stuti || Arti Lyrics in Hindi


।। चौपाई ।।

 

जयति-जयति जय ललिते माता। 

तव गुण महिमा है विख्याता।।


तू सुन्दरी, त्रिपुरेश्वरी देवी। 

सुर नर मुनि तेरे पद सेवी।।

 

तू कल्याणी कष्ट निवारिणि। 

तू सुख दायिनी, विपदा हारिणि ।।


मोह विनाशिनी दैत्य नाशिनी। 

भक्त भाविनी ज्योति प्रकाशिनी।।

 

आदि शक्ति श्री विद्या रूपा। 

चक्र स्वामिनी देह अनूपा।।


हृदय निवासिनी-भक्त तारिणी। 

नाना कष्ट विपति दल हारिणी।।

 

दश विद्या है रूप तुम्हारा। 

श्री चन्द्रेश्वरी नैमिष प्यारा।।


धूमा, बगला, भैरवी, तारा। 

भुवनेश्वरी, कमला, विस्तारा।।

 

षोडशी, छिन्न्मस्ता, मातंगी। 

ललितेशक्ति तुम्हारी संगी।।


ललिते तुम हो ज्योतित भाला। 

भक्तजनों का काम संभाला।।

 

भारी संकट जब-जब आए। 

उनसे तुमने भक्त बचाए।।


जिसने कृपा तुम्हारी पाई। 

उसकी सब विधि से बन आई।।

 

संकट दूर करो मां भारी। 

भक्तजनों को आस तुम्हारी।।


त्रिपुरेश्वरी, शैलजा, भवानी। 

जय-जय-जय शिव की महारानी।।

 

योग सिद्धि पावें सब योगी। 

भोगें भोग महा सुख भोगी।।


कृपा तुम्हारी पाके माता। 

जीवन सुखमय है बन जाता।।

 

दुखियों को तुमने अपनाया। 

महा मूढ़ जो शरण न आया।।


तुमने जिसकी ओर निहारा। 

मिली उसे संपत्ति, सुख सारा।।

 

आदि शक्ति जय त्रिपुर प्यारी। 

महाशक्ति जय-जय, भय हारी।।


कुल योगिनी, कुंडलिनी रूपा। 

लीला ललिते करें अनूपा।।

 

महा-महेश्वरी, महाशक्ति दे। 

त्रिपुर-सुन्दरी सदा भक्ति दे।।


महा महा-नन्दे कल्याणी। 

मूकों को देती हो वाणी।।

 

इच्छा-ज्ञान-क्रिया का भागी। 

होता तव सेवा अनुरागी।।


जो ललिते तेरा गुण गावे। 

उसे न कोई कष्ट सतावे।।

 

सर्व मंगले ज्वाला-मालिनी। 

तुम हो सर्वशक्ति संचालिनी।।


आया मॉं जो शरण तुम्हारी। 

विपदा हरी उसी की सारी।।

 

नामा कर्षिणी, चिंता कर्षिणी। 

सर्व मोहिनी सब सुख-वर्षिणी।।


महिमा तव सब जग विख्याता। 

तुम हो दयामयी जग माता।।

 

सब सौभाग्य दायिनी ललिता। 

तुम हो सुखदा करुणा कलिता।।


आनंद, सुख, संपत्ति देती हो। 

कष्ट भयानक हर लेती हो।।

 

मन से जो जन तुमको ध्यावे। 

वह तुरंत मन वांछित पावे।।


लक्ष्मी, दुर्गा तुम हो काली। 

तुम्हीं शारदा चक्र-कपाली।।

 

मूलाधार, निवासिनी जय-जय। 

सहस्रार गामिनी मॉं जय-जय।।


छ: चक्रों को भेदने वाली। 

करती हो सबकी रखवाली।।

 

योगी, भोगी, क्रोधी, कामी। 

सब हैं सेवक सब अनुगामी।।


सबको पार लगाती हो मॉं। 

सब पर दया दिखाती हो मां।।

 

हेमावती, उमा, ब्रह्माणी। 

भण्डासुर की हृदय विदारिणी।।


सर्व विपति हर, सर्वाधारे। 

तुमने कुटिल कुपंथी तारे।।

 

चन्द्र-धारिणी, नैमिश्वासिनी। 

कृपा करो ललिते अधनाशिनी।।


भक्तजनों को दरस दिखाओ। 

संशय भय सब शीघ्र मिटाओ।।

 

जो कोई पढ़े ललिता चालीसा। 

होवे सुख आनंद अधीसा।।


जिस पर कोई संकट आवे। 

पाठ करे संकट मिट जावे।।

 

ध्यान लगा पढ़े इक्कीस बारा। 

पूर्ण मनोरथ होवे सारा।।


पुत्रहीन संतति सुख पावे। 

निर्धन धनी बने गुण गावे।।

 

इस विधि पाठ करे जो कोई। 

दु:ख बंधन छूटे सुख होई।।


जितेन्द्र चन्द्र भारतीय बतावें। 

पढ़ें चालीसा तो सुख पावें।।

 

सबसे लघु उपाय यह जानो। 

सिद्ध होय मन में जो ठानो।।


ललिता करे हृदय में बासा। 

सिद्धि देत ललिता चालीसा।।

 

।। दोहा ।।

 

ललिते मां अब कृपा करो सिद्ध करो सब काम।

श्रद्धा से सिर नाय कर करते तुम्हें प्रणाम।।


श्री ललिता माता की आरती || श्री मातेश्वरि जय त्रिपुरेश्वरि || Shri Lalita Mata Ki Aarti || Shri Mateshwari Jay Tripureshwari || Lalita Mata Prayagraj Allahabad

आरती श्री वृषभानुसुता की || Aarati Shri Vrishbhanusuta ki || Shri Radha Ji Ki Aarti || Radha Rani Ji Ki Aarti || Shri Radha Stuti || Shri Radha Sarkar Ki Aarti ||

आरती श्री वृषभानुसुता की || Aarati Shri Vrishbhanusuta ki || Shri Radha Ji Ki Aarti || Radha Rani Ji Ki Aarti || Shri Radha Stuti || Shri Radha Sarkar Ki Aarti || 


आरती श्री वृषभानुसुता की

मंजुल मूर्ति मोहन ममता की।।


त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि

विमल विवेकविराग विकासिनि।।


पावन प्रभु पद प्रीति प्रकाशिनि

सुन्दरतम छवि सुन्दरता की।।


आरती श्री वृषभानुसुता की।

मंजुल मूर्ति मोहन ममता की।।


मुनि मन मोहन मोहन मोहनि

मधुर मनोहर मूरति सोहनि।।


अविरलप्रेम अमिय रस दोहनि

प्रिय अति सदा सखी ललिता की।।


आरती श्री वृषभानुसुता की।

मंजुल मूर्ति मोहन ममता की।।


संतत सेव्य सत मुनि जनकी

आकर अमित दिव्यगुन गनकी।।


आकर्षिणी कृष्ण तन मन की

अति अमूल्य सम्पति समता की।।


आरती श्री वृषभानुसुता की।

मंजुल मूर्ति मोहन ममता की।।


कृष्णात्मिका कृष्ण सहचारिणि

चिन्मयवृन्दा विपिन विहारिणि।।


जगज्जननि जग दुःखनिवारिणि

आदि अनादि शक्ति विभुता की।।


आरती श्री वृषभानुसुता की।

मंजुल मूर्ति मोहन ममता की।।

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श्री राधे वृषभानुजा  भक्तनि प्राणाधार || Shri Radhe Vrishbhanuja || Shri Radha Chalisa || Radha Stuti || Radha Keertan || श्री राधा चालीसा

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श्री राधा चालीसा || श्री राधे वृषभानुजा भक्तनि प्राणाधार || Shri Radhe Vrishbhanuja || Shri Radha Chalisa || Radha Stuti || Radha Keertan

श्री राधा चालीसा // श्री राधे वृषभानुजा  भक्तनि प्राणाधार //Shri Radhe Vrishbhanuja//Shri Radha Chalisa//Radha Stuti//Radha Keertan 


।।दोहा ।।

श्री राधे वृषभानुजा

भक्तनि प्राणाधार ।

वृन्दाविपिन विहारिणी

प्राणवौ बारम्बार ।।


जैसो तैसो रावरौ

कृष्ण प्रिया सुखधाम।

चरण शरण निज दीजिये

सुन्दर सुखद ललाम ।।


।। चौपाई ।।

जय वृषभान कुँवरि श्री श्यामा ।

कीरति नंदिनी शोभा धामा ॥


नित्य विहारिनि रस विस्‍तारिनि ।

अमित मोद मंगल दातारा ।।


रास विलासिनि रस विस्तारिनि ।

सहचरि सुभग यूथ मन भावनि।।


नित्य किशोरी राधा गोरी ।

श्याम प्रन्नाधन अति जिया भोरी ।।


करुना सागर हिय उमंगिनी ।

ललितादिक सखियन की संगिनि ।।


दिनकर कन्या कूल विहारिनि ।

कृष्ण प्राण प्रिय हिय हुलसावनि ।।


नित्य श्याम तुमरौ गुण गावैं ।

राधा राधा कहि हरषावैं ।।


मुरली में नित नाम उचारें ।

तुम कारण लीला वपु धारें ।।


प्रेम स्वरूपिणी अति सुकुमारी ।

श्याम प्रिया वृषभानु दुलारी ।।


नवल किशोरी अति छवि धामा ।

द्युति लघु लगै कोटि रति कामा ।।


गौरांगी शशि निंदक वदना ।

सुभग चपल अनियारे नैना ।।


जावक युत युग पंकज चरना ।

नूपुर ध्वनि प्रीतम मन हरना ।।


सन्‍तत सहचरि सेवा करहीं ।

महा मोद मंगल मन भरहीं ।।


रसिकन जीवन प्राण अधारा ।

राधा नाम सकल सुख सारा ।।


अगम अगोचर नित्य स्वरूपा ।

ध्यान धरत निशिदिन ब्रजभूपा ।।


उपजेउ जासु अंश गुण खानी ।

कोटिन उमा रमा ब्रह्मनी ।।


नित्य धाम गोलोक विहारिनि ।

जन रक्षक दुःख दोष नसावनि ।।


शिव अज मुनि सनकादिक नारद ।

पार न पॉंइ शेष अरु शारद ।।


राधा शुभ गुण रूप उजारी ।

निरखि प्रसन्‍न होता बनवारी ।।


ब्रज जीवन धन राधा रानी ।

महिमा अमित न जाय बखानी ।।


प्रीतम संग देइ गल बाहीं ।

बिहरत नित वृन्दावन माहीं ।।


राधा कृष्ण कृष्ण कहैं राधा ।

एक रूप दोउ प्रीति अगाधा ।।


श्री राधा मोहन मन हरनी ।

जन सुख दायक प्रफुलित बदनी ।।


कोटिक रूप धरें नन्द नन्‍दा ।

दरश करन हित गोकुल चन्‍दा ।।


रास केलि कर तुम्हें रिझावें ।

मान करौ जब अति दुःख पावें ।।


प्रफुलित होत दर्श जब पावें ।

विविध भांति नित विनय सुनावें ।।


वृन्‍दारण्‍य विहारिणि श्यामा ।

नाम लेत पूरण सब कामा ।।


कोटिन यज्ञ तपस्या करहूँ ।

विविध नेम व्रत हिय में धरहूँ  ।।


तउ न श्याम भक्ताहिं अहनावें ।

जब लगि राधा नाम न गावें ।।


वृंदाविपिन स्वामिनी राधा ।

लीला वपु तव अमित अगाधा ।।


स्वयं कृष्ण पावहिं नहिं पारा ।

और तुम्‍हैं को जानन हारा ।।


श्रीराधा रस प्रीती अभेदा ।

सादर गान करत नित वेदा ।।


राधा त्यागि कृष्ण को भजिहैं ।

ते सपनेहुँ जग जलधि न तरिहैं ।।


कीरति कुँवरि लाडली राधा ।

सुमिरत सकल मिटहिं भव बाधा।। 


नाम अमंगल मूल नासवन।

विविध ताप हर हरि मनभावन।।


राधा नाम ले जो कोई ।

सहजहिं दामोदर वश होई ।।


राधा नाम परम सुखदायी ।

भजतहिं कृपा करहिं यदुराई ।।


यशुमति नंदन पीछे फिरहैं ।

जो कोउ राधा नाम सुमिरिहैं ।।


रास विहारिनि श्यामा प्यारी ।

करहुँ कृपा बरसाने वारी ।।


वृन्दावन है शरण तिहारी ।

जय जय जय वृशभानु दुलारी ।।


।। दोहा ।।

श्री राधा सर्वेश्वरी रसिकेश्वर धनश्याम ।

करहुँ निरंतर बास मैं श्री वृन्दावन धाम ।।

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आरती श्री वृषभानुसुता की // Aarati Shri Vrishbhanusuta Ki // Shri Radha Ji Ki Aarti // Radha Rani Ji Ki Aarti // Shri Radha Stuti // Shri Radha Sarkar Ki Aarti

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बुधवार, 24 नवंबर 2021

श्री शीतला माता की चालीसा || जय जय माता शीतला तुमहिं धरै जो ध्यान || Shri Sheetala Chalisa || Jay Jay Mata Sheetala || Sheetala Stuti

 श्री शीतला माता की चालीसा // जय जय माता शीतला  तुमहिं धरै जो ध्यान // Shri Sheetala Chalisa // Jay Jay Mata Sheetala // Sheetala Stuti 

श्री शीतला धाम कड़े कौशाम्‍बी उ०प्र०

।।दोहा।।


जय जय माता शीतला

तुमहिं धरै जो ध्यान।

होय विमल शीतल हृदय

विकसै बंद्धि बल ज्ञान।।


घट -घट वासी शीतला

शीतल प्रभा तुम्हार।

शीतल छइयां में झुलइ

मइया पलना डार।।


।। चौपाई ।।


जय-जय- जय श्री शीतला भवानी।

जय जग जननि सकल गुणखानी।


गृह -गृह शक्ति तुम्हारी राजित।

पूरण शरद चंद्र सम साजित।।


विस्फोटक से जलत शरीरा।

शीतल करत हरत सब पीरा।।


मात शीतला तव शुभनामा।

सबके गाढे आवहिं कामा।।


शोकहरी शंकरी भवानी।

बाल-प्राणक्षरी सुख दानी।।


शुचि मार्जनी कलश कर राजै।

मस्तक तेज सूर्य सम राजै।।


चौसठ योगिन संग में गावैं।

वीणा ताल मृदंग बजावै।।


नृत्य नाथ भैरौं दिखलावैं।

सहज शेष शिव पार ना पावैं।।


धन्य धन्य धात्री महारानी।

सुरनर मुनि तव सुयश बखानी।।


ज्वाला रूप महा बलकारी।

दैत्य एक विस्फोटक भारी।।


घर घर प्रविशत कोई न रक्षत।

रोग रूप धरि बालक भक्षत।।


हाहाकार मच्यो जगभारी।

सक्यो न जब यह संकट टारी।।


तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा।

कर में लिये मार्जनी सूपा।।


विस्फोटकहिं पकड़ि कर लीन्हो।

मूसल प्रमाण बहुविधि कीन्हो।।


बहुत प्रकार वह विनती कीन्हा।

मैय्या नहिं भल मैं कछु कीन्हा।।


अबनहिं मातु काहु गृह जइहौं।

जहँ अपवित्र वही घर रहिहौं।।


भभकत तन शीतल भय जइहौं।

विस्फोटक भय घोर नसइहौं ।।


श्री शीतलहिं भजे कल्याना।

वचन सत्य भाषे भगवाना।।


विस्फोटक भय जिहि गृह भाई।

भजै देवि कहँ यही उपाई।।


कलश शीतला का सजवावै।

द्विज से विधिवत पाठ करावै।।


तुम्हीं शीतला, जग की माता।

तुम्हीं पिता जग की सुखदाता।।


तुम्हीं जगद्धात्री सुखसेवी।

नमो नमामी शीतले देवी।।


नमो सुखकरनी दु:खहरणी।

नमो- नमो जगतारणि धरणी।।


नमो नमो त्रैलोक्य वंदिनी।

दुखदारिद्रक निकंदिनी।।


श्री शीतला , शेढ़ला, महला।

रुणलीहृणनी मातृ मंदला।।


हो तुम दिगम्बर तनुधारी।

शोभित पंचनाम असवारी।।


रासभ, खर , बैसाख सुनंदन।

गर्दभ दुर्वाकंद निकंदन।।


सुमिरत संग शीतला माई।

जाही सकल सुख दूर पराई।।


गलका, गलगन्डादि जु होई।

ताकर मंत्र न औषधि कोई।।


एक मातु जी का आराधन।

और नहीं कोई है साधन।।


निश्चय मातु शरण जो आवै।

निर्भय मन इच्छित फल पावै।।


कोढी निर्मल काया धारै।

अंधा दृग निज दृष्टि निहारै।।


बंध्या नारी पुत्र को पावै।

जन्म दरिद्र धनी होइ जावै।।


मातु शीतला के गुण गावत।

लखा मूक को छंद बनावत।।


यामे कोई करै जनि शंका।

जग में मैया का ही डंका।।


भगत कमल प्रभुदासा।

तट प्रयाग से पूरब पासा।।


ग्राम तिवारी पूर मम बासा।

ककरा गंगा तट दुर्वासा ।।


अब विलंब मैं तोहि पुकारत।

मातृ कृपा कौ बाट निहारत।।


पड़ा द्वार सब आस लगाई।

अब सुधि लेत शीतला माई।।


।।  दोहा ।।


यह चालीसा शीतला

पाठ करे जो कोय।


सपनें दुख व्यापे नही

नित सब मंगल होय।

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श्री शीतला माता की आरती || जय शीतला माता || Shri Shitala Mata Ki Aarti || Jay Sheetala Mata || Aarti Lyrics in Hindi 

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मंगलवार, 23 नवंबर 2021

आरति श्री कुण्‍डेश्‍वर हर की || Aarti Shri Kundeshwar har Ki || Shiv Stuti || Kundeshwar Dham Tikamgarh

आरति श्री कुण्‍डेश्‍वर हर की || Aarti Shri Kundeshwar har Ki || Shiv Stuti || Kundeshwar Dham Tikamgarh


श्री कुण्‍डेश्‍वर धाम || Shri Kundeshwar Dham Tikamgarh

श्री कुण्‍डेश्‍वर धाम मध्‍यप्रदेश के टीकमगढ़ मुख्‍यालय से ललितपुर जाने वाले मार्ग पर लगभग 6 किमी दूर स्थित एक अति प्राचीन एवं पौराणिक तीर्थस्‍थल है। यह पवित्र स्‍थल विन्‍ध्‍य पर्वत की श्रेणियों पर जमड़ार नदी के तट पर स्थित है। टीकमगढ़ मुख्‍यालय सड़क मार्ग एवं रेलमार्ग के द्वारा सागर, छतरपुर, जबलपुर, दमोह, झॉंसी, ललितपुर तथा झॉंसी होते हुए प्रयागराज से जुड़ा हुआ है। ओरछा के प्रसिद्ध श्री रामराज मन्दिर से यह मात्र 100 किमी की दूरी पर स्थित है और श्री रामराजा मन्दिर के मुख्‍य द्वार से ही टीकमगढ़ के लिए बस सेवा उपलब्‍ध है। टीकमगढ़ मुख्‍यालय से मन्दिर जाने के लिए अनेक तरह के वाहन उपलब्‍ध रहते हैं। मन्दिर की देखरेख हेतु एक लोकन्‍यास की स्‍थापना की गयी है जो कि श्री श्री 108 श्री आशुतोश अपर्णा धर्म सेतु के नाम से श्री कुण्‍डेश्‍वर महादेव की सेवा में सतत तत्‍पर है। आप जब भी ओरछा पधारें तो श्री कुण्‍डेश्‍वर महादेव के दर्शन का लाभ ले सकते हैं। मन्दिर प्रबन्‍धन की ओर से यात्रियों के ठहरने की व्‍यवस्‍था भी मन्दिर प्रबन्‍धन द्वारा की जाती है। मन्दिर परिसर में स्थित कार्यालय में सम्‍पर्क करके समस्‍त सुविधाओं का लाभ लिया जा सकता है। इस मन्दिर में प्रतिदिन भगवान भोले नाथ की अनेकों प्रकार से स्‍तुति एवं अभिषेक किया जाता है उनमें से एक मंगल आरती यहॉं प्रस्‍तुत की जा रही है। ऐसा बताया गया कि इस आरती की रचना ओरछा राजपरिवार के राजगुरु पं० कपिलदुव तैलंग जी के द्वारा की गयी है-



आरति श्री कुण्‍डेश्‍वर हर की।

आरति विमल चन्‍द्रशेखर की।।


शैल सुता वामांग विराजें।

नन्‍दीश्‍वर गणपति शुभ साजें।

अनुपम छवि कामादिक लाजें।

शूलपाणि पशुपति शिव हर की।

आरति श्री कुण्‍डेश्‍वर हर की।।


गंगा सम जमड़ार वहति है।

कल-कल मिस कल कीर्ति कहति है।

दर्शन कर सुख शान्ति मिलत‍ि है।

शोभा ललित कलानिधि हर की।

आरति श्री कुण्‍डेश्‍वर हर की।।


स्‍वयं प्रकट अद्भुत छवि धारी।

महिमा अमित अतुल सुखकारी।

अर्चन भजन सकल अघहारी।

जय-जय मान-दान श्री हर की।

आरति श्री कुण्‍डेश्‍वर हर की।।


सभी प्रेम से बोलो कुण्‍डेश्‍वर महादेव की जय।

सोमवार, 22 नवंबर 2021

जानकी जी की स्‍तुति || Janki Ji Ki Stuti || भइ प्रगट किशोरी || Bhai Prakat Kishori || Sita Mata Ki Stuti

जानकी जी की स्‍तुति || Janki Ji Ki Stuti ||  भइ प्रगट किशोरी || Bhai Prakat Kishori || Sita Mata Ki Stuti 

भइ प्रगट किशोरी,

धरनि निहोरी,

जनक नृपति सुखकारी।


अनुपम बपुधारी,

रूप सँवारी,

आदि शक्ति सुकुमारी।


मनि कनक सिंघासन,

कृतवर आसन,

शशि शत शत उजियारी।


शिर मुकुट बिराजे,

भूषन साजे,

नृप लखि भये सुखारी।


सखि आठ सयानी,

मन हुलसानी,

सेवहिं शील सुहाई।


नरपति बड़भागी,

अति अनुरागी,

अस्तुति कर मन लाई।


जय जय जय सीते,

श्रुतिगन गीते,

जेहिं शिव शारद गाई।


सो मम हित करनी,

भवभय हरनी,

प्रगट भईं श्री आई।


नित रघुवर माया,

भुवन निकाया,

रचइ जासु रुख पाई।


सोइ अगजग माता,

निज जनत्राता,

प्रगटी मम ढिग आई।


कन्या तनु लीजै,

अतिसुख दीजै,

रुचिर रूप सुखदाई।


शिशु लीला करिये,

रुचि अनुसरिये,

मोरि सुता हरषाई।


सुनि भूपति बानी,

मन मुसुकानी,

बनी सुता शिशु सीता।


तब रोदन ठानी,

सुनि हरषानी,

रानी परम बिनीता।


लिये गोद सुनैना,

जल भरि नैना,

नाचत गावत गीता।


यह सुजस जे गावहिं,

श्रीपद पावहिं,

ते न होहिं भव भीता।


दोहा

रामचन्द्र सुख करन हित,

प्रगटि मख महि सीय।


"गिरिधर" स्वामिनि जग जननि,

चरित करत कमनीय।।


जनकपुर जनकलली जी की जय

अयोध्या रामजी लला की जय

(समस्‍त चित्र गूगल से साभार)

शुक्रवार, 12 नवंबर 2021

श्री भागवत जी की आरती || आरती अतिपावन पुराण की || Shri Bhagwat Ji Ki Aarti || Aarti Ati Pawan Puran Ki ||

श्री भागवत जी की आरती || आरती अतिपावन पुराण की || Shri Bhagwat Ji Ki Aarti || Aarti Ati Pawan Puran Ki || 



आरती अतिपावन पुराण की।

धर्म भक्ति विज्ञान खान की।।


महापुराण भागवत निर्मल।

शुक-मुख-विगलित निगम-कल्प-फल।।

परमानन्द-सुधा रसमय फल।

लीला रति रस रसिनधान की।।

आरती अतिपावन पुराण की।

धर्म भक्ति विज्ञान खान की।।


कलिमल मथनि त्रिताप निवारिणी।

जन्म मृत्युमय भव भयहारिणी ।।

सेवत सतत सकल सुखकारिणी।

सुमहौषधि हरि चरित गान की।।

आरती अतिपावन पुराण की।

धर्म भक्ति विज्ञान खान की।।


विषय विलास विमोह विनाशिनी।

विमल विराग विवेक विनाशिनी।।

भागवत तत्व रहस्य प्रकाशिनी।

परम ज्योति परमात्मा ज्ञान को।।

आरती अतिपावन पुराण की।

धर्म भक्ति विज्ञान खान की।।


परमहंस मुनि मन उल्लासिनी।

रसिक ह्रदय रस रास विलासिनी।।

भुक्ति मुक्ति रति प्रेम सुदासिनी।

कथा अकिंचन प्रिय सुजान की।।

आरती अतिपावन पुराण की।

धर्म भक्ति विज्ञान खान की।।

गुरुवार, 11 नवंबर 2021

श्रीकाशीविश्वनाथाष्टकम् || Shri Kashi Vishwanathashtakam || Lord Shiv Stuti || गङ्गातरंगरमणीयजटाकलापं || Gangatarangramniyaratakalapam

श्रीकाशीविश्वनाथाष्टकम् || Shri Kashi Vishwanathashtakam || Lord Shiv Stuti || गङ्गातरंगरमणीयजटाकलापं || Gangatarangramniyaratakalapam

(श्री काशी विश्‍वनाथ जी, वाराणसी, उ०प्र०)

गङ्गातरंगरमणीयजटाकलापं

गौरीनिरन्तरविभूषितवामभागम् ।

नारायणप्रियमनंगमदापहारं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥१॥


वाचामगोचरमनेकगुणस्वरूपं

वागीशविष्णुसुरसेवितपादपीठम् ।

वामेनविग्रहवरेणकलत्रवन्तं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥२॥


भूताधिपं भुजगभूषणभूषितांगं

व्याघ्राजिनांबरधरं जटिलं त्रिनेत्रम् ।

पाशांकुशाभयवरप्रदशूलपाणिं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥३॥


शीतांशुशोभितकिरीटविराजमानं

भालेक्षणानलविशोषितपंचबाणम् ।

नागाधिपारचितभासुरकर्णपूरं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥४॥


पंचाननं दुरितमत्तमतङ्गजानां

नागान्तकं दनुजपुंगवपन्नगानाम् ।

दावानलं मरणशोकजराटवीनां

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥५॥


तेजोमयं सगुणनिर्गुणमद्वितीयं

आनन्दकन्दमपराजितमप्रमेयम् ।

नागात्मकं सकलनिष्कलमात्मरूपं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥६॥


रागादिदोषरहितं स्वजनानुरागं

वैराग्यशान्तिनिलयं गिरिजासहायम् ।

माधुर्यधैर्यसुभगं गरलाभिरामं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥७॥


आशां विहाय परिहृत्य परस्य निन्दां

पापे रतिं च सुनिवार्य मनः समाधौ ।

आदाय हृत्कमलमध्यगतं परेशं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥८॥


॥ फलश्रुति ॥

वाराणसीपुरपतेः स्तवनं शिवस्य

व्याख्यातमष्टकमिदं पठते मनुष्यः ।

विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं

सम्प्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम् ॥


विश्वनाथाष्टकमिदं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।

शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥

॥ इति श्रीमहर्षिव्यासप्रणीतं श्रीविश्वनाथाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

श्री काशी विश्‍वनाथ धाम गलियारा || Shri Kashi Vishwanath Corridor
तस्‍वीरें गूगल से साभार

बुधवार, 10 नवंबर 2021

श्री राम चालीसा || श्री रघुबीर भक्‍त हितकारी || राम भजन || shri Ram Chalisa || Shri Raghubeer Bhakt Hitkari || Ram Bhajan || Lyrics in Hindi Sanskrit

श्री राम चालीसा || श्री रघुबीर भक्‍त हितकारी || राम भजन || shri Ram Chalisa || Shri Raghubeer Bhakt Hitkari || Ram Bhajan || Lyrics in Hindi Sanskrit


॥ दोहा ॥

आदौ राम तपोवनादि गमनं हत्वाह् मृगा काञ्चनं।

वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव संभाषणं।।

बाली निर्दलं समुद्र तरणं लङ्कापुरी दाहनम्।

पश्चद्रावनं कुम्भकर्णं हननं एतद्धि रामायणं।।


॥ चौपाई ॥

श्री रघुबीर भक्त हितकारी ।

सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥१

निशि दिन ध्यान धरै जो कोई ।

ता सम भक्त और नहिं होई ॥२


ध्यान धरे शिवजी मन माहीं ।

ब्रह्मा इन्द्र पार नहिं पाहीं ॥३

जय जय जय रघुनाथ कृपाला ।

सदा करो सन्तन प्रतिपाला ॥४


दूत तुम्हार वीर हनुमाना ।

जासु प्रभाव तिहूँ पुर जाना ॥५

तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला ।

रावण मारि सुरन प्रतिपाला ॥६


तुम अनाथ के नाथ गोसाईं ।

दीनन के हो सदा सहाई ॥७

ब्रह्मादिक तव पार न पावैं ।

सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ॥८


चारिउ वेद भरत हैं साखी ।

तुम भक्तन की लज्जा राखी ॥९

गुण गावत शारद मन माहीं ।

सुरपति ताको पार न पाहीं ॥ १० ॥


नाम तुम्हार लेत जो कोई ।

ता सम धन्य और नहिं होई ॥११

राम नाम है अपरम्पारा ।

चारिहु वेदन जाहि पुकारा ॥१२


गणपति नाम तुम्हारो लीन्हों ।

तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हों ॥१३

शेष रटत नित नाम तुम्हारा ।

महि को भार शीश पर धारा ॥१४


फूल समान रहत सो भारा ।

पावत कोउ न तुम्हरो पारा ॥१५

भरत नाम तुम्हरो उर धारो ।

तासों कबहुँ न रण में हारो ॥१६


नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा ।

सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ॥१७

लषन तुम्हारे आज्ञाकारी ।

सदा करत सन्तन रखवारी ॥१८


ताते रण जीते नहिं कोई ।

युद्ध जुरे यमहूँ किन होई ॥१९

महा लक्ष्मी धर अवतारा ।

सब विधि करत पाप को छारा ॥२०॥


सीता राम पुनीता गायो ।

भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ॥२१

घट सों प्रकट भई सो आई ।

जाको देखत चन्द्र लजाई ॥२२


सो तुमरे नित पांव पलोटत ।

नवो निद्धि चरणन में लोटत ॥२३

सिद्धि अठारह मंगल कारी ।

सो तुम पर जावै बलिहारी ॥२४


औरहु जो अनेक प्रभुताई ।

सो सीतापति तुमहिं बनाई ॥२५

इच्छा ते कोटिन संसारा ।

रचत न लागत पल की बारा ॥२६


जो तुम्हरे चरनन चित लावै ।

ताको मुक्ति अवसि हो जावै ॥२७

सुनहु राम तुम तात हमारे ।

तुमहिं भरत कुल- पूज्य प्रचारे ॥२८


तुमहिं देव कुल देव हमारे ।

तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ॥२९

जो कुछ हो सो तुमहीं राजा ।

जय जय जय प्रभु राखो लाजा ॥३०॥


रामा आत्मा पोषण हारे ।

जय जय जय दशरथ के प्यारे ॥३१

जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा ।

निगुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा ॥३२


सत्य सत्य जय सत्य- ब्रत स्वामी ।

सत्य सनातन अन्तर्यामी ॥३३

सत्य भजन तुम्हरो जो गावै ।

सो निश्चय चारों फल पावै ॥३४


सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं ।

तुमने भक्तहिं सब सिद्धि दीन्हीं ॥३५

ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा ।

नमो नमो जय जापति भूपा ॥३६


धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा ।

नाम तुम्हार हरत संतापा ॥३७

सत्य शुद्ध देवन मुख गाया ।

बजी दुन्दुभी शंख बजाया ॥३८


सत्य सत्य तुम सत्य सनातन ।

तुमहीं हो हमरे तन मन धन ॥३९

याको पाठ करे जो कोई ।

ज्ञान प्रकट ताके उर होई ॥४०॥


आवागमन मिटै तिहि केरा ।

सत्य वचन माने शिव मेरा ॥

और आस मन में जो ल्यावै ।

तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ॥


साग पत्र सो भोग लगावै ।

सो नर सकल सिद्धता पावै ॥

अन्त समय रघुबर पुर जाई ।

जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥


श्री हरि दास कहै अरु गावै ।

सो वैकुण्ठ धाम को पावै ॥


॥ दोहा ॥

सात दिवस जो नेम कर पाठ करे चित लाय ।

हरिदास हरिकृपा से अवसि भक्ति को पाय ॥


राम चालीसा जो पढ़े रामचरण चित लाय ।

जो इच्छा मन में करै सकल सिद्ध हो जाय ॥