बुधवार, 10 नवंबर 2021

श्री राम चालीसा || श्री रघुबीर भक्‍त हितकारी || राम भजन || shri Ram Chalisa || Shri Raghubeer Bhakt Hitkari || Ram Bhajan || Lyrics in Hindi Sanskrit

श्री राम चालीसा || श्री रघुबीर भक्‍त हितकारी || राम भजन || shri Ram Chalisa || Shri Raghubeer Bhakt Hitkari || Ram Bhajan || Lyrics in Hindi Sanskrit


॥ दोहा ॥

आदौ राम तपोवनादि गमनं हत्वाह् मृगा काञ्चनं।

वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव संभाषणं।।

बाली निर्दलं समुद्र तरणं लङ्कापुरी दाहनम्।

पश्चद्रावनं कुम्भकर्णं हननं एतद्धि रामायणं।।


॥ चौपाई ॥

श्री रघुबीर भक्त हितकारी ।

सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥१

निशि दिन ध्यान धरै जो कोई ।

ता सम भक्त और नहिं होई ॥२


ध्यान धरे शिवजी मन माहीं ।

ब्रह्मा इन्द्र पार नहिं पाहीं ॥३

जय जय जय रघुनाथ कृपाला ।

सदा करो सन्तन प्रतिपाला ॥४


दूत तुम्हार वीर हनुमाना ।

जासु प्रभाव तिहूँ पुर जाना ॥५

तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला ।

रावण मारि सुरन प्रतिपाला ॥६


तुम अनाथ के नाथ गोसाईं ।

दीनन के हो सदा सहाई ॥७

ब्रह्मादिक तव पार न पावैं ।

सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ॥८


चारिउ वेद भरत हैं साखी ।

तुम भक्तन की लज्जा राखी ॥९

गुण गावत शारद मन माहीं ।

सुरपति ताको पार न पाहीं ॥ १० ॥


नाम तुम्हार लेत जो कोई ।

ता सम धन्य और नहिं होई ॥११

राम नाम है अपरम्पारा ।

चारिहु वेदन जाहि पुकारा ॥१२


गणपति नाम तुम्हारो लीन्हों ।

तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हों ॥१३

शेष रटत नित नाम तुम्हारा ।

महि को भार शीश पर धारा ॥१४


फूल समान रहत सो भारा ।

पावत कोउ न तुम्हरो पारा ॥१५

भरत नाम तुम्हरो उर धारो ।

तासों कबहुँ न रण में हारो ॥१६


नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा ।

सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ॥१७

लषन तुम्हारे आज्ञाकारी ।

सदा करत सन्तन रखवारी ॥१८


ताते रण जीते नहिं कोई ।

युद्ध जुरे यमहूँ किन होई ॥१९

महा लक्ष्मी धर अवतारा ।

सब विधि करत पाप को छारा ॥२०॥


सीता राम पुनीता गायो ।

भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ॥२१

घट सों प्रकट भई सो आई ।

जाको देखत चन्द्र लजाई ॥२२


सो तुमरे नित पांव पलोटत ।

नवो निद्धि चरणन में लोटत ॥२३

सिद्धि अठारह मंगल कारी ।

सो तुम पर जावै बलिहारी ॥२४


औरहु जो अनेक प्रभुताई ।

सो सीतापति तुमहिं बनाई ॥२५

इच्छा ते कोटिन संसारा ।

रचत न लागत पल की बारा ॥२६


जो तुम्हरे चरनन चित लावै ।

ताको मुक्ति अवसि हो जावै ॥२७

सुनहु राम तुम तात हमारे ।

तुमहिं भरत कुल- पूज्य प्रचारे ॥२८


तुमहिं देव कुल देव हमारे ।

तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ॥२९

जो कुछ हो सो तुमहीं राजा ।

जय जय जय प्रभु राखो लाजा ॥३०॥


रामा आत्मा पोषण हारे ।

जय जय जय दशरथ के प्यारे ॥३१

जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा ।

निगुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा ॥३२


सत्य सत्य जय सत्य- ब्रत स्वामी ।

सत्य सनातन अन्तर्यामी ॥३३

सत्य भजन तुम्हरो जो गावै ।

सो निश्चय चारों फल पावै ॥३४


सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं ।

तुमने भक्तहिं सब सिद्धि दीन्हीं ॥३५

ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा ।

नमो नमो जय जापति भूपा ॥३६


धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा ।

नाम तुम्हार हरत संतापा ॥३७

सत्य शुद्ध देवन मुख गाया ।

बजी दुन्दुभी शंख बजाया ॥३८


सत्य सत्य तुम सत्य सनातन ।

तुमहीं हो हमरे तन मन धन ॥३९

याको पाठ करे जो कोई ।

ज्ञान प्रकट ताके उर होई ॥४०॥


आवागमन मिटै तिहि केरा ।

सत्य वचन माने शिव मेरा ॥

और आस मन में जो ल्यावै ।

तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ॥


साग पत्र सो भोग लगावै ।

सो नर सकल सिद्धता पावै ॥

अन्त समय रघुबर पुर जाई ।

जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥


श्री हरि दास कहै अरु गावै ।

सो वैकुण्ठ धाम को पावै ॥


॥ दोहा ॥

सात दिवस जो नेम कर पाठ करे चित लाय ।

हरिदास हरिकृपा से अवसि भक्ति को पाय ॥


राम चालीसा जो पढ़े रामचरण चित लाय ।

जो इच्छा मन में करै सकल सिद्ध हो जाय ॥

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