श्री शीतला माता की चालीसा // जय जय माता शीतला तुमहिं धरै जो ध्यान // Shri Sheetala Chalisa // Jay Jay Mata Sheetala // Sheetala Stuti
श्री शीतला धाम कड़े कौशाम्बी उ०प्र०
।।दोहा।।
जय जय माता शीतला
तुमहिं धरै जो ध्यान।
होय विमल शीतल हृदय
विकसै बंद्धि बल ज्ञान।।
घट -घट वासी शीतला
शीतल प्रभा तुम्हार।
शीतल छइयां में झुलइ
मइया पलना डार।।
।। चौपाई ।।
जय-जय- जय श्री शीतला भवानी।
जय जग जननि सकल गुणखानी।
गृह -गृह शक्ति तुम्हारी राजित।
पूरण शरद चंद्र सम साजित।।
विस्फोटक से जलत शरीरा।
शीतल करत हरत सब पीरा।।
मात शीतला तव शुभनामा।
सबके गाढे आवहिं कामा।।
शोकहरी शंकरी भवानी।
बाल-प्राणक्षरी सुख दानी।।
शुचि मार्जनी कलश कर राजै।
मस्तक तेज सूर्य सम राजै।।
चौसठ योगिन संग में गावैं।
वीणा ताल मृदंग बजावै।।
नृत्य नाथ भैरौं दिखलावैं।
सहज शेष शिव पार ना पावैं।।
धन्य धन्य धात्री महारानी।
सुरनर मुनि तव सुयश बखानी।।
ज्वाला रूप महा बलकारी।
दैत्य एक विस्फोटक भारी।।
घर घर प्रविशत कोई न रक्षत।
रोग रूप धरि बालक भक्षत।।
हाहाकार मच्यो जगभारी।
सक्यो न जब यह संकट टारी।।
तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा।
कर में लिये मार्जनी सूपा।।
विस्फोटकहिं पकड़ि कर लीन्हो।
मूसल प्रमाण बहुविधि कीन्हो।।
बहुत प्रकार वह विनती कीन्हा।
मैय्या नहिं भल मैं कछु कीन्हा।।
अबनहिं मातु काहु गृह जइहौं।
जहँ अपवित्र वही घर रहिहौं।।
भभकत तन शीतल भय जइहौं।
विस्फोटक भय घोर नसइहौं ।।
श्री शीतलहिं भजे कल्याना।
वचन सत्य भाषे भगवाना।।
विस्फोटक भय जिहि गृह भाई।
भजै देवि कहँ यही उपाई।।
कलश शीतला का सजवावै।
द्विज से विधिवत पाठ करावै।।
तुम्हीं शीतला, जग की माता।
तुम्हीं पिता जग की सुखदाता।।
तुम्हीं जगद्धात्री सुखसेवी।
नमो नमामी शीतले देवी।।
नमो सुखकरनी दु:खहरणी।
नमो- नमो जगतारणि धरणी।।
नमो नमो त्रैलोक्य वंदिनी।
दुखदारिद्रक निकंदिनी।।
श्री शीतला , शेढ़ला, महला।
रुणलीहृणनी मातृ मंदला।।
हो तुम दिगम्बर तनुधारी।
शोभित पंचनाम असवारी।।
रासभ, खर , बैसाख सुनंदन।
गर्दभ दुर्वाकंद निकंदन।।
सुमिरत संग शीतला माई।
जाही सकल सुख दूर पराई।।
गलका, गलगन्डादि जु होई।
ताकर मंत्र न औषधि कोई।।
एक मातु जी का आराधन।
और नहीं कोई है साधन।।
निश्चय मातु शरण जो आवै।
निर्भय मन इच्छित फल पावै।।
कोढी निर्मल काया धारै।
अंधा दृग निज दृष्टि निहारै।।
बंध्या नारी पुत्र को पावै।
जन्म दरिद्र धनी होइ जावै।।
मातु शीतला के गुण गावत।
लखा मूक को छंद बनावत।।
यामे कोई करै जनि शंका।
जग में मैया का ही डंका।।
भगत कमल प्रभुदासा।
तट प्रयाग से पूरब पासा।।
ग्राम तिवारी पूर मम बासा।
ककरा गंगा तट दुर्वासा ।।
अब विलंब मैं तोहि पुकारत।
मातृ कृपा कौ बाट निहारत।।
पड़ा द्वार सब आस लगाई।
अब सुधि लेत शीतला माई।।
।। दोहा ।।
यह चालीसा शीतला
पाठ करे जो कोय।
सपनें दुख व्यापे नही
नित सब मंगल होय।
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