मंगलवार, 9 नवंबर 2021

श्री काली चालीसा || Shri Kali Chalisa || Kali Chalisa Lyrics in Hindi Free Download || जयकाली कलिमलहरण || Jaya Kali Kalimalharan || Jay Kali Kalkatte Wali

 श्री काली चालीसा || Shri Kali Chalisa || Kali Chalisa Lyrics in Hindi Free Download || जयकाली कलिमलहरण || Jaya Kali Kalimalharan || Jay Kali Kalkatte Wali


॥दोहा ॥


जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार ।

महिष मर्दिनी कालिका , देहु अभय अपार ॥

।। चौपाई।।

अरि मद मान मिटावन हारी । 

मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥

अष्टभुजी सुखदायक माता । 

दुष्टदलन जग में विख्याता ॥

भाल विशाल मुकुट छविछाजै । 

कर में शीश शत्रु का साजै ॥

दूजे हाथ लिए मधु प्याला । 

हाथ तीसरे सोहत भाला ॥

चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे । 

छठे त्रिशूलशत्रु बल जांचे ॥

सप्तम करदमकत असि प्यारी । 

शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥

अष्टम कर भक्तन वर दाता । 

जग मनहरण रूप ये माता ॥

भक्तन में अनुरक्त भवानी । 

निशदिन रटेंॠषी-मुनि ज्ञानी ॥

महशक्ति अति प्रबल पुनीता । 

तू ही काली तू ही सीता ॥

पतित तारिणी हे जग पालक । 

कल्याणी पापीकुल घालक ॥

शेष सुरेश न पावत पारा । 

गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥

तुम समान दाता नहिं दूजा । 

विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥

रूप भयंकर जब तुम धारा । 

दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥

नाम अनेकन मात तुम्हारे । 

भक्तजनों के संकट टारे ॥

कलि के कष्ट कलेशन हरनी । 

भव भय मोचन मंगल करनी ॥

महिमा अगम वेद यश गावैं । 

नारद शारद पार न पावैं ॥

भू पर भार बढ्यौ जब भारी । 

तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥

आदि अनादि अभय वरदाता । 

विश्वविदित भव संकट त्राता ॥

कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा । 

उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥

ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा । 

काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥

कलुआ भैंरों संग तुम्हारे । 

अरि हित रूप भयानक धारे ॥

सेवक लांगुर रहत अगारी । 

चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥

त्रेता में रघुवर हित आई । 

दशकंधर की सैन नसाई ॥

खेला रण का खेल निराला । 

भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥

रौद्र रूप लखि दानव भागे । 

कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥

तब ऐसौ तामस चढ़ आयो । 

स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥

ये बालक लखि शंकर आए । 

राह रोक चरनन में धाए ॥

तब मुख जीभ निकर जो आई । 

यही रूप प्रचलित है माई ॥

बाढ्यो महिषासुर मद भारी । 

पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥

करूण पुकार सुनी भक्तन की । 

पीर मिटावन हित जन-जन की ॥

तब प्रगटी निज सैन समेता । 

नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥

शुंभ निशुंभ हने छन माहीं । 

तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥

मान मथनहारी खल दल के । 

सदा सहायक भक्त विकल के ॥

दीन विहीन करैं नित सेवा । 

पावैं मनवांछित फल मेवा ॥

संकट में जो सुमिरन करहीं । 

उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥

प्रेम सहित जो कीरतिगावैं । 

भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥

काली चालीसा जो पढ़हीं । 

स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥

दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा । 

केहि कारणमां कियौ विलम्बा ॥

करहु मातु भक्तन रखवाली । 

जयति जयति काली कंकाली ॥

सेवक दीन अनाथ अनारी। 

भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥


॥ दोहा ॥

प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ ।

तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ ॥

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