शनिवार, 6 नवंबर 2021

श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र || Shri Shiv Panchakshar Stotra || Shiv Stotra || Nagendraharaya Trilochanayay Lyrics in Hindi Sanskrit || नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय

श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र || Shri Shiv Panchakshar Stotra || Shiv Stotra || Nagendraharaya Trilochanayay Lyrics in Hindi Sanskrit || नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय

श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्रम् – पाठ, अर्थ, महत्व और लाभ
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परिचय
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हिन्दू धर्म में भगवान शिव को भोलेनाथ, महादेव, शंकर, नीलकंठ, रूद्र आदि अनेक नामों से पूजा जाता है। शिव जी को त्रिदेवों में संहारक कहा गया है लेकिन वे सृष्टि के पालनहार और अनंत करुणा के स्रोत भी हैं। आदि शंकराचार्य जी द्वारा रचित शिव पंचाक्षर स्तोत्रम् एक अत्यंत पवित्र स्तोत्र है जिसमें “ॐ नमः शिवाय” मंत्र के पाँच अक्षरों (न, म, शि, व, य) का महत्व वर्णित है। इस स्तोत्र का पाठ करने से मन शुद्ध होता है, पाप नष्ट होते हैं, भक्ति और ज्ञान की प्राप्ति होती है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम इस स्तोत्र के श्लोक, अर्थ, लाभ, वैज्ञानिक दृष्टि और सामान्य प्रश्नों पर चर्चा करेंगे।
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श्लोकवार भावार्थ 
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1. नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय... : शिव जी नाग (सर्प) का हार धारण करते हैं, उनके तीन नेत्र हैं, वे भस्म से अंगों को सजाते हैं और सदैव शुद्ध, दिगम्बर स्वरूप में रहते हैं। इसलिए “न” अक्षर शिव को समर्पित है।
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2. मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय... : शिव जी गंगाजल और चंदन से पूजित हैं, नन्दी और भूतगण उनके सेवक हैं, तथा वे दिव्य पुष्पों से सुशोभित होते हैं। इसलिए “म” अक्षर शिव को समर्पित है।
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3. शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द... : शिव जी माता गौरी के मुखकमल के सूर्य हैं, वे दक्षयज्ञ के विनाशक हैं, नीलकंठ और वृषभ ध्वजधारी हैं। इसलिए “शि” अक्षर शिव को अर्पित है।
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4. वशिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य... :  जो मुनियों और देवताओं द्वारा पूजित हैं, जिनकी आँखें सूर्य, चन्द्र और अग्नि हैं, वे जगत के शिखर हैं। इसलिए “व” अक्षर शिव को समर्पित है।
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5. यक्षस्वरूपाय जटाधराय... : जो यक्षस्वरूप धारण करते हैं, जिनकी जटाओं से गंगा प्रवाहित होती है, जो पिनाक धनुष धारण करते हैं, वे अनादि और सनातन हैं। इसलिए “य” अक्षर शिव को अर्पित है।
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6. फलश्रुति : जो भक्त शिव जी के सम्मुख इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह शिवलोक की प्राप्ति करता है और शिव के साथ आनंद में निवास करता है।
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शिव पंचाक्षर स्तोत्र पाठ के लाभ
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मन शुद्धि और पाप नाश – पुराने पाप मिटते हैं और मन निर्मल होता है।
घर में मंगल और शांति – परिवार में शांति और सौहार्द स्थापित होता है।
आरोग्य और रोगमुक्ति – रोग-दुःख दूर होते हैं।
ज्ञान और भक्ति – अध्यात्मिक उन्नति और बुद्धि-विवेक में वृद्धि होती है।
शिव कृपा की प्राप्ति – जीवन में सफलता और शिव जी की विशेष कृपा मिलती है।
मोक्ष की प्राप्ति – अंततः शिवलोक और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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शिव पंचाक्षर स्तोत्र : वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि
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“ॐ नमः शिवाय” मंत्र के पाँच अक्षर (न, म, शि, व, य) मानव शरीर के पाँच तत्वों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश – का प्रतीक हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से शरीर और मस्तिष्क में ध्वनि कंपन (vibrations) फैलते हैं जो तनाव और चिंता को दूर करते हैं। नियमित पाठ से सकारात्मक ऊर्जा, मानसिक शांति और आत्मबल प्राप्त होता है।
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शिव पंचाक्षर स्तोत्रम् केवल एक प्रार्थना नहीं बल्कि एक दिव्य साधना है। इसमें ॐ नमः शिवाय मंत्र के पाँच अक्षरों का गहन महत्व छिपा है। इसका पाठ करने से पापों का नाश, रोगमुक्ति, घर में शांति, ज्ञान की प्राप्ति और अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है। आदि शंकराचार्य जी द्वारा रचित यह स्तोत्र हर शिवभक्त को जीवन में अवश्य अपनाना चाहिए।
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शिव पंचाक्षर स्तोत्र से जुड़े 10 महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQs)
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Q1: शिव पंचाक्षर स्तोत्र किसने लिखा था?
इसे आदि शंकराचार्य जी ने रचा था।
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Q2: पंचाक्षर का अर्थ क्या है?
“पंचाक्षर” का अर्थ है पाँच अक्षर। यहाँ यह “ॐ नमः शिवाय” मंत्र के पाँच अक्षरों (न, म, शि, व, य) को दर्शाता है।
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Q3: शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?
सुबह स्नान के बाद, शिवलिंग या शिव प्रतिमा के सामने। सोमवार और महाशिवरात्रि पर इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।
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Q4: शिव पंचाक्षर स्तोत्र पढ़ने से क्या लाभ मिलता है?
पापों का नाश, मानसिक शांति, रोगों से मुक्ति, घर में सुख-शांति, भक्ति और ज्ञान की वृद्धि तथा अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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Q5: क्या स्त्रियाँ भी इसका पाठ कर सकती हैं?
हाँ, हर कोई – स्त्री, पुरुष, गृहस्थ या संन्यासी – इस स्तोत्र का पाठ कर सकता है।
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Q6: क्या इसे मन ही मन पढ़ सकते हैं?
जी हाँ, शिव पंचाक्षर स्तोत्र को ऊँचे स्वर में या मन ही मन पढ़ सकते हैं। भाव और श्रद्धा सबसे महत्वपूर्ण हैं।
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Q7: क्या इस स्तोत्र को रोज़ पढ़ना ज़रूरी है?
रोज़ पढ़ना उत्तम है, परंतु केवल सोमवार या शिवरात्रि पर भी इसका पाठ करने से अत्यधिक फल प्राप्त होता है।
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Q8: पंचाक्षरी मंत्र और पंचाक्षर स्तोत्र में क्या अंतर है?
पंचाक्षरी मंत्र “ॐ नमः शिवाय” है। जबकि पंचाक्षर स्तोत्र इस मंत्र के पाँच अक्षरों का स्तुति रूप में विस्तार है।
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Q9: क्या इसे पाठ करने के लिए कोई विशेष नियम है?
स्वच्छता, श्रद्धा और एकाग्र मन आवश्यक है। पाठ करते समय पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करना श्रेष्ठ माना गया है।
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Q10: क्या शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ करने से मोक्ष मिलता है?
हाँ, शास्त्रों में कहा गया है कि इस स्तोत्र के नियमित पाठ से भक्त शिवलोक जाता है और अंततः मोक्ष प्राप्त करता है।
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नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय 

भस्मांग रागाय महेश्वराय।

नित्याय शुद्धाय दिगंबराय 

तस्मे “न” काराय नमः शिवायः॥


मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय 

नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।

मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय 

तस्मे “म” काराय नमः शिवायः॥


शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय 

दक्षाध्वरनाशकाय।

श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय 

तस्मै “शि” काराय नमः शिवायः॥


वषिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमाय 

मुनींद्र देवार्चित शेखराय।

चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय 

तस्मै “व” काराय नमः शिवायः॥


यक्षस्वरूपाय जटाधराय 

पिनाकस्ताय सनातनाय।

दिव्याय देवाय दिगंबराय 

तस्मै “य” काराय नमः शिवायः॥


पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ।

शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥


॥ इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं 

श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

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Nāgendrahārāya trilochanāya
Bhasmāṅg rāgāya Maheshwarāya।
Nityāya shuddhāya digambarāya
Tasmai "Na" kārāya Namah Shivāyah॥
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Mandākinī salil chandan charchitāya
Nandīshwar pramathanāth Maheshwarāya।
Mandārapushpa bahupushpa supūjitāya
Tasmai "Ma" kārāya Namah Shivāyah॥
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Shivāya Gauri vadanābja-vrinda sūryāya
Dakshādhvaranāshakāya।
Shri Nīlakaṇṭhāya vrishabhaddhajaya
Tasmai "Shi" kārāya Namah Shivāyah॥
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Vashishṭha kumbhodbhav Gautamāya
Munīndra devārchit shekharāya।
Chandrārka vaishvānara lochanāya
Tasmai "Va" kārāya Namah Shivāyah॥
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Yakṣasvarūpāya jaṭādharāya
Pinākastāya sanātanāya।
Divyāya devāya digambarāya
Tasmai "Ya" kārāya Namah Shivāyah॥
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Panchākṣharam idam puṇyam yah paṭhet Shiva sannidhau।
Shivalokam avāpnoti Shivena saha modate॥
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॥ Iti Shrīmachchhankarāchāryavirachitam
Shrī Shiva-Panchākṣhar Stotram sampūrṇam॥
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