आरति कीजै जनक-ललीकी | श्रीजानकीजी की आरती | Arati Kije Janak Lali Ki | Shri Janki Ji Ki Aarti Lyrics in Hindi
आरति कीजै जनक-ललीकी।
राममधुपमन कमल-कलीकी ॥
रामचंद्र मुखचंद्र चकोरी।
अंतर साँवर बाहर गोरी।।
सकल सुमंगल सुफल फलीकी ॥
*****
पिय दृगमृग जुग बंधन डोरी ।
पीय प्रेम रस-राशि किशोरी ।।
पिय मन गति विश्राम थलीकी ।
रूप-रास-गुननिधि जग स्वामिनि।।
प्रेम प्रबीन राम अभिरामिनि ।।
सरबस धन 'हरिचंद' अलीकी ।।
*****
राममधुपमन कमल-कलीकी ॥
रामचंद्र मुखचंद्र चकोरी।
अंतर साँवर बाहर गोरी।।
सकल सुमंगल सुफल फलीकी ॥
*****
पिय दृगमृग जुग बंधन डोरी ।
पीय प्रेम रस-राशि किशोरी ।।
पिय मन गति विश्राम थलीकी ।
रूप-रास-गुननिधि जग स्वामिनि।।
प्रेम प्रबीन राम अभिरामिनि ।।
सरबस धन 'हरिचंद' अलीकी ।।
*****
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हमें खुशी होगी यदि आप हमारे टेलीग्राम चैनल https://t.me/e_stuti से भी जुड़ेंगे। आभार