सोमवार, 29 नवंबर 2021

श्री काल भैरव अष्टक || Shri Kal Bhairav Astak || देवराजसेव्यमान || Devraj Sevyaman || Bhairavastaka || Kal Bhairav

 श्री काल भैरव अष्टक || Shri Kal Bhairav Astak || देवराजसेव्यमान || Devraj Sevyaman || Bhairavastaka || Kal Bhairav 


देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं 

व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्।

नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। १ ।।


भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं 

नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम्।

कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। २।।


शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं 

श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम्।

भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। ३ ।।


भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं 

भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम्।

विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। ४ ।।


धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशनं 

कर्मपाशमोचकं सुशर्मधायकं विभुम्।

स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। ५ ।।


रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं 

नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम्।

मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। ६ ।।


अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं 

दृष्टिपात्तनष्टपापजालमुग्रशासनम्।

अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। ७ ।।


भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं 

काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम्।

नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। ८ ।।


।। फल श्रुति ।।


कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं 

ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम्।

शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं 

प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम्।।

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रविवार, 28 नवंबर 2021

श्री भैरव चालीसा: जय डमरूधर नयन विशाला | Shri Bhairav Nath Kashi Vishwanath Varanasi | Powerful Bhairav Chalisa with Lyrics & Meaning

श्री भैरव चालीसा: जय डमरूधर नयन विशाला | Shri Bhairav Nath Kashi Vishwanath Varanasi | Powerful Bhairav Chalisa with Lyrics & Meaning 


।। दोहा ।।

श्री भैरव संकट हरन

मंगल करन कृपालु।

करहु दया निज दास पे

निशिदिन दीनदयालु।।

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।। चौपाई ।।

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जय डमरूधर नयन विशाला।

श्याम वर्ण वपु महा कराला।।

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जय त्रिशूलधर जय डमरूधर।

काशी कोतवाल संकटहर।।

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जय गिरिजासुत परमकृपाला।

संकटहरण हरहु भ्रमजाला।।

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जयति बटुक भैरव भयहारी।

जयति काल भैरव बलधारी।।

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अष्टरूप तुम्हरे सब गायें।

सकल एक ते एक सिवाये।।

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शिवस्वरूप शिव के अनुगामी।

गणाधीश तुम सबके स्वामी।।

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जटाजूट पर मुकुट सुहावै।

भालचन्द्र अति शोभा पावै।।

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कटि करधनी घुँघरू बाजै।

दर्शन करत सकल भय भाजै।।

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कर त्रिशूल डमरू अति सुन्दर।

मोरपंख को चंवर मनोहर।।

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खप्पर खड्ग लिये बलवाना।

रूप चतुर्भुज नाथ बखाना।।

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वाहन श्वान सदा सुखरासी।

तुम अनन्त प्रभु तुम अविनाशी।।

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जय जय जय भैरव भय भंजन।

जय कृपालु भक्तन मनरंजन॥

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नयन विशाल लाल अति भारी।

रक्तवर्ण तुम अहहु पुरारी।।

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बं बं बं बोलत दिनराती।

शिव कहँ भजहु असुर आराती।।

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एकरूप तुम शम्भु कहाये।

दूजे भैरव रूप बनाये।।

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सेवक तुमहिं तुमहिं प्रभु स्वामी।

सब जग के तुम अन्तर्यामी।।

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रक्तवर्ण वपु अहहि तुम्हारा।

श्यामवर्ण कहुं होई प्रचारा।।

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श्वेतवर्ण पुनि कहा बखानी।

तीनि वर्ण तुम्हरे गुणखानी।।

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तीनि नयन प्रभु परम सुहावहिं।

सुरनर मुनि सब ध्यान लगावहिं।।

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व्याघ्र चर्मधर तुम जग स्वामी।

प्रेतनाथ तुम पूर्ण अकामी।।

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चक्रनाथ नकुलेश प्रचण्डा।

निमिष दिगम्बर कीरति चण्डा।।

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क्रोधवत्स भूतेश कालधर।

चक्रतुण्ड दशबाहु व्यालधर।।

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अहहिं कोटि प्रभु नाम तुम्हारे।

जयत सदा मेटत दुःख भारे।।

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चौंसठ योगिनी नाचहिं संगा।

क्रोधवान तुम अति रणरंगा।।

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भूतनाथ तुम परम पुनीता।

तुम भविष्य तुम अहहू अतीता।।

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वर्तमान तुम्हरो शुचि रूपा।

कालजयी तुम परम अनूपा।।

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ऐलादी को संकट टार्यो।

साद भक्त को कारज सारयो।।

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कालीपुत्र कहावहु नाथा।

तव चरणन नावहुं नित माथा।।

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श्री क्रोधेश कृपा विस्तारहु।

दीन जानि मोहि पार उतारहु।।

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भवसागर बूढत दिनराती।

होहु कृपालु दुष्ट आराती।।

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सेवक जानि कृपा प्रभु कीजै।

मोहिं भगति अपनी अब दीजै।।

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करहुँ सदा भैरव की सेवा।

तुम समान दूजो को देवा।।

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अश्वनाथ तुम परम मनोहर।

दुष्टन कहँ प्रभु अहहु भयंकर।।

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तम्हरो दास जहाँ जो होई।

ताकहँ संकट परै न कोई।।

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हरहु नाथ तुम जन की पीरा।

तुम समान प्रभु को बलवीरा।।

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सब अपराध क्षमा करि दीजै।

दीन जानि आपुन मोहिं कीजै।।

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जो यह पाठ करे चालीसा।

तापै कृपा करहुँ जगदीशा।।

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।। दोहा ।।

जय भैरव जय भूतपति

जय जय जय सुखकन्‍द।

करहु कृपा नित दास पे

देहुँ सदा आनन्द।।


।। dohā ।।

Shrī bhairav sankaṭ harana

Mangal karan kṛupālu।

Karahu dayā nij dās pe

Nishidin dīnadayālu।।

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।। chaupāī ।।

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Jaya ḍamarūdhar nayan vishālā।

Shyām varṇa vapu mahā karālā।।

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Jaya trishūladhar jaya ḍamarūdhara।

Kāshī kotavāl sankaṭahara।।

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Jaya girijāsut paramakṛupālā।

Sankaṭaharaṇ harahu bhramajālā।।

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Jayati baṭuk bhairav bhayahārī।

Jayati kāl bhairav baladhārī।।

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Aṣhṭarūp tumhare sab gāyean।

Sakal ek te ek sivāye।।

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Shivasvarūp shiv ke anugāmī।

Gaṇādhīsh tum sabake swāmī।।

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Jaṭājūṭ par mukuṭ suhāvai।

Bhālachandra ati shobhā pāvai।।

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Kaṭi karadhanī ghgharū bājai।

Darshan karat sakal bhaya bhājai।।

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Kar trishūl ḍamarū ati sundara।

Morapankha ko chanvar manohara।।

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Khappar khaḍga liye balavānā।

Rūp chaturbhuj nāth bakhānā।।

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Vāhan shvān sadā sukharāsī।

Tum ananta prabhu tum avināshī।।

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Jaya jaya jaya bhairav bhaya bhanjana।

Jaya kṛupālu bhaktan manaranjana॥

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Nayan vishāl lāl ati bhārī।

Raktavarṇa tum ahahu purārī।।

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Ban ban ban bolat dinarātī।

Shiv kah bhajahu asur ārātī।।

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Ekarūp tum shambhu kahāye।

Dūje bhairav rūp banāye।।

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Sevak tumahian tumahian prabhu swāmī।

Sab jag ke tum antaryāmī।।

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Raktavarṇa vapu ahahi tumhārā।

Shyāmavarṇa kahuan hoī prachārā।।

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Shvetavarṇa puni kahā bakhānī।

Tīni varṇa tumhare guṇakhānī।।

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Tīni nayan prabhu param suhāvahian।

Suranar muni sab dhyān lagāvahian।।

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Vyāghra charmadhar tum jag swāmī।

Pretanāth tum pūrṇa akāmī।।

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Chakranāth nakulesh prachaṇḍā।

Nimiṣh digambar kīrati chaṇḍā।।

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Krodhavatsa bhūtesh kāladhara।

Chakratuṇḍa dashabāhu vyāladhara।।

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Ahahian koṭi prabhu nām tumhāre।

Jayat sadā meṭat duahkha bhāre।।

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Chauansaṭh yoginī nāchahian sangā।

Krodhavān tum ati raṇarangā।।

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Bhūtanāth tum param punītā।

Tum bhaviṣhya tum ahahū atītā।।

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Vartamān tumharo shuchi rūpā।

Kālajayī tum param anūpā।।

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Ailādī ko sankaṭ ṭāryo।

Sād bhakta ko kāraj sārayo।।

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Kālīputra kahāvahu nāthā।

Tav charaṇan nāvahuan nit māthā।।

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Shrī krodhesh kṛupā vistārahu।

Dīn jāni mohi pār utārahu।।

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Bhavasāgar būḍhat dinarātī।

Hohu kṛupālu duṣhṭa ārātī।।

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Sevak jāni kṛupā prabhu kījai।

Mohian bhagati apanī ab dījai।।

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Karahu sadā bhairav kī sevā।

Tum samān dūjo ko devā।।

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Ashvanāth tum param manohara।

Duṣhṭan kaha prabhu ahahu bhayankara।।

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Tamharo dās jahā jo hoī।

Tākaha sankaṭ parai n koī।।

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Harahu nāth tum jan kī pīrā।

Tum samān prabhu ko balavīrā।।

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Sab aparādh kṣhamā kari dījai।

Dīn jāni āpun mohian kījai।।

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Jo yah pāṭh kare chālīsā।

Tāpai kṛupā karahu jagadīshā।।

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।। dohā ।।

Jaya bhairav jaya bhūtapati

Jaya jaya jaya sukhakanda।

Karahu kṛupā nit dās pe

Dehu sadā ānanda।।


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श्री भैरव चालीसा: जय डमरूधर नयन विशाला | श्री भैरव नाथ काशी विश्वनाथ वाराणसी | शक्तिशाली भैरव चालीसा के साथ अर्थ एवं स्वर

श्री भैरव चालीसा एक प्रतिष्ठित भक्ति स्तोत्र है जो भगवान भैरव नाथ को समर्पित है, जो हिंदू धर्म में सबसे शक्तिशाली और रक्षात्मक देवता माने जाते हैं। उनका काशी, वाराणसी में स्थित होना उनके आध्यात्मिक महत्व और रहस्य को और बढ़ाता है। इस लेख में हम श्री भैरव चालीसा के शक्तिशाली प्रभाव, इसके lyrics (स्वर) और इसके meaning (अर्थ) के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे, विशेष रूप से काशी विश्वनाथ मंदिर के संदर्भ में। भगवान भैरव को इस मंदिर का रक्षक माना जाता है, और उनके आशीर्वाद से सुरक्षा, शक्ति और आध्यात्मिक जागरण प्राप्त किया जाता है।

भगवान भैरव का परिचय

श्री भैरव चालीसा और इसके महत्व को समझने से पहले, यह जानना जरूरी है कि भगवान भैरव कौन हैं। भैरव नाथ, जिन्हें काला भैरव भी कहा जाता है, भगवान शिव का एक प्रचंड रूप हैं। उन्हें काशी विश्वनाथ मंदिर के रक्षक के रूप में पूजा जाता है, जो इस दिव्य स्थल की पवित्रता और ऊर्जा की रक्षा करते हैं। भगवान भैरव के रूप में शक्ति और करुणा का संगम देखने को मिलता है, और इन्हें विशेष रूप से बुरी शक्तियों से सुरक्षा प्राप्त करने के लिए पूजा जाता है।

काशी में, जहां आध्यात्मिकता और रहस्यवाद गहरे से जुड़े हुए हैं, भगवान भैरव का सम्मान और श्रद्धा अत्यधिक है। वाराणसी में भगवान भैरव की उपस्थिति अत्यधिक शक्तिशाली मानी जाती है और उनका आशीर्वाद नकारात्मक प्रभावों से सुरक्षा, समस्याओं के समाधान और व्यक्तिगत समृद्धि के रूप में प्राप्त होता है।

श्री भैरव चालीसा का महत्व

श्री भैरव चालीसा एक 40 श्लोकों वाला भक्ति गीत है, जिसे भगवान भैरव की महिमा का गायन करने के लिए गाया जाता है। हर श्लोक में भगवान भैरव की महानता और उनके रक्षात्मक गुणों का वर्णन किया गया है, साथ ही काशी विश्वनाथ के साथ उनके संबंध का भी उल्लेख है। जय डमरूधर नयन विशाला का उद्घोष विशेष रूप से इस स्तोत्र में आता है, जो भगवान भैरव की दिव्य दृष्टि का प्रतीक है। डमरू (ड्रम) ब्रह्मांड की ध्वनि और ऊर्जा का प्रतीक है, जिसे भगवान भैरव नियंत्रित करते हैं।

श्री भैरव चालीसा केवल एक सामूहिक प्रार्थना नहीं है, बल्कि यह हर व्यक्ति के लिए व्यक्तिगत अनुभव भी है। यह शक्तिशाली भैरव चालीसा जीवन के कठिन समय में, विशेष रूप से सुरक्षा की आवश्यकता होने पर, पढ़ा जा सकता है। परंपरा के अनुसार, इसे प्रातः या रात्रि के समय, ध्यानपूर्ण मन और शुद्ध हृदय के साथ पाठ करना उत्तम माना जाता है।

श्री भैरव चालीसा के lyrics और meaning का विश्लेषण

श्री भैरव चालीसा का पाठ करते समय उसके श्लोकों के अर्थ को समझना आवश्यक है। इस स्तोत्र के कुछ प्रमुख श्लोकों के अर्थ इस प्रकार हैं:

  1. "जय डमरूधर नयन विशाला"
    इस श्लोक में भगवान भैरव के विशाल नेत्रों और उनके डमरू (ड्रम) को संबोधित किया गया है, जो ब्रह्मांड की ध्वनि और गति को नियंत्रित करते हैं। यह उनके दिव्य दृष्टिकोण और ब्रह्मांडीय भूमिका को व्यक्त करता है।

  2. "श्री भैरव नाथ के मंत्रों से, जो भक्त हर्षित हो जाता है।"
    यह श्लोक इस बात को व्यक्त करता है कि भगवान भैरव के मंत्रों का जाप करने से भक्त को मानसिक सुख और आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति होती है। भैरव की रक्षात्मक और दिव्य ऊर्जा भक्त की आत्मा में समाहित हो जाती है।

  3. "भैरव नाथ का व्रत जो करे, दरिद्रता का नाश हो जाता है।"
    इस श्लोक में बताया गया है कि भगवान भैरव के व्रत और पूजा से दरिद्रता का नाश होता है और समृद्धि और सुख का वास होता है।

काशी विश्वनाथ और भैरव की शक्ति

काशी विश्वनाथ मंदिर, जो हिंदू धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, भगवान भैरव के पूजा में भी गहरी श्रद्धा से जुड़ा हुआ है। यह मंदिर गंगा नदी के किनारे स्थित है और भगवान शिव को समर्पित है, लेकिन भगवान भैरव को इसके रक्षक के रूप में पूजा जाता है। काशी में भगवान भैरव की उपस्थिति अत्यधिक शक्तिशाली मानी जाती है और उन्हें इस मंदिर की पवित्रता की रक्षा करने वाला देवता माना जाता है।

काशी विश्वनाथ और भैरव के बीच यह संबंध श्री भैरव चालीसा के अर्थ को समझने में अहम है। भैरव के रूप में भगवान शिव के रक्षात्मक आशीर्वाद और ऊर्जा को व्यक्त करने वाला यह स्तोत्र भक्तों को सुरक्षा, शक्ति, और आध्यात्मिक जागरण प्रदान करता है।

श्री भैरव चालीसा का पाठ क्यों महत्वपूर्ण है?

  1. बुरी शक्तियों से सुरक्षा: भगवान भैरव को सर्वश्रेष्ठ रक्षक माना जाता है, जो भक्तों को नकारात्मक शक्तियों और बुरी दृष्टि से बचाते हैं। श्री भैरव चालीसा का जाप करने से ये बुराइयां दूर होती हैं और सुरक्षा की प्राप्ति होती है।

  2. आध्यात्मिक जागरण: Bhairav Chalisa का नियमित पाठ मन और आत्मा को ऊंचा करता है। यह दिव्य ऊर्जा भक्तों को परम शक्ति से जोड़ती है और आंतरिक शांति प्रदान करती है।

  3. बाधाओं का निवारण: भगवान भैरव विघ्नों और संकटों को दूर करने वाले देवता माने जाते हैं। भक्त इस चालीसा का पाठ किसी भी प्रकार की समस्याओं के समाधान के लिए करते हैं। चाहे व्यक्तिगत जीवन हो, व्यवसायिक समस्याएं हों, या आध्यात्मिक चिंताएं, भैरव के आशीर्वाद से इन सभी को हल किया जा सकता है।

  4. शक्ति और साहस का आशीर्वाद: भगवान भैरव केवल रक्षक नहीं हैं, बल्कि वे शक्ति और साहस प्रदान करने वाले देवता भी हैं। श्री भैरव चालीसा का पाठ भक्तों को साहस और आत्मविश्वास से भर देता है, ताकि वे जीवन की चुनौतियों का सामना कर सकें।

भैरव के आशीर्वाद के रूप में चालीसा का प्रभाव

श्री भैरव चालीसा के पाठ से भक्तों को भगवान भैरव के आशीर्वाद कई रूपों में प्राप्त होते हैं:

  • दिव्य आशीर्वाद: भगवान भैरव का आशीर्वाद भक्तों के शरीर और मन को शांति और स्वास्थ्य प्रदान करता है। उनकी कृपा से मानसिक और शारीरिक कष्ट दूर होते हैं।
  • धन और समृद्धि: इस स्तोत्र का जाप नकारात्मक शक्तियों को नष्ट करने के साथ-साथ धन और समृद्धि को भी आकर्षित करता है। कई भक्त श्री भैरव चालीसा का पाठ अपनी समृद्धि के लिए करते हैं।
  • मन की शांति: नियमित रूप से इस चालीसा का पाठ मानसिक शांति प्रदान करता है। इसका जाप ध्यान के रूप में किया जाता है, जो तनाव और चिंता को कम करने में मदद करता है।

निष्कर्ष: श्री भैरव नाथ की दिव्य शक्ति

श्री भैरव चालीसा एक शक्तिशाली प्रार्थना है जो भक्तों को भगवान भैरव की दिव्य ऊर्जा से जोड़ती है। काशी विश्वनाथ मंदिर के रक्षक के रूप में भैरव का स्थान अत्यधिक महत्वपूर्ण है। भैरव के आशीर्वाद से सुरक्षा, शक्ति, और आध्यात्मिक जागरण प्राप्त होता है। चाहे आपको किसी भी प्रकार की सहायता चाहिए हो, श्री भैरव चालीसा के नियमित पाठ से भगवान भैरव की कृपा और आशीर्वाद मिल सकते हैं।

काशी में, जहां भगवान भैरव की उपस्थिति अत्यधिक शक्ति और सुरक्षा से भरी होती है, श्री भैरव चालीसा केवल एक भक्ति गीत नहीं है, बल्कि यह भक्त और देवता के बीच एक दिव्य संबंध स्थापित करने का एक मार्ग है, जो सुरक्षा, आशीर्वाद, और सफलता की ओर मार्गदर्शन करता है।

श्री भैरव चालीसा || जय जय श्री काली के लाला || Jay Jay Shri Kali Ke Lala || Shri Bhairav Chalisa || Kashi Kotwal Chalisa || Bhairav Stuti lyrics in Hindi

श्री भैरव चालीसा ||जय जय श्री काली के लाला ||  Jay Jay Shri Kali Ke Lala || Shri Bhairav Chalisa || Kashi Kotwal Chalisa || Bhairav Stuti lyrics in Hindi 


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श्री गणपति गुरु गौरी पद प्रेम सहित धरि माथ।
चालीसा वंदन करो श्री शिव भैरवनाथ॥
श्री भैरव संकट हरण मंगल करण कृपाल।
श्याम वरण विकराल वपु लोचन लाल विशाल॥
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जय जय श्री काली के लाला।
जयति जयति काशी-कुतवाला॥
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जयति बटुक-भैरव भय हारी।
जयति काल-भैरव बलकारी॥
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जयति नाथ-भैरव विख्याता।
जयति सर्व-भैरव सुखदाता॥
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भैरव रूप कियो शिव धारण।
भव के भार उतारण कारण॥
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बटुक नाथ हो काल गंभीरा। 
श्‍वेत रक्त अरु श्याम शरीरा॥
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करत नीनहूं रूप प्रकाशा। 
भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा।।
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रत्‍न जड़ित कंचन सिंहासन। 
व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन।।
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तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं। 
विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं।।
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जय प्रभु संहारक सुनन्द जय। 
जय उन्नत हर उमा नन्द जय।।
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भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय। 
वैजनाथ श्री जगतनाथ जय।।
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महा भीम भीषण शरीर जय। 
रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय।।
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अश्‍वनाथ जय प्रेतनाथ जय। 
स्वानारूढ़ सयचंद्र नाथ जय।।
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निमिष दिगंबर चक्रनाथ जय। 
गहत अनाथन नाथ हाथ जय।।
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त्रेशलेश भूतेश चंद्र जय। 
क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय।।
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श्री वामन नकुलेश चण्ड जय। 
कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय।।
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रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर। 
चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर।।
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करि मद पान शम्भु गुणगावत। 
चौंसठ योगिन संग नचावत।।
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करत कृपा जन पर बहु ढंगा। 
काशी कोतवाल अड़बंगा।।
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देय काल भैरव जब सोटा। 
नसै पाप मोटा से मोटा।।
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जनकर निर्मल होय शरीरा। 
मिटै सकल संकट भव पीरा।।
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श्री भैरव भूतों के राजा। 
बाधा हरत करत शुभ काजा।।
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ऐलादी के दुख निवारयो। 
सदा कृपाकरि काज सम्हारयो।।
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सुन्दर दास सहित अनुरागा। 
श्री दुर्वासा निकट प्रयागा।।
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श्री भैरव जी की जय लेख्यो। 
सकल कामना पूरण देख्यो।।
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जय जय जय भैरव बटुक स्वामी संकट टार।
कृपा दास पर कीजिए शंकर के अवतार।।
।। dohā ।।
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Shrī gaṇapati guru gaurī pad 
prem sahit dhari mātha।
Chālīsā vandan karo 
shrī shiv bhairavanātha॥
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Shrī bhairav sankaṭ haraṇ 
mangal karaṇ kṛupāla।
Shyām varaṇ vikarāl vapu 
lochan lāl vishāla॥
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।। chālīsā ।। 
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Jaya jaya shrī kālī ke lālā।
Jayati jayati kāshī-kutavālā॥
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Jayati baṭuka-bhairav bhaya hārī।
Jayati kāla-bhairav balakārī॥
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Jayati nātha-bhairav vikhyātā।
Jayati sarva-bhairav sukhadātā॥
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Bhairav rūp kiyo shiv dhāraṇa।
Bhav ke bhār utāraṇ kāraṇa॥
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Baṭuk nāth ho kāl ganbhīrā। 
Shvet rakta aru shyām sharīrā॥
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Karat nīnahūan rūp prakāshā। 
Bharat subhaktan kahan shubh āshā।।
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Ratn jaḍit kanchan sianhāsana। 
Vyāghra charma shuchi narma suānana।।
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Tumahi jāi kāshihian jan dhyāvahian। 
Vishvanāth kahan darshan pāvahian।।
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Jaya prabhu sanhārak sunanda jaya। 
Jaya unnat har umā nanda jaya।।
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Bhīm trilochan swān sāth jaya। 
Vaijanāth shrī jagatanāth jaya।।
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Mahā bhīm bhīṣhaṇ sharīr jaya। 
Rudra trayambak dhīr vīr jaya।।
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Ashvanāth jaya pretanāth jaya। 
Svānārūḍh sayachandra nāth jaya।।
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Nimiṣh diganbar chakranāth jaya। 
Gahat anāthan nāth hāth jaya।।
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Treshalesh bhūtesh chandra jaya। 
Krodh vatsa amaresh nanda jaya।।
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Shrī vāman nakulesh chaṇḍa jaya। 
Kṛutyāū kīrati prachaṇḍa jaya।।
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Rudra baṭuk krodhesh kāladhara। 
Chakra tuṇḍa dash pāṇivyāl dhara।।
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Kari mad pān shambhu guṇagāvata। 
Chauansaṭh yogin sanga nachāvata।।
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Karat kṛupā jan par bahu ḍhangā। 
Kāshī kotavāl aḍbangā।।
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Deya kāl bhairav jab soṭā। 
Nasai pāp moṭā se moṭā।।
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Janakar nirmal hoya sharīrā। 
Miṭai sakal sankaṭ bhav pīrā।।
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Shrī bhairav bhūtoan ke rājā। 
Bādhā harat karat shubh kājā।।
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Ailādī ke dukh nivārayo। 
Sadā kṛupākari kāj samhārayo।।
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Sundar dās sahit anurāgā। 
Shrī durvāsā nikaṭ prayāgā।।
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Shrī bhairav jī kī jaya lekhyo। 
Sakal kāmanā pūraṇ dekhyo।।
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।। dohā ।।
*
Jaya jaya jaya bhairav baṭuk 
swāmī sankaṭ ṭāra।
Kṛupā dās par kījie 
shankar ke avatāra।।
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श्री भैरव चालीसा || जय जय श्री काली के लाला || श्री भैरव चालीसा || काशी कोतवाल चालीसा || भैरव स्तुति के बोल हिंदी में

श्री भैरव चालीसा एक अत्यधिक पवित्र और शक्तिशाली भक्ति स्तोत्र है जो भगवान भैरव नाथ की पूजा के लिए गाया जाता है। इस चालीसा में भगवान भैरव के रक्षात्मक गुणों और उनके दिव्य आशीर्वाद का वर्णन किया गया है। इसे जय जय श्री काली के लाला के उद्घोष के साथ शुरू किया जाता है, जो भगवान भैरव के रूप में काली माता के पुत्र के रूप में उनकी महिमा को उजागर करता है। भगवान भैरव को काशी के रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है, जिन्हें काशी कोतवाल भी कहा जाता है। इस लेख में हम श्री भैरव चालीसा और काशी कोतवाल चालीसा के बारे में विस्तार से जानेंगे, साथ ही भैरव स्तुति के बोल और उनके अर्थ को भी समझेंगे।

भगवान भैरव का परिचय

भगवान भैरव, जिन्हें काला भैरव भी कहा जाता है, भगवान शिव के महाक्रूर रूप के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे काशी के रक्षक और इस पवित्र नगरी के अधिपति माने जाते हैं। काशी में भगवान भैरव का अत्यधिक सम्मान किया जाता है, क्योंकि वे इस नगर की सुरक्षा और समृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं। भैरव नाथ के बारे में कहा जाता है कि वे बुरी शक्तियों को नष्ट करने वाले देवता हैं और उनके आशीर्वाद से भक्तों की सभी दुखों और समस्याओं का समाधान होता है।

श्री भैरव चालीसा का महत्व

श्री भैरव चालीसा एक 40 श्लोकों का स्तोत्र है, जो भगवान भैरव की महिमा और उनके दिव्य गुणों का बखान करता है। इस चालीसा में भगवान भैरव की शक्तियों का, उनके रूप और उनकी भूमिका का वर्णन किया गया है। भगवान भैरव का चित्रण एक रक्षक देवता के रूप में किया गया है, जो अपनी शक्ति से भक्तों को बुरी शक्तियों से बचाते हैं और उन्हें जीवन की समस्याओं से मुक्त करते हैं। यह चालीसा काशी कोतवाल चालीसा के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि भगवान भैरव को काशी का कोतवाल यानी रक्षक देवता माना जाता है।

जय जय श्री काली के लाला का उद्घोष

श्री भैरव चालीसा का उद्घोष जय जय श्री काली के लाला के साथ किया जाता है, जो भगवान भैरव के काली माता के पुत्र के रूप में उनके रक्षात्मक स्वरूप को प्रदर्शित करता है। काली माता को शक्ति और विनाश की देवी माना जाता है, और भगवान भैरव का रूप उसी शक्ति और क्रूरता का प्रतीक है। इस उद्घोष के माध्यम से भगवान भैरव की शक्ति और उनके द्वारा दी जाने वाली सुरक्षा को श्रद्धा पूर्वक स्वीकार किया जाता है।

भैरव स्तुति के बोल और उनका अर्थ

श्री भैरव चालीसा के श्लोकों में भगवान भैरव की स्तुति की जाती है, जो उनके रक्षात्मक और दिव्य गुणों का वर्णन करती है। कुछ प्रमुख श्लोकों के अर्थ निम्नलिखित हैं:

  1. "जय जय श्री काली के लाला"
    इस श्लोक में भगवान भैरव को काली माता का पुत्र कहा गया है। यह उनका रक्षात्मक रूप है, जो बुरी शक्तियों से निवारण और सुरक्षा प्रदान करता है।

  2. "भैरव नाथ के मंत्रों से, भक्त हर्षित हो जाता है"
    यह श्लोक बताता है कि भगवान भैरव के मंत्रों का जाप करने से भक्त की सभी चिंताएं दूर होती हैं और वह मानसिक शांति प्राप्त करता है।

  3. "जो भक्त भैरव का व्रत करता है, उसकी दरिद्रता दूर हो जाती है"
    इस श्लोक में कहा गया है कि जो व्यक्ति भगवान भैरव का व्रत और पूजा करता है, उसे जीवन में समृद्धि और सुख प्राप्त होता है।

काशी कोतवाल और भगवान भैरव

काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान भैरव को काशी कोतवाल के रूप में पूजा जाता है। उन्हें इस नगर की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया है, और भक्त उनके पास आकर सुरक्षा और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। काशी कोतवाल का मतलब है काशी का रक्षक, और भगवान भैरव इस मंदिर की पवित्रता और आध्यात्मिक ऊर्जा को बनाए रखते हैं। उनकी पूजा से न केवल सुरक्षा मिलती है, बल्कि आंतरिक शांति और मानसिक संतुलन भी प्राप्त होता है।

श्री भैरव चालीसा का पाठ क्यों महत्वपूर्ण है?

  1. सुरक्षा और आशीर्वाद: भगवान भैरव के आशीर्वाद से व्यक्ति को न केवल सुरक्षा मिलती है, बल्कि जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी आती है। उनका जाप मानसिक शांति और आध्यात्मिक जागरण का मार्ग खोलता है।

  2. बुरी शक्तियों से रक्षा: भगवान भैरव की पूजा से बुरी शक्तियों और नकारात्मक प्रभावों से सुरक्षा मिलती है। यह चालीसा व्यक्ति को बुरी नजर से बचाने और उसके जीवन की कठिनाइयों को दूर करने में मदद करती है।

  3. शक्ति और साहस का आशीर्वाद: भगवान भैरव के आशीर्वाद से व्यक्ति में शक्ति और साहस का संचार होता है। यह उन्हें जीवन के विभिन्न संघर्षों का सामना करने के लिए प्रेरित करता है।

  4. आध्यात्मिक उन्नति: श्री भैरव चालीसा का नियमित पाठ मानसिक शांति और आत्मिक शुद्धता की ओर मार्गदर्शन करता है। यह भक्तों को आत्मज्ञान और जीवन के उच्चतर उद्देश्य की प्राप्ति में मदद करता है।

निष्कर्ष

श्री भैरव चालीसा एक अत्यंत शक्तिशाली भक्ति स्तोत्र है, जो भगवान भैरव की रक्षात्मक शक्ति और उनके आशीर्वाद का प्रतिफल है। काशी के कोतवाल के रूप में भगवान भैरव का महत्व अत्यधिक है, और उनकी पूजा से न केवल सुरक्षा, बल्कि मानसिक शांति और आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। जय जय श्री काली के लाला का उद्घोष भगवान भैरव के रूप में काली माता के पुत्र की शक्ति को व्यक्त करता है। यह चालीसा जीवन की कठिनाइयों से उबरने और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने का एक प्रभावी उपाय है।


श्री ललिता माता की आरती || श्री मातेश्वरि जय त्रिपुरेश्वरि || Shri Lalita Mata Ki Aarti || Shri Mateshwari Jay Tripureshwari || Lalita Mata Prayagraj Allahabad

श्री ललिता माता की आरती || श्री मातेश्वरि जय त्रिपुरेश्वरि || Shri Lalita Mata Ki Aarti || Shri Mateshwari Jay Tripureshwari || Lalita Mata Prayagraj Allahabad


श्री मातेश्वरि जय त्रिपुरेश्वरि।

राजेश्वरि जय नमो नम:।।


करुणामयी सकल अघ हारिणि।

अमृत वर्षिणि नमो नम:।।


जय शरणं वरणं नमो नम:

श्री मातेश्वरि जय त्रिपुरेश्वरि।

राजेश्वरि जय नमो नम:।।


अशुभ विनाशिनि, सब सुखदायिनि।

खलदल नाशिनि नमो नम:।।


भंडासुर वध कारिणि जय मां।

करुणा कलिते नमो नम:।।


जय शरणं वरणं नमो नम:

श्री मातेश्वरि जय त्रिपुरेश्वरि।

राजेश्वरि जय नमो नम:।।


भव भय हारिणि कष्ट निवारिणि।

शरण गती दो नमो नम:।।


शिव भामिनि साधक मन हारिणि।

आदि शक्ति जय नमो नम:।।


जय शरणं वरणं नमो नम:!

श्री मातेश्वरि जय त्रिपुरेश्वरि।

राजेश्वरि जय नमो नम:।।


जय त्रिपुर सुंदरी नमो नम:।

जय राजेश्वरि जय नमो नम:।।


जय ललितेश्वरि जय नमो नम:।

जय अमृत वर्षिणि नमो नम:।।


जय करुणा कलिते नमो नम:।

श्री मातेश्वरि जय त्रिपुरेश्वरि।

राजेश्वरि जय नमो नम:।।

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ललिता माता चालीसा || जयति-जयति जय ललिते माता || Shri Lalita Mata Chalisa || Jayati Jayati Jay Lalita Mata || Lalita Mata Stuti || Arti Lyrics in Hindi

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ललिता माता चालीसा || जयति-जयति जय ललिते माता || Shri Lalita Mata Chalisa || Jayati Jayati Jay Lalita Mata || Lalita Mata Stuti || Arti Lyrics in Hindi

ललिता माता चालीसा || जयति-जयति जय ललिते माता || Shri Lalita Mata Chalisa || Jayati Jayati Jay Lalita Mata || Lalita Mata Stuti || Arti Lyrics in Hindi


।। चौपाई ।।

 

जयति-जयति जय ललिते माता। 

तव गुण महिमा है विख्याता।।


तू सुन्दरी, त्रिपुरेश्वरी देवी। 

सुर नर मुनि तेरे पद सेवी।।

 

तू कल्याणी कष्ट निवारिणि। 

तू सुख दायिनी, विपदा हारिणि ।।


मोह विनाशिनी दैत्य नाशिनी। 

भक्त भाविनी ज्योति प्रकाशिनी।।

 

आदि शक्ति श्री विद्या रूपा। 

चक्र स्वामिनी देह अनूपा।।


हृदय निवासिनी-भक्त तारिणी। 

नाना कष्ट विपति दल हारिणी।।

 

दश विद्या है रूप तुम्हारा। 

श्री चन्द्रेश्वरी नैमिष प्यारा।।


धूमा, बगला, भैरवी, तारा। 

भुवनेश्वरी, कमला, विस्तारा।।

 

षोडशी, छिन्न्मस्ता, मातंगी। 

ललितेशक्ति तुम्हारी संगी।।


ललिते तुम हो ज्योतित भाला। 

भक्तजनों का काम संभाला।।

 

भारी संकट जब-जब आए। 

उनसे तुमने भक्त बचाए।।


जिसने कृपा तुम्हारी पाई। 

उसकी सब विधि से बन आई।।

 

संकट दूर करो मां भारी। 

भक्तजनों को आस तुम्हारी।।


त्रिपुरेश्वरी, शैलजा, भवानी। 

जय-जय-जय शिव की महारानी।।

 

योग सिद्धि पावें सब योगी। 

भोगें भोग महा सुख भोगी।।


कृपा तुम्हारी पाके माता। 

जीवन सुखमय है बन जाता।।

 

दुखियों को तुमने अपनाया। 

महा मूढ़ जो शरण न आया।।


तुमने जिसकी ओर निहारा। 

मिली उसे संपत्ति, सुख सारा।।

 

आदि शक्ति जय त्रिपुर प्यारी। 

महाशक्ति जय-जय, भय हारी।।


कुल योगिनी, कुंडलिनी रूपा। 

लीला ललिते करें अनूपा।।

 

महा-महेश्वरी, महाशक्ति दे। 

त्रिपुर-सुन्दरी सदा भक्ति दे।।


महा महा-नन्दे कल्याणी। 

मूकों को देती हो वाणी।।

 

इच्छा-ज्ञान-क्रिया का भागी। 

होता तव सेवा अनुरागी।।


जो ललिते तेरा गुण गावे। 

उसे न कोई कष्ट सतावे।।

 

सर्व मंगले ज्वाला-मालिनी। 

तुम हो सर्वशक्ति संचालिनी।।


आया मॉं जो शरण तुम्हारी। 

विपदा हरी उसी की सारी।।

 

नामा कर्षिणी, चिंता कर्षिणी। 

सर्व मोहिनी सब सुख-वर्षिणी।।


महिमा तव सब जग विख्याता। 

तुम हो दयामयी जग माता।।

 

सब सौभाग्य दायिनी ललिता। 

तुम हो सुखदा करुणा कलिता।।


आनंद, सुख, संपत्ति देती हो। 

कष्ट भयानक हर लेती हो।।

 

मन से जो जन तुमको ध्यावे। 

वह तुरंत मन वांछित पावे।।


लक्ष्मी, दुर्गा तुम हो काली। 

तुम्हीं शारदा चक्र-कपाली।।

 

मूलाधार, निवासिनी जय-जय। 

सहस्रार गामिनी मॉं जय-जय।।


छ: चक्रों को भेदने वाली। 

करती हो सबकी रखवाली।।

 

योगी, भोगी, क्रोधी, कामी। 

सब हैं सेवक सब अनुगामी।।


सबको पार लगाती हो मॉं। 

सब पर दया दिखाती हो मां।।

 

हेमावती, उमा, ब्रह्माणी। 

भण्डासुर की हृदय विदारिणी।।


सर्व विपति हर, सर्वाधारे। 

तुमने कुटिल कुपंथी तारे।।

 

चन्द्र-धारिणी, नैमिश्वासिनी। 

कृपा करो ललिते अधनाशिनी।।


भक्तजनों को दरस दिखाओ। 

संशय भय सब शीघ्र मिटाओ।।

 

जो कोई पढ़े ललिता चालीसा। 

होवे सुख आनंद अधीसा।।


जिस पर कोई संकट आवे। 

पाठ करे संकट मिट जावे।।

 

ध्यान लगा पढ़े इक्कीस बारा। 

पूर्ण मनोरथ होवे सारा।।


पुत्रहीन संतति सुख पावे। 

निर्धन धनी बने गुण गावे।।

 

इस विधि पाठ करे जो कोई। 

दु:ख बंधन छूटे सुख होई।।


जितेन्द्र चन्द्र भारतीय बतावें। 

पढ़ें चालीसा तो सुख पावें।।

 

सबसे लघु उपाय यह जानो। 

सिद्ध होय मन में जो ठानो।।


ललिता करे हृदय में बासा। 

सिद्धि देत ललिता चालीसा।।

 

।। दोहा ।।

 

ललिते मां अब कृपा करो सिद्ध करो सब काम।

श्रद्धा से सिर नाय कर करते तुम्हें प्रणाम।।


श्री ललिता माता की आरती || श्री मातेश्वरि जय त्रिपुरेश्वरि || Shri Lalita Mata Ki Aarti || Shri Mateshwari Jay Tripureshwari || Lalita Mata Prayagraj Allahabad

आरती श्री वृषभानुसुता की || Aarati Shri Vrishbhanusuta ki || Shri Radha Ji Ki Aarti || Radha Rani Ji Ki Aarti || Shri Radha Stuti || Shri Radha Sarkar Ki Aarti ||

आरती श्री वृषभानुसुता की || Aarati Shri Vrishbhanusuta ki || Shri Radha Ji Ki Aarti || Radha Rani Ji Ki Aarti || Shri Radha Stuti || Shri Radha Sarkar Ki Aarti || 


आरती श्री वृषभानुसुता की

मंजुल मूर्ति मोहन ममता की।।


त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि

विमल विवेकविराग विकासिनि।।


पावन प्रभु पद प्रीति प्रकाशिनि

सुन्दरतम छवि सुन्दरता की।।


आरती श्री वृषभानुसुता की।

मंजुल मूर्ति मोहन ममता की।।


मुनि मन मोहन मोहन मोहनि

मधुर मनोहर मूरति सोहनि।।


अविरलप्रेम अमिय रस दोहनि

प्रिय अति सदा सखी ललिता की।।


आरती श्री वृषभानुसुता की।

मंजुल मूर्ति मोहन ममता की।।


संतत सेव्य सत मुनि जनकी

आकर अमित दिव्यगुन गनकी।।


आकर्षिणी कृष्ण तन मन की

अति अमूल्य सम्पति समता की।।


आरती श्री वृषभानुसुता की।

मंजुल मूर्ति मोहन ममता की।।


कृष्णात्मिका कृष्ण सहचारिणि

चिन्मयवृन्दा विपिन विहारिणि।।


जगज्जननि जग दुःखनिवारिणि

आदि अनादि शक्ति विभुता की।।


आरती श्री वृषभानुसुता की।

मंजुल मूर्ति मोहन ममता की।।

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श्री राधे वृषभानुजा  भक्तनि प्राणाधार || Shri Radhe Vrishbhanuja || Shri Radha Chalisa || Radha Stuti || Radha Keertan || श्री राधा चालीसा

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श्री राधा चालीसा || श्री राधे वृषभानुजा भक्तनि प्राणाधार || Shri Radhe Vrishbhanuja || Shri Radha Chalisa || Radha Stuti || Radha Keertan

श्री राधा चालीसा // श्री राधे वृषभानुजा  भक्तनि प्राणाधार //Shri Radhe Vrishbhanuja//Shri Radha Chalisa//Radha Stuti//Radha Keertan 


।।दोहा ।।

श्री राधे वृषभानुजा

भक्तनि प्राणाधार ।

वृन्दाविपिन विहारिणी

प्राणवौ बारम्बार ।।


जैसो तैसो रावरौ

कृष्ण प्रिया सुखधाम।

चरण शरण निज दीजिये

सुन्दर सुखद ललाम ।।


।। चौपाई ।।

जय वृषभान कुँवरि श्री श्यामा ।

कीरति नंदिनी शोभा धामा ॥


नित्य विहारिनि रस विस्‍तारिनि ।

अमित मोद मंगल दातारा ।।


रास विलासिनि रस विस्तारिनि ।

सहचरि सुभग यूथ मन भावनि।।


नित्य किशोरी राधा गोरी ।

श्याम प्रन्नाधन अति जिया भोरी ।।


करुना सागर हिय उमंगिनी ।

ललितादिक सखियन की संगिनि ।।


दिनकर कन्या कूल विहारिनि ।

कृष्ण प्राण प्रिय हिय हुलसावनि ।।


नित्य श्याम तुमरौ गुण गावैं ।

राधा राधा कहि हरषावैं ।।


मुरली में नित नाम उचारें ।

तुम कारण लीला वपु धारें ।।


प्रेम स्वरूपिणी अति सुकुमारी ।

श्याम प्रिया वृषभानु दुलारी ।।


नवल किशोरी अति छवि धामा ।

द्युति लघु लगै कोटि रति कामा ।।


गौरांगी शशि निंदक वदना ।

सुभग चपल अनियारे नैना ।।


जावक युत युग पंकज चरना ।

नूपुर ध्वनि प्रीतम मन हरना ।।


सन्‍तत सहचरि सेवा करहीं ।

महा मोद मंगल मन भरहीं ।।


रसिकन जीवन प्राण अधारा ।

राधा नाम सकल सुख सारा ।।


अगम अगोचर नित्य स्वरूपा ।

ध्यान धरत निशिदिन ब्रजभूपा ।।


उपजेउ जासु अंश गुण खानी ।

कोटिन उमा रमा ब्रह्मनी ।।


नित्य धाम गोलोक विहारिनि ।

जन रक्षक दुःख दोष नसावनि ।।


शिव अज मुनि सनकादिक नारद ।

पार न पॉंइ शेष अरु शारद ।।


राधा शुभ गुण रूप उजारी ।

निरखि प्रसन्‍न होता बनवारी ।।


ब्रज जीवन धन राधा रानी ।

महिमा अमित न जाय बखानी ।।


प्रीतम संग देइ गल बाहीं ।

बिहरत नित वृन्दावन माहीं ।।


राधा कृष्ण कृष्ण कहैं राधा ।

एक रूप दोउ प्रीति अगाधा ।।


श्री राधा मोहन मन हरनी ।

जन सुख दायक प्रफुलित बदनी ।।


कोटिक रूप धरें नन्द नन्‍दा ।

दरश करन हित गोकुल चन्‍दा ।।


रास केलि कर तुम्हें रिझावें ।

मान करौ जब अति दुःख पावें ।।


प्रफुलित होत दर्श जब पावें ।

विविध भांति नित विनय सुनावें ।।


वृन्‍दारण्‍य विहारिणि श्यामा ।

नाम लेत पूरण सब कामा ।।


कोटिन यज्ञ तपस्या करहूँ ।

विविध नेम व्रत हिय में धरहूँ  ।।


तउ न श्याम भक्ताहिं अहनावें ।

जब लगि राधा नाम न गावें ।।


वृंदाविपिन स्वामिनी राधा ।

लीला वपु तव अमित अगाधा ।।


स्वयं कृष्ण पावहिं नहिं पारा ।

और तुम्‍हैं को जानन हारा ।।


श्रीराधा रस प्रीती अभेदा ।

सादर गान करत नित वेदा ।।


राधा त्यागि कृष्ण को भजिहैं ।

ते सपनेहुँ जग जलधि न तरिहैं ।।


कीरति कुँवरि लाडली राधा ।

सुमिरत सकल मिटहिं भव बाधा।। 


नाम अमंगल मूल नासवन।

विविध ताप हर हरि मनभावन।।


राधा नाम ले जो कोई ।

सहजहिं दामोदर वश होई ।।


राधा नाम परम सुखदायी ।

भजतहिं कृपा करहिं यदुराई ।।


यशुमति नंदन पीछे फिरहैं ।

जो कोउ राधा नाम सुमिरिहैं ।।


रास विहारिनि श्यामा प्यारी ।

करहुँ कृपा बरसाने वारी ।।


वृन्दावन है शरण तिहारी ।

जय जय जय वृशभानु दुलारी ।।


।। दोहा ।।

श्री राधा सर्वेश्वरी रसिकेश्वर धनश्याम ।

करहुँ निरंतर बास मैं श्री वृन्दावन धाम ।।

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बुधवार, 24 नवंबर 2021

श्री शीतला माता की चालीसा || जय जय माता शीतला तुमहिं धरै जो ध्यान || Shri Sheetala Chalisa || Jay Jay Mata Sheetala || Sheetala Stuti

 श्री शीतला माता की चालीसा // जय जय माता शीतला  तुमहिं धरै जो ध्यान // Shri Sheetala Chalisa // Jay Jay Mata Sheetala // Sheetala Stuti 

श्री शीतला धाम कड़े कौशाम्‍बी उ०प्र०

।।दोहा।।


जय जय माता शीतला

तुमहिं धरै जो ध्यान।

होय विमल शीतल हृदय

विकसै बंद्धि बल ज्ञान।।


घट -घट वासी शीतला

शीतल प्रभा तुम्हार।

शीतल छइयां में झुलइ

मइया पलना डार।।


।। चौपाई ।।


जय-जय- जय श्री शीतला भवानी।

जय जग जननि सकल गुणखानी।


गृह -गृह शक्ति तुम्हारी राजित।

पूरण शरद चंद्र सम साजित।।


विस्फोटक से जलत शरीरा।

शीतल करत हरत सब पीरा।।


मात शीतला तव शुभनामा।

सबके गाढे आवहिं कामा।।


शोकहरी शंकरी भवानी।

बाल-प्राणक्षरी सुख दानी।।


शुचि मार्जनी कलश कर राजै।

मस्तक तेज सूर्य सम राजै।।


चौसठ योगिन संग में गावैं।

वीणा ताल मृदंग बजावै।।


नृत्य नाथ भैरौं दिखलावैं।

सहज शेष शिव पार ना पावैं।।


धन्य धन्य धात्री महारानी।

सुरनर मुनि तव सुयश बखानी।।


ज्वाला रूप महा बलकारी।

दैत्य एक विस्फोटक भारी।।


घर घर प्रविशत कोई न रक्षत।

रोग रूप धरि बालक भक्षत।।


हाहाकार मच्यो जगभारी।

सक्यो न जब यह संकट टारी।।


तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा।

कर में लिये मार्जनी सूपा।।


विस्फोटकहिं पकड़ि कर लीन्हो।

मूसल प्रमाण बहुविधि कीन्हो।।


बहुत प्रकार वह विनती कीन्हा।

मैय्या नहिं भल मैं कछु कीन्हा।।


अबनहिं मातु काहु गृह जइहौं।

जहँ अपवित्र वही घर रहिहौं।।


भभकत तन शीतल भय जइहौं।

विस्फोटक भय घोर नसइहौं ।।


श्री शीतलहिं भजे कल्याना।

वचन सत्य भाषे भगवाना।।


विस्फोटक भय जिहि गृह भाई।

भजै देवि कहँ यही उपाई।।


कलश शीतला का सजवावै।

द्विज से विधिवत पाठ करावै।।


तुम्हीं शीतला, जग की माता।

तुम्हीं पिता जग की सुखदाता।।


तुम्हीं जगद्धात्री सुखसेवी।

नमो नमामी शीतले देवी।।


नमो सुखकरनी दु:खहरणी।

नमो- नमो जगतारणि धरणी।।


नमो नमो त्रैलोक्य वंदिनी।

दुखदारिद्रक निकंदिनी।।


श्री शीतला , शेढ़ला, महला।

रुणलीहृणनी मातृ मंदला।।


हो तुम दिगम्बर तनुधारी।

शोभित पंचनाम असवारी।।


रासभ, खर , बैसाख सुनंदन।

गर्दभ दुर्वाकंद निकंदन।।


सुमिरत संग शीतला माई।

जाही सकल सुख दूर पराई।।


गलका, गलगन्डादि जु होई।

ताकर मंत्र न औषधि कोई।।


एक मातु जी का आराधन।

और नहीं कोई है साधन।।


निश्चय मातु शरण जो आवै।

निर्भय मन इच्छित फल पावै।।


कोढी निर्मल काया धारै।

अंधा दृग निज दृष्टि निहारै।।


बंध्या नारी पुत्र को पावै।

जन्म दरिद्र धनी होइ जावै।।


मातु शीतला के गुण गावत।

लखा मूक को छंद बनावत।।


यामे कोई करै जनि शंका।

जग में मैया का ही डंका।।


भगत कमल प्रभुदासा।

तट प्रयाग से पूरब पासा।।


ग्राम तिवारी पूर मम बासा।

ककरा गंगा तट दुर्वासा ।।


अब विलंब मैं तोहि पुकारत।

मातृ कृपा कौ बाट निहारत।।


पड़ा द्वार सब आस लगाई।

अब सुधि लेत शीतला माई।।


।।  दोहा ।।


यह चालीसा शीतला

पाठ करे जो कोय।


सपनें दुख व्यापे नही

नित सब मंगल होय।

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श्री शीतला माता की आरती || जय शीतला माता || Shri Shitala Mata Ki Aarti || Jay Sheetala Mata || Aarti Lyrics in Hindi 

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