आरती जनक-ललीकी कीजै।
सुबरन-थार बारि घृत-बाती,
तन निज बारि रूप-रस पीजै॥
आरती जनक-ललीकी कीजै।
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गौर-बरन सुंदर तन सोभा
नख-सिख छबि नैननि भरि लीजै।
आरती जनक-ललीकी कीजै।
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सरस-माधुरी स्वामिनि मेरी
चरन-कमलमें चित नित दीजै ॥
आरती जनक-ललीकी कीजै।
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