मंगलवार, 30 सितंबर 2025

⚔️👁️ पौराणिक कथा – कौन था अन्धकासुर? | भगवान शिव और अन्धकासुर का युद्ध 🕉️🔥

कौन था अन्धकासुर | पौराणिक कथा प्रसंग
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दिति का एक महाबलशाली पुत्र अन्धक था । नेत्र रहते हुए भी वह मदान्ध होने के कारण अन्धों की तरह चलता था। इसी से उसका नाम अन्धक पड़ गया था । उसके आडि तथा वक दो पुत्र थे ।
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तपस्या के प्रभाव के कारण अन्धक देवताओं के लिए अबध्य हो गया था। एक बार जब अवन्ती के कालवन में महादेव पार्वती के साथ क्रीड़ा कर रहे थे, तब अन्धकासुर उन्मत्त-सा वहाँ पहुंचा और मॉं पार्वती का हरण करने की कोशिश करने लगा। तब क्रुद्ध हुए रुद्र तथा अन्धक में भीषण युद्ध हुआ और शङ्कर के पाशुपतास्त्र से घायल होने पर उसके रक्त से अनेक अन्धक उत्पन्न हो गए। रुद्र ने उन अन्धकों को बाणों से आहत कर दिया। किन्तु उन अन्धकों के रुधिर से पुनः सहस्रों अन्धक पैदा हो गये । उत्पन्न होते ही उन अन्धकों ने सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त कर लिया। तब उन मायावी अन्धकों के नाश के लिए रुद्र ने 197 मातृकाएँ उत्पन्न कीं, जिनमें माहेश्वरी, कौमारी, मालिनी, सौपर्णी, वायव्या आदि प्रमुख थीं । मातृकाओं ने उन अन्धकों का रुधिर पान करना प्रारम्भ किया; किन्तु वे पुनः बढ़ने लगे । तब खिन्न होकर शिव विष्णु की शरण में गए। तब उन्होंने 'शुष्क-रेवती' नामक एक मातृका को उत्पन्न किया। शुष्क रेवती ने क्षणभर में ही उन अन्धकों का रक्त, पी डाला और वे विनाश को प्राप्त हो गये । अन्धकों के नष्ट हो जाने पर अन्धक निराश हो गया। तब भगवान् शङ्कर ने शूलास्‍त्र से उस पर प्रहार किया; किन्तु अन्धक ने शङ्कर को प्रसन्‍न कर लिया और शिव-गणों का स्वामित्व प्राप्त किया।
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पौराणिक कथा – कौन था अन्धकासुर? | भगवान शिव और अन्धकासुर का युद्ध

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Diti ka ek Mahabalshaali putra Andhak tha. Netra rahte huye bhi vah madandh hone ke kaaran andhon ki tarah chalta tha. Isi se uska naam Andhak pad gaya tha. Uske Aadi tatha Vaka do putra the.
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Tapasya ke prabhav ke kaaran Andhak devtaon ke liye abadhya ho gaya tha. Ek baar jab Avanti ke Kalavan me Mahadev Parvati ke saath kreeda kar rahe the, tab Andhakasur unmatt-sa vahan pahuncha aur Maa Parvati ka haran karne ki koshish karne laga. Tab kruddh huye Rudra tatha Andhak me bhishan yudh hua aur Shankar ke Pashupatastra se ghaayal hone par uske rakt se anek Andhak utpann ho gaye. Rudra ne un Andhakon ko baanon se aahat kar diya. Kintu un Andhakon ke rudhir se punah sahasron Andhak paida ho gaye. Utpann hote hi un Andhakon ne sampoorn jagat ko vyapt kar liya. Tab un mayavi Andhakon ke naash ke liye Rudra ne 197 Maatrikaayen utpann ki, jinme Maheshwari, Kaumari, Malini, Sauparni, Vaivya adi pramukh thin. Maatrikaon ne un Andhakon ka rudhir paan karna praarambh kiya; kintu ve punah badhne lage. Tab khinn hokar Shiv Vishnu ki sharan me gaye. Tab unhone 'Shushk-Revati' naamak ek Maatrika ko utpann kiya. Shushk Revati ne kshanbhar me hi un Andhakon ka rakt pee daala aur ve vinaash ko praapt ho gaye. Andhakon ke nasht ho jaane par Andhak niraash ho gaya. Tab Bhagwan Shankar ne Shoolastra se us par prahaar kiya; kintu Andhak ne Shankar ko prasann kar liya aur Shiv-ganon ka swaamitva praapt kiya.
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आभार - यह कहानी श्री गौरीनाथ शास्‍त्री द्वारा सम्‍पादित पुस्‍तक पुराण कथा कोष अध्‍ययनमाला तृतीय-पुष्‍पम् से ली गयी है। पुस्‍तक का प्रकाशन 1983 में पौराणिक तथा वैदिक अध्‍ययन अनुसंधान संस्‍थान नैमिषारण्‍य सीतापुर के द्वारा किया गया है।  

शनिवार, 20 सितंबर 2025

जाहरवीर आरती | Goga Jaharveer ki Aarti | जाहर बीर गोगा जी की आरती

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Goga Jaharveer ki Aarti
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जय -जय जाहरवीर हरे
जय -जय गोगावीर हरे
धरती पर आकर के 
भक्तों के कष्ट हरे ||जय जय||
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जो कोई भक्ति करे प्रेम से 
निसादिन करे प्रेम से 
भागे दुःख परे
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विघ्न हरन  मंगल के दाता
जन -जन का कष्ट हरे
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जेवर राव के पुत्र कहाए
रानी बाछल माता 
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बागड़ में जन्म लिया गुगा ने 
सब जय -जयकार करे ||जय जय||
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धर्म कि बेल बढाई निशदिन 
तपस्या रोज करे
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दुष्ट जनों को दण्ड दिया
जग में रहे आप खरे ||जय -जय||
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सत्य अहिंसा का व्रत धारा 
झूठ से सदा डरे
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वचन भंग को बुरा समझ कर
घर से आप निकरे || जय-जय ||
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माडी में करी तपस्या 
अचरज सभी करे
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चारों दिशाओं  से भगत आ रहे 
जोड़े हाथ खड़े || जय-जय || 
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अजर अमर है नाम तुम्हारा 
हे प्रसिद्ध जगत उजियारा
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भूत  पिशाच निकट नहीं आवे 
जो कोई जाहर  नाम गावे || जय जय ||
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सच्चे मन से जो ध्यान लगावे 
सुख सम्पति घर आवे 
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नाम तुम्हारा जो कोई गावे 
जन्म जन्म के दुःख बिसरावे || जय-जय ||
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भादो कृष्‍ण नोमी के दिन जो पूजे 
वह विघ्नों से नहीं डरे 
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जय-जय जाहर वीर हरे
जय श्री गोगा वीर हरे
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जाहरवीर आरती | Goga Jaharveer ki Aarti | जाहर बीर गोगा जी की आरती
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Jai -Jai Jaharveer Hare
Jai -Jai Gogaveer Hare
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Dharti par aakar ke
Bhakton ke kasht hare ||Jai Jai||
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Jo koi bhakti kare prem se
Nisadin kare prem se
Bhaage dukh pare
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Vighn haran mangal ke data
Jan -jan ka kasht hare
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Jewar Rao ke putra kahaaye
Rani Bachhal mata
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Bagad mein janm liya Guga ne
Sab jai -jaikaar kare ||Jai Jai||
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Dharm ki bel badhaai nishdin
Tapasya roj kare
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Dusht janon ko dand diya
Jag mein rahe aap khare ||Jai -Jai||
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Satya ahinsa ka vrat dhara
Jhooth se sada dare
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Vachan bhang ko bura samajh kar
Ghar se aap nikre || Jai-Jai ||
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Madi mein kari tapasya
Acharaj sabhi kare
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Charon dishaon se bhagat aa rahe
Jode haath khade || Jai-Jai ||
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Ajar amar hai naam tumhara
He prasiddh jagat ujiyaara
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Bhoot pishaach nikat nahin aave
Jo koi Jahar naam gaave || Jai Jai ||
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Sachche man se jo dhyan lagave
Sukh sampati ghar aave
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Naam tumhara jo koi gaave
Janm janm ke dukh bisraave || Jai-Jai ||
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Bhado Krishn Nomi ke din jo pooje
Vah vighnon se nahin dare
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Jai-Jai Jahar Veer Hare
Jai Shri Goga Veer Hare
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महाशिवरात्रि व्रत की प्रामाणिक और पौराणिक कथा : शिकारी चित्रभानु और शिवलिंग पूजन की अद्भुत गाथा

महाशिवरात्रि व्रत की प्रामाणिक और पौराणिक कथा
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महाशिवरात्रि व्रत की प्रामाणिक और पौराणिक कथा
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पूर्व काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था। जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी।
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शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल गया। जब अंधकार हो गया तो उसने विचार किया कि रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी। वह वन एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा।
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बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढंका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला। पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची।
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शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली- 'मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।'  शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई। प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया।
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कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया- 'हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। 
दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। इस बार भी धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे तथा दूसरे प्रहर की पूजन भी सम्पन्न हो गई। तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली- 'हे शिकारी! मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।' 
शिकारी हंसा और बोला- 'सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्यग्र हो रहे होंगे।' उत्तर में हिरणी ने फिर कहा- जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। हे शिकारी! मेरा विश्वास करो, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं। हिरणी का दुखभरा स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में तथा भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। 
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पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला- ' हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।' मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा- 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।' 
शिकारी ने उसे भी जाने दिया। इस प्रकार प्रात: हो आई। उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई। पर अनजाने में ही की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला। शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया। उसमें भगवद्शक्ति का वास हो गया। थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया।
अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर भी शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई। जब मृत्यु काल में यमदूत उसके जीव को ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को शिवलोक ले गए। शिवजी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महाशिवरात्रि के महत्व को जानकर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।
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Poorv kaal mein Chitrabhanu naamak ek shikari tha. Jaanvaron ki hatya karke vah apne parivaar ko paalta tha. Vah ek sahookar ka karzdaar tha, lekin uska rin samay par na chuka saka. Krodhit sahookar ne shikari ko Shivmath mein bandi bana liya. Sanyog se us din Shivratri thi. Shikari dhyanmagn hokar Shiv-sambandhi dharmik baatein sunta raha. Chaturdashi ko usne Shivratri vrat ki katha bhi suni.
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Shaam hote hi sahookar ne use apne paas bulaya aur rin chukane ke vishay mein baat ki. Shikari agle din saara rin lauta dene ka vachan dekar bandhan se chhoot gaya. Apni dincharya ki bhaanti vah jangal mein shikar ke liye nikla. Lekin dinbhar bandi grih mein rehne ke karan bhookh-pyaas se vyakul tha. Shikar khojta hua vah bahut door nikal gaya. Jab andhkaar ho gaya to usne vichaar kiya ki raat jangal mein hi bitani padegi. Vah van ek talab ke kinare ek bel ke ped par chadh kar raat bitane ka intezar karne laga.
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Bilv vriksh ke neeche Shivling tha jo bilvpatron se dhanka hua tha. Shikari ko uska pata na chala. Padaav banate samay usne jo tahniyaan todi, ve sanyog se Shivling par girti chali gayi. Is prakar dinbhar bhookhe-pyaase shikari ka vrat bhi ho gaya aur Shivling par bilvpatra bhi chadh gaye. Ek pahar raat beet jaane par ek garbhini hirni talab par paani peene pahunchi.
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Shikari ne dhanush par teer chadhakar jyon hi pratyuncha kheenchhi, hirni boli- 'Main garbhini hoon. Sheeghr hi prasav karoongi. Tum ek saath do jeevon ki hatya karoge, jo theek nahin hai. Main bachche ko janm dekar sheeghr hi tumhare samaksh prastut ho jaaoongi, tab maar lena.' Shikari ne pratyuncha dheeli kar di aur hirni jangli jhaadiyon mein lupt ho gayi. Pratyuncha chadhane tatha dheeli karne ke vakt kuch bilv patra anayaas hi toot kar Shivling par gir gaye. Is prakar usse anjaane mein hi pratham prahar ka poojan bhi sampann ho gaya.
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Kuch hi der baad ek aur hirni udhar se nikli. Shikari ki prasannata ka thikaana na raha. Sameep aane par usne dhanush par baan chadhaya. Tab use dekh hirni ne vinamrataapoorvak nivedan kiya- 'He shikari! Main thodi der pehle ritu se nivritt hui hoon. Kaamatur virahini hoon. Apne priya ki khoj mein bhatak rahi hoon. Main apne pati se milkar sheeghr hi tumhare paas aa jaaoongi.' Shikari ne use bhi jaane diya.
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Do baar shikar ko khokar uska maatha thanka. Vah chinta mein pad gaya. Raatri ka aakhri pahar beet raha tha. Is baar bhi dhanush se lag kar kuch belpatra Shivling par ja gire tatha doosre prahar ki poojan bhi sampann ho gayi. Tabhi ek anya hirni apne bachchon ke saath udhar se nikli. Shikari ke liye yeh svarnim avsar tha. Usne dhanush par teer chadhane mein der nahin lagayi. Vah teer chhodne hi wala tha ki hirni boli- 'He shikari! Main in bachchon ko inke pita ke hawaale karke laut aaoongi. Is samay mujhe mat maaro.'
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Shikari hansa aur bola- 'Samne aaye shikar ko chhod doon, main aisa moorkh nahin. Isse pehle main do baar apna shikar kho chuka hoon. Mere bachche bhookh-pyaas se vyagra ho rahe honge.' Uttar mein hirni ne phir kaha- 'Jaise tumhein apne bachchon ki mamta sata rahi hai, theek vaise hi mujhe bhi. He shikari! Mera vishwas karo, main inhein inke pita ke paas chhodkar turant lautne ki pratigya karti hoon.' Hirni ka dukhbhara swar sunkar shikari ko us par daya aa gayi. Usne us mrigi ko bhi jaane diya. Shikar ke abhaav mein tatha bhookh-pyaas se vyakul shikari anjaane mein hi bel-vriksh par baitha belpatra tod-todkar neeche fekta ja raha tha.
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Pau fatne ko hui to ek hasht-pusht mrig usi raste par aaya. Shikari ne soch liya ki iska shikar vah avashya karega. Shikari ki tani pratyuncha dekhkar mrig vineet swar mein bola- 'He shikari! Yadi tumne mujhse poorv aane wali teen mrigiyon tatha chhote-chhote bachchon ko maar daala hai, to mujhe bhi maarne mein vilamb na karo, taaki mujhe unke viyog mein ek kshan bhi dukh na sehna pade. Main un hirniyon ka pati hoon. Yadi tumne unhein jeevandan diya hai to mujhe bhi kuch kshan ka jeevan dene ki kripa karo. Main unse milkar tumhare samaksh upasthit ho jaaoonga.' Mrig ki baat sunti hi shikari ke samne poori raat ka ghatnachakra ghoom gaya. Usne saari katha mrig ko suna di. Tab mrig ne kaha- 'Meri teenon patniyan jis prakar pratigyabaddh hokar gayi hain, meri mrityu se apne dharm ka paalan nahin kar paayengi. Atah jaise tumne unhein vishwaspatra maan kar chhoda hai, vaise hi mujhe bhi jaane do. Main un sabke saath tumhare samne sheeghr hi upasthit hota hoon.'
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Shikari ne use bhi jaane diya. Is prakar praat: ho aayi. Upvaas, raatri-jaagaran tatha Shivling par belpatra chadhne se anjaane mein hi par Shivratri ki pooja poorn ho gayi. Par anjaane mein hi ki hui poojan ka parinaam use tatkaal mila. Shikari ka hinsak hriday nirmal ho gaya. Usmein bhagavadshakti ka vaas ho gaya. Thodi hi der baad vah mrig saparivaar shikari ke samaksh upasthit ho gaya, taaki vah unka shikar kar sake, kintu jangli pashuon ki aisi satyata, saatvikta evam saamuhik prem-bhaavna dekhkar shikari ko badi glani hui. Usne mrig parivaar ko jeevandan de diya.
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Anjaane mein Shivratri ke vrat ka paalan karne par bhi shikari ko moksh ki praapti hui. Jab mrityu kaal mein Yamdoot uske jeev ko le jaane aaye to Shivganon ne unhein vaapas bhej diya tatha shikari ko Shivalok le gaye. Shivji ki kripa se hi apne is janm mein Raja Chitrabhanu apne pichhle janm ko yaad rakh paaye tatha Mahashivratri ke mahatva ko jaankar uska agle janm mein bhi paalan kar paaye.
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महाशिवरात्रि व्रत पर 10 प्रश्नोत्तर (FAQ)
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Q1. महाशिवरात्रि व्रत कब रखा जाता है?
👉 महाशिवरात्रि व्रत फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को रखा जाता है।
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Q2. महाशिवरात्रि व्रत का महत्व क्या है?
👉 इस व्रत से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है, पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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Q3. महाशिवरात्रि व्रत कौन रख सकता है?
👉 यह व्रत स्त्री, पुरुष, वृद्ध, युवा सभी रख सकते हैं। विशेष रूप से विवाहित स्त्रियां सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन की मंगलकामना से इसे करती हैं।
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Q4. महाशिवरात्रि व्रत कैसे किया जाता है?
👉 प्रातः स्नान कर संकल्प लें, दिनभर उपवास करें, रातभर जागरण करें और शिवलिंग का जलाभिषेक व पूजन करें।
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Q5. महाशिवरात्रि व्रत में क्या खाना चाहिए?
👉 व्रतधारी केवल फलाहार कर सकते हैं। फल, दूध, दही, फलाहारी पकवान और पानी का सेवन किया जाता है।
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Q6. क्या महाशिवरात्रि व्रत में नमक खा सकते हैं?
👉 व्रत में साधारण नमक नहीं खाया जाता, लेकिन सेंधा नमक का प्रयोग किया जा सकता है।
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Q7. शिवलिंग पर अभिषेक किससे करना चाहिए?
👉 शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद, घी, गंगाजल और बेलपत्र अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
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Q8. महाशिवरात्रि व्रत की पूजा का सही समय क्या है?
👉 पूजा का सर्वोत्तम समय निशीथ काल (आधी रात) माना जाता है। साथ ही चार प्रहरों में अलग-अलग पूजा भी की जाती है।
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Q9. क्या महाशिवरात्रि व्रत बिना उपवास किए रखा जा सकता है?
👉 हाँ, यदि स्वास्थ्य कारणों से उपवास संभव न हो तो केवल पूजा, जलाभिषेक और रात्रि-जागरण करके भी व्रत किया जा सकता है।
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Q10. महाशिवरात्रि व्रत करने से क्या फल मिलता है?
👉 इस व्रत से पापों का नाश होता है, संतान सुख की प्राप्ति होती है, वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है और अंततः मोक्ष प्राप्त होता है।
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मंगलवार, 16 सितंबर 2025

Kanya Sankranti 2025: कन्या संक्रांति व्रत कथा, पूजा विधि, दान का महत्व और लाभ

Kanya Sankranti: कन्या संक्रांति के दिन इस कथा का करें पाठ, सूर्यदेव की बनी रहेगी कृपा!

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Kanya Sankranti 2025: कन्या संक्रांति व्रत कथा, पूजा विधि, दान का महत्व और लाभ
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कन्‍या संक्रांति का परिचय (Kanya Sankranti Kya Hai)

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सनातन धर्म में सूर्य देव का विशेष महत्व है। जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, उस दिन को संक्रांति (Sankranti) कहा जाता है। वर्ष भर में कुल 12 संक्रांतियां होती हैं और प्रत्येक का अपना आध्यात्मिक व धार्मिक महत्व है।
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कन्या संक्रांति (Kanya Sankranti) तब होती है जब सूर्य कन्या राशि (Virgo) में प्रवेश करते हैं। ज्योतिष शास्त्र में इसे बेहद पवित्र और शुभ दिन माना गया है। इस दिन सूर्य देव की उपासना, व्रत, कथा पाठ और दान-पुण्य का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन सूर्यदेव की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि, संतान सुख और परिवार में खुशहाली आती है।
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कन्या संक्रांति पूजा विधि (Kanya Sankranti Ki Pooja Vidhi)

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कन्या संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए और शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद निम्नलिखित विधि से पूजा करने का विधान है –
1. स्नान और अर्घ्यदान – तांबे के लोटे में जल, लाल पुष्प, गुड़ और अक्षत डालकर उगते सूर्य को अर्घ्य दें।
2. सूर्य मंत्र का जाप – अर्घ्य देते समय “ॐ घृणि सूर्याय नमः” मंत्र का 11, 21 या 108 बार जाप करें।
3. प्रतिमा पूजन – सूर्य देव की प्रतिमा या चित्र पर लाल वस्त्र, चंदन, रोली और पुष्प चढ़ाएँ।
4. व्रत और आहार – व्रत रखने वाले भक्त केवल फलाहार करें और नमक का सेवन न करें।
5. दान-पुण्य – ब्राह्मणों को भोजन कराकर तांबा, गेहूँ, गुड़ और लाल वस्त्र का दान करें।
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कन्या संक्रांति की पौराणिक कथा (Kanya Sankranti Ki Katha)

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पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय पृथ्वी पर घोर अंधकार छा गया। सूर्यदेव क्रोधित होकर अपनी किरणें छिपा लिए। जीव-जंतु, मनुष्य और वनस्पतियाँ सभी कष्ट में पड़ गए। तब ऋषि कश्यप ने कठोर तपस्या करके सूर्यदेव को प्रसन्न किया। सूर्यदेव प्रकट हुए और कहा – “जो भी भक्त कन्या संक्रांति के दिन मेरी पूजा और इस कथा का पाठ करेगा, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होंगी और उसके जीवन में कभी अंधकार नहीं रहेगा।”
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एक कथा में उल्लेख है कि एक निर्धन ब्राह्मण, जिसकी संतान नहीं थी, उसने कन्या संक्रांति व्रत और कथा का पाठ किया। कुछ समय बाद उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और उसके जीवन में सुख-समृद्धि आ गई। तभी से यह परंपरा बनी कि कन्या संक्रांति पर व्रत, कथा पाठ और दान करने से संतान सुख और जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं।
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कन्या संक्रांति की कथा पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है, जो पितृ भक्ति, दान के महत्व और सूर्य उपासना की महिमा को उजागर करती है। विष्णु पुराण के अनुसार, बहुत प्राचीन काल में इक्ष्वाकु वंश में राजा दिलीप नामक एक धर्मात्मा राजा राज्य करते थे। वे सूर्य भक्त थे और प्रतिदिन सूर्योदय पर अर्घ्य देकर पूजन करते। उनका राज्य समृद्ध था, प्रजा सुखी थी, किंतु राजा को एक गहन चिंता सताती रहती। उनके पिता राजा भगीरथ की आत्मा को पितृलोक में शांति न मिल रही थी। पितृ पक्ष के दौरान पिता का आह्वान करने पर उन्हें दर्शन होते, लेकिन वे दुखी मुद्रा में कहते- पुत्र, मेरी आत्मा को मोक्ष नहीं मिल रहा है। तू मेरे लिए कुछ कर। राजा दिलीप ने ब्राह्मणों से परामर्श किया तो ज्ञात हुआ कि पितृ दोष के कारण ऐसा हो रहा है। ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन, सूर्य के कन्या राशि में गोचर के दिन, जो कन्या संक्रांति के नाम से विख्यात है, उस दिन पितृ तर्पण और सूर्य पूजन से पितरों को मुक्ति मिलेगी।
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राजा दिलीप ने संकल्प लिया। कन्या संक्रांति का दिन आया। प्रातःकाल वे गंगा तट पर पहुंचे। सूर्योदय होते ही उन्होंने तिल-जल मिलाकर स्नान किया। फिर सूर्य मंडल की ओर मुख करके खड़े हो गए। उनके हाथों में सरसों का तेल का दीपक था, जो सूर्य को समर्पित कर जलाया। ओम सूर्याय नमः का जाप करते हुए उन्होंने अर्क पुष्प चढ़ाए। पूजन के बाद पितृ तर्पण प्रारंभ किया। दक्षिण दिशा की ओर बैठकर उन्होंने पिता के नाम से काले तिल, दूध और जल का अर्घ्य दिया। पितृ सूक्त का पाठ किया। तर्पण के दौरान उन्होंने अपनी समस्त संपत्ति को दान स्वरूप गरीब ब्राह्मणों को वितरित करने का संकल्प लिया।
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अचानक आकाश में घनघोर बादल छा गए। एक तेज प्रकाश की किरण प्रकट हुई और राजा के पिता भगीरथ का दिव्य स्वरूप प्रकट हुआ। वे मुस्कुराते हुए बोले- पुत्र, तेरी भक्ति से मेरी आत्मा को शांति मिली। सूर्य देव प्रसन्न हैं। कन्या संक्रांति का पुण्य मुझे पितृलोक से मुक्त कर रहा है। अब मैं स्वर्गलोक को प्राप्त हो रहा हूं। तू और तेरी संतान हमेशा समृद्ध रहे। कहते हुए वे आकाश में विलीन हो गए। उसी क्षण वर्षा हुई, जो पितरों की कृपा का प्रतीक थी। राजा दिलीप का हृदय आनंद से भर गया। उनके राज्य में अकाल समाप्त हो गया, फसलें लहलहाने लगीं और वंश में पुत्रों की प्राप्ति हुई।
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संक्रांति पर दान का महत्व (Sankranti Par Dan Ka Mahatva)

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हिंदू शास्त्रों में दान को सर्वोत्तम धर्म बताया गया है। कहा गया है कि “दानात् प्राप्यते स्वर्गः” अर्थात दान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। कन्या संक्रांति पर विशेष रूप से इन वस्तुओं का दान शुभ माना गया है जैसे तांबे के पात्र, लाल वस्त्र, गेहूँ और गुड़, अनाज और फल तथा ब्राह्मणों को भोजन। मान्यता है कि इन दानों से पितृदोष और ग्रहदोष का निवारण होता है तथा पुण्यफल प्राप्त होता है।
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ज्योतिषीय महत्व (Kanya Sankranti 2025 Jyotish Mahatva)

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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसका सभी 12 राशियों पर प्रभाव पड़ता है। खासकर जिनकी जन्मकुंडली में सूर्य अशुभ स्थिति में होते हैं, उनके लिए यह दिन अत्यंत फलदायी होता है। इस दिन व्रत, दान और पूजा करने से सूर्यदेव की कृपा प्राप्ति होती है और साथ ही ग्रह दोषों का निवारण होता है। करियर और व्यवसाय में सफलता मिलती है। जीवन में नए अवसर प्राप्त होते हैं। आत्मविश्वास और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।
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कन्या संक्रांति के लाभ (Kanya Sankranti Ke Labh)

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कन्या संक्रांति धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं –
1. पितृदोष से मुक्ति – सूर्य देव की कृपा से पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
2. ग्रह दोष का निवारण – अशुभ ग्रहों का प्रभाव कम होता है।
3. संतान सुख की प्राप्ति – निःसंतान दंपत्ति को संतान सुख का आशीर्वाद मिलता है।
4. सुख-समृद्धि और धन लाभ – घर में खुशहाली और आर्थिक उन्नति होती है।
5. मानसिक शांति – मन में सकारात्मकता और आत्मबल का संचार होता है।
6. आयु वृद्धि और स्वास्थ्य लाभ – नियमित व्रत और पूजा से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
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कन्या संक्रांति पर करने योग्य उपाय (Kanya Sankranti Ke Upay)

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1. सुबह जल्दी उठकर नदी या पवित्र जलाशय में स्नान करें।
2. उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करें।
3. गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न और वस्त्र दान करें।
4. लाल पुष्प और लाल वस्त्र से सूर्य देव की पूजा करें।
5. “ॐ घृणि सूर्याय नमः” मंत्र का जाप अवश्य करें।
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कन्या संक्रांति 2025 (Kanya Sankranti 2025) एक ज्योतिषीय घटना के साथ ही आस्था, श्रद्धा और विश्वास का पर्व है। इस दिन व्रत, पूजा, कथा और दान से जहॉं एक ओर पितृदोष और ग्रहदोष दूर होते हैं, वहीं दूसरी ओर जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी आती है। सूर्यदेव की कृपा से व्यक्ति के जीवन में अंधकार का नाश होकर उज्ज्वल भविष्य का मार्ग प्रशस्त होता है। इसलिए हर भक्त को चाहिए कि इस दिन श्रद्धा भाव से पूजा और कथा का पाठ करें।
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Kanya Sankranti 2025: FAQ in Hindi

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Q1. कन्या संक्रांति कब मनाई जाती है?
कन्या संक्रांति उस दिन मनाई जाती है जब सूर्य देव सिंह राशि से निकलकर कन्या राशि में प्रवेश करते हैं। यह हर साल सितंबर माह में आती है।
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Q2. कन्या संक्रांति का महत्व क्या है?
कन्या संक्रांति का महत्व सूर्य पूजा, दान-पुण्य और पितृ दोष निवारण से जुड़ा हुआ है। इस दिन व्रत और कथा का पाठ करने से जीवन में सुख-समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
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Q3. कन्या संक्रांति पर क्या करना चाहिए?
कन्या संक्रांति पर प्रातः स्नान कर सूर्य देव को जल अर्पित करें, लाल वस्त्र पहनें, तांबे के लोटे से अर्घ्य दें, सूर्य मंत्र का जाप करें और ब्राह्मण को भोजन कराकर दान करें।
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Q4. कन्या संक्रांति की पूजा विधि क्या है?
इस दिन उगते सूर्य को जल, पुष्प, अक्षत और गुड़ से अर्घ्य दिया जाता है। व्रत रखने वाले फलाहार करें और नमक का त्याग करें। सूर्य देव की प्रतिमा पर लाल वस्त्र और चंदन चढ़ाएं।
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Q5. कन्या संक्रांति पर किस कथा का पाठ करना चाहिए?
इस दिन सूर्य देव की पौराणिक कथा का पाठ करना चाहिए, जिसमें बताया गया है कि कन्या संक्रांति के दिन पूजा और कथा करने से जीवन से अंधकार दूर होता है और समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
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Q6. कन्या संक्रांति पर क्या दान करना शुभ होता है?
गेहूँ, गुड़, तांबे के बर्तन, लाल वस्त्र और अनाज का दान कन्या संक्रांति पर सबसे शुभ माना जाता है। इससे पितृदोष और ग्रहदोष का निवारण होता है।
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Q7. कन्या संक्रांति के दिन व्रत करने का क्या लाभ है?
व्रत करने से संतान सुख, घर-परिवार में शांति, आर्थिक उन्नति और ग्रहदोष से मुक्ति मिलती है। यह व्रत सूर्य देव की विशेष कृपा पाने का माध्यम है।
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Q8. कन्या संक्रांति और पितृ दोष निवारण में क्या संबंध है?
कन्या संक्रांति पर सूर्य पूजा और दान-पुण्य करने से पितृदोष का निवारण होता है। इस दिन पितरों को जल अर्पण करना अत्यंत शुभ माना गया है।
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Q9. क्या कन्या संक्रांति का ज्योतिषीय महत्व भी है?
हाँ, ज्योतिष के अनुसार जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते हैं तो इसका प्रभाव सभी राशियों पर पड़ता है। जिनकी कुंडली में सूर्य अशुभ स्थिति में हो, उनके लिए यह दिन विशेष पूजा का महत्व रखता है।
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Q10. कन्या संक्रांति 2025 में क्या विशेष है?
कन्या संक्रांति 2025 में सूर्य का कन्या राशि में प्रवेश विशेष संयोग बना रहा है। इस वर्ष संक्रांति के दिन पूजा, दान और व्रत करने से साधक को दीर्घायु, संतान सुख और समस्त बाधाओं से मुक्ति मिलेगी।
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Kanya Sankranti 2025: Kanya Sankranti Ke Din Is Katha Ka Karein Paath, Suryadev Ki Bani Rahegi Kripa!

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Kanya Sankranti Ka Parichay (Kanya Sankranti Kya Hai)

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Sanatan dharm mein Surya Dev ka vishesh mahatva hai. Jab Surya ek rashi se doosri rashi mein pravesh karte hain, us din ko Sankranti (Sankranti) kaha jaata hai. Varsh bhar mein kul 12 Sankrantiyan hoti hain aur pratyek ka apna adhyatmik va dharmik mahatva hai.
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Kanya Sankranti (Kanya Sankranti) tab hoti hai jab Surya Kanya Rashi (Virgo) mein pravesh karte hain. Jyotish shastra mein ise behad pavitra aur shubh din mana gaya hai. Is din Surya Dev ki upasana, vrat, katha paath aur daan-punya ka vishesh mahatva bataya gaya hai. Manyata hai ki is din Suryadev ki kripa se jeevan mein sukh-samriddhi, santan sukh aur parivar mein khushhali aati hai.
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Kanya Sankranti Pooja Vidhi (Kanya Sankranti Ki Pooja Vidhi)

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Kanya Sankranti ke din Suryoday se pehle uthkar snaan karna chahiye aur shuddh vastra dharan karne chahiye. Iske baad nimnalikhit vidhi se pooja karne ka vidhan hai –
1. Snaan aur Arghyadan – Tambe ke lote mein jal, laal pushp, gud aur akshat daalkar ugte Surya ko arghya den.
2. Surya Mantra Ka Jaap – Arghya dete samay “Om Ghṛṇi Suryaya Namah” mantra ka 11, 21 ya 108 bar jaap karein.
3. Pratima Poojan – Surya Dev ki pratima ya chitra par laal vastra, chandan, roli aur pushp chadhayein.
4. Vrat aur Aahar – Vrat rakhne wale bhakt keval falahar karein aur namak ka sevan na karein.
5. Daan-Punya – Brahmano ko bhojan karakar tamba, gehun, gud aur laal vastra ka daan karein.
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Kanya Sankranti Ki Pauranik Katha (Kanya Sankranti Ki Katha)

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Pauranik kathao ke anusar, ek samay Prithvi par ghor andhkaar chha gaya. Suryadev krodhit hokar apni kirnein chhupa liye. Jeev-jantu, manushya aur vanaspatiyaan sabhi kasht mein pad gaye. Tab Rishi Kashyap ne kathor tapasya karke Suryadev ko prasann kiya. Suryadev prakat hue aur kaha – “Jo bhi bhakt Kanya Sankranti ke din meri pooja aur is katha ka paath karega, uski sabhi ichchhaayein poorn hongi aur uske jeevan mein kabhi andhkaar nahi rahega.”
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Ek katha mein ullekh hai ki ek nirdhan Brahman, jiski santan nahi thi, usne Kanya Sankranti vrat aur katha ka paath kiya. Kuch samay baad use putra ratna ki prapti hui aur uske jeevan mein sukh-samriddhi aa gayi. Tabhi se yeh parampara bani ki Kanya Sankranti par vrat, katha paath aur daan karne se santan sukh aur jeevan ki sabhi baadhaayein door hoti hain.
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Sankranti Par Daan Ka Mahatva (Sankranti Par Dan Ka Mahatva)

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Hindu shastron mein daan ko sarvottam dharm bataya gaya hai. Kaha gaya hai ki “Danat Prapyate Swargah” arthaat daan karne se swarg ki prapti hoti hai. Kanya Sankranti par vishesh roop se in vastuon ka daan shubh mana gaya hai jaise tambe ke patra, laal vastra, gehun aur gud, anaj aur phal tatha Brahmano ko bhojan. Manyata hai ki in daano se pitru dosh aur grah-dosh ka nivaran hota hai tatha punyaphal prapt hota hai.
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Jyotishiya Mahatva (Kanya Sankranti 2025 Jyotish Mahatva)

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Jyotish shastra ke anusar jab Surya Kanya Rashi mein pravesh karte hain, to iska sabhi 12 rashiyon par prabhav padta hai. Khaaskar jinki janmakundali mein Surya ashubh sthiti mein hote hain, unke liye yeh din atyant phaldayi hota hai. Is din vrat, daan aur pooja karne se Suryadev ki kripa prapti hoti hai aur sath hi grah doshon ka nivaran hota hai. Career aur vyavsay mein safalta milti hai. Jeevan mein naye avsar prapt hote hain. Atmavishwas aur mansik shanti ki prapti hoti hai.
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Kanya Sankranti Ke Labh (Kanya Sankranti Ke Labh)

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Kanya Sankranti dharmik, adhyatmik aur samajik drishti se atyant mahatvapurn hai. Is din ke pramukh labh nimnalikhit hain –
1. Pitru Dosh Se Mukti – Surya Dev ki kripa se pitron ka ashirwad milta hai.
2. Grah Dosh Ka Nivaran – Ashubh grahon ka prabhav kam hota hai.
3. Santan Sukh Ki Prapti – Nisantan dampatti ko santan sukh ka ashirwad milta hai.
4. Sukh-Samriddhi Aur Dhan Labh – Ghar mein khushhali aur aarthik unnati hoti hai.
5. Mansik Shanti – Man mein sakaratmakta aur atmabal ka sanchar hota hai.
6. Aayu Vriddhi Aur Swasthya Labh – Niyamit vrat aur pooja se uttam swasthya ki prapti hoti hai.
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Kanya Sankranti Par Karne Yogya Upay (Kanya Sankranti Ke Upay)

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1. Subah jaldi uthkar nadi ya pavitra jalashay mein snaan karein.
2. Ugte Surya ko arghya arpit karein.
3. Gareebon aur zaruratmandon ko ann aur vastra daan karein.
4. Laal pushp aur laal vastra se Surya Dev ki pooja karein.
5. “Om Ghṛṇi Suryaya Namah” mantra ka jaap avashya karein.
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Kanya Sankranti 2025 (Kanya Sankranti 2025) ek jyotishiya ghatna ke sath hi aasha, shraddha aur vishwas ka parv hai. Is din vrat, pooja, katha aur daan se jahan ek or pitru-dosh aur grah-dosh door hote hain, wahi doosri or jeevan mein sukh, shanti aur samriddhi bhi aati hai. Suryadev ki kripa se vyakti ke jeevan mein andhkaar ka naash hokar ujjwal bhavishya ka marg prashast hota hai. Isliye har bhakt ko chahiye ki is din shraddha bhav se pooja aur katha ka paath karein.
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श्री झूलेलाल चालीसा हिंदी में | Jhulelal Chalisa Lyrics in Hindi and English

श्री झूलेलाल चालीसा हिंदी में | Jhulelal Chalisa Lyrics in Hindi and English

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श्री झूलेलाल चालीसा हिंदी में | Jhulelal Chalisa Lyrics in Hindi and English
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जलदेवता झूलेलाल जी की स्तुति हेतु चालीसा पाठ के लाभ, महत्व और संपूर्ण पाठ

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झूलेलाल जी को सिंधी समाज और जल के देवता के रूप में पूजा जाता है। इन्हें वरुण देवता का अवतार माना जाता है। जलदेवता झूलेलाल जी की आराधना से जीवन में सुख-समृद्धि, शांति और उन्नति प्राप्त होती है। भक्तजन उनकी कृपा के लिए झूलेलाल चालीसा का नियमित पाठ करते हैं। यह चालीसा न केवल भक्ति का अद्भुत माध्यम है बल्कि जीवन के दुखों को दूर करने और इच्छाओं की पूर्ति का भी साधन है।
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झूलेलाल चालीसा का महत्व (Jhulelal Chalisa Ka Mahatva)

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झूलेलाल जी की स्तुति करने से व्यक्ति को आत्मिक शांति और शक्ति मिलती है। जलदेवता झूलेलाल जी की कृपा से जीवन के संकट दूर होते हैं। और यदि जीवन में कोई संकट आ भी जाये तो श्री झूलेलाल जी की कृपा से वे शीघ्र ही दूर हो जाते हैं। परिवार में सुख-समृद्धि और एकता बनी रहती है। भक्त की मनोकामनाएं श्रीझूलेलाल जी अवश्‍य पूर्ण करते हैं। भक्‍तों में सकारात्‍मकता का संचार होता है तथा नकारात्मक ऊर्जा और बाधाएं दूर होती हैं। मानसिक शांति और आत्मबल पुष्‍ट होता है। चालीसा का पाठ 40 दिनों तक लगातार करने से भक्त को दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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झूलेलाल चालीसा पाठ के लाभ (Jhulelal Chalisa Path Ke Labh)

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चालीसा पाठ के लाभ अनेकों हैं, जो भक्त के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाते हैं। इसका पाठ कठिन समय में हिम्मत और आत्मविश्वास प्रदान करता है तथा कठिनाइयों से लड़ने की क्षमता उत्‍पन्‍न करता है। जीवन की रुकावटें और बाधाएं समाप्त होती हैं। घर-परिवार में शांति और समृद्धि आती है। जल संबंधी समस्याओं और प्राकृतिक विपदाओं से रक्षा होती है। व्यक्ति के भीतर श्रद्धा और भक्ति की भावना बढ़ती है।
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संपूर्ण झूलेलाल चालीसा पाठ (Sampurna Jhulelal Chalisa Path)

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भक्तजन प्रतिदिन प्रातःकाल और सायं काल में झूलेलाल चालीसा का पाठ करते हैं। इस पाठ में झूलेलाल जी के जीवन, चमत्कारों और भक्तों के दुख दूर करने के प्रसंग वर्णित हैं। चालीसा का पाठ करते समय दीप जलाना और शुद्ध भाव से ध्यान लगाना अत्यंत फलदायी माना जाता है।
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जलदेवता झूलेलाल जी की स्तुति के लिए झूलेलाल चालीसा का पाठ अत्यंत शुभ और कल्याणकारी माना जाता है। इसके माध्यम से भक्त को आध्यात्मिक बल तो  मिलता ही है साथ ही जीवन के कष्ट भी समाप्त होते हैं। यदि आप अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि चाहते हैं, तो नियमित रूप से श्रद्धा और भक्ति भाव से झूलेलाल चालीसा का पाठ अवश्य करें।
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॥ दोहा ॥
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जय जय जल देवता,
जय ज्योति स्वरूप ।
अमर उदेरो लाल जय,
झूलेलाल अनूप ॥
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॥ चौपाई ॥
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रतनलाल रतनाणी नंदन ।
जयति देवकी सुत जग वन्दन ॥
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दरियाशाह वरुण अवतारी ।
जय जय लाल साईं सुखकारी ॥
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जय जय होय धर्म की भीरा ।
जिन्दा पीर हरे जन पीरा ॥
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संवत दस सौ सात मंझरा ।
चैत्र शुक्ल द्वितीया भगव वारा ॥४॥
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ग्राम नसरपुर सिंध प्रदेशा ।
प्रभु अवतारे हरे जन कलेशा ॥
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सिन्धु वीर ठट्ठा राजधानी ।
मिरखशाह नौप अति अभिमानी ॥
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कपटी कुटिल क्रूर कुविचारी ।
यवन मलिनमन अत्याचारी ॥
**
धर्मांतरण करे सब केरा ।
दुखी हुए जन कष्ट वृंदा ॥८॥
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पित्वाया हाकिम ढिंढोरा ।
हो इस्लाम धर्म चाहुँओरा ॥
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सिंधी प्रजा बहुत घबराई ।
इष्ट देव को टेर लगाएं ॥
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वरुण देव पूजे बहुंभाति ।
बिन जल अन्न गए दिन राती ॥
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सिंधी तीर सब दिन चालीसा ।
घर घर ध्यान लगाये ईशा ॥१२॥
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गरज उठ नाद सिन्धु सहसा ।
चारो और उठ नव हर्षा ॥
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वरुणदेव ने सुनी पुकारा ।
प्रकटे वरुण मीन आसवारा ॥
**
दिव्य पुरुष जल ब्रह्मा स्वरूपा ।
कर पुस्तक नवरूप अनुना ॥
**
हर्षित हुए सकल नर नारी ।
वरुणदेव की महिमा न्यारी ॥१६॥
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जय जय कारसंभव चाहुँओरा ।
गयी रात आने को भोर॥
**
मिरखशाह नौप अत्याचारी ।
नष्ट हो गयी शक्ति सारी ॥
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दूर अधर्म, हरण भू भारा ।
शीघ्र नसरपुर में अवतारा ॥
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रतनराय रातनानी आँगन ।
खेलेंगे, आउंगा बच्चा बन ॥२०॥
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रतनराय घर ख़ुशी आई ।
झूलेलाल अवतारे सब देय बधाई ॥
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घर घर मंगल गीत सुहाए ।
झूलेलाल हरण दुःखे ॥
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मिर्खशाह तक चर्चा आई ।
भेजा मंत्री क्रोध दूरा॥
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मंत्री ने जब बाल निहारा ।
धीरज गया हृदय का सारा ॥२४॥
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देखि मंत्री साईं की लीला ।
अधिक विचित्र विमोहन शीला ॥
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बूढ़ा दिखा युवा सेनानी ।
देखा मंत्री बुद्धि चक्रानी ॥
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योद्धा रूप दिखे भगवाना ।
मंत्री हुए विगत अभिमान ॥
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झूलेलाल दिया आदेश ।
जा तव नूपति कहोसंदेशा ॥२८॥
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मिरखशाह नौप ताजे गुमाना ।
हिन्दू मुस्लिम एक समाना ॥
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बंद करो नित्य अत्याचार ।
त्यागो धर्मान्तरण विचारा ॥
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लेकिन मिर्खशाह अभिमानी ।
वरुणदेव की बात न मानी ॥
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एक दिन हो अश्व सवारा ।
झूलेलाल गये दरबारा ॥३२॥
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मिर्खशाह नौप ने आज्ञा दी ।
झूलेलाल बनाओ बंदी ॥
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किया स्वरूप वरुण का धारण ।
चारो और हुआ जल प्लावन ॥
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पठाकी डूबे उतराये ।
नौप के होश ठिकाने आये ॥
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फिर तब पड़ा चरण में आई ।
जय जय धन्य जय साईं ॥३६॥
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वापस लिया नौपति आदेश ।
दूर दूर सब जन क्लेशा ॥
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संवत दस सौ बीस मंझारी ।
भाद्रशुक्ल चौदस शुभकारी ॥
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भक्तो की हर आधी व्याधि ।
जल में ली जलदेव समाधि ॥
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जो जन धरे आज भी ध्यान ।
उनका वरुण करे कल्याणा ॥४०॥
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॥ दोहा ॥
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चालीसा चालीस दिन पाठ करे जो कोय ।
पावे मन्वांचित फल अरु जीवन सुखमय होय ॥
॥ ॐ श्री वरुणाय नमः ॥
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श्री झूलेलाल चालीसा हिंदी में | Jhulelal Chalisa Lyrics in Hindi and English

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॥ Doha ॥
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Jai Jai Jal Devta,
Jai Jyoti Swaroop ।
Amar Udero Lal Jai,
Jhulelal Anoop ॥
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॥ Chaupai ॥
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Ratanlal Ratanani Nandan ।
Jayati Devki Sut Jag Vandan ॥
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Dariyashah Varun Avatari ।
Jai Jai Lal Saain Sukhkari ॥
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Jai Jai Hoy Dharm Ki Bheera ।
Jinda Peer Hare Jan Peera ॥
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Samvat Das Sau Saat Manjhara ।
Chaitra Shukl Dvitiya Bhagav Vara ॥4॥
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Gram Nasarpur Sindh Pradesh ।
Prabhu Avatare Hare Jan Klesha ॥
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Sindhu Veer Thattha Rajdhani ।
Mirkhshah Naup Ati Abhimani ॥
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Kapati Kutil Krur Kuvichari ।
Yavan Malinman Atyachari ॥
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Dharmantaran Kare Sab Kera ।
Dukhi Hue Jan Kasht Vrinda ॥8॥
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Pitvaya Hakim Dhindhora ।
Ho Islam Dharm Chahuyora ॥
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Sindhi Praja Bahut Ghabrai ।
Isht Dev Ko Ter Lagaye ॥
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Varun Dev Puje Bahumbhati ।
Bin Jal Ann Gaye Din Rati ॥
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Sindhi Teer Sab Din Chalisa ।
Ghar Ghar Dhyan Lagaye Isha ॥12॥
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Garaj Uth Naad Sindhu Sahsa ।
Charo Aur Uth Nav Harsha ॥
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Varun Dev Ne Suni Pukara ।
Prakate Varun Meen Aswara ॥
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Divya Purush Jal Brahma Swaroopa ।
Kar Pustak Navroop Anuna ॥
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Harshit Hue Sakal Nar Naari ।
Varun Dev Ki Mahima Nyari ॥16॥
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Jai Jai Karasambhav Chahuyora ।
Gayi Raat Aane Ko Bhor ॥
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Mirkhshah Naup Atyachari ।
Nasht Ho Gayi Shakti Saari ॥
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Door Adharm, Haran Bhu Bhaara ।
Shighra Nasarpur Mein Avtara ॥
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Ratanray Ratanani Aangan ।
Khelenge, Aaunga Bachcha Ban ॥20॥
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Ratanray Ghar Khushi Aayi ।
Jhulelal Avatare Sab Dey Badhai ॥
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Ghar Ghar Mangal Geet Suhaye ।
Jhulelal Haran Dukhe ॥
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Mirkhshah Tak Charcha Aayi ।
Bheja Mantri Krodh Doora ॥
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Mantri Ne Jab Baal Nihara ।
Dheeraj Gaya Hriday Ka Saara ॥24॥
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Dekhi Mantri Saain Ki Leela ।
Adhik Vichitra Vimohan Sheela ॥
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Boodha Dikha Yuva Senani ।
Dekha Mantri Buddhi Chakrani ॥
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Yoddha Roop Dikhe Bhagwana ।
Mantri Hue Vigt Abhiman ॥
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Jhulelal Diya Aadesh ।
Ja Tav Nupati Kaho Sandesha ॥28॥
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Mirkhshah Naup Taje Gumana ।
Hindu Muslim Ek Samana ॥
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Band Karo Nitya Atyachar ।
Tyago Dharmantaran Vichara ॥
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Lekin Mirkhshah Abhimani ।
Varun Dev Ki Baat Na Mani ॥
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Ek Din Ho Ashva Sawara ।
Jhulelal Gaye Darbara ॥32॥
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Mirkhshah Naup Ne Aagya Di ।
Jhulelal Banao Bandi ॥
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Kiya Swaroop Varun Ka Dharan ।
Charo Aur Hua Jal Plavan ॥
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Pathaki Doobe Utaraye ।
Naup Ke Hosh Thikane Aaye ॥
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Fir Tab Pada Charan Mein Aayi ।
Jai Jai Dhanya Jai Saain ॥36॥
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Vapas Liya Naupati Aadesh ।
Door Door Sab Jan Klesha ॥
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Samvat Das Sau Bees Manjhari ।
Bhadra Shukl Chaudas Shubhkaari ॥
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Bhakto Ki Har Adhi Vyadhi ।
Jal Mein Li Jaldev Samadhi ॥
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Jo Jan Dhare Aaj Bhi Dhyan ।
Unka Varun Kare Kalyaan ॥40॥
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॥ Doha ॥
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Chalisa Chalis Din Paath Kare Jo Koy ।
Paave Manvanchhit Phal Aru Jeevan Sukhmaya Hoy ॥
॥ Om Shri Varunay Namah ॥
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Frequently Asked Questions (FAQ) : Jhulelal Chalisa

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1. झूलेलाल जी कौन हैं?
झूलेलाल जी को जलदेवता और वरुण देव का अवतार माना जाता है। वे सिंधी समाज के आराध्य देव हैं और जल तथा जीवन के रक्षक कहलाते हैं।
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2. झूलेलाल चालीसा का महत्व क्या है?
झूलेलाल चालीसा का पाठ करने से जीवन के संकट दूर होते हैं, मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
*
3. झूलेलाल चालीसा पाठ कब करना चाहिए?
भक्तजन प्रातःकाल या सायंकाल शुद्ध मन और भक्ति भाव से दीप जलाकर चालीसा का पाठ करते हैं।
*
4. चालीसा का पाठ कितने दिनों तक करना शुभ होता है?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, झूलेलाल चालीसा का 40 दिनों तक लगातार पाठ करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं।
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5. झूलेलाल चालीसा पढ़ने के लाभ क्या हैं?
इस पाठ से दुख, संकट और बाधाएं दूर होती हैं, मानसिक शांति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।
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6. क्या झूलेलाल चालीसा पाठ जल संबंधी समस्याओं से रक्षा करता है?
हाँ, मान्यता है कि चालीसा पाठ से जल संबंधी रोग, आपदा या विपत्ति से सुरक्षा मिलती है।
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7. झूलेलाल चालीसा पाठ करने की सही विधि क्या है?
स्नान करके, दीपक जलाकर और शुद्ध मन से ध्यान लगाकर चालीसा का पाठ करना सबसे उत्तम माना जाता है।
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8. क्या स्त्रियाँ भी झूलेलाल चालीसा का पाठ कर सकती हैं?
हाँ, स्त्री-पुरुष दोनों ही भक्ति भाव से चालीसा पाठ कर सकते हैं और झूलेलाल जी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
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9. क्या झूलेलाल चालीसा पाठ से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं?
हाँ, श्रद्धा और विश्वास के साथ नियमित रूप से चालीसा पाठ करने पर भक्त की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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10. झूलेलाल चालीसा का पाठ किन लोगों को विशेष रूप से करना चाहिए?
जो व्यक्ति जीवन में संकट, मानसिक तनाव, जल संबंधी समस्या या परिवारिक कलह से जूझ रहे हैं, उनके लिए यह पाठ विशेष लाभकारी है।
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श्री झूलेलाल आरती लिरिक्स|| श्री झूलेलाल जी की आरती पाठ: लाभ, महत्व और धार्मिक मान्यताएँ | Jhulelal Ji Aarti Benefits

श्री झूलेलाल जी की आरती पाठ: लाभ, महत्व और धार्मिक मान्यताएँ | Jhulelal Ji Aarti Benefits

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श्री झूलेलाल आरती आरती लिरिक्स|| श्री झूलेलाल जी की आरती पाठ: लाभ, महत्व और धार्मिक मान्यताएँ | Jhulelal Ji Aarti Benefits
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सनातन धर्म का स्वरूप अत्यन्त व्यापक और समावेशी है। इसमें प्रत्येक वर्ग, जाति और समुदाय के लोग अपनी आस्था और भक्ति के साथ जुड़े हुए हैं। यही कारण है कि सनातन परंपरा में अनगिनत देवी–देवताओं की पूजा और आराधना देखने को मिलती है। प्रत्येक समाज ने अपनी आवश्यकताओं, जीवनशैली और परिस्थितियों के अनुसार किसी न किसी आराध्य देवता को मान्यता दी है। इन्हीं में से एक आराध्य देवता हैं – श्री झूलेलाल जी, जिन्हें विशेष रूप से सिंध समाज का इष्ट देवता माना जाता है।
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सिंधी समाज का इतिहास और संस्कृति प्राचीन काल से ही जल से गहराई से जुड़ा रहा है। सिंधु नदी के किनारे बसा यह समाज अपने जीवनयापन और अस्तित्व के लिए सदैव जल पर निर्भर रहा है। इसी कारण जल और जीवन की रक्षा करने वाले देवता के रूप में महाराज झूलेलाल जी का प्रकट होना और उनका आराध्य बनना, ऐतिहासिक तथा धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, झूलेलाल जी केवल सिंध समाज के ही नहीं, बल्कि उन सभी भक्तों के रक्षक और पालनकर्ता हैं जो श्रद्धा और विश्वास के साथ उनकी आराधना करते हैं।
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यह विश्वास किया जाता है कि जो भी व्यक्ति महाराज झूलेलाल जी की आरती पढ़ता या श्रद्धा से सुनता है, उसे जल से संबंधित किसी भी प्रकार की बीमारी, कष्ट या बाधा का सामना नहीं करना पड़ता। जल तत्व से जुड़े रोग जैसे कि पाचन से संबंधित समस्याएँ, जलजनित बीमारियाँ या फिर जीवन में जल संकट की स्थितियाँ, सब झूलेलाल जी की कृपा से दूर हो जाती हैं। इस मान्यता के पीछे यह गहरा भाव छिपा है कि झूलेलाल जी जल के अधिपति और संरक्षक देवता हैं, और उनका स्मरण करने से भक्त को सुरक्षित और निरोगी जीवन की प्राप्ति होती है।
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केवल इतना ही नहीं, बल्कि यह भी कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन निष्ठापूर्वक झूलेलाल जी की आरती करता है, तो उसके जीवन से सभी प्रकार की विपत्तियाँ और संकट स्वतः ही दूर हो जाते हैं। दैनिक जीवन में जो दुख, कष्ट, बाधाएँ और विपरीत परिस्थितियाँ आती हैं, उनका निवारण झूलेलाल जी की कृपा से होता है। भक्त के मन को स्थिरता और साहस मिलता है, जिससे वह कठिन से कठिन परिस्थिति का भी सामना कर पाता है।
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झूलेलाल जी की आराधना केवल धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं है, बल्कि यह आस्था और विश्वास की वह डोर है जो भक्त को परमात्मा से जोड़ती है। आरती के माध्यम से भक्त अपने हृदय को निर्मल करता है और अपने जीवन को सकारात्मक दिशा देने का प्रयास करता है। जब मनुष्य श्रद्धा से ईश्वर का स्मरण करता है, तो उसके जीवन में आत्मबल और शांति का संचार होता है। यही कारण है कि आरती को केवल पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और मानसिक संतुलन का साधन माना गया है।
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अंततः यह कहा जा सकता है कि सनातन धर्म की महानता इसी में है कि उसमें सभी समाजों और वर्गों के आराध्य देवताओं का सम्मान और पूजन किया जाता है। सिंध समाज के आराध्य श्री झूलेलाल जी केवल जल के रक्षक ही नहीं, बल्कि भक्तों के जीवन को संकटमुक्त करने वाले दिव्य शक्ति स्वरूप हैं। उनकी आरती का पाठ करने से भक्त का जीवन सुख, समृद्धि और शांति से परिपूर्ण होता है। यही कारण है कि आज भी सिंध समाज ही नहीं, बल्कि अनेक श्रद्धालु झूलेलाल जी की आराधना करते हैं और अपने जीवन में आनंद, बल और आश्रय का अनुभव पाते हैं।
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ॐ जय दूलह देवा 
साईं जय दूलह देवा ।
पूजा कनि था प्रेमी 
सिदुक रखी सेवा ॥ ॐ जय॥ 
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तुहिंजे दर दे केई 
सजण अचनि सवाली ।
दान वठन सभु दिलि
सां कोन दिठुभ खाली ॥ ॐ जय॥
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अंधड़नि खे दिनव 
अखडियूँ - दुखियनि खे दारुं ।
पाए मन जूं मुरादूं 
सेवक कनि थारू ॥ ॐ जय॥
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फल फूलमेवा सब्जिऊ 
पोखनि मंझि पचिन ।
तुहिजे महिर मयासा अन्न 
बि आपर अपार थियनी ॥ ॐ जय॥
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ज्योति जगे थी जगु में 
लाल तुहिंजी लाली ।
अमरलाल अचु मूं वटी 
हे विश्व संदा वाली ॥ ॐ जय॥
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जगु जा जीव सभेई 
पाणिअ बिन प्यास ।
जेठानंद आनंद कर 
पूरन करियो आशा ॥ ॐ जय॥
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ॐ जय दूलह देवा 
साईं जय दूलह देवा ।
पूजा कनि था प्रेमी 
सिदुक रखी सेवा ॥ ॐ जय॥
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झूलेलाल आरती के आरती लिरिक्स|| झूलेलाल जी की आरती पाठ: लाभ, महत्व और धार्मिक मान्यताएँ | Jhulelal Ji Aarti Benefits

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Om Jai Dulah Deva
Sain Jai Dulah Deva ।
Pooja kani tha Premi
Siduk rakhi Seva ॥ Om Jai॥
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Tuhinje Dar de kei
Sajan Achani Sawali ।
Daan vathan sabhu dili
Saan kon dithubh khaali ॥ Om Jai॥
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Andharani khe dinav
Akhadiyun - Dukhiyni khe Daarun ।
Paaye man joon Muradoon
Sevak kani Thaaru ॥ Om Jai॥
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Phal Phool Meva Sabjiyoon
Pokhani manjhi Pachin ।
Tuhije Mahir Mayasa Ann
Bi aapar apaar thiyani ॥ Om Jai॥
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Jyoti jage thi jagu mein
Lal Tuhinji Laali ।
Amarlal achu moon vati
Hey Vishw Sanda Wali ॥ Om Jai॥
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Jagu ja jeev sabheyi
Paania bin Pyaas ।
Jethanand Anand kar
Puran kariyo Aasha ॥ Om Jai॥
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Om Jai Dulah Deva
Sain Jai Dulah Deva ।
Pooja kani tha Premi
Siduk rakhi Seva ॥ Om Jai॥
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झूलेलाल जी की आरती पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
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Q1. झूलेलाल जी कौन हैं?
Ans: झूलेलाल जी सिंधु समाज के आराध्य देव माने जाते हैं। इन्हें जल देवता का स्वरूप माना जाता है और विशेषकर सिंधी समाज में इनकी आरती व पूजा का महत्व है।
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Q2. झूलेलाल जी की आरती कब करनी चाहिए?
Ans: झूलेलाल जी की आरती रोज़ाना प्रातः और सायंकाल करने की परंपरा है। विशेष अवसरों और त्यौहारों पर भी आरती की जाती है।
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Q3. झूलेलाल जी की आरती करने से क्या लाभ होता है?
Ans: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति श्रद्धा से आरती करता है उसे जल से जुड़ी किसी भी बीमारी का भय नहीं रहता और उसके जीवन से दुख-संकट दूर होते हैं।
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Q4. झूलेलाल जी की आरती किन-किन भाषाओं में उपलब्ध है?
Ans: झूलेलाल जी की आरती हिंदी, सिंधी और रोमन लिपि (Roman Hindi/Hinglish) में उपलब्ध होती है ताकि सभी लोग आसानी से पढ़ सकें।
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Q5. क्या झूलेलाल जी की आरती केवल सिंधी समाज ही करता है?
Ans: नहीं, यद्यपि झूलेलाल जी सिंधी समाज के प्रमुख आराध्य हैं, लेकिन जल देवता के रूप में इनकी आरती और पूजा सभी लोग कर सकते हैं।
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Q6. झूलेलाल जी की आरती में क्या विशेषता है?
Ans: इस आरती में झूलेलाल जी के चमत्कारों, कृपा, और भक्तों की रक्षा करने के गुणों का वर्णन किया गया है।
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Q7. झूलेलाल जी की आरती कितनी लंबी होती है?
Ans: यह आरती लगभग 7 से 10 मिनट में गाई जाती है।
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Q8. झूलेलाल जी की आरती कैसे करनी चाहिए?
Ans: साफ और पवित्र स्थान पर दीपक और धूप जलाकर, श्रद्धा भाव से आरती की जाती है। भजन या सिंधी लोक वाद्य यंत्रों के साथ इसे गाना और सुनना श्रेष्ठ माना गया है।
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Q9. क्या झूलेलाल जी की आरती सुनने का भी उतना ही लाभ है जितना पढ़ने का?
Ans: हाँ, धार्मिक विश्वास के अनुसार, झूलेलाल जी की आरती को सुनना भी उतना ही पुण्यदायी है जितना पढ़ना।
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Q10. झूलेलाल जी की आरती के बाद क्या करना चाहिए?
Ans: आरती के बाद जल का आचमन, प्रसाद वितरण और परिवार या समाज के बीच आरती का प्रसार करना शुभ माना जाता है।
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सोमवार, 15 सितंबर 2025

जीवित्पुत्रिका व्रत : महत्व, पूजन विधि व जितिया व्रत की कथाएँ | Jitiya Vrat Katha PDF Download

जीवित्पुत्रिका व्रत : महत्व, पूजन विधि व जितिया व्रत की कथाएँ | Jitiya Vrat Katha PDF Download
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जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत का महत्‍व एवं विधि (Jitiya Vrat Ka Mahatva evam Vidhi)

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो कोई भी महिला जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत करती है उसकी संतान पर कभी कोई बड़ा संकट नहीं आता। साथ ही संतान का जीवन सुख से भर जाता है। महिलायें इस व्रत में अन्‍न-जल ग्रहण नहीं करती हैं अर्थात इस दिन निर्जला रहती हैं। इस दिन कुशा से बनी जीमूतवाहन की प्रतिमा की पूजा करने का विधान है। साथ ही मिट्टी और गाय के गोबर से चील और सियारिन की मूर्ति भी बनायी जाती है। महिलायें शुभ मुहूर्त में विधि विधान पूजा करके जितिया की कथा सुनती हैं।
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जितिया व्रत कथा / चील और सियारिन की कथा (Jitiya Vrat Katha / Cheel aur Siyari Ki Katha)

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किसी समय में एक वन में एक चील और सियारिन रहती थी। दोनों में पक्‍की मित्रता थी और वे हर काम को आपस में मिल-बांट के किया करती थीं। एक बार कुछ महिलाएं जंगल में आई जो जितिया व्रत की आपस में बात कर रही थीं। चील के मन में इस व्रत के बारे में जानने की इच्‍छा हुई। वह महिलाओं के पास जाकर उनसे व्रत के बारे में पूछने लगी। महिलाओं ने जितिया व्रत के विधान के बारे में चील को सारी बात बता दी। 
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चील ने जाकर इस व्रत के बारे में अपनी मित्र सियारिन को बताया। जिसके बाद दोनों ने जितिया माता का व्रत और पूजन करने का संकल्‍प लिया और शाम को पूजा की। लेकिन पूजा के बाद ही चील और सियारिन को भूख लगने लगी। जब सियारिन को भूख बर्दास्त नहीं हुई तो वह जंगल में शिकार करने चली गई। सियारिन जब मांस को खा रही थी, तभी चील ने उसे देख लिया और उसने सियारिन की बहुत डांट लगाई। सियारिन का व्रत खण्डित हो गया जबकि चील ने व्रत को पूरी विधि से पूर्ण किया। 
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अगले जन्म में सियारिन और चील बहन के रूप में एक प्रतापी राजा के यहां जन्‍मीं। सियारिन का विवाह एक राजकुमार से हुआ और चील का विवाह राज्य मंत्री के पुत्र से हुआ। कुछ समय बीता तो सियारिन ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन जन्म के कुछ दिन बाद ही उसके पुत्र की मृत्यु हो गई। इसके बाद चील ने भी एक पुत्र को जन्म दिया, जो जीवित तथा स्वास्थ्य रहा। यह देख सियारिन को अपनी बहन चील से ईर्ष्या होने लगी।
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जलन में आकर सियारिन ने अपने बहन के पुत्र और पति को मरवाने की कोशिश की, परंतु दोनों ही बच गए। एक दिन देवी मां सियारिन के सपने में आई और उन्होंने सियारिन से कहा कि यह तुम्हारे पूर्व जन्म के कर्म का फल है, अगर तुम अपनी परिस्थिति ठीक करना चाहती हो तो मां जितिया का व्रत और उपासना करो। 
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प्रातः काल उठकर इस सपने के बारे में सियारिन ने अपने पति को बताया। सियारिन के पति ने यह सुन सियारिन को ये व्रत करने की अनुमति दे दी साथ ही उसकी बहन चील से माफी मांगने को भी कहा। इसके बाद सियारिन चील के घर गई और उससे अपने गलतियों की माफी मांगी। सियारिन को उसकी गलतियों पर पछतावा देखकर चील ने उसे माफ कर दिया।
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अगले साल जब जितिया व्रत पड़ा तो ये व्रत सियारिन और उसकी बहन चील दोनों ने एक साथ रखा। माता जितिया ने प्रसन्न होकर सियारिन को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। कुछ दिनों बाद ही सियारिन ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया। इसके बाद दोनों बहन प्रेम भाव से खुशी-खुशी रहने लगी।   
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जितिया व्रत की दूसरी कथा (Jivitputrika Vrat Katha)

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जब वृद्धावस्था में जीमूतवाहन के पिता ने अपना सारा राजपाट त्यागकर वानप्रस्थ आश्रम जाने का निर्णय लिया, तब जीमूतवाहन ने अपने साम्राज्य को अपने भाइयों को सौंपकर अपने पिता की सेवा करने के लिए जंगल की ओर प्रस्थान किया। जीमूतवाहन का विवाह मलयवती नामक एक राजकन्या से हुआ। एक दिन, जीमूतवाहन जब जंगल में जा रहे थे तो उन्हें एक बूढ़ी महिला रोते हुए दिखी। जीमूतवाहन को पता चला कि वह नागवंश की स्त्री है। वृद्ध महिला ने आगे बताया कि नागों ने पक्षियों के राजा गरुण को रोजाना खाने के लिए नागों की बलि देने का वचन दिया है और इसी के कारण अब उसके बेटे शंखचूड़ की बारी है।
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यह सुनकर जीमूतवाहन ने महिला को कहा कि वह स्वयं अपनी बलि दे देंगे। इसके बाद, जीमूतवाहन ने शंखचूड़ से लाल कपड़ा लिया और वह अपनी बलि देने के लिए चट्टान पर लेट गए। जब गरुण आए, तो उन्होंने लाल कपड़े में ढके जीव को देखा और वह उसे पहाड़ की ऊंचाई पर उड़ा ले गए। पंजों में जकड़े हुए जब पीड़ा के कारण जीमूतवाहन कराहने लगे और तब गरुड़ की नजर उनपर पड़ी और उन्होंने जीमूतवाहन से पूछा कि वह कौन हैं और नागों के स्थान पर वह क्या कर रहे हैं। इसके बाद जीमूतवाहन ने गरुड़ राज को पूरी बात बताई।  जीमूतवाहन की बहादुरी और त्याग से गरुण प्रसन्न हुए। इसके बाद गरुड़ राज ने न केवल जीमूतवाहन को जीवनदान दिया बल्कि यह भी निश्‍चय किया कि वे आगे से नागों की बलि नहीं लेंगे। कहते हैं इसी घटना के बाद से जीमूतवाहन की पूजा की परंपरा शुरू हुई।
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जितिया व्रत की तीसरी कथा (Jitiya Ki Kahani)

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महाभारत युद्ध में अपने पिता गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गये। उन्‍होंने शिविर के अंदर पांच लोगों को सोते हुए पाया और उन्‍हें पांच पांडव समझकर मार दिया, परंतु वे द्रोपदी और पांडवों की पांच संतानें थीं। उसके उपरांत अुर्जन ने अश्वत्थामा की दिव्य मणि उसके माथे से निकाल ली।
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अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने की कोशिश की। जिसके लिए उसने उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र से वार किया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया। पुनः जीवित होने के कारण उसका नाम जीवित पुत्र पड़ा। चूंकि श्री कृष्ण ने उत्तरा की भी रक्षा की थी इसी कारण से वह जीवितपुत्रिका कहलाईं। ऐसी मान्यता है कि इस घटना के बाद से ही जीवितपुत्रिका या जितिया व्रत का आरंभ हुआ।
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Frequently Asked Questions (FAQ)

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1. जितिया व्रत कब रखा जाता है?
उत्तर: जितिया व्रत अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है, और यह व्रत दो दिन पहले सप्तमी से प्रारंभ होता है।
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2. जीवित्पुत्रिका व्रत क्यों किया जाता है?
उत्तर: यह व्रत माताएं अपनी संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए निर्जल उपवास रखकर करती हैं।
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3. जितिया व्रत में महिलाएं क्या खाती हैं?
उत्तर: इस दिन महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं, यानी न तो अन्न ग्रहण करती हैं और न ही जल। अगले दिन पारण के समय भोजन करती हैं।
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4. जितिया व्रत की मुख्य पूजा किसकी होती है?
उत्तर: इस व्रत में जीमूतवाहन, चील, सियारिन, तथा माँ जितिया की पूजा की जाती है।
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5. क्या जितिया व्रत सिर्फ महिलाओं द्वारा किया जाता है?
उत्तर: परंपरागत रूप से यह व्रत महिलाएं करती हैं, लेकिन कुछ क्षेत्रों में पुरुष भी अपनी संतान की रक्षा के लिए यह व्रत करते हैं।
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6. जितिया व्रत की पूजा कैसे की जाती है?
उत्तर: शुभ मुहूर्त में महिलाएं कुशा से जीमूतवाहन की प्रतिमा बनाकर, चील और सियारिन की मिट्टी व गोबर से मूर्ति बनाकर पूजा करती हैं और व्रत कथा सुनती हैं।
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7. जितिया व्रत की कौन-कौन सी प्रसिद्ध कथाएँ हैं?
उत्तर: प्रमुख कथाओं में चील-सियारिन की कथा, जीमूतवाहन की कथा, और अश्वत्थामा एवं जीवित पुत्र की कथा शामिल हैं।
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8. जितिया व्रत की शुरुआत कैसे हुई?
उत्तर: माना जाता है कि व्रत की शुरुआत अश्वत्थामा द्वारा उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र चलाने और भगवान श्रीकृष्ण द्वारा शिशु को पुनर्जीवित करने की घटना से हुई।
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9. इस व्रत में किन वस्तुओं का प्रयोग होता है?
उत्तर: कुशा, मिट्टी, गोबर, लाल धागा, धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, जल कलश, और कथा-पुस्तिका आदि का प्रयोग होता है।
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10. जितिया व्रत का पारण कब और कैसे किया जाता है?
उत्तर: व्रत का पारण नवमी तिथि को सूर्योदय के बाद किया जाता है। महिलाएं स्नान करके पूजन के बाद फलाहार या अन्न ग्रहण करती हैं।
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Jivitputrika Vrat ya Jitiya Vrat ka Mahatva evam Vidhi (Jitiya Vrat Ka Mahatva evam Vidhi)

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Dharmik manyataon ke anusar jo koi bhi mahila Jivitputrika Vrat ya Jitiya Vrat karti hai uski santaan par kabhi koi bada sankat nahi aata. Saath hi santaan ka jeevan sukh se bhar jaata hai. Mahilayein is vrat mein ann-jal grahan nahi karti hain arthaat is din nirjala rahti hain. Is din kusha se bani Jimutvahan ki pratima ki pooja karne ka vidhan hai. Saath hi mitti aur gaay ke gobar se cheel aur siyarin ki murti bhi banayi jaati hai. Mahilayein shubh muhurat mein vidhi vidhan pooja karke Jitiya ki katha sunti hain.
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Jitiya Vrat Katha / Cheel aur Siyarin Ki Katha (Jitiya Vrat Katha / Cheel aur Siyarin Ki Katha)

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Kisi samay mein ek van mein ek cheel aur siyarin rahti thi. Dono mein pakki mitrata thi aur ve har kaam ko aapas mein mil-baant ke kiya karti thin. Ek baar kuchh mahilaen jangal mein aayi jo Jitiya vrat ki aapas mein baat kar rahi thin. Cheel ke man mein is vrat ke baare mein jaanne ki ichchha hui. Vah mahilaon ke paas jaakar unse vrat ke baare mein poochhne lagi. Mahilaon ne Jitiya vrat ke vidhan ke baare mein cheel ko saari baat bata di.
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Cheel ne jaakar is vrat ke baare mein apni mitr siyarin ko bataya. Jiske baad dono ne Jitiya Mata ka vrat aur poojan karne ka sankalp liya aur shaam ko pooja ki. Lekin pooja ke baad hi cheel aur siyarin ko bhukh lagne lagi. Jab siyarin ko bhukh bardasht nahi hui to vah jangal mein shikaar karne chali gayi. Siyarin jab maans ko kha rahi thi, tabhi cheel ne use dekh liya aur usne siyarin ki bahut daant lagayi. Siyarin ka vrat khandit ho gaya jabki cheel ne vrat ko poori vidhi se poorn kiya.
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Agale janm mein siyarin aur cheel bahan ke roop mein ek pratapi raja ke yahan janmin. Siyarin ka vivaah ek rajkumar se hua aur cheel ka vivaah rajya mantri ke putra se hua. Kuchh samay beeta to siyarin ne ek putra ko janm diya lekin janm ke kuchh din baad hi uske putra ki mrityu ho gayi. Iske baad cheel ne bhi ek putra ko janm diya, jo jivit tatha svasth raha. Yah dekh siyarin ko apni bahan cheel se irshya hone lagi.
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Jalan mein aakar siyarin ne apne bahan ke putra aur pati ko marvane ki koshish ki, parantu dono hi bach gaye. Ek din devi maa siyarin ke sapne mein aayi aur unhone siyarin se kaha ki yah tumhare poorv janm ke karm ka phal hai, agar tum apni paristhiti theek karna chahti ho to maa Jitiya ka vrat aur upasana karo.
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Praatah kaal uthkar is sapne ke baare mein siyarin ne apne pati ko bataya. Siyarin ke pati ne yah sun siyarin ko ye vrat karne ki anumati de di saath hi uski bahan cheel se maafi maangne ko bhi kaha. Iske baad siyarin cheel ke ghar gayi aur usse apne galtiyon ki maafi maangi. Siyarin ko uski galtiyon par pachtava dekhkar cheel ne use maaf kar diya.
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Agale saal jab Jitiya vrat pada to ye vrat siyarin aur uski bahan cheel dono ne ek saath rakha. Mata Jitiya ne prasann hokar siyarin ko putra prapti ka aashirvaad diya. Kuchh dino baad hi siyarin ne ek sundar balak ko janm diya. Iske baad dono bahan prem bhav se khushi-khushi rahne lagi.
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Jitiya Vrat Ki Dusri Katha (Jivitputrika Vrat Katha)

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Jab vriddhavastha mein Jimutvahan ke pita ne apna saara rajpaat tyaagkar vanprasth aashram jaane ka nirnay liya, tab Jimutvahan ne apne samrajya ko apne bhaiyon ko saumpkar apne pita ki seva karne ke liye jangal ki aur prasthaan kiya. Jimutvahan ka vivaah Malayavati naamak ek rajkanya se hua. Ek din, Jimutvahan jab jangal mein ja rahe the to unhe ek budhi mahila rote hue dikhi. Jimutvahan ko pata chala ki vah Nagvansh ki stri hai. Vriddh mahila ne aage bataya ki naagon ne pakshiyon ke raja Garud ko roj khaane ke liye naagon ki bali dene ka vachan diya hai aur isi ke kaaran ab uske bete Shankhchud ki baari hai.
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Yah sunkar Jimutvahan ne mahila ko kaha ki vah swayam apni bali de denge. Iske baad, Jimutvahan ne Shankhchud se laal kapda liya aur vah apni bali dene ke liye chattan par let gaye. Jab Garud aaye, to unhone laal kapde mein dhake jeev ko dekha aur vah use pahad ki unchai par uda le gaye. Panjon mein jakde hue jab peeda ke kaaran Jimutvahan karaahe lage aur tab Garud ki nazar unpar padi aur unhone Jimutvahan se poocha ki vah kaun hain aur naagon ke sthan par vah kya kar rahe hain. Iske baad Jimutvahan ne Garud raj ko poori baat batayi. Jimutvahan ki bahaduri aur tyaag se Garud prasann hue. Iske baad Garud raj ne na keval Jimutvahan ko jeevandan diya balki yah bhi nishchay kiya ki ve aage se naagon ki bali nahi lenge. Kehte hain isi ghatna ke baad se Jimutvahan ki pooja ki parampara shuru hui.
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Jitiya Vrat Ki Teesri Katha (Jitiya Ki Kahani)

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Mahabharat yudh mein apne pita guru Dronacharya ki mrityu ka badla lene ke liye Ashwatthama Pandavon ke shivir mein ghus gaye. Unhone shivir ke andar paanch logon ko sote hue paaya aur unhein paanch Pandav samajhkar maar diya, parantu ve Draupadi aur Pandavon ki paanch santaanen thin. Uske uparant Arjun ne Ashwatthama ki divya mani uske maathe se nikaal li.
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Ashwatthama ne badla lene ke liye Abhimanyu ki patni Uttara ke garbh mein pal rahe bacche ko maarne ki koshish ki. Jiske liye usne Uttara ke garbh par Brahmastra se vaar kiya. Tab Bhagwan Shri Krishna ne Uttara ki ajnami santaan ko fir se jivit kar diya. Punah jivit hone ke kaaran uska naam Jivit Putra pada. Choonki Shri Krishna ne Uttara ki bhi raksha ki thi isi kaaran se vah Jivitputrika kehlaai. Aisi manyata hai ki is ghatna ke baad se hi Jivitputrika ya Jitiya vrat ka aarambh hua.
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Frequently Asked Questions (FAQ)

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Jitiya Vrat kab rakha jaata hai?
Uttar: Jitiya Vrat Ashwin maas ke Krishna paksh ki Ashtami tithi ko rakha jaata hai, aur yah vrat do din pehle Saptami se prarambh hota hai.
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Jivitputrika Vrat kyon kiya jaata hai?
Uttar: Yah vrat mataen apni santaan ki dirghayu, svasthya aur suraksha ke liye nirjal upvaas rakhkar karti hain.
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Jitiya Vrat mein mahilaen kya khati hain?
Uttar: Is din mahilaen nirjala upvaas karti hain, yani na to ann grahan karti hain aur na hi jal. Agle din paran ke samay bhojan karti hain.
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Jitiya Vrat ki mukhya pooja kinki hoti hai?
Uttar: Is vrat mein Jimutvahan, Cheel, Siyarin, tatha Maa Jitiya ki pooja ki jaati hai.
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Kya Jitiya Vrat sirf mahilaon dwara kiya jaata hai?
Uttar: Paramparagat roop se yah vrat mahilaen karti hain, lekin kuchh kshetron mein purush bhi apni santaan ki raksha ke liye yah vrat karte hain.
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Jitiya Vrat ki pooja kaise ki jaati hai?
Uttar: Shubh muhurat mein mahilaen kusha se Jimutvahan ki pratima banakar, cheel aur siyarin ki mitti va gobar se murti banakar pooja karti hain aur vrat katha sunti hain.
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Jitiya Vrat ki kaun-kaun si prasiddh kathayen hain?
Uttar: Pramukh kathayon mein cheel-siyarin ki katha, Jimutvahan ki katha, aur Ashwatthama evam Jivit Putra ki katha shamil hain.
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Jitiya Vrat ki shuruaat kaise hui?
Uttar: Mana jaata hai ki vrat ki shuruaat Ashwatthama dwara Uttara ke garbh par Brahmastra chalaane aur Bhagwan Shri Krishna dwara shishu ko punarjivit karne ki ghatna se hui.
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Is vrat mein kin vastuon ka prayog hota hai?
Uttar: Kusha, mitti, gobar, laal dhaaga, dhoop, deep, naivedya, pushp, jal kalash, aur katha-pustika aadi ka prayog hota hai.
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Jitiya Vrat ka paran kab aur kaise kiya jaata hai?
Uttar: Vrat ka paran Navami tithi ko suryoday ke baad kiya jaata hai. Mahilayein snaan karke poojan ke baad phalhaar ya ann grahan karti hain.
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