गुरुवार, 14 जुलाई 2022

धोली सती की स्तुति || धोली सती चालीसा || Dholi Sati Ki Stuti || Dholi Sati Ki Chalisa || Dholi Sati Ka Itihas Lyrics in Hindi

धोली सती की स्तुति || धोली सती चालीसा || Dholi Sati Ki Stuti || Dholi Sati Ki Chalisa || Dholi Sati Ka Itihas 



धोली सती मंदिर-फतेहपुर

अग्रसेनजी ने 18 राज्यों को मिला कर गणराज्य बनाया था। उन्होने गौड़ ब्राहमणों को अपना पुरोहित बनाया। उनके आदेश पर 18 यज्ञो का आयोजन किया गया और इनमें अलग-अलग पशुओं की बली दी गई। जब अठारहवें यज्ञ में बली का समय आया तो अग्रसेनजी निरीह पशुओं की बली देख कर करूणा से भर गये और उन्होने बली देने से मना कर दिया। जिसके दंड़ के परिणाम स्वरूप उन्होने क्षत्रिय धर्म छोड़ कर वैश्य धर्म अपनाना पड़ा, जिसे उन्होने सहर्ष स्वीकार किया और अपने राज्य में अहिंसा और शाकाहारी होने का नियम बना दिया। 18 यज्ञो कराने वाले पुरोहितों के नाम पर 18 गोत्रों की स्थापना कर के उन्होने अपने गणराज्य के 18 प्रतिनिधियों को एक-एक गोत्र दे कर सम्मानित किया। अब एक गोत्र वाले अपने गोत्र में विवाह नहीं कर सकते थे। वे दूसरे गोत्र में ही शादी कर सकते थे। अठारह प्रतिनिधियों में से एक थे नारनौंद के राजा बुधमानजी जिन्होने बिंदल गोत्र को चलाया।


धोली सती के जीवन के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं हैं। जो थोड़ी बहुत जानकारी हैं वह भी किद्वंतीयाँ हैं। कहा जाता हैं कि धोली सती का जन्म आज के हरियाणा राज्य के महेन्द्रगढ़ नगर में किशन लालजी और सरस्वती देवी के घर हुआ था। उनका विवाह हाँसी के पास के नगर नारनौंद निवासी बिंदल गोत्री नाथूरामजी के संग हुआ था।


माना जाता हैं कि जब वे मुकलावा कर के अपनी ससुराल नारनौंद आ रही थी, तब बीच रास्ते में किसी नवाब का राज्य क्षेत्र था, राजाज्ञा के कारण सिपाहियों ने डोली को आगे जाने से रोक लिया। नवाब की आज्ञा थी कि जो भी डोली उनके क्षेत्र में आयेगी वह सबसे पहले एक रात महल में रहेगी, उसके बाद ही वह आगे बढ़ेगी। नाथूरामजी के ना मानने पर उनमें और नवाब की सेना में महासंग्राम हुआ और नाथूरामजी को वीरगति को प्राप्त हुई।


दूसरी किद्वंती के अनुसार नारनौंद के राजा ने यह नियम बनाया था कि हर नववधू को सबसे पहले महल की दहलीज पर शीश झुका कर के पूजा करना होगा, तभी वह ससुराल जा सकती हैं। धोली सती के ना मानने पर नाथूरामजी और राजा की सेना में संग्राम हुआ और नाथूरामजी को वीरगति को प्राप्त हुई। यह समाचार पा कर धोली पति के साथ सती हो गई।


फतेहपुर में धोली सती मंदिर क्यों और कैसे बनाः

नारनौंद में सर्राफ परिवार का इतिहास 1000 साल का हैं। परिवार के कुल पुरोहित हरितवाल (भारद्वाज गोत्री) गौड़ ब्राहमण हैं। 750 वर्ष पूर्व धोली के सती होने के बाद परिवार में भय और असुरक्षा का भावना घर गई। परिवार की एक शाखा नारनौंद के आसपास के गाँव सुलचानी, खेड़ा, कुम्भा और पेटवाड़ आदि गाँवों में जा कर बस गई। दूसरी शाखा नारनौल जा कर बस गई और ये सर्राफ कहलाये। सन् 1451 में नारनौल से जा कर ये फतेहपुर में बस गये। नारनौंद में परिवार ने धोली सती का मंड़ बनवाया, जहाँ समय-समय पर परिवारजन पूजा करने के लिये आते थे। 450 वर्ष पूर्व जब परिवारजन पूजा करने के लिये नारनौंद जा रहे थे तब रास्ते में डाकुओं द्वारा लूट लिये गये। इसके बाद दादी का मंड़प वहाँ से  उठा कर फतेहपुर में स्थापित किया गया। नारनौंद में आज भी धोली सती का एक छोटा सा मंड हैं।


अग्रवाल समाज की पहली सती ‘धोली सती’ थी। उनके इस बलिदान के लिये बिंदल गोत्री उनकी देवी मान कर पूजा करते हैं। उनकी स्मृति में फतेहपुर में बहुत सुंदर विशाल मंदिर बना हैं। यहाँ बिंदल गोत्र के अलावा भी अन्य गोत्री लोग भी दर्शन के लिये आते हैं। कई बिंदल गोत्री हरा कपड़ा नहीं पहनते हैं क्योंकि नाथूरामजी ने मुस्लिम सेना से लड़ते हुये वीरगति पाई थी।  यहाँ हरा कपड़ा या हरी कोई भी वस्तु चढ़ाना या पहन कर आना वर्जित हैं। मंदिर के प्रागंण में ठहरने और भोजन की सारी व्यवस्था हैं।


धोली सती की स्तुति 

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके, 

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते।।


शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, 

सर्वस्यार्ति हरे देवी नारायणी नमोस्तुते।।


सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते, 

भयेभ्य स्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते।।


सर्व बाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि, 

एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशम्।


या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।


धोली सती चालीसा

भजो मन दादी दादी नाम

जपो मन दादी दादी नाम

जय जय जय धोली सती दादी ।।


जय फतेहपुर धाम,

जपो मन दादी दादी नाम,

भजो मन दादी दादी नाम ।।


कथा है धोली सती की 

है ये कलयुग की कहानी,     

राज्य हरयाणा में जन्मी 

फतेहपुर की महारानी।

पिता किशन लाल जी 

के घर गूंजी किलकारी,

माँ सरस्वती के मन में 

छा गयी खुशियां भारी ।।


शक्ति अंश से जन्मी कन्या,

धोली रखा नाम,

जपो मन दादी दादी नाम,

भजो मन दादी दादी नाम ।।


किशन जी के आँगन में 

समय शुभ दिन वो आया,

धोली का नाथूराम जी के 

संग में ब्याह रचाया ।

बिदा की घड़ी जो आई, 

आँख सब की भर आई,       

बहुत मन को समझा कर 

करी बेटी की बिदाई ।।


चल पड़ी धोली की डोली,

संग हैं नाथूराम,

जपो मन दादी दादी नाम,

भजो मन दादी दादी नाम ।।


हुक्म ये राजा का है,

ये डोली यहीं रुकेगी,

रात महल में रहकर 

पालकी आगे बढ़ेगी ।

जो मेरी राहें रोकी,

तो फिर संग्राम होगा,   

संभल जा अब भी राजा,

बुरा अंजाम होगा ।।


नाथूराम और मानसिंह में 

मचा महासंग्राम,

जपो मन दादी दादी नाम,

भजो मन दादी दादी नाम ।।


रूप चंडी का धारा,

मानसिंह को संहारा,

सती के तेज़ से धरती,

लाल हुआ अम्बर सारा ।

बैठ गयी अग्नि रथ पर,

ज्योत से ज्योत मिलायी,

गूँज उठा जयकारा,

जय श्री धोली सती माई ।।


सतवंती माँ धोली सती की 

सत की महिमा महान,

जपो मन दादी दादी नाम

भजो मन दादी दादी नाम ।।


धन्य है फतेहपुर नगरी, 

धन्य वो शेखावाटी,

जहां कण-कण में बसी है 

मेरी धोली सती दादी ।

बिंदल कुलदेवी माँ की 

है महिमा बड़ी निराली,       

कृपा भगतों पर करती 

दादी फतेहपुर वाली ।।


“सौरभ मधुकर” दादी के 

गुण गाये सुबहो शाम

जपो मन दादी दादी नाम

भजो मन दादी दादी नाम ।।


जय जय जय धोली सती दादी,

जय फतेहपुर धाम ।

जपो मन दादी दादी नाम,

भजो मन दादी दादी नाम ।।

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बुधवार, 13 जुलाई 2022

जय जय जय मात ब्रह्माणी भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी| श्री ब्रह्माणी चालीसा | Shri Brahmani Chalisa Lyrics in Hindi

जय जय जय मात ब्रह्माणी भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी| श्री ब्रह्माणी चालीसा | Shri Brahmani Chalisa Lyrics in Hindi 


श्री ब्रहमाणी माताजी का मंदिर-पल्लू

राजस्थान राज्य के हनुमानगढ़ जिले का कस्बां पल्लू ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं। इसकी भौगोलिक स्थिति बाड़मेर, जैसलमेर और चुरू की तरह हैं। इस गाँव के चारों ओर थार मरुस्थल हैं, आस पास कहीं भी पहाड़ नहीं हैं। गांव में मध्य युग से पूर्व चूने का एक किला था। इसका निर्माण तीन चरण में हुआ। कस्बे में माता ब्रह्माणी, सरस्वती व महाकाली का मंदिर है। ये पुराने किले की थेहड़ पर बना है। माता की दूर-दूर तक मान्यता है। वर्ष भर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मंदिर में स्थापित मूर्तियों पर जैन सभ्यता की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है।

बताया जाता है कि हजारों वर्ष पूर्व गीगासर (बीकानेर) के भोजराज सिंह यहां अपना घोड़ा खोजते हुए आए थे। रात हो जाने के कारण वे यहां विश्राम करने एक पेड़ के नीचे रुक गए। उन्हें रात्रि में माता ने दर्शन देकर पूजा करने को कहा। भोजराज सिंह ने सुबह उठकर देखा तो मां ब्रह्माणी, सरस्वती और काली की मूर्तियां जमीन से निकली हुई दिखाई दी। उसी दिन से वे यहां पर पूजा करने लगे। तत्पश्चात मंदिर का निर्माण कराया गया। समय बीतता गया और मंदिर की प्रसिद्ध दूर-दूर तक फैलती गई।

वर्तमान में मंदिर परिसर में दो मंदिर हैं। श्री ब्राह्मणी मंदिर का निर्माण गाँव सिंगरासर के सारसवा भादु और श्री माँ काली मंदिर का काबा भादुओं द्वारा किया गया था। दोनों ही कुलों की ये पारिवारिक देवी हैं। दोनों ही मंदिरों के चांदी के दरवाजे हैं, जो वर्षों पूर्व बनाए गए थे। किंतु आज भी नए जैसे ही दिखते हैं। मंदिर में पूजा सदियों से भोजराज सिंह के वंशज पीढ़ी-दर-पीढ़ी करते आ रहे हैं। मंदिर का एक सार्वजनिक ट्रस्ट बना हुआ है। प्रतिदिन चढ़ने वाला प्रसाद और चढ़ावा पुजारियों के पांचों भाइयों भागूसिंह, गुलाबसिंह, अमरसिंह, उदयसिंह और रिड़माल सिंह के परिवार में बांट दिया जाता है। इनके गांव में करीब 20-25 घर हैं। ये सभी भोजराजसिंह के वंशज है।

माँ ब्राह्मणी का मेला और पदयात्रा:

राजस्थान राज्य के हनुमानगढ़ जिले का पल्लू कस्बा माँ ब्राह्मणी माता के मन्दिर के लिये समस्त भारत देश में प्रसिद्ध है। वर्ष में दो बार यहाँ नवरात्र में विशाल मेला भरता है। माँ ब्राह्मणी पल्लू वाली का मुख्य मेला सप्तमी और अष्टमी को भरता है। सप्तमी और अष्टमी को धोक लगाने वाले भगतों की संख्या एक अनुमान के अनुसार 50 हजार से दो लाख के बीच होती हैं। देशभर से भक्त पैदल, धोक देते हुये, निशान उठा कर या जिस तरह से मानता की हो उस के अनुसार माता के दरबार में आते हैं। अरजनसर से पल्लू आने वाले और हनुमानगढ़ से पल्लू और सालासर वाले मेगा हाइवे पर एक तरफ सालासर बाबा की जय तो दूसरी तरफ जय माता दी के नारों से भक्त माहौल को भक्तिमय बना देते है।

द्वारपाल श्री सादूलाजी

पल्लू में श्री ब्रहमाणी माताजी के मंदिर के पहले माता जी के द्वारपाल श्री सादूला जी का मंदिर बना हुआ है, इसमें श्री सादूलाजी की एक सफेद मारबल की मुर्ति लगी हुई हैं । धार्मिक मान्यताओ के अनुसार श्री सादूला जी को माँ ब्रहमाणी ने एक वरदान दे कर उन्हे एक श्रेष्ठ पद दिया । जो भी भक्त जन माता जी मंदिर के धोक लगाने और दर्शन करने आते है उनको माता जी दर्शन करने से पहले द्वारपाल श्री सादूला जी को धोक लगानी होती और प्रसाद चढ़ाना होता हैं।


श्री ब्रह्माणी चालीसा
दोहा
कोटि कोटि नमन मेरे माता पिता को 
जिसने दिया शरीर
बलिहारी जाऊँ गुरू देव ने 
दिया हरि भजन में सीर ॥
*****
श्री ब्रह्माणी स्तुति
चन्द्र दिपै सूरज दिपै 
उड़गण दिपै आकाश ।
इन सब से बढकर दिपै 
माताऒ का सुप्रकाश ॥
*****
मेरा अपना कुछ नहीं 
जो कुछ है सो तोय ।
तेरा तुझको सौंपते 
क्या लगता है मोय ॥
*****
पद्म कमण्डल अक्ष 
कर ब्रह्मचारिणी रूप ।
हंस वाहिनी कृपा करे 
पडूँ नहीं भव कूप ॥
*****
जय जय श्री ब्रह्माणी 
सत्य पुंज आधार ।
चरण कमल धरि ध्यान में 
प्रणबहुँ बारम्बार ॥
*****
चौपाई
जय जय जय मात ब्रह्माणी । 
भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी ॥ १ ॥
*****
वीणा पुस्तक कर में सोहे । 
मात शारदा सब जग सोहे ॥ २ ॥
*****
हँस वाहिनी जय जग माता । 
भक्त जनन की हो सुख दाता ॥ ३ ॥
*****
ब्रह्माणी ब्रह्मा लोक से आई । 
मात लोक की करो सहाई ॥ ४ ॥
*****
क्षीर सिन्धु में प्रकटी जब ही । 
देवों ने जय बोली तब ही ॥ ५ ॥
*****
चतुर्दश रतनों में मानी । 
अद॒भुत माया वेद बखानी ॥ ६ ॥
*****
चार वेद षट शास्त्र की गाथा । 
शिव ब्रह्मा कोई पार न पाता  ॥ ७ ॥
*****
आदि शक्ति अवतार भवानी । 
भक्त जनों की  मां कल्याणी ॥ ८ ॥
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जब−जब पाप बढे अति भारे । 
माता शस्त्र कर में धारे ॥ ९ ॥
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पाप विनाशिनी तू जगदम्बा । 
धर्म हेतु ना करो विलम्बा ॥ १० ॥
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नमो नमो ब्रह्मी सुखकारी । 
ब्रह्मा विष्णु शिव तोहे मानी ॥ ११ ॥
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तेरी लीला अजब निराली । 
सहाय करो माँ पल्लू वाली ॥ १२ ॥
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दुःख चिन्ता सब बाधा हरणी । 
अमंगल में मंगल करणी ॥ १३ ॥
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अन्न पूरणा हो अन्न की दाता । 
सब जग पालन करती माता ॥ १४ ॥
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सर्व व्यापिनी असंख्या रूपा । 
तव कृपा से टरता भव कूपा ॥ १५ ॥
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चंद्र बिंब आनन सुखकारी । 
अक्ष माल युत हंस सवारी ॥ १६ ॥
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पवन पुत्र की करी सहाई । 
लंक जार अनल  सित लाई ॥ १७ ॥
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कोप किया दश कन्ध पे भारी । 
कुटम्ब संहारा सेना भारी  ॥ १८ ॥
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तु ही मात विधी हरि हर देवा । 
सुर नर मुनी सब करते सेवा ॥ १९ ॥
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देव दानव का हुआ सम्वादा । 
मारे पापी मेटी बाधा ॥ २० ॥
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श्री नारायण अंग समाई । 
मोहनी रूप धरा तू माई ॥ २१ ॥
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देव दैत्यों की पंक्ती बनाई । 
देवों को मां सुधा पिलाई ॥ २२ ॥
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चतुराई कर के महा माई । 
असुरों को तू दिया मिटाई ॥ २३ ॥
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नौ खण्ङ मांही नेजा फरके । 
भागे दुष्ट अधम जन डर के ॥ २४ ॥
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तेरह सौ पेंसठ की साला । 
आस्विन  मास पख उजियाला ॥ २५ ॥
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रवि सुत बार अष्टमी ज्वाला । 
हंस आरूढ कर लेकर भाला ॥ २६ ॥
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नगर कोट से किया पयाना । 
पल्लू कोट भया अस्थाना ॥ २७ ॥
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चौसठ योगिनी बावन बीरा । 
संग में ले आई रणधीरा ॥ २८ ॥
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बैठ भवन में न्याय चुकाणी । 
द्वार पाल सादुल अगवाणी ॥ २९ ॥
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सांझ सवेरे बजे नगारा । 
उठता भक्तों का जयकारा ॥ ३० ॥
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मढ़ के बीच खड़ी मां ब्रह्माणी । 
सुन्दर छवि होंठो की लाली ॥ ३१ ॥
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पास में बैठी मां वीणा वाली । 
उतरी मढ़ बैठी महा काली ॥ ३२ ॥
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लाल ध्वजा तेरे मंदिर फरके । 
मन हर्षाता दर्शन करके ॥ ३३ ॥
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चैत आसोज में भरता मेला । 
दूर दूर से आते चेला ॥ ३४ ॥
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कोई संग में, कोई अकेला । 
जयकारो का देता हेला ॥ ३५ ॥
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कंचन कलश शोभा दे भारी । 
दिव्य पताका चमके न्यारी ॥ ३६ ॥
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सीस झुका जन श्रद्धा देते । 
आशीष से झोली भर लेते ॥ ३७ ॥
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तीन लोकों की करता भरता । 
नाम लिए सब  कारज सरता ॥ ३८ ॥
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मुझ बालक पे कृपा की ज्यो । 
भूल चूक सब माफी दीज्यो ॥ ३९ ॥
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मन्द मति यह दास तुम्हारा । 
दो मां अपनी भक्ती अपारा ॥ ४० ॥
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जब लगि जिऊ दया फल पाऊं । 
तुम्हरो जस मैं सदा ही गाऊं ॥ ४१ ॥
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दोहा
राग द्वेष में लिप्त मन 
मैं कुटिल बुद्धि अज्ञान ।
भव से पार करो मातेश्वरी 
अपना अनुगत जान ॥
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रविवार, 3 जुलाई 2022

विजया पार्वती व्रत की पौराणिक कथा || Shri Vijaya Parvati Vrat Katha || Vrat Katha || Shiv Shankar Mata Parvati Vrat Katha Lyrics in Hindi

विजया पार्वती व्रत की पौराणिक कथा || Shri Vijaya Parvati Vrat Katha || Vrat Katha || Shiv Shankar Mata Parvati Vrat Katha

विजया पार्वती व्रत की पौराणिक कथा

भगवान शिव शंकर भोले नाथ एवं माता पार्वती की कृपा प्राप्‍त कराने वाला यह महान व्रत आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन किया जाता है। इस दिन प्रात:काल उठकर शान्‍तचित्‍त से नित्‍य‍क्रिया से निवृत्‍त होकर स्‍नानादि करके स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण कर विधिवत भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा करने का विधान है। 

व्रत कथा 

विजया पार्वती व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार किसी समय कौडिण्‍य नगर में वामन नाम का एक योग्य ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सत्या था। उनके घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उनके यहां सन्‍तान नहीं होने से वे बहुत दुखी रहते थे।

एक दिन नारदजी उनके घर पधारे। उन्होंने नारद मुनि की खूब सेवा की और अपनी समस्या का समाधान पूछा। तब नारदजी ने उन्हें बताया कि तुम्हारे नगर के बाहर जो वन है, उसके दक्षिणी भाग में बिल्व (बेल) वृक्ष के नीचे भगवान शिव, माता पार्वती के साथ लिंगरूप में विराजित हैं। उनकी पूजा करने से तुम्हारी मनोकामना अवश्य ही पूरी होगी।

तब ब्राह्मण दम्‍पति ने उस शिवलिंग को ढूंढकर उसकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। इस प्रकार पूजा करने का क्रम चलता रहा और पॉंच वर्ष बीत गए।

एक दिन जब वह ब्राह्मण पूजन के लिए फूल तोड़ रहा था तभी उसे सांप ने काट लिया और वह वहीं जंगल में ही गिर गया। ब्राह्मण जब काफी देर तक घर नहीं लौटा तो उसकी पत्नी उसे ढूंढने आई। पति को इस हालत में देख वह रोने लगी और वन देवता व माता पार्वती को याद करने लगी और उनकी स्‍तुति करके उनसे अपने पति की प्राणरक्षा की प्रार्थना करने लगी। 

ब्राह्मणी की पुकार सुनकर माता पार्वती वन देवता के साथ प्रकट हुईं और ब्राह्मण के मुख में अमृत डाल दिया जिससे ब्राह्मण उठ बैठा। तब ब्राह्मण दम्‍पति ने माता पार्वती का विधिवत पूजन किया। माता पार्वती ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें वर मांगने के लिए कहा। तब दोनों ने सन्‍तान प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की, तब माता पार्वती ने उन्हें विजया पार्वती व्रत करने की बात कही।

आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन उस ब्राह्मण दम्‍पति ने विधिपूर्वक माता पार्वती का यह व्रत किया जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। इस दिन व्रत करने वालों को पुत्ररत्न की प्राप्ति होती है तथा उनका अखण्‍ड सौभाग्य भी बना रहता है।

सभी प्रेम से बोलिये माता पार्वती एवं भगवान भोले नाथ की जय   

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बुधवार, 22 जून 2022

Katha Prasang 001 || कथा प्रसंग 001 || जो करते रहोगे भजन धीरे धीरे || Jo karte Rahoge Bhajan Dhire Dhire

Katha Prasang 001 ||  कथा प्रसंग 001 || जो करते रहोगे  भजन धीरे धीरे || Jo karte Rahoge Bhajan Dhire Dhire 

एक बार की बात है। देवर्षि नारद जी भगवान श्रीहरि विष्‍णु जी से मिलने जा रहे थे। तभी उन्‍होंने मार्ग में देखा कि एक तपस्‍वी एक नीम के पेड के नीचे बैठ कर घोर तपस्‍या कर रहे हैं। नारद जी को विचार आया कि जाकर इनसे मिलना चाहिए। नारद जी तपस्‍वी के पास गये और बताया कि वे श्रीहरि विष्‍णुजी से मिलने जा रहे हैं। नारद जी ने यह भी कहा कि अगर आप कोई सन्‍देश प्रभु श्रीहरि विष्‍णु जी तक पहुँचाना चाहतें हों तो मैं उसे उन तक पहुँचा सकता हूँ। इस पर उन तपस्‍वी ने कहा कि आपकी अत्‍यन्‍त कृपा आज मुझ पर हुई है। आप केवल मेरे एक प्रश्‍न का उत्‍तर श्रीहरि विष्‍णु जी से पूछ कर आइयेगा। नारद जी ने कहा पूँछिये आपका प्रश्‍न क्‍या है। तपस्‍वी ने कहा कि आप उनसे केवल इतना पूँछ कर आइयेगा कि मुझे वे दर्शन कब देंगे। नारद जी नारायण नारायण जपते हुए श्री हरि विष्‍णु जी के श्रीधाम में पहुँचे और उनकी स्‍तुति करके सारा वृतान्‍त कह सुनाया। नारद जी ने तपस्‍वी के प्रश्‍न का उत्‍तर जानने की जिज्ञासा प्रकट की। इस पर भगवान श्रीहरि विष्‍णु ने कहा कि उस नीम के वृक्ष पर जितने पत्‍ते हैं उतने वर्षों के बाद उस तपस्‍वी को मैं दर्शन दूँगा। यह सुनकर नारद जी को बडा दुख हुआ। उन्‍होंने सोचा कि जब मैं तपस्‍वी को यह बात बताऊँगा तो वे बहुत दुखी होंगे। इन्‍हीं बातों पर विचार करते हुए नारद जी जब वापस लौटे तो तपस्‍वी ने उनसे पूँछा कि श्रीहरि ने क्‍या उत्‍तर दिया। नारद जी ने बडे उदास मन से बताया कि श्रीहरि विष्‍णुजी ने कहा है कि इस वृक्ष पर जितने पत्‍ते हैं उतने वर्षों के बाद वे आपको द‍र्शन देंगे। इतना सुनना था कि तपस्‍वी खुशी से झूमने लगे और नृत्‍य करने लगे। नारद जी ने पूँछा कि आप दुखी होने के बजाय खुश हो रहे हैं। तपस्‍वी ने कहा कि अभी तक तो मुझे यह भी पता नहीं था कि श्रीहरि विष्‍णु के मुझे दर्शन होंगे भी या नहीं। किन्‍तु अब मुझे पता चल गया है कि उनके दर्शन होंगे ही। इसीलिए मैं इतना प्रसन्‍न हूँ।

 

जो करते रहोगे

भजन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

जो करते रहोगे

भजन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

जो करते रहोगे

भजन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

 

जो करते रहोगे

भजन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

 

अगर उनसे मिलने की

दिल में तमन्‍ना

अगर उनसे मिलने की

दिल में तमन्‍ना

अगर प्रभु से मिलने की

दिल में तमन्‍ना

अगर प्रभु से मिलने की

दिल में तमन्‍ना

दिल में तमन्‍ना

दिल में तमन्‍ना

अगर हरि से मिलने की

दिल में तमन्‍ना

अगर हरि से मिलने की

दिल में तमन्‍ना

करो शुद्ध अन्‍त:करण धीरे धीरे

करो शुद्ध अन्‍त:करण धीरे धीरे

 

जो करते रहोगे

भजन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

 

जो करते रहोगे

भजन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

जो करते रहोगे

भजन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

जो करते रहोगे ....

 

कोई काम दुनिया में

मुश्किल नहीं है

कोई काम दुनिया में

मुश्किल नहीं है

कोई काम दुनिया में

मुश्किल नहीं है

कोई काम दुनिया में

मुश्किल नहीं है

मुश्किल नहीं है

कोई काम दुनिया में

मुश्किल नहीं है

कोई काम दुनिया में

मुश्किल नहीं है

जो करते रहोगे

यतन धीरे धीरे

जो करते रहोगे

यतन धीरे धीरे

 

जो करते रहोगे

भजन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

जो करते रहोगे ....

 

करो प्रेम से भक्ति

सेवा हरि की

करो प्रेम से भक्ति

सेवा हरि की

करो प्रेम से भक्ति

पूजा हरि की

 

करो प्रेम से भक्ति

पूजा हरि की

पूजा हरि की

पूजा हरि की

करो प्रेम से भक्ति

पूजा हरि की

करो प्रेम से भक्ति

पूजा हरि की

तो मिल जायेगा

वो रतन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो रतन धीरे धीरे

 

जो करते रहोगे

भजन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

 

जो करते रहोगे ....

सोमवार, 20 जून 2022

जरा बंसी बजा दो मनमोहन || Jara Bansi Baja Do Manmohan || Sarvadev Aarti Lyrics in Hindi || Shiv Aarti || Krishna Aarti

जरा बंसी बजा दो मनमोहन || Jara Bansi Baja Do Manmohan || Sarvadev Aarti Lyrics in Hindi || Shiv Aarti || Krishna Aarti 

(तर्ज - दिल लूटन वाले जादूगर)
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जरा बंसी बजा दो मनमोहन 
हम आरती करने आये हैं 
जरा बंसी बजा दो मनमोहन 
हम आरती करने आये हैं 
जरा बंसी बजा दो मनमोहन 
हम आरती करने आये हैं 
जरा बंसी बजा दो मनमोहन 
हम आरती करने आये हैं 
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मेरे हाथ में अगर कपूर बाती
मेरे हाथ में अगर कपूर बाती
हम ज्‍योत जलाने आये हैं 
हम ज्‍योत जलाने आये हैं 
जरा दरश दिखा दो गजानना 
हम आरती करने आये हैं 
जरा दरश दिखा दो गजानना 
हम आरती करने आये हैं
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मेरे हाथ में पान फूल मेवा है 
मेरे हाथ में पान फूल मेवा है 
हम भोग लगाने आये हैं 
हम भोग लगाने आये हैं 
जरा बंसी बजा दो मनमोहन 
हम आरती करने आये हैं 
जरा बंसी बजा दो मनमोहन 
हम आरती करने आये हैं
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जरा डमरू बजा दो शिवशंकर 
हम आरती करने आये हैं
जरा डमरू बजा दो शिवशंकर 
हम आरती करने आये हैं
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मेरे हाथ में जल का लोटा है 
मेरे हाथ में जल का लोटा है
हम तुम्‍हें चढाने आये हैं 
हम तुम्‍हें चढाने आये हैं
जरा शंख बजा दो नारायण 
हम आरती करने आये हैं 
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जरा शंख बजा दो नारायण 
हम आरती करने आये हैं
जरा शंख बजा दो नारायण 
हम आरती करने आये हैं
जरा वीणा बजा दो शारदे माँ 
हम आरती करने आये हैं 
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जरा वीणा बजा दो शारदे माँ 
हम आरती करने आये हैं 
मेरे हाथ में श्‍वेत कमलदल है 
हम तुम्‍हें चढाने आये हैं 
हम तुम्‍हें चढाने आये हैं
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जरा बंसी बजा दो मनमोहन
हम आरती करने आये हैं 
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जरा दरश दिखा दो जगदम्‍बा 
हम आरती करने आये हैं 
जरा दरश दिखा दो जगदम्‍बा 
हम आरती करने आये हैं 
मेरे हाथ में लाल चुनरिया है
हम तुम्‍हें चढाने आये हैं 
मेरे हाथ में लाल चुनरिया है
हम तुम्‍हें चढाने आये हैं
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जरा शंख बजा दो नारायण
हम आरती करने आये हैं
जरा शंख बजा दो नारायण
हम आरती करने आये हैं
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जरा चुटकी बजा दो हनुमन्‍त लला 
हम आरती करने आये हैं 
जरा चुटकी बजा दो हनुमन्‍त लला 
हम आरती करने आये हैं 
मेरे हाथ में सिन्‍दुर रोली है 
मेरे हाथ में सिन्‍दुर रोली है 
हम तुम्हें चढाने आये हैं 
हम तुम्‍हें चढाने आये हैं
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जरा बंशी बजादो मनमोहन 
हम आरती करने आये हैं
जरा डमरू बजा दो शिवशंकर
हम आरती करने आये हैं
जरा शंख बजा दो नारायण 
हम आरती करने आये हैं