धोली सती की स्तुति || धोली सती चालीसा || Dholi Sati Ki Stuti || Dholi Sati Ki Chalisa || Dholi Sati Ka Itihas
धोली सती मंदिर-फतेहपुर
अग्रसेनजी ने 18 राज्यों को मिला कर गणराज्य बनाया था। उन्होने गौड़ ब्राहमणों को अपना पुरोहित बनाया। उनके आदेश पर 18 यज्ञो का आयोजन किया गया और इनमें अलग-अलग पशुओं की बली दी गई। जब अठारहवें यज्ञ में बली का समय आया तो अग्रसेनजी निरीह पशुओं की बली देख कर करूणा से भर गये और उन्होने बली देने से मना कर दिया। जिसके दंड़ के परिणाम स्वरूप उन्होने क्षत्रिय धर्म छोड़ कर वैश्य धर्म अपनाना पड़ा, जिसे उन्होने सहर्ष स्वीकार किया और अपने राज्य में अहिंसा और शाकाहारी होने का नियम बना दिया। 18 यज्ञो कराने वाले पुरोहितों के नाम पर 18 गोत्रों की स्थापना कर के उन्होने अपने गणराज्य के 18 प्रतिनिधियों को एक-एक गोत्र दे कर सम्मानित किया। अब एक गोत्र वाले अपने गोत्र में विवाह नहीं कर सकते थे। वे दूसरे गोत्र में ही शादी कर सकते थे। अठारह प्रतिनिधियों में से एक थे नारनौंद के राजा बुधमानजी जिन्होने बिंदल गोत्र को चलाया।
धोली सती के जीवन के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं हैं। जो थोड़ी बहुत जानकारी हैं वह भी किद्वंतीयाँ हैं। कहा जाता हैं कि धोली सती का जन्म आज के हरियाणा राज्य के महेन्द्रगढ़ नगर में किशन लालजी और सरस्वती देवी के घर हुआ था। उनका विवाह हाँसी के पास के नगर नारनौंद निवासी बिंदल गोत्री नाथूरामजी के संग हुआ था।
माना जाता हैं कि जब वे मुकलावा कर के अपनी ससुराल नारनौंद आ रही थी, तब बीच रास्ते में किसी नवाब का राज्य क्षेत्र था, राजाज्ञा के कारण सिपाहियों ने डोली को आगे जाने से रोक लिया। नवाब की आज्ञा थी कि जो भी डोली उनके क्षेत्र में आयेगी वह सबसे पहले एक रात महल में रहेगी, उसके बाद ही वह आगे बढ़ेगी। नाथूरामजी के ना मानने पर उनमें और नवाब की सेना में महासंग्राम हुआ और नाथूरामजी को वीरगति को प्राप्त हुई।
दूसरी किद्वंती के अनुसार नारनौंद के राजा ने यह नियम बनाया था कि हर नववधू को सबसे पहले महल की दहलीज पर शीश झुका कर के पूजा करना होगा, तभी वह ससुराल जा सकती हैं। धोली सती के ना मानने पर नाथूरामजी और राजा की सेना में संग्राम हुआ और नाथूरामजी को वीरगति को प्राप्त हुई। यह समाचार पा कर धोली पति के साथ सती हो गई।
फतेहपुर में धोली सती मंदिर क्यों और कैसे बनाः
नारनौंद में सर्राफ परिवार का इतिहास 1000 साल का हैं। परिवार के कुल पुरोहित हरितवाल (भारद्वाज गोत्री) गौड़ ब्राहमण हैं। 750 वर्ष पूर्व धोली के सती होने के बाद परिवार में भय और असुरक्षा का भावना घर गई। परिवार की एक शाखा नारनौंद के आसपास के गाँव सुलचानी, खेड़ा, कुम्भा और पेटवाड़ आदि गाँवों में जा कर बस गई। दूसरी शाखा नारनौल जा कर बस गई और ये सर्राफ कहलाये। सन् 1451 में नारनौल से जा कर ये फतेहपुर में बस गये। नारनौंद में परिवार ने धोली सती का मंड़ बनवाया, जहाँ समय-समय पर परिवारजन पूजा करने के लिये आते थे। 450 वर्ष पूर्व जब परिवारजन पूजा करने के लिये नारनौंद जा रहे थे तब रास्ते में डाकुओं द्वारा लूट लिये गये। इसके बाद दादी का मंड़प वहाँ से उठा कर फतेहपुर में स्थापित किया गया। नारनौंद में आज भी धोली सती का एक छोटा सा मंड हैं।
अग्रवाल समाज की पहली सती ‘धोली सती’ थी। उनके इस बलिदान के लिये बिंदल गोत्री उनकी देवी मान कर पूजा करते हैं। उनकी स्मृति में फतेहपुर में बहुत सुंदर विशाल मंदिर बना हैं। यहाँ बिंदल गोत्र के अलावा भी अन्य गोत्री लोग भी दर्शन के लिये आते हैं। कई बिंदल गोत्री हरा कपड़ा नहीं पहनते हैं क्योंकि नाथूरामजी ने मुस्लिम सेना से लड़ते हुये वीरगति पाई थी। यहाँ हरा कपड़ा या हरी कोई भी वस्तु चढ़ाना या पहन कर आना वर्जित हैं। मंदिर के प्रागंण में ठहरने और भोजन की सारी व्यवस्था हैं।
धोली सती की स्तुति
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके,
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते।।
शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे,
सर्वस्यार्ति हरे देवी नारायणी नमोस्तुते।।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते,
भयेभ्य स्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते।।
सर्व बाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि,
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशम्।
या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
धोली सती चालीसा
भजो मन दादी दादी नाम
जपो मन दादी दादी नाम
जय जय जय धोली सती दादी ।।
जय फतेहपुर धाम,
जपो मन दादी दादी नाम,
भजो मन दादी दादी नाम ।।
कथा है धोली सती की
है ये कलयुग की कहानी,
राज्य हरयाणा में जन्मी
फतेहपुर की महारानी।
पिता किशन लाल जी
के घर गूंजी किलकारी,
माँ सरस्वती के मन में
छा गयी खुशियां भारी ।।
शक्ति अंश से जन्मी कन्या,
धोली रखा नाम,
जपो मन दादी दादी नाम,
भजो मन दादी दादी नाम ।।
किशन जी के आँगन में
समय शुभ दिन वो आया,
धोली का नाथूराम जी के
संग में ब्याह रचाया ।
बिदा की घड़ी जो आई,
आँख सब की भर आई,
बहुत मन को समझा कर
करी बेटी की बिदाई ।।
चल पड़ी धोली की डोली,
संग हैं नाथूराम,
जपो मन दादी दादी नाम,
भजो मन दादी दादी नाम ।।
हुक्म ये राजा का है,
ये डोली यहीं रुकेगी,
रात महल में रहकर
पालकी आगे बढ़ेगी ।
जो मेरी राहें रोकी,
तो फिर संग्राम होगा,
संभल जा अब भी राजा,
बुरा अंजाम होगा ।।
नाथूराम और मानसिंह में
मचा महासंग्राम,
जपो मन दादी दादी नाम,
भजो मन दादी दादी नाम ।।
रूप चंडी का धारा,
मानसिंह को संहारा,
सती के तेज़ से धरती,
लाल हुआ अम्बर सारा ।
बैठ गयी अग्नि रथ पर,
ज्योत से ज्योत मिलायी,
गूँज उठा जयकारा,
जय श्री धोली सती माई ।।
सतवंती माँ धोली सती की
सत की महिमा महान,
जपो मन दादी दादी नाम
भजो मन दादी दादी नाम ।।
धन्य है फतेहपुर नगरी,
धन्य वो शेखावाटी,
जहां कण-कण में बसी है
मेरी धोली सती दादी ।
बिंदल कुलदेवी माँ की
है महिमा बड़ी निराली,
कृपा भगतों पर करती
दादी फतेहपुर वाली ।।
“सौरभ मधुकर” दादी के
गुण गाये सुबहो शाम
जपो मन दादी दादी नाम
भजो मन दादी दादी नाम ।।
जय जय जय धोली सती दादी,
जय फतेहपुर धाम ।
जपो मन दादी दादी नाम,
भजो मन दादी दादी नाम ।।
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