जय जय जय मात ब्रह्माणी भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी| श्री ब्रह्माणी चालीसा | Shri Brahmani Chalisa Lyrics in Hindi
श्री ब्रहमाणी माताजी का मंदिर-पल्लू
राजस्थान राज्य के हनुमानगढ़ जिले का कस्बां पल्लू ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं। इसकी भौगोलिक स्थिति बाड़मेर, जैसलमेर और चुरू की तरह हैं। इस गाँव के चारों ओर थार मरुस्थल हैं, आस पास कहीं भी पहाड़ नहीं हैं। गांव में मध्य युग से पूर्व चूने का एक किला था। इसका निर्माण तीन चरण में हुआ। कस्बे में माता ब्रह्माणी, सरस्वती व महाकाली का मंदिर है। ये पुराने किले की थेहड़ पर बना है। माता की दूर-दूर तक मान्यता है। वर्ष भर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मंदिर में स्थापित मूर्तियों पर जैन सभ्यता की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है।
बताया जाता है कि हजारों वर्ष पूर्व गीगासर (बीकानेर) के भोजराज सिंह यहां अपना घोड़ा खोजते हुए आए थे। रात हो जाने के कारण वे यहां विश्राम करने एक पेड़ के नीचे रुक गए। उन्हें रात्रि में माता ने दर्शन देकर पूजा करने को कहा। भोजराज सिंह ने सुबह उठकर देखा तो मां ब्रह्माणी, सरस्वती और काली की मूर्तियां जमीन से निकली हुई दिखाई दी। उसी दिन से वे यहां पर पूजा करने लगे। तत्पश्चात मंदिर का निर्माण कराया गया। समय बीतता गया और मंदिर की प्रसिद्ध दूर-दूर तक फैलती गई।
वर्तमान में मंदिर परिसर में दो मंदिर हैं। श्री ब्राह्मणी मंदिर का निर्माण गाँव सिंगरासर के सारसवा भादु और श्री माँ काली मंदिर का काबा भादुओं द्वारा किया गया था। दोनों ही कुलों की ये पारिवारिक देवी हैं। दोनों ही मंदिरों के चांदी के दरवाजे हैं, जो वर्षों पूर्व बनाए गए थे। किंतु आज भी नए जैसे ही दिखते हैं। मंदिर में पूजा सदियों से भोजराज सिंह के वंशज पीढ़ी-दर-पीढ़ी करते आ रहे हैं। मंदिर का एक सार्वजनिक ट्रस्ट बना हुआ है। प्रतिदिन चढ़ने वाला प्रसाद और चढ़ावा पुजारियों के पांचों भाइयों भागूसिंह, गुलाबसिंह, अमरसिंह, उदयसिंह और रिड़माल सिंह के परिवार में बांट दिया जाता है। इनके गांव में करीब 20-25 घर हैं। ये सभी भोजराजसिंह के वंशज है।
माँ ब्राह्मणी का मेला और पदयात्रा:
राजस्थान राज्य के हनुमानगढ़ जिले का पल्लू कस्बा माँ ब्राह्मणी माता के मन्दिर के लिये समस्त भारत देश में प्रसिद्ध है। वर्ष में दो बार यहाँ नवरात्र में विशाल मेला भरता है। माँ ब्राह्मणी पल्लू वाली का मुख्य मेला सप्तमी और अष्टमी को भरता है। सप्तमी और अष्टमी को धोक लगाने वाले भगतों की संख्या एक अनुमान के अनुसार 50 हजार से दो लाख के बीच होती हैं। देशभर से भक्त पैदल, धोक देते हुये, निशान उठा कर या जिस तरह से मानता की हो उस के अनुसार माता के दरबार में आते हैं। अरजनसर से पल्लू आने वाले और हनुमानगढ़ से पल्लू और सालासर वाले मेगा हाइवे पर एक तरफ सालासर बाबा की जय तो दूसरी तरफ जय माता दी के नारों से भक्त माहौल को भक्तिमय बना देते है।
द्वारपाल श्री सादूलाजी
द्वारपाल श्री सादूलाजी
पल्लू में श्री ब्रहमाणी माताजी के मंदिर के पहले माता जी के द्वारपाल श्री सादूला जी का मंदिर बना हुआ है, इसमें श्री सादूलाजी की एक सफेद मारबल की मुर्ति लगी हुई हैं । धार्मिक मान्यताओ के अनुसार श्री सादूला जी को माँ ब्रहमाणी ने एक वरदान दे कर उन्हे एक श्रेष्ठ पद दिया । जो भी भक्त जन माता जी मंदिर के धोक लगाने और दर्शन करने आते है उनको माता जी दर्शन करने से पहले द्वारपाल श्री सादूला जी को धोक लगानी होती और प्रसाद चढ़ाना होता हैं।
श्री ब्रह्माणी चालीसा
दोहा
कोटि कोटि नमन मेरे माता पिता को
जिसने दिया शरीर
बलिहारी जाऊँ गुरू देव ने
दिया हरि भजन में सीर ॥
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श्री ब्रह्माणी स्तुति
चन्द्र दिपै सूरज दिपै
उड़गण दिपै आकाश ।
इन सब से बढकर दिपै
माताऒ का सुप्रकाश ॥
*****
मेरा अपना कुछ नहीं
जो कुछ है सो तोय ।
तेरा तुझको सौंपते
क्या लगता है मोय ॥
*****
पद्म कमण्डल अक्ष
कर ब्रह्मचारिणी रूप ।
हंस वाहिनी कृपा करे
पडूँ नहीं भव कूप ॥
*****
जय जय श्री ब्रह्माणी
सत्य पुंज आधार ।
चरण कमल धरि ध्यान में
प्रणबहुँ बारम्बार ॥
*****
चौपाई
जय जय जय मात ब्रह्माणी ।
भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी ॥ १ ॥
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वीणा पुस्तक कर में सोहे ।
मात शारदा सब जग सोहे ॥ २ ॥
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हँस वाहिनी जय जग माता ।
भक्त जनन की हो सुख दाता ॥ ३ ॥
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ब्रह्माणी ब्रह्मा लोक से आई ।
मात लोक की करो सहाई ॥ ४ ॥
*****
क्षीर सिन्धु में प्रकटी जब ही ।
देवों ने जय बोली तब ही ॥ ५ ॥
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चतुर्दश रतनों में मानी ।
अद॒भुत माया वेद बखानी ॥ ६ ॥
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चार वेद षट शास्त्र की गाथा ।
शिव ब्रह्मा कोई पार न पाता ॥ ७ ॥
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आदि शक्ति अवतार भवानी ।
भक्त जनों की मां कल्याणी ॥ ८ ॥
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जब−जब पाप बढे अति भारे ।
माता शस्त्र कर में धारे ॥ ९ ॥
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पाप विनाशिनी तू जगदम्बा ।
धर्म हेतु ना करो विलम्बा ॥ १० ॥
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नमो नमो ब्रह्मी सुखकारी ।
ब्रह्मा विष्णु शिव तोहे मानी ॥ ११ ॥
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तेरी लीला अजब निराली ।
सहाय करो माँ पल्लू वाली ॥ १२ ॥
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दुःख चिन्ता सब बाधा हरणी ।
अमंगल में मंगल करणी ॥ १३ ॥
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अन्न पूरणा हो अन्न की दाता ।
सब जग पालन करती माता ॥ १४ ॥
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सर्व व्यापिनी असंख्या रूपा ।
तव कृपा से टरता भव कूपा ॥ १५ ॥
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चंद्र बिंब आनन सुखकारी ।
अक्ष माल युत हंस सवारी ॥ १६ ॥
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पवन पुत्र की करी सहाई ।
लंक जार अनल सित लाई ॥ १७ ॥
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कोप किया दश कन्ध पे भारी ।
कुटम्ब संहारा सेना भारी ॥ १८ ॥
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तु ही मात विधी हरि हर देवा ।
सुर नर मुनी सब करते सेवा ॥ १९ ॥
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देव दानव का हुआ सम्वादा ।
मारे पापी मेटी बाधा ॥ २० ॥
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श्री नारायण अंग समाई ।
मोहनी रूप धरा तू माई ॥ २१ ॥
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देव दैत्यों की पंक्ती बनाई ।
देवों को मां सुधा पिलाई ॥ २२ ॥
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चतुराई कर के महा माई ।
असुरों को तू दिया मिटाई ॥ २३ ॥
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नौ खण्ङ मांही नेजा फरके ।
भागे दुष्ट अधम जन डर के ॥ २४ ॥
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तेरह सौ पेंसठ की साला ।
आस्विन मास पख उजियाला ॥ २५ ॥
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रवि सुत बार अष्टमी ज्वाला ।
हंस आरूढ कर लेकर भाला ॥ २६ ॥
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नगर कोट से किया पयाना ।
पल्लू कोट भया अस्थाना ॥ २७ ॥
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चौसठ योगिनी बावन बीरा ।
संग में ले आई रणधीरा ॥ २८ ॥
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बैठ भवन में न्याय चुकाणी ।
द्वार पाल सादुल अगवाणी ॥ २९ ॥
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सांझ सवेरे बजे नगारा ।
उठता भक्तों का जयकारा ॥ ३० ॥
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मढ़ के बीच खड़ी मां ब्रह्माणी ।
सुन्दर छवि होंठो की लाली ॥ ३१ ॥
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पास में बैठी मां वीणा वाली ।
उतरी मढ़ बैठी महा काली ॥ ३२ ॥
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लाल ध्वजा तेरे मंदिर फरके ।
मन हर्षाता दर्शन करके ॥ ३३ ॥
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चैत आसोज में भरता मेला ।
दूर दूर से आते चेला ॥ ३४ ॥
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कोई संग में, कोई अकेला ।
जयकारो का देता हेला ॥ ३५ ॥
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कंचन कलश शोभा दे भारी ।
दिव्य पताका चमके न्यारी ॥ ३६ ॥
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सीस झुका जन श्रद्धा देते ।
आशीष से झोली भर लेते ॥ ३७ ॥
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तीन लोकों की करता भरता ।
नाम लिए सब कारज सरता ॥ ३८ ॥
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मुझ बालक पे कृपा की ज्यो ।
भूल चूक सब माफी दीज्यो ॥ ३९ ॥
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मन्द मति यह दास तुम्हारा ।
दो मां अपनी भक्ती अपारा ॥ ४० ॥
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जब लगि जिऊ दया फल पाऊं ।
तुम्हरो जस मैं सदा ही गाऊं ॥ ४१ ॥
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दोहा
राग द्वेष में लिप्त मन
मैं कुटिल बुद्धि अज्ञान ।
भव से पार करो मातेश्वरी
अपना अनुगत जान ॥
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दोहा
कोटि कोटि नमन मेरे माता पिता को
जिसने दिया शरीर
बलिहारी जाऊँ गुरू देव ने
दिया हरि भजन में सीर ॥
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श्री ब्रह्माणी स्तुति
चन्द्र दिपै सूरज दिपै
उड़गण दिपै आकाश ।
इन सब से बढकर दिपै
माताऒ का सुप्रकाश ॥
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मेरा अपना कुछ नहीं
जो कुछ है सो तोय ।
तेरा तुझको सौंपते
क्या लगता है मोय ॥
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पद्म कमण्डल अक्ष
कर ब्रह्मचारिणी रूप ।
हंस वाहिनी कृपा करे
पडूँ नहीं भव कूप ॥
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जय जय श्री ब्रह्माणी
सत्य पुंज आधार ।
चरण कमल धरि ध्यान में
प्रणबहुँ बारम्बार ॥
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चौपाई
जय जय जय मात ब्रह्माणी ।
भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी ॥ १ ॥
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वीणा पुस्तक कर में सोहे ।
मात शारदा सब जग सोहे ॥ २ ॥
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हँस वाहिनी जय जग माता ।
भक्त जनन की हो सुख दाता ॥ ३ ॥
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ब्रह्माणी ब्रह्मा लोक से आई ।
मात लोक की करो सहाई ॥ ४ ॥
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क्षीर सिन्धु में प्रकटी जब ही ।
देवों ने जय बोली तब ही ॥ ५ ॥
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चतुर्दश रतनों में मानी ।
अद॒भुत माया वेद बखानी ॥ ६ ॥
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चार वेद षट शास्त्र की गाथा ।
शिव ब्रह्मा कोई पार न पाता ॥ ७ ॥
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आदि शक्ति अवतार भवानी ।
भक्त जनों की मां कल्याणी ॥ ८ ॥
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जब−जब पाप बढे अति भारे ।
माता शस्त्र कर में धारे ॥ ९ ॥
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पाप विनाशिनी तू जगदम्बा ।
धर्म हेतु ना करो विलम्बा ॥ १० ॥
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नमो नमो ब्रह्मी सुखकारी ।
ब्रह्मा विष्णु शिव तोहे मानी ॥ ११ ॥
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तेरी लीला अजब निराली ।
सहाय करो माँ पल्लू वाली ॥ १२ ॥
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दुःख चिन्ता सब बाधा हरणी ।
अमंगल में मंगल करणी ॥ १३ ॥
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अन्न पूरणा हो अन्न की दाता ।
सब जग पालन करती माता ॥ १४ ॥
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सर्व व्यापिनी असंख्या रूपा ।
तव कृपा से टरता भव कूपा ॥ १५ ॥
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चंद्र बिंब आनन सुखकारी ।
अक्ष माल युत हंस सवारी ॥ १६ ॥
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पवन पुत्र की करी सहाई ।
लंक जार अनल सित लाई ॥ १७ ॥
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कोप किया दश कन्ध पे भारी ।
कुटम्ब संहारा सेना भारी ॥ १८ ॥
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तु ही मात विधी हरि हर देवा ।
सुर नर मुनी सब करते सेवा ॥ १९ ॥
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देव दानव का हुआ सम्वादा ।
मारे पापी मेटी बाधा ॥ २० ॥
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श्री नारायण अंग समाई ।
मोहनी रूप धरा तू माई ॥ २१ ॥
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देव दैत्यों की पंक्ती बनाई ।
देवों को मां सुधा पिलाई ॥ २२ ॥
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चतुराई कर के महा माई ।
असुरों को तू दिया मिटाई ॥ २३ ॥
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नौ खण्ङ मांही नेजा फरके ।
भागे दुष्ट अधम जन डर के ॥ २४ ॥
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तेरह सौ पेंसठ की साला ।
आस्विन मास पख उजियाला ॥ २५ ॥
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रवि सुत बार अष्टमी ज्वाला ।
हंस आरूढ कर लेकर भाला ॥ २६ ॥
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नगर कोट से किया पयाना ।
पल्लू कोट भया अस्थाना ॥ २७ ॥
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चौसठ योगिनी बावन बीरा ।
संग में ले आई रणधीरा ॥ २८ ॥
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बैठ भवन में न्याय चुकाणी ।
द्वार पाल सादुल अगवाणी ॥ २९ ॥
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सांझ सवेरे बजे नगारा ।
उठता भक्तों का जयकारा ॥ ३० ॥
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मढ़ के बीच खड़ी मां ब्रह्माणी ।
सुन्दर छवि होंठो की लाली ॥ ३१ ॥
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पास में बैठी मां वीणा वाली ।
उतरी मढ़ बैठी महा काली ॥ ३२ ॥
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लाल ध्वजा तेरे मंदिर फरके ।
मन हर्षाता दर्शन करके ॥ ३३ ॥
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चैत आसोज में भरता मेला ।
दूर दूर से आते चेला ॥ ३४ ॥
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कोई संग में, कोई अकेला ।
जयकारो का देता हेला ॥ ३५ ॥
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कंचन कलश शोभा दे भारी ।
दिव्य पताका चमके न्यारी ॥ ३६ ॥
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सीस झुका जन श्रद्धा देते ।
आशीष से झोली भर लेते ॥ ३७ ॥
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तीन लोकों की करता भरता ।
नाम लिए सब कारज सरता ॥ ३८ ॥
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मुझ बालक पे कृपा की ज्यो ।
भूल चूक सब माफी दीज्यो ॥ ३९ ॥
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मन्द मति यह दास तुम्हारा ।
दो मां अपनी भक्ती अपारा ॥ ४० ॥
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जब लगि जिऊ दया फल पाऊं ।
तुम्हरो जस मैं सदा ही गाऊं ॥ ४१ ॥
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दोहा
राग द्वेष में लिप्त मन
मैं कुटिल बुद्धि अज्ञान ।
भव से पार करो मातेश्वरी
अपना अनुगत जान ॥
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जय माता दी
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