बुधवार, 13 जुलाई 2022

जय जय जय मात ब्रह्माणी भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी| श्री ब्रह्माणी चालीसा | Shri Brahmani Chalisa Lyrics in Hindi

जय जय जय मात ब्रह्माणी भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी| श्री ब्रह्माणी चालीसा | Shri Brahmani Chalisa Lyrics in Hindi 


श्री ब्रहमाणी माताजी का मंदिर-पल्लू

राजस्थान राज्य के हनुमानगढ़ जिले का कस्बां पल्लू ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं। इसकी भौगोलिक स्थिति बाड़मेर, जैसलमेर और चुरू की तरह हैं। इस गाँव के चारों ओर थार मरुस्थल हैं, आस पास कहीं भी पहाड़ नहीं हैं। गांव में मध्य युग से पूर्व चूने का एक किला था। इसका निर्माण तीन चरण में हुआ। कस्बे में माता ब्रह्माणी, सरस्वती व महाकाली का मंदिर है। ये पुराने किले की थेहड़ पर बना है। माता की दूर-दूर तक मान्यता है। वर्ष भर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मंदिर में स्थापित मूर्तियों पर जैन सभ्यता की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है।

बताया जाता है कि हजारों वर्ष पूर्व गीगासर (बीकानेर) के भोजराज सिंह यहां अपना घोड़ा खोजते हुए आए थे। रात हो जाने के कारण वे यहां विश्राम करने एक पेड़ के नीचे रुक गए। उन्हें रात्रि में माता ने दर्शन देकर पूजा करने को कहा। भोजराज सिंह ने सुबह उठकर देखा तो मां ब्रह्माणी, सरस्वती और काली की मूर्तियां जमीन से निकली हुई दिखाई दी। उसी दिन से वे यहां पर पूजा करने लगे। तत्पश्चात मंदिर का निर्माण कराया गया। समय बीतता गया और मंदिर की प्रसिद्ध दूर-दूर तक फैलती गई।

वर्तमान में मंदिर परिसर में दो मंदिर हैं। श्री ब्राह्मणी मंदिर का निर्माण गाँव सिंगरासर के सारसवा भादु और श्री माँ काली मंदिर का काबा भादुओं द्वारा किया गया था। दोनों ही कुलों की ये पारिवारिक देवी हैं। दोनों ही मंदिरों के चांदी के दरवाजे हैं, जो वर्षों पूर्व बनाए गए थे। किंतु आज भी नए जैसे ही दिखते हैं। मंदिर में पूजा सदियों से भोजराज सिंह के वंशज पीढ़ी-दर-पीढ़ी करते आ रहे हैं। मंदिर का एक सार्वजनिक ट्रस्ट बना हुआ है। प्रतिदिन चढ़ने वाला प्रसाद और चढ़ावा पुजारियों के पांचों भाइयों भागूसिंह, गुलाबसिंह, अमरसिंह, उदयसिंह और रिड़माल सिंह के परिवार में बांट दिया जाता है। इनके गांव में करीब 20-25 घर हैं। ये सभी भोजराजसिंह के वंशज है।

माँ ब्राह्मणी का मेला और पदयात्रा:

राजस्थान राज्य के हनुमानगढ़ जिले का पल्लू कस्बा माँ ब्राह्मणी माता के मन्दिर के लिये समस्त भारत देश में प्रसिद्ध है। वर्ष में दो बार यहाँ नवरात्र में विशाल मेला भरता है। माँ ब्राह्मणी पल्लू वाली का मुख्य मेला सप्तमी और अष्टमी को भरता है। सप्तमी और अष्टमी को धोक लगाने वाले भगतों की संख्या एक अनुमान के अनुसार 50 हजार से दो लाख के बीच होती हैं। देशभर से भक्त पैदल, धोक देते हुये, निशान उठा कर या जिस तरह से मानता की हो उस के अनुसार माता के दरबार में आते हैं। अरजनसर से पल्लू आने वाले और हनुमानगढ़ से पल्लू और सालासर वाले मेगा हाइवे पर एक तरफ सालासर बाबा की जय तो दूसरी तरफ जय माता दी के नारों से भक्त माहौल को भक्तिमय बना देते है।

द्वारपाल श्री सादूलाजी

पल्लू में श्री ब्रहमाणी माताजी के मंदिर के पहले माता जी के द्वारपाल श्री सादूला जी का मंदिर बना हुआ है, इसमें श्री सादूलाजी की एक सफेद मारबल की मुर्ति लगी हुई हैं । धार्मिक मान्यताओ के अनुसार श्री सादूला जी को माँ ब्रहमाणी ने एक वरदान दे कर उन्हे एक श्रेष्ठ पद दिया । जो भी भक्त जन माता जी मंदिर के धोक लगाने और दर्शन करने आते है उनको माता जी दर्शन करने से पहले द्वारपाल श्री सादूला जी को धोक लगानी होती और प्रसाद चढ़ाना होता हैं।


श्री ब्रह्माणी चालीसा
दोहा
कोटि कोटि नमन मेरे माता पिता को 
जिसने दिया शरीर
बलिहारी जाऊँ गुरू देव ने 
दिया हरि भजन में सीर ॥
*****
श्री ब्रह्माणी स्तुति
चन्द्र दिपै सूरज दिपै 
उड़गण दिपै आकाश ।
इन सब से बढकर दिपै 
माताऒ का सुप्रकाश ॥
*****
मेरा अपना कुछ नहीं 
जो कुछ है सो तोय ।
तेरा तुझको सौंपते 
क्या लगता है मोय ॥
*****
पद्म कमण्डल अक्ष 
कर ब्रह्मचारिणी रूप ।
हंस वाहिनी कृपा करे 
पडूँ नहीं भव कूप ॥
*****
जय जय श्री ब्रह्माणी 
सत्य पुंज आधार ।
चरण कमल धरि ध्यान में 
प्रणबहुँ बारम्बार ॥
*****
चौपाई
जय जय जय मात ब्रह्माणी । 
भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी ॥ १ ॥
*****
वीणा पुस्तक कर में सोहे । 
मात शारदा सब जग सोहे ॥ २ ॥
*****
हँस वाहिनी जय जग माता । 
भक्त जनन की हो सुख दाता ॥ ३ ॥
*****
ब्रह्माणी ब्रह्मा लोक से आई । 
मात लोक की करो सहाई ॥ ४ ॥
*****
क्षीर सिन्धु में प्रकटी जब ही । 
देवों ने जय बोली तब ही ॥ ५ ॥
*****
चतुर्दश रतनों में मानी । 
अद॒भुत माया वेद बखानी ॥ ६ ॥
*****
चार वेद षट शास्त्र की गाथा । 
शिव ब्रह्मा कोई पार न पाता  ॥ ७ ॥
*****
आदि शक्ति अवतार भवानी । 
भक्त जनों की  मां कल्याणी ॥ ८ ॥
*****
जब−जब पाप बढे अति भारे । 
माता शस्त्र कर में धारे ॥ ९ ॥
*****
पाप विनाशिनी तू जगदम्बा । 
धर्म हेतु ना करो विलम्बा ॥ १० ॥
*****
नमो नमो ब्रह्मी सुखकारी । 
ब्रह्मा विष्णु शिव तोहे मानी ॥ ११ ॥
*****
तेरी लीला अजब निराली । 
सहाय करो माँ पल्लू वाली ॥ १२ ॥
*****
दुःख चिन्ता सब बाधा हरणी । 
अमंगल में मंगल करणी ॥ १३ ॥
*****
अन्न पूरणा हो अन्न की दाता । 
सब जग पालन करती माता ॥ १४ ॥
*****
सर्व व्यापिनी असंख्या रूपा । 
तव कृपा से टरता भव कूपा ॥ १५ ॥
*****
चंद्र बिंब आनन सुखकारी । 
अक्ष माल युत हंस सवारी ॥ १६ ॥
*****
पवन पुत्र की करी सहाई । 
लंक जार अनल  सित लाई ॥ १७ ॥
*****
कोप किया दश कन्ध पे भारी । 
कुटम्ब संहारा सेना भारी  ॥ १८ ॥
*****
तु ही मात विधी हरि हर देवा । 
सुर नर मुनी सब करते सेवा ॥ १९ ॥
*****
देव दानव का हुआ सम्वादा । 
मारे पापी मेटी बाधा ॥ २० ॥
*****
श्री नारायण अंग समाई । 
मोहनी रूप धरा तू माई ॥ २१ ॥
*****
देव दैत्यों की पंक्ती बनाई । 
देवों को मां सुधा पिलाई ॥ २२ ॥
*****
चतुराई कर के महा माई । 
असुरों को तू दिया मिटाई ॥ २३ ॥
*****
नौ खण्ङ मांही नेजा फरके । 
भागे दुष्ट अधम जन डर के ॥ २४ ॥
*****
तेरह सौ पेंसठ की साला । 
आस्विन  मास पख उजियाला ॥ २५ ॥
*****
रवि सुत बार अष्टमी ज्वाला । 
हंस आरूढ कर लेकर भाला ॥ २६ ॥
*****
नगर कोट से किया पयाना । 
पल्लू कोट भया अस्थाना ॥ २७ ॥
*****
चौसठ योगिनी बावन बीरा । 
संग में ले आई रणधीरा ॥ २८ ॥
*****
बैठ भवन में न्याय चुकाणी । 
द्वार पाल सादुल अगवाणी ॥ २९ ॥
*****
सांझ सवेरे बजे नगारा । 
उठता भक्तों का जयकारा ॥ ३० ॥
*****
मढ़ के बीच खड़ी मां ब्रह्माणी । 
सुन्दर छवि होंठो की लाली ॥ ३१ ॥
*****
पास में बैठी मां वीणा वाली । 
उतरी मढ़ बैठी महा काली ॥ ३२ ॥
*****
लाल ध्वजा तेरे मंदिर फरके । 
मन हर्षाता दर्शन करके ॥ ३३ ॥
*****
चैत आसोज में भरता मेला । 
दूर दूर से आते चेला ॥ ३४ ॥
*****
कोई संग में, कोई अकेला । 
जयकारो का देता हेला ॥ ३५ ॥
*****
कंचन कलश शोभा दे भारी । 
दिव्य पताका चमके न्यारी ॥ ३६ ॥
*****
सीस झुका जन श्रद्धा देते । 
आशीष से झोली भर लेते ॥ ३७ ॥
*****
तीन लोकों की करता भरता । 
नाम लिए सब  कारज सरता ॥ ३८ ॥
*****
मुझ बालक पे कृपा की ज्यो । 
भूल चूक सब माफी दीज्यो ॥ ३९ ॥
*****
मन्द मति यह दास तुम्हारा । 
दो मां अपनी भक्ती अपारा ॥ ४० ॥
*****
जब लगि जिऊ दया फल पाऊं । 
तुम्हरो जस मैं सदा ही गाऊं ॥ ४१ ॥
*****
दोहा
राग द्वेष में लिप्त मन 
मैं कुटिल बुद्धि अज्ञान ।
भव से पार करो मातेश्वरी 
अपना अनुगत जान ॥
*****

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रविवार, 3 जुलाई 2022

विजया पार्वती व्रत की पौराणिक कथा || Shri Vijaya Parvati Vrat Katha || Vrat Katha || Shiv Shankar Mata Parvati Vrat Katha Lyrics in Hindi

विजया पार्वती व्रत की पौराणिक कथा || Shri Vijaya Parvati Vrat Katha || Vrat Katha || Shiv Shankar Mata Parvati Vrat Katha

विजया पार्वती व्रत की पौराणिक कथा

भगवान शिव शंकर भोले नाथ एवं माता पार्वती की कृपा प्राप्‍त कराने वाला यह महान व्रत आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन किया जाता है। इस दिन प्रात:काल उठकर शान्‍तचित्‍त से नित्‍य‍क्रिया से निवृत्‍त होकर स्‍नानादि करके स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण कर विधिवत भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा करने का विधान है। 

व्रत कथा 

विजया पार्वती व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार किसी समय कौडिण्‍य नगर में वामन नाम का एक योग्य ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सत्या था। उनके घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उनके यहां सन्‍तान नहीं होने से वे बहुत दुखी रहते थे।

एक दिन नारदजी उनके घर पधारे। उन्होंने नारद मुनि की खूब सेवा की और अपनी समस्या का समाधान पूछा। तब नारदजी ने उन्हें बताया कि तुम्हारे नगर के बाहर जो वन है, उसके दक्षिणी भाग में बिल्व (बेल) वृक्ष के नीचे भगवान शिव, माता पार्वती के साथ लिंगरूप में विराजित हैं। उनकी पूजा करने से तुम्हारी मनोकामना अवश्य ही पूरी होगी।

तब ब्राह्मण दम्‍पति ने उस शिवलिंग को ढूंढकर उसकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। इस प्रकार पूजा करने का क्रम चलता रहा और पॉंच वर्ष बीत गए।

एक दिन जब वह ब्राह्मण पूजन के लिए फूल तोड़ रहा था तभी उसे सांप ने काट लिया और वह वहीं जंगल में ही गिर गया। ब्राह्मण जब काफी देर तक घर नहीं लौटा तो उसकी पत्नी उसे ढूंढने आई। पति को इस हालत में देख वह रोने लगी और वन देवता व माता पार्वती को याद करने लगी और उनकी स्‍तुति करके उनसे अपने पति की प्राणरक्षा की प्रार्थना करने लगी। 

ब्राह्मणी की पुकार सुनकर माता पार्वती वन देवता के साथ प्रकट हुईं और ब्राह्मण के मुख में अमृत डाल दिया जिससे ब्राह्मण उठ बैठा। तब ब्राह्मण दम्‍पति ने माता पार्वती का विधिवत पूजन किया। माता पार्वती ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें वर मांगने के लिए कहा। तब दोनों ने सन्‍तान प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की, तब माता पार्वती ने उन्हें विजया पार्वती व्रत करने की बात कही।

आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन उस ब्राह्मण दम्‍पति ने विधिपूर्वक माता पार्वती का यह व्रत किया जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। इस दिन व्रत करने वालों को पुत्ररत्न की प्राप्ति होती है तथा उनका अखण्‍ड सौभाग्य भी बना रहता है।

सभी प्रेम से बोलिये माता पार्वती एवं भगवान भोले नाथ की जय   

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बुधवार, 22 जून 2022

Katha Prasang 001 || कथा प्रसंग 001 || जो करते रहोगे भजन धीरे धीरे || Jo karte Rahoge Bhajan Dhire Dhire

Katha Prasang 001 ||  कथा प्रसंग 001 || जो करते रहोगे  भजन धीरे धीरे || Jo karte Rahoge Bhajan Dhire Dhire 

एक बार की बात है। देवर्षि नारद जी भगवान श्रीहरि विष्‍णु जी से मिलने जा रहे थे। तभी उन्‍होंने मार्ग में देखा कि एक तपस्‍वी एक नीम के पेड के नीचे बैठ कर घोर तपस्‍या कर रहे हैं। नारद जी को विचार आया कि जाकर इनसे मिलना चाहिए। नारद जी तपस्‍वी के पास गये और बताया कि वे श्रीहरि विष्‍णुजी से मिलने जा रहे हैं। नारद जी ने यह भी कहा कि अगर आप कोई सन्‍देश प्रभु श्रीहरि विष्‍णु जी तक पहुँचाना चाहतें हों तो मैं उसे उन तक पहुँचा सकता हूँ। इस पर उन तपस्‍वी ने कहा कि आपकी अत्‍यन्‍त कृपा आज मुझ पर हुई है। आप केवल मेरे एक प्रश्‍न का उत्‍तर श्रीहरि विष्‍णु जी से पूछ कर आइयेगा। नारद जी ने कहा पूँछिये आपका प्रश्‍न क्‍या है। तपस्‍वी ने कहा कि आप उनसे केवल इतना पूँछ कर आइयेगा कि मुझे वे दर्शन कब देंगे। नारद जी नारायण नारायण जपते हुए श्री हरि विष्‍णु जी के श्रीधाम में पहुँचे और उनकी स्‍तुति करके सारा वृतान्‍त कह सुनाया। नारद जी ने तपस्‍वी के प्रश्‍न का उत्‍तर जानने की जिज्ञासा प्रकट की। इस पर भगवान श्रीहरि विष्‍णु ने कहा कि उस नीम के वृक्ष पर जितने पत्‍ते हैं उतने वर्षों के बाद उस तपस्‍वी को मैं दर्शन दूँगा। यह सुनकर नारद जी को बडा दुख हुआ। उन्‍होंने सोचा कि जब मैं तपस्‍वी को यह बात बताऊँगा तो वे बहुत दुखी होंगे। इन्‍हीं बातों पर विचार करते हुए नारद जी जब वापस लौटे तो तपस्‍वी ने उनसे पूँछा कि श्रीहरि ने क्‍या उत्‍तर दिया। नारद जी ने बडे उदास मन से बताया कि श्रीहरि विष्‍णुजी ने कहा है कि इस वृक्ष पर जितने पत्‍ते हैं उतने वर्षों के बाद वे आपको द‍र्शन देंगे। इतना सुनना था कि तपस्‍वी खुशी से झूमने लगे और नृत्‍य करने लगे। नारद जी ने पूँछा कि आप दुखी होने के बजाय खुश हो रहे हैं। तपस्‍वी ने कहा कि अभी तक तो मुझे यह भी पता नहीं था कि श्रीहरि विष्‍णु के मुझे दर्शन होंगे भी या नहीं। किन्‍तु अब मुझे पता चल गया है कि उनके दर्शन होंगे ही। इसीलिए मैं इतना प्रसन्‍न हूँ।

 

जो करते रहोगे

भजन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

जो करते रहोगे

भजन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

जो करते रहोगे

भजन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

 

जो करते रहोगे

भजन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

 

अगर उनसे मिलने की

दिल में तमन्‍ना

अगर उनसे मिलने की

दिल में तमन्‍ना

अगर प्रभु से मिलने की

दिल में तमन्‍ना

अगर प्रभु से मिलने की

दिल में तमन्‍ना

दिल में तमन्‍ना

दिल में तमन्‍ना

अगर हरि से मिलने की

दिल में तमन्‍ना

अगर हरि से मिलने की

दिल में तमन्‍ना

करो शुद्ध अन्‍त:करण धीरे धीरे

करो शुद्ध अन्‍त:करण धीरे धीरे

 

जो करते रहोगे

भजन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

 

जो करते रहोगे

भजन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

जो करते रहोगे

भजन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

जो करते रहोगे ....

 

कोई काम दुनिया में

मुश्किल नहीं है

कोई काम दुनिया में

मुश्किल नहीं है

कोई काम दुनिया में

मुश्किल नहीं है

कोई काम दुनिया में

मुश्किल नहीं है

मुश्किल नहीं है

कोई काम दुनिया में

मुश्किल नहीं है

कोई काम दुनिया में

मुश्किल नहीं है

जो करते रहोगे

यतन धीरे धीरे

जो करते रहोगे

यतन धीरे धीरे

 

जो करते रहोगे

भजन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

जो करते रहोगे ....

 

करो प्रेम से भक्ति

सेवा हरि की

करो प्रेम से भक्ति

सेवा हरि की

करो प्रेम से भक्ति

पूजा हरि की

 

करो प्रेम से भक्ति

पूजा हरि की

पूजा हरि की

पूजा हरि की

करो प्रेम से भक्ति

पूजा हरि की

करो प्रेम से भक्ति

पूजा हरि की

तो मिल जायेगा

वो रतन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो रतन धीरे धीरे

 

जो करते रहोगे

भजन धीरे धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

तो मिल जायेगा

वो सजन धीरे

 

जो करते रहोगे ....

सोमवार, 20 जून 2022

जरा बंसी बजा दो मनमोहन || Jara Bansi Baja Do Manmohan || Sarvadev Aarti Lyrics in Hindi || Shiv Aarti || Krishna Aarti

जरा बंसी बजा दो मनमोहन || Jara Bansi Baja Do Manmohan || Sarvadev Aarti Lyrics in Hindi || Shiv Aarti || Krishna Aarti 

(तर्ज - दिल लूटन वाले जादूगर)
*****
जरा बंसी बजा दो मनमोहन 
हम आरती करने आये हैं 
जरा बंसी बजा दो मनमोहन 
हम आरती करने आये हैं 
जरा बंसी बजा दो मनमोहन 
हम आरती करने आये हैं 
जरा बंसी बजा दो मनमोहन 
हम आरती करने आये हैं 
**
मेरे हाथ में अगर कपूर बाती
मेरे हाथ में अगर कपूर बाती
हम ज्‍योत जलाने आये हैं 
हम ज्‍योत जलाने आये हैं 
जरा दरश दिखा दो गजानना 
हम आरती करने आये हैं 
जरा दरश दिखा दो गजानना 
हम आरती करने आये हैं
**
मेरे हाथ में पान फूल मेवा है 
मेरे हाथ में पान फूल मेवा है 
हम भोग लगाने आये हैं 
हम भोग लगाने आये हैं 
जरा बंसी बजा दो मनमोहन 
हम आरती करने आये हैं 
जरा बंसी बजा दो मनमोहन 
हम आरती करने आये हैं
**
जरा डमरू बजा दो शिवशंकर 
हम आरती करने आये हैं
जरा डमरू बजा दो शिवशंकर 
हम आरती करने आये हैं
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मेरे हाथ में जल का लोटा है 
मेरे हाथ में जल का लोटा है
हम तुम्‍हें चढाने आये हैं 
हम तुम्‍हें चढाने आये हैं
जरा शंख बजा दो नारायण 
हम आरती करने आये हैं 
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जरा शंख बजा दो नारायण 
हम आरती करने आये हैं
जरा शंख बजा दो नारायण 
हम आरती करने आये हैं
जरा वीणा बजा दो शारदे माँ 
हम आरती करने आये हैं 
**
जरा वीणा बजा दो शारदे माँ 
हम आरती करने आये हैं 
मेरे हाथ में श्‍वेत कमलदल है 
हम तुम्‍हें चढाने आये हैं 
हम तुम्‍हें चढाने आये हैं
**
जरा बंसी बजा दो मनमोहन
हम आरती करने आये हैं 
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जरा दरश दिखा दो जगदम्‍बा 
हम आरती करने आये हैं 
जरा दरश दिखा दो जगदम्‍बा 
हम आरती करने आये हैं 
मेरे हाथ में लाल चुनरिया है
हम तुम्‍हें चढाने आये हैं 
मेरे हाथ में लाल चुनरिया है
हम तुम्‍हें चढाने आये हैं
**
जरा शंख बजा दो नारायण
हम आरती करने आये हैं
जरा शंख बजा दो नारायण
हम आरती करने आये हैं
**
जरा चुटकी बजा दो हनुमन्‍त लला 
हम आरती करने आये हैं 
जरा चुटकी बजा दो हनुमन्‍त लला 
हम आरती करने आये हैं 
मेरे हाथ में सिन्‍दुर रोली है 
मेरे हाथ में सिन्‍दुर रोली है 
हम तुम्हें चढाने आये हैं 
हम तुम्‍हें चढाने आये हैं
**
जरा बंशी बजादो मनमोहन 
हम आरती करने आये हैं
जरा डमरू बजा दो शिवशंकर
हम आरती करने आये हैं
जरा शंख बजा दो नारायण 
हम आरती करने आये हैं 

आरती कीजै राजा रामचन्‍द्र जी कै हरिहर भक्ति करहुँ सन्‍तन सुख दीजै हो || Aarti Kije Raja Ramchandra ji ke ho || Shri Ram Chandra Ji Ki Aarti || Lyrics in Hindi

आरती कीजै राजा रामचन्‍द्र जी कै | Arati Kije Raja Ramchandra Ji Ke | RamChandra Aarti Lyrics in Hindi and English
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आरती कीजै राजा रामचन्‍द्र जी कै 
हरिहर भक्ति करहुँ सन्‍तन सुख दीजै हो 
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ऐजी पहली आरती पुष्‍प की माला
पहली आरती पुष्‍प की माला
पुष्‍प की माला हरिहर पुष्‍प की माला 
कालिय नाग नाथ लाये कृष्‍ण गोपाला हो 
आरती कीजै राजा रामचन्‍द्र जी कै 
हरिहर भक्ति करहुँ सन्‍तन सुख दीजै हो
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एजी दूसरी आरती देवकीनन्‍दन 
दूसरी आरती देवकीनन्‍दन 
देवकीनन्‍दन हरिहर देवकीनन्‍दन 
भक्‍त उबारहिं असुर निकन्‍दन हो
आरती कीजै राजा रामचन्‍द्र जी कै 
हरिहर भक्ति करहुँ सन्‍तन सुख दीजै हो
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एजी तीसरी आरती त्रिभुवन मोहै 
तीसरी आरती त्रिभुवन मोहै
त्रिभुवन मोहै हरिहर त्रिभुवन मोहै 
गरुण सिंहासन राजा रामचन्द्र सोहै हो 
आरती कीजै राजा रामचन्‍द्र जी कै 
हरिहर भक्ति करहुँ सन्‍तन सुख दीजै हो
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एजी चौथी आरती चहुजुग पूजा 
चौथी आरती चहुजुग पूजा 
चहुजुग पूजा हरिहर चहुजुग पूजा 
चहुजुग पूजा रामनाम और न दूजा हो 
आरती कीजै राजा रामचन्‍द्र जी कै 
हरिहर भक्ति करहुँ सन्‍तन सुख दीजै हो
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एजी पंचम आरती रामजी के भावै
पंचम आरती रामजी के भावै
रामजी के भावै हरिहर रामजी के भावै
रामनाम गावै परमपद पावै हो 
आरती कीजै राजा रामचन्‍द्र जी कै 
हरिहर भक्ति करहुँ सन्‍तन सुख दीजै हो
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एजी षष्‍ठम आरती लक्ष्‍मण भ्राता 
षष्‍ठम आरती लक्ष्‍मण भ्राता 
लक्ष्‍मण भ्राता हरिहर लक्ष्‍मण भ्राता 
आरती उतारें कौशिल्‍या माता हो 
आरती कीजै राजा रामचन्‍द्र जी कै 
हरिहर भक्ति करहुँ सन्‍तन सुख दीजै हो
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एजी सप्‍तम आरती ऐसो कीजै
सप्‍तम आरती ऐसो कीजै
ऐसो कीजै हरिहर ऐसो कीजै
ध्रुव प्रहलाद विभीषण जैसी हो 
आरती कीजै राजा रामचन्‍द्र जी कै 
हरिहर भक्ति करहुँ सन्‍तन सुख दीजै हो
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एजी अष्‍ठम आरती लंका सिधारे 
अष्टम आरती लंका सिधारे 
लंका सिधारे हरिहर लंका सिधारे 
रावण मारि विभीषण तारे हो
आरती कीजै राजा रामचन्‍द्र जी कै 
हरिहर भक्ति करहुँ सन्‍तन सुख दीजै हो
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एजी नवम आरती बावन देवा
नवम आरती बावन देवा 
बावन देवा हरिहर बावन देवा 
बलि के द्वार के करे हरि सेवा हो 
आरती कीजै राजा रामचन्‍द्र जी कै 
हरिहर भक्ति करहुँ सन्‍तन सुख दीजै हो
**
कंचन थाल कपूर की बाती
कंचन थाल कपूर की बाती 
जगमग ज्‍योति जले सारी राती हो
आरती कीजै राजा रामचन्‍द्र जी कै 
हरिहर भक्ति करहुँ सन्‍तन सुख दीजै हो
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एजी जो राजा रामजी की आरती गावै 
जो राजा रामजी की आरती गावै
आरती गावै हरिहर आरती गावै
बसि बैकुण्‍ठ अमरपद पावै हो
आरती कीजै राजा रामचन्‍द्र जी कै 
हरिहर भक्ति करहुँ सन्‍तन सुख दीजै हो
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एजी तुलसी के पत्र कण्‍ठ मन हीरा 
तुलसी के पत्र कण्‍ठमन हीरा 
कण्‍ठमन हीरा हरिहर कण्‍ठमन हीरा 
हुलसि हुलसि गावै दास कबीरा हो 
आरती कीजै राजा रामचन्‍द्र जी कै 
हरिहर भक्ति करहुँ सन्‍तन सुख दीजै हो
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आरती कीजै राजा रामचन्‍द्र जी कै | Arati Kije Raja Ramchandra Ji Ke | RamChandra Aarti Lyrics in Hindi and English
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Āratī kījai rājā rāmachandra jī kai | Arati Kije Raj Ramchandra Ji Ke | RamChandra Aarti Lyrics in Hindi anda English
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Āratī kījai rājā rāmachandra jī kai 
Harihar bhakti karahu santan sukh dījai ho 
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Aijī pahalī āratī puṣhp kī mālā
Pahalī āratī puṣhp kī mālā
Puṣhp kī mālā harihar puṣhp kī mālā 
Kāliya nāg nāth lāye kṛuṣhṇ gopālā ho 
Āratī kījai rājā rāmachandra jī kai 
Harihar bhakti karahu santan sukh dījai ho
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Ejī dūsarī āratī devakīnandan 
Dūsarī āratī devakīnandan 
Devakīnandan harihar devakīnandan 
Bhakt ubārahian asur nikandan ho
Āratī kījai rājā rāmachandra jī kai 
Harihar bhakti karahu santan sukh dījai ho
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Ejī tīsarī āratī tribhuvan mohai 
Tīsarī āratī tribhuvan mohai
Tribhuvan mohai harihar tribhuvan mohai 
Garuṇ sianhāsan rājā rāmachandra sohai ho 
Āratī kījai rājā rāmachandra jī kai 
Harihar bhakti karahu santan sukh dījai ho
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Ejī chauthī āratī chahujug pūjā 
Chauthī āratī chahujug pūjā 
Chahujug pūjā harihar chahujug pūjā 
Chahujug pūjā rāmanām aur n dūjā ho 
Āratī kījai rājā rāmachandra jī kai 
Harihar bhakti karahu santan sukh dījai ho
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Ejī pancham āratī rāmajī ke bhāvai
Pancham āratī rāmajī ke bhāvai
Rāmajī ke bhāvai harihar rāmajī ke bhāvai
Rāmanām gāvai paramapad pāvai ho 
Āratī kījai rājā rāmachandra jī kai 
Harihar bhakti karahu santan sukh dījai ho
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Ejī ṣhaṣhṭham āratī lakṣhmaṇ bhrātā 
Ṣhaṣhṭham āratī lakṣhmaṇ bhrātā 
Lakṣhmaṇ bhrātā harihar lakṣhmaṇ bhrātā 
Āratī utārean kaushilyā mātā ho 
Āratī kījai rājā rāmachandra jī kai 
Harihar bhakti karahu santan sukh dījai ho
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Ejī saptam āratī aiso kījai
Saptam āratī aiso kījai
Aiso kījai harihar aiso kījai
Dhruv prahalād vibhīṣhaṇ jaisī ho 
Āratī kījai rājā rāmachandra jī kai 
Harihar bhakti karahu santan sukh dījai ho
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Ejī aṣhṭham āratī lankā sidhāre 
Aṣhṭam āratī lankā sidhāre 
Lankā sidhāre harihar lankā sidhāre 
Rāvaṇ māri vibhīṣhaṇ tāre ho
Āratī kījai rājā rāmachandra jī kai 
Harihar bhakti karahu santan sukh dījai ho
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Ejī navam āratī bāvan devā
Navam āratī bāvan devā 
Bāvan devā harihar bāvan devā 
Bali ke dvār ke kare hari sevā ho 
Āratī kījai rājā rāmachandra jī kai 
Harihar bhakti karahu santan sukh dījai ho
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Kanchan thāl kapūr kī bātī
Kanchan thāl kapūr kī bātī 
Jagamag jyoti jale sārī rātī ho
Āratī kījai rājā rāmachandra jī kai 
Harihar bhakti karahu santan sukh dījai ho
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Ejī jo rājā rāmajī kī āratī gāvai 
Jo rājā rāmajī kī āratī gāvai
Āratī gāvai harihar āratī gāvai
Basi baikuṇṭha amarapad pāvai ho
Āratī kījai rājā rāmachandra jī kai 
Harihar bhakti karahu santan sukh dījai ho
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Ejī tulasī ke patra kaṇṭha man hīrā 
Tulasī ke patra kaṇṭhaman hīrā 
Kaṇṭhaman hīrā harihar kaṇṭhaman hīrā 
Hulasi hulasi gāvai dās kabīrā ho 
Āratī kījai rājā rāmachandra jī kai 
Harihar bhakti karahu santan sukh dījai ho
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