सोमवार, 22 नवंबर 2021

जानकी जी की स्‍तुति || Janki Ji Ki Stuti || भइ प्रगट किशोरी || Bhai Prakat Kishori || Sita Mata Ki Stuti

जानकी जी की स्‍तुति || Janki Ji Ki Stuti ||  भइ प्रगट किशोरी || Bhai Prakat Kishori || Sita Mata Ki Stuti 

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भइ प्रगट किशोरी,
दोहा
धरनि निहोरी,
जनक नृपति सुखकारी।
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अनुपम बपुधारी,
रूप सँवारी,
आदि शक्ति सुकुमारी।
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मनि कनक सिंघासन,
कृतवर आसन,
शशि शत शत उजियारी।
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शिर मुकुट बिराजे,
भूषन साजे,
नृप लखि भये सुखारी।
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सखि आठ सयानी,
मन हुलसानी,
सेवहिं शील सुहाई।
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नरपति बड़भागी,
अति अनुरागी,
अस्तुति कर मन लाई।
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जय जय जय सीते,
श्रुतिगन गीते,
जेहिं शिव शारद गाई।
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सो मम हित करनी,
भवभय हरनी,
प्रगट भईं श्री आई।
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नित रघुवर माया,
भुवन निकाया,
रचइ जासु रुख पाई।
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सोइ अगजग माता,
निज जनत्राता,
प्रगटी मम ढिग आई।
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कन्या तनु लीजै,
अतिसुख दीजै,
रुचिर रूप सुखदाई।
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शिशु लीला करिये,
रुचि अनुसरिये,
मोरि सुता हरषाई।
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सुनि भूपति बानी,
मन मुसुकानी,
बनी सुता शिशु सीता।
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तब रोदन ठानी,
सुनि हरषानी,
रानी परम बिनीता।
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लिये गोद सुनैना,
जल भरि नैना,
नाचत गावत गीता।
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यह सुजस जे गावहिं,
श्रीपद पावहिं,
ते न होहिं भव भीता।
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रामचन्द्र सुख करन हित,
प्रगटि मख महि सीय।
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"गिरिधर" स्वामिनि जग जननि,
चरित करत कमनीय।।
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जनकपुर जनकलली जी की जय
अयोध्या रामजी लला की जय
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(समस्‍त चित्र गूगल से साभार)

शुक्रवार, 12 नवंबर 2021

श्री भागवत जी की आरती || आरती अतिपावन पुराण की || Shri Bhagwat Ji Ki Aarti || Aarti Ati Pawan Puran Ki ||

श्री भागवत जी की आरती || आरती अतिपावन पुराण की || Shri Bhagwat Ji Ki Aarti || Aarti Ati Pawan Puran Ki || 



आरती अतिपावन पुराण की।

धर्म भक्ति विज्ञान खान की।।


महापुराण भागवत निर्मल।

शुक-मुख-विगलित निगम-कल्प-फल।।

परमानन्द-सुधा रसमय फल।

लीला रति रस रसिनधान की।।

आरती अतिपावन पुराण की।

धर्म भक्ति विज्ञान खान की।।


कलिमल मथनि त्रिताप निवारिणी।

जन्म मृत्युमय भव भयहारिणी ।।

सेवत सतत सकल सुखकारिणी।

सुमहौषधि हरि चरित गान की।।

आरती अतिपावन पुराण की।

धर्म भक्ति विज्ञान खान की।।


विषय विलास विमोह विनाशिनी।

विमल विराग विवेक विनाशिनी।।

भागवत तत्व रहस्य प्रकाशिनी।

परम ज्योति परमात्मा ज्ञान को।।

आरती अतिपावन पुराण की।

धर्म भक्ति विज्ञान खान की।।


परमहंस मुनि मन उल्लासिनी।

रसिक ह्रदय रस रास विलासिनी।।

भुक्ति मुक्ति रति प्रेम सुदासिनी।

कथा अकिंचन प्रिय सुजान की।।

आरती अतिपावन पुराण की।

धर्म भक्ति विज्ञान खान की।।

गुरुवार, 11 नवंबर 2021

श्रीकाशीविश्वनाथाष्टकम् || Shri Kashi Vishwanathashtakam || Lord Shiv Stuti || गङ्गातरंगरमणीयजटाकलापं || Gangatarangramniyaratakalapam

श्रीकाशीविश्वनाथाष्टकम् || Shri Kashi Vishwanathashtakam || Lord Shiv Stuti || गङ्गातरंगरमणीयजटाकलापं || Gangatarangramniyaratakalapam

(श्री काशी विश्‍वनाथ जी, वाराणसी, उ०प्र०)

गङ्गातरंगरमणीयजटाकलापं

गौरीनिरन्तरविभूषितवामभागम् ।

नारायणप्रियमनंगमदापहारं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥१॥


वाचामगोचरमनेकगुणस्वरूपं

वागीशविष्णुसुरसेवितपादपीठम् ।

वामेनविग्रहवरेणकलत्रवन्तं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥२॥


भूताधिपं भुजगभूषणभूषितांगं

व्याघ्राजिनांबरधरं जटिलं त्रिनेत्रम् ।

पाशांकुशाभयवरप्रदशूलपाणिं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥३॥


शीतांशुशोभितकिरीटविराजमानं

भालेक्षणानलविशोषितपंचबाणम् ।

नागाधिपारचितभासुरकर्णपूरं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥४॥


पंचाननं दुरितमत्तमतङ्गजानां

नागान्तकं दनुजपुंगवपन्नगानाम् ।

दावानलं मरणशोकजराटवीनां

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥५॥


तेजोमयं सगुणनिर्गुणमद्वितीयं

आनन्दकन्दमपराजितमप्रमेयम् ।

नागात्मकं सकलनिष्कलमात्मरूपं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥६॥


रागादिदोषरहितं स्वजनानुरागं

वैराग्यशान्तिनिलयं गिरिजासहायम् ।

माधुर्यधैर्यसुभगं गरलाभिरामं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥७॥


आशां विहाय परिहृत्य परस्य निन्दां

पापे रतिं च सुनिवार्य मनः समाधौ ।

आदाय हृत्कमलमध्यगतं परेशं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥८॥


॥ फलश्रुति ॥

वाराणसीपुरपतेः स्तवनं शिवस्य

व्याख्यातमष्टकमिदं पठते मनुष्यः ।

विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं

सम्प्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम् ॥


विश्वनाथाष्टकमिदं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।

शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥

॥ इति श्रीमहर्षिव्यासप्रणीतं श्रीविश्वनाथाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

श्री काशी विश्‍वनाथ धाम गलियारा || Shri Kashi Vishwanath Corridor
तस्‍वीरें गूगल से साभार

बुधवार, 10 नवंबर 2021

श्री रघुबीर भक्त हितकारी || श्री राम जी की आरती || Shri Ram Ji Ki Aarti Lyrics in Hindi and English

श्री रघुबीर भक्त हितकारी || श्री राम जी की आरती || Shri Ram Ji Ki Aarti Lyrics in Hindi and English

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॥ दोहा ॥
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आदौ राम तपोवनादि गमनं हत्वाह् मृगा काञ्चनं।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव संभाषणं।।
बाली निर्दलं समुद्र तरणं लङ्कापुरी दाहनम्।
पश्चद्रावनं कुम्भकर्णं हननं एतद्धि रामायणं।।
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॥ चौपाई ॥
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श्री रघुबीर भक्त हितकारी ।
सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥१॥
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निशि दिन ध्यान धरै जो कोई ।
ता सम भक्त और नहिं होई ॥२॥
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ध्यान धरे शिवजी मन माहीं ।
ब्रह्मा इन्द्र पार नहिं पाहीं ॥३॥
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जय जय जय रघुनाथ कृपाला ।
सदा करो सन्तन प्रतिपाला ॥४॥
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दूत तुम्हार वीर हनुमाना ।
जासु प्रभाव तिहूँ पुर जाना ॥५॥
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तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला ।
रावण मारि सुरन प्रतिपाला ॥६॥
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तुम अनाथ के नाथ गोसाईं ।
दीनन के हो सदा सहाई ॥७॥
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ब्रह्मादिक तव पार न पावैं ।
सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ॥८॥
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चारिउ वेद भरत हैं साखी ।
तुम भक्तन की लज्जा राखी ॥९॥
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गुण गावत शारद मन माहीं ।
सुरपति ताको पार न पाहीं ॥ १० ॥
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नाम तुम्हार लेत जो कोई ।
ता सम धन्य और नहिं होई ॥११॥
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राम नाम है अपरम्पारा ।
चारिहु वेदन जाहि पुकारा ॥१२॥
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गणपति नाम तुम्हारो लीन्हों ।
तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हों ॥१३॥
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शेष रटत नित नाम तुम्हारा ।
महि को भार शीश पर धारा ॥१४॥
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फूल समान रहत सो भारा ।
पावत कोउ न तुम्हरो पारा ॥१५॥
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भरत नाम तुम्हरो उर धारो ।
तासों कबहुँ न रण में हारो ॥१६॥
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नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा ।
सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ॥१७॥
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लषन तुम्हारे आज्ञाकारी ।
सदा करत सन्तन रखवारी ॥१८॥
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ताते रण जीते नहिं कोई ।
युद्ध जुरे यमहूँ किन होई ॥१९॥
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महा लक्ष्मी धर अवतारा ।
सब विधि करत पाप को छारा ॥२०॥
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सीता राम पुनीता गायो ।
भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ॥२१॥
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घट सों प्रकट भई सो आई ।
जाको देखत चन्द्र लजाई ॥२२॥
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सो तुमरे नित पांव पलोटत ।
नवो निद्धि चरणन में लोटत ॥२३॥
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सिद्धि अठारह मंगल कारी ।
सो तुम पर जावै बलिहारी ॥२४॥
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औरहु जो अनेक प्रभुताई ।
सो सीतापति तुमहिं बनाई ॥२५॥
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इच्छा ते कोटिन संसारा ।
रचत न लागत पल की बारा ॥२६॥
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जो तुम्हरे चरनन चित लावै ।
ताको मुक्ति अवसि हो जावै ॥२७॥
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सुनहु राम तुम तात हमारे ।
तुमहिं भरत कुल- पूज्य प्रचारे ॥२८॥
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तुमहिं देव कुल देव हमारे ।
तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ॥२९॥
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जो कुछ हो सो तुमहीं राजा ।
जय जय जय प्रभु राखो लाजा ॥३०॥
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रामा आत्मा पोषण हारे ।
जय जय जय दशरथ के प्यारे ॥३१॥
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जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा ।
निगुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा ॥३२॥
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सत्य सत्य जय सत्य- ब्रत स्वामी ।
सत्य सनातन अन्तर्यामी ॥३३॥
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सत्य भजन तुम्हरो जो गावै ।
सो निश्चय चारों फल पावै ॥३४॥
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सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं ।
तुमने भक्तहिं सब सिद्धि दीन्हीं ॥३५॥
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ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा ।
नमो नमो जय जापति भूपा ॥३६॥
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धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा ।
नाम तुम्हार हरत संतापा ॥३७॥
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सत्य शुद्ध देवन मुख गाया ।
बजी दुन्दुभी शंख बजाया ॥३८॥
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सत्य सत्य तुम सत्य सनातन ।
तुमहीं हो हमरे तन मन धन ॥३९॥
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याको पाठ करे जो कोई ।
ज्ञान प्रकट ताके उर होई ॥४०॥
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आवागमन मिटै तिहि केरा ।
सत्य वचन माने शिव मेरा ॥
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और आस मन में जो ल्यावै ।
तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ॥
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साग पत्र सो भोग लगावै ।
सो नर सकल सिद्धता पावै ॥
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अन्त समय रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥
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श्री हरि दास कहै अरु गावै ।
सो वैकुण्ठ धाम को पावै ॥
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सात दिवस जो नेम कर 
पाठ करे चित लाय ।
हरिदास हरिकृपा से 
अवसि भक्ति को पाय ॥
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राम चालीसा जो पढ़े 
रामचरण चित लाय ।
जो इच्छा मन में करै 
सकल सिद्ध हो जाय ॥
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श्री रघुबीर भक्त हितकारी || श्री राम जी की आरती || Shri Ram Ji Ki Aarti Lyrics in Hindi and English

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॥ Dohā ॥
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Ādau rām tapovanādi gamanan hatvāh mṛugā kānychanan।
Vaidehī haraṇan jaṭāyu maraṇan sugrīv sanbhāṣhaṇan।।
Bālī nirdalan samudra taraṇan lankāpurī dāhanam।
Pashchadrāvanan kumbhakarṇan hananan etaddhi rāmāyaṇan।।
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॥ Chaupāī ॥
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Shrī raghubīr bhakta hitakārī ।
Suni lījai prabhu araj hamārī ॥1॥
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Nishi din dhyān dharai jo koī ।
Tā sam bhakta aur nahian hoī ॥2॥
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Dhyān dhare shivajī man māhīan ।
Brahmā indra pār nahian pāhīan ॥3॥
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Jaya jaya jaya raghunāth kṛupālā ।
Sadā karo santan pratipālā ॥4॥
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Dūt tumhār vīr hanumānā ।
Jāsu prabhāv tihū pur jānā ॥5॥
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Tuv bhujadaṇḍa prachaṇḍa kṛupālā ।
Rāvaṇ māri suran pratipālā ॥6॥
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Tum anāth ke nāth gosāīan ।
Dīnan ke ho sadā sahāī ॥7॥
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Brahmādik tav pār n pāvaian ।
Sadā īsh tumharo yash gāvaian ॥8॥
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Chāriu ved bharat haian sākhī ।
Tum bhaktan kī lajjā rākhī ॥9॥
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Guṇ gāvat shārad man māhīan ।
Surapati tāko pār n pāhīan ॥ 10 ॥
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Nām tumhār let jo koī ।
Tā sam dhanya aur nahian hoī ॥11॥
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Rām nām hai aparampārā ।
Chārihu vedan jāhi pukārā ॥12॥
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Gaṇapati nām tumhāro līnhoan ।
Tinako pratham pūjya tum kīnhoan ॥13॥
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Sheṣh raṭat nit nām tumhārā ।
Mahi ko bhār shīsh par dhārā ॥14॥
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Fūl samān rahat so bhārā ।
Pāvat kou n tumharo pārā ॥15॥
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Bharat nām tumharo ur dhāro ।
Tāsoan kabahu n raṇ mean hāro ॥16॥
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Nām shatruhan hṛudaya prakāshā ।
Sumirat hot shatru kar nāshā ॥17॥
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Laṣhan tumhāre ājnyākārī ।
Sadā karat santan rakhavārī ॥18॥
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Tāte raṇ jīte nahian koī ।
Yuddha jure yamahū kin hoī ॥19॥
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Mahā lakṣhmī dhar avatārā ।
Sab vidhi karat pāp ko chhārā ॥20॥
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Sītā rām punītā gāyo ।
Bhuvaneshvarī prabhāv dikhāyo ॥21॥
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Ghaṭ soan prakaṭ bhaī so āī ।
Jāko dekhat chandra lajāī ॥22॥
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So tumare nit pāanva paloṭat ।
Navo niddhi charaṇan mean loṭat ॥23॥
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Siddhi aṭhārah mangal kārī ।
So tum par jāvai balihārī ॥24॥
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Aurahu jo anek prabhutāī ।
So sītāpati tumahian banāī ॥25॥
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Ichchhā te koṭin sansārā ।
Rachat n lāgat pal kī bārā ॥26॥
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Jo tumhare charanan chit lāvai ।
Tāko mukti avasi ho jāvai ॥27॥
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Sunahu rām tum tāt hamāre ।
Tumahian bharat kula- pūjya prachāre ॥28॥
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Tumahian dev kul dev hamāre ।
Tum guru dev prāṇ ke pyāre ॥29॥
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Jo kuchh ho so tumahīan rājā ।
Jaya jaya jaya prabhu rākho lājā ॥30॥
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Rāmā ātmā poṣhaṇ hāre ।
Jaya jaya jaya dasharath ke pyāre ॥31॥
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Jaya jaya jaya prabhu jyoti svarūpā ।
Niguṇ brahma akhaṇḍa anūpā ॥32॥
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Satya satya jaya satya- brat swāmī ।
Satya sanātan antaryāmī ॥33॥
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Satya bhajan tumharo jo gāvai ।
So nishchaya chāroan fal pāvai ॥34॥
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Satya shapath gaurīpati kīnhīan ।
Tumane bhaktahian sab siddhi dīnhīan ॥35॥
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Jnyān hṛudaya do jnyān svarūpā ।
Namo namo jaya jāpati bhūpā ॥36॥
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Dhanya dhanya tum dhanya pratāpā ।
Nām tumhār harat santāpā ॥37॥
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Satya shuddha devan mukh gāyā ।
Bajī dundubhī shankha bajāyā ॥38॥
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Satya satya tum satya sanātan ।
Tumahīan ho hamare tan man dhan ॥39॥
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Yāko pāṭh kare jo koī ।
Jnyān prakaṭ tāke ur hoī ॥40॥
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Āvāgaman miṭai tihi kerā ।
Satya vachan māne shiv merā ॥
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Aur ās man mean jo lyāvai ।
Tulasī dal aru fūl chadāvai ॥
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Sāg patra so bhog lagāvai ।
So nar sakal siddhatā pāvai ॥
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Anta samaya raghubar pur jāī ।
Jahāँ janma hari bhakta kahāī ॥
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Shrī hari dās kahai aru gāvai ।
So vaikuṇṭha dhām ko pāvai ॥
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Sāt divas jo nem kar 
Pāṭh kare chit lāya ।
Haridās harikṛupā se 
Avasi bhakti ko pāya ॥
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Rām chālīsā jo pade 
Rāmacharaṇ chit lāya ।
Jo ichchhā man mean karai 
Sakal siddha ho jāya ॥
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मंगलवार, 9 नवंबर 2021

लिंगाष्टकम ।। Shri Lingashtakam || Lord Shiv Stuti || ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिंग || Brahmamurarisurarchitlingam

 लिंगाष्टकम ।। Shri Lingashtakam || Lord Shiv Stuti || ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिंग || Brahmamurarisurarchitlingam



ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिंग निर्मलभासित शोभितलिंगम ।

जन्मजदु:खविनाशकलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।1१।।


देवमुनिप्रवरार्चितलिंगं कामदहं करुणाकरलिंगम ।

रावणदर्पविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।२।।


सर्वसुगंधिसुलेपित लिंगं बुद्धि विवर्धनकारणलिंगम ।

सिद्धसुरासुरवंदितलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगम ।।३।।


कनकमहामणिभूषितलिंगं फणिपति वेष्टित शोभितलिंगम ।

दक्षसुयज्ञविनाशकलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगम ।।४।।


कुंकुमचन्दनलेपितलिंगंं पंकजहारसुशोभितलिंगम ।

संचितपापविनाशनलिंगं तत्प्रणमामि सदा शिवलिंगम ।।५।।


देवगणार्चितसेवितलिंगं भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम ।

दिनकरकोटिप्रभाकर लिंगम पत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।६।।


अष्टदलोपरिवेष्टितलिंगम सर्वसमुद्भवकारणलिंगम ।

अष्टदरिद्र विनाशितलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।७।।


सुरगुरुसुरवरपूजितलिंगम सुरवनपुष्प सदार्चितलिंगम ।

परात्परपरमात्मकलिंगम तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम ।।८।।


लिंगाष्टकमिदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ ।

शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ।।९।।

(श्री अमरेश्‍वर महादेव, अमरकण्‍टक)