सोमवार, 11 अप्रैल 2011

श्री सूर्य चालीसा Shri Surya Chalisa || कनक बदन कुण्डल मकर || Kanak Badan Kundal Makar || जय सविता जय जयति दिवाकर || Jay Savita Jay Jayati Diwakar

श्री सूर्य चालीसा Shri Surya Chalisa || कनक बदन कुण्डल मकर || Kanak Badan Kundal Makar || जय सविता जय जयति दिवाकर || Jay Savita Jay Jayati Diwakar


दोहा

कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अंग।
पद्मासन स्थित ध्याइये, शंख चक्र के संग।।

चौपाई

जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।
भानु, पतंग, मरीची, भास्कर, सविता, हंस, सुनूर, विभाकर।

विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन।
अम्बरमणि, खग, रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।

सहस्रांशु, प्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढि़ रथ पर।

मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।
उच्चैश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते।

मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता,
सूर्य, अर्क, खग, कलिहर, पूषा, रवि,

आदित्य, नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै।
द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै।

चार पदारथ सो जन पावै, दुख दारिद्र अघ पुंज नसावै।
नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह।

सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।
बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते।

उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।
छन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबलमोह को फंद कटतु है।

अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते।
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देश पर दिनकर छाजत।

भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित।
ओठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।

कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजसः कांधे लोभा।
पूषा बाहु मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर।

युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्मं सुउदरचन।
बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि मंह हंस, रहत मन मुदभर।

जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा।
विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।

सहस्रांशु, सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे।
अस जोजजन अपने न माहीं, भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं।

दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै।
अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता।

ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।
मन्द सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके।

धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा।
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटत सो भव के भ्रम सों।

परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मध वेदांगनाम रवि उदय।

भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।
यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।

अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं।

दोहा

भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।
सुख सम्पत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य।।

शनिवार, 9 अप्रैल 2011

नमो नमो दुर्गे सुख करनी || श्री दुर्गा चालीसा || Shri Durga Chalisa Lyrics in Hindi and English

नमो नमो दुर्गे सुख करनी || श्री दुर्गा चालीसा || Shri Durga Chalisa Lyrics in Hindi and English

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नमो नमो दुर्गे सुख करनी, 
नमो नमो अम्बे दुख हरनी।
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निराकार है ज्योति तुम्हारी, 
तिहूं लोक फैली उजियारी।
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शशि ललाट मुख महा विशाला, 
नेत्र लाल भृकुटी विकराला।
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रूप मातु को अधिक सुहावै, 
दरश करत जन अति सुख पावै।
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तुम संसार शक्ति मय कीना, 
पालन हेतु अन्न धन दीना।
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अन्नपूरना हुई जग पाला, 
तुम ही आदि सुन्दरी बाला।
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प्रलयकाल सब नाशन हारी, 
तुम गौरी शिव शंकर प्यारी।
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शिव योगी तुम्हरे गुण गावैं, 
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावै।
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रूप सरस्वती को तुम धारा, 
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।
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धरा रूप नरसिंह को अम्बा, 
परगट भई फाड़कर खम्बा।
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रक्षा करि प्रहलाद बचायो, 
हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो।
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लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं, 
श्री नारायण अंग समाहीं।
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क्षीरसिंधु में करत विलासा, 
दयासिंधु दीजै मन आसा।
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हिंगलाज में तुम्हीं भवानी, 
महिमा अमित न जात बखानी।
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मातंगी धूमावति माता, 
भुवनेश्वरि बगला सुख दाता।
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श्री भैरव तारा जग तारिणी, 
क्षिन्न भाल भव दुख निवारिणी।
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केहरि वाहन सोह भवानी, 
लांगुर वीर चलत अगवानी।
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कर में खप्पर खड्ग विराजै, 
जाको देख काल डर भाजै।
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सोहे अस्त्र और त्रिशूला, 
जाते उठत शत्रु हिय शूला।
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नाग कोटि में तुम्हीं विराजत, 
तिहुं लोक में डंका बाजत।
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शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे, 
रक्तबीज शंखन संहारे।
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महिषासुर नृप अति अभिमानी, 
जेहि अधिभार मही अकुलानी।
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रूप कराल काली को धारा, 
सेना सहित तुम तिहि संहारा।
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परी गाढ़ संतन पर जब-जब, 
भई सहाय मात तुम तब-तब।
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अमरपुरी औरों सब लोका, 
तव महिमा सब रहे अशोका।
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बाला में है ज्योति तुम्हारी, 
तुम्हें सदा पूजें नर नारी।
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प्रेम भक्ति से जो जस गावैं, 
दुख दारिद्र निकट नहिं आवै।
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ध्यावें जो नर मन लाई, 
जन्म मरण ताको छुटि जाई।
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जागी सुर मुनि कहत पुकारी, 
योग नहीं बिन शक्ति तुम्हारी।
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शंकर अचारज तप कीनो, 
काम अरु क्रोध सब लीनो।
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निशदिन ध्यान धरो शंकर को, 
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको।
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शक्ति रूप को मरम न पायो, 
शक्ति गई तब मन पछितायो।
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शरणागत हुई कीर्ति बखानी, 
जय जय जय जगदम्ब भवानी।
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भई प्रसन्न आदि जगदम्बा, 
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा।
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मोको मातु कष्ट अति घेरो, 
तुम बिन कौन हरे दुख मेरो।
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आशा तृष्णा निपट सतावै, 
रिपु मूरख मोहि अति डरपावै।
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शत्रु नाश कीजै महारानी, 
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी।
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करो कृपा हे मातु दयाला, 
ऋद्धि सिद्धि दे करहुं निहाला।
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जब लगि जियौं दया फल पाऊँ , 
तुम्हरो जस मैं सदा सुनाऊँ ।
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दुर्गा चालीसा जो गावै, 
सब सुख भोग परम पद पावै।
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देवीदास शरण निज जानी, 
करहुं कृपा जगदम्ब भवानी।
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दोहा
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शरणागत रक्षा करे, 
भक्त रहे निशंक।
मैं आया तेरी शरण में, 
मातु लीजिए अंक।।
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नमो नमो दुर्गे सुख करनी || श्री दुर्गा चालीसा || Shri Durga Chalisa Lyrics in Hindi and English

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Namo namo durge sukh karanī, 
Namo namo ambe dukh haranī।
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Nirākār hai jyoti tumhārī, 
Tihūan lok failī ujiyārī।
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Shashi lalāṭ mukh mahā vishālā, 
Netra lāl bhṛukuṭī vikarālā।
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Rūp mātu ko adhik suhāvai, 
Darash karat jan ati sukh pāvai।
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Tum sansār shakti maya kīnā, 
Pālan hetu anna dhan dīnā।
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Annapūranā huī jag pālā, 
Tum hī ādi sundarī bālā।
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Pralayakāl sab nāshan hārī, 
Tum gaurī shiv shankar pyārī।
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Shiv yogī tumhare guṇ gāvaian, 
Brahmā viṣhṇu tumhean nit dhyāvai।
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Rūp sarasvatī ko tum dhārā, 
De subuddhi ṛuṣhi munin ubārā।
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Dharā rūp narasianha ko ambā, 
Paragaṭ bhaī fāḍakar khambā।
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Rakṣhā kari prahalād bachāyo, 
Hiraṇākush ko svarga paṭhāyo।
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Lakṣhmī rūp dharo jag māhīan, 
Shrī nārāyaṇ aanga samāhīan।
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Kṣhīrasiandhu mean karat vilāsā, 
Dayāsiandhu dījai man āsā।
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Hiangalāj mean tumhīan bhavānī, 
Mahimā amit n jāt bakhānī।
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Mātangī dhūmāvati mātā, 
Bhuvaneshvari bagalā sukh dātā।
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Shrī bhairav tārā jag tāriṇī, 
Kṣhinna bhāl bhav dukh nivāriṇī।
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Kehari vāhan soh bhavānī, 
Lāangur vīr chalat agavānī।
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Kar mean khappar khaḍga virājai, 
Jāko dekh kāl ḍar bhājai।
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Sohe astra aur trishūlā, 
Jāte uṭhat shatru hiya shūlā।
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Nāg koṭi mean tumhīan virājata, 
Tihuan lok mean ḍankā bājata।
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Shumbha nishumbha dānav tum māre, 
Raktabīj shankhan sanhāre।
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Mahiṣhāsur nṛup ati abhimānī, 
Jehi adhibhār mahī akulānī।
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Rūp karāl kālī ko dhārā, 
Senā sahit tum tihi sanhārā।
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Parī gāḍha santan par jaba-jaba, 
Bhaī sahāya māt tum taba-taba।
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Amarapurī auroan sab lokā, 
Tav mahimā sab rahe ashokā।
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Bālā mean hai jyoti tumhārī, 
Tumhean sadā pūjean nar nārī।
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Prem bhakti se jo jas gāvaian, 
Dukh dāridra nikaṭ nahian āvai।
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Dhyāvean jo nar man lāī, 
Janma maraṇ tāko chhuṭi jāī।
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Jāgī sur muni kahat pukārī, 
Yog nahīan bin shakti tumhārī।
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Shankar achāraj tap kīno, 
Kām aru krodh sab līno।
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Nishadin dhyān dharo shankar ko, 
Kāhu kāl nahian sumiro tumako।
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Shakti rūp ko maram n pāyo, 
Shakti gaī tab man pachhitāyo।
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Sharaṇāgat huī kīrti bakhānī, 
Jaya jaya jaya jagadamba bhavānī।
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Bhaī prasanna ādi jagadambā, 
Daī shakti nahian kīn vilambā।
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Moko mātu kaṣhṭa ati ghero, 
Tum bin kaun hare dukh mero।
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Āshā tṛuṣhṇā nipaṭ satāvai, 
Ripu mūrakh mohi ati ḍarapāvai।
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Shatru nāsh kījai mahārānī, 
Sumirauan ikachit tumhean bhavānī।
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Karo kṛupā he mātu dayālā, 
Ṛuddhi siddhi de karahuan nihālā।
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Jab lagi jiyauan dayā fal pāū , 
Tumharo jas maian sadā sunāū ।
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Durgā chālīsā jo gāvai, 
Sab sukh bhog param pad pāvai।
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Devīdās sharaṇ nij jānī, 
Karahuan kṛupā jagadamba bhavānī।
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Dohā
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Sharaṇāgat rakṣhā kare, 
Bhakta rahe nishanka।
Maian āyā terī sharaṇ mean, 
Mātu lījie aanka।।
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बुधवार, 6 अप्रैल 2011

श्री रविदास चालीसा Shri Ravi Das Chalisa || Shree Ravidas Chalisa In Hindi || Shree Ravidas Chalisa Lyrics In Hindi

श्री रविदास चालीसा Shri Ravi Das Chalisa || Shree Ravidas Chalisa In Hindi || Shree Ravidas Chalisa Lyrics In Hindi || Sant Ravidas Chalisa

दोहा

बन्दौ वीणा पाणि को, देहु आय मोहिं ज्ञान।
पाय बुद्धि रविदास को, करौं चरित्र बखान।
मातु की महिमा अमित है, लिखि न सकत है दास।
ताते आयों शरण में, पुरवहुं जन की आस।

चौपाई

जै होवै रविदास तुम्हारी, कृपा करहु हरिजन हितकारी।
राहू भक्त तुम्हारे ताता, कर्मा नाम तुम्हारी माता।

काशी ढिंग माडुर स्थाना, वर्ण अछुत करत गुजराना।
द्वादश वर्ष उम्र जब आई, तुम्हरे मन हरि भक्ति समाई।

रामानन्द के शिष्य कहाये, पाय ज्ञान निज नाम बढ़ाये।
शास्त्र तर्क काशी में कीन्हों, ज्ञानिन को उपदेश है दीन्हों।

गंग मातु के भक्त अपारा, कौड़ी दीन्ह उनहिं उपहारा।
पंडित जन ताको लै जाई, गंग मातु को दीन्ह चढ़ाई।

हाथ पसारि लीन्ह चैगानी, भक्त की महिमा अमित बखानी।
चकित भये पंडित काशी के, देखि चरित भव भयनाशी के।

रत्न जटित कंगन तब दीन्हां, रविदास अधिकारी कीन्हां।
पंडित दीजौ भक्त को मेरे, आदि जन्म के जो हैं चेरे।

पहुंचे पंडित ढिग रविदासा, दै कंगन पुरइ अभिलाषा।
तब रविदास कही यह बाता, दूसर कंगन लावहु ताता।

पंडित ज तब कसम उठाई, दूसर दीन्ह न गंगा माई।
तब रविदास ने वचन उचारे, पंडित जन सब भये सुखारे।

जो सर्वदा रहै मन चंगा, तौ घर बसति मातु है गंगा।
हाथ कठौती में तब डारा, दूसर कंगन एक निकारा।

चित संकोचित पंडित कीन्हें, अपने अपने मारग लीन्हें।
तब से प्रचलित एक प्रसंगा, मन चंगा तो कठौती में गंगा।

एक बार फिरि परयो झमेला, मिलि पंडितजन कीन्हो खेला।
सालिगराम गंग उतरावै, सोई प्रबल भक्त कहलावै।

सब जन गये गंग के तीरा, मूरति तैरावन बिच नीरा।
डूब गई सबकी मझधारा, सबके मन भयो दुख अपारा।

पत्थर की मूर्ति रही उतराई, सुर नर मिलि जयकार मचाई।
रहयो नाम रविदास तुम्हारा, मच्यो नगर महं हाहाकारा।

चीरि देह तुम दुग्ध बहायो, जन्म जनेउ आप दिखाओ।
देखि चकित भये सब नर नारी, विद्वानन सुधि बिसरी सारी।

ज्ञान तर्क कबिरा संग कीन्हों, चकित उनहुं का तुक करि दीन्हों।
गुरु गोरखहिं दीन्ह उपदेशा, उन मान्यो तकि संत विशेषा।

सदना पीर तर्क बहु कीन्हां, तुम ताको उपदेश है दीन्हां।
मन मह हारयो सदन कसाई, जो दिल्ली में खबरि सुनाई।

मुस्लिम धर्म की सुनि कुबड़ाई, लोधि सिकन्दर गयो गुस्साई।
अपने गृह तब तुमहिं बुलावा, मुस्लिम होन हेतु समुझावा।

मानी नहिं तुम उसकी बानी, बंदीगृह काटी है रानी।
कृष्ण दरश पाये रविदासा, सफल भई तुम्हरी सब आशा।

ताले टूटि खुल्यो है कारा, नाम सिकन्दर के तुम मारा।
काशी पुर तुम कहं पहुंचाई, दै प्रभुता अरुमान बड़ाई।

मीरा योगावति गुरु कीन्हों, जिनको क्षत्रिय वंश प्रवीनो।
तिनको दै उपदेश अपारा, कीन्हों भव से तुम निस्तारा।

दोहा

ऐसे ही रविदास ने, कीन्हें चरित अपार।
कोई कवि गावै कितै, तहूं न पावै पार।
नियम सहित हरिजन अगर, ध्यान धरै चालीसा।
ताकी रक्षा करेंगे, जगतपति जगदीशा।


चित्र indianpublicholidays.com से साभार

सोमवार, 28 मार्च 2011

श्री नवग्रह चालीसा || Shri Navagraha Chalisa || श्री गणपति गुरुपद कमल || Shri Ganapati Gurupad Kamal || Navagrah Chalisa in Hindi || Nava Grah Chalisa Lyrics

श्री नवग्रह चालीसा || Shri Navagraha Chalisa || श्री गणपति गुरुपद कमल || Shri Ganapati Gurupad Kamal || Navagrah Chalisa in Hindi || Nava Grah Chalisa Lyrics



श्री नवग्रह चालीसा || Shri Navagrah Chalisa

श्री गणपति गुरुपद कमल, 
प्रेम सहित सिरनाय।
नवग्रह चालीसा कहत, 
शारद होत सहाय।।
जय जय रवि शशि सोम बुध 
जय गुरु भृगु शनि राज।
जयति राहु अरु केतु ग्रह 
करहुं अनुग्रह आज।।

चौपाई

श्री सूर्य स्तुति || Shri Surya Stuti

प्रथमहि रवि कहं नावौं माथा, 
करहुं कृपा जनि जानि अनाथा।
हे आदित्य दिवाकर भानू, 
मैं मति मन्द महा अज्ञानू।
अब निज जन कहं हरहु कलेषा, 
दिनकर द्वादश रूप दिनेशा।
नमो भास्कर सूर्य प्रभाकर, 
अर्क मित्र अघ मोघ क्षमाकर।

श्री चन्द्र स्तुति || Shri Chandra Stuti

शशि मयंक रजनीपति स्वामी, 
चन्द्र कलानिधि नमो नमामि।
राकापति हिमांशु राकेशा, 
प्रणवत जन तन हरहुं कलेशा।
सोम इन्दु विधु शान्ति सुधाकर, 
शीत रश्मि औषधि निशाकर।
तुम्हीं शोभित सुन्दर भाल महेशा, 
शरण शरण जन हरहुं कलेशा।

श्री मंगल स्तुति || Shri Mangal Stuti

जय जय जय मंगल सुखदाता, 
लोहित भौमादिक विख्याता।
अंगारक कुज रुज ऋणहारी, 
करहुं दया यही विनय हमारी।
हे महिसुत छितिसुत सुखराशी, 
लोहितांग जय जन अघनाशी।
अगम अमंगल अब हर लीजै, 
सकल मनोरथ पूरण कीजै।

श्री बुध स्तुति || Shri Budh Stuti

जय शशि नन्दन बुध महाराजा, 
करहु सकल जन कहं शुभ काजा।
दीजै बुद्धि बल सुमति सुजाना, 
कठिन कष्ट हरि करि कल्याणा।
हे तारासुत रोहिणी नन्दन, 
चन्द्रसुवन दुख द्वन्द्व निकन्दन।
पूजहिं आस दास कहुं स्वामी, 
प्रणत पाल प्रभु नमो नमामी।

श्री बृहस्पति स्तुति || Shri Brihaspati Stuti

जयति जयति जय श्री गुरुदेवा, 
करूं सदा तुम्हरी प्रभु सेवा।
देवाचार्य तुम देव गुरु ज्ञानी, 
इन्द्र पुरोहित विद्यादानी।
वाचस्पति बागीश उदारा, 
जीव बृहस्पति नाम तुम्हारा।
विद्या सिन्धु अंगिरा नामा, 
करहुं सकल विधि पूरण कामा।

श्री शुक्र स्तुति || Shri Shukra Stuti

शुक्र देव पद तल जल जाता, 
दास निरन्तन ध्यान लगाता।
हे उशना भार्गव भृगु नन्दन, 
दैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन।
भृगुकुल भूषण दूषण हारी, 
हरहुं नेष्ट ग्रह करहुं सुखारी।
तुहि द्विजबर जोशी सिरताजा, 
नर शरीर के तुमही राजा।

श्री शनि स्तुति || Shri Shani Stuti

जय श्री शनिदेव रवि नन्दन, 
जय कृष्णो सौरी जगवन्दन।
पिंगल मन्द रौद्र यम नामा, 
वप्र आदि कोणस्थ ललामा।
वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजा, 
क्षण महं करत रंक क्षण राजा।
ललत स्वर्ण पद करत निहाला, 
हरहुं विपत्ति छाया के लाला।

श्री राहु स्तुति || Shri Rahu Stuti

जय जय राहु गगन प्रविसइया, 
तुमही चन्द्र आदित्य ग्रसइया।
रवि शशि अरि स्वर्भानु धारा, 
शिखी आदि बहु नाम तुम्हारा।
सैहिंकेय तुम निशाचर राजा, 
अर्धकाय जग राखहु लाजा।
यदि ग्रह समय पाय हिं आवहु, 
सदा शान्ति और सुख उपजावहु।

श्री केतु स्तुति || Shri Ketu Stuti

जय श्री केतु कठिन दुखहारी, 
करहु सुजन हित मंगलकारी।
ध्वजयुत रुण्ड रूप विकराला, 
घोर रौद्रतन अघमन काला।
शिखी तारिका ग्रह बलवान, 
महा प्रताप न तेज ठिकाना।
वाहन मीन महा शुभकारी, 
दीजै शान्ति दया उर धारी।

नवग्रह शांति फल || Navagrah Shanti Fal

तीरथराज प्रयाग सुपासा, 
बसै राम के सुन्दर दासा।
ककरा ग्रामहिं पुरे-तिवारी, 
दुर्वासाश्रम जन दुख हारी।
नवग्रह शान्ति लिख्यो सुख हेतु, 
जन तन कष्ट उतारण सेतू।
जो नित पाठ करै चित लावै, 
सब सुख भोगि परम पद पावै।

दोहा

धन्य नवग्रह देव प्रभु, 
महिमा अगम अपार।
चित नव मंगल मोद गृह 
जगत जनन सुखद्वार।।
यह चालीसा नवोग्रह, 
विरचित सुन्दरदास।
पढ़त प्रेम सुत बढ़त सुख, 
सर्वानन्द हुलास।।
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शनिवार, 26 मार्च 2011

श्री भैरव चालीसा Shri Bhairav Chalisa

श्री भैरव चालीसा Shri Bhairav Chalisa



दोहा


श्री भैरव संकट हरन, मंगल करन कृपाल।
करहु दया जि दास पे, निशिदिन दीनदयाल।।

चौपाई

जय डमरूधर नयन विशाला, श्यामवर्ण, वपु महाकराला।
जय त्रिशूलधर जय डमरूधर, काशी कोतवाल, संकट हर।

जय गिरिजासुत परम कृपाला, संकट हरण हरहुं भ्रमजाला।
जयति बटुक भैरव भयहारी, जयति काल भैरव बलधारी।

अष्ट रूप तुम्हरे सब गाये, सकल एक ते एक सिवाये।
शिवस्वरूप शिव के अनुगामी, गणाधीश तुम सब के स्वामी।

जटाजूट पर मुकुट सुहावै, भालचन्द्र अति शोभा पावै।
कटि करधनी घुंघरू बाजै, दर्शन करत सकल भय भाजै।

कर त्रिशूल डमरू अति सुन्दर, मोरपंख को चंवर मनोहर।
खप्पर खड्ग लिये बलवाना, रूप चतुर्भुज नाथ बखाना।

वाहन श्वान सदा सुखरासी, तुम अनन्त प्रभु तुम अविनाशी।
जय जय जय भैरव भय भंजन, जय कृपालु भक्तन मनरंजन।

नयन विशाल लाल अति भारी, रक्तवर्ण तुम अहहु पुरारी।
बं बं बं बोलत दिनराती, शिव कहं भजहुं असुर आराती।

एक रूप तुम शम्भु कहाये, दूजे भैरव रूप बनाये।
सेवक तुमहिं तुमहिं प्रभु स्वामी, सब जग के तुम अन्तर्यामी।

रक्तवर्ण वपु अहहि तुम्हारा, श्यामवर्ण कहुं होई प्रचारा।
श्वेतवर्ण पुनि कहा बखानी, तीनि वर्ण तुम्हरे गुणखानी।

तीन नयन प्रभु परम सुहावहिं, सुर नर मुनि सब ध्यान लगावहिं।
व्याघ्र चर्मधर तुम जग स्वामी, प्रेतनाथ तुम पूर्ण अकामी।

चक्रनाथ नकुलेश प्रचण्डा, निमिष दिगम्बर कीरति चण्डा।
क्रोधवत्स भूतेश कालधर, चक्रतुण्ड दशबाहु व्यालधर।

अहहिं कोटि प्रभु नाम तुम्हारे, जयत सदा मेटत दुख भारे।
चैसठ योगिनी नाचहिं संगा, कोधवान तुम अति रणरंगा।

भूतनाथ तुम परम पुनीता, तुम भविष्य तुम अहहू अतीता।
वर्तमान तुम्हारो शुचि रूपा, कालजयी तुम परम अनूपा।

ऐलादी को संकट टार्यो, सदा भक्त को कारज सारयो।
कालीपुत्र कहावहु नाथा, तव चरणन नावहुं नित माथा।

श्री क्रोधेश कृपा विस्तारहु, दीन जानि मोहि पार उतारहु।
भवसागर बूढत दिन-राती, होहु कृपालु दुष्ट आराती।

सेवक जानि कृपा प्रभु कीजै, मोहिं भगति अपनी अब दीजै।
करहुं सदा भैरव की सेवा, तुम समान दूजो को देवा।

अश्वनाथ तुम परम मनोहर, दुष्टन कहं प्रभु अहहु भयंकर।
तम्हरो दास जहां जो होई, ताकहं संकट परै न कोई।

हरहु नाथ तुम जन की पीरा, तुम समान प्रभु को बलवीरा।
सब अपराध क्षमा करि दीजै, दीन जानि आपुन मोहिं कीजै।

जो यह पाठ करे चालीसा, तापै कृपा करहुं जगदीशा।

दोहा

जय भैरव जय भूतपति जय जय जय सुखकंद।
करहु कृपा नित दास पे देहुं सदा आनन्द।।


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