मंगलवार, 31 अक्तूबर 2023

करवा चौथ व्रत कथा (कहानी) //Karva Chauth Vrat Katha Book & Pooja Vidhi// Lyrics in Hindi PDF // Lyrics in English

करवा चौथ व्रत कथा (कहानी) //Karva Chauth Vrat Katha Book & Pooja Vidhi// Lyrics in Hindi PDF // Lyrics in English


हिन्दू धर्म की मान्‍यता के अनुसार कार्तिक महीने में पूर्णिमा के चौथे दिन करवा चौथ वाला त्योहार मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएँ अपने पति की लम्‍बी आयु की कामना के साथ निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन शाम को करवा चौथ कथा पढ़ / सुन कर चंद्रमा निकलने के बाद वे चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं और पति का तिलक आदि करने के बाद पति के हाथों से पानी पीकर अपना व्रत खोलती हैं। इस दिन भगवान शिव, गणेश जी और स्कन्द यानि कार्तिकेय के साथ बनी गौरी के चित्र की सभी उपचारों के साथ पूजा की जाती है। कहते हैं कि इस व्रत को करने से जीवन में पति का साथ हमेशा बना रहता है। साथ ही, सौभाग्य की प्राप्ति और जीवन में सुख-शान्ति बनी रहती है।

क्या है करवा चौथ की सरगी? What is Sargi in Karwa Chauth

सरगी के माध्‍यम से सास अपनी बहू को सुहाग का आशीर्वाद देती है। सरगी की थाल में 16 श्रृंगार की सभी समाग्री, मेवा, फल, मिष्ठान आदि होते हैं। सरगी में रखे गए व्यंजनों को ग्रहण करके ही इस व्रत का आरंभ किया जाता है। सास न हो तो जेठानी या बहन के माध्‍यम से भी यह रस्म निभायी जा सकती है। 

सरगी के सेवन का शुभ मुहूर्त Shubh Muhurt for Sargi

करवा चौथ व्रत वाले दिन सरगी सूर्योदय से पूर्व ब्रह्ममुहूर्त में प्रात: 4 से 5 बजे के करीब कर लेना चाहिए। सरगी में भूलकर भी तेल मसाले वाली चीजों को ग्रहण न करें। इससे व्रत का फल नहीं मिलता है। ब्रह्म मुहूर्त में सरगी का सेवन अच्छा माना जाता है। 

करवा चौथ 2023 का शुभ मुहूर्त //Karwa Chauth 2023 ka Shubh Muhurt

इस साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 31 अक्तूबर मंगलवार को रात 9 बजकर 30 मिनट से हो रही है। यह तिथि अगले दिन 1 नवंबर को रात 9 बजकर 19 मिनट तक रहेगी। ऐसे में उदया तिथि और चंद्रोदय के समय को देखते हुए करवा चौथ का व्रत 1 नवंबर 2023, बुधवार को रखा जाएगा। 1 नवंबर को करवा चौथ वाले दिन चंद्रोदय 8 बजकर 26 मिनट पर होगा। वहीं इस दिन शाम 5 बजकर 44 मिनट से 7 बजकर 02 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त है। 1 नवंबर को करवा चौथ के दिन सर्वार्थ सिद्धि और शिव योग का संयोग बन रहा है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 06 बजकर 33 मिनट से 2 नवंबर को सुबह 04 बजकर 36 मिनट रहेगा। इसके अलावा 1 नवंबर की दोपहर 02 बजकर 07 मिनट से शिवयोग शुरू हो जाएगा। इन दोनों शुभ संयोग की वजह से इस साल करवा चौथ का महत्व और बढ़ गया है। 

करवा चौथ 2023 पूजा विधि // Karva Chauth Puja Vidhi 

करवा चौथ पूजा करने के लिए घर के उत्तर-पूर्व दिशा के कोने को अच्छे से साफ कर लें और लकड़ी की चौकी बिछाकर उस पर शिवजी, मां गौरी और गणेश जी की तस्वीर या चित्र रखें। साथ ही, उत्तर दिशा में एक जल से भरा कलश स्थापित कर उसमें थोड़े-से अक्षत डालें। इसके बाद कलश पर रोली, अक्षत का टीका लगाएं और गर्दन पर मौली बांधें। तीन जगह चार पूड़ी और 4 लड्डू लें, अब एक हिस्से को कलश के ऊपर, दूसरे को मिट्टी या चीनी के करवे पर और तीसरे हिस्से को पूजा के समय महिलाएं अपने साड़ी या चुनरी के पल्ले में बांध कर रख लें। अब करवाचौथ माता के सामने घी का दीपक जलाकर कथा पढ़ें। पूजा करने के बाद साड़ी के पल्ले और करवे पर रखे प्रसाद को बेटे या अपने पति को खिला दें। वहीं, कलश पर रखे प्रसाद को गाय को खिला दें। पानी से भरे हुए कलश को पूजा स्थल पर ही रहने दें। चन्द्रोदय के समय इसी कलश के जल से चन्द्रमा को अर्घ्य दें और घर में जो कुछ भी बना हो, उसका भोग चंद्रमा को लगाएं। इसके बाद पति के हाथों से जल ग्रहण करके व्रत का पारण करें। 

करवा चौथ का उजमन // Karwa Chauth ka Ujman

एक थाल में चार-चार पूड़ियाँ तेरह जगह रखकर उनके ऊपर थोड़ा-थोड़ा हलवा रख दें। थाल में एक साड़ी, ब्लाउज और सामर्थ्यानुसार रुपये भी रखें। फिर उसके चारों ओर रोली-चावल से हाथ फेरकर अपनी सासूजी के चरण स्पर्श कर उन्हें दे दें। तदुपरांत तेरह ब्राह्मण/ब्राह्मणियों को आदर सहित भोजन कराएं, दक्षिणा दें तथा रोली की बिन्‍दी /तिलक लगाकर उन्हें विदा करें। 

Karva Chauth Vrat Katha 2023 PDF (करवाचौथ व्रत की कथा (कहानी) PDF Download) Karva Chauth Vrat Katha Book PDF – ਕਰਵਾ ਚੌਥ ਵਰਤ ਦੀ ਕਹਾਣੀ 

एक साहूकार के एक पुत्री और सात पुत्र थे। करवा चौथ के दिन साहूकार की पत्नी, बेटी और बहुओं ने व्रत रखा। रात्रि को साहूकार के पुत्र भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन करने के लिए कहा। बहन वोली- “भाई! अभी चन्द्रमा नहीं निकला है, उसके निकलने पर मैं अर्घ्य देकर भोजन करूँगी।” इस पर भाइयों ने नगर से बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमें से प्रकाश दिखाते हुए बहन से कहा- “बहन! चन्द्रमा निकल आया है, अर्घ्य देकर भोजन कर लो।” बहन अपनी भाभियों को भी बुला लाई कि तुम भी चन्द्रमा को अर्घ्य दे दो, किन्तु वे अपने पतियों की करतूत जानती थीं। उन्होंने कहा- “अभी चन्द्रमा नहीं निकला है। तुम्हारे भाई चालाकी करते हुए अग्नि का प्रकाश छलनी से दिखा रहे हैं।” किन्तु बहन ने भाभियों की बात पर ध्यान नहीं दिया और भाइयों द्वारा दिखाए प्रकाश को ही अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार व्रत भंग होने से गणेश जी उससे रुष्ट हो गए। इसके बाद उसका पति सख्त बीमार हो गया और जो कुछ घर में था, उसकी बीमारी में खर्च हो गया। साहूकार की पुत्री को जब अपने दोष का पता लगा तो वह पश्चाताप से भर उठी। गणेश जी से क्षमा-प्रार्थना करने के बाद उसने पुनः विधि-विधान से चतुर्थी का व्रत करना आरम्भ कर दिया। श्रद्धानुसार सबका आदर सत्कार करते हुए, सबसे आशीर्वाद लेने में ही उसने मन को लगा दिया। इस प्रकार उसके श्रद्धाभक्ति सहित कर्म को देख गणेश जी उस पर प्रसन्न हो गए। उन्होंने उसके पति को जीवनदान दे उसे बीमारी से मुक्त करने के पश्चात् धन-सम्पत्ति से युक्त कर दिया। इस प्रकार जो कोई छल-कपट से रहित श्रद्धाभक्तिपूर्वक चतुर्थी का व्रत करेगा, वह सब प्रकार से सुखी होते हुए कष्ट-कंटकों से मुक्त हो जाएगा। 

करवा चौथ का महत्व // Karwa Chauth Ka Mahatva

करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्‍यौहार है। यह उत्‍तर भारत के पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में प्रमुखता से मनाया जाता है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ मनाती हैं। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब 4 बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है। ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियाँ करवाचौथ का व्रत बडी़ श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं। शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अर्घ्य देने के उपरान्‍त ही भोजन करने का विधान है। वर्तमान समय में करवाचौथ व्रतोत्सव ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं लेकिन अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करकचतुर्थी (करवा-चौथ) व्रत करने का विधान है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। जो सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह व्रत रखती हैं। यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं। इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। अतः सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा के लिए इस व्रत का सतत पालन करें।

करवा चौथ की आरती Karwa Chauth Aarti Download 

ओम जय करवा मैया, 
माता जय करवा मैया। 
जो व्रत करे तुम्हारा, 
पार करो नइया।। 
ओम जय करवा मैया। 

सब जग की हो माता, 
तुम हो रुद्राणी। 
यश तुम्हारा गावत, 
जग के सब प्राणी।। 
ओम जय करवा मैया, 
माता जय करवा मैया। 
जो व्रत करे तुम्हारा, 
पार करो नइया।। 

कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, 
जो नारी व्रत करती। 
दीर्घायु पति होवे,
दुख सारे हरती।। 
ओम जय करवा मैया, 
माता जय करवा मैया। 
जो व्रत करे तुम्हारा, 
पार करो नइया।। 

होए सुहागिन नारी, 
सुख संपत्ति पावे। 
गणपति जी बड़े दयालु, 
विघ्न सभी नाशे।। 
ओम जय करवा मैया, 
माता जय करवा मैया। 
जो व्रत करे तुम्हारा, 
पार करो नइया।। 

करवा मैया की आरती, 
व्रत कर जो गावे। 
व्रत हो जाता पूरन, 
सब विधि सुख पावे।। 
ओम जय करवा मैया, 
माता जय करवा मैया। 
जो व्रत करे तुम्हारा, 
पार करो नइया।। 
*****
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सोमवार, 23 अक्तूबर 2023

अम्बे तू है जगदम्बे काली //Ambe Tu Hai Jagdambe Kali Lyrics in Hindi and English // Navratri Special Aarti

अम्बे तू है जगदम्बे काली |Ambe Tu Hai Jagdambe Kali Lyrics in Hindi | Navratri Special Aarti



अम्बे तू है जगदम्बे काली
जय दुर्गे खप्पर वाली
तेरे ही गुण गायें भारती
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती
*****
तेरे भक्त जनों पे माता 
भीड़ पड़ी है भारी
मैया भीड़ पड़ी है भारी
दानव दल पर टूट पड़ो माँ 
करके सिंह सवारी 
मॉं करके सिंह सवारी
सौ-सौ सिहों से भी बलशाली
अष्टभुजाओं वाली
दुश्टों को तू ही घन तारती
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती
*****
माँ-बेटे का है इस जग में 
बड़ा ही निर्मल नाता
मैया बड़ा ही निर्मल नाता
पूत-कपूत सुने हैं पर ना 
माता सुनी कुमाता
माता सुनी कुमाता
सब पे करुणा करने वाली
अमृत बरसाने वाली
दुखियों के दुखड़े निवारती
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती
*****
नहीं मांगते धन और दौलत 
ना चांदी ना सोना
ना चांदी ना सोना
हम तो मांगे माँ तेरे चरणों में 
एक छोटा सा कोना
मैया एक छोटा सा कोना
सबकी बिगड़ी बनाने वाली
लाज बचाने वाली
सतियों के सत को संवारती
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती
*****
चरण शरण में खड़े तुम्हारी, 
ले पूजा की थाली
मैया ले पूजा की थाली
वरद हस्त सर पर रख दो माँ 
संकट हरने वाली
माँ संकट हरने वाली
मय्या भर दो भक्ति रस प्याली, 
अष्ट भुजाओं वाली
भक्तों के कारज तू ही सारती
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती
*****

रविवार, 20 अगस्त 2023

श्री ग्‍वेल अष्‍टक \\ Shri Gwel Ashtak Lyrics in Hindi \\ जन्‍म समय मॉं की सौतन ने \\ Janm Samay Maa ki Sautan ne

जन्‍म समय मॉं की सौतन ने | Janm Samay Maa ki Sautan ne | Shri Golu Ashtak | श्री ग्‍वेल अष्‍टक | Shri Gwail Ashtak Lyrics in Hindi 


जन्‍म समय मॉं की सौतन ने 

हे ग्‍वेल दियो तुमको दुख भारी 

*****

काली के पास में प्रस्‍तर डारिके

डारो तुम्‍हें जहॉं थी बहु झारी 

*****

बाल न बॉंका हुआ गोरिया तेरो

पा करके यह वेदना सारी 

*****

मौसानी क्‍या कर लेती उसे

जाके नाम से संकट जात है टारी 

नाम से संकट जात हैं टारी 

*****

मौसेरी मॉंओं ने जीवित जानके

मारन की तोहि बात बिचारी 

*****

रात समय उस बालक को

धरी आए नदी मह वे अत्‍याचारी 

*****

होके प्रसन्‍न नदी जल में

उस बालक ने वह रात गुजारी 

*****

मौसानी क्‍या कर लेती उसे

जाके नाम से संकट जात है टारी 

नाम से संकट जात हैं टारी 

*****

स्‍वप्‍न दियो भाना धेवर को 

समझाई कथा उसको यह सारी 

*****

स्‍वप्‍न के बीच लखी उसने 

वह देव स्‍वरूप महाछवि न्‍यारी 

*****

टूटत स्‍वप्‍न विचारिकैं बात कैं

शोक भयो मन में अति भारी 

*****

मौसानी क्‍या कर लेती उसे

जाके नाम से संकट जात है टारी 

नाम से संकट जात हैं टारी 

*****

प्रात समय उस धेवर ने 

मन में जब स्‍वप्‍न की बात बिचारी 

*****

दौडि़ पड्यो नदिया की दिशा वह 

तन मन की सुधि सारी बिसारी 

*****

कूदि गयो मझधार में धेवर 

देखने को वह रूप सुखारी 

*****

मौसानी क्‍या कर लेती उसे

जाके नाम से संकट जात है टारी 

नाम से संकट जात हैं टारी 

*****

ज्‍योति स्‍वरूप महाछविके 

जल के तल में वह रूप निहारी 

*****

आनन्‍द मग्‍न भयो तब धेवर 

मनहु मिली सुख सम्‍पति भारी 

*****

गोरा था गोरिया नाम धरो 

घर ले गयो विश्‍व की सम्‍पति सारी 

*****

मौसानी क्‍या कर लेती उसे

जाके नाम से संकट जात है टारी 

नाम से संकट जात हैं टारी 

*****

बाल समय प्‍यारे गोरिया की

तब फैल गई कल कीरति सारी 

*****

झालु के नैन गए ललचाइ

कि आवौं मैं देखिये मूरत न्‍यारी 

*****

बात सुनी जब धेवर की

कहो कैसे बच्‍यो यह नीर मझारी 

*****

मौसानी क्‍या कर लेती उसे

जाके नाम से संकट जात है टारी 

नाम से संकट जात हैं टारी 

*****

बालक ग्‍वेल ने बालक काल की 

भूपति से कहदी कथा सारी 

*****

नैनन नीर बह्यो नृप को

वह भूल गयो तन की सुधि सारी 

*****

मात की सौतों ने मारन की तोहि

बात किया में थी पूरी बिचारी 

*****

मौसानी क्‍या कर लेती उसे

जाके नाम से संकट जात है टारी 

नाम से संकट जात हैं टारी 

*****

राजा कह्यो उठ लाल मेरे 

तुम्‍हें देख रही चम्‍पावत सारी 

*****

पापी को दण्‍ड दो न्‍यायी को न्‍याय दो 

काली के सारे हरो दुख भारी 

*****

दूध का दूध करो जल का जल

न्‍याय में कीरति फैले तुम्‍हारी 

*****

मौसानी क्‍या कर लेती उसे

जाके नाम से संकट जात है टारी 

नाम से संकट जात हैं टारी 

*****

गौर वर्ण हे ग्‍वेल जी बिनती बारम्‍बार 

कलिका भार उतारने लियो देव अवतार

  

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ललही छठ (हलछठ) की पौराणिक व्रत कथा || Lalahi Chhath (Hal Chhath) ki Pauranik Katha Lyrics in Hindi

ललही छठ (हलछठ) की पौराणिक व्रत कथा || Lalahi Chhath (Hal Chhath) ki Pauranik Katha Lyrics in Hindi || Lyrics in English


हलछठ की कथा, पूजा विधि

ललही छठ कब मनाया जाता है Lalahi Chhath Kab Manate Hain- 
भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को ललही छठ व्रत का त्योहार मनाया जाता है। 

ललही छठ को और किन नामों से जाना जाता है Lalahi Ke Aur Kya Naam Hain - 
इसे हलछठ, हरछठ, पीन्नी छठ, खमर छठ, राधन छठ, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ, ललही छठ आदि नामों से जाना जाता है| 

ललही छठ में किस देवी की पूजा की जाती है Lalahi Chhath me Kis Devi Ke Puja Hoti Hai - 
इस दिन षष्ठी माता की पूजा की जाती है। जन्माष्टमी से से ठीक दो दिन  पहले मनाए जाने वाले  हलछठ  के पर्व  को श्री कृष्ण भगवान के बड़े भ्राता बलराम  की जयंती के रूप में भी जाना जाता है। बलराम जिन्हें बलदेव, बलभद्र और बलदाऊ के नाम से भी जाना जाता है  वास्तव में शेषनाग  के अवतार थे। बलराम को हल और मूसल से खास प्रेम था। यही उनके प्रमुख अस्त्र भी थे। इसलिए ललही छठ के दिन किसान हल, मूसल और बैल की पूजा करते हैं। इसे किसानों के त्योहार के रूप में भी देखा जाता है।

ललही छठ क्‍यों मनाया जाता है Lalahi Chhath Kyon Manate Hain - 
जब कंस को पता चला की वासुदेव और देवकी की संतान उसकी मृत्यु का कारण बनेंगी तो उसने उन्हे कारागार में डाल दिया और उसकी सभी 6 जन्मी संतानों वध कर डाला। देवकी को जब सांतवा पुत्र होना था तब उनकी रक्षा के लिए नारद मुनि ने उन्हे हलष्ठी माता की व्रत करने की सलाह दी। जिससे उनका पुत्र कंस के कोप से सुरक्षित हो जाए। देवकी ने षष्ठी माता का व्रत किया। जिसके प्रभाव से भगवान ने योग माया से कह कर देवकी के गर्भ में पल रहे बच्चे को वासुदेव की बड़ी रानी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया जिससे कंस को भी धोखा हो गया और उसने समझा देवकी का सातवॉं पुत्र जीवित नहीं है। उधर रोहिणी के गर्भ से भगवान बलराम का जन्म हुआ। भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को हुआ था। इसलिए इस दिन को बलराम जयंती भी कहा जाता है। इसके बाद देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रुप में श्री कृष्ण का जन्म हुआ। देवकी के षष्ठी माता का व्रत करने से दोनों पुत्रों की रक्षा हुई। इसीलिए यह व्रत स्त्रियां अपने संतान की दीर्घ आयु और स्वस्थ्य के लिए करती हैं।  संतान प्राप्ति के लिए भी महिलाएं हलषष्ठी का व्रत करती है।

ललही छठ व्रत का महत्‍व Lalahi Chhath Vrat Ka Mahattva - 
भगवती षष्ठी देवी शिशुओं की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। इनकी पूजा से संतान को दीर्घायु प्राप्त होती है साथ ही जिनके संतान नहीं होती उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। ये  मूल प्रकृति के छठे अंश से प्रकट हुई हैं जिस कारण इनका नाम षष्ठी देवी पड़ा है| भगवती षष्ठी देवी अपने योग के प्रभाव से शिशुओं के पास सदा वृद्धमाता के रूप में अप्रत्यक्ष रुप से विद्यमान रहती हैं, ये इनकी यानि शिशुओं की रक्षा करने के साथ-साथ इनका भरण-पोषण भी करती हैं। ये देवी बच्चों को स्वप्न में कभी रुलाती हैं, कभी हंसाती हैं, कभी खिलाती हैं तो कभी दुलार करती हैं। कहा जाता है कि जन्म के छठे दिन जो छठी मनाई जाती हैं वो इन्हीं षष्ठी देवी की ही पूजा की जाती है। अपने पति की रक्षा और आरोग्य जीवन के लिए स्त्रियां मां गौरी की पूजा भी करती हैं और उन्हें सुहाग का समान चढ़ाती हैं। 

ललही छठ व्रत कथा Lalahi Chhath Vrat Katha 


एक समय की बात है। किसी गॉंव में एक ग्वालिन रहती थी। उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था। एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा।

यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई। वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया।

वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया।

उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान खेत जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया।

इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने तुरन्‍त झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया। 

कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है।

वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध भैंस का बताकर न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती। अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों के सामने सच स्‍वीकार करके प्रायश्चित करना चाहिए।

ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था। वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर दया करके उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया।

बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है। तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया ।

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सभी प्रेम से बोलो ललही माता की जय 
हलछठ माता की जय
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सोमवार, 7 अगस्त 2023

श्री गोलू देव की आरती || Shri Golu Dev Ki Aarti Lyrics in Hindi \\जय गोलज्यू महाराज \\ Jay Goljyu Maharaj

श्री गोलू देव की आरती || Shri Golu Dev Ki Aarti Lyrics in Hindi || Lyrics in English


जय गोलज्यू महाराज,

जय हो जय गोलज्यू महाराज ..!


जय गोल ज्यू महाराज,

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!!


ज्योत जगुनों तेरी…

सुफल करिए काज….!

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!!


जय गोल ज्यू महाराज,

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..

ज्योति जगुनों तेरी…

सुफल करिए काज….!

जय गोल ज्यू महाराज !!


पाड़ी में बगन तू आछे ,

लुवे को पिटार में नादान,

(देवा लुवे को पीटार में नादान)

गोरी घाट भाना पायो..

पड़ी गयो गोरिया नाम..!

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!!


जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!!

ज्योति जलूनों तेरी…

सुफल करिए काज….!

जय गोल ज्यू महाराज !!


हरुआ, कलुवा भाई तेरो,

बड़ छेना जो दीवान..!

माता कालिंका तेरी…

बाबू झालो राज…!

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!!


जय हो जय गोल ज्यू महाराज

जय हो जय गोल ज्यू महाराज

ज्योति जलूनों तेरी…

सुफल करिए काज….!

जय गोल ज्यू महाराज !!


सुखिले लुकड़ टांक तेरो

कांठ का घोड़ में सवार !

(देवा काठ को घोड़ में सवार )

लुवे की लगाम हाथयू में..

चाबुक छू हथियार…!!

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!!


जय हो जय गोल ज्यू महाराज .

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..

ज्योति जलूनों तेरी…

सुफल करिए काज….!

जय गोल ज्यू महाराज !!


न्याय तेरो हूँ साची,

सब उनी तेरो द्वार,

देवा सब उनी तेरो द्वार !

जो मांखी तेरो नो ल्यूं …

लगे वीक नय्या पार !


जय गोल ज्यू महाराज !!

जय हो जय गोल ज्यू महाराज .

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..

ज्योति जलूनों तेरी…

सुफल करिए काज….!

जय गोल ज्यू महाराज !!


दूध, बतास और नारियल,

फूल चडनी तेरो द्वार,

देवा फूल चडनी तेरो द्वार !

प्रथम मंदीर चम्पावत..

फिर चितई, घोड़ाखाल.!

जय गोल ज्यू महाराज !!


जय हो जय गोल ज्यू महाराज .

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..

ज्योति जलूनों तेरी…

सुफल करिए काज….!

जय गोल ज्यू महाराज !!


*****

(2)


ॐ जय-जय गोल्ज्यू महाराज, 

स्वामी जय गोल्ज्यू महाराज ।

कृपा करो हम दीन रंक पर, 

दुख हरियो प्रभु आज ।।ॐ।।


राज झलराव के तुम बालक होकर, 

जग में बड़े बलवान ।

सब देवों में तुम्हारा, 

प्रथम मान है आज ।। ॐ जय ।।


भान धेवर में धर्म पुत्र बनकर, 

काठ के घोड़े में चढ़ कर ।

दिखाये कई चमत्‍कार, 

किया सभी का उद्धार ।। ॐ जय।।


जो भी भक्तगण भक्तिभाव से, 

गोल्ज्यू दरबार में आये ।

शीश प्रभु के चरणों मे झुकाये, 

उसकी सब बधाये ।

और विघ्न गोल्ज्यू हर लेते ।। ॐ जय ।।


न्याय देवता है प्रभु करते है इंसाफ ।

क्षमा शांति दो हे गोल्ज्यू प्रमाण लो महाराज ।।ॐ जय ।।


जो कोई आरती तेरी प्रेम सहित गावे, 

प्रभु भक्ति सहित गावे ।

सब दुख उसके मिट जाते, 

पाप उतर जाते ।। ॐ जय ।।


बोलो न्याय देवता श्री 1008 गोल्ज्यू देवता की जय ।


*****
(3)
ओम जय गोलू देवा 
प्रभु जयगोलू स्‍वामी
सदा कृपा बरसाना 
सदा कृपा बरसाना 
हे अन्‍तर्यामी 
ओम जय गोलू स्‍वामी  

ओम जय गोलू देवा 
प्रभु जयगोलू स्‍वामी
सदा कृपा बरसाना 
सदा कृपा बरसाना 
हे अन्‍तर्यामी 
ओम जय गोलू स्‍वामी  

चम्‍पावत में जन्‍मे 
घर घर वास कियो 
प्रभु घर घर वास कियो 
दुखियों के दुख हरने 
दुखियों का दुख हरने 
मानव जन्‍म लियो 
ओम जय गोलू स्‍वामी 

श्‍वेताम्‍बर धारण कर  
श्‍वेत रंग प्रेमी 
प्रभु श्‍वेत रंग प्रेमी 
काष्‍ठ अश्‍व में राजत
काष्‍ठ अश्‍व में राजत
गति है अलबेली 
ओम जय गोलू स्‍वामी 

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