रविवार, 20 अगस्त 2023

ललही छठ (हलछठ) की पौराणिक व्रत कथा || Lalahi Chhath (Hal Chhath) ki Pauranik Katha Lyrics in Hindi

ललही छठ (हलछठ) की पौराणिक व्रत कथा || Lalahi Chhath (Hal Chhath) ki Pauranik Katha Lyrics in Hindi || Lyrics in English


हलछठ की कथा, पूजा विधि

ललही छठ कब मनाया जाता है Lalahi Chhath Kab Manate Hain- 
भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को ललही छठ व्रत का त्योहार मनाया जाता है। 

ललही छठ को और किन नामों से जाना जाता है Lalahi Ke Aur Kya Naam Hain - 
इसे हलछठ, हरछठ, पीन्नी छठ, खमर छठ, राधन छठ, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ, ललही छठ आदि नामों से जाना जाता है| 

ललही छठ में किस देवी की पूजा की जाती है Lalahi Chhath me Kis Devi Ke Puja Hoti Hai - 
इस दिन षष्ठी माता की पूजा की जाती है। जन्माष्टमी से से ठीक दो दिन  पहले मनाए जाने वाले  हलछठ  के पर्व  को श्री कृष्ण भगवान के बड़े भ्राता बलराम  की जयंती के रूप में भी जाना जाता है। बलराम जिन्हें बलदेव, बलभद्र और बलदाऊ के नाम से भी जाना जाता है  वास्तव में शेषनाग  के अवतार थे। बलराम को हल और मूसल से खास प्रेम था। यही उनके प्रमुख अस्त्र भी थे। इसलिए ललही छठ के दिन किसान हल, मूसल और बैल की पूजा करते हैं। इसे किसानों के त्योहार के रूप में भी देखा जाता है।

ललही छठ क्‍यों मनाया जाता है Lalahi Chhath Kyon Manate Hain - 
जब कंस को पता चला की वासुदेव और देवकी की संतान उसकी मृत्यु का कारण बनेंगी तो उसने उन्हे कारागार में डाल दिया और उसकी सभी 6 जन्मी संतानों वध कर डाला। देवकी को जब सांतवा पुत्र होना था तब उनकी रक्षा के लिए नारद मुनि ने उन्हे हलष्ठी माता की व्रत करने की सलाह दी। जिससे उनका पुत्र कंस के कोप से सुरक्षित हो जाए। देवकी ने षष्ठी माता का व्रत किया। जिसके प्रभाव से भगवान ने योग माया से कह कर देवकी के गर्भ में पल रहे बच्चे को वासुदेव की बड़ी रानी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया जिससे कंस को भी धोखा हो गया और उसने समझा देवकी का सातवॉं पुत्र जीवित नहीं है। उधर रोहिणी के गर्भ से भगवान बलराम का जन्म हुआ। भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को हुआ था। इसलिए इस दिन को बलराम जयंती भी कहा जाता है। इसके बाद देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रुप में श्री कृष्ण का जन्म हुआ। देवकी के षष्ठी माता का व्रत करने से दोनों पुत्रों की रक्षा हुई। इसीलिए यह व्रत स्त्रियां अपने संतान की दीर्घ आयु और स्वस्थ्य के लिए करती हैं।  संतान प्राप्ति के लिए भी महिलाएं हलषष्ठी का व्रत करती है।

ललही छठ व्रत का महत्‍व Lalahi Chhath Vrat Ka Mahattva - 
भगवती षष्ठी देवी शिशुओं की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। इनकी पूजा से संतान को दीर्घायु प्राप्त होती है साथ ही जिनके संतान नहीं होती उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। ये  मूल प्रकृति के छठे अंश से प्रकट हुई हैं जिस कारण इनका नाम षष्ठी देवी पड़ा है| भगवती षष्ठी देवी अपने योग के प्रभाव से शिशुओं के पास सदा वृद्धमाता के रूप में अप्रत्यक्ष रुप से विद्यमान रहती हैं, ये इनकी यानि शिशुओं की रक्षा करने के साथ-साथ इनका भरण-पोषण भी करती हैं। ये देवी बच्चों को स्वप्न में कभी रुलाती हैं, कभी हंसाती हैं, कभी खिलाती हैं तो कभी दुलार करती हैं। कहा जाता है कि जन्म के छठे दिन जो छठी मनाई जाती हैं वो इन्हीं षष्ठी देवी की ही पूजा की जाती है। अपने पति की रक्षा और आरोग्य जीवन के लिए स्त्रियां मां गौरी की पूजा भी करती हैं और उन्हें सुहाग का समान चढ़ाती हैं। 

ललही छठ व्रत कथा Lalahi Chhath Vrat Katha 


एक समय की बात है। किसी गॉंव में एक ग्वालिन रहती थी। उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था। एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा।

यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई। वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया।

वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया।

उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान खेत जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया।

इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने तुरन्‍त झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया। 

कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है।

वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध भैंस का बताकर न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती। अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों के सामने सच स्‍वीकार करके प्रायश्चित करना चाहिए।

ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था। वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर दया करके उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया।

बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है। तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया ।

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सभी प्रेम से बोलो ललही माता की जय 
हलछठ माता की जय
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