सोमवार, 28 मार्च 2022

जय वैष्णवी माता || Jay Vaishnavi Mata || Vaishno Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi

जय वैष्णवी माता || Jay Vaishnavi Mata || Vaishno Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi 

जय वैष्णवी माता,

मैया जय वैष्णवी माता ।

हाथ जोड़ तेरे आगे,

आरती मैं गाता ॥

।। मैया जय वैष्णवी माता ।।

 **

शीश पे छत्र विराजे,

मूरतिया प्यारी ।

गंगा बहती चरनन,

ज्योति जगे न्यारी ॥

।। मैया जय वैष्णवी माता ।।

 **

ब्रह्मा वेद पढ़े नित द्वारे,

शंकर ध्यान धरे ।

सेवक चंवर डुलावत,

नारद नृत्य करे ॥

।। मैया जय वैष्णवी माता ।।

 **

सुन्दर गुफा तुम्हारी,

मन को अति भावे ।

बार-बार देखन को,

ऐ माँ मन चावे ॥

।। मैया जय वैष्णवी माता ।।

 **

भवन पे झण्डे झूलें,

घंटा ध्वनि बाजे ।

ऊँचा पर्वत तेरा,

माता प्रिय लागे ॥

।। मैया जय वैष्णवी माता ।।

 **

पान सुपारी ध्वजा नारियल,

भेंट पुष्प मेवा ।

दास खड़े चरणों में,

दर्शन दो देवा ॥

।। मैया जय वैष्णवी माता ।।

 **

जो जन निश्चय करके,

द्वार तेरे आवे ।

उसकी इच्छा पूरण,

माता हो जावे ॥

।। मैया जय वैष्णवी माता ।।

 **

इतनी स्तुति निश-दिन,

जो नर भी गावे ।

कहते सेवक ध्यानू,

सुख सम्पत्ति पावे ॥

 **

जय वैष्णवी माता,

मैया जय वैष्णवी माता ।

हाथ जोड़ तेरे आगे,

आरती मैं गाता ॥

**

 

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नमो: नमो: वैष्णो वरदानी || Namo Namo Vaishno Vardani || Shri Vaishno Mata Chalisa Lyrics in Hindi

नमो: नमो: वैष्णो वरदानी || Namo Namo Vaishno Vardani || Shri Vaishno Mata Chalisa Lyrics in Hindi

।। दोहा ।।

गरुड़ वाहिनी वैष्णवी

त्रिकुटा पर्वत धाम

काली, लक्ष्मी, सरस्वती,

शक्ति तुम्हें प्रणाम।

 

।। चौपाई ।।

नमो: नमो: वैष्णो वरदानी,

कलि काल मे शुभ कल्याणी।

मणि पर्वत पर ज्योति तुम्हारी,

पिंडी रूप में हो अवतारी॥


देवी देवता अंश दियो है,

रत्नाकर घर जन्म लियो है।

करी तपस्या राम को पाऊं,

त्रेता की शक्ति कहलाऊं॥


कहा राम मणि पर्वत जाओ,

कलियुग की देवी कहलाओ।

विष्णु रूप से कल्कि बनकर,

लूंगा शक्ति रूप बदलकर॥


तब तक त्रिकुटा घाटी जाओ,

गुफा अंधेरी जाकर पाओ।

काली-लक्ष्मी-सरस्वती मां,

करेंगी पोषण पार्वती मां॥


ब्रह्मा, विष्णु, शंकर द्वारे,

हनुमत, भैरों प्रहरी प्यारे।

रिद्धि, सिद्धि चंवर डुलावें,

कलियुग-वासी पूजत आवें॥


पान सुपारी ध्वजा नारीयल,

चरणामृत चरणों का निर्मल।

दिया फलित वर मॉ मुस्काई,

करन तपस्या पर्वत आई॥


कलि कालकी भड़की ज्वाला,

इक दिन अपना रूप निकाला।

कन्या बन नगरोटा आई,

योगी भैरों दिया दिखाई॥


रूप देख सुंदर ललचाया,

पीछे-पीछे भागा आया।

कन्याओं के साथ मिली मॉ,

कौल-कंदौली तभी चली मॉ॥


देवा माई दर्शन दीना,

पवन रूप हो गई प्रवीणा।

नवरात्रों में लीला रचाई,

भक्त श्रीधर के घर आई॥


योगिन को भण्डारा दीनी,

सबने रूचिकर भोजन कीना।

मांस, मदिरा भैरों मांगी,

रूप पवन कर इच्छा त्यागी॥


बाण मारकर गंगा निकली,

पर्वत भागी हो मतवाली।

चरण रखे आ एक शीला जब,

चरण-पादुका नाम पड़ा तब॥


पीछे भैरों था बलकारी,

चोटी गुफा में जाय पधारी।

नौ मह तक किया निवासा,

चली फोड़कर किया प्रकाशा॥


आद्या शक्ति-ब्रह्म कुमारी,

कहलाई माँ आद कुंवारी।

गुफा द्वार पहुँची मुस्काई,

लांगुर वीर ने आज्ञा पाई॥


भागा-भागा भैंरो आया,

रक्षा हित निज शस्त्र चलाया।

पड़ा शीश जा पर्वत ऊपर,

किया क्षमा जा दिया उसे वर॥


अपने संग में पुजवाऊंगी,

भैंरो घाटी बनवाऊंगी।

पहले मेरा दर्शन होगा,

पीछे तेरा सुमिरन होगा॥


बैठ गई मां पिंडी होकर,

चरणों में बहता जल झर झर।

चौंसठ योगिनी-भैंरो बर्वत,

सप्तऋषि आ करते सुमरन॥


घंटा ध्वनि पर्वत पर बाजे,

गुफा निराली सुंदर लागे।

भक्त श्रीधर पूजन कीन,

भक्ति सेवा का वर लीन॥


सेवक ध्यानूं तुमको ध्याना,

ध्वजा व चोला आन चढ़ाया।

सिंह सदा दर पहरा देता,

पंजा शेर का दु:ख हर लेता॥


जम्बू द्वीप महाराज मनाया,

सर सोने का छत्र चढ़ाया।

हीरे की मूरत संग प्यारी,

जगे अखण्ड इक जोत तुम्हारी॥


आश्विन चैत्र नवरात्रे आऊं,

पिण्डी रानी दर्शन पाऊं।

सेवक 'कमल' शरण तिहारी,

हरो वैष्णो विपत हमारी॥

 

।। दोहा ।।

कलियुग में महिमा तेरी,

है मां अपरंपार।

धर्म की हानि हो रही,

प्रगट हो अवतार।।

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जय वैष्णवी माता || Jay Vaishnavi Mata || Vaishno Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi 

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शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

शरद पूर्णिमा व्रत की कथा || पूर्णमासी व्रत कथा || Sharad Purnima Vrat Ki Katha || Purnmaasi Vrat Katha || Lyrics in Hindi

शरद पूर्णिमा व्रत की कथा || पूर्णमासी व्रत कथा || Sharad Purnima Vrat Ki Katha || Purnmaasi Vrat Katha || Lyrics in Hindi



आश्विन मास की पूर्णिमा ही शरद पूर्णिमा कहलाती हैं। इसे 'रास पूर्णिमा' भी कहा जाता है। धर्म शास्त्रों में इस दिन 'कोजागर व्रत' माना गया है। इसी को 'कौमुदी व्रत' भी कहते हैं। ज्योतिष मान्यता के अनुसार संपूर्ण वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा षोडश यानि 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है।

रासोत्सव का यह दिन वास्तव में भगवान श्री कृष्ण ने जगत की भलाई के लिए निर्धारित किया है, माना जाता है कि इस रात को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है। 

मान्यता है कि घर में सुख-समृद्धि के लिए इस दिन सुहागिन महिलाओं को भोजन कराने के अलावा सूर्यास्त से पहले कुछ भेंट भी देनी चाहिए। इस दिन सूर्यास्त के बाद बालों में कंघी करना या अग्नि पर तवा चढ़ाना शुभ नहीं माना जाता।

मान्यता के अनुसार इसी दिन श्रीकृष्ण को 'कार्तिक स्नान' करते समय स्वयं (कृष्ण) को पति के रूप में प्राप्त करने की कामना से देवी पूजन करने वाली कुमारियों को दिए वरदान की याद आई थी और उन्होंने मुरलीवादन करके यमुना के तट पर गोपियों के संग रास रचाया था।

इस दिन मंदिरों में विशेष सेवा-पूजन किया जाता है। इस दिन प्रात:काल स्नान करके आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करके आवाहन, आसन, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से उनका पूजन करना चाहिए।

रात्रि के समय गौदुग्ध (गाय के दूध) से बनी खीर में घर और चीनी मिलाकर अर्द्धरात्रि के समय भगवान को अर्पित (भोग लगाना)करनी चाहिए। पूर्ण चंद्रमा के आकाश के मध्य स्थित होने पर उनका पूजन करें और खीर का नैवेद्य अर्पित करके, रात को खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करना चाहिए साथ ही सबको इसका प्रसाद देना चाहिए।

पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुननी चाहिए। कथा सुनने से पहले एक लोटे में जल व गिलास में गेहूं, पत्ते के दोने में रोली और चावल रखकर कलश की वंदना करके दक्षिणा चढ़ाएं। फिर तिलक करने के बाद गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनें। फिर गेहूं के गिलास पर हाथ फेरकर पंडिताइन के पांव स्पर्श करके गेहूं का गिलास उन्हें दे दें। लोटे के जल का रात को चंद्रमा को अर्घ्य दें।

शरद पूर्णिमा से ही उत्सव और व्रत प्रारंभ हो जाता है। माताएं अपनी संतान की मंगल कामना से देवी-देवताओं का पूजन करती हैं। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत नजदीक आ जाता है। कार्तिक का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारंभ होता है। विवाह होने के बाद पूर्णिमा (पूर्णमासी) के व्रत का संकल्प शरद पूर्णिमा से लेना चाहिए।

शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ हरता है। इस दिन आकाश में नतो बादल होते हैं और न ही धूल-गुबार। इस राति में भ्रमण और चंद्रकिरणों का शरीर परपड़ना अत्यंत शुभ माना जाता है।

प्रति पूर्णिमा को व्रत करने वाले दस दिन भी चंद्रमा का पूजन करके भोजन करते हैं। इस दिन शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा का विधान है वहीं पूर्णिमा पर कार्तिक स्नान के साथ, राधा-दामोदर पूजन निय व्रत धारण करने का भी दिन है।

शरद पूर्णिमा की कथा:

एक साहूकार की दो पुत्रिया थीं। वे दोनों पूर्णिमासी का व्रत करती थीं। बड़ी बहन तो पूरा व्रत करती थी, लेकिन छोटी बहन अधूरा। छोटी बहन की जो भी संतान होती, वह जन्म लेते ही मर जाती। परंतु बड़ी बहन की सारी संताने जीवित रहतीं। एक दिन छोटी बहन ने बड़े बड़े पंडितों को बुलाकर अपना दुख बताया और उनसे इसका कारण पूछा।

इस पर पंडितों ने बताया कि तुम पूर्णिमा का अधूराव्रत करती हो, इसलिए तुम्हारे संतानों की अकाल मृत्यु हो जाती है। पूर्णिका का विधिपूर्वक पूर्ण व्रत करने से तुम्हारी संतानें जीवित रहा करेंगी।

तब उसने पंडितों की आज्ञा मानकर विधि-विधान से पूर्णमासी का व्रत किया। कुछ समय बाद उसका एक लड़का हुआ, लेकिन वह भी शीघ्र ही मर गया। तब उसके लड़कों को पीढे पर लेटाकर उसके उपर कपड़ा ढक दिया।

फिर उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और उसे वहीं पीढ़ा बैठने को दे दिया। जब बड़ी बहन उस पर बैठने लगी तो उसके वस्त्र बच्चे को छूते ही लड़का जीवित होकर रोने लगा। तब क्रोधित होकर बड़ी बहन बोली, तू मुझ पर कलंक लगाना चाहती थी। यदि में बैठ जाती तो लड़का मर जाता।

तब छोटी बहन बोली यह तो पहले से ही मरा हुआ था। तेरे भाग्य से जीवित हुआ है। हम दोनों बहनें पूर्णिमा का व्रत करती हैं। तू पूरा करती है और मैं अधूरा, जिसके दोष से मेरी संतानें मर जाती हैं। लेकिन तेरे पुण्य से यह बालक जीवित हुआ है।

इसके बाद उसने पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि आज से सभी पूर्णिमा का पूरा व्रत करें, यह संतान सुख देने वाला है।

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बुधवार, 19 जनवरी 2022

श्री दुर्गाष्टकम् || Shri Durga Astakam || कात्यायनि महामाये || Katyayani MahaMaye || Shri Durga Mata Stuti || Lyrics in Hindi and Samskrit

श्री दुर्गाष्टकम् || Shri Durga Astakam || कात्यायनि महामाये || Katyayani MahaMaye || Shri Durga Mata Stuti || Lyrics in Hindi and Samskrit 



कात्यायनि महामाये खड्गबाणधनुर्धरे । 

खड्गधारिणि चण्डि दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते ।।१।।


वसुदेवसुते कालि वासुदेवसहोदरी ।

वसुन्धराश्रिये नन्दे दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते ।।२।।


योगनिद्रे महानिद्रे योगमाये महेश्वरी ।

योगसिद्धिकरी शुद्धे दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते ।।३।। 


शङ्खचक्रगदापाणे शार्ङ्गज्यायतबाहवे । 

पीताम्बरधरे धन्ये दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते ।।४।।


ऋग्यजुस्सामाथर्वाणश्चतुस्सामन्तलोकिनी । 

ब्रह्मस्वरूपिणि ब्राह्मि दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते ।।५।।


वृष्णीनां कुलसम्भूते विष्णुनाथसहोदरी । 

वृष्णिरूपधरे धन्ये दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते ।।६।।


सर्वज्ञे सर्वगे शर्वे सर्वेशे सर्वसाक्षिणी । 

सर्वामृतजटाभारे दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते ।।७।।


अष्टबाहु महासत्त्वे अष्टमी नवमी प्रिये । 

अट्टहासप्रिये भद्रे दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते ।।८।।


दुर्गाष्टकमिदं पुण्यं भक्तितो यः पठेन्नरः । 

सर्वकाममवाप्नोति दुर्गालोकं स गच्छति ।।९।।


इति श्री दुर्गाष्टकम् ।

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सोमवार, 3 जनवरी 2022

सर्वदेव पूजा || Sarvadev Puja || Sarva Dev Puja Padhati || Shri Satyanarayan Sarva Dev Puja Vidhi || Lyrics in Hindi

 सर्वदेव पूजा || Sarvadev Puja || Sarva Dev Puja Padhati || Shri Satyanarayan Sarva Dev Puja Vidhi || Lyrics in Hindi 


श्री गणेश


जय गणनायक सिद्धि विनायक 

मंगलदायक मोक्ष प्रदाता। 

हो तुम ही सबके शुभदायक 

कष्ट हरो हे भाग्य विधाता ।। 

ऋद्धि औ सिद्धि के स्वामी तुम ही हो 

पिता शुभ-लाभ के भवदाता। 

छोड़ के गोदि माँ गौरी की आओ 

तुम्हे आज भक्त तुम्हारा बुलाता।।



वन्दहु शम्भु भवानी के नन्दन, 

आनन्द कन्द निकन्द पति जै।

दीनन दायक ऋद्धि वा सिद्धि के, 

हे गणनायक मो पे पसीजै।। 

बुद्धि के दाता गजानन आनन, 

मोरी कुबुद्धि सुबुद्धि करीजै।

मूषक वाहन छाड़ि विनायक, 

पूजा में आयके आसन कीजै ।।

जय गणनायक सिद्धि विनायक, 

मंगल दायक मोक्ष प्रदाता।

हो तुमही सबके शुभदायक, 

कष्ट हरो हे भाग्यविधाता।। 

ऋद्धि औ सिद्धि के स्वामी तुम्ही हो, 

पिता शुभलाभ के हे भवदाता। 

छोड़ के गोदी माँ गौरी की आओ, 

तुम्हे आज भक्त तुम्हारा बुलाता।


चतुःषष्ठि योगिनी



ज्ञान की दायिनी बुद्धि प्रदायिनी, 

दूर करो मन का अंधियारा।

मूढ़ हूँ मैं असहाय हूँ मै, 

जननी ममता का माँ दे दो सहारा।। 

मातु कृपा करि कष्ट हरो, 

अपराध विसार के आज हमारा।

देवी तुम्हारी करूँ विनती, 

शरणागत है यह पुत्र तुम्हारा।।


गंगाजी


हे भय हारिणि हे भवतारिणि 

शोक विनासिनी पावनि गंगा। 

शंभुजटा में विराज रही 

शुभदायिनी मोक्ष प्रदायिनी गंगा।।

भागिरथी जननी जन की 

शुचि अमृत धार प्रवाहिनि गंगा। 

कष्ट हरो दुःख दूर करो, 

शुभ दायिनि हे वर दायिनि गंगा।।


वास्तु पुरुष श्री हनुमान जी 


जय रघुनन्दन है सत बन्दन,

भाल पे चन्दन की छविन्यारी।

सिय के कन्त प्रभु हनुमन्त 

कृपा करि के सुधि लीजै हमारी।। 

भक्‍तों की कामना पूर्ण करें, 

तो आज हमारी भी आयी है बारी। 

राम का नाम जपें जी सदा, 

कट जाते हैं संकट भारी से भारी।।


वरुण देव


वास करहिं मुख में लक्ष्मीपति, 

कण्ठ में वास करें त्रिपुरारी। 

मूल में ब्रह्मा निवास करें, 

मध्य में माताएं मंगलकारी।।

सागर द्विप नदी वसुधा, 

सब तीरथ वेद भी है शुभकारी। 

हे वरुण देव विराजो यहाँ, 

दुःख दूर करो विनती है हमारी।।


श्री विष्णु ध्यानम्


हाथ में चक्र रहे जिनके 

अरु शेष की शय्या विराज रहे हैं। 

भक्त का मान सदा रखते 

निज भक्त का भाव निहार रहे हैं।। 

ध्यान करें जो सदा इनका 

उसकी मनसा को सवाँर रहे हैं। 

हे शालिग्राम ! हे विष्णु चतुर्भुज ! 

आपको भक्त पुकार रहे हैं।।


क्षेत्रपाल ध्यानम्


यज्ञ की रक्षा करें जो सदा, 

और काशी के कोतवाल कहाते। 

भक्तों की कामना पूर्ण करें, 

माता वैष्णों के धाम की शोभा बढ़ाते।। 

कष्ट अमंगल दूर करें, 

कर जोरि के आज है शीश नवाते। 

हे अष्ट भैरव सुनो विनती 

हो के आतुर भक्त तुम्हारे बुलाते ।।


नवग्रह ध्यानम्


सूर्य हरें तम कष्ट करें कम, 

चन्द्र बड़े मुद मंगलकारी। 

बुद्धि पवित्र करे बुध नित्य, 

बढ़ावत ज्ञान गुरु सुखकारी।। 

सुचि शुक्र सदैव करे, 

शनि शोक हरें रवि दृष्टि निहारी। 

राहु रहें गति, केतु करें मति, 

दिव्य नवग्रह सोहत भारी।।


शिव जी ध्यानम्


शीश पे गंगा है कण्ठ भुजंगा 

हे कोटि अनंग लजावन वाले। 

हाथ त्रिशूल है नाशक शूल 

वही डमरू के बजावन वाले।। 

मृगछाल सुशोभित है कटि पे 

और भक्त की लाज बचावन वाले। 

शंकर की महिमा है अपार 

ये दानी बड़े हैं बड़े भोले भाले।।


श्री देवी जी ध्यानम्


शक्ति स्वरूपा सुमंगलकारिणी, 

काज सवाँरती हो सबके माँ।

होति कृपा जो तुम्हारी रहे तो, 

बने सब काज न देर लगे माँ।।

सीता ने पूजा तुम्हारी किया तो 

प्रसन्न हुई वर राम मिले माँ।

मेरी भी कामना पूर्ण करो, 

मातु गौरी हमारा भी कष्ट हरो माँ।।


षोडश मातृका


गणनाथ के साथ उमा पदमा, 

शचि मेधा कृपा करि दीजे सहारा।

सावित्री विजया और जया, 

देवसेना स्वधा करुणामय धारा।।

स्वाहा स्वधा लोकमाता धृति, 

शुचि पुष्टि व तुष्टि हरौ महि भारा।

आत्मानः कुलदेवता है षोडश, 

पूर्ण करो शुभ काम हमारा।।


सप्तघृत मातृका


सातहुं विन्दु पे सातहुं माता,

श्री लक्ष्मी धृति मेधा जी आओ।

स्वाहा सुप्रभा सरस्वती मातु, 

हमें भय सिंधु से पार लगाओ।। 

है बसुधारा सदा वसुधा 

तल पे करुणामय धार बहाओ। 

पूजा में आय सनाथ करो मॉं

भक्त के माथे माँ हाथ लगाओ।।

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