मंगलवार, 23 नवंबर 2021

आरति श्री कुण्‍डेश्‍वर हर की || Aarti Shri Kundeshwar har Ki || Shiv Stuti || Kundeshwar Dham Tikamgarh

आरति श्री कुण्‍डेश्‍वर हर की || Aarti Shri Kundeshwar har Ki || Shiv Stuti || Kundeshwar Dham Tikamgarh


श्री कुण्‍डेश्‍वर धाम || Shri Kundeshwar Dham Tikamgarh

श्री कुण्‍डेश्‍वर धाम मध्‍यप्रदेश के टीकमगढ़ मुख्‍यालय से ललितपुर जाने वाले मार्ग पर लगभग 6 किमी दूर स्थित एक अति प्राचीन एवं पौराणिक तीर्थस्‍थल है। यह पवित्र स्‍थल विन्‍ध्‍य पर्वत की श्रेणियों पर जमड़ार नदी के तट पर स्थित है। टीकमगढ़ मुख्‍यालय सड़क मार्ग एवं रेलमार्ग के द्वारा सागर, छतरपुर, जबलपुर, दमोह, झॉंसी, ललितपुर तथा झॉंसी होते हुए प्रयागराज से जुड़ा हुआ है। ओरछा के प्रसिद्ध श्री रामराज मन्दिर से यह मात्र 100 किमी की दूरी पर स्थित है और श्री रामराजा मन्दिर के मुख्‍य द्वार से ही टीकमगढ़ के लिए बस सेवा उपलब्‍ध है। टीकमगढ़ मुख्‍यालय से मन्दिर जाने के लिए अनेक तरह के वाहन उपलब्‍ध रहते हैं। मन्दिर की देखरेख हेतु एक लोकन्‍यास की स्‍थापना की गयी है जो कि श्री श्री 108 श्री आशुतोश अपर्णा धर्म सेतु के नाम से श्री कुण्‍डेश्‍वर महादेव की सेवा में सतत तत्‍पर है। आप जब भी ओरछा पधारें तो श्री कुण्‍डेश्‍वर महादेव के दर्शन का लाभ ले सकते हैं। मन्दिर प्रबन्‍धन की ओर से यात्रियों के ठहरने की व्‍यवस्‍था भी मन्दिर प्रबन्‍धन द्वारा की जाती है। मन्दिर परिसर में स्थित कार्यालय में सम्‍पर्क करके समस्‍त सुविधाओं का लाभ लिया जा सकता है। इस मन्दिर में प्रतिदिन भगवान भोले नाथ की अनेकों प्रकार से स्‍तुति एवं अभिषेक किया जाता है उनमें से एक मंगल आरती यहॉं प्रस्‍तुत की जा रही है। ऐसा बताया गया कि इस आरती की रचना ओरछा राजपरिवार के राजगुरु पं० कपिलदुव तैलंग जी के द्वारा की गयी है-



आरति श्री कुण्‍डेश्‍वर हर की।

आरति विमल चन्‍द्रशेखर की।।


शैल सुता वामांग विराजें।

नन्‍दीश्‍वर गणपति शुभ साजें।

अनुपम छवि कामादिक लाजें।

शूलपाणि पशुपति शिव हर की।

आरति श्री कुण्‍डेश्‍वर हर की।।


गंगा सम जमड़ार वहति है।

कल-कल मिस कल कीर्ति कहति है।

दर्शन कर सुख शान्ति मिलत‍ि है।

शोभा ललित कलानिधि हर की।

आरति श्री कुण्‍डेश्‍वर हर की।।


स्‍वयं प्रकट अद्भुत छवि धारी।

महिमा अमित अतुल सुखकारी।

अर्चन भजन सकल अघहारी।

जय-जय मान-दान श्री हर की।

आरति श्री कुण्‍डेश्‍वर हर की।।


सभी प्रेम से बोलो कुण्‍डेश्‍वर महादेव की जय।

सोमवार, 22 नवंबर 2021

जानकी जी की स्‍तुति || Janki Ji Ki Stuti || भइ प्रगट किशोरी || Bhai Prakat Kishori || Sita Mata Ki Stuti

जानकी जी की स्‍तुति || Janki Ji Ki Stuti ||  भइ प्रगट किशोरी || Bhai Prakat Kishori || Sita Mata Ki Stuti 

भइ प्रगट किशोरी,

धरनि निहोरी,

जनक नृपति सुखकारी।


अनुपम बपुधारी,

रूप सँवारी,

आदि शक्ति सुकुमारी।


मनि कनक सिंघासन,

कृतवर आसन,

शशि शत शत उजियारी।


शिर मुकुट बिराजे,

भूषन साजे,

नृप लखि भये सुखारी।


सखि आठ सयानी,

मन हुलसानी,

सेवहिं शील सुहाई।


नरपति बड़भागी,

अति अनुरागी,

अस्तुति कर मन लाई।


जय जय जय सीते,

श्रुतिगन गीते,

जेहिं शिव शारद गाई।


सो मम हित करनी,

भवभय हरनी,

प्रगट भईं श्री आई।


नित रघुवर माया,

भुवन निकाया,

रचइ जासु रुख पाई।


सोइ अगजग माता,

निज जनत्राता,

प्रगटी मम ढिग आई।


कन्या तनु लीजै,

अतिसुख दीजै,

रुचिर रूप सुखदाई।


शिशु लीला करिये,

रुचि अनुसरिये,

मोरि सुता हरषाई।


सुनि भूपति बानी,

मन मुसुकानी,

बनी सुता शिशु सीता।


तब रोदन ठानी,

सुनि हरषानी,

रानी परम बिनीता।


लिये गोद सुनैना,

जल भरि नैना,

नाचत गावत गीता।


यह सुजस जे गावहिं,

श्रीपद पावहिं,

ते न होहिं भव भीता।


दोहा

रामचन्द्र सुख करन हित,

प्रगटि मख महि सीय।


"गिरिधर" स्वामिनि जग जननि,

चरित करत कमनीय।।


जनकपुर जनकलली जी की जय

अयोध्या रामजी लला की जय

(समस्‍त चित्र गूगल से साभार)

शुक्रवार, 12 नवंबर 2021

श्री भागवत जी की आरती || आरती अतिपावन पुराण की || Shri Bhagwat Ji Ki Aarti || Aarti Ati Pawan Puran Ki ||

श्री भागवत जी की आरती || आरती अतिपावन पुराण की || Shri Bhagwat Ji Ki Aarti || Aarti Ati Pawan Puran Ki || 



आरती अतिपावन पुराण की।

धर्म भक्ति विज्ञान खान की।।


महापुराण भागवत निर्मल।

शुक-मुख-विगलित निगम-कल्प-फल।।

परमानन्द-सुधा रसमय फल।

लीला रति रस रसिनधान की।।

आरती अतिपावन पुराण की।

धर्म भक्ति विज्ञान खान की।।


कलिमल मथनि त्रिताप निवारिणी।

जन्म मृत्युमय भव भयहारिणी ।।

सेवत सतत सकल सुखकारिणी।

सुमहौषधि हरि चरित गान की।।

आरती अतिपावन पुराण की।

धर्म भक्ति विज्ञान खान की।।


विषय विलास विमोह विनाशिनी।

विमल विराग विवेक विनाशिनी।।

भागवत तत्व रहस्य प्रकाशिनी।

परम ज्योति परमात्मा ज्ञान को।।

आरती अतिपावन पुराण की।

धर्म भक्ति विज्ञान खान की।।


परमहंस मुनि मन उल्लासिनी।

रसिक ह्रदय रस रास विलासिनी।।

भुक्ति मुक्ति रति प्रेम सुदासिनी।

कथा अकिंचन प्रिय सुजान की।।

आरती अतिपावन पुराण की।

धर्म भक्ति विज्ञान खान की।।

गुरुवार, 11 नवंबर 2021

श्रीकाशीविश्वनाथाष्टकम् || Shri Kashi Vishwanathashtakam || Lord Shiv Stuti || गङ्गातरंगरमणीयजटाकलापं || Gangatarangramniyaratakalapam

श्रीकाशीविश्वनाथाष्टकम् || Shri Kashi Vishwanathashtakam || Lord Shiv Stuti || गङ्गातरंगरमणीयजटाकलापं || Gangatarangramniyaratakalapam

(श्री काशी विश्‍वनाथ जी, वाराणसी, उ०प्र०)

गङ्गातरंगरमणीयजटाकलापं

गौरीनिरन्तरविभूषितवामभागम् ।

नारायणप्रियमनंगमदापहारं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥१॥


वाचामगोचरमनेकगुणस्वरूपं

वागीशविष्णुसुरसेवितपादपीठम् ।

वामेनविग्रहवरेणकलत्रवन्तं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥२॥


भूताधिपं भुजगभूषणभूषितांगं

व्याघ्राजिनांबरधरं जटिलं त्रिनेत्रम् ।

पाशांकुशाभयवरप्रदशूलपाणिं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥३॥


शीतांशुशोभितकिरीटविराजमानं

भालेक्षणानलविशोषितपंचबाणम् ।

नागाधिपारचितभासुरकर्णपूरं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥४॥


पंचाननं दुरितमत्तमतङ्गजानां

नागान्तकं दनुजपुंगवपन्नगानाम् ।

दावानलं मरणशोकजराटवीनां

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥५॥


तेजोमयं सगुणनिर्गुणमद्वितीयं

आनन्दकन्दमपराजितमप्रमेयम् ।

नागात्मकं सकलनिष्कलमात्मरूपं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥६॥


रागादिदोषरहितं स्वजनानुरागं

वैराग्यशान्तिनिलयं गिरिजासहायम् ।

माधुर्यधैर्यसुभगं गरलाभिरामं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥७॥


आशां विहाय परिहृत्य परस्य निन्दां

पापे रतिं च सुनिवार्य मनः समाधौ ।

आदाय हृत्कमलमध्यगतं परेशं

वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥८॥


॥ फलश्रुति ॥

वाराणसीपुरपतेः स्तवनं शिवस्य

व्याख्यातमष्टकमिदं पठते मनुष्यः ।

विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं

सम्प्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम् ॥


विश्वनाथाष्टकमिदं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।

शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥

॥ इति श्रीमहर्षिव्यासप्रणीतं श्रीविश्वनाथाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

श्री काशी विश्‍वनाथ धाम गलियारा || Shri Kashi Vishwanath Corridor
तस्‍वीरें गूगल से साभार

बुधवार, 10 नवंबर 2021

श्री राम चालीसा || श्री रघुबीर भक्‍त हितकारी || राम भजन || shri Ram Chalisa || Shri Raghubeer Bhakt Hitkari || Ram Bhajan || Lyrics in Hindi Sanskrit

श्री राम चालीसा || श्री रघुबीर भक्‍त हितकारी || राम भजन || shri Ram Chalisa || Shri Raghubeer Bhakt Hitkari || Ram Bhajan || Lyrics in Hindi Sanskrit


॥ दोहा ॥

आदौ राम तपोवनादि गमनं हत्वाह् मृगा काञ्चनं।

वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव संभाषणं।।

बाली निर्दलं समुद्र तरणं लङ्कापुरी दाहनम्।

पश्चद्रावनं कुम्भकर्णं हननं एतद्धि रामायणं।।


॥ चौपाई ॥

श्री रघुबीर भक्त हितकारी ।

सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥१

निशि दिन ध्यान धरै जो कोई ।

ता सम भक्त और नहिं होई ॥२


ध्यान धरे शिवजी मन माहीं ।

ब्रह्मा इन्द्र पार नहिं पाहीं ॥३

जय जय जय रघुनाथ कृपाला ।

सदा करो सन्तन प्रतिपाला ॥४


दूत तुम्हार वीर हनुमाना ।

जासु प्रभाव तिहूँ पुर जाना ॥५

तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला ।

रावण मारि सुरन प्रतिपाला ॥६


तुम अनाथ के नाथ गोसाईं ।

दीनन के हो सदा सहाई ॥७

ब्रह्मादिक तव पार न पावैं ।

सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ॥८


चारिउ वेद भरत हैं साखी ।

तुम भक्तन की लज्जा राखी ॥९

गुण गावत शारद मन माहीं ।

सुरपति ताको पार न पाहीं ॥ १० ॥


नाम तुम्हार लेत जो कोई ।

ता सम धन्य और नहिं होई ॥११

राम नाम है अपरम्पारा ।

चारिहु वेदन जाहि पुकारा ॥१२


गणपति नाम तुम्हारो लीन्हों ।

तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हों ॥१३

शेष रटत नित नाम तुम्हारा ।

महि को भार शीश पर धारा ॥१४


फूल समान रहत सो भारा ।

पावत कोउ न तुम्हरो पारा ॥१५

भरत नाम तुम्हरो उर धारो ।

तासों कबहुँ न रण में हारो ॥१६


नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा ।

सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ॥१७

लषन तुम्हारे आज्ञाकारी ।

सदा करत सन्तन रखवारी ॥१८


ताते रण जीते नहिं कोई ।

युद्ध जुरे यमहूँ किन होई ॥१९

महा लक्ष्मी धर अवतारा ।

सब विधि करत पाप को छारा ॥२०॥


सीता राम पुनीता गायो ।

भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ॥२१

घट सों प्रकट भई सो आई ।

जाको देखत चन्द्र लजाई ॥२२


सो तुमरे नित पांव पलोटत ।

नवो निद्धि चरणन में लोटत ॥२३

सिद्धि अठारह मंगल कारी ।

सो तुम पर जावै बलिहारी ॥२४


औरहु जो अनेक प्रभुताई ।

सो सीतापति तुमहिं बनाई ॥२५

इच्छा ते कोटिन संसारा ।

रचत न लागत पल की बारा ॥२६


जो तुम्हरे चरनन चित लावै ।

ताको मुक्ति अवसि हो जावै ॥२७

सुनहु राम तुम तात हमारे ।

तुमहिं भरत कुल- पूज्य प्रचारे ॥२८


तुमहिं देव कुल देव हमारे ।

तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ॥२९

जो कुछ हो सो तुमहीं राजा ।

जय जय जय प्रभु राखो लाजा ॥३०॥


रामा आत्मा पोषण हारे ।

जय जय जय दशरथ के प्यारे ॥३१

जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा ।

निगुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा ॥३२


सत्य सत्य जय सत्य- ब्रत स्वामी ।

सत्य सनातन अन्तर्यामी ॥३३

सत्य भजन तुम्हरो जो गावै ।

सो निश्चय चारों फल पावै ॥३४


सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं ।

तुमने भक्तहिं सब सिद्धि दीन्हीं ॥३५

ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा ।

नमो नमो जय जापति भूपा ॥३६


धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा ।

नाम तुम्हार हरत संतापा ॥३७

सत्य शुद्ध देवन मुख गाया ।

बजी दुन्दुभी शंख बजाया ॥३८


सत्य सत्य तुम सत्य सनातन ।

तुमहीं हो हमरे तन मन धन ॥३९

याको पाठ करे जो कोई ।

ज्ञान प्रकट ताके उर होई ॥४०॥


आवागमन मिटै तिहि केरा ।

सत्य वचन माने शिव मेरा ॥

और आस मन में जो ल्यावै ।

तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ॥


साग पत्र सो भोग लगावै ।

सो नर सकल सिद्धता पावै ॥

अन्त समय रघुबर पुर जाई ।

जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥


श्री हरि दास कहै अरु गावै ।

सो वैकुण्ठ धाम को पावै ॥


॥ दोहा ॥

सात दिवस जो नेम कर पाठ करे चित लाय ।

हरिदास हरिकृपा से अवसि भक्ति को पाय ॥


राम चालीसा जो पढ़े रामचरण चित लाय ।

जो इच्छा मन में करै सकल सिद्ध हो जाय ॥