रविवार, 7 नवंबर 2021

दुर्गा स्तोत्र || Shri Durga Stotra || Durga Stotra Sanskrit / Hindi Lyrics || Devi Stotra for a prosperous life || जय भगवति देवि || Jaya Bhagawati Devi

दुर्गा स्तोत्र || Shri Durga Stotra || Durga Stotra Sanskrit / Hindi Lyrics || Devi Stotra for a prosperous life || जय भगवति देवि || Jaya Bhagawati Devi



जय भगवति देवि नमो वरदे 

जय पापविनाशिनि बहुफलदे।

जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे 

प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥१॥


जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे 

जय पावकभूषितवक्त्रवरे।

जय भैरवदेहनिलीनपरे 

जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥२॥


जय महिषविमर्दिनि शूलकरे 

जय लोकसमस्तकपापहरे।

जय देवि पितामहविष्णुनते 

जय भास्करशक्रशिरोवनते॥३॥


जय षण्मुखसायुधईशनुते 

जय सागरगामिनि शम्भुनुते।

जय दु:खदरिद्रविनाशकरे 

जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥४॥


जय देवि समस्तशरीरधरे 

जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे।

जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे 

जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥५॥


एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:।

गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥६॥

Ravivar Vrat || रविवार व्रत का महत्‍त्‍व || Ravivar Vrat ka Mahattva|| कैसे करें पूजा || Ravivar Puja Vrat Katha|| Surya Gayatri || lSurya yantra || सूर्यदेव की आरती एवं व्रतकथा का फल जय जय जय रविदेव भक्‍त बुढि़या की कहानी

Ravivar Vrat || रविवार व्रत का महत्‍त्‍व || Ravivar Vrat ka Mahattva|| कैसे करें पूजा || Ravivar Puja Vrat Katha|| Surya Gayatri || lSurya yantra || सूर्यदेव की आरती एवं व्रतकथा का फल जय जय जय रविदेव भक्‍त बुढि़या की कहानी




रविवार के दिन सूर्य देव की पूजा का विधान है। यह व्रत करने से जीवन में सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति और शत्रुओं से सुरक्षा मिलती है। सूर्यदेव का को प्रसन्‍न करने के लिए रविवार का व्रत करने व कथा सुनने से भक्‍तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं साथ ही मान-सम्मान, धन-यश तथा उत्तम स्वास्थ्य मिलता है।

रविवार व्रत की पूजन विधि :-

** यह व्रत व्रत एक वर्ष या 30 रविवारों तक अथवा 12 रविवारों तक करने का संकल्‍प लेकर प्रारम्‍भ करना चाहिए। 

** रविवार को सूर्योदय से पूर्व बिस्तर से उठकर शौच व स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ लाल रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए।

** इसके बाद किसी पवित्र एवं स्‍वच्‍छ स्थान पर भगवान सूर्य की स्वर्ण निर्मित मूर्ति या चित्र स्थापित करें। घर में एक स्‍थान ऐसा बना लें जहॉं स्‍वच्‍छता हो और नियमित पूजा की जा सकती हो।

** इसके बाद विधि-विधान से धूप, दीप, नैवेद्य, गंध-पुष्पादि से भगवान सूर्य का पूजन करना चाहिए। 

** पूजन के बाद व्रतकथा पढ़नी या सुननी चाहिए।

** व्रतकथा के पश्‍चात भगवान सूर्य देव की आरती करनी चाहिए।

** इसके उपरान्‍त सूर्य भगवान का स्मरण करते हुए 'ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:' इस मंत्र का 12 या 5 या 3 माला जप करें। यथाशक्ति एवं समय के अनुसार आप जप माला की संख्‍या बढ़ा या घटा सकते हैं। माला जप के पूर्व माला जप का संकल्‍प अवश्‍यक करें। संकल्‍प के लिए हाथ में कुश, अक्षत और जल लेकर भगवान सूर्यदेव का ध्‍यान करते हुए मनवांछित अभिलाषा की पूर्ति हेतु जप करने का संकल्‍प लें और जल को पृथ्‍वी पर छोड़ दें। यह प्रक्रिया प्रत्‍येक बार दोहरायें। 

** जप के बाद शुद्ध जल, रक्त चंदन (रोली), अक्षत (चावल के सबूत दाने), लाल पुष्प और दूर्वा(दूब) से सूर्य को अर्घ्य दें।

** इस दिन सात्विक भोजन व फलाहार करें। भोजन में गेहूं की रोटी, दलिया, दूध, दही, घी और चीनी खा सकते हैं। नमक का परहेज करें। 

रविवार व्रत की पौराणिक कथा || Ravivar Vrat ki Pauranik Katha-

प्राचीन काल में एक बुढ़िया रहती थी। वह नियमित रूप से रविवार का व्रत करती थी। रविवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर बुढ़िया स्नानादि से निवृत्त होकर अपने आंगन को गोबर से लीपकर स्वच्छ करती थी, उसके बाद सूर्य भगवान की पूजा करते हुए रविवार व्रत कथा सुनकर सूर्य भगवान का भोग लगाकर दिन में एक समय भोजन करती थी। सूर्य भगवान की अनुकंपा से बुढ़िया को किसी प्रकार की चिंता एवं कष्ट नहीं था। धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य से भर रहा था।


उस बुढ़िया को सुखी होते देख उसकी पड़ोसन उससे जलने लगी। बुढ़िया ने कोई गाय नहीं पाल रखी थी। अतः वह अपनी पड़ोसन के आंगन में बंधी गाय का गोबर ले आती थी। पड़ोसन ने कुछ सोचकर अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया। रविवार को गोबर न मिलने से बुढ़िया अपना आंगन नहीं लीप सकी। आंगन न लीप पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को भोग नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया। सूर्यास्त होने पर बुढ़िया भूखी-प्यासी सो गई।


प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उस बुढ़िया की आंख खुली तो वह अपने घर के आंगन में सुंदर गाय और बछड़े को देखकर हैरान हो गई। गाय को आंगन में बांधकर उसने जल्दी से उसे चारा लाकर खिलाया। पड़ोसन ने उस बुढ़िया के आंगन में बंधी सुंदर गाय और बछड़े को देखा तो वह उससे और अधिक ईर्ष्‍या करने लगी। तभी गाय ने सोने का गोबर किया। गोबर को देखते ही पड़ोसन की आंखें फट गईं।


पड़ोसन ने उस बुढ़िया को आसपास न पाकर तुरंत उस गोबर को उठाया और अपने घर ले गई तथा अपनी गाय का गोबर वहां रख आई। सोने के गोबर से पड़ोसन कुछ ही दिनों में धनवान हो गई। गाय प्रति दिन सूर्योदय से पूर्व सोने का गोबर किया करती थी और बुढ़िया के उठने के पहले पड़ोसन उस गोबर को उठाकर ले जाती थी।


बहुत दिनों तक बुढ़िया को सोने के गोबर के बारे में कुछ पता ही नहीं चला। बुढ़िया पहले की तरह हर रविवार को भगवान सूर्यदेव का व्रत करती रही और कथा सुनती रही। लेकिन सूर्य भगवान को जब पड़ोसन की चालाकी का पता चला तो उन्होंने तेज आंधी चलाई। आंधी का प्रकोप देखकर बुढ़िया ने गाय को घर के भीतर बांध दिया। सुबह उठकर बुढ़िया ने सोने का गोबर देखा उसे बहुत आश्चर्य हुआ।


उस दिन के बाद बुढ़िया गाय को घर के भीतर बांधने लगी। सोने के गोबर से बुढ़िया कुछ ही दिन में बहुत धनी हो गई। उस बुढ़िया के धनी होने से पड़ोसन बुरी तरह जल-भुनकर राख हो गई और उसने अपने पति को समझा-बुझाकर उसे नगर के राजा के पास भेज दिया। सुन्‍दर गाय को देखकर राजा बहुत खुश हुआ। सुबह जब राजा ने सोने का गोबर देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा।


उधर सूर्य भगवान को भूखी-प्यासी बुढ़िया को इस तरह प्रार्थना करते देख उस पर बहुत करुणा आई। उसी रात सूर्य भगवान ने राजा को स्वप्न में कहा, राजन, बुढ़िया की गाय व बछड़ा तुरंत लौटा दो, नहीं तो तुम पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ेगा। तुम्हारा राज-पाट नष्ट हो जाएगा। सूर्य भगवान के स्वप्न से बुरी तरह भयभीत राजा ने प्रातः उठते ही अपने मंत्रियों से मंत्रणा करके गाय और बछड़ा बुढ़िया को लौटा दिया।


राजा ने बहुत-सा धन देकर बुढ़िया से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी। राजा ने पड़ोसन और उसके पति को उनकी इस दुष्टता के लिए दंड दिया। फिर राजा ने पूरे राज्य में घोषणा कराई कि सभी स्त्री-पुरुष रविवार का व्रत किया करें। रविवार का व्रत करने से सभी लोगों के घर धन-धान्य से भर गए, राज्‍य  में चारों ओर खुशहाली छा गयी। स्त्री-पुरुष सुखी जीवन यापन करने लगे तथा सभी लोगों के शारीरिक कष्ट भी दूर हो गए।


||श्री सूर्य यन्‍त्र|| 

।।श्री सूर्य देव की आरती।। Shri Surya Dev Ki Aarti


जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव।

जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥


रजनीपति मदहारी, शतदल जीवनदाता।

षटपद मन मुदकारी, हे दिनमणि दाता॥


जग के हे रविदेव, जय जय जय रविदेव।

जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥


नभमंडल के वासी, ज्योति प्रकाशक देवा।

निज जन हित सुखरासी, तेरी हम सबें सेवा॥


करते हैं रविदेव, जय जय जय रविदेव।

जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥


कनक बदन मन मोहित, रुचिर प्रभा प्यारी।

निज मंडल से मंडित, अजर अमर छविधारी॥


हे सुरवर रविदेव, जय जय जय रविदेव।

जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव॥


।।श्री रविवार की आरती।। Shri Ravivar Ki Aarti

कहुं लगि आरती दास करेंगे,

सकल जगत जाकि जोति विराजे।


सात समुद्र जाके चरण बसे,

काह भयो जल कुंभ भरे हो राम।


कोटि भानु जाके नख की शोभा,

कहा भयो मंदिर दीप धरे हो राम।


भार अठारह रामा बलि जाके,

कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम।


छप्पन भोग जाके प्रतिदिन लागे,

कहा भयो नैवेद्य धरे हो राम।


अमित कोटि जाके बाजा बाजें,

कहा भयो झनकारा करे हो राम।


चार वेद जाके मुख की शोभा,

कहा भयो ब्रह्मावेद पढ़े हो राम।


शिव सनकादिक आदि ब्रह्मादिक,

नारद मुनि जाको ध्यान धरे हो राम।


हिम मंदार जाके पवन झकोरें,

कहा भयो शिव चंवर ढुरे हो राम।


लख चौरासी बंध छुड़ाए,

केवल हरियश नामदेव गाए हो राम।


रविवार व्रत करने का फल || Ravivar Vrat Karne Ka Fal

** इस व्रत के करने से मनुष्य को मोक्ष प्राप्त होता है।

** इस व्रत के करने से स्त्रियों का बांझपन दूर होता है।

** इससे सभी पापों का नाश होता है।

** इससे मनुष्य की बौद्धिक क्षमता का विस्‍तार होता है जिससे उसे धन, यश, मान-सम्मान तथा आरोग्य प्राप्त होता है।

** शारीरिक कष्‍टों से मुक्ति मिलती है। 


श्री सूर्यदेव चालीसा || Shri Surya Dev Chalisa

।।दोहा।।

कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग,

पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग।।


।।चौपाई।।

जय सविता जय जयति दिवाकर,

सहस्त्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।

भानु पतंग मरीची भास्कर,

सविता हंस सुनूर विभाकर ।।१।।


विवस्वान आदित्य विकर्तन,

मार्तण्ड हरिरूप विरोचन।

अम्बरमणि खग रवि कहलाते,

वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।।२।।


सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि,

मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।

अरुण सदृश सारथी मनोहर,

हांकत हय साता चढ़ि रथ पर।।३।।


मंडल की महिमा अति न्यारी,

तेज रूप केरी बलिहारी।

उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते,

देखि पुरन्दर लज्जित होते।।४।।


मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर,

सविता सूर्य अर्क खग कलिकर।

पूषा रवि आदित्य नाम लै,

हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै।।५।।


द्वादस नाम प्रेम सों गावैं,

मस्तक बारह बार नवावैं।

चार पदारथ जन सो पावै,

दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै।।६।।


नमस्कार को चमत्कार यह,

विधि हरिहर को कृपासार यह।

सेवै भानु तुमहिं मन लाई,

अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।।७।।


बारह नाम उच्चारन करते,

सहस जनम के पातक टरते।

उपाख्यान जो करते तवजन,

रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।।८।।


धन सुत जुत परिवार बढ़तु है,

प्रबल मोह को फंद कटतु है।

अर्क शीश को रक्षा करते,

रवि ललाट पर नित्य बिहरते।।९।।


सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत,

कर्ण देस पर दिनकर छाजत।

भानु नासिका वासकरहुनित,

भास्कर करत सदा मुखको हित।।१०।।


ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे,

रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे। 

कंठ सुवर्ण रेत की शोभा,

तिग्म तेजसः कांधे लोभा।।११।।


पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर,

त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर।

युगल हाथ पर रक्षा कारन,

भानुमान उरसर्म सुउदरचन।।१२।।


बसत नाभि आदित्य मनोहर,

कटिमंह, रहत मन मुदभर।

जंघा गोपति सविता बासा,

गुप्त दिवाकर करत हुलासा।।१३।।


विवस्वान पद की रखवारी,

बाहर बसते नित तम हारी।

सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै,

रक्षा कवच विचित्र विचारे।।१४।।


अस जोजन अपने मन माहीं,

भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ।

दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै,

जोजन याको मन मंह जापै।।१५।।


अंधकार जग का जो हरता,

नव प्रकाश से आनन्द भरता।


ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही,

कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।

मंद सदृश सुत जग में जाके,

धर्मराज सम अद्भुत बांके।।१६।।


धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा,

किया करत सुरमुनि नर सेवा।

भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों,

दूर हटतसो भवके भ्रम सों।।१७।।


परम धन्य सों नर तनधारी,

हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।

अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन,

मधु वेदांग नाम रवि उदयन।।१८।।


भानु उदय बैसाख गिनावै,

ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।

यम भादों आश्विन हिमरेता,

कातिक होत दिवाकर नेता।।१९।।


अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं,

पुरुष नाम रविहैं मलमासहिं।।२०।।


।।दोहा।।

भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।

सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य।।


सूर्य गायत्री मन्‍त्र का महत्‍त्‍व || Surya Gayatri Mantra ka Mahattva

सूर्य गायत्री मंत्र का जाप भगवान सूर्य देव की प्रसन्‍नता प्राप्‍त करने के लिया किया जाता है। सूर्य गायत्री मंत्र का जाप 108  बार करना चाहिए। इस मंत्र के जाप से आत्मशुद्धि एवं मन की शांति के साथ ही आत्म-सम्मान में वृद्धि होती हैं। आने वाली विपत्तियॉं टलती हैं और शरीर नीरोगी रहता है। इस मंत्र का जाप प्रात:काल करना चाहिए। सूर्य गायत्री मंत्र एक महामंत्र है और इस मन्त्र की शक्तियॉं अपार हैं। अगर इस सूर्य गायत्री मंत्र विधि विधान से पाठ किया जाये तो इसके चामत्कारिक परिणाम प्राप्त होतें हैं। कहा जाता हैं कि सूर्य की उपासना त्वरित फलवती होती हैं और पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण के पुत्र सांब की कुष्‍ठरोग से निवृत्ति सूर्योपसना से ही हुई थी। लोकमान्‍यता के अनुसार सूर्य मंत्र ॐ  सूर्याय नमः को यदि व्यक्ति चलते-चलते, दवा लेते, खाली समय में कभी भी करता रहे, तो इससे भी लाभ अवश्‍य मिलता है। भगवान सूर्य देव को इस संसार का साक्षात देव माना जाता है क्‍योंकि हम इन्‍हें साक्षात अपनी आंखों से देख सकते हैं। सूर्य ही समस्‍त प्राणियों के जीवन का आधार हैं। 

इसके अधिकतम प्रभाव के लिए इस गायत्री मंत्र का मतलब समझना आवश्‍यक है क्‍योंकि बिना अर्थ के जब का कोई महत्‍त्‍व नहीं होता।

सूर्य गायत्री मंत्र का हिंदी भावार्थ || Surya Gayatri Mantra ka Hindi Arth 

हे सूर्य देव हम आपकी आराधना करते हैं आप हमें ज्ञान का प्रकाश प्रदान करें, आप हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें

Om, Let me meditate on the Sun God, Oh, maker of the day, give me higher intellect, And let Sun God illuminate my mind.


सबसे प्रचलित सूर्य गायत्री मन्‍त्र || Surya Gayatri Mantra

।। ॐ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात।।

अनेक पौराणिक ग्रन्‍थों में सूर्य गायत्री के अन्‍य संस्‍करण भी प्राप्‍त होते हैं और सभी संस्‍करण समान रूप से प्रभावशाली हैं बशर्ते आराधना करते समय समस्‍त विधि विधानों का पूर्ण रूप से पालन किया जाय। 

।। ॐ भास्कराय विधमहे दिवा कराया धीमहि तन्नो सूर्य प्रचोदयात।।

।। ॐ आस्वादवजया विधमहे पासा हस्ताय धीमहि तन्नो सूर्य प्रचोदयात।।

।। ॐ सप्ततुरंगाय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि तन्नो रवि: प्रचोदयात्।।

सभी तस्‍वीरें गूगल सर्च इंजन के द्वारा ली गयी हैं। सभी तस्‍वीरों के लिए सम्‍बन्धितों के प्रति आभार

शनिवार, 6 नवंबर 2021

श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र || Shri Shiv Panchakshar Stotra || Shiv Stotra || Nagendraharaya Trilochanayay Lyrics in Hindi Sanskrit || नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय

श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र || Shri Shiv Panchakshar Stotra || Shiv Stotra || Nagendraharaya Trilochanayay Lyrics in Hindi Sanskrit || नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय



नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय 

भस्मांग रागाय महेश्वराय।

नित्याय शुद्धाय दिगंबराय 

तस्मे “” काराय नमः शिवायः॥


मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय 

नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।

मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय 

तस्मे “” काराय नमः शिवायः॥


शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय 

दक्षाध्वरनाशकाय।

श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय 

तस्मै “शि” काराय नमः शिवायः॥


वषिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमाय 

मुनींद्र देवार्चित शेखराय।

चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय 

तस्मै “” काराय नमः शिवायः॥


यक्षस्वरूपाय जटाधराय 

पिनाकस्ताय सनातनाय।

दिव्याय देवाय दिगंबराय 

तस्मै “” काराय नमः शिवायः॥


पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ।

शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥


॥ इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं 

श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥


शुक्रवार, 5 नवंबर 2021

श्री नाग स्तोत्र || Shri Naag Stotra || श्री नाग गायत्री मंत्र || Shri Naag Gayatri Mantra || अथ सर्प स्तोत्र || Ath Sarp Stotra || Snake Mantra

श्री नाग स्तोत्र || Shri Naag Stotra || श्री नाग गायत्री मंत्र || Shri Naag Gayatri Mantra || अथ सर्प स्तोत्र || Ath Sarp Stotra || Snake Mantra 

श्री नाग स्तोत्र || Shri Naag Stotra

अनंतं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।

शड्खपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।

एतानि नव नामानि नागानां च महात्मानाम्।

सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातः काले विशेषतः।।

तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयीं भवेत्।

श्री नाग गायत्री मंत्र || Shri Naag Gayatri Mantra

ॐ नवकुलाय विद्यमहे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात् ।।


अथ सर्प स्तोत्र || Ath Sarp Stotra


विष्णु लोके च ये सर्पा: वासुकी प्रमुखाश्च ये । 

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदश्च ।।१।।


रुद्र लोके च ये सर्पा: तक्षक: प्रमुखस्तथा 

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।२।।


ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:। 

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।३।।


इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासु‍कि प्रमुखाद्य:।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।४।।


कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।


सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।६।।


मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।७।।


पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।८।।


सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।९।।


ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति च ।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।१०।।


समुद्रतीरे ये सर्पा ये सर्पा जंलवासिन:।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।११।।


रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।१२।

गुरुवार, 4 नवंबर 2021

श्री महालक्ष्मी अष्टकम || Shri Mahalakshmi Ashtakam || श्री महालक्ष्‍मी अष्‍टकम संस्‍कृत और हिन्‍दी अनुवाद || Shri Mahalakshmi Ashtakam Sanskrit aur Hindi Anuvad || Mahalakshmi Ashtakam Hindi Sanskrit Lyrics||श्री वैभव लक्ष्‍मी यन्‍त्र || Shri Vaibhav Lakshmi Yantra

श्री महालक्ष्मी अष्टकम || Shri Mahalakshmi Ashtakam || श्री महालक्ष्‍मी अष्‍टकम संस्‍कृत और हिन्‍दी अनुवाद || Shri Mahalakshmi Ashtakam Sanskrit aur Hindi Anuvad || Mahalakshmi Ashtakam Hindi Sanskrit Lyrics || श्री वैभव लक्ष्‍मी यन्‍त्र || Shri Vaibhav Lakshmi Yantra

।। श्री महालक्ष्मी अष्टकम ।।

श्री महालक्ष्‍मी अष्‍टकम हिन्‍दी अनुवाद || Shri Mahalakshmi Ashtakam Hindi Lyrics and Anuvaad

महालक्ष्मीअष्टकम स्तोत्रम् यः पठेत्भक्तिमानरः। 
सर्वसिद्धिमवापनोति राज्यम प्राप्तयोति सर्वदा ।।

।। ॐ श्री गणेशाय नमः ।।
।। इन्द्र उवाच: ।।
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठेसुरपूजिते 
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते||1|| 

नमस्ते गरुड़ारूढे कोलासुरभयंकरि 
सर्वपापहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते||2||

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरी 
सर्व दुःखहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते||3||

सिद्धिबुधिप्रदे देवी भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी 
मंत्रमुर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते||4||

आद्यन्तरहिते देवी आद्यशक्तिमहेश्वरी 
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोस्तुते||5||

स्थूलसूक्ष्म महारौद्रे महाशक्तिमहोदरे 
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते||6||

पद्मासनस्थिते देवी परब्रह्मस्वरूपिणि 
परमेशि जगन्माता महालक्ष्मी नमोस्तुते ||7||

श्वेताम्बरधरे देवी नानालङ्कारभूषिते 
जगतस्थिते जगन्माता महालक्ष्मी नमोस्तुते||8||

।। फल स्तुति ।।

महालक्ष्मीअष्टकम स्तोत्रम्यः पठेत्भक्तिमानरः । 
सर्वसिद्धिमवापनोति राज्यम प्राप्तयोति सर्वदा||9||

एककाले पठेनित्यं महापापविनाशनं 
द्विकालं यः पठेन्नित्यम् धनधान्यसमन्वित:||10||

त्रिकालं यः पठेनित्यं महाशत्रुविनाशनम् । 
महालक्ष्मिरभवेर्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा||11||

।। श्री महालक्ष्मी अष्टकम ।।
।। ॐ श्री गणेशाय नमः ।।
।। इन्द्र उवाच: ।।
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठेसुरपूजिते 
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते||1||

देवराज इंद्र बोले: मैं महालक्ष्मी की पूजा करता हूं, जो महामाया का प्रतीक हैंं और जिनकी पूजा सभी देवता करते हैं। मैं महालक्ष्मी का ध्यान करता हूं जो अपने हाथों में शंख, चक्र और गदा लिए हुए हैं ।

नमस्ते गरुड़ारूढे कोलासुरभयंकरि ।
सर्वपापहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते||2||

देवराज इंद्र बोले: पक्षीराज गरुड़ जिनका वाहन है, भयानक से भयानक दानव भी जिनके भय से कॉंपते है| सभी पापों को हरने वाली देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरी । 
सर्व दुःखहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते||3||

देवराज इंद्र बोले: मैं उन देवी की पूजा करता हँ जो सब जानने वाली हैं और सभी वर देने वाली हैं, वह सभी दुष्टो का नाश करती हैं। सभी दुखों को हरने वाली देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

सिद्धिबुधिप्रदे देवी भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी 
 मंत्रमुर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते||4||

देवराज इंद्र बोले: हे भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली देवी महालक्ष्मी कृपा कीजिये और हमें सिद्धि व सदबुद्धि प्रदान कीजिये। सभी मंत्रों का आप मूल हैं देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

आद्यन्तरहिते देवी आद्यशक्तिमहेश्वरी । 
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोस्तुते||5||

देवराज इंद्र बोले: हे आद्यशक्ति देवी महेश्वरी महालक्ष्मी, आप शुरु व अंत रहित हैं। आप योग से उत्पन्न हुईं और आप ही योग की रक्षा करने वाली हैं। देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

स्थूलसूक्ष्म महारौद्रे महाशक्तिमहोदरे 
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते||6||

देवराज इंद्र बोले: महालक्ष्मी आप जीवन की स्थूल और सूक्ष्म दोनों ही अभिव्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। आप एक महान शक्ति हैं और आप का स्वरुप दुष्‍टों के लिए महारौद्र है। सभी पापो को हरने वाली देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

पद्मासनस्थिते देवी परब्रह्मस्वरूपिणि । 
परमेशि जगन्माता महालक्ष्मी नमोस्तुते||7||

देवराज इंद्र बोले: हे परब्रह्मस्वरूपिणि देवी आप कमल पर विराजमान हैं| परमेश्वरि आप इस संपूर्ण ब्रह्मांड की माता हैं देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

श्वेताम्बरधरे देवी नानालङ्कारभूषिते । 
जगतस्थिते जगन्माता महालक्ष्मी नमोस्तुते||8||

देवराज इंद्र बोले: हे देवी महालक्ष्मी, आप अनेको आभूषणों से सुशोभित हैं और श्वेत वस्त्र धारण किए हैं| आप इस संपूर्ण ब्रह्माण्‍ड में व्याप्त हैं और इस संपूर्ण ब्रह्माण्‍ड की माता हैं देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

।। फल स्तुति ।।

जो भी व्यक्ति इस महालक्ष्मी अष्टकम स्तोत्र का पाठ भक्तिभाव से करते हैं उन्हें सर्वसिद्धि प्राप्त होंगी और उनकी समस्त इच्छाएं सदैव पूरी होंगी।

एककाले पठेनित्यं महापापविनाशनं ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यम् धनधान्यसमन्वित:||10||

महालक्ष्मी अष्टकम का प्रतिदिन एक बार पाठ करने से भक्‍तों के महापापों का विनाश हो जाता है। प्रतिदिन प्रातः व संध्या काल यह पाठ करने से भक्‍तों को धन और धान्य की प्राप्ति होती है।

त्रिकालं यः पठेनित्यं महाशत्रुविनाशनम् । 
महालक्ष्मिरभवेर्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा||11||

प्रतिदिन प्रातः दोपहर व संध्याकाल यह पाठ करने से भक्‍तों के शक्तिशाली दुश्मनों का नाश होता है और उनसे माता महालक्ष्मी सदैव प्रसन्न रहती हैं तथा उनके वरदान स्वरुप भक्तो के सभी कार्य शुभ होते हैं।

श्री वैभव लक्ष्‍मी यन्‍त्र || Shri Vaibhav Lakshmi Yantra