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रविवार, 20 अगस्त 2023
ललही छठ (हलछठ) की पौराणिक व्रत कथा || Lalahi Chhath (Hal Chhath) ki Pauranik Katha Lyrics in Hindi
सोमवार, 7 अगस्त 2023
श्री गोलू देव की आरती || Shri Golu Dev Ki Aarti Lyrics in Hindi \\जय गोलज्यू महाराज \\ Jay Goljyu Maharaj
श्री गोलू देव की आरती || Shri Golu Dev Ki Aarti Lyrics in Hindi || Lyrics in English
जय गोलज्यू महाराज,
जय हो जय गोलज्यू महाराज ..!
जय गोल ज्यू महाराज,
जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!!
ज्योत जगुनों तेरी…
सुफल करिए काज….!
जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!!
जय गोल ज्यू महाराज,
जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..
ज्योति जगुनों तेरी…
सुफल करिए काज….!
जय गोल ज्यू महाराज !!
पाड़ी में बगन तू आछे ,
लुवे को पिटार में नादान,
(देवा लुवे को पीटार में नादान)
गोरी घाट भाना पायो..
पड़ी गयो गोरिया नाम..!
जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!!
जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..
जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!!
ज्योति जलूनों तेरी…
सुफल करिए काज….!
जय गोल ज्यू महाराज !!
हरुआ, कलुवा भाई तेरो,
बड़ छेना जो दीवान..!
माता कालिंका तेरी…
बाबू झालो राज…!
जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!!
जय हो जय गोल ज्यू महाराज
जय हो जय गोल ज्यू महाराज
ज्योति जलूनों तेरी…
सुफल करिए काज….!
जय गोल ज्यू महाराज !!
सुखिले लुकड़ टांक तेरो
कांठ का घोड़ में सवार !
(देवा काठ को घोड़ में सवार )
लुवे की लगाम हाथयू में..
चाबुक छू हथियार…!!
जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!!
जय हो जय गोल ज्यू महाराज .
जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..
ज्योति जलूनों तेरी…
सुफल करिए काज….!
जय गोल ज्यू महाराज !!
न्याय तेरो हूँ साची,
सब उनी तेरो द्वार,
देवा सब उनी तेरो द्वार !
जो मांखी तेरो नो ल्यूं …
लगे वीक नय्या पार !
जय गोल ज्यू महाराज !!
जय हो जय गोल ज्यू महाराज .
जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..
ज्योति जलूनों तेरी…
सुफल करिए काज….!
जय गोल ज्यू महाराज !!
दूध, बतास और नारियल,
फूल चडनी तेरो द्वार,
देवा फूल चडनी तेरो द्वार !
प्रथम मंदीर चम्पावत..
फिर चितई, घोड़ाखाल.!
जय गोल ज्यू महाराज !!
जय हो जय गोल ज्यू महाराज .
जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..
ज्योति जलूनों तेरी…
सुफल करिए काज….!
जय गोल ज्यू महाराज !!
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(2)
ॐ जय-जय गोल्ज्यू महाराज,
स्वामी जय गोल्ज्यू महाराज ।
कृपा करो हम दीन रंक पर,
दुख हरियो प्रभु आज ।।ॐ।।
राज झलराव के तुम बालक होकर,
जग में बड़े बलवान ।
सब देवों में तुम्हारा,
प्रथम मान है आज ।। ॐ जय ।।
भान धेवर में धर्म पुत्र बनकर,
काठ के घोड़े में चढ़ कर ।
दिखाये कई चमत्कार,
किया सभी का उद्धार ।। ॐ जय।।
जो भी भक्तगण भक्तिभाव से,
गोल्ज्यू दरबार में आये ।
शीश प्रभु के चरणों मे झुकाये,
उसकी सब बधाये ।
और विघ्न गोल्ज्यू हर लेते ।। ॐ जय ।।
न्याय देवता है प्रभु करते है इंसाफ ।
क्षमा शांति दो हे गोल्ज्यू प्रमाण लो महाराज ।।ॐ जय ।।
जो कोई आरती तेरी प्रेम सहित गावे,
प्रभु भक्ति सहित गावे ।
सब दुख उसके मिट जाते,
पाप उतर जाते ।। ॐ जय ।।
बोलो न्याय देवता श्री 1008 गोल्ज्यू देवता की जय ।
*****
(3)
ओम जय गोलू देवा
प्रभु जयगोलू स्वामी
सदा कृपा बरसाना
सदा कृपा बरसाना
हे अन्तर्यामी
ओम जय गोलू स्वामी
प्रभु जयगोलू स्वामी
सदा कृपा बरसाना
सदा कृपा बरसाना
हे अन्तर्यामी
ओम जय गोलू स्वामी
घर घर वास कियो
प्रभु घर घर वास कियो
दुखियों के दुख हरने
दुखियों का दुख हरने
मानव जन्म लियो
ओम जय गोलू स्वामी
श्वेत रंग प्रेमी
प्रभु श्वेत रंग प्रेमी
काष्ठ अश्व में राजत
काष्ठ अश्व में राजत
गति है अलबेली
ओम जय गोलू स्वामी
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॥ दोहा ॥
बुद्धिहीन हूँ नाथ मैं,
करो बुद्धि का दान।
सत्य न्याय के धाम तुम,
हे गोलू भगवान।।
जय काली के वीर सुत,
हे गोलू भगवान।
सुमिरन करने मात्र से,
कटते कष्ट महान।।
जप कर तेरे नाम को,
खुले सुखों के द्वार।
जय जय न्याय गौरिया नमन
करे स्वीकार।।
।। चौपाई ।।
जय जय ग्वेल महाबलवाना।
हम पर कृपा करो भगवाना।।
न्याय सत्य के तुम
अवतारा।
दुखियों का दुख हरते सारा
।।
द्वार पे आके जो भी
पुकारे।
मिट जाते पल में दुख सारे।।
तुम जैसा नहीं कोई दूजा ।
पुनित होके भी बिन सेवा
पूजा ।।
शरण में आये नाथ तिहारी।
रक्षा करना हे अवतारी ।।
माँ की सौत थी अत्याचारी
।
तुमको कष्ट दिये अतिभारी ।।
झाड़ी में तुमको गिरवाया।
विविध भांतिथा तुम्हे
सताया ।।
नदी मध्य जल में डुबवाया।
फिर भी मार तुम्हें नहीं
पाया ।।
सरल हृदय था धेवरहे का।
हरिपद रति बहुनिगुनविवेका।।
भाना नाम सकल जग जाना।
जल में देख बाल भगवाना।।
मन प्रसन्न तन कुलकित
भारी।
बोला जय हे नाथ तुम्हारी ।।
कर गयी बालक गोद उठायो।
हृदय लगा किहीं अति सुख
पायो।।
मन प्रसन्न मुख वचन न
आवा।
मन हूँ महानिधि धेवर पावा।।
नहूँ उरततेहि शिशु द्रिह
ले आयो।
नाम गौरिया तब रखवायो।।
सकल काज तज शिशु संगरहयी।
देखी बाल लीला सुख लहयी ।।
करत खेल या चरज अनेका।
देखी चकित हुई बुद्धि
विवेका।।
ध्यालु कथा सुनीं जब
काना।
देखन चले ग्वेल भगवाना।।
देखनपति बालक मुस्काया।
जन्मकाल यें कांड सुनाया ।।
सौतेली जननी की करनी।
ग्वेल पति संग मुख सब
बरनी ।।
निपति ग्वेल निज हृदय
लगायो।
प्रेम पुरत नय नन जल पायो
।।
चल हूँ तात अब निजरज धामी।
दंड देव में सातों: रानी।।
काट - काट सिर कठिन
कृपाना।
कुटिल नारी हरि लेहूँ में
प्राणा ।।
हृदय कम्प ऊपजा अति
क्रोधा।
दंड देहु सुत नारी अबोधा।।
सुनहुँ तात एक बात हमारी।
क्षमा करोहुँ ये सब नारी
बिचारी।।
हम ही देखी होई मृतक
समाना।
जब लगी जियें पड़ी पछताना।।
अयशतात केहि कारण लेहूँ।
मात सौत कह दंड न देहुँ ।।
दया वन्त प्रिय ग्वेल
सुझाना।
मनुज नहीं तुम देव महाना ।।
अमर सदा हो नाम तुम्हारा।
ग्वेल गौरिया गोलू प्यारा
।।
राज करहुँ चम्पावत वीरा।
हरहुँ तात जन-जन की पीरा ।।
मात - पिता भय धन्य
तुम्हारें।
उदय आज हुए पुण्य हमारे।।
पितुआ ज्ञाधर सविनय शीशा।
ग्वेल बनें चम्पावत ईशा।।
सत्य न्याय है तुम्हें
प्यारा।
तीनों हित तुमने कनधारा।।
दुखियों के दुख देखन पाते।
सुनी पुकार तुम उस थल
जाते।।
विश्व विविध है न्याय
तुम्हारे।
निर्बल के तुम एक सहारे ।।
चितई नमला मंदिर तेरे।
बजते घंटे जहाज घनेरे ।।
घोड़ाखाल प्रिय धाम
तुम्हारा।
चमड़खान तुमको अति प्यारा।।
ताड़ीखेत में महिमा
न्यारी ।
चम्पावत रजधानी प्यारी ।।
गाँव - गाँव में थान
तुम्हारें।
न्याय हेतु जन तुम ही
पुकारें ।।
सदा कृपा करना हे स्वामी।
ग्वेल देव हे अन्तर्यामी ।।
ये दस बार पाठ कर जोई।
विपदा टरें सदा सुख होई ।।
।। दोहा ।।
जय गोलू जय गौरिया,
जय काली के लाल।
मौसानी ना कर सकी,
तेरा बांका बाल ।।
सुमिरन करके नाम का,
मिटते कष्ट हजार ।
जय हे न्यायी देवता,
हे गोलू अवतार ।।
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दुर्गाधीशो द्रुतिज्ञो द्रुतिनुतिविषयो दूरदृष्टिर्दुरीशो
दिव्यादिव्यैकराध्यो द्रुतिचरविषयो दूरवीक्षो दरिद्रः ।
देवैः सङ्कीर्तनीयो दलितदलदयादानदीक्षैकनिष्ठो
दानी दीनार्तिहारी भवदवदहनो दीयतां दृष्टिवृष्टिः ॥ 1॥
क्षेत्रज्ञः क्षेत्रनिष्ठः क्षयकलितकलः क्षात्रवर्गैकसेव्यः
क्षेत्राधीशोऽक्षरात्मा क्षितिप्रथिकरणः क्षालितः क्षेत्रदृश्यः ।
क्षोण्या क्षीणोऽक्षरज्ञो क्षरपृथुकलितः क्षीणवीणैकगेयः
क्षौरः क्षोणीध्रवर्ण्यः क्षयतु मम बलक्षीणतां सक्षणं सः ॥ 2॥
क्रूरः क्रूरैककर्मा कलितकलकलैः कीर्तनीयः कृतिज्ञः
कालः कालैककालो विकलितकर्णः कारणाक्रान्तकीर्तिः ।
कोपः कोपेऽप्यकुप्यन् कुपितकरकराघातकीलः कृतान्तः
कालव्यालालिमालः कलयतु कुशलं वः करालः कृपालुः ॥ 3॥
गौरी स्निह्यतु मोदतां गणपतिः शुण्डामृतं वर्षताद्
नन्दीशः शुभवृष्टिमावितनुतां श्रीमान् गणाधीश्वरः ।
वायुः सान्द्रसुखावहः प्रवहतां देवाः समृद्धादयाः
सम्पूर्तिं दधतां सुखस्य नितरां विश्वेश्वरः प्रीयताम् ॥ 4॥
श्रीविश्वेश्वरमन्दिरं प्रविलसेत् सम्पूर्णसिद्धं शुभं
पुष्टं तुष्टसुखाकरं प्रभवतां सम्मोदमोदावहम् ।
एतद्दर्शनकामना जगति सञ्जायेत सन्निन्दतः
सर्वेषां भगवान् महेश्वरकृपापूर्णो निरीक्षेत नः ॥ 5॥
इति काशीपीठाधीश्वरः श्रीमहेश्वरानन्दः विरचिता
श्रीकाशीविश्वनाथस्तुतिः समाप्ता ।