शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

श्री बृहस्‍पति देव जी की आरती || Shri Brihaspati Dev Ji Ki Aarti || जय बृहस्पति देवा || Jay Brihaspati Deva

श्री बृहस्‍पति देव जी की आरती || Shri Brihaspati Dev Ji Ki Aarti || जय बृहस्पति देवा || Jay Brihaspati Deva

जय बृहस्पति देवा, ॐ जय बृहस्पति देवा।

छिन छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा॥

ॐ जय बृहस्पति देवा ।।१।।


तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।

जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी॥

ॐ जय बृहस्पति देवा।।२।।


चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।

सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।।

ॐ जय बृहस्पति देवा।।३।।


तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।

प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े॥

ॐ जय बृहस्पति देवा।।४।।


दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।

पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी॥

ॐ जय बृहस्पति देवा।।५।।


सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारी।

विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी॥

ॐ जय बृहस्पति देवा।।६।।


जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे।

जेष्‍ठानंद आनंदकर, सो निश्चय पावे॥

ॐ जय बृहस्पति देवा।।७।।


सब बोलो विष्णु भगवान की जय!

बोलो बृहस्पतिदेव की जय!!


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गुरुवार, 30 नवंबर 2017

नर्मदाष्टकं || Narmadashtakam || सविंदुसिंधु-सुस्खलत्तरंगभंग-रंजितं || Savindusindhu

 नर्मदाष्टकं || Narmadashtakam || सविंदुसिंधु-सुस्खलत्तरंगभंग-रंजितं || Savindusindhu 

सविंदुसिंधु-सुस्खलत्तरंगभंग-रंजितं,
द्विषत्सु पापजात-जातकारि-वारिसंयुतम्।
कृतान्‍त-दूतकालभूत-भीतिहारि वर्मदे,
त्वदीयपादपंकजं नमामि देवि नर्मदे।।१।। 

त्वदम्‍बु-लीनदीन-मीन-दिव्य संप्रदायकं,
कलौ मलौध-भारहारि सर्वतीर्थनायकम्।
सुमत्स्य-कच्छ-नक्र-चक्र-चक्रवाक्-शर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।२।।

महागम्‍भीर-नीरपूर-पापधूत-भूतलं,
ध्वनत-समस्त-पातकारि-दारितापदाचलम्।
जगल्लये महामये मृकंडुसून-हर्म्यदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।३।।

गतं तदैव मे भयं त्वदंबुवीक्षितं यदा,
मृकंडुसूनु-शौनकासुरारिसेवि सर्वदा।
पुनर्भवाब्धि-जन्मजं भवाब्धि-दु:खवर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।४।।

अलक्ष-लक्ष-किन्नरामरासुरादिपूजितं,
सुलक्ष नीरतीर-धीरपक्षि-लक्षकूजितं।
वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।५।।

सनत्कुमार-नाचिकेत कश्यपात्रि-षट्पदै,
धृतं स्वकीयमानसेषु नारदादिषट्पदै:।
रवींदु-रन्तिदेव-देवराज-कर्म शर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।६।।

अलक्षलक्ष-लक्षपाप-लक्ष-सार-सायुधं,
ततस्तु जीव-जन्‍तु-तन्‍तु-भुक्ति मुक्तिदायकम्।
विरंचि-विष्णु-शंकर-स्वकीयधाम वर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।७।।

अहोsमृतं स्वनं श्रुतं महेश केशजातटे,
किरात-सूत वाडवेशु पण्डिते शठे-नटे।
दुरंत पाप-ताप-हारि-सर्वजंतु-शर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।८।।

इदं तु नर्मदाष्टकं त्रिकालमेव ये यदा,
पठन्ति ते निरंतरं न यांतिदुर्गतिं कदा।
सुलभ्‍य देहदुर्लभं महेश धाम गौरवं,
पुनर्भवा नरा: न वै विलोकयंति रौरवम्।।
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।९।।

(विश्‍ववन्दित भगवान आदि शंकराचार्य द्वारा रचित नर्मदाष्टकं)

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रविवार, 29 अक्तूबर 2017

श्री नर्मदा जी की आरती || Shri Narmada Ji Ki Aarti || जय जगदानन्‍दी, मैया जय जगदानन्‍दी || Jay Jagadanandi

जय जगदानन्‍दी || नर्मदा मैया की आरती || Narmada Mata Ki Aarty Lyrics in Hindi and English

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जय जगदानन्‍दी, 
मैया जय जगदानन्‍दी।
जय जगदानन्दी, 
मैया जय जगदानन्‍दी।
ब्रह्मा हरिहर शंकर, 
रेवा शिव हर‍ि शंकर, 
रुद्री पालन्ती।
ॐ जय जगदानन्दी।।
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नारद शारद तुम वरदायक, 
अभिनव पद चण्डी।
हो मैया अभिनव पद चण्डी।
सुर नर मुनि जन सेवत, 
सुर नर मुनि जन सेवत।
शारद पद वन्‍दी।
ॐ जय जगदानन्दी।।
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धूम्रक वाहन राजत, 
वीणा वादन्‍ती।
हो मैया वीणा वादन्‍ती।
झुमकत-झनकत-झननन, 
झुमकत-झनकत-झननन
रमती राजन्ती।
ॐ जय जगदानन्दी।।
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बाजत ताल मृदंगा, 
सुर मण्डल रमती। 
हो मैया सुर मण्डल रमती।
तुडितान- तुडितान- तुडितान, 
तुरडड तुरडड तुरडड
रमती सुरवन्ती।
ॐ जय जगदानन्दी।।
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सकल भुवन पर आप विराजत, 
निशदिन आनन्दी।
हो मैया निशदिन आनन्दी।
गावत गंगा शंकर, 
सेवत रेवा शंकर
तुम भव भय हंती।
ॐ जय जगदानन्दी।। 
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कंचन थाल विराजत, 
अगर कपूर बाती।
हो मैया अगर कपूर बाती।
अमरकंटक में राजत, 
घाट घाट में राजत
कोटि रतन ज्योति।
ॐ जय जगदानन्दी।। 
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मैयाजी की आरती 
निशदिन जो गावे,
हो रेवा जुग-जुग जो गावे
भजत शिवानन्द स्वामी
जपत हर‍िहर स्वामी
मनवांछित पावे।
ॐ जय जगदानन्दी।।
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जय जगदानन्‍दी || नर्मदा मैया की आरती || Narmada Mata Ki Aarty Lyrics in Hindi and English

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Jaya jagadānandī, 
Maiyā jaya jagadānandī।
Jaya jagadānandī, 
Maiyā jaya jagadānandī।
Brahmā harihar shankara, 
Revā shiv harai shankara, 
Rudrī pālantī।
Aum jaya jagadānandī।।
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Nārad shārad tum varadāyaka, 
Abhinav pad chaṇḍī।
Ho maiyā abhinav pad chaṇḍī।
Sur nar muni jan sevata, 
Sur nar muni jan sevata।
Shārad pad vandī।
Aum jaya jagadānandī।।
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Dhūmrak vāhan rājata, 
Vīṇā vādantī।
Ho maiyā vīṇā vādantī।
Zumakata-jhanakata-jhananana, 
Zumakata-jhanakata-jhananana
Ramatī rājantī।
Aum jaya jagadānandī।।
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Bājat tāl mṛudangā, 
Sur maṇḍal ramatī। 
Ho maiyā sur maṇḍal ramatī।
Tuḍitāna- tuḍitāna- tuḍitāna, 
Turaḍaḍ turaḍaḍ turaḍaḍa
Ramatī suravantī।
Aum jaya jagadānandī।।
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Sakal bhuvan par āp virājata, 
Nishadin ānandī।
Ho maiyā nishadin ānandī।
Gāvat gangā shankara, 
Sevat revā shankara
Tum bhav bhaya hantī।
Aum jaya jagadānandī।। 
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Kanchan thāl virājata, 
Agar kapūr bātī।
Ho maiyā agar kapūr bātī।
Amarakanṭak mean rājata, 
Ghāṭ ghāṭ mean rājata
Koṭi ratan jyoti।
Aum jaya jagadānandī।। 
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Maiyājī kī āratī 
Nishadin jo gāve,
Ho revā juga-jug jo gāve
Bhajat shivānanda swāmī
Japat haraihar swāmī
Manavāanchhit pāve।
Aum jaya jagadānandī।।
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शनिवार, 7 अक्तूबर 2017

नर्मदा माता की चालीसा || जय-जय-जय नर्मदा भवानी || Narmada Chalisa Lyrics in Hindi and English

नर्मदा माता की चालीसा || जय-जय-जय नर्मदा भवानी || Narmada Chalisa Lyrics in Hindi and English

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॥ दोहा ॥
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देवि पूजित, नर्मदा, 
महिमा बड़ी अपार।
चालीसा वर्णन करत, 
कवि अरु भक्त उदार॥
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इनकी सेवा से सदा, 
मिटते पाप महान।
तट पर कर जप दान नर, 
पाते हैं नित ज्ञान ॥
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॥ चौपाई ॥
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जय-जय-जय नर्मदा भवानी,
तुम्हरी महिमा सब जग जानी।
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अमरकण्ठ से निकली माता,
सर्व सिद्धि नव निधि की दाता।
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कन्या रूप सकल गुण खानी,
जब प्रकटीं नर्मदा भवानी।
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सप्तमी सूर्य मकर रविवारा,
अश्वनि माघ मास अवतारा।
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वाहन मकर आपको साजैं,
कमल पुष्प पर आप विराजैं।
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ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावैं,
तब ही मनवांछित फल पावैं।
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दर्शन करत पाप कटि जाते,
कोटि भक्त गण नित्य नहाते।
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जो नर तुमको नित ही ध्यावै,
वह नर रुद्र लोक को जावैं।
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मगरमच्‍छ तुम में सुख पावैं,
अंतिम समय परमपद पावैं।
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मस्तक मुकुट सदा ही साजैं,
पांव पैंजनी नित ही राजैं।
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कल-कल ध्वनि करती हो माता,
पाप ताप हरती हो माता।
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पूरब से पश्चिम की ओरा,
बहतीं माता नाचत मोरा।
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शौनक ऋषि तुम्हरौ गुण गावैं,
सूत आदि तुम्हरौं यश गावैं।
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शिव गणेश भी तेरे गुण गावैं,
सकल देव गण तुमको ध्यावैं।
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कोटि तीर्थ नर्मदा किनारे,
ये सब कहलाते दु:ख हारे।
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मनोकमना पूरण करती,
सर्व दु:ख माँ नित ही हरतीं।
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कनखल में गंगा की महिमा,
कुरुक्षेत्र में सरस्वती महिमा।
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पर नर्मदा ग्राम जंगल में,
नित रहती माता मंगल में।
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एक बार कर के स्नाना ,
तरत पिढ़ी है नर नारा।
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मेकल कन्या तुम ही रेवा,
तुम्हरी भजन करें नित देवा।
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जटा शंकरी नाम तुम्हारा,
तुमने कोटि जनों को तारा।
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समोद्भवा नर्मदा तुम हो,
पाप मोचनी रेवा तुम हो।
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तुम्हरी महिमा कहि नहिं जाई,
करत न बनती मातु बड़ाई।
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जल प्रताप तुममें अति माता,
जो रमणीय तथा सुख दाता।
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चाल सर्पिणी सम है तुम्हारी,
महिमा अति अपार है तुम्हारी।
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तुम में पड़ी अस्थि भी भारी,
छुवत पाषाण होत वर वारि।
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यमुना मे जो मनुज नहाता,
सात दिनों में वह फल पाता।
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सरस्वती तीन दीनों में देती,
गंगा तुरत बाद हीं देती।
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पर रेवा का दर्शन करके
मानव फल पाता मन भर के।
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तुम्हरी महिमा है अति भारी,
जिसको गाते हैं नर-नारी।
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जो नर तुम में नित्य नहाता,
रुद्र लोक मे पूजा जाता।
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जड़ी बूटियां तट पर राजें,
मोहक दृश्य सदा हीं साजें|
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वायु सुगंधित चलती तीरा,
जो हरती नर तन की पीरा।
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घाट-घाट की महिमा भारी,
कवि भी गा नहिं सकते सारी।
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नहिं जानूँ मैं तुम्हरी पूजा,
और सहारा नहीं मम दूजा।
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हो प्रसन्न ऊपर मम माता,
तुम ही मातु मोक्ष की दाता।
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जो मानव यह नित है पढ़ता,
उसका मान सदा ही बढ़ता।
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जो शत बार इसे है गाता,
वह विद्या धन दौलत पाता।
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अगणित बार पढ़ै जो कोई,
पूरण मनोकामना होई।
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सबके उर में बसत नर्मदा,
यहां वहां सर्वत्र नर्मदा ।
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॥ दोहा ॥
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भक्ति भाव उर आनि के, 
जो करता है जाप।
माता जी की कृपा से, 
दूर होत संताप॥
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नर्मदा माता की चालीसा || जय-जय-जय नर्मदा भवानी || Narmada Chalisa Lyrics in Hindi and English

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॥ Dohā ॥
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Devi pūjita, narmadā, 
Mahimā baḍaī apāra।
Chālīsā varṇan karata, 
Kavi aru bhakta udāra॥
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Inakī sevā se sadā, 
Miṭate pāp mahāna।
Taṭ par kar jap dān nara, 
Pāte haian nit jnyān ॥
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॥ Chaupāī ॥
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Jaya-jaya-jaya narmadā bhavānī,
Tumharī mahimā sab jag jānī।
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Amarakaṇṭha se nikalī mātā,
Sarva siddhi nav nidhi kī dātā।
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Kanyā rūp sakal guṇ khānī,
Jab prakaṭīan narmadā bhavānī।
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Saptamī sūrya makar ravivārā,
Ashvani māgh mās avatārā।
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Vāhan makar āpako sājaian,
Kamal puṣhpa par āp virājaian।
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Brahmā hari har tumako dhyāvaian,
Tab hī manavāanchhit fal pāvaian।
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Darshan karat pāp kaṭi jāte,
Koṭi bhakta gaṇ nitya nahāte।
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Jo nar tumako nit hī dhyāvai,
Vah nar rudra lok ko jāvaian।
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Magaramachchha tum mean sukh pāvaian,
Aantim samaya paramapad pāvaian।
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Mastak mukuṭ sadā hī sājaian,
Pāanva paianjanī nit hī rājaian।
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Kala-kal dhvani karatī ho mātā,
Pāp tāp haratī ho mātā।
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Pūrab se pashchim kī orā,
Bahatīan mātā nāchat morā।
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Shaunak ṛuṣhi tumharau guṇ gāvaian,
Sūt ādi tumharauan yash gāvaian।
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Shiv gaṇesh bhī tere guṇ gāvaian,
Sakal dev gaṇ tumako dhyāvaian।
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Koṭi tīrtha narmadā kināre,
Ye sab kahalāte du:kha hāre।
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Manokamanā pūraṇ karatī,
Sarva du:kha mā nit hī haratīan।
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Kanakhal mean gangā kī mahimā,
Kurukṣhetra mean sarasvatī mahimā।
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Par narmadā grām jangal mean,
Nit rahatī mātā mangal mean।
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Ek bār kar ke snānā ,
Tarat piḍhaī hai nar nārā।
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Mekal kanyā tum hī revā,
Tumharī bhajan karean nit devā।
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Jaṭā shankarī nām tumhārā,
Tumane koṭi janoan ko tārā।
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Samodbhavā narmadā tum ho,
Pāp mochanī revā tum ho।
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Tumharī mahimā kahi nahian jāī,
Karat n banatī mātu baḍaāī।
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Jal pratāp tumamean ati mātā,
Jo ramaṇīya tathā sukh dātā।
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Chāl sarpiṇī sam hai tumhārī,
Mahimā ati apār hai tumhārī।
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Tum mean paḍaī asthi bhī bhārī,
Chhuvat pāṣhāṇ hot var vāri।
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Yamunā me jo manuj nahātā,
Sāt dinoan mean vah fal pātā।
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Sarasvatī tīn dīnoan mean detī,
Gangā turat bād hīan detī।
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Par revā kā darshan karake
Mānav fal pātā man bhar ke।
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Tumharī mahimā hai ati bhārī,
Jisako gāte haian nara-nārī।
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Jo nar tum mean nitya nahātā,
Rudra lok me pūjā jātā।
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Jaḍaī būṭiyāan taṭ par rājean,
Mohak dṛushya sadā hīan sājean|
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Vāyu sugandhit chalatī tīrā,
Jo haratī nar tan kī pīrā।
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Ghāṭa-ghāṭ kī mahimā bhārī,
Kavi bhī gā nahian sakate sārī।
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Nahian jānū maian tumharī pūjā,
Aur sahārā nahīan mam dūjā।
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Ho prasanna ūpar mam mātā,
Tum hī mātu mokṣha kī dātā।
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Jo mānav yah nit hai paḍhatā,
Usakā mān sadā hī baḍhatā।
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Jo shat bār ise hai gātā,
Vah vidyā dhan daulat pātā।
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Agaṇit bār paḍhaai jo koī,
Pūraṇ manokāmanā hoī।
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Sabake ur mean basat narmadā,
Yahāan vahāan sarvatra narmadā ।
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॥ dohā ॥
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Bhakti bhāv ur āni ke, 
Jo karatā hai jāpa।
Mātā jī kī kṛupā se, 
Dūr hot santāpa॥
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गुरुवार, 14 सितंबर 2017

गायत्री मंत्र || Gayatri Mantra || Savita Mantra || ॐ भूर्भुवः स्वः || Om Bhurbhuvah Swah

गायत्री मंत्र || Gayatri Mantra || Savita Mantra || ॐ भूर्भुवः स्वः || Om Bhurbhuvah Swah


गायत्री मंत्र के जाप से हृदय में शुद्धता आती है और विचार सकारात्‍मक हो जाते हैं तथा शरीर में अद्भुत शक्ति का संचार होता है। परिणामस्‍वरूप समस्‍त मानसिक अथवा शारीरिक विकार दूर हो जाते हैं। गायत्री मंत्र के निरंतर उच्‍चारण से मेधा बढ्ती है, स्‍मरण शक्ति  तेज होती है और ज्ञान व़ृद्धि भी होती है। गायत्री मंत्र का जाप करने के तीन समय बताये गये हैं। पहला सूर्योदय से पूर्व, दूसरा मध्‍याह्न में एवं तीसरा सूर्यास्‍त से पहले। गायत्री मंत्र का जाप सदैव शुद्ध उच्‍चारण के साथ ही करना श्रेयस्‍कर है। साथ ही यह भी ध्‍यान देने योग्‍य है कि बिना अर्थ जाने जपे गये किसी भी मंत्र का कोई फल प्राप्‍त नहीं होता है। अर्थ से तात्‍पर्य केवल शाब्द‍िक अर्थ ही नहीं है वरन भावार्थ भी है। गायत्री मंत्र इस प्रकार है-

|| ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् , भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ||


अर्थ

उस प्राण स्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

भावार्थ 

अर्थात् सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के दिव्‍य तेज का (हम) ध्यान करते हैं, वे परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्‍मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें।
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