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रविवार, 7 नवंबर 2021

दुर्गा स्तोत्र || Shri Durga Stotra || Durga Stotra Sanskrit / Hindi Lyrics || Devi Stotra for a prosperous life || जय भगवति देवि || Jaya Bhagawati Devi

दुर्गा स्तोत्र || Shri Durga Stotra || Durga Stotra Sanskrit / Hindi Lyrics || Devi Stotra for a prosperous life || जय भगवति देवि || Jaya Bhagawati Devi



जय भगवति देवि नमो वरदे 

जय पापविनाशिनि बहुफलदे।

जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे 

प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥१॥


जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे 

जय पावकभूषितवक्त्रवरे।

जय भैरवदेहनिलीनपरे 

जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥२॥


जय महिषविमर्दिनि शूलकरे 

जय लोकसमस्तकपापहरे।

जय देवि पितामहविष्णुनते 

जय भास्करशक्रशिरोवनते॥३॥


जय षण्मुखसायुधईशनुते 

जय सागरगामिनि शम्भुनुते।

जय दु:खदरिद्रविनाशकरे 

जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥४॥


जय देवि समस्तशरीरधरे 

जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे।

जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे 

जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥५॥


एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:।

गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥६॥

शनिवार, 6 नवंबर 2021

श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र || Shri Shiv Panchakshar Stotra || Shiv Stotra || Nagendraharaya Trilochanayay Lyrics in Hindi Sanskrit || नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय

श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र || Shri Shiv Panchakshar Stotra || Shiv Stotra || Nagendraharaya Trilochanayay Lyrics in Hindi Sanskrit || नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय



नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय 

भस्मांग रागाय महेश्वराय।

नित्याय शुद्धाय दिगंबराय 

तस्मे “” काराय नमः शिवायः॥


मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय 

नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।

मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय 

तस्मे “” काराय नमः शिवायः॥


शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय 

दक्षाध्वरनाशकाय।

श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय 

तस्मै “शि” काराय नमः शिवायः॥


वषिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमाय 

मुनींद्र देवार्चित शेखराय।

चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय 

तस्मै “” काराय नमः शिवायः॥


यक्षस्वरूपाय जटाधराय 

पिनाकस्ताय सनातनाय।

दिव्याय देवाय दिगंबराय 

तस्मै “” काराय नमः शिवायः॥


पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ।

शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥


॥ इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं 

श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥


शुक्रवार, 5 नवंबर 2021

श्री नाग स्तोत्र || Shri Naag Stotra || श्री नाग गायत्री मंत्र || Shri Naag Gayatri Mantra || अथ सर्प स्तोत्र || Ath Sarp Stotra || Snake Mantra

श्री नाग स्तोत्र || Shri Naag Stotra || श्री नाग गायत्री मंत्र || Shri Naag Gayatri Mantra || अथ सर्प स्तोत्र || Ath Sarp Stotra || Snake Mantra 

श्री नाग स्तोत्र || Shri Naag Stotra

अनंतं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।

शड्खपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।

एतानि नव नामानि नागानां च महात्मानाम्।

सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातः काले विशेषतः।।

तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयीं भवेत्।

श्री नाग गायत्री मंत्र || Shri Naag Gayatri Mantra

ॐ नवकुलाय विद्यमहे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात् ।।


अथ सर्प स्तोत्र || Ath Sarp Stotra


विष्णु लोके च ये सर्पा: वासुकी प्रमुखाश्च ये । 

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदश्च ।।१।।


रुद्र लोके च ये सर्पा: तक्षक: प्रमुखस्तथा 

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।२।।


ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:। 

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।३।।


इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासु‍कि प्रमुखाद्य:।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।४।।


कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।


सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।६।।


मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।७।।


पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।८।।


सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।९।।


ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति च ।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।१०।।


समुद्रतीरे ये सर्पा ये सर्पा जंलवासिन:।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।११।।


रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।१२।

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

श्री रुद्राष्टक Shri Rudrashtak

श्री रुद्राष्टक Shri Rudrashtak


नमामी शमीशान निर्वाणरूपं।
विभुं व्यापकं ब्रह्‌म वेदस्वरूपं॥

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं।
चिदाकाशमाकाशवासं भजेsहं॥१॥

निराकामोंकारमूलं तुरीयं।
गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।।

करालं महाकाल कालं कृपालं।
गुणागार संसारपारं नतोsहं॥२॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं।
मनोभूत कोटि प्रभा श्रीशरीरं॥

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा।
लसभ्दालबालेन्दु कंठे भुजंगा॥ ३॥

चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं।
प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं॥

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं।
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥४॥

प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं।
अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं॥

त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं।
भजेsहं भवानीपतिं भावगम्यं॥५॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी।
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी॥

चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी।
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥६॥

न यावद्‌ उमानाथ पादारवन्दिं।
भजंतीह लोके परे वा नराणां॥

न तावत्सुखं शांति सन्तापनाशं।
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥७॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां।
नतोsहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं॥

जरा जन्म दुःखौद्य तातप्यमानं।
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो॥८॥

श्लोक -
रुद्राष्टकमिद्र प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शंम्भुः प्रसीदति॥९॥
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शनिवार, 21 अगस्त 2010

श्री शिव चालीसा || जय गणेश गिरिजा सुवन || Shri Shiv Chalisa || Jay Ganesh Girija Suvan || Jay Girijapati Deen Dayala || Shri Shiv Stuti

श्री शिव चालीसा || जय गणेश गिरिजा सुवन || Shri Shiv Chalisa || Jay Ganesh Girija Suvan || Jay Girijapati Deen Dayala || Shri Shiv Stuti

(चित्र गूगल से साभार)

दोहा

जय गणेश गिरिजा सुवन, 

मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, 

देहु अभय वरदान॥

चौपाई

जय गिरिजापति दीनदयाला,

सदा करत सन्तन प्रतिपाला।

भाल चन्द्रमा सोहत नीके,

कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये,

मुण्डमाल तन छार लगाये।

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे,

छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

मैना मातु कि हवे दुलारी,

वाम अंग सोहत छवि न्यारी।

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी,

करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहैं तहं कैसे,

सागर मध्य कमल हैं जैसे।

कार्तिक श्याम और गणराऊ,

या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा,

तबहीं दुःख प्रभु आप निवारा।

किया उपद्रव तारक भारी,

देवन सब मिलि तुमहि जुहारी॥

तुरत षड़ानन आप पठायउ,

लव निमेष महं मारि गिरायउ।

आप जलंधर असुर संहारा,

सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई,

सबहिं कृपा कर लीन बचाई।

दानिन महं तुम सम कोई नाहीं,

सेवक अस्तुति करत सदा ही॥

वेद नाम महिमा तव गाई,

अकथ अनादि भेद नहिं पाई।

प्रगटी उदधि मंथन में ज्वाला,

जरे सुरासुर भये विहाला॥

कीन्हीं दया तहं करी सहाई,

नीलकण्ठ तब नाम कहाई।

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा,

जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

सहस कमल में हो रहे धारी,

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखे जोई,

कमल नयन पूजन चहं सोई॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर,

भए प्रसन्न दिए इच्छित वर।

जै जै जै अनन्त अविनासी,

करत कृपा सबही घटवासी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै,

भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै।

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो,

यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो,

संकट से मोहि आन उबारो,

मातु पिता भ्राता सब कोई,

संकट में पूछत नहीं कोई॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी,

आय हरहुं मम संकट भारी।

धन निर्धन को देत सदा ही,

जो कोई जाचें वो फल पाहीं॥

अस्तुति केहि विधि करो तिहारी,

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।

शंकर हो संकट के नाशन,

मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

योगि यति मुनि ध्यान लगावै,

नारद शारद शीश नवावै।

नमो नमो जय नमो शिवायै,

सुर ब्रह्‌मादिक पार न पाए॥

जो यह पाठ करे मन लाई,

तापर होत हैं शम्भु सहाई।

दुनिया में जो हो अधिकारी,

पाठ करे सो पावन हारी॥

पुत्रहीन इच्छा कर कोई,

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई।

पंडित त्रयोदशी को लावे,

ध्यान पूर्वक होम करावे॥


त्रयोदशी व्रत करे हमेशा,

तन नहिं ताके रहे कलेशा।

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे,

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

जन्म जन्म के पाप नसावै,

अन्त वास शिवपुर में पावै।

कहै अयोध्या आस तुम्हारी,

जानि सकल दुख हरहु हमारी॥

दोहा

नित्त नेम कर प्रातः ही, 

पाठ करौ चालीसा।

तु मेरी मनोकामना, 

पूर्ण करो जगदीशा॥


मगसर छठि हेमन्त ऋतु, 

संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहिं, 

पूर्ण कीन कल्याण॥

सोमवार, 24 मई 2010

श्री हरसू ब्रह्‌म चालीसा || Shri Harsu Brahm Chalisa || हरसू ब्रह्म चैनपुर कैमूर || Harsu Brahm Chainpur Kaimur || Harsu Brahm Maharaj ji || हरसू ब्रह्‌म रूप अवतारी Harsu Brahm Rup Avatari

श्री हरसू ब्रह्‌म चालीसा || Shri Harsu Brahm Chalisa || हरसू ब्रह्म चैनपुर कैमूर || Harsu Brahm Chainpur Kaimur || Harsu Brahm Maharaj ji || हरसू ब्रह्‌म रूप अवतारी Harsu Brahm Rup Avatari



बाबा हरसू ब्रह्‌म के चरणों का करि ध्यान।
चालीसा प्रस्तुत करूं पावन यश गुण गान॥

हरसू ब्रह्‌म रूप अवतारी।
जेहि पूजत नित नर अरु नारी॥१॥

शिव अनवद्य अनामय रूपा।
जन मंगल हित शिला स्वरूपा॥ २॥

विश्व कष्ट तम नाशक जोई।
ब्रह्‌म धाम मंह राजत सोई ॥३॥

निर्गुण निराकार जग व्यापी।
प्रकट भये बन ब्रह्‌म प्रतापी॥४॥

अनुभव गम्य प्रकाश स्वरूपा।
सोइ शिव प्रकट ब्रह्‌म के रूपा॥५॥

जगत प्राण जग जीवन दाता।
हरसू ब्रह्‌म हुए विखयाता॥६॥

पालन हरण सृजन कर जोई।
ब्रह्‌म रूप धरि प्रकटेउ सोई॥७॥

मन बच अगम अगोचर स्वामी।
हरसू ब्रह्‌म सोई अन्तर्यामी॥८॥

भव जन्मा त्यागा सब भव रस।
शित निर्लेप अमान एक रस॥९॥

चैनपुर सुखधाम मनोहर।
जहां विराजत ब्रह्‌म निरन्तर॥१०॥

ब्रह्‌म तेज वर्धित तव क्षण-क्षण।
प्रमुदित होत निरन्तर जन-मन॥११॥

द्विज द्रोही नृप को तुम नासा।
आज मिटावत जन-मन त्रासा॥१२॥

दे संतान सृजन तुम करते।
कष्ट मिटाकर जन-भय हरते॥१३॥

सब भक्तन के पालक तुम हो।
दनुज वृत्ति कुल घालक तुम हो॥१४॥

कुष्ट रोग से पीड़ित होई।
आवे सभय शरण तकि सोई॥१५॥

भक्षण करे भभूत तुम्हारा।
चरण गहे नित बारहिं बारा॥१६॥

परम रूप सुन्दर सोई पावै।
जीवन भर तव यश नित गावै॥१७॥

पागल बन विचार जो खोवै।
देखत कबहुं हंसे फिर रोवै॥१८॥

तुम्हरे निकट आव जब सोई।
भूत पिशाच ग्रस्त उर होई॥१९॥

तुम्हरे धाम आई सुख माने।
करत विनय तुमको पहिचाने॥२०॥

तव दुर्धष तेज के आगे।
भूत-पिशाच विकल होई भागे॥२१॥

नाम जपत तव ध्यान लगावत।
भूत पिशाच निकट नहिं आवत॥२२॥

भांति-भांति के कष्ट अपारा।
करि उपचार मनुज जब हारा॥२३॥

हरसू ब्रह्‌म के धाम पधारे।
श्रमित-भ्रमित जन मन से हारे॥२४॥

तव चरणन परि पूजा करई।
नियत काल तक व्रत अनुसरई॥२५॥

श्रद्धा अरू विश्वास बटोरी।
बांधे तुमहि प्रेम की डोरी॥२६॥

कृपा करहुं तेहि पर करुणाकर।
कष्ट मिटे लौटे प्रमुदित घर॥२७॥

वर्ष-वर्ष तव दर्शन करहीं।
भक्ति भाव श्रद्धा उर भरहीं॥२८॥

तुम व्यापक सबके उर अंतर।
जानहुं भाव कुभाव निरन्तर॥२९॥

मिटे कष्ट नर अति सुख पावे।
जब तुमको उन मध्य बिठावे॥३०॥

करत ध्यान अभ्यास निरन्तर।
तब होइहहिं प्रकाश उर अंतर॥३१॥

देखिहहिं शुद्ध स्वरूप तुम्हारा।
अनुभव गम्य विवेक सहारा॥३२॥

सदा एक-रस जीवन भोगी।
ब्रह्‌म रूप तब होइहहिं योगी॥३३॥

यज्ञ-स्थल तव धाम शुभ्रतर।
हवन-यज्ञ जहं होत निरंतर॥३४॥

सिद्धासन बैठे योगी जन।
ध्यान मग्न अविचल अन्तर्मन॥३५॥

अनुभव करहिं प्रकाश तुम्हारा।
होकर द्वैत भाव से न्यारा॥३६॥

पाठ करत बहुधा सकाम नर।
पूर्ण होत अभिलाष शीघ्रतर॥३७॥

नर-नारी गण युग कर जोरे।
विनवत चरण परत प्रभु तोरे॥३८॥

भूत पिशाच प्रकट होई बोले।
गुप्त रहस्य शीघ्र ही खोले॥३९॥

ब्रह्‌म तेज तव सहा न जाई।
छोड़ देह तब चले पराई॥४०॥

पूर्ण काम हरसू सदा, पूरण कर सब काम।
परम तेज मय बसहुं तुम, भक्तन के उर धाम॥

आभार
रचनाकार : श्री लालजी त्रिपाठी
व्याकरण साहित्याचार्य, एम०ए० द्वय, स्वर्णपदक प्राप्त
प्रकाशक : श्री रंगनाथ पाण्डेय (शिक्षक)
विक्रेता : पाण्डेय पुस्तक मंदिर, चैनपुर, कैमूर

रविवार, 2 मई 2010

अथ सोम प्रदोष कथा Ath Som Pradosh Katha Lyrics in Hindi

अथ सोम प्रदोष कथा Ath Som Pradosh Katha Lyrics in Hindi



पूर्वकाल में एक विधवा ब्राह्‌मणी अपने पुत्रों को लेकर ऋषियों की आज्ञा से भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती। भिक्षा में जो मिलता उससे अपना कार्य चलाती और शिवजी का प्रदोष व्रत भी करती। एक दिन उससे विदर्भ देश का राजकुमार मिला, जिसे शत्रुओं ने राजधानी से बाहर निकाल दिया था और उसके पिता को मार दिया था। ब्राह्‌मणी ने लाकर उसका पालन किया। एक दिन राजकुमार और ब्राह्‌मण बालक ने वन में गंधर्व कन्याओं को देखा। राजकुमार अंशुमती से बात करने लगा और उसके साथ चला गया, ब्राह्‌मण बालक घर लौट आया। अंशुमती के माता-पिता ने अंशुमती का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त के साथ कर दिया और शत्रुओं को परास्त कर विदर्भ का राजा बनाया। धर्मगुप्त को ब्राह्‌मण की याद रही और उसने ब्राह्‌मण कुमार को अपना मंत्री बना लिया। यथार्थ में यह शिवजी के प्रदोष व्रत का फल था। तभी से यह शिवजी का प्रदोष व्रत लोक प्रसिद्ध हुआ। इस व्रत के प्रभाव से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
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