मंगलवार, 16 सितंबर 2025

Kanya Sankranti 2025: कन्या संक्रांति व्रत कथा, पूजा विधि, दान का महत्व और लाभ

Kanya Sankranti: कन्या संक्रांति के दिन इस कथा का करें पाठ, सूर्यदेव की बनी रहेगी कृपा!

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Kanya Sankranti 2025: कन्या संक्रांति व्रत कथा, पूजा विधि, दान का महत्व और लाभ
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कन्‍या संक्रांति का परिचय (Kanya Sankranti Kya Hai)

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सनातन धर्म में सूर्य देव का विशेष महत्व है। जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, उस दिन को संक्रांति (Sankranti) कहा जाता है। वर्ष भर में कुल 12 संक्रांतियां होती हैं और प्रत्येक का अपना आध्यात्मिक व धार्मिक महत्व है।
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कन्या संक्रांति (Kanya Sankranti) तब होती है जब सूर्य कन्या राशि (Virgo) में प्रवेश करते हैं। ज्योतिष शास्त्र में इसे बेहद पवित्र और शुभ दिन माना गया है। इस दिन सूर्य देव की उपासना, व्रत, कथा पाठ और दान-पुण्य का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन सूर्यदेव की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि, संतान सुख और परिवार में खुशहाली आती है।
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कन्या संक्रांति पूजा विधि (Kanya Sankranti Ki Pooja Vidhi)

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कन्या संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए और शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद निम्नलिखित विधि से पूजा करने का विधान है –
1. स्नान और अर्घ्यदान – तांबे के लोटे में जल, लाल पुष्प, गुड़ और अक्षत डालकर उगते सूर्य को अर्घ्य दें।
2. सूर्य मंत्र का जाप – अर्घ्य देते समय “ॐ घृणि सूर्याय नमः” मंत्र का 11, 21 या 108 बार जाप करें।
3. प्रतिमा पूजन – सूर्य देव की प्रतिमा या चित्र पर लाल वस्त्र, चंदन, रोली और पुष्प चढ़ाएँ।
4. व्रत और आहार – व्रत रखने वाले भक्त केवल फलाहार करें और नमक का सेवन न करें।
5. दान-पुण्य – ब्राह्मणों को भोजन कराकर तांबा, गेहूँ, गुड़ और लाल वस्त्र का दान करें।
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कन्या संक्रांति की पौराणिक कथा (Kanya Sankranti Ki Katha)

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पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय पृथ्वी पर घोर अंधकार छा गया। सूर्यदेव क्रोधित होकर अपनी किरणें छिपा लिए। जीव-जंतु, मनुष्य और वनस्पतियाँ सभी कष्ट में पड़ गए। तब ऋषि कश्यप ने कठोर तपस्या करके सूर्यदेव को प्रसन्न किया। सूर्यदेव प्रकट हुए और कहा – “जो भी भक्त कन्या संक्रांति के दिन मेरी पूजा और इस कथा का पाठ करेगा, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होंगी और उसके जीवन में कभी अंधकार नहीं रहेगा।”
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एक कथा में उल्लेख है कि एक निर्धन ब्राह्मण, जिसकी संतान नहीं थी, उसने कन्या संक्रांति व्रत और कथा का पाठ किया। कुछ समय बाद उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और उसके जीवन में सुख-समृद्धि आ गई। तभी से यह परंपरा बनी कि कन्या संक्रांति पर व्रत, कथा पाठ और दान करने से संतान सुख और जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं।
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संक्रांति पर दान का महत्व (Sankranti Par Dan Ka Mahatva)

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हिंदू शास्त्रों में दान को सर्वोत्तम धर्म बताया गया है। कहा गया है कि “दानात् प्राप्यते स्वर्गः” अर्थात दान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। कन्या संक्रांति पर विशेष रूप से इन वस्तुओं का दान शुभ माना गया है जैसे तांबे के पात्र, लाल वस्त्र, गेहूँ और गुड़, अनाज और फल तथा ब्राह्मणों को भोजन। मान्यता है कि इन दानों से पितृदोष और ग्रहदोष का निवारण होता है तथा पुण्यफल प्राप्त होता है।
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ज्योतिषीय महत्व (Kanya Sankranti 2025 Jyotish Mahatva)

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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसका सभी 12 राशियों पर प्रभाव पड़ता है। खासकर जिनकी जन्मकुंडली में सूर्य अशुभ स्थिति में होते हैं, उनके लिए यह दिन अत्यंत फलदायी होता है। इस दिन व्रत, दान और पूजा करने से सूर्यदेव की कृपा प्राप्ति होती है और साथ ही ग्रह दोषों का निवारण होता है। करियर और व्यवसाय में सफलता मिलती है। जीवन में नए अवसर प्राप्त होते हैं। आत्मविश्वास और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।
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कन्या संक्रांति के लाभ (Kanya Sankranti Ke Labh)

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कन्या संक्रांति धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं –
1. पितृदोष से मुक्ति – सूर्य देव की कृपा से पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
2. ग्रह दोष का निवारण – अशुभ ग्रहों का प्रभाव कम होता है।
3. संतान सुख की प्राप्ति – निःसंतान दंपत्ति को संतान सुख का आशीर्वाद मिलता है।
4. सुख-समृद्धि और धन लाभ – घर में खुशहाली और आर्थिक उन्नति होती है।
5. मानसिक शांति – मन में सकारात्मकता और आत्मबल का संचार होता है।
6. आयु वृद्धि और स्वास्थ्य लाभ – नियमित व्रत और पूजा से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
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कन्या संक्रांति पर करने योग्य उपाय (Kanya Sankranti Ke Upay)

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1. सुबह जल्दी उठकर नदी या पवित्र जलाशय में स्नान करें।
2. उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करें।
3. गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न और वस्त्र दान करें।
4. लाल पुष्प और लाल वस्त्र से सूर्य देव की पूजा करें।
5. “ॐ घृणि सूर्याय नमः” मंत्र का जाप अवश्य करें।
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कन्या संक्रांति 2025 (Kanya Sankranti 2025) एक ज्योतिषीय घटना के साथ ही आस्था, श्रद्धा और विश्वास का पर्व है। इस दिन व्रत, पूजा, कथा और दान से जहॉं एक ओर पितृदोष और ग्रहदोष दूर होते हैं, वहीं दूसरी ओर जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी आती है। सूर्यदेव की कृपा से व्यक्ति के जीवन में अंधकार का नाश होकर उज्ज्वल भविष्य का मार्ग प्रशस्त होता है। इसलिए हर भक्त को चाहिए कि इस दिन श्रद्धा भाव से पूजा और कथा का पाठ करें।
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Kanya Sankranti 2025: FAQ in Hindi

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Q1. कन्या संक्रांति कब मनाई जाती है?
कन्या संक्रांति उस दिन मनाई जाती है जब सूर्य देव सिंह राशि से निकलकर कन्या राशि में प्रवेश करते हैं। यह हर साल सितंबर माह में आती है।
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Q2. कन्या संक्रांति का महत्व क्या है?
कन्या संक्रांति का महत्व सूर्य पूजा, दान-पुण्य और पितृ दोष निवारण से जुड़ा हुआ है। इस दिन व्रत और कथा का पाठ करने से जीवन में सुख-समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
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Q3. कन्या संक्रांति पर क्या करना चाहिए?
कन्या संक्रांति पर प्रातः स्नान कर सूर्य देव को जल अर्पित करें, लाल वस्त्र पहनें, तांबे के लोटे से अर्घ्य दें, सूर्य मंत्र का जाप करें और ब्राह्मण को भोजन कराकर दान करें।
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Q4. कन्या संक्रांति की पूजा विधि क्या है?
इस दिन उगते सूर्य को जल, पुष्प, अक्षत और गुड़ से अर्घ्य दिया जाता है। व्रत रखने वाले फलाहार करें और नमक का त्याग करें। सूर्य देव की प्रतिमा पर लाल वस्त्र और चंदन चढ़ाएं।
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Q5. कन्या संक्रांति पर किस कथा का पाठ करना चाहिए?
इस दिन सूर्य देव की पौराणिक कथा का पाठ करना चाहिए, जिसमें बताया गया है कि कन्या संक्रांति के दिन पूजा और कथा करने से जीवन से अंधकार दूर होता है और समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
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Q6. कन्या संक्रांति पर क्या दान करना शुभ होता है?
गेहूँ, गुड़, तांबे के बर्तन, लाल वस्त्र और अनाज का दान कन्या संक्रांति पर सबसे शुभ माना जाता है। इससे पितृदोष और ग्रहदोष का निवारण होता है।
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Q7. कन्या संक्रांति के दिन व्रत करने का क्या लाभ है?
व्रत करने से संतान सुख, घर-परिवार में शांति, आर्थिक उन्नति और ग्रहदोष से मुक्ति मिलती है। यह व्रत सूर्य देव की विशेष कृपा पाने का माध्यम है।
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Q8. कन्या संक्रांति और पितृ दोष निवारण में क्या संबंध है?
कन्या संक्रांति पर सूर्य पूजा और दान-पुण्य करने से पितृदोष का निवारण होता है। इस दिन पितरों को जल अर्पण करना अत्यंत शुभ माना गया है।
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Q9. क्या कन्या संक्रांति का ज्योतिषीय महत्व भी है?
हाँ, ज्योतिष के अनुसार जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते हैं तो इसका प्रभाव सभी राशियों पर पड़ता है। जिनकी कुंडली में सूर्य अशुभ स्थिति में हो, उनके लिए यह दिन विशेष पूजा का महत्व रखता है।
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Q10. कन्या संक्रांति 2025 में क्या विशेष है?
कन्या संक्रांति 2025 में सूर्य का कन्या राशि में प्रवेश विशेष संयोग बना रहा है। इस वर्ष संक्रांति के दिन पूजा, दान और व्रत करने से साधक को दीर्घायु, संतान सुख और समस्त बाधाओं से मुक्ति मिलेगी।
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Kanya Sankranti 2025: Kanya Sankranti Ke Din Is Katha Ka Karein Paath, Suryadev Ki Bani Rahegi Kripa!

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Kanya Sankranti Ka Parichay (Kanya Sankranti Kya Hai)

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Sanatan dharm mein Surya Dev ka vishesh mahatva hai. Jab Surya ek rashi se doosri rashi mein pravesh karte hain, us din ko Sankranti (Sankranti) kaha jaata hai. Varsh bhar mein kul 12 Sankrantiyan hoti hain aur pratyek ka apna adhyatmik va dharmik mahatva hai.
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Kanya Sankranti (Kanya Sankranti) tab hoti hai jab Surya Kanya Rashi (Virgo) mein pravesh karte hain. Jyotish shastra mein ise behad pavitra aur shubh din mana gaya hai. Is din Surya Dev ki upasana, vrat, katha paath aur daan-punya ka vishesh mahatva bataya gaya hai. Manyata hai ki is din Suryadev ki kripa se jeevan mein sukh-samriddhi, santan sukh aur parivar mein khushhali aati hai.
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Kanya Sankranti Pooja Vidhi (Kanya Sankranti Ki Pooja Vidhi)

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Kanya Sankranti ke din Suryoday se pehle uthkar snaan karna chahiye aur shuddh vastra dharan karne chahiye. Iske baad nimnalikhit vidhi se pooja karne ka vidhan hai –
1. Snaan aur Arghyadan – Tambe ke lote mein jal, laal pushp, gud aur akshat daalkar ugte Surya ko arghya den.
2. Surya Mantra Ka Jaap – Arghya dete samay “Om Ghṛṇi Suryaya Namah” mantra ka 11, 21 ya 108 bar jaap karein.
3. Pratima Poojan – Surya Dev ki pratima ya chitra par laal vastra, chandan, roli aur pushp chadhayein.
4. Vrat aur Aahar – Vrat rakhne wale bhakt keval falahar karein aur namak ka sevan na karein.
5. Daan-Punya – Brahmano ko bhojan karakar tamba, gehun, gud aur laal vastra ka daan karein.
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Kanya Sankranti Ki Pauranik Katha (Kanya Sankranti Ki Katha)

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Pauranik kathao ke anusar, ek samay Prithvi par ghor andhkaar chha gaya. Suryadev krodhit hokar apni kirnein chhupa liye. Jeev-jantu, manushya aur vanaspatiyaan sabhi kasht mein pad gaye. Tab Rishi Kashyap ne kathor tapasya karke Suryadev ko prasann kiya. Suryadev prakat hue aur kaha – “Jo bhi bhakt Kanya Sankranti ke din meri pooja aur is katha ka paath karega, uski sabhi ichchhaayein poorn hongi aur uske jeevan mein kabhi andhkaar nahi rahega.”
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Ek katha mein ullekh hai ki ek nirdhan Brahman, jiski santan nahi thi, usne Kanya Sankranti vrat aur katha ka paath kiya. Kuch samay baad use putra ratna ki prapti hui aur uske jeevan mein sukh-samriddhi aa gayi. Tabhi se yeh parampara bani ki Kanya Sankranti par vrat, katha paath aur daan karne se santan sukh aur jeevan ki sabhi baadhaayein door hoti hain.
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Sankranti Par Daan Ka Mahatva (Sankranti Par Dan Ka Mahatva)

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Hindu shastron mein daan ko sarvottam dharm bataya gaya hai. Kaha gaya hai ki “Danat Prapyate Swargah” arthaat daan karne se swarg ki prapti hoti hai. Kanya Sankranti par vishesh roop se in vastuon ka daan shubh mana gaya hai jaise tambe ke patra, laal vastra, gehun aur gud, anaj aur phal tatha Brahmano ko bhojan. Manyata hai ki in daano se pitru dosh aur grah-dosh ka nivaran hota hai tatha punyaphal prapt hota hai.
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Jyotishiya Mahatva (Kanya Sankranti 2025 Jyotish Mahatva)

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Jyotish shastra ke anusar jab Surya Kanya Rashi mein pravesh karte hain, to iska sabhi 12 rashiyon par prabhav padta hai. Khaaskar jinki janmakundali mein Surya ashubh sthiti mein hote hain, unke liye yeh din atyant phaldayi hota hai. Is din vrat, daan aur pooja karne se Suryadev ki kripa prapti hoti hai aur sath hi grah doshon ka nivaran hota hai. Career aur vyavsay mein safalta milti hai. Jeevan mein naye avsar prapt hote hain. Atmavishwas aur mansik shanti ki prapti hoti hai.
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Kanya Sankranti Ke Labh (Kanya Sankranti Ke Labh)

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Kanya Sankranti dharmik, adhyatmik aur samajik drishti se atyant mahatvapurn hai. Is din ke pramukh labh nimnalikhit hain –
1. Pitru Dosh Se Mukti – Surya Dev ki kripa se pitron ka ashirwad milta hai.
2. Grah Dosh Ka Nivaran – Ashubh grahon ka prabhav kam hota hai.
3. Santan Sukh Ki Prapti – Nisantan dampatti ko santan sukh ka ashirwad milta hai.
4. Sukh-Samriddhi Aur Dhan Labh – Ghar mein khushhali aur aarthik unnati hoti hai.
5. Mansik Shanti – Man mein sakaratmakta aur atmabal ka sanchar hota hai.
6. Aayu Vriddhi Aur Swasthya Labh – Niyamit vrat aur pooja se uttam swasthya ki prapti hoti hai.
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Kanya Sankranti Par Karne Yogya Upay (Kanya Sankranti Ke Upay)

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1. Subah jaldi uthkar nadi ya pavitra jalashay mein snaan karein.
2. Ugte Surya ko arghya arpit karein.
3. Gareebon aur zaruratmandon ko ann aur vastra daan karein.
4. Laal pushp aur laal vastra se Surya Dev ki pooja karein.
5. “Om Ghṛṇi Suryaya Namah” mantra ka jaap avashya karein.
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Kanya Sankranti 2025 (Kanya Sankranti 2025) ek jyotishiya ghatna ke sath hi aasha, shraddha aur vishwas ka parv hai. Is din vrat, pooja, katha aur daan se jahan ek or pitru-dosh aur grah-dosh door hote hain, wahi doosri or jeevan mein sukh, shanti aur samriddhi bhi aati hai. Suryadev ki kripa se vyakti ke jeevan mein andhkaar ka naash hokar ujjwal bhavishya ka marg prashast hota hai. Isliye har bhakt ko chahiye ki is din shraddha bhav se pooja aur katha ka paath karein.
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श्री झूलेलाल चालीसा हिंदी में | Jhulelal Chalisa Lyrics in Hindi and English

श्री झूलेलाल चालीसा हिंदी में | Jhulelal Chalisa Lyrics in Hindi and English

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श्री झूलेलाल चालीसा हिंदी में | Jhulelal Chalisa Lyrics in Hindi and English
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जलदेवता झूलेलाल जी की स्तुति हेतु चालीसा पाठ के लाभ, महत्व और संपूर्ण पाठ

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झूलेलाल जी को सिंधी समाज और जल के देवता के रूप में पूजा जाता है। इन्हें वरुण देवता का अवतार माना जाता है। जलदेवता झूलेलाल जी की आराधना से जीवन में सुख-समृद्धि, शांति और उन्नति प्राप्त होती है। भक्तजन उनकी कृपा के लिए झूलेलाल चालीसा का नियमित पाठ करते हैं। यह चालीसा न केवल भक्ति का अद्भुत माध्यम है बल्कि जीवन के दुखों को दूर करने और इच्छाओं की पूर्ति का भी साधन है।
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झूलेलाल चालीसा का महत्व (Jhulelal Chalisa Ka Mahatva)

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झूलेलाल जी की स्तुति करने से व्यक्ति को आत्मिक शांति और शक्ति मिलती है। जलदेवता झूलेलाल जी की कृपा से जीवन के संकट दूर होते हैं। और यदि जीवन में कोई संकट आ भी जाये तो श्री झूलेलाल जी की कृपा से वे शीघ्र ही दूर हो जाते हैं। परिवार में सुख-समृद्धि और एकता बनी रहती है। भक्त की मनोकामनाएं श्रीझूलेलाल जी अवश्‍य पूर्ण करते हैं। भक्‍तों में सकारात्‍मकता का संचार होता है तथा नकारात्मक ऊर्जा और बाधाएं दूर होती हैं। मानसिक शांति और आत्मबल पुष्‍ट होता है। चालीसा का पाठ 40 दिनों तक लगातार करने से भक्त को दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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झूलेलाल चालीसा पाठ के लाभ (Jhulelal Chalisa Path Ke Labh)

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चालीसा पाठ के लाभ अनेकों हैं, जो भक्त के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाते हैं। इसका पाठ कठिन समय में हिम्मत और आत्मविश्वास प्रदान करता है तथा कठिनाइयों से लड़ने की क्षमता उत्‍पन्‍न करता है। जीवन की रुकावटें और बाधाएं समाप्त होती हैं। घर-परिवार में शांति और समृद्धि आती है। जल संबंधी समस्याओं और प्राकृतिक विपदाओं से रक्षा होती है। व्यक्ति के भीतर श्रद्धा और भक्ति की भावना बढ़ती है।
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संपूर्ण झूलेलाल चालीसा पाठ (Sampurna Jhulelal Chalisa Path)

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भक्तजन प्रतिदिन प्रातःकाल और सायं काल में झूलेलाल चालीसा का पाठ करते हैं। इस पाठ में झूलेलाल जी के जीवन, चमत्कारों और भक्तों के दुख दूर करने के प्रसंग वर्णित हैं। चालीसा का पाठ करते समय दीप जलाना और शुद्ध भाव से ध्यान लगाना अत्यंत फलदायी माना जाता है।
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जलदेवता झूलेलाल जी की स्तुति के लिए झूलेलाल चालीसा का पाठ अत्यंत शुभ और कल्याणकारी माना जाता है। इसके माध्यम से भक्त को आध्यात्मिक बल तो  मिलता ही है साथ ही जीवन के कष्ट भी समाप्त होते हैं। यदि आप अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि चाहते हैं, तो नियमित रूप से श्रद्धा और भक्ति भाव से झूलेलाल चालीसा का पाठ अवश्य करें।
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॥ दोहा ॥
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जय जय जल देवता,
जय ज्योति स्वरूप ।
अमर उदेरो लाल जय,
झूलेलाल अनूप ॥
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॥ चौपाई ॥
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रतनलाल रतनाणी नंदन ।
जयति देवकी सुत जग वन्दन ॥
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दरियाशाह वरुण अवतारी ।
जय जय लाल साईं सुखकारी ॥
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जय जय होय धर्म की भीरा ।
जिन्दा पीर हरे जन पीरा ॥
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संवत दस सौ सात मंझरा ।
चैत्र शुक्ल द्वितीया भगव वारा ॥४॥
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ग्राम नसरपुर सिंध प्रदेशा ।
प्रभु अवतारे हरे जन कलेशा ॥
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सिन्धु वीर ठट्ठा राजधानी ।
मिरखशाह नौप अति अभिमानी ॥
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कपटी कुटिल क्रूर कुविचारी ।
यवन मलिनमन अत्याचारी ॥
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धर्मांतरण करे सब केरा ।
दुखी हुए जन कष्ट वृंदा ॥८॥
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पित्वाया हाकिम ढिंढोरा ।
हो इस्लाम धर्म चाहुँओरा ॥
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सिंधी प्रजा बहुत घबराई ।
इष्ट देव को टेर लगाएं ॥
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वरुण देव पूजे बहुंभाति ।
बिन जल अन्न गए दिन राती ॥
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सिंधी तीर सब दिन चालीसा ।
घर घर ध्यान लगाये ईशा ॥१२॥
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गरज उठ नाद सिन्धु सहसा ।
चारो और उठ नव हर्षा ॥
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वरुणदेव ने सुनी पुकारा ।
प्रकटे वरुण मीन आसवारा ॥
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दिव्य पुरुष जल ब्रह्मा स्वरूपा ।
कर पुस्तक नवरूप अनुना ॥
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हर्षित हुए सकल नर नारी ।
वरुणदेव की महिमा न्यारी ॥१६॥
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जय जय कारसंभव चाहुँओरा ।
गयी रात आने को भोर॥
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मिरखशाह नौप अत्याचारी ।
नष्ट हो गयी शक्ति सारी ॥
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दूर अधर्म, हरण भू भारा ।
शीघ्र नसरपुर में अवतारा ॥
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रतनराय रातनानी आँगन ।
खेलेंगे, आउंगा बच्चा बन ॥२०॥
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रतनराय घर ख़ुशी आई ।
झूलेलाल अवतारे सब देय बधाई ॥
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घर घर मंगल गीत सुहाए ।
झूलेलाल हरण दुःखे ॥
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मिर्खशाह तक चर्चा आई ।
भेजा मंत्री क्रोध दूरा॥
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मंत्री ने जब बाल निहारा ।
धीरज गया हृदय का सारा ॥२४॥
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देखि मंत्री साईं की लीला ।
अधिक विचित्र विमोहन शीला ॥
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बूढ़ा दिखा युवा सेनानी ।
देखा मंत्री बुद्धि चक्रानी ॥
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योद्धा रूप दिखे भगवाना ।
मंत्री हुए विगत अभिमान ॥
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झूलेलाल दिया आदेश ।
जा तव नूपति कहोसंदेशा ॥२८॥
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मिरखशाह नौप ताजे गुमाना ।
हिन्दू मुस्लिम एक समाना ॥
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बंद करो नित्य अत्याचार ।
त्यागो धर्मान्तरण विचारा ॥
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लेकिन मिर्खशाह अभिमानी ।
वरुणदेव की बात न मानी ॥
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एक दिन हो अश्व सवारा ।
झूलेलाल गये दरबारा ॥३२॥
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मिर्खशाह नौप ने आज्ञा दी ।
झूलेलाल बनाओ बंदी ॥
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किया स्वरूप वरुण का धारण ।
चारो और हुआ जल प्लावन ॥
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पठाकी डूबे उतराये ।
नौप के होश ठिकाने आये ॥
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फिर तब पड़ा चरण में आई ।
जय जय धन्य जय साईं ॥३६॥
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वापस लिया नौपति आदेश ।
दूर दूर सब जन क्लेशा ॥
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संवत दस सौ बीस मंझारी ।
भाद्रशुक्ल चौदस शुभकारी ॥
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भक्तो की हर आधी व्याधि ।
जल में ली जलदेव समाधि ॥
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जो जन धरे आज भी ध्यान ।
उनका वरुण करे कल्याणा ॥४०॥
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॥ दोहा ॥
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चालीसा चालीस दिन पाठ करे जो कोय ।
पावे मन्वांचित फल अरु जीवन सुखमय होय ॥
॥ ॐ श्री वरुणाय नमः ॥
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श्री झूलेलाल चालीसा हिंदी में | Jhulelal Chalisa Lyrics in Hindi and English

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॥ Doha ॥
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Jai Jai Jal Devta,
Jai Jyoti Swaroop ।
Amar Udero Lal Jai,
Jhulelal Anoop ॥
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॥ Chaupai ॥
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Ratanlal Ratanani Nandan ।
Jayati Devki Sut Jag Vandan ॥
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Dariyashah Varun Avatari ।
Jai Jai Lal Saain Sukhkari ॥
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Jai Jai Hoy Dharm Ki Bheera ।
Jinda Peer Hare Jan Peera ॥
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Samvat Das Sau Saat Manjhara ।
Chaitra Shukl Dvitiya Bhagav Vara ॥4॥
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Gram Nasarpur Sindh Pradesh ।
Prabhu Avatare Hare Jan Klesha ॥
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Sindhu Veer Thattha Rajdhani ।
Mirkhshah Naup Ati Abhimani ॥
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Kapati Kutil Krur Kuvichari ।
Yavan Malinman Atyachari ॥
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Dharmantaran Kare Sab Kera ।
Dukhi Hue Jan Kasht Vrinda ॥8॥
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Pitvaya Hakim Dhindhora ।
Ho Islam Dharm Chahuyora ॥
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Sindhi Praja Bahut Ghabrai ।
Isht Dev Ko Ter Lagaye ॥
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Varun Dev Puje Bahumbhati ।
Bin Jal Ann Gaye Din Rati ॥
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Sindhi Teer Sab Din Chalisa ।
Ghar Ghar Dhyan Lagaye Isha ॥12॥
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Garaj Uth Naad Sindhu Sahsa ।
Charo Aur Uth Nav Harsha ॥
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Varun Dev Ne Suni Pukara ।
Prakate Varun Meen Aswara ॥
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Divya Purush Jal Brahma Swaroopa ।
Kar Pustak Navroop Anuna ॥
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Harshit Hue Sakal Nar Naari ।
Varun Dev Ki Mahima Nyari ॥16॥
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Jai Jai Karasambhav Chahuyora ।
Gayi Raat Aane Ko Bhor ॥
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Mirkhshah Naup Atyachari ।
Nasht Ho Gayi Shakti Saari ॥
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Door Adharm, Haran Bhu Bhaara ।
Shighra Nasarpur Mein Avtara ॥
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Ratanray Ratanani Aangan ।
Khelenge, Aaunga Bachcha Ban ॥20॥
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Ratanray Ghar Khushi Aayi ।
Jhulelal Avatare Sab Dey Badhai ॥
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Ghar Ghar Mangal Geet Suhaye ।
Jhulelal Haran Dukhe ॥
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Mirkhshah Tak Charcha Aayi ।
Bheja Mantri Krodh Doora ॥
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Mantri Ne Jab Baal Nihara ।
Dheeraj Gaya Hriday Ka Saara ॥24॥
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Dekhi Mantri Saain Ki Leela ।
Adhik Vichitra Vimohan Sheela ॥
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Boodha Dikha Yuva Senani ।
Dekha Mantri Buddhi Chakrani ॥
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Yoddha Roop Dikhe Bhagwana ।
Mantri Hue Vigt Abhiman ॥
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Jhulelal Diya Aadesh ।
Ja Tav Nupati Kaho Sandesha ॥28॥
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Mirkhshah Naup Taje Gumana ।
Hindu Muslim Ek Samana ॥
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Band Karo Nitya Atyachar ।
Tyago Dharmantaran Vichara ॥
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Lekin Mirkhshah Abhimani ।
Varun Dev Ki Baat Na Mani ॥
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Ek Din Ho Ashva Sawara ।
Jhulelal Gaye Darbara ॥32॥
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Mirkhshah Naup Ne Aagya Di ।
Jhulelal Banao Bandi ॥
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Kiya Swaroop Varun Ka Dharan ।
Charo Aur Hua Jal Plavan ॥
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Pathaki Doobe Utaraye ।
Naup Ke Hosh Thikane Aaye ॥
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Fir Tab Pada Charan Mein Aayi ।
Jai Jai Dhanya Jai Saain ॥36॥
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Vapas Liya Naupati Aadesh ।
Door Door Sab Jan Klesha ॥
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Samvat Das Sau Bees Manjhari ।
Bhadra Shukl Chaudas Shubhkaari ॥
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Bhakto Ki Har Adhi Vyadhi ।
Jal Mein Li Jaldev Samadhi ॥
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Jo Jan Dhare Aaj Bhi Dhyan ।
Unka Varun Kare Kalyaan ॥40॥
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॥ Doha ॥
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Chalisa Chalis Din Paath Kare Jo Koy ।
Paave Manvanchhit Phal Aru Jeevan Sukhmaya Hoy ॥
॥ Om Shri Varunay Namah ॥
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Frequently Asked Questions (FAQ) : Jhulelal Chalisa

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1. झूलेलाल जी कौन हैं?
झूलेलाल जी को जलदेवता और वरुण देव का अवतार माना जाता है। वे सिंधी समाज के आराध्य देव हैं और जल तथा जीवन के रक्षक कहलाते हैं।
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2. झूलेलाल चालीसा का महत्व क्या है?
झूलेलाल चालीसा का पाठ करने से जीवन के संकट दूर होते हैं, मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
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3. झूलेलाल चालीसा पाठ कब करना चाहिए?
भक्तजन प्रातःकाल या सायंकाल शुद्ध मन और भक्ति भाव से दीप जलाकर चालीसा का पाठ करते हैं।
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4. चालीसा का पाठ कितने दिनों तक करना शुभ होता है?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, झूलेलाल चालीसा का 40 दिनों तक लगातार पाठ करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं।
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5. झूलेलाल चालीसा पढ़ने के लाभ क्या हैं?
इस पाठ से दुख, संकट और बाधाएं दूर होती हैं, मानसिक शांति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।
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6. क्या झूलेलाल चालीसा पाठ जल संबंधी समस्याओं से रक्षा करता है?
हाँ, मान्यता है कि चालीसा पाठ से जल संबंधी रोग, आपदा या विपत्ति से सुरक्षा मिलती है।
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7. झूलेलाल चालीसा पाठ करने की सही विधि क्या है?
स्नान करके, दीपक जलाकर और शुद्ध मन से ध्यान लगाकर चालीसा का पाठ करना सबसे उत्तम माना जाता है।
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8. क्या स्त्रियाँ भी झूलेलाल चालीसा का पाठ कर सकती हैं?
हाँ, स्त्री-पुरुष दोनों ही भक्ति भाव से चालीसा पाठ कर सकते हैं और झूलेलाल जी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
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9. क्या झूलेलाल चालीसा पाठ से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं?
हाँ, श्रद्धा और विश्वास के साथ नियमित रूप से चालीसा पाठ करने पर भक्त की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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10. झूलेलाल चालीसा का पाठ किन लोगों को विशेष रूप से करना चाहिए?
जो व्यक्ति जीवन में संकट, मानसिक तनाव, जल संबंधी समस्या या परिवारिक कलह से जूझ रहे हैं, उनके लिए यह पाठ विशेष लाभकारी है।
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श्री झूलेलाल आरती लिरिक्स|| श्री झूलेलाल जी की आरती पाठ: लाभ, महत्व और धार्मिक मान्यताएँ | Jhulelal Ji Aarti Benefits

श्री झूलेलाल जी की आरती पाठ: लाभ, महत्व और धार्मिक मान्यताएँ | Jhulelal Ji Aarti Benefits

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श्री झूलेलाल आरती आरती लिरिक्स|| श्री झूलेलाल जी की आरती पाठ: लाभ, महत्व और धार्मिक मान्यताएँ | Jhulelal Ji Aarti Benefits
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सनातन धर्म का स्वरूप अत्यन्त व्यापक और समावेशी है। इसमें प्रत्येक वर्ग, जाति और समुदाय के लोग अपनी आस्था और भक्ति के साथ जुड़े हुए हैं। यही कारण है कि सनातन परंपरा में अनगिनत देवी–देवताओं की पूजा और आराधना देखने को मिलती है। प्रत्येक समाज ने अपनी आवश्यकताओं, जीवनशैली और परिस्थितियों के अनुसार किसी न किसी आराध्य देवता को मान्यता दी है। इन्हीं में से एक आराध्य देवता हैं – श्री झूलेलाल जी, जिन्हें विशेष रूप से सिंध समाज का इष्ट देवता माना जाता है।
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सिंधी समाज का इतिहास और संस्कृति प्राचीन काल से ही जल से गहराई से जुड़ा रहा है। सिंधु नदी के किनारे बसा यह समाज अपने जीवनयापन और अस्तित्व के लिए सदैव जल पर निर्भर रहा है। इसी कारण जल और जीवन की रक्षा करने वाले देवता के रूप में महाराज झूलेलाल जी का प्रकट होना और उनका आराध्य बनना, ऐतिहासिक तथा धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, झूलेलाल जी केवल सिंध समाज के ही नहीं, बल्कि उन सभी भक्तों के रक्षक और पालनकर्ता हैं जो श्रद्धा और विश्वास के साथ उनकी आराधना करते हैं।
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यह विश्वास किया जाता है कि जो भी व्यक्ति महाराज झूलेलाल जी की आरती पढ़ता या श्रद्धा से सुनता है, उसे जल से संबंधित किसी भी प्रकार की बीमारी, कष्ट या बाधा का सामना नहीं करना पड़ता। जल तत्व से जुड़े रोग जैसे कि पाचन से संबंधित समस्याएँ, जलजनित बीमारियाँ या फिर जीवन में जल संकट की स्थितियाँ, सब झूलेलाल जी की कृपा से दूर हो जाती हैं। इस मान्यता के पीछे यह गहरा भाव छिपा है कि झूलेलाल जी जल के अधिपति और संरक्षक देवता हैं, और उनका स्मरण करने से भक्त को सुरक्षित और निरोगी जीवन की प्राप्ति होती है।
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केवल इतना ही नहीं, बल्कि यह भी कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन निष्ठापूर्वक झूलेलाल जी की आरती करता है, तो उसके जीवन से सभी प्रकार की विपत्तियाँ और संकट स्वतः ही दूर हो जाते हैं। दैनिक जीवन में जो दुख, कष्ट, बाधाएँ और विपरीत परिस्थितियाँ आती हैं, उनका निवारण झूलेलाल जी की कृपा से होता है। भक्त के मन को स्थिरता और साहस मिलता है, जिससे वह कठिन से कठिन परिस्थिति का भी सामना कर पाता है।
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झूलेलाल जी की आराधना केवल धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं है, बल्कि यह आस्था और विश्वास की वह डोर है जो भक्त को परमात्मा से जोड़ती है। आरती के माध्यम से भक्त अपने हृदय को निर्मल करता है और अपने जीवन को सकारात्मक दिशा देने का प्रयास करता है। जब मनुष्य श्रद्धा से ईश्वर का स्मरण करता है, तो उसके जीवन में आत्मबल और शांति का संचार होता है। यही कारण है कि आरती को केवल पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और मानसिक संतुलन का साधन माना गया है।
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अंततः यह कहा जा सकता है कि सनातन धर्म की महानता इसी में है कि उसमें सभी समाजों और वर्गों के आराध्य देवताओं का सम्मान और पूजन किया जाता है। सिंध समाज के आराध्य श्री झूलेलाल जी केवल जल के रक्षक ही नहीं, बल्कि भक्तों के जीवन को संकटमुक्त करने वाले दिव्य शक्ति स्वरूप हैं। उनकी आरती का पाठ करने से भक्त का जीवन सुख, समृद्धि और शांति से परिपूर्ण होता है। यही कारण है कि आज भी सिंध समाज ही नहीं, बल्कि अनेक श्रद्धालु झूलेलाल जी की आराधना करते हैं और अपने जीवन में आनंद, बल और आश्रय का अनुभव पाते हैं।
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ॐ जय दूलह देवा 
साईं जय दूलह देवा ।
पूजा कनि था प्रेमी 
सिदुक रखी सेवा ॥ ॐ जय॥ 
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तुहिंजे दर दे केई 
सजण अचनि सवाली ।
दान वठन सभु दिलि
सां कोन दिठुभ खाली ॥ ॐ जय॥
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अंधड़नि खे दिनव 
अखडियूँ - दुखियनि खे दारुं ।
पाए मन जूं मुरादूं 
सेवक कनि थारू ॥ ॐ जय॥
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फल फूलमेवा सब्जिऊ 
पोखनि मंझि पचिन ।
तुहिजे महिर मयासा अन्न 
बि आपर अपार थियनी ॥ ॐ जय॥
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ज्योति जगे थी जगु में 
लाल तुहिंजी लाली ।
अमरलाल अचु मूं वटी 
हे विश्व संदा वाली ॥ ॐ जय॥
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जगु जा जीव सभेई 
पाणिअ बिन प्यास ।
जेठानंद आनंद कर 
पूरन करियो आशा ॥ ॐ जय॥
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ॐ जय दूलह देवा 
साईं जय दूलह देवा ।
पूजा कनि था प्रेमी 
सिदुक रखी सेवा ॥ ॐ जय॥
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झूलेलाल आरती के आरती लिरिक्स|| झूलेलाल जी की आरती पाठ: लाभ, महत्व और धार्मिक मान्यताएँ | Jhulelal Ji Aarti Benefits

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Om Jai Dulah Deva
Sain Jai Dulah Deva ।
Pooja kani tha Premi
Siduk rakhi Seva ॥ Om Jai॥
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Tuhinje Dar de kei
Sajan Achani Sawali ।
Daan vathan sabhu dili
Saan kon dithubh khaali ॥ Om Jai॥
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Andharani khe dinav
Akhadiyun - Dukhiyni khe Daarun ।
Paaye man joon Muradoon
Sevak kani Thaaru ॥ Om Jai॥
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Phal Phool Meva Sabjiyoon
Pokhani manjhi Pachin ।
Tuhije Mahir Mayasa Ann
Bi aapar apaar thiyani ॥ Om Jai॥
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Jyoti jage thi jagu mein
Lal Tuhinji Laali ।
Amarlal achu moon vati
Hey Vishw Sanda Wali ॥ Om Jai॥
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Jagu ja jeev sabheyi
Paania bin Pyaas ।
Jethanand Anand kar
Puran kariyo Aasha ॥ Om Jai॥
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Om Jai Dulah Deva
Sain Jai Dulah Deva ।
Pooja kani tha Premi
Siduk rakhi Seva ॥ Om Jai॥
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झूलेलाल जी की आरती पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
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Q1. झूलेलाल जी कौन हैं?
Ans: झूलेलाल जी सिंधु समाज के आराध्य देव माने जाते हैं। इन्हें जल देवता का स्वरूप माना जाता है और विशेषकर सिंधी समाज में इनकी आरती व पूजा का महत्व है।
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Q2. झूलेलाल जी की आरती कब करनी चाहिए?
Ans: झूलेलाल जी की आरती रोज़ाना प्रातः और सायंकाल करने की परंपरा है। विशेष अवसरों और त्यौहारों पर भी आरती की जाती है।
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Q3. झूलेलाल जी की आरती करने से क्या लाभ होता है?
Ans: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति श्रद्धा से आरती करता है उसे जल से जुड़ी किसी भी बीमारी का भय नहीं रहता और उसके जीवन से दुख-संकट दूर होते हैं।
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Q4. झूलेलाल जी की आरती किन-किन भाषाओं में उपलब्ध है?
Ans: झूलेलाल जी की आरती हिंदी, सिंधी और रोमन लिपि (Roman Hindi/Hinglish) में उपलब्ध होती है ताकि सभी लोग आसानी से पढ़ सकें।
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Q5. क्या झूलेलाल जी की आरती केवल सिंधी समाज ही करता है?
Ans: नहीं, यद्यपि झूलेलाल जी सिंधी समाज के प्रमुख आराध्य हैं, लेकिन जल देवता के रूप में इनकी आरती और पूजा सभी लोग कर सकते हैं।
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Q6. झूलेलाल जी की आरती में क्या विशेषता है?
Ans: इस आरती में झूलेलाल जी के चमत्कारों, कृपा, और भक्तों की रक्षा करने के गुणों का वर्णन किया गया है।
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Q7. झूलेलाल जी की आरती कितनी लंबी होती है?
Ans: यह आरती लगभग 7 से 10 मिनट में गाई जाती है।
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Q8. झूलेलाल जी की आरती कैसे करनी चाहिए?
Ans: साफ और पवित्र स्थान पर दीपक और धूप जलाकर, श्रद्धा भाव से आरती की जाती है। भजन या सिंधी लोक वाद्य यंत्रों के साथ इसे गाना और सुनना श्रेष्ठ माना गया है।
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Q9. क्या झूलेलाल जी की आरती सुनने का भी उतना ही लाभ है जितना पढ़ने का?
Ans: हाँ, धार्मिक विश्वास के अनुसार, झूलेलाल जी की आरती को सुनना भी उतना ही पुण्यदायी है जितना पढ़ना।
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Q10. झूलेलाल जी की आरती के बाद क्या करना चाहिए?
Ans: आरती के बाद जल का आचमन, प्रसाद वितरण और परिवार या समाज के बीच आरती का प्रसार करना शुभ माना जाता है।
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सोमवार, 15 सितंबर 2025

जीवित्पुत्रिका व्रत : महत्व, पूजन विधि व जितिया व्रत की कथाएँ | Jitiya Vrat Katha PDF Download

जीवित्पुत्रिका व्रत : महत्व, पूजन विधि व जितिया व्रत की कथाएँ | Jitiya Vrat Katha PDF Download
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जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत का महत्‍व एवं विधि (Jitiya Vrat Ka Mahatva evam Vidhi)

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो कोई भी महिला जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत करती है उसकी संतान पर कभी कोई बड़ा संकट नहीं आता। साथ ही संतान का जीवन सुख से भर जाता है। महिलायें इस व्रत में अन्‍न-जल ग्रहण नहीं करती हैं अर्थात इस दिन निर्जला रहती हैं। इस दिन कुशा से बनी जीमूतवाहन की प्रतिमा की पूजा करने का विधान है। साथ ही मिट्टी और गाय के गोबर से चील और सियारिन की मूर्ति भी बनायी जाती है। महिलायें शुभ मुहूर्त में विधि विधान पूजा करके जितिया की कथा सुनती हैं।
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जितिया व्रत कथा / चील और सियारिन की कथा (Jitiya Vrat Katha / Cheel aur Siyari Ki Katha)

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किसी समय में एक वन में एक चील और सियारिन रहती थी। दोनों में पक्‍की मित्रता थी और वे हर काम को आपस में मिल-बांट के किया करती थीं। एक बार कुछ महिलाएं जंगल में आई जो जितिया व्रत की आपस में बात कर रही थीं। चील के मन में इस व्रत के बारे में जानने की इच्‍छा हुई। वह महिलाओं के पास जाकर उनसे व्रत के बारे में पूछने लगी। महिलाओं ने जितिया व्रत के विधान के बारे में चील को सारी बात बता दी। 
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चील ने जाकर इस व्रत के बारे में अपनी मित्र सियारिन को बताया। जिसके बाद दोनों ने जितिया माता का व्रत और पूजन करने का संकल्‍प लिया और शाम को पूजा की। लेकिन पूजा के बाद ही चील और सियारिन को भूख लगने लगी। जब सियारिन को भूख बर्दास्त नहीं हुई तो वह जंगल में शिकार करने चली गई। सियारिन जब मांस को खा रही थी, तभी चील ने उसे देख लिया और उसने सियारिन की बहुत डांट लगाई। सियारिन का व्रत खण्डित हो गया जबकि चील ने व्रत को पूरी विधि से पूर्ण किया। 
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अगले जन्म में सियारिन और चील बहन के रूप में एक प्रतापी राजा के यहां जन्‍मीं। सियारिन का विवाह एक राजकुमार से हुआ और चील का विवाह राज्य मंत्री के पुत्र से हुआ। कुछ समय बीता तो सियारिन ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन जन्म के कुछ दिन बाद ही उसके पुत्र की मृत्यु हो गई। इसके बाद चील ने भी एक पुत्र को जन्म दिया, जो जीवित तथा स्वास्थ्य रहा। यह देख सियारिन को अपनी बहन चील से ईर्ष्या होने लगी।
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जलन में आकर सियारिन ने अपने बहन के पुत्र और पति को मरवाने की कोशिश की, परंतु दोनों ही बच गए। एक दिन देवी मां सियारिन के सपने में आई और उन्होंने सियारिन से कहा कि यह तुम्हारे पूर्व जन्म के कर्म का फल है, अगर तुम अपनी परिस्थिति ठीक करना चाहती हो तो मां जितिया का व्रत और उपासना करो। 
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प्रातः काल उठकर इस सपने के बारे में सियारिन ने अपने पति को बताया। सियारिन के पति ने यह सुन सियारिन को ये व्रत करने की अनुमति दे दी साथ ही उसकी बहन चील से माफी मांगने को भी कहा। इसके बाद सियारिन चील के घर गई और उससे अपने गलतियों की माफी मांगी। सियारिन को उसकी गलतियों पर पछतावा देखकर चील ने उसे माफ कर दिया।
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अगले साल जब जितिया व्रत पड़ा तो ये व्रत सियारिन और उसकी बहन चील दोनों ने एक साथ रखा। माता जितिया ने प्रसन्न होकर सियारिन को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। कुछ दिनों बाद ही सियारिन ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया। इसके बाद दोनों बहन प्रेम भाव से खुशी-खुशी रहने लगी।   
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जितिया व्रत की दूसरी कथा (Jivitputrika Vrat Katha)

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जब वृद्धावस्था में जीमूतवाहन के पिता ने अपना सारा राजपाट त्यागकर वानप्रस्थ आश्रम जाने का निर्णय लिया, तब जीमूतवाहन ने अपने साम्राज्य को अपने भाइयों को सौंपकर अपने पिता की सेवा करने के लिए जंगल की ओर प्रस्थान किया। जीमूतवाहन का विवाह मलयवती नामक एक राजकन्या से हुआ। एक दिन, जीमूतवाहन जब जंगल में जा रहे थे तो उन्हें एक बूढ़ी महिला रोते हुए दिखी। जीमूतवाहन को पता चला कि वह नागवंश की स्त्री है। वृद्ध महिला ने आगे बताया कि नागों ने पक्षियों के राजा गरुण को रोजाना खाने के लिए नागों की बलि देने का वचन दिया है और इसी के कारण अब उसके बेटे शंखचूड़ की बारी है।
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यह सुनकर जीमूतवाहन ने महिला को कहा कि वह स्वयं अपनी बलि दे देंगे। इसके बाद, जीमूतवाहन ने शंखचूड़ से लाल कपड़ा लिया और वह अपनी बलि देने के लिए चट्टान पर लेट गए। जब गरुण आए, तो उन्होंने लाल कपड़े में ढके जीव को देखा और वह उसे पहाड़ की ऊंचाई पर उड़ा ले गए। पंजों में जकड़े हुए जब पीड़ा के कारण जीमूतवाहन कराहने लगे और तब गरुड़ की नजर उनपर पड़ी और उन्होंने जीमूतवाहन से पूछा कि वह कौन हैं और नागों के स्थान पर वह क्या कर रहे हैं। इसके बाद जीमूतवाहन ने गरुड़ राज को पूरी बात बताई।  जीमूतवाहन की बहादुरी और त्याग से गरुण प्रसन्न हुए। इसके बाद गरुड़ राज ने न केवल जीमूतवाहन को जीवनदान दिया बल्कि यह भी निश्‍चय किया कि वे आगे से नागों की बलि नहीं लेंगे। कहते हैं इसी घटना के बाद से जीमूतवाहन की पूजा की परंपरा शुरू हुई।
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जितिया व्रत की तीसरी कथा (Jitiya Ki Kahani)

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महाभारत युद्ध में अपने पिता गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गये। उन्‍होंने शिविर के अंदर पांच लोगों को सोते हुए पाया और उन्‍हें पांच पांडव समझकर मार दिया, परंतु वे द्रोपदी और पांडवों की पांच संतानें थीं। उसके उपरांत अुर्जन ने अश्वत्थामा की दिव्य मणि उसके माथे से निकाल ली।
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अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने की कोशिश की। जिसके लिए उसने उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र से वार किया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया। पुनः जीवित होने के कारण उसका नाम जीवित पुत्र पड़ा। चूंकि श्री कृष्ण ने उत्तरा की भी रक्षा की थी इसी कारण से वह जीवितपुत्रिका कहलाईं। ऐसी मान्यता है कि इस घटना के बाद से ही जीवितपुत्रिका या जितिया व्रत का आरंभ हुआ।
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Frequently Asked Questions (FAQ)

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1. जितिया व्रत कब रखा जाता है?
उत्तर: जितिया व्रत अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है, और यह व्रत दो दिन पहले सप्तमी से प्रारंभ होता है।
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2. जीवित्पुत्रिका व्रत क्यों किया जाता है?
उत्तर: यह व्रत माताएं अपनी संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए निर्जल उपवास रखकर करती हैं।
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3. जितिया व्रत में महिलाएं क्या खाती हैं?
उत्तर: इस दिन महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं, यानी न तो अन्न ग्रहण करती हैं और न ही जल। अगले दिन पारण के समय भोजन करती हैं।
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4. जितिया व्रत की मुख्य पूजा किसकी होती है?
उत्तर: इस व्रत में जीमूतवाहन, चील, सियारिन, तथा माँ जितिया की पूजा की जाती है।
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5. क्या जितिया व्रत सिर्फ महिलाओं द्वारा किया जाता है?
उत्तर: परंपरागत रूप से यह व्रत महिलाएं करती हैं, लेकिन कुछ क्षेत्रों में पुरुष भी अपनी संतान की रक्षा के लिए यह व्रत करते हैं।
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6. जितिया व्रत की पूजा कैसे की जाती है?
उत्तर: शुभ मुहूर्त में महिलाएं कुशा से जीमूतवाहन की प्रतिमा बनाकर, चील और सियारिन की मिट्टी व गोबर से मूर्ति बनाकर पूजा करती हैं और व्रत कथा सुनती हैं।
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7. जितिया व्रत की कौन-कौन सी प्रसिद्ध कथाएँ हैं?
उत्तर: प्रमुख कथाओं में चील-सियारिन की कथा, जीमूतवाहन की कथा, और अश्वत्थामा एवं जीवित पुत्र की कथा शामिल हैं।
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8. जितिया व्रत की शुरुआत कैसे हुई?
उत्तर: माना जाता है कि व्रत की शुरुआत अश्वत्थामा द्वारा उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र चलाने और भगवान श्रीकृष्ण द्वारा शिशु को पुनर्जीवित करने की घटना से हुई।
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9. इस व्रत में किन वस्तुओं का प्रयोग होता है?
उत्तर: कुशा, मिट्टी, गोबर, लाल धागा, धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, जल कलश, और कथा-पुस्तिका आदि का प्रयोग होता है।
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10. जितिया व्रत का पारण कब और कैसे किया जाता है?
उत्तर: व्रत का पारण नवमी तिथि को सूर्योदय के बाद किया जाता है। महिलाएं स्नान करके पूजन के बाद फलाहार या अन्न ग्रहण करती हैं।
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Jivitputrika Vrat ya Jitiya Vrat ka Mahatva evam Vidhi (Jitiya Vrat Ka Mahatva evam Vidhi)

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Dharmik manyataon ke anusar jo koi bhi mahila Jivitputrika Vrat ya Jitiya Vrat karti hai uski santaan par kabhi koi bada sankat nahi aata. Saath hi santaan ka jeevan sukh se bhar jaata hai. Mahilayein is vrat mein ann-jal grahan nahi karti hain arthaat is din nirjala rahti hain. Is din kusha se bani Jimutvahan ki pratima ki pooja karne ka vidhan hai. Saath hi mitti aur gaay ke gobar se cheel aur siyarin ki murti bhi banayi jaati hai. Mahilayein shubh muhurat mein vidhi vidhan pooja karke Jitiya ki katha sunti hain.
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Jitiya Vrat Katha / Cheel aur Siyarin Ki Katha (Jitiya Vrat Katha / Cheel aur Siyarin Ki Katha)

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Kisi samay mein ek van mein ek cheel aur siyarin rahti thi. Dono mein pakki mitrata thi aur ve har kaam ko aapas mein mil-baant ke kiya karti thin. Ek baar kuchh mahilaen jangal mein aayi jo Jitiya vrat ki aapas mein baat kar rahi thin. Cheel ke man mein is vrat ke baare mein jaanne ki ichchha hui. Vah mahilaon ke paas jaakar unse vrat ke baare mein poochhne lagi. Mahilaon ne Jitiya vrat ke vidhan ke baare mein cheel ko saari baat bata di.
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Cheel ne jaakar is vrat ke baare mein apni mitr siyarin ko bataya. Jiske baad dono ne Jitiya Mata ka vrat aur poojan karne ka sankalp liya aur shaam ko pooja ki. Lekin pooja ke baad hi cheel aur siyarin ko bhukh lagne lagi. Jab siyarin ko bhukh bardasht nahi hui to vah jangal mein shikaar karne chali gayi. Siyarin jab maans ko kha rahi thi, tabhi cheel ne use dekh liya aur usne siyarin ki bahut daant lagayi. Siyarin ka vrat khandit ho gaya jabki cheel ne vrat ko poori vidhi se poorn kiya.
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Agale janm mein siyarin aur cheel bahan ke roop mein ek pratapi raja ke yahan janmin. Siyarin ka vivaah ek rajkumar se hua aur cheel ka vivaah rajya mantri ke putra se hua. Kuchh samay beeta to siyarin ne ek putra ko janm diya lekin janm ke kuchh din baad hi uske putra ki mrityu ho gayi. Iske baad cheel ne bhi ek putra ko janm diya, jo jivit tatha svasth raha. Yah dekh siyarin ko apni bahan cheel se irshya hone lagi.
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Jalan mein aakar siyarin ne apne bahan ke putra aur pati ko marvane ki koshish ki, parantu dono hi bach gaye. Ek din devi maa siyarin ke sapne mein aayi aur unhone siyarin se kaha ki yah tumhare poorv janm ke karm ka phal hai, agar tum apni paristhiti theek karna chahti ho to maa Jitiya ka vrat aur upasana karo.
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Praatah kaal uthkar is sapne ke baare mein siyarin ne apne pati ko bataya. Siyarin ke pati ne yah sun siyarin ko ye vrat karne ki anumati de di saath hi uski bahan cheel se maafi maangne ko bhi kaha. Iske baad siyarin cheel ke ghar gayi aur usse apne galtiyon ki maafi maangi. Siyarin ko uski galtiyon par pachtava dekhkar cheel ne use maaf kar diya.
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Agale saal jab Jitiya vrat pada to ye vrat siyarin aur uski bahan cheel dono ne ek saath rakha. Mata Jitiya ne prasann hokar siyarin ko putra prapti ka aashirvaad diya. Kuchh dino baad hi siyarin ne ek sundar balak ko janm diya. Iske baad dono bahan prem bhav se khushi-khushi rahne lagi.
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Jitiya Vrat Ki Dusri Katha (Jivitputrika Vrat Katha)

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Jab vriddhavastha mein Jimutvahan ke pita ne apna saara rajpaat tyaagkar vanprasth aashram jaane ka nirnay liya, tab Jimutvahan ne apne samrajya ko apne bhaiyon ko saumpkar apne pita ki seva karne ke liye jangal ki aur prasthaan kiya. Jimutvahan ka vivaah Malayavati naamak ek rajkanya se hua. Ek din, Jimutvahan jab jangal mein ja rahe the to unhe ek budhi mahila rote hue dikhi. Jimutvahan ko pata chala ki vah Nagvansh ki stri hai. Vriddh mahila ne aage bataya ki naagon ne pakshiyon ke raja Garud ko roj khaane ke liye naagon ki bali dene ka vachan diya hai aur isi ke kaaran ab uske bete Shankhchud ki baari hai.
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Yah sunkar Jimutvahan ne mahila ko kaha ki vah swayam apni bali de denge. Iske baad, Jimutvahan ne Shankhchud se laal kapda liya aur vah apni bali dene ke liye chattan par let gaye. Jab Garud aaye, to unhone laal kapde mein dhake jeev ko dekha aur vah use pahad ki unchai par uda le gaye. Panjon mein jakde hue jab peeda ke kaaran Jimutvahan karaahe lage aur tab Garud ki nazar unpar padi aur unhone Jimutvahan se poocha ki vah kaun hain aur naagon ke sthan par vah kya kar rahe hain. Iske baad Jimutvahan ne Garud raj ko poori baat batayi. Jimutvahan ki bahaduri aur tyaag se Garud prasann hue. Iske baad Garud raj ne na keval Jimutvahan ko jeevandan diya balki yah bhi nishchay kiya ki ve aage se naagon ki bali nahi lenge. Kehte hain isi ghatna ke baad se Jimutvahan ki pooja ki parampara shuru hui.
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Jitiya Vrat Ki Teesri Katha (Jitiya Ki Kahani)

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Mahabharat yudh mein apne pita guru Dronacharya ki mrityu ka badla lene ke liye Ashwatthama Pandavon ke shivir mein ghus gaye. Unhone shivir ke andar paanch logon ko sote hue paaya aur unhein paanch Pandav samajhkar maar diya, parantu ve Draupadi aur Pandavon ki paanch santaanen thin. Uske uparant Arjun ne Ashwatthama ki divya mani uske maathe se nikaal li.
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Ashwatthama ne badla lene ke liye Abhimanyu ki patni Uttara ke garbh mein pal rahe bacche ko maarne ki koshish ki. Jiske liye usne Uttara ke garbh par Brahmastra se vaar kiya. Tab Bhagwan Shri Krishna ne Uttara ki ajnami santaan ko fir se jivit kar diya. Punah jivit hone ke kaaran uska naam Jivit Putra pada. Choonki Shri Krishna ne Uttara ki bhi raksha ki thi isi kaaran se vah Jivitputrika kehlaai. Aisi manyata hai ki is ghatna ke baad se hi Jivitputrika ya Jitiya vrat ka aarambh hua.
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Frequently Asked Questions (FAQ)

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Jitiya Vrat kab rakha jaata hai?
Uttar: Jitiya Vrat Ashwin maas ke Krishna paksh ki Ashtami tithi ko rakha jaata hai, aur yah vrat do din pehle Saptami se prarambh hota hai.
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Jivitputrika Vrat kyon kiya jaata hai?
Uttar: Yah vrat mataen apni santaan ki dirghayu, svasthya aur suraksha ke liye nirjal upvaas rakhkar karti hain.
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Jitiya Vrat mein mahilaen kya khati hain?
Uttar: Is din mahilaen nirjala upvaas karti hain, yani na to ann grahan karti hain aur na hi jal. Agle din paran ke samay bhojan karti hain.
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Jitiya Vrat ki mukhya pooja kinki hoti hai?
Uttar: Is vrat mein Jimutvahan, Cheel, Siyarin, tatha Maa Jitiya ki pooja ki jaati hai.
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Kya Jitiya Vrat sirf mahilaon dwara kiya jaata hai?
Uttar: Paramparagat roop se yah vrat mahilaen karti hain, lekin kuchh kshetron mein purush bhi apni santaan ki raksha ke liye yah vrat karte hain.
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Jitiya Vrat ki pooja kaise ki jaati hai?
Uttar: Shubh muhurat mein mahilaen kusha se Jimutvahan ki pratima banakar, cheel aur siyarin ki mitti va gobar se murti banakar pooja karti hain aur vrat katha sunti hain.
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Jitiya Vrat ki kaun-kaun si prasiddh kathayen hain?
Uttar: Pramukh kathayon mein cheel-siyarin ki katha, Jimutvahan ki katha, aur Ashwatthama evam Jivit Putra ki katha shamil hain.
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Jitiya Vrat ki shuruaat kaise hui?
Uttar: Mana jaata hai ki vrat ki shuruaat Ashwatthama dwara Uttara ke garbh par Brahmastra chalaane aur Bhagwan Shri Krishna dwara shishu ko punarjivit karne ki ghatna se hui.
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Is vrat mein kin vastuon ka prayog hota hai?
Uttar: Kusha, mitti, gobar, laal dhaaga, dhoop, deep, naivedya, pushp, jal kalash, aur katha-pustika aadi ka prayog hota hai.
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Jitiya Vrat ka paran kab aur kaise kiya jaata hai?
Uttar: Vrat ka paran Navami tithi ko suryoday ke baad kiya jaata hai. Mahilayein snaan karke poojan ke baad phalhaar ya ann grahan karti hain.
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रविवार, 7 सितंबर 2025

श्री वैभव लक्ष्मी व्रत कथा | Shukravar Vrat Katha | शुक्रवार व्रत कथा

श्री वैभव लक्ष्मी व्रत कथा || Shri Vaibhav Laxmi Vrat Katha || शुक्रवार व्रत कथा || Shukravar Vrat Katha

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सुख, शांति, वैभव और लक्ष्मी प्राप्ति के लिए अद्भुत चमत्कारी प्राचीन व्रत
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वैभव लक्ष्मी व्रत करने का नियम Vaibhav Lakshmi Vrat Karne Ka Niyam
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1. यह व्रत सौभाग्यशाली स्त्रियां करें तो उनका अति उत्तम फल मिलता है, पर घर में यदि सौभाग्यशाली स्त्रियां न हों तो कोई भी स्त्री एवं कुमारिका भी यह व्रत कर सकती है।
2. स्त्री के बदले पुरुष भी यह व्रत करें तो उसे भी उत्तम फल अवश्य मिलता है।
3. यह व्रत पूरी श्रद्धा और पवित्र भाव से करना चाहिए। खिन्न होकर या बिना भाव से यह व्रत नहीं करना चाहिए। 
4. यह व्रत शुक्रवार को किया जाता है। व्रत शुरु करते वक्त 11 या 21 शुक्रवार की मन्नत रखनी पड़ती है और बताई गई शास्त्रीय विधि अनुसार ही व्रत करना चाहिए। मन्नत के शुक्रवार पूरे होने पर विधिपूर्वक और बताई गई शास्त्रीय रीति के अनुसार उद्यापन करना चाहिए। यह विधि सरल है। किन्तु शास्त्रीय विधि अनुसार व्रत न करने पर व्रत का जरा भी फल नहीं मिलता है। 
5. एक बार व्रत पूरा करने के पश्चात फिर मन्नत कर सकते हैं और फिर से व्रत कर सकते हैं।
6. माता लक्ष्मी देवी के अनेक स्वरूप हैं। उनमें उनका ‘धनलक्ष्मी’ स्वरूप ही ‘वैभवलक्ष्मी’ है और माता लक्ष्मी को श्रीयंत्र अति प्रिय है। व्रत करते समय माता लक्ष्मी के विविध स्वरूप यथा श्रीगजलक्ष्मी, श्री अधिलक्ष्मी, श्री विजयलक्ष्मी, श्री ऐश्वर्यलक्ष्मी, श्री वीरलक्ष्मी, श्री धान्यलक्ष्मी एवं श्री संतानलक्ष्मी तथा श्रीयंत्र को प्रणाम करना चाहिए।
7. व्रत के दिन सुबह से ही ‘जय माँ लक्ष्मी’, ‘जय माँ लक्ष्मी’ का रटन मन ही मन करना चाहिए और माँ का पूरे भाव से स्मरण करना चाहिए।
8. शुक्रवार के दिन यदि आप प्रवास या यात्रा पर गये हों तो वह शुक्रवार छोड़कर उनके बाद के शुक्रवार को व्रत करना चाहिए अर्थात् व्रत अपने ही घर में करना चाहिए। कुल मिलाकर जितने शुक्रवार की मन्नत ली हो, उतने शुक्रवार पूरे करने चाहिए।
9. घर में सोना न हो तो चाँदी की चीज पूजा में रखनी चाहिए। अगर वह भी न हो तो रोकड़ रुपया रखना चाहिए।
10. व्रत पूरा होने पर कम से कम सात स्त्रियों को या आपकी इच्छा अनुसार जैसे 11, 21, 51 या 101 स्त्रियों को वैभवलक्ष्मी व्रत की पुस्तक कुमकुम का तिलक करके भेंट के रूप में देनी चाहिए। जितनी ज्यादा पुस्तक आप देंगे उतनी माँ लक्ष्मी की ज्यादा कृपा होगी और माँ लक्ष्मी जी के इस अद्भुत व्रत का ज्यादा प्रचार होगा।
11. व्रत के शुक्रवार को स्त्री रजस्वला हो या सूतकी हो तो वह शुक्रवार छोड़ देना चाहिए और बाद के शुक्रवार से व्रत शुरु करना चाहिए। पर जितने शुक्रवार की मन्नत मानी हो, उतने शुक्रवार पूरे करने चाहिए।
12. व्रत की विधि शुरु करते वक्त ‘लक्ष्मी स्तवन’ का एक बार पाठ करना चाहिए। लक्ष्मी स्तवन इस प्रकार है- 
या रक्ताम्बुजवासिनी विलसिनी चण्डांशु तेजस्विनीं।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी।।
या   रत्नाकरमन्थनात्प्रगटितां विष्णोस्वया गेहिनी।
सा   मां   पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती।।
अर्थात् - जो लाल कमल में रहती है, जो अपूर्व कांतिवाली हैं, जो असह्य तेजवाली हैं, जो पूर्णरूप से लाल हैं, जिसने रक्तरूप वस्त्र पहने हैं, जे भगवान विष्णु को अतिप्रिय हैं, जो लक्ष्मी मन को आनन्द देती हैं, जो समुद्रमंथन से प्रकट हुई है, जो विष्णु भगवान की पत्नी हैं, जो कमल से जन्मी हैं और जो अतिशय पूज्य है, वैसी हे लक्ष्मी देवी! आप मेरी रक्षा करें।
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13. व्रत के दिन हो सके तो उपवास करना चाहिए और शाम को व्रत की विधि करके माँ का प्रसाद लेकर व्रत करना चाहिए। अगर न हो सके तो फलाहार या एक बार भोजन कर के शुक्रवार का व्रत रखना चाहिए। अगर व्रतधारी का शरीर बहुत कमजोर हो तो ही दो बार भोजन ले सकते हैं। सबसे महत्व की बात यही है कि व्रतधारी माँ लक्ष्मी जी पर पूरी-पूरी श्रद्धा और भावना रखे और ‘मेरी मनोकामना माँ पूरी करेंगी ही’, ऐसा दृढ़ विश्वास रखकर व्रत करे।
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वैभवलक्ष्मी व्रत की कथा Vaibhav Lakshmi Vrat Ki Katha
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एक बड़ा शहर था। इस शहर में लाखों लोग रहते थे। पहले के जमाने के लोग साथ-साथ रहते थे और एक दूसरे के काम आते थे। पर नये जमाने के लोगों का स्वरूप ही अलग सा है। सब अपने अपने काम में रत रहते हैं। किसी को किसी की परवाह नहीं। घर के सदस्यों को भी एक-दूसरे की परवाह नहीं होती। भजन-कीर्तन, भक्ति-भाव, दया-माया, परोपकार जैसे संस्कार कम हो गये हैं। शहर में बुराइयाँ बढ़ गई थी। शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी-डकैती आदि बहुत से अपराध शहर में होते थे।
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कहावत है कि ‘हजारों निराशा में एक अमर आशा छिपी हुई है’ इसी तरह इतनी सारी बुराइयों के बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे। ऐसे अच्छे लोगों में शीला और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थी। शीला धार्मिक प्रकृति की और संतोषी थी। उनका पति भी विवेकी और सुशील था। शीला और उनका पति ईमानदारी से जीते थे। वे किसी की बुराई न करते थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे। उनकी गृहस्थी आदर्श गृहस्थी थी और शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे।
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शीला की गृहस्थी इसी तरह खुशी-खुशी चल रही थी। पर कहा जाता है कि ‘कर्म की गति अकल है’, विधाता के लिखे लेख कोई नहीं समझ सकता है। इन्सान का नसीब पल भर में राजा को रंक बना देता है और रंक को राजा। शीला के पति के अगले जन्म के कर्म भोगने बाकी रह गये होंगे कि वह बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा। वह जल्द से जल्द करोड़पति होने के ख्वाब देखने लगा। इसलिए वह गलत रास्ते पर चल निकला और करोड़पति के बजाय रोड़पति बन गया। याने रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी उसकी स्थिति हो गयी थी।
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शहर में शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा आदि बदियां फैली हुई थीं। उसमें शीला का पति भी फँस गया। दोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई। जल्द से जल्द पैसे वाला बनने की लालच में दोस्तों के साथ रेस जुआ भी खेलने लगा। इस तरह बचाई हुई धनराशि, पत्नी के गहने, सब कुछ रेस-जुए में गँवा दिया था। समय के परिवर्तन के साथ घर में दरिद्रता और भुखमरी फैल गई। सुख से खाने के बजाय दो वक्त के भोजन के लाले पड़ गये और शीला को पति की गालियाँ खाने का वक्त आ गया था। शीला सुशील और संस्कारी स्त्री थी। उसको पति के बर्ताव से बहुत दुख हुआ। किन्तु वह भगवान पर भरोसा करके बड़ा दिल रख कर दुख सहने लगी। कहा जाता है कि ‘सुख के पीछे दुख और दुख के पीछे सुख आता ही है। इसलिए दुख के बाद सुख आयेगा ही, ऐसी श्रद्धा के साथ शीला प्रभु भक्ति में लीन रहने लगी। इस तरह शीला असह्य दुख सहते-सहते प्रभुभक्ति में वक्त बिताने लगी। 
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अचानक एक दिन दोपहर में उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी। शीला सोच में पड़ गयी कि मुझ जैसे गरीब के घर इस वक्त कौन आया होगा? फिर भी द्वार पर आये हुए अतिथि का आदर करना चाहिए, ऐसे आर्य धर्म के संस्कार वाली शीला ने खड़े होकर द्वार खोला। देखा तो एक माँ जी खड़ी थी। वे बड़ी उम्र की लगती थीं। किन्तु उनके चेहरे पर अलौकिक तेज निखर रहा था। उनकी आँखों में से मानो अमृत बह रहा था। उनका भव्य चेहरा करुणा और प्यार से छलकता था। उनको देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई। वैसे शीला इस माँ जी को पहचानती न थी, फिर भी उनको देखकर शीला के रोम-रोम में आनन्द छा गया। शीला माँ जी को आदर के साथ घर में ले आयी। घर में बिठाने के लिए कुछ भी नहीं था। अतः शीला ने सकुचा कर एक फटी हुई चादर पर उनको बिठाया।
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माँ जी ने कहा: ‘क्यों शीला! मुझे पहचाना नहीं?’ शीला ने सकुचा कर कहा: ‘माँ! आपको देखते ही बहुत खुशी हो रही है। बहुत शांति हो रही है। ऐसा लगता है कि मैं बहुत दिनों से जिसे ढूढ़ रही थी वे आप ही हैं, पर मैं आपको पहचान नहीं सकती।’ माँ जी ने हँसकर कहा: ‘क्यों? भूल गई? हर शुक्रवार को लक्ष्मी जी के मंदिर में भजन-कीर्तन होते हैं, तब मैं भी वहाँ आती हूँ। वहाँ हर शुक्रवार को हम मिलते हैं।’
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पति गलत रास्ते पर चढ़ गया, तब से शीला बहुत दुखी हो गई थी और दुख की मारी वह लक्ष्मीजी के मंदिर में भी नहीं जाती थी। बाहर के लोगों के साथ नजर मिलाते भी उसे शर्म लगती थी। उसने याददाश्त पर जोर दिया पर वह माँ जी याद नहीं आ रही थीं। तभी माँ जी ने कहा: ‘तू लक्ष्मी जी के मंदिर में कितने मधुर भजन गाती थी। अभी-अभी तू दिखाई नहीं देती थी, इसलिए मुझे हुआ कि तू क्यों नहीं आती है? कहीं बीमार तो नहीं हो गई है न? ऐसा सोचकर मैं तुझसे मिलने चली आई हूँ।’ माँ जी के अति प्रेम भरे शब्दों से शीला का हृदय पिघल गया। उसकी आँखों में आँसू आ गये। माँ जी के सामने वह बिलख-बिलख कर रोने लगी। यह देख कर माँ जी शीला के नजदीक आयीं और उसकी सिसकती पीठ पर प्यार भरा हाथ फेर कर सांत्वना देने लगीं। माँ जी ने कहा: ‘बेटी! सुख और दुख तो धूप छांव जैसे होते हैं। धैर्य रखो बेटी! और तुझे परेशानी क्या है? तेरे दुख की बात मुझे सुना। तेरा मन हलका हो जायेगा और तेरे दुख का कोई उपाय भी मिल जायेगा।’ माँ जी की बात सुनकर शीला के मन को शांति मिली। उसने माँ जी से कहा: ‘माँ! मेरी गृहस्थी में भरपूर सुख और खुशियाँ थीं, मेरे पति भी सुशील थे। अचानक हमारा भाग्य हमसे रूठ गया। मेरे पति बुरी संगति में फँस गये और बुरी आदतों के शिकार हो गये तथा अपना सब-कुछ गवाँ बैठे हैं तथा हम रास्ते के भिखारी जैसे बन गये हैं।’
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यह सुन कर माँ जी ने कहा: ‘ऐसा कहा जाता है कि , ‘कर्म की गति न्यारी होती है’, हर इंसान को अपने कर्म भुगतने ही पड़ते हैं। इसलिए तू चिंता मत कर। अब तू कर्म भुगत चुकी है। अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आयेंगे। तू तो माँ लक्ष्मी जी की भक्त है। माँ लक्ष्मी जी तो प्रेम और करुणा की अवतार हैं। वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती हैं। इसलिए तू धैर्य रख कर माँ लक्ष्मी जी का व्रत कर। इससे सब कुछ ठीक हो जायेगा।
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‘माँ लक्ष्मी जी का व्रत’ करने की बात सुनकर शीला के चेहरे पर चमक आ गई। उसने पूछा: ‘माँ! लक्ष्मी जी का व्रत कैसे किया जाता है, वह मुझे समझाइये। मैं यह व्रत अवश्य करूँगी।’ माँ जी ने कहा: ‘बेटी! माँ लक्ष्मी जी का व्रत बहुत सरल है। उसे ‘वरदलक्ष्मी व्रत’ या ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ भी कहा जाता है। यह व्रत करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण होती है। वह सुख-सम्पत्ति और यश प्राप्त करता है। ऐसा कहकर माँ जी ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की विधि कहने लगी।
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‘बेटी! वैभवलक्ष्मी व्रत वैसे तो सीधा-सादा व्रत है। किन्तु कई लोग यह व्रत गलत तरीके से करते हैं, अतः उसका फल नहीं मिलता। कई लोग कहते हैं कि सोने के गहने की हलदी-कुमकुम से पूजा करो बस व्रत हो गया। पर ऐसा नहीं है। कोई भी व्रत शास्त्रीय विधि से करना चाहिए। तभी उसका फल मिलता है। सच्ची बात यह है कि सोने के गहनों का विधि से पूजन करना चाहिए। व्रत की उद्यापन विधि भी शास्त्रीय विधि से करना चाहिए।
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यह व्रत शुक्रवार को करना चाहिए। प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनो और सारा दिन ‘जय माँ लक्ष्मी’  का रटन करते रहो। किसी की चुगली नहीं करनी चाहिए। शाम को पूर्व दिशा में मुँह करके आसन पर बैठ जाओ। सामने पाटा रखकर उस पर रुमाल रखो। रुमाल पर चावल का छोटा सा ढेर करो। उस ढेर पर पानी से भरा तांबे का कलश रख कर, कलश पर एक कटोरी रखो। उस कटोरी में एक सोने का गहना रखो। सोने का न हो तो चांदी का भी चलेगा। चांदी का न  हो तो नकद रुपया भी चलेगा। बाद में घी का दीपक जला कर अगरबत्ती सुलगा कर रखो।
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माँ लक्ष्मी जी के बहुत स्वरूप हैं। और माँ लक्ष्मी जी को ‘श्रीयंत्र’ अति प्रिय है। अतः ‘वैभवलक्ष्मी’ में पूजन विधि करते वक्त सर्वप्रथम ‘श्रीयंत्र’ और लक्ष्मी जी के विविध स्वरूपों का सच्चे दिल से दर्शन करो। उसके बाद ‘लक्ष्मी स्तवन’ का पाठ करो। बाद में कटोरी में रखे हुए गहने या रुपये को हल्दी-कुमकुम और चावल चढ़ाकर पूजा करो और लाल रंग का फूल चढ़ाओ। शाम को कोई मीठी चीज बना कर उसका प्रसाद रखो। न हो सके तो शक्कर या गुड़ भी चल सकता है। फिर आरती करके ग्यारह बार सच्चे हृदय से ‘जय माँ लक्ष्मी’ बोलो। बाद में ग्यारह या इक्कीस शुक्रवार यह व्रत करने का दृढ़ संकल्प माँ के सामने करो और आपकी जो मनोकामना हो वह पूरी करने को माँ लक्ष्मी जी से विनती करो। फिर माँ का प्रसाद बाँट दो। और थोड़ा प्रसाद अपने लिए रख लो। अगर आप में शक्ति हो तो सारा दिन उपवास रखो और सिर्फ प्रसाद खा कर शुक्रवार का व्रत करो। न शक्ति हो तो एक बार शाम को प्रसाद ग्रहण करते समय खाना खा लो। अगर थोड़ी शक्ति भी न हो तो दो बार भोजन कर सकते हैं। बाद में कटोरी में रखा गहना या रुपया ले लो। कलश का पानी तुलसी की क्यारी में डाल दो और चावल पक्षियों को डाल दो। इसी तरह शास्त्रीय विधि से व्रत करने से उसका फल अवश्य मिलता है। इस व्रत के प्रभाव से सब प्रकार की विपत्ति दूर हो कर आदमी मालामाल हो जाता हैं संतान न हो तो संतान प्राप्ति होती है। सौभाग्वती स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रहता है। कुमारी लड़की को मनभावन पति मिलता है।
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शीला यह सुनकर आनन्दित हो गई। फिर पूछा: ‘माँ! आपने वैभवलक्ष्मी व्रत की जो शास्त्रीय विधि बताई है, वैसे मैं अवश्य करूंगी। किन्तु उसकी उद्यापन विधि किस तरह करनी चाहिए? यह भी कृपा करके सुनाइये।’
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माँ जी ने कहा: ‘ग्यारह या इक्कीस जो मन्नत मानी हो उतने शुक्रवार यह वैभवलक्ष्मी व्रत पूरी श्रद्धा और भावना से करना चाहिए। व्रत के आखिरी शुक्रवार को खीर का नैवेद्य रखो। पूजन विधि हर शुक्रवार को करते हैं वैसे ही करनी चाहिए। पूजन विधि के बाद श्रीफल फोड़ो और कम से कम सात कुंवारी या सौभाग्यशाली स्त्रियों को कुमकुम का तिलक करके ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की एक-एक पुस्तक उपहार में देनी चाहिए और सब को खीर का प्रसाद देना चाहिए। फिर धनलक्ष्मी स्वरूप, वैभवलक्ष्मी स्वरूप, माँ लक्ष्मी जी की छवि को प्रणाम करें। माँ लक्ष्मी जी का यह स्वरूप वैभव देने वाला है। प्रणाम करके मन ही मन भावुकता से माँ की प्रार्थना करते वक्त कहें कि , ‘हे माँ धनलक्ष्मी! हे माँ वैभवलक्ष्मी! मैंने सच्चे हृदय से आपका व्रत पूर्ण किया है। तो हे माँ! हमारी मनोकामना पूर्ण कीजिए। हमारा सबका कल्याण कीजिए। जिसे संतान न हो उसे संतान देना। सौभाग्यशाली स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रखना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत जो करे उसकी सब विपत्ति दूर करना। सब को सुखी करना। हे माँ! आपकी महिमा अपरम्पार है।’
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माँ जी के पास से वैभवलक्ष्मी व्रत की शास्त्रीय विधि सुनकर शीला भावविभोर हो उठी। उसे लगा मानो सुख का रास्ता मिल गया। उसने आँखें बंद करके मन ही मन उसी क्षण संकल्प लिया कि, ‘हे वैभवलक्ष्मी माँ! मैं भी माँ जी के कहे अनुसार श्रद्धापूर्वक शास्त्रीय विधि से वैभवलक्ष्मी व्रत इक्कीस शुक्रवार तक करूँगी और व्रत की शास्त्रीय रीति के अनुसार उद्यापन भी करूँगी।
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शीला ने संकल्प करके आँखें खोली तो सामने कोई न था। वह विस्मित हो गई कि माँ जी कहां गयी? यह माँ जी कोई दूसरा नहीं साक्षात लक्ष्मी जी ही थीं। शीला लक्ष्मी जी की भक्त थी इसलिए अपने भक्त को रास्ता दिखाने के लिए माँ लक्ष्मी देवी माँ जी का स्वरूप धारण करके शीला के पास आई थीं।
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दूसरे दिन शुक्रवार था। प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहन कर शीला मन ही मन श्रद्धा और पूरे भाव से ‘जय माँ लक्ष्मी’ का मन ही मन रटन करने लगी। सारा दिन किसी की चुगली नहीं की। शाम हुई तब हाथ-पांव-मुंह धो कर शीला पूर्व दिशा में मुंह करके बैठी। घर में पहले तो सोने के बहुत से गहने थे पर पति ने गलत रास्ते पर चलकर सब गिरवी रख दिये। पर नाक की कील (पुल्ली) बच गई थी। नाक की कील निकाल कर, उसे धोकर शीला ने कटोरी में रख दी। सामने पाटे पर रुमाल रख कर मुठ्ठी भर चावल का ढेर किया। उस पर तांबे का कलश पानी भरकर रखा। उसके ऊपर कील वाली कटोरी रखी। फिर विधिपूर्वक वंदन, स्तवन, पूजन वगैरह किया और घर में थोड़ी शक्कर थी, वह प्रसाद में रख कर वैभवलक्ष्मी व्रत किया।
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यह प्रसाद पहले पति को खिलाया। प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया। उस दिन उसने शीला को मारा नहीं, सताया भी नहीं। शीला को बहुत आनन्द हुआ। उसके मन में वैभवलक्ष्मी व्रत के लिए श्रद्धा बढ़ गई।
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शीला ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक व्रत किया। इक्कीसवें शुक्रवार को विधिपूर्वक उद्यापन विधि करके सात स्त्रियों को वैभवलक्ष्मी व्रत की सात पुस्तकें उपहार में दीं। फिर माता जी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छवि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगी: ‘हे माँ धनलक्ष्मी! मैंने आपका वैभवलक्ष्मी व्रत करने की मन्नत मानी थी वह व्रत आज पूर्ण किया है। हे माँ! मेरी हर विपत्ति दूर करो। हमारा सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो, उसे संतान देना। सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रखना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। जो कोई आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उसकी सब विपत्ति दूर करना। सब को सुखी करना। हे माँ! आपकी महिमा अपार है।’ ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के धनलक्ष्मी स्वरूप की छवि को प्रणाम किया।
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इस तरह शास्त्रीय विधि से शीला ने श्रद्धा से व्रत किया और तुरन्त ही उसे फल मिला। उसका पति सही रास्ते पर चलने लगा और अच्छा आदमी बन गया तथा कड़ी मेहनत से व्यवसाय करने लगा। धीरे धीरे समय परिवर्तित हुआ और उसने शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए। घर में धन की बाढ़ सी आ गई। घर में पहले जैसी सुख-शांति छा गई।
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वैभवलक्ष्मी व्रत का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियाँ भी शास्त्रीय विधि से वैभवलक्ष्मी का व्रत करने लगीं। हे माँ धनलक्ष्मी! आप जैसे शीला पर प्रसन्न हुईं, उसी तरह आपका व्रत करने वाले सब पर प्रसन्न होना। सबको सुख-शांति देना। जय धनलक्ष्मी माँ! जय वैभवलक्ष्मी माँ!
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Shri Vaibhav Lakshmi Vrat Katha || Shukravar Vrat Katha
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Sukh, Shanti, Vaibhav aur Lakshmi prapti ke liye adbhut chamatkari prachin vrat
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Vaibhav Lakshmi Vrat Karne ke Niyam
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1.Yah vrat saubhagyashali striyan karen to unka ati uttam phal milta hai, par ghar mein agar saubhagyashali striyan na hon to koi bhi stri evam kumarika bhi yah vrat kar sakti hai.

2.Stri ke badle purush bhi yah vrat karen to use bhi uttam phal avashya milta hai.

3.Yah vrat poori shraddha aur pavitra bhav se karna chahiye. Khinn hokar ya bina bhav se yah vrat nahi karna chahiye.

4.Yah vrat Shukravar ko kiya jata hai. Vrat shuru karte samay 11 ya 21 Shukravar ki mannat rakhni padti hai aur batayi gayi shastriya vidhi anusar hi vrat karna chahiye. Mannat ke Shukravar poore hone par vidhipurvak aur shastriya riti ke anusar udyapan karna chahiye. Agar vidhi se nahi karenge to vrat ka phal nahi milta.

5.Ek baar vrat poora karne ke baad phir se mannat karke vrat kiya ja sakta hai.

6.Mata Lakshmi ke anek swaroop hain. Unme unka “Dhan Lakshmi” swaroop hi “Vaibhav Lakshmi” hai. Aur Mata ko Shri Yantra ati priya hai. Vrat karte samay Maa ke vividh swaroop jaise Shri Gaja Lakshmi, Shri Adi Lakshmi, Shri Vijay Lakshmi, Shri Aishwarya Lakshmi, Shri Veer Lakshmi, Shri Dhanya Lakshmi, Shri Santan Lakshmi evam Shri Yantra ko pranam karna chahiye.

7.Vrat ke din subah se hi “Jai Maa Lakshmi, Jai Maa Lakshmi” ka jap karna chahiye aur Maa ka smaran karna chahiye.

8.Agar Shukravar ke din aap yatra par hon to us Shukravar ko chhodkar agle Shukravar se vrat karna chahiye. Kul milaakar jitne Shukravar ki mannat maani ho utne poore karne chahiye.

9.Ghar mein sona na ho to chandi ki cheez puja mein rakhni chahiye, aur agar wo bhi na ho to nakad paisa rakhna chahiye.

10.Vrat poora hone par kam se kam 7 striyon ko, ya ichchha ke anusar 11, 21, 51, 101 striyon ko Vaibhav Lakshmi Vrat ki pustak kumkum ka tilak karke bhent dena chahiye. Jitni zyada pustak baantenge, utni Maa Lakshmi ki kripa milegi.

11. Agar vrat ke Shukravar stri rajaswala ya sutaki ho to us din vrat chhod dena chahiye aur baad ka Shukravar se vrat shuru karna chahiye.
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12. Vrat ki shuruaat karte samay “Lakshmi Stavan” ka path ek baar karna chahiye:
Ya raktambuja-vasini vilasini chandanshu tejaswini,
Ya rakta rudhirambara harisakhi ya shri manohladini,
Ya ratnakar manthanat pragatitam vishnosvaya geehini,
Sa mam patu manorama bhagwati Lakshmi cha Padmavati.
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Arth – He Maa Lakshmi, jo lal kamal mein virajmaan hain, jo Vishnu ji ki priya hain, jo samudra manthan se prakat huyi thi, jo padmajanmi hain, aap meri raksha kariye.
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13. Vrat ke din ho sake to upvaas karna chahiye aur shaam ko vrat ki vidhi karke Maa ka prasad lekar vrat karna chahiye. Agar na ho sake to phalahaar ya ek baar bhojan karke Shukravaar ka vrat rakhna chahiye. Agar vratdhari ka sharir bahut kamzor ho to hi do baar bhojan le sakte hain. Sabse mahatvapurn baat yahi hai ki vratdhari Maa Lakshmi ji par poori-poori shraddha aur bhavana rakhe aur ‘meri manokamna Maa poori karengi hi’, aisa dridh vishwas rakhkar vrat kare.
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Vaibhav Lakshmi Vrat Ki Katha
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Ek bada shahar tha. Is shahar me laakhon log rehte the. Pehle ke zamane ke log saath-saath rehte the aur ek dusre ke kaam aate the. Par naye zamane ke logon ka swaroop hi alag sa hai. Sab apne apne kaam me rat rehte hain. Kisi ko kisi ki parwah nahin. Ghar ke sadasyon ko bhi ek-dusre ki parwah nahin hoti. Bhajan-kirtan, bhakti-bhaav, daya-maya, paropkar jaise sanskaar kam ho gaye hain. Shahar me buraiyaan badh gayi thi. Sharab, jua, race, vyabhichar, chori-dakaiti aadi bahut se apraadh shahar me hote the.
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Kehavat hai ki “Hazaron niraasha me ek amar aasha chhupi hoti hai”. Isi tarah itni saari buraiyon ke bawajood shahar me kuch acche log bhi rehte the. Aise acche logon me Sheela aur unke pati ki grihasti maani jaati thi. Sheela dharmik prakriti ki aur santoshi thi. Unka pati bhi viveki aur susheel tha. Sheela aur unka pati imaandari se jeete the. Ve kisi ki burai nahin karte the aur Prabhu bhajan me achhi tarah samay vyatit karte the. Unki grihasti aadarsh grihasti thi aur shahar ke log unki grihasti ki sarahna karte the.
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Sheela ki grihasti isi tarah khushi-khushi chal rahi thi. Par kaha jaata hai ki “Karm ki gati akal hai”, Vidhata ke likhe lekh koi nahin samajh sakta hai. Insaan ka naseeb pal bhar me raja ko rank bana deta hai aur rank ko raja. Sheela ke pati ke agle janm ke karm bhogne baaki reh gaye honge ki vah bure logon se dosti kar baitha. Vah jald se jald karodpati hone ke khwab dekhne laga. Isliye vah galat raaste par chal nikla aur karodpati ke bajaay “roadpati” ban gaya. Yane raste par bhatakte bhikhari jaisi uski sthiti ho gayi thi.
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Shahar me sharab, jua, race, charas-ganja aadi buraiyan faili hui thi. Unhi buri aadaton me Sheela ka pati bhi phans gaya. Doston ke saath use bhi sharab ki aadat lag gayi. Jald se jald paise wala banne ki lalach me doston ke saath race-jua bhi khelne laga. Is tarah bachayi hui dhanrashi, patni ke gehne, sab kuch race-jue me gawa diya. Samay ke parivartan ke saath ghar me daridrata aur bhookhmari fail gayi. Sukh se khane ke bajaye do waqt ke bhojan ke laale padh gaye aur Sheela ko pati ki gaaliyan khane ka waqt aa gaya tha. Sheela susheel aur sanskaari stri thi. Use pati ke bartav se bahut dukh hua. Kintu vah Bhagwan par bharosa karke bada dil rakh kar dukh sehne lagi. Kaha jaata hai ki “Sukh ke peeche dukh aur dukh ke peeche sukh aata hi hai.” Isliye dukh ke baad sukh aayega hi, aisi shraddha ke saath Sheela Prabhu bhakti me leen rehne lagi. Is tarah Sheela asahya dukh sahte-sahte Prabhubhakti me waqt bitaane lagi.
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Achanak ek din dopahar me unke dwar par kisi ne dastak di. Sheela soch me padh gayi ki mujhe jaise gareeb ke ghar is waqt kaun aaya hoga? Fir bhi dwar par aaye huye atithi ka aadar karna chahiye — aise Aarya dharm ke sanskaar wali Sheela khade hoke dwar kholti hai. Dekha to ek Maa ji khadi thi. Ve badi umr ki lag rahi thi, lekin unke chehre par alaukik tej nikhra hua tha. Unki aankhon me se maano amrit beh raha tha. Unka bhavya chehra karuna aur pyaar se chhalak raha tha. Unko dekhte hi Sheela ke mann me apar shanti chha gayi. Vaise Sheela is Maa ji ko pehchaanti na thi, fir bhi unko dekhkar Sheela ke rom-rom me anand chha gaya. Sheela Maa ji ko aadar ke saath ghar me le aayi. Ghar me bithane ke liye kuch bhi nahin tha. Atah Sheela ne sakuchakar ek phati hui chadar par unko bithaya.
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Maa ji ne kaha: “Kyon Sheela! Mujhe pehchana nahin?” Sheela ne sakuchakar kaha: “Maa! Aapko dekhte hi bahut khushi ho rahi hai. Bahut shanti ho rahi hai. Aisa lagta hai ki main bahut dino se jise dhoondh rahi thi ve aap hi hain, par main aapko pehchaan nahi sakti.” Maa ji hanskar boli: “Kyon? Bhool gayi? Har Shukravaar ko Lakshmi ji ke mandir me bhajan-kirtan hote hain, tab main bhi wahan aati hoon. Wahan har Shukravaar ko hum milte hain.”
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Pati galat raste par chadh gaya, tab se Sheela bahut dukhi ho gayi thi aur dukh ki maari vah Lakshmiji ke mandir me bhi nahi jaati thi. Baahar ke logon ke saath nazar milate bhi use sharm aati thi. Usne yaad-dasht par zor diya par vah Maa ji yaad nahi aa rahi thi. Tabhi Maa ji ne kaha: “Tu Lakshmiji ke mandir me kitne madhur bhajan gaati thi. Abhi-abhi tu dikhai nahi deti thi, isliye mujhe laga ki tu kyon nahi aati hai? Kahin bimaar to nahi ho gayi hai na? Aisa sochkar main tujhse milne chali aayi hoon.”
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Maa ji ke ati prem bhare shabdon se Sheela ka hriday pighal gaya. Uski aankhon me aansoo aa gaye. Maa ji ke saamne vah bilakh-bilakh kar rone lagi. Ye dekhkar Maa ji Sheela ke nazdeek aayi aur uski sisakti peeth par pyaar bhara haath ferkar santvana dene lagi. Maa ji ne kaha: “Beti! Sukh aur dukh to dhoop-chhaav jaise hote hain. Dhairya rakho beti! Aur tujhe pareshani kya hai? Tere dukh ki baat mujhe suna. Tera mann halka ho jayega aur tere dukh ka koi upay bhi mil jayega.”
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Maa ji ki baat sunkar Sheela ke mann ko shanti mili. Usne Maa ji se kaha: “Maa! Meri grihasti me bharpur sukh aur khushiyaan thi, mere pati bhi susheel the. Achaanak hamara bhagya humse rooth gaya. Mere pati buri sangat me phans gaye aur buri aadaton ke shikaar ho gaye, tathaa apna sab kuch gawa baithe hain. Ab hum raste ke bhikhari jaise ban gaye hain.”
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Ye sunkar Maa ji boli: “Aisa kaha jaata hai ki ‘Karm ki gati nyaari hoti hai’, har insaan ko apne karm bhugatne padte hain. Isliye tu chinta mat kar. Ab tu karm bhugat chuki hai. Ab tumhare sukh ke din avashya aayenge. Tu to Maa Lakshmiji ki bhakt hai. Maa Lakshmiji to prem aur karuna ki avataar hain. Ve apne bhakton par hamesha mamta rakhti hain. Isliye tu dhairya rakhe aur Maa Lakshmiji ka vrat kar. Isse sab kuch theek ho jayega.”
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‘Maa Lakshmiji ka vrat’ karne ki baat sunkar Sheela ke chehre par chamak aa gayi. Usne poocha: “Maa! Lakshmiji ka vrat kaise kiya jaata hai, vah mujhe samjhaiye. Main ye vrat avashya karoongi.”
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Maa ji ne kaha: “Beti! Maa Lakshmiji ka vrat bahut saral hai. Use ‘Vardalakshmi Vrat’ ya ‘Vaibhavlakshmi Vrat’ bhi kaha jaata hai. Ye vrat karne wale ki sab manokamna poorn hoti hai. Vah sukh-sampatti aur yash prapt karta hai.”
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Aisa karke Maa ji ‘Vaibhavlakshmi Vrat’ ki vidhi batane lagi: “Beti! Vaibhavlakshmi Vrat waise to seedha-saadha vrat hai, lekin kai log ye vrat galat tareeke se karte hain, atah uska phal nahi milta. Kai log kehte hain ki sone ke gehne ki haldi-kumkum se pooja karo, bas vrat ho gaya. Par aisa nahi hai. Koi bhi vrat shaastriya vidhi se karna chahiye, tabhi uska phal milta hai. Sacchi baat ye hai ki sone ke gahnon ka vidhi se poojan karna chahiye. Vrat ki udyapan vidhi bhi shaastriya vidhi se karna chahiye.”
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Ye vrat Shukravaar ko karna chahiye. Pratahkal snaan karke swachh kapde pahno aur saara din “Jai Maa Lakshmi” ka ratan karte raho. Kisi ki chugli nahi karni chahiye. Shaam ko purv disha me muh karke aasan par baith jao. Saamne paata rakhkar us par rumaal bicha do. Rumaal par chawal ka chhota sa dher karo. Us dher par paani se bhara taambe ka kalash rakho, aur kalash par ek katori rakho. Us katori me ek sone ka gehna rakho. Agar sona na ho to chandi ka bhi chalega. Agar chandi bhi na ho to nakad rupaya bhi chalega. Baad me ghee ka deepak jala kar agarbatti sulga do.
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Maa Lakshmi ji ke bahut swaroop hote hain. Aur Maa Lakshmi ji ko “Shri Yantra” ati priya hai. Atah “Vaibhav Lakshmi” me poojan vidhi karte waqt sabse pehle Shri Yantra aur Lakshmi ji ke vividha swaroopon ka sache dil se darshan karo. Uske baad Lakshmi Stavan ka paath karo. Phir katori me rakhe hue gehne ya rupaye ko haldi-kumkum aur chawal chadhaakar pooja karo aur laal rang ka phool chadhaao. Shaam ko koi meethi cheez banaakar prasad rakho. Agar na ho sake to cheeni ya gud bhi chal sakta hai. Phir aarti karke 11 baar sache hriday se “Jai Maa Lakshmi” bolo. Uske baad 11 ya 21 Shukravaar ye vrat karne ka dridh sankalp Maa ke saamne karo aur apni manokamna poori karne ko Maa Lakshmi ji se prarthana karo. Phir Maa ka prasad baant do aur thoda apne liye rakh lo.
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Agar aap me shakti ho to saara din upvaas rakho aur sirf prasad khaa kar Shukravaar ka vrat karo. Agar shakti na ho to shaam ko prasad grahan karte waqt ek baar bhojan kar lo. Agar bahut kam shakti ho to do baar bhojan kar sakte ho. Baad me katori me rakha gehna ya rupaya le lo. Kalash ka paani Tulsi ki kyaari me daal do aur chawal panchiyon ko daal do.
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Isi tarah shaastriya vidhi se vrat karne se uska phal avashya milta hai. Is vrat ke prabhav se sab prakar ki vipatti door ho jaati hai aur aadmi maalamaal ho jaata hai. Jise santaan na ho use santaan prapt hoti hai. Saubhagyavati stri ka saubhagya akhand rehta hai. Kanya ko manbhavan pati milta hai.
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Sheela ye sunkar anandit ho gayi. Fir poocha: “Maa! Aapne Vaibhav Lakshmi vrat ki jo shaastriya vidhi batayi hai, main avashya karoongi. Lekin iski Udyapan Vidhi kis tarah karni chahiye? Yeh bhi kripa karke batayiye.”
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Maa ji ne kaha: “11 ya 21 jo mannatt maani ho, utne Shukravaar ye Vaibhav Lakshmi vrat poori shraddha aur bhavana se karna chahiye. Vrat ke aakhri Shukravaar ko kheer ka naivedya rakho. Poojan vidhi har Shukravaar jaise karte ho waise hi karni chahiye. Poojan ke baad shrifal todo aur kam se kam 7 kunwari ya saubhagyashali striyon ko kumkum ka tilak karke ‘Vaibhav Lakshmi Vrat’ ki ek-ek pustak uphaar me do aur sabko kheer ka prasad do. Fir Dhanlakshmi swaroop, Vaibhav Lakshmi swaroop, Maa Lakshmi ji ki chhavi ko pranam karo. Maa Lakshmi ji ka yeh swaroop vaibhav dene wala hai.
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Pranam karke mann hi mann bhavukta se Maa ki prarthana karte hue kaho: “Hey Maa Dhan Lakshmi! Hey Maa Vaibhav Lakshmi! Maine sache hriday se aapka vrat poorn kiya hai. To hey Maa! Hamari manokamna poori kijiye. Hamara sabka kalyan kijiye. Jise santaan na ho use santaan dijiye. Saubhagyavati stri ka saubhagya akhand rakhiye. Kunwari ladki ko manbhavan pati dijiye. Aapka yeh chamatkari Vaibhav Lakshmi Vrat jo kare uski sab vipatti door kijiye. Sabko sukhi banaiye. Hey Maa! Aapki mahima aparampaar hai.”
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Maa ji ke paas se Vaibhav Lakshmi Vrat ki shaastriya vidhi sunkar Sheela bhaav-vibhor ho uthi. Use laga jaise sukh ka rasta mil gaya ho. Usne aankhen band karke man hi man sankalp liya:
“Hey Vaibhav Lakshmi Maa! Main bhi Maa ji ke kahe anusar shraddha-purvak shaastriya vidhi se Vaibhav Lakshmi Vrat 21 Shukravaar tak karoongi aur shastriya reeti se Udyapan bhi karoongi.”
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Sheela ne sankalp karke aankhen kholi to saamne koi na tha. Vah vishmit ho gayi – Maa ji kahan gayi? Darasal woh Maa ji koi aur nahi, swayam Maa Lakshmi ji hi thi. Sheela Lakshmi ji ki bhakt thi, isliye Maa ne apne bhakt ko sahi raasta dikhane ke liye Maa ji ka roop dharan karke Sheela ke paas aayi thi.
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Dusre din Shukravaar tha. Pratahkal snaan karke Sheela ne swachh kapde pehne aur man hi man “Jai Maa Lakshmi” ka jaap karte hue din bitaya. Shaam ko usne poore vishwas ke saath poojan ki tayyari ki. Pati ne sab gehne barbaad kar diye the, par naak ki pulli (nath) abhi bach gayi thi. Sheela ne us pulli ko dhokar katori me rakha. Paathe par rumal bichha kar uspar chawal ka dher kiya, upar taambe ka kalash rakha aur uske upar katori rakhi. Phir vidhi-purvak vandan, stavan, poojan kiya aur ghar me jo thodi cheeni thi, usse prasad banaakar Vaibhav Lakshmi Vrat kiya.
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Prasad sabse pehle Sheela ne pati ko khilaya. Prasad khate hi pati ke swabhav me badlaav aa gaya. Usne us din Sheela ko na maara, na sataaya. Sheela ke man me aur bhi shraddha badh gayi.
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Sheela ne 21 Shukravaar tak poore shraddha aur bhakti se vrat kiya. 21ve Shukravaar ko usne shaastriya vidhi se Udyapan kiya – 7 striyon ko Vaibhav Lakshmi Vrat ki pustakein uphaar me di aur kheer ka prasad baanta. Ant me Maa ke Dhan Lakshmi swaroop ki pooja karke bhavuk prarthana ki:
“Hey Maa Dhan Lakshmi! Maine aapka Vaibhav Lakshmi Vrat poora kiya hai. Hamari sabhi vipatti door karo, sabka kalyan karo. Jise santaan na ho use santaan do, saubhagyavati stri ka saubhagya akhand rakho, kunwari ladki ko manbhavan pati do. Jo bhi aapka yeh chamatkari Vaibhav Lakshmi Vrat kare, uski sab vipatti door karo, sabko sukhi karo. Hey Maa! Aapki mahima apar hai.”
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Is tarah Sheela ne shaastriya vidhi se vrat kiya aur uska turant phal mila. Pati ne bura raasta chhod diya, mehnat aur imandari se kaam karne laga. Dheere-dheere usne girvi rakhe gehne wapas chhudaye aur ghar me dhan-sampatti ki baadh aa gayi. Sheela ka ghar fir se sukh-shanti se bhar gaya.
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Vaibhav Lakshmi Vrat ka asar dekhkar mohalle ki anya striyan bhi is vrat ko karne lagi.
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Hey Maa Dhan Lakshmi! Jaise aap Sheela par prasann hui, waise hi jo bhi aapka vrat kare, unpar bhi prasann ho kar sabko sukh-shanti dena.
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Jai Maa Dhan Lakshmi! Jai Maa Vaibhav Lakshmi!
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