सोमवार, 28 नवंबर 2022

श्रीगणेशकवचम् // Shri Ganesh Kavacham // Shri Ganesh Kavacham in Hindi in Sanskrit // Lyrics in Hindi // Lyrics in English

श्रीगणेशकवचम् // Shri Ganesh Kavacham // Shri Ganesh Kavacham in Hindi in Sanskrit // Lyrics in Hindi // Lyrics in English



श्रीगणेशकवचम् 
श्रीगणेशाय नमः ॥
।। गौर्युवाच ।।
एषोऽतिचपलो दैत्यान्बाल्येऽपि नाशयत्यहो ।
अग्रे किं कर्म कर्तेति न जाने मुनिसत्तम।।1।।
*****
दैत्या नानाविधा दुष्टाः साधुदेवद्रुहः खलाः ।
अतोऽस्य कण्ठे किञ्चित्त्वं रक्षार्थं बद्धुमर्हसि।।2।।
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।। मुनिरुवाच ।।
ध्यायेत्सिंहहतं विनायकममुं दिग्बाहुमाद्ये युगे
त्रेतायां तु मयूरवाहनममुं षड्बाहुकं सिद्धिदम् ।
द्वापारे तु गजाननं युगभुजं रक्ताङ्गरागं विभुम्
तुर्ये तु द्विभुजं सिताङ्गरुचिरं सर्वार्थदं सर्वदा।।3।।
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विनायकः शिखां पातु परमात्मा परात्परः ।
अतिसुन्दरकायस्तु मस्तकं सुमहोत्कटः।।4।।
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ललाटं कश्यपः पातु भृयुगं तु महोदरः ।
नयने भालचन्द्रस्तु गजास्यस्त्वोष्ठपल्लवौ।।5।।
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जिह्वां पातु गणक्रीडश्चिबुकं गिरिजासुतः।
वाचं विनायकः पातु दन्तान् रक्षतु विघ्नहा।।6।।
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श्रवणौ पाशपाणिस्तु नासिकां चिन्तितार्थदः।
गणेशस्तु मुखं कण्ठं पातु देवो गणञ्जयः।।7।।
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स्कन्धौ पातु गजस्कन्धः स्तनौ विघ्नविनाशनः।
हृदयं गणनाथस्तु हेरंबो जठरं महान्।।8।।
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धराधरः पातु पार्श्वौ पृष्ठं विघ्नहरः शुभः।
लिङ्गं गुह्यं सदा पातु वक्रतुण्डो महाबलः।।9।।
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गणक्रीडो जानुसङ्घे ऊरु मङ्गलमूर्तिमान्।
एकदन्तो महाबुद्धिः पादौ गुल्फौ सदाऽवतु।।10।।
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क्षिप्रप्रसादनो बाहू पाणी आशाप्रपूरकः।
अङ्गुलीश्च नखान्पातु पद्महस्तोऽरिनाशनः।।11।।
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सर्वाङ्गानि मयूरेशो विश्वव्यापी सदाऽवतु।
अनुक्तमपि यत्स्थानं धूम्रकेतुः सदाऽवतु।।12।।
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आमोदस्त्वग्रतः पातु प्रमोदः पृष्ठतोऽवतु।
प्राच्यां रक्षतु बुद्धीश आग्नेयां सिद्धिदायकः।।13।।
*****
दक्षिणास्यामुमापुत्रो नैरृत्यां तु गणेश्वरः।
प्रतीच्यां विघ्नहर्ताऽव्याद्वायव्यां गजकर्णकः।।14।।
*****
कौबेर्यां निधिपः पायादीशान्यामीशनन्दनः।
दिवाऽव्यादेकदन्तस्तु रात्रौ सन्ध्यासु विघ्नहृत्।।15।।
*****
राक्षसासुरवेतालग्रहभूतपिशाचतः।
पाशाङ्कुशधरः पातु रजःसत्त्वतमः स्मृतिः।।16।।
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ज्ञानं धर्मं च लक्ष्मीं च लज्जां कीर्ति तथा कुलम्।
वपुर्धनं च धान्यं च गृहान्दारान्सुतान्सखीन्।।17।।
*****
सर्वायुधधरः पौत्रान् मयूरेशोऽवतात्सदा।
कपिलोऽजादिकं पातु गजाश्वान्विकटोऽवतु ।।18।।
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भूर्जपत्रे लिखित्वेदं यः कण्ठे धारयेत्सुधीः।
न भयं जायते तस्य  यक्षरक्षःपिशाचतः।।19।।
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त्रिसन्ध्यं जपते यस्तु वज्रसारतनुर्भवेत्।
यात्राकाले पठेद्यस्तु निर्विघ्नेन फलं लभेत्।।20।।
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युद्धकाले पठेद्यस्तु विजयं चाप्नुयाद्द्रुतम् ।
मारणोच्चाटकाकर्षस्तम्भमोहनकर्मणि ।।21।।
*****
सप्तवारं जपेदेतद्दिनानामेकविंशतिम् ।
तत्तत्फलवाप्नोति साधको नात्रसंशयः ।।22।।
*****
एकविंशतिवारं च पठेत्तावद्दिनानि यः ।
कारागृहगतं सद्योराज्ञा वध्यं च मोचयेत्।।23।।
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राजदर्शनवेलायां पठेदेतत्त्रिवारतः ।
स राजसं वशं नीत्वा प्रकृतीश्च सभां जयेत् ।।24।।
*****
इदं गणेशकवचं कश्यपेन समीरितम् ।
मुद्गलाय च ते नाथ माण्डव्याय महर्षये ।।25।।
*****
मह्यं स प्राह कृपया कवचं सर्वसिद्धिदम् ।
न देयं भक्तिहीनाय देयं श्रद्धावते शुभम् ।।26।।
*****
यस्यानेन कृता रक्षा न बाधास्य भवेत्क्वचित् ।
राक्षसासुरवेतालदैत्यदानवसम्भवा ।।27।।
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इति श्रीगणेशपुराणे उत्तरखण्डे बालक्रीडायां
षडशीतितमेऽध्याये गणेशकवचं सम्पूर्णम् ।।
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रविवार, 13 नवंबर 2022

श्रीकाशीविश्वनाथस्तुतिः // Shri Kashi Vishwanath Stutih

श्रीकाशीविश्वनाथस्तुतिः // Shri Kashi Vishwanath Stutih // Lyrics in Hindi // Lyrics in English



दुर्गाधीशो द्रुतिज्ञो द्रुतिनुतिविषयो दूरदृष्टिर्दुरीशो

दिव्यादिव्यैकराध्यो द्रुतिचरविषयो दूरवीक्षो दरिद्रः ।

देवैः सङ्कीर्तनीयो दलितदलदयादानदीक्षैकनिष्ठो

दानी दीनार्तिहारी भवदवदहनो दीयतां दृष्टिवृष्टिः ॥ 1॥


क्षेत्रज्ञः क्षेत्रनिष्ठः क्षयकलितकलः क्षात्रवर्गैकसेव्यः

क्षेत्राधीशोऽक्षरात्मा क्षितिप्रथिकरणः क्षालितः क्षेत्रदृश्यः ।

क्षोण्या क्षीणोऽक्षरज्ञो क्षरपृथुकलितः क्षीणवीणैकगेयः

क्षौरः क्षोणीध्रवर्ण्यः क्षयतु मम बलक्षीणतां सक्षणं सः ॥ 2॥


क्रूरः क्रूरैककर्मा कलितकलकलैः कीर्तनीयः कृतिज्ञः

कालः कालैककालो विकलितकर्णः कारणाक्रान्तकीर्तिः ।

कोपः कोपेऽप्यकुप्यन् कुपितकरकराघातकीलः कृतान्तः

कालव्यालालिमालः कलयतु कुशलं वः करालः कृपालुः ॥ 3॥


गौरी स्निह्यतु मोदतां गणपतिः शुण्डामृतं वर्षताद्

नन्दीशः शुभवृष्टिमावितनुतां श्रीमान् गणाधीश्वरः ।

वायुः सान्द्रसुखावहः प्रवहतां देवाः समृद्धादयाः

सम्पूर्तिं दधतां सुखस्य नितरां विश्वेश्वरः प्रीयताम् ॥ 4॥


श्रीविश्वेश्वरमन्दिरं प्रविलसेत् सम्पूर्णसिद्धं शुभं

पुष्टं तुष्टसुखाकरं प्रभवतां सम्मोदमोदावहम् ।

एतद्दर्शनकामना जगति सञ्जायेत सन्निन्दतः

सर्वेषां भगवान् महेश्वरकृपापूर्णो निरीक्षेत नः ॥ 5॥


इति काशीपीठाधीश्वरः श्रीमहेश्वरानन्दः विरचिता

श्रीकाशीविश्वनाथस्तुतिः समाप्ता ।

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सूर्य नमस्कार // Surya Namaskar // Sun Salutation

सूर्य नमस्कार // Surya Namaskar // Sun Salutation 

सूर्य नमस्कार क्या है // What is Surya Namaskar in hindi?

सूर्य नमस्कार का शाब्दिक अर्थ सूर्य को अर्पण या नमस्कार करना है। यह योग आसन शरीर को सही आकार देने और मन को शांत व स्वस्थ रखने का उत्तम तरीका है। सूर्य नमस्कार १२ शक्तिशाली योग आसनों का एक समन्वय है, जो एक उत्तम कार्डियो-वॅस्क्युलर व्यायाम भी है और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।

सूर्य नमस्कार करने के क्‍या लाभ हैं ? What are the benefits of doing Surya Namaskar?

यदि हम प्रतिदिन नियम से सूर्य नमस्कार का अभ्‍यास करेंगे तो हमें किसी भी तरह के अन्‍य व्‍यायाम एवं योगासन करने की आवश्‍यकता नहीं पड़ेगी। प्रतिदिन सुबह के समय सूर्य के सामने इसे करने से शरीर को पर्याप्‍त मात्रा में विटामिन डी प्राप्‍त होता है जिससे शरीर को मजबूती मिलने के साथ ही स्वस्थ रखने में भी मदद मिलती है।

सूर्य नमस्कार कैसे किया जाता है? // How to do Surya Namaskar?

1. प्रणामासन // Pranamasana

खुले मैदान में योगा मैट के ऊपर खड़े हो जाएं और सूर्य को नमस्कार करने के हिसाब से खड़े हो जाएं। सीधे खड़े हो जाएं और दोनों हाथों को जोड़ कर सीने से सटा लें और गहरी, लंबी सांस लेते हुए आराम की अवस्था में खड़े हो जाएं।


2. हस्तउत्तनासन // Hastuttanasana

पहली अवस्था में खड़े रहते हुए सांस लीजिए और हाथों को ऊपर की ओर उठाएं। और पीछे की ओर थोड़ा झुकें। इस बात का ध्यान रखें कि दोनों हाथ कानों से सटे हुए हों। हाथों को पीछे ले जाते हुए शरीर को भी पीछे की ओर ले जाएं।


3. पादहस्तासन // Pada Hastasana

सूर्य नमस्कार की यह खासियत होती है कि इसके सारे चरण एक दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। हस्तोतानासन की मुद्रा से सीधे हस्त पादासन की मुद्रा में आना होता है। इसके लिए हाथों को ऊपर उठाए हुए ही आगे की ओर झुकने की कोशिश करें। ध्यान रहें कि इस दौरान सांसों को धीरे-धीरे छोड़ना होता है। कमर से नीचे की ओर झुकते हुए हाथों को पैरों के बगल में ले आएं। ध्यान रहे कि इस अवस्था में आने पर पैरों के घुटने मुड़े हुए न हों। 


4. अश्व संचालनासन // Ashwa Sanchalanasana

हस्त पादासन से सीधे उठते हुए सांस लें और बांए पैर को पीछे की ओर ले जाएं और दांये पैर को घुटने से मोड़ते हुए छाती के दाहिने हिस्से से सटाएं। हाथों को जमीन पर पूरे पंजों को फैलाकर रखें। ऊपर की ओर देखते हुए गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं।


5. दंडासन // Dandasana

गहरी सांस लेते हुए दांये पैर को भी पीछे की ओर ले जाएं और शरीर को एक सीध में रखे और हाथों पर जोर देकर इस अवस्था में रहें। 


6. अष्टांग नमस्कार // Ashtanga Namaskar

अब धीरे-धीरे गहरी सांस लेते हुए घुटनों को जमीन से छुआएं और सांस छोड़ें। पूरे शरीर पर ठोड़ी, छाती, हाथ, पैर को जमीन पर छुआएं और अपने कूल्हे के हिस्से को ऊपर की ओर उठाएं।


7. भुजंगासन // Bhujangasana

कोहनी को कमर से सटाते हुए हाथों के पंजे के बल से छाती को ऊपर की ओर उठाएं। गर्दन को ऊपर की ओर उठाते हुए पीछे की ओर ले जाएं। 


8. अधोमुख शवासन // Adhomukh Shavasana

भुजंगासन से सीधे इस अवस्था में आएं। अधोमुख शवासन के चरण में कूल्हे को ऊपर की ओर उठाएं लेकिन पैरों की एड़ी जमीन पर टिका कर रखें। शरीर को अपने V के आकार में बनाएं।


9. अश्व संचालासन // Ashwa Sanchalasana

अब एक बार फिर से अश्व संचालासन की मुद्रा में आएं लेकिन ध्यान रहें अबकी बार बांये पैर को आगे की ओर रखें।


10. पादहस्तासन // Padahastasana

अश्न संचालनासन मुद्रा से सामान्य स्थिति में वापस आने के बाद अब पादहस्तासन की मुद्रा में आएं। इसके लिए हाथों को ऊपर उठाए हुए ही आगे की ओर झुकने की कोशिश करें। ध्यान रहें कि इस दौरान सांसों को धीरे-धीरे छोड़ना होता है। कमर से नीचे की ओर झुकते हुए हाथों को पैरों के बगल में ले आएं। ध्यान रहे कि इस अवस्था में आने पर पैरों के घुटने मुड़े हुए न हों।


11. हस्तउत्तनासन // Hastuttanasan

पादहस्तासन की मुद्रा से सामान्य स्थिति में वापस आने के बाद हस्तउत्तनासन की मुद्रा में वापस आ जाएं। इसके लिए हाथों को ऊपर की ओर उठाएं और पीछे की ओर थोड़ा झुकें। हाथों को पीछे ले जाते हुए शरीर को भी पीछे की ओर ले जाएं।


12. प्रणामासन // Pranamasan

हस्तउत्तनासन की मुद्रा से सामान्य स्थिति में वापस आने के बाद सूर्य की तरफ चेहरा कर एक बार फिर से प्रणामासन की मुद्रा में आ जाएं।


सूर्यनमस्कार मन्‍त्र  // Sun Salutation Mantra 


ॐ ध्येयः सदा सवितृमण्डल मध्यवर्ति

नारायणः सरसिजासन्संनिविष्टः ।

केयूरवान मकरकुण्डलवान किरीटी

हारी हिरण्मयवपुधृतशंखचक्रः ।।


ॐ ह्रां मित्राय नमः ।

ॐ ह्रीं रवये नमः ।

ॐ ह्रूं सूर्याय नमः ।

ॐ ह्रैं भानवे नमः ।

ॐ ह्रौं खगाय नमः ।

ॐ ह्रः पूष्णे नमः ।

ॐ ह्रां हिरण्यगर्भाय नमः ।

ॐ ह्रीं मरीचये नमः ।

ॐ ह्रूं आदित्याय नमः ।

ॐ ह्रैं सवित्रे नमः ।

ॐ ह्रौं अर्काय नमः ।

ॐ ह्रः भास्कराय नमः ।

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः

ॐ श्रीसवितृसूर्यनारायणाय नमः ।।


आदितस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने

जन्मान्तरसहस्रेषु दारिद्र्यं दोषनाशते ।

अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्

सूर्यपादोदकं तीर्थं जठरे धारयाम्यहम् ।।


योगेन चित्तस्य पदेन वाचा मलं शरीरस्य च वैद्यकेन ।

योपाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां पतंजलिं प्रांजलिरानतोऽस्मि ।।

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रविवार, 6 नवंबर 2022

श्री गायत्री चालीसा //Shri Gayatri Chalisa in Hindi// Jagat Janani Mangal Karani Gayatri Sukhdham //जगत जननी मङ्गल करनि गायत्री सुखधाम

श्री गायत्री चालीसा //Shri Gayatri Chalisa in Hindi// Jagat Janani Mangal Karani Gayatri Sukhdham //जगत जननी मंंगल करनि गायत्री सुखधाम



ह्रीं  श्रीं   क्लीं   मेधा  प्रभा  जीवन  ज्योति  प्रचण्ड ।
शान्ति   कान्ति  जागृत प्रगति रचना शक्ति अखण्ड ॥ 1॥

जगत जननी मंंगल करनि गायत्री सुखधाम ।
प्रणवों सावित्री स्वधा  स्वाहा  पूरन काम ॥ 2॥

भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।
गायत्री नित कलिमल दहनी ॥ 3॥

अक्षर चौविस परम पुनीता ।
इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता ॥ 4॥

शाश्वत सतोगुणी सत रूपा ।
सत्य सनातन सुधा अनूपा ।
हंसारूढ सितंबर धारी ।
स्वर्ण कान्ति शुचि गगन-बिहारी ॥ 5॥

पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला ।
शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥ 6॥

ध्यान धरत पुलकित हित होई ।
सुख उपजत दुःख दुर्मति खोई ॥ 7॥

कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।
निराकार की अद्भुत माया ॥ 8॥

तुम्हरी शरण गहै जो कोई ।
तरै सकल संकट सों सोई ॥ 9॥

सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।
दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥ 10॥

तुम्हरी महिमा पार न पावैं ।
जो शारद शत मुख गुन गावैं ॥ 11॥

चार वेद की मात पुनीता ।
तुम ब्रह्माणी गौरी सीता ॥ 12॥

महामन्त्र जितने जग माहीं ।
कोई गायत्री सम नाहीं ॥ 13॥

सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै ।
आलस पाप अविद्या नासै ॥ 14॥

सृष्टि बीज जग जननि भवानी ।
कालरात्रि वरदा कल्याणी ॥ 15॥

ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते ।
तुम सों पावें सुरता तेते ॥ 16॥

तुम भक्तन की भकत तुम्हारे ।
जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥ 17॥

महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।
जय जय जय त्रिपदा भयहारी ॥ 18॥

पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना ।
तुम सम अधिक न जगमे आना ॥ 19॥

तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा ।
तुमहिं पाय कछु रहै न कलेसा ॥ 20॥

जानत तुमहिं तुमहिं है जाई ।
पारस परसि कुधातु सुहाई ॥ 21॥

तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई ।
माता तुम सब ठौर समाई ॥ 22॥

ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे ।
सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥23॥

सकल सृष्टि की प्राण विधाता ।
पालक पोषक नाशक त्राता ॥ 24॥

मातेश्वरी दया व्रत धारी ।
तुम सन तरे पातकी भारी ॥ 25॥

जापर कृपा तुम्हारी होई ।
तापर कृपा करें सब कोई ॥ 26॥

मंद बुद्धि ते बुधि बल पावें ।
रोगी रोग रहित हो जावें ॥ 27॥

दरिद्र मिटै कटै सब पीरा ।
नाशै दूःख हरै भव भीरा ॥ 28॥

गृह क्लेश चित चिन्ता भारी ।
नासै गायत्री भय हारी ॥29॥

सन्तति हीन सुसन्तति पावें ।
सुख संपति युत मोद मनावें ॥ 30॥

भूत पिशाच सबै भय खावें ।
यम के दूत निकट नहिं आवें ॥ 31॥

जे सधवा सुमिरें चित ठाई ।
अछत सुहाग सदा शुबदाई ॥ 32॥

घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी ।
विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥ 33॥

जयति जयति जगदंब भवानी ।
तुम सम थोर दयालु न दानी ॥ 34॥

जो सद्गुरु सो दीक्षा पावे ।
सो साधन को सफल बनावे ॥ 35॥

सुमिरन करे सुरूयि बडभागी ।
लहै मनोरथ गृही विरागी ॥ 36॥

अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता ।
सब समर्थ गायत्री माता ॥ 37॥

ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी ।
आरत अर्थी चिन्तित भोगी ॥ 38॥

जो जो शरण तुम्हारी आवें ।
सो सो मन वांछित फल पावें ॥ 39॥

बल बुधि विद्या शील स्वभाओ ।
धन वैभव यश तेज उछाओ ॥ 40॥

सकल बढें उपजें सुख नाना ।
जे यह पाठ करै धरि ध्याना ॥ 

यह चालीसा भक्ति युत पाठ करै जो कोई ।
तापर कृपा प्रसन्नता गायत्री की होय ॥

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शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

श्रीऋणमोचनमहागणपतिस्तोत्रम् // Shri Rinmochanmahaganapatistotram in Hindi // Lyrics in Hindi

श्रीऋणमोचनमहागणपतिस्तोत्रम् // Shri Rinmochanmahaganapatistotram in Hindi



अस्य श्रीऋणमोचनमहागणपतिस्तोत्रस्य शुक्राचार्य ऋषिः,

अनुष्टुप्छन्दः, श्रीऋणमोचक महागणपतिर्देवता।

मम ऋणमोचनमहागणपतिप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।।


रक्ताङ्गं रक्तवस्त्रं सितकुसुमगणैः पूजितं रक्तगन्धैः

क्षीराब्धौ रत्नपीठे सुरतरुविमले रत्नसिंहासनस्थम्।

दोर्भिः पाशाङ्कुशेष्टाभयधरमतुलं चन्द्रमौलिं त्रिणेत्रं

ध्यायेत् शान्त्यर्थमीशं गणपतिममलं श्रीसमेतं प्रसन्नम्।।


स्मरामि देव देवेशं वक्रतुण्डं महाबलम् ।

षडक्षरं कृपासिन्धुं नमामि ऋणमुक्तये।।1।।


एकाक्षरं ह्येकदन्तमेकं ब्रह्म सनातनम्।

एकमेवाद्वितीयं च नमामि ऋणमुक्तये।।2।।


महागणपतिं देवं महासत्वं महाबलम्।

महाविघ्नहरं शम्भोः नमामि ऋणमुक्तये।।3।।


कृष्णाम्बरं कृष्णवर्णं कृष्णगन्धानुलेपनम्।

कृष्णसर्पोपवीतं च नमामि ऋणमुक्तये।।4।।


रक्ताम्बरं रक्तवर्णं रक्तगन्धानुलेपनम्।

रक्तपुष्पप्रियं देवं नमामि ऋणमुक्तये।।5।।


पीताम्बरं पीतवर्णं पीतगन्धानुलेपनम्।

पीतपुष्पप्रियं देवं नमामि ऋणमुक्तये।।6।।


धूम्राम्बरं धूम्रवर्णं धूम्रगन्धानुलेपनम्।

होम धूमप्रियं देवं नमामि ऋणमुक्तये।।7।।


फालनेत्रं फालचन्द्रं पाशाङ्कुशधरं विभुम्।

चामरालङ्कृतं देवं नमामि ऋणमुक्तये।।8।।


इदं त्वृणहरं स्तोत्रं सन्ध्यायां यः पठेन्नरः।

षण्मासाभ्यन्तरेणैव ऋणमुक्तो भविष्यति।।9।।


इति श्रीऋणमोचनमहागणपतिस्तोत्रं सम्पूर्णम्।