शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

श्री गणपति जी की आरती || Shri Ganapati Ji Ki Aarti || ओम जय गौरीनन्‍दा || Om Jay Gaurinanda

श्री गणपति जी की आरती || Shri Ganapati Ji Ki Aarti || ओम जय गौरीनन्‍दा || Om Jay Gaurinanda


ओम जय गौरीनन्‍दा, 
हरि जय गिरिजानन्‍दा । 
गणपति आनन्‍दकन्‍दा, 
गुरुगणपति आनन्‍दकन्‍दा । 
मैं चरणन वंदा। 
ओम जय गौरीनन्‍दा। 

सूंंड सूंडालो नेत्रविशालो कुण्‍डल झलकन्‍दा, 
हरि कुण्‍डल झलकन्‍दा।  
कुंकुम केशर चन्‍दन, कुंकुम केशर चन्‍दन, 
सिंदुर वदन बिंदा। 
ओम जय गौरीनन्‍दा। 

मुकुट सुघड सोहंता मस्‍तक शोभन्‍ता, 
हरि मस्‍तक शोभन्‍ता। 
बहियां बाजूबन्‍दा हरि बहियां बाजूबन्‍दा, 
पहुंची निरखन्‍ता। 
ओम जय गौरीनन्‍दा। 

रत्‍न जडित सिंहासन सोहत गणपति आनंदा, 
हरि गणपति आनन्‍दा। 
गले मोतियन की माला गले वैजयन्‍ती माला 
सुरनर मुनि वृन्‍दा ।
ओम जय गौरीनन्‍दा। 

मूषक वाहन राजत शिवसुत आनन्‍दा 
हरि शिवसुत आनन्‍दा। 
भजत शिवानन्‍द स्‍वामी जपत हरि हर स्‍वामी 
मेटत भवफन्‍दा। 
ओम जय गौरीनन्‍दा। 

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शनिवार, 23 मई 2020

श्री शनि देव चालीसा || Shri Sani Dev Shalisa || जयति जयति शनिदेव दयाला || Jayati Jayati Shanidev Dayala



दोहा

(Jay Ganesh Girija Suvan)

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।

दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल ।। 

जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज। 

करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज।।


जयति जयति शनिदेव दयाला। 

करत सदा भक्तन प्रतिपाला।। 


चारि भुजा तनु श्याम विराजै। 

माथे रतन मुकुट छबि छाजै।। 


परम विशाल मनोहर भाला। 

टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।। 


कुण्डल श्रवण चमाचम चमके।

हिय माल मुक्तन मणि दमके।।


कर में गदा त्रिशूल कुठारा।

पल बिच करैं अरिहिं संहारा।।


पिंगल, कृष्णों, छाया नन्दन।

यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन।।


सौरी, मन्द, शनी, दश नामा।

भानु पुत्र पूजहिं सब कामा।।


जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं।

रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं ।।


पर्वतहू तृण होई निहारत।

तृणहू को पर्वत करि डारत।।


राज मिलत बन रामहिं दीन्ह्यो।

कैकेइहुँ की मति हरि लीन्ह्यो।।


बनहूँ में मृग कपट दिखाई।

मातु जानकी गई चुराई।।


लखनहिं शक्ति विकल करिडारा।

मचिगा दल में हाहाकारा।।


रावण की गतिमति बौराई।

रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई।।


दियो कीट करि कंचन लंका।

बजि बजरंग बीर की डंका।।


नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा।

चित्र मयूर निगलि गै हारा।।


हार नौलखा लाग्यो चोरी।

हाथ पैर डरवाय तोरी।।


भारी दशा निकृष्ट दिखायो।

तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो।।


विनय राग दीपक महं कीन्ह्यो।

तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्ह्यो।।


हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी।

आपहुं भरे डोम घर पानी ।।


तैसे नल पर दशा सिरानी ।

भूंजीमीन कूद गई पानी ।।


श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई ।

पारवती को सती कराई ।।


तनिक विलोकत ही करि रीसा ।

नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा ।।


पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी ।

बची द्रौपदी होति उघारी ।।


कौरव के भी गति मति मारयो ।

युद्ध महाभारत करि डारयो ।।


रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला ।

लेकर कूदि परयो पाताला ।।


शेष देवलखि विनती लाई ।

रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ।।


वाहन प्रभु के सात सजाना ।

जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ।।


जम्बुक सिंह आदि नख धारी ।

सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ।।


गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं ।

हय ते सुख सम्पति उपजावैं ।।


गर्दभ हानि करै बहु काजा ।

सिंह सिद्धकर राज समाजा ।।


जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै ।

मृग दे कष्ट प्राण संहारै ।।


जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी ।

चोरी आदि होय डर भारी ।।


तैसहि चारि चरण यह नामा ।

स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा ।।


लौह चरण पर जब प्रभु आवैं ।

धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं ।।


समता ताम्र रजत शुभकारी ।

स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी ।।


जो यह शनि चरित्र नित गावै ।

कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ।।


अद्भुत नाथ दिखावैं लीला ।

करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ।।


जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई ।

विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ।।


पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत ।

दीप दान दै बहु सुख पावत ।।


कहत राम सुन्दर प्रभु दासा ।

शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ।।


।। दोहा ।।

पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार ।।

करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ।।

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हनुमान स्‍तुति || Hanuman Stuti || नमो अंजनि नंदनं वायुपूतम् || Namo Anjani Nandanam Vayuputam

हनुमान स्‍तुति || Hanuman Stuti || नमो अंजनि नंदनं वायुपूतम्  || Namo Anjani Nandanam Vayuputam 


नमो अंजनि नंदनं वायुपूतम्  

सदा मंगलागार श्री राम दूतम् 


महावीर वीरेश त्रिकाल वेशम् 

घनानन्द निर्द्वन्द हर्तां कलेशम् 


सजीवन जड़ी लाय नागेश काजे

गयी मूर्छना राम भ्राता निवाजे


सकल दीन जन के हरो दुःख स्वामी

नमो वायुपुत्रं नमामि नमामि


नमो अंजनि नंदनं वायुपूतम्  

सदा मंगलागार श्री राम दूतम्


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बुधवार, 20 मई 2020

वट सावित्री व्रत कथा || Vat Savitri Vrat Katha || सत्‍यवान-स‍ाावित्री की कथा || Satyavan Savitri Ki Katha

वट सावित्री व्रत कथा || Vat Savitri Vrat Katha || सत्‍यवान-स‍ाावित्री की कथा || Satyavan Savitri Ki Katha

वट सावित्री व्रत : एक परिचय || Vat Savitri Vrat : Ek Parichay : An Introduction


ऐसा कहा जाता है कि वट सावित्री व्रत सुहागिन स्त्रियों का सबसे बड़ा त्यौहार है । ज्येष्ठ कृष्ण की अमावस्या के दिन इस व्रत को करने का विधान है। इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा की जाती है। इस दिन सत्यवान सावित्री के साथ-साथ यमराज की पूजा भी की जाती है। स्त्रियां इस व्रत को अपने पति की लंबी आयु, स्वास्थ्य कामना तथा उन्नति के लिए करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी व्रत के प्रभाव से सावित्री अपने पति सत्यवान को यमराज से मुक्त करा सकी थी। 


व्रत का विधि विधान || Vrat ka vidhi vidhan || Vat Savitri Vrat Kaise Kare


इस दिन स्त्रियां सुबह सवेरे स्नान आदि से निवृत्त होकर एक बांस की टोकरी में रेत भरकर ब्रह्मा जी की मूर्ति की स्थापना करें। उसके बाद ब्रह्मा जी के बाएं तरफ सावित्री की मूर्ति की स्थापना करें। इसी तरह एक दूसरी टोकरी में सत्यवान और सावित्री की मूर्ति स्थापित करें और दोनों टोकरियों को वटवृक्ष के नीचे रखें। सर्वप्रथम ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें उसके बाद सत्यवान एवं सावित्री की पूजा करें तथा वट वृक्ष को जल अर्पित करें। जल, फूल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया चना, गुड़ तथा धूप दीप से वट वृक्ष की पूजा करें। वट वृक्ष को जल चढ़ावें। उसके तने के चारों ओर कच्चा सूत लपेटकर तीन बार परिक्रमा करें। बरगद के पत्तों के गहने पहने एवं सावित्री की कथा सुनें। भीगे हुए चने का बायना निकालकर उस पर दक्षिणा रखकर अपनी सास को देवें एवं उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। यदि सास दूर रहती हों तो बायना उनके पास भिजवा दें। पूजा के बाद प्रतिदिन पान, सिंदूर, कुंकुम से सुहागिन स्त्रियों की पूजा करने का भी विधान बताया गया है। पूजन के पश्चात ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि बांस के पत्ते पर रखकर दान करें। वटवृक्ष के अभाव में तस्वीर की पूजा भी कर सकते हैं।


वट सावित्री व्रत कथा || Vat Savitri Vrat Katha 


बहुत समय पहले की बात है, भद्र देश में अश्‍वपति नाम के एक राजा हुए। राजा बडे धार्मिक एवं प्र‍तापी थे किन्‍तु उनके कोई सन्‍तान न थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों के तप के बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि हे राजन तेरे घर एक तेजस्‍वी कन्‍या का जन्‍म होगा। इस कन्‍या का जन्‍म सावित्री देवी के आशीर्वाद से होने के कारण इसका नाम सावित्री रखा गया। 


समय व्‍यतीत होने के साथ कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान हुई। योग्य वर न मिलने के कारण राजा प्राय: दु:खी रहते थे। अन्‍त में उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा। सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे जो कि राज्‍य छिन जाने के कारण वर्तमान में वनसासी के समान जीवन व्‍यतीत कर रहे थे। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया।


ऋषिराज नारद को जब यह बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और कहा कि हे राजन! यह क्या कर रहे हैं आप? सत्यवान गुणवान हैं, धर्मात्मा हैं और बलवान भी हैं, परन्‍तु वह अल्पायु है। एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी।


ऋषिराज नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति घोर चिंता में डूब गए। सावित्री के पूछने पर राजा ने कहा, पुत्री तुमने जिस राजकुमार को अपने वर के रूप में चुना है वह अल्पायु है। तुम्हे किसी और को अपना जीवन साथी बनाना चाहिए। इस पर सावित्री ने कहा कि पिताजी, आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं, मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी। राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया।


सावित्री अपने ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा करने लगी। समय बीतता चला गया। नारद मुनि ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था। वह दिन जैसे-जैसे करीब आने लगा, सावित्री अधीर होने लगीं। उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया।


हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने जंगल चले गये साथ में सावित्री भी गईं। जंगल में पहुंचकर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गये। तभी उसके सिर में तेज दर्द होने लगा, दर्द से व्याकुल सत्यवान पेड़ से नीचे उतर गये। सावित्री अपना भविष्य समझ गईं।


सत्यवान के सिर को गोद में रखकर सावित्री सत्यवान का सिर सहलाने लगीं। तभी वहां यमराज आते दिखे। यमराज अपने साथ सत्यवान के जीव को ले जाने लगे तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ीं। यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की कि यही विधि का विधान है। लेकिन सावित्री नहीं मानी।


वित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देख कर यमराज ने सावित्री से कहा कि हे देवी, तुम धन्य हो। तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो। इस पर सावित्री ने कहा कि हे देव यदि आप मुझपर प्रसन्‍न हैं तो आप मेरे सास-ससुर को दिव्य ज्योति प्रदान करें। यमराज ने कहा ऐसा ही होगा। जाओ अब लौट जाओ। लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के पीछे-पीछे चलती रहीं। यमराज ने कहा देवी तुम वापस जाओ। सावित्री ने कहा भगवन मुझे अपने पतिदेव के पीछे-पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है। पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है। यह सुनकर उन्होने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिए कहा। सावित्री बोलीं हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें। यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया और कहा अब तुम लौट जाओ। लेकिन सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं। यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा। इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांगा। यमराज ने इसका वरदान भी सावित्री को दे दिया।


सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। यमराज अन्‍तर्ध्‍यान हो गए और सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था।


सत्यवान जीवित हो उठे और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े। दोनों जब घर पहुंचे तो देखा कि माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है। इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे।


वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से उपासक के वैवाहिक जीवन या जीवन साथी की आयु पर किसी प्रकार का कोई संकट आया भी हो तो वो टल जाता है। 


समाप्‍त

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शनिवार, 16 मई 2020

सिया रघुवर जी की आरती || Siya Raghubar Ji Ki Aarti || राम भजन || Ram Bhajan

सिया रघुवर जी की आरती || Siya Raghubar Ji Ki Aarti || राम भजन || Ram Bhajan

सिया रघुवर जी की आरती ,

शुभ आरती कीजै।


शीश मुकुट काने कुंडल सोहे -२

राम लखन सिया जानकी, शुभ आरती कीजै।

सिया रघुवर जी की आरती ,

शुभ आरती कीजै।


मोर मुकुट माथे पर सोहे -२

राधा सहित घनश्याम की, शुभ आरती कीजै।

सिया रघुवर जी की आरती 

शुभ आरती कीजै।


अक्षत चंदन घी की बाती -२

उमा सहित महादेव की, शुभ आरती कीजै।

सिया रघुवर जी की आरती 

शुभ आरती कीजै।


मम दुख हरणी मंगल करणी-२

आरती लक्ष्मी गणेश की, शुभ आरती कीजै।

सिया रघुवर जी की आरती 

शुभ आरती कीजै।


अलख निरंजन असुर निकन्दन-२

अंजनि लला हनुमान की, शुभ आरती कीजै।

सिया रघुवर जी की आरती 

शुभ आरती कीजै।


रामदेव अउरी कुलदेवता -२

माता पिता गुरुदेव की, शुभ आरती कीजै।

सिया रघुवर जी की आरती 

शुभ आरती कीजै।


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