शनिवार, 16 मई 2020

श्री भागवत भगवान की है आरती || Shri Bhagwat Bhagwan Ki Hai Aarti


श्री भागवत भगवान की है आरती,

पापियों को पाप से है तारती। 


ये अमर ग्रन्थ ये मुक्ति पन्थ

ये पंचम वेद निराला

नव ज्योति जलाने वाला

हरि नाम यही हरि धाम यही-२

जग के मंगल की आरती

पापियों को पाप से है तारती

श्री भागवत भगवान की है आरती,

पापियों को पाप से है तारती।


ये शान्ति गीत पावन पुनीत

पापों को मिटाने वाला

हरि दरश कराने वाला

ये सुख करनी, ये दुःख हरिनी-२

श्री मधुसूदन की आरती

पापियों को पाप से है तारती

श्री भागवत भगवान की है आरती,

पापियों को पाप से है तारती।  


ये मधुर बोल, जग फन्द खोल

सतमार्ग बताने वाला

बिगड़ी को बनानेवाला

श्री राम यही, घनश्याम यही-२

प्रभु की महिमा की आरती

पापियों को पाप से है तारती

श्री भागवत भगवान की है आरती,

पापियों को पाप से है तारती।


श्री भागवत भगवान की है आरती,

पापियों को पाप से है तारती।


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मंगलवार, 1 मई 2018

सरस्‍वती वन्‍दना || Saraswati Vandana || हे हंसवाहिनी-ज्ञानदायिनी || He Hansvahini Gyandayini

हे हंसवाहिनी-ज्ञानदायिनी

अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥

जग सिरमौर बनाएं भारत,

वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे॥

हे हंसवाहिनी-ज्ञानदायिनी

अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥

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साहस शील हृदय में भर दे,

जीवन त्याग-तपोमर कर दे,

संयम सत्य स्नेह का वर दे,

स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे॥1॥

हे हंसवाहिनी-ज्ञानदायिनी

अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥

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लव, कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम,

मानवता का त्रास हरें हम,

सीता, सावित्री, दुर्गा मां,

फिर घर-घर भर दे। फिर घर-घर भर दे॥2॥

हे हंसवाहिनी-ज्ञानदायिनी

अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥

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रविवार, 15 अप्रैल 2018

सरस्वती वंदना || वीणावादिनी बुद्धि की दाता || Saraswati Vandana || Veena Vadini Buddhi Ki Data



वीणावादिनी बुद्धि की दाता

वीणावादिनी, स्वरदायिनी माँ

नारायणी स्वर दो !


सिद्धि दायिनी वीणाधारिणी

कर करतब करि कारिणी माँ

स्वर्दायिनी स्वर दो !


ब्रह्माणी, शिव पूजनी

दिन रात सदा मनभावनी माँ

वीणावादिनी स्वर दो !


जय -जय -जय माँ दाता

जय -जय -जय जयकारिणी

वीणा वादिनी स्वर दो !


जिह्वा पर नित वास करो

हिय में माँ उल्लास भरो

वीणा वादिनी स्वर दो !


परमारथ हो ह्रदय में माँ

निर्मल मन मेरा कर दो

वीणा वादिनी स्वर दो !


काया कल्प करो तनका

प्रतिपल माँ तूँ वर दो

वीणा वादिनी स्वर दो !


करुणा तेज भरो तन में

सागर सा वाणी मन दो

वीणा वादिनी स्वर दो !!


आभार - यह वन्‍दना श्री सुखमंगल सिंह जी द्वारा उपलब्‍ध कराई गयी है इस हेतु हार्दिक आभार। 

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बुधवार, 21 मार्च 2018

दुर्गा मैया की आरती || जय अम्‍बे गौरी, मैया जय श्‍यामा गौरी || Durga Aarti || Jay Ambe Gauri

दुर्गा मैया की आरती || जय अम्‍बे गौरी, मैया जय श्‍यामा गौरी || Durga Aarti || Jay Ambe Gauri

जय अम्‍बे गौरी, मैया जय श्‍यामा गौरी।

तुमको निशदिन ध्‍यावत , हरि ब्रह्मा शिवरी।। जय० ।।


मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को।

उज्‍ज्‍वल से दोउ नैना, चन्‍द्रबदन नीको ।। जय० ।।


कनक समान कलेवर, रक्‍ताम्‍बर राजै।

रक्‍त पुष्‍प गलमाला, कण्‍ठन पर साजै।। जय० ।।


केहरि वाहन राजत, खड़ग खप्‍परधारी।

सुर नर मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी।। जय० ।।


कानन कुण्‍डल शोभित, नासाग्रे मोती।

कोटिक चन्‍द्र दिवाकर, राजत सम ज्‍योति।। जय० ।।


शुम्‍भ निशुम्‍भ विाडारे, महिषासुर घाती।

धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती।। जय० ।।


चण्‍ड मुण्‍ड संघारे, शोणित बीज हरे।

मधुकैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे।। जय० ।।


ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी।

आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी।। जय० ।।


चौसठ योगिनी गावत, ऩत्‍य करत भैरो।

बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरू ।। जय० ।।


तुम हो जग की माता, तुम ही हो भर्ता।

भक्‍तन की दुख हरता, सुख-सम्‍पत्ति करता।। जय० ।।


भुजा चार अति शोभित, खड़ग खप्‍पर धारी।

मनवांछित फल पावत, सेवत नर रानी।। जय० ।।


कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।

श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्‍योति।। जय० ।।


श्री अम्‍बे जी की आरती, जो कोई नद गावै।

कहत शिवानन्‍द स्‍वामी, सुख सम्‍पति पावै।। जय० ।।



सब प्रेम से बोलो अम्‍बे मैया की जय
दुर्गा मैया की जय

शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

जय भगवद्गीते , जय भगवद्गीते | श्री मदभगवद्गीता की आरती | Shri Madbhagwadgeeta ki Aarti || आरती || Aarti || Jay Bhagwatgeete

श्री मदभगवद्गीता की आरती || जय भगवद्गीते , जय भगवद्गीते || Shri Madbhagwadgeeta ki Aarti || आरती || Aarti || Jay Bhagwatgeete


जय भगवद्गीते  
जय भगवद्गीते ।
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हरि-हिय-कमल विहारिणि 
सुन्‍दर सुपुनीते।।
कर्म-सुकर्म-प्रकाशिनि 
कामासक्तिहरा।
तत्‍त्‍वज्ञान-विकाशिनि 
विद्या ब्रह्म परा ।। जय ०
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निश्‍चल-भक्ति-विधायिनि 
निर्मल, मलहारी।
शरण-रहस्‍य-प्रदायिनि 
सब विधि सुखकारी।। जय ०
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राग-द्वेष-विदारिणि 
कारिणि मोद सदा।
भव-भय-हारिणि, 
तारिणि परमानन्‍दप्रदा ।। जय ०  
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आसुर-भाव-विनाशिनि 
नाशिनि तम-रजनी।
दैवी सद्गुणदायिनि 
हरि-रसिका सजनी ।। जय ०
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समता, त्‍याग सिखावनि 
हरि-मुखकी बानी ।
सकल शास्‍त्र की स्‍वामिनि 
श्रुतियों की रानी ।। जय ०
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दया-सुधा बरसावनि 
मातु कृपा कीजै।
हरिपद-प्रेम दान कर 
अपनो कर लीजै।। जय ०
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