शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

भीमसेनी एकादशी व्रत कथा || निर्जला एकादशी व्रत कथा || Bhimseni Ekadashi Vrat Katha || Nirjala Ekadashi Vrat Katha Lyrics in Hindi PDF

भीमसेनी एकादशी व्रत कथा || निर्जला एकादशी व्रत कथा || Bhimseni Ekadashi Vrat Katha || Nirjala Ekadashi Vrat Katha Lyrics in Hindi PDF


भीमसेनी एकादशी व्रत कथा || Bhimseni Ekadashi Vrat Katha 

निर्जला एकादशी व्रत का महत्व

एकादशी पूजा सामग्री

बहुत समय पहले की बात है। एक बार भीमसेन व्यासजी से कहने लगे कि हे पितामह! भ्राता युधिष्ठिर, माता कुन्‍ती, द्रोपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सब एकादशी का व्रत करने को कहते हैं, परंतु महाराज मैं उनसे कहता हूँ कि भाई मैं भगवान की शक्ति पूजा आदि तो कर सकता हूँ, दान भी दे सकता हूँ परन्‍तु भोजन के बिना नहीं रह सकता।

इस पर व्यासजी कहने लगे कि हे भीमसेन! यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो तो प्रत्‍येक मास की दोनों एकादशियों को अन्न मत खाया करो। भीम कहने लगे कि हे पितामह! मैं तो पहले ही कह चुका हूँ कि मैं भूख सहन नहीं कर सकता। यदि वर्ष भर में कोई एक ही व्रत हो तो वह मैं रख सकता हूँ, क्योंकि मेरे पेट में वृक नाम वाली अग्नि है सो मैं भोजन किए बिना नहीं रह सकता। भोजन करने से वह शान्‍त रहती है, इसलिए पूरा उपवास तो क्या एक समय भी बिना भोजन किए रहना कठिन है।

अत: आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जो वर्ष में केवल एक बार ही करना पड़े और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए। श्री व्यासजी कहने लगे कि हे पुत्र! बड़े-बड़े ऋषियों ने बहुत शास्त्र आदि बनाए हैं जिनसे बिना धन के थोड़े परिश्रम से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इसी प्रकार शास्त्रों में दोनों पक्षों की एका‍दशी का व्रत मुक्ति के लिए रखा जाता है।

व्यासजी के वचन सुनकर भीमसेन नरक में जाने के नाम से भयभीत हो गए और काँपकर कहने लगे कि अब क्या करूँ? मास में दो व्रत तो मैं कर नहीं सकता, हाँ वर्ष में एक व्रत करने का प्रयत्न अवश्य कर सकता हूँ। अत: वर्ष में एक दिन व्रत करने से यदि मेरी मुक्ति हो जाए तो ऐसा कोई व्रत बताइए।

यह सुनकर व्यासजी कहने लगे कि वृषभ और मिथुन की संक्रां‍‍ति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला है। तुम उस एकादशी का व्रत करो। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल वर्जित है। आचमन में छ: मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए अन्यथा वह मद्यपान के सदृश हो जाता है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है।

यदि एकादशी को सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न करे तो उसे सारी एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। द्वादशी को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके ब्राह्मणों का दान आदि देना चाहिए। इसके पश्चात भूखे और सत्पात्र ब्राह्मण को भोजन कराकर फिर आप भोजन कर लेना चाहिए। इसका फल पूरे एक वर्ष की संपूर्ण एकादशियों के बराबर होता है।

व्यासजी कहने लगे कि हे भीमसेन! यह मुझको स्वयं भगवान ने बताया है। इस एकादशी का पुण्य समस्त तीर्थों और दानों से अधिक है। केवल एक दिन मनुष्य निर्जल रहने से पापों से मुक्त हो जाता है।

जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं उनकी मृत्यु के समय यमदूत आकर नहीं घेरते वरन भगवान के पार्षद उसे पुष्पक विमान में बिठाकर स्वर्ग को ले जाते हैं। अत: संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत है। इसलिए यत्न के साथ इस व्रत को करना चाहिए। उस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का उच्चारण करना चाहिए और गौदान करना चाहिए।

इस प्रकार व्यासजी की आज्ञानुसार भीमसेन ने इस व्रत को किया। इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी या पांडव एकादशी भी कहते हैं। निर्जला व्रत करने से पूर्व भगवान से प्रार्थना करें कि हे भगवन! आज मैं निर्जला व्रत करता हूँ, दूसरे दिन भोजन करूँगा। मैं इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करूँगा, अत: आपकी कृपा से मेरे सब पाप नष्ट हो जाएँ। इस दिन जल से भरा हुआ एक घड़ा वस्त्र से ढँक कर स्वर्ण सहित दान करना चाहिए।

जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं उनको करोड़ पल सोने के दान का फल मिलता है और जो इस दिन यज्ञादिक करते हैं उनका फल तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस दिन अन्न खाते हैं, ‍वे चांडाल के समान हैं। वे अंत में नरक में जाते हैं। जिसने निर्जला एकादशी का व्रत किया है वह चाहे ब्रह्म हत्यारा हो, मद्यपान करता हो, चोरी की हो या गुरु के साथ द्वेष किया हो मगर इस व्रत के प्रभाव से स्वर्ग जाता है।

हे कुन्‍तीपुत्र! जो पुरुष या स्त्री श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करते हैं उन्हें अग्रलिखित कर्म करने चाहिए। प्रथम भगवान का पूजन, फिर गौदान, ब्राह्मणों को मिष्ठान्न व दक्षिणा देनी चाहिए तथा जल से भरे कलश का दान अवश्य करना चाहिए। निर्जला के दिन अन्न, वस्त्र, उपाहन (जूती) आदि का दान भी करना चाहिए। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस कथा को पढ़ते या सुनते हैं, उन्हें निश्चय ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

भगवान विष्णु को समर्पित निर्जला एकादशी व्रत नियमपूर्वक रखने से व्यक्ति के न केवल वर्ष भर की सभी एकादशी के व्रत का फल मिलता है बल्कि  उसके लिए विष्णुलोक की भी प्राप्ति का द्वार खुल जाता है। व्यक्ति के समस्त पाप कर्म निष्फल हो जाते हैं।

भगवान श्री विष्‍णु जी की तस्‍वीर अथवा मूर्ति, पुष्प, नारियल, सुपारी, फल, लौंग, धूप, दीप, घी , पंचामृत, अक्षत, तुलसी दल, चंदन और मिष्ठान आदि।

*****

श्री बृहस्‍पति देव जी की आरती || Shri Brihaspati Dev Ji Ki Aarti || जय बृहस्पति देवा || Jay Brihaspati Deva

*****

रविवार, 19 दिसंबर 2021

श्री तुलसी चालीसा || वृक्ष रूपिणी पावनी || नमो नमो तुलसी गुणकारी || Shri Tulsi Chalisa || Namo Namo Tulsi Gunkari Lyrics in Hindi

श्री तुलसी चालीसा || वृक्ष रूपिणी पावनी || नमो नमो तुलसी गुणकारी || Shri Tulsi Chalisa || Namo Namo Tulsi Gunkari Lyrics in Hindi 


वृक्ष रूपिणी पावनी 

तुलसी है तव नाम। 

विश्‍वपूजिता कृष्‍ण जीवनी 

वृंन्‍दा तुम्‍हें प्रणाम ।।


नमो नमो तुलसी गुणकारी 

तुम त्रिलोक में शुभ हितकारी। 

वन उपवन में शोभा तुम्‍हारी 

वृक्ष रूप में हो अवतारी।। 


देवी देवता अरु नर नारी

गावत महिता मात तुम्‍हारी। 

जहॉं चरण हो तुम्‍हरे माता 

स्‍थान वही पावन हो जाता।। 


गोपी तुम्‍हीं गौ लोक निवासी 

तुलसी नाम कृष्‍ण की दासी। 

अंश रूप थी तुम भगवन की

प्राण प्रिये जैसी मोहन की।। 


मुरलीधर संग तुमको पाया

क्रोध राधे को तुम पर आया।

कहा राधा ने श्राप है मेरा

मनुज योनि में जन्‍म हो तेरा।। 


हरि बोले तुलसी तुम जाओ

भरत खंड जा ध्‍यान लगाओ।

ब्रह्मा के वरदान फलेंगे

नारायण पति रूप मिलेंगे।।


राजा धर्मध्‍वज माधवी रानी 

जन्‍मी बनकर सुता सयानी। 

उपमा कोई काम न आई

तब से तुम तुलसी कहलाई।।


बद्रिका आश्रम का पथ लीन्‍हा 

उत्‍तम तप वहॉं जाकर कीन्‍हा। 

फलदाई दिन वो भी आया 

जब ब्रह्मा का दर्शन पाया।।


कहा ब्रह्मा ने मांगो तुम वर

तुमने कहा दे दो मुरलीधर।

ब्रह्मा जी ने राह बताई

तुमको तब ये कथा सुनाई।।


ब्रह्मा बोले सुन हे बाला 

शंखचूड़ है दैत्‍य निराला। 

मोहित है तुझ पर वो तब से

देखा है गौ लोक में जबसे।। 


था ग्‍वाला वो नाम सुदामा 

क्रोधित थी उस पर भी श्‍यामा। 

श्राप मिला पृथ्‍वी पर आया

शंखचूड़ है वो कहलाया।। 


पहले तू उसको ब्‍याहेगी

नारायण को फिर पायेगी।

नारायण के श्राप से पावन

बन जायेगी तू वृन्‍दावन।।


वृक्षों में देवी बन जायेगी

वृन्‍दावनी तू कहलायेगी। 

पूजा होगी तुझ बिन निशफल

संग रहेंगे विष्‍णु हर पल।।


राधा मंत्र तब दिया निराला 

तात ने सौलह अक्षर वाला। 

जब कर तुमने सिद्धि पाई 

लक्ष्‍मी सम सिद्धा कहलाई।।


शंखचूड़ से ब्‍याह रचाया 

सती के जैसा धर्म निभाया। 

शंखचूड़ पर ईर्ष्‍या आई

देवगणों की मति भरमाई।। 


शंखचूड़ को छल से मारा

काम किया ये शिव ने सारा।

शंखचूड़ का रूप धरा था

हरि ने सती का शील हरा था।।


श्राप दिया तुलसी ने रोकर

नाथ रहो तुम पत्‍थर होकर।

हरि बोले अ‍ब ये तन छोड़ो

तुम मेरे संग नाता जोड़ो।। 


क्‍या कहूँ आये तुम्‍हरा सरीरा

बने दंड की निर्मल नीरा। 

वृक्ष हो तुलसी केश तुम्‍हारे 

स्‍थान हो तुमसे पावन सारे।।


वर देकर फिर बोले भगवन

धन्‍य हो तुमसे सबके जीवन।

चरण जहॉं तव पड़ जायेंगे

तीर्थ स्‍थान वे कहलायेंगे।।


तुलसीयुक्‍त जल से जो नहाये

यज्ञ आदि का वो फल पाये।

विष्‍णु को प्रिय तुलसी चढ़ाये 

कोटि चढ़ावों का फल पाये।।


जो फल दे दो दान हजारा 

दे कार्तिक में दान तुम्‍हारा। 

भरत है भैया दास तुम्‍हारा 

अपनी शरण का दे दो सहारा।। 


कलियुग में महिमा तेरी

है मॉं अपरम्‍पार।

दिशा दिशा मे हो रही

तेरी जय जयकार।।

*****

टेलीग्राम चैनल पर हमसे जुड़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें

शनिवार, 18 दिसंबर 2021

श्री गुरु चालीसा || ॐ नमो गुरुदेव दयाला || Om Namo Gurudev Dayala || Shri Gurudev Chalisa Lyrics in Hindi || Guru Dev Chalisa || Guru Purnima Chalisa

श्री गुरु चालीसा ||ॐ नमो गुरुदेव दयाला || Om Namo Gurudev Dayala || Shri Gurudev Chalisa Lyrics in Hindi || Guru Dev Chalisa || Guru Purnima Chalisa


।। दोहा ।।


ॐ नमो गुरुदेवजी, सबके सरजन हार।

व्यापक अंतर बाहर में, पार ब्रह्म करतार।।


देवन के भी देव हो, सिमरुं मैं बारम्बार।

आपकी किरपा बिना, होवे न भव से पार।।


ऋषि-मुनि सब संत जन, जपें तुम्हारा जाप।

आत्मज्ञान घट पाय के, निर्भय हो गये आप।।


गुरु चालीसा जो पढ़े, उर गुरु ध्यान लगाय।

जन्म-मरण भव दुःख मिटे, काल कबहुँ नहिं खाय।।


गुरु चालीसा पढ़े-सुने, रिद्धि-सिद्धि सुख पाय।

मन वांछित कारज सरें, जन्म सफल हो जाय।।


।। चौपाई ।।

 

ॐ नमो गुरुदेव दयाला, 

भक्तजनों के हो प्रतिपाला। 

पर उपकार धरो अवतारा, 

डूबत जग में हंस उबारा।। 


तेरा दरश करें बड़भागी, 

जिनकी लगन हरि से लागी। 

नाम जहाज तेरा सुखदाई, 

धारे जीव पार हो जाई।। 


पारब्रह्म गुरु हैं अविनाशी, 

शुद्ध स्वरूप सदा सुखराशी। 

गुरु समान दाता कोई नाहीं, 

राजा प्रजा सब आस लगायी।। 


गुरु सन्मुख जब जीव हो जावे, 

कोटि कल्प के पाप नसावे। 

जिन पर कृपा गुरु की होई, 

उनको कमी रहे नहिं कोई।। 


हिरदय में गुरुदेव को धारे, 

गुरु उसका हैं जन्म सँवारें। 

राम-लखन गुरु सेवा जानी, 

विश्व-विजयी हुए महाज्ञानी।। 


कृष्ण गुरु की आज्ञा धारी, 

स्वयं जो पारब्रह्म अवतारी। 

सद्गुरु कृपा अती है भारी, 

नारद की चौरासी टारी।। 


कठिन तपस्या करें शुकदेव, 

गुरु बिना नहीं पाया भेद। 

गुरु मिले जब जनक विदेही, 

आतमज्ञान महा सुख लेही।। 


व्यास, वसिष्ठ मर्म गुरु जानी, 

सकल शास्त्र के भये अति ज्ञानी। 

अनंत ऋषि मुनि अवतारा, 

सद्गुरु चरण-कमल चित धारा।। 


सद्गुरु नाम जो हृदय धारे, 

कोटि कल्प के पाप निवारे। 

सद्गुरु सेवा उर में धारे, 

इक्कीस पीढ़ी अपनी वो तारे।। 


पूर्वजन्म की तपस्या जागे, 

गुरु सेवा में तब मन लागे। 

सद्गुरु-सेवा सब सुख होवे, 

जनम अकारथ क्यों है खोवे।। 


सद्गुरु सेवा बिरला जाने, 

मूरख बात नहीं पहिचाने। 

सद्गुरु नाम जपो दिन-राती, 

जन्म-जन्म का है यह साथी।। 


अन्न-धन लक्ष्मी जो सुख चाहे, 

गुरु सेवा में ध्यान लगावे। 

गुरुकृपा सब विघ्न विनाशी, 

मिटे भरम आतम परकाशी।। 


पूर्व पुण्य उदय सब होवे, 

मन अपना सद्गुरु में खोवे। 

गुरु सेवा में विघ्न पड़ावे, 

उनका कुल नरकों में जावे।। 


गुरु सेवा से विमुख जो रहता, 

यम की मार सदा वह सहता। 

गुरु विमुख भोगे दुःख भारी, 

परमारथ का नहीं अधिकारी।। 


गुरु विमुख को नरक न ठौर, 

बातें करो चाहे लाख करोड़। 

गुरु का द्रोही सबसे बूरा, 

उसका काम होवे नहीं पूरा।। 


जो सद्गुरु का लेवे नाम, 

वो ही पावे अचल आराम। 

सभी संत हैं नाम से तरिया, 

निगुरा नाम बिना ही मरिया।। 


यम का दूत दूर ही भागे, 

जिसका मन सद्गुरु में लागे। 

भूत, पिशाच निकट नहीं आवे, 

गुरुमंत्र जो निशदिन ध्यावे।। 


जो सद्गुरु की सेवा करते, 

डाकन-शाकन सब हैं डरते। 

जंतर-मंतर, जादू-टोना, 

गुरु भक्त के कुछ नहीं होना।। 


गुरू भक्त की महिमा भारी, 

क्या समझे निगुरा नर-नारी। 

गुरु भक्त पर सद्गुरु बूठे, 

धरमराज का लेखा छूटे।। 


गुरु भक्त निज रूप ही चाहे, 

गुरु मार्ग से लक्ष्य को पावे। 

गुरु भक्त सबके सिर ताज, 

उनका सब देवों पर राज।।


।। दोहा ।।


यह सद्गुरु चालीसा, पढ़े सुने चित्त लाय। 

अंतर ज्ञान प्रकाश हो, दरिद्रता दुःख जाय।। 

गुरु महिमा बेअंत है, गुरु हैं परम दयाल। 

साधक मन आनंद करे, गुरुवर करें निहाल।।


।। सभी प्रेम से बोलो गुरुदेव भगवान की जय ।।

बुधवार, 15 दिसंबर 2021

श्री गंगा चालीसा || जय जग जननी हरण अघखानी || Shri Ganga Chalisa || Jay Jag Janani Haran Aghkhani || Lyrics in Hindi

श्री गंगा चालीसा || जय जग जननी हरण अघखानी || Shri Ganga Chalisa || Jay Jag Janani Haran Aghkhani || Lyrics in Hindi


।। दोहा ।। 

जय जय जय जग पावनी, 

जयति देवसरि गंग। 

जय शिव जटा निवासिनी 

अनुपम तुंग तरंग।।


।। चौपाई ।।

जय जग जननी हरण अघखानी। 

आनंद करनि गंग महारानी।। 


जय भगीरथी सुरसरि माता। 

कलिमल मूल दलिनि विख्याता।। 


जय जय जय हनु सुता अघ हननी। 

भीष्म की माता जय जय जननी।। 


धवल कमल दल सम तनु सजे। 

लखी शत शरद चंद्र छवि लाजै।। 


वाहन मकर विमल शुचि सोहें। 

अमिया कलश कर लखी मन मोहें।। 


जाड़त रत्ना कंचन आभूषण। 

हिया मणि हार हरणि तम दूषण।। 


जग पावनी त्रय ताप नासवनी। 

तरल तरंग तंग मन भावनी।। 


जो गणपति अति पूज्य प्रधाना। 

तिहूं ते प्रथम गंग अस्नाना।। 


ब्रह्मा कमंडल वासिनी देवी। 

श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवी।। 


साथी सहस्त्र सगर सुत तारयो। 

गंगा सागर तीरथ धारयो।। 


अगम तरंग उठ्यो मन भावन। 

लखि तीरथ हरिद्वार सुहावन।। 


तीरथ राज प्रयाग अक्षयवट। 

धरयो मातु पुनि काशी करवट।। 


धनि धनि सुरसरि स्वर्ग की सीढ़ी। 

तारणी अमित पित्र पद पीढ़ी।। 


भागीरथ तप कियो अपारा। 

दियो ब्रह्म तब सुरसरि धारा।। 


जब जग जननी चल्यो हहराई। 

शम्भु जटा महं रह्यो समाई।। 


वर्ष पर्यंत गंग महारानी। 

रहीं शम्‍भु के जटा भुलानी।। 


पुनि भागीरथ शम्भुहीं ध्यायो। 

तब इक बूंद जटा से पायो।। 


ताते मातु भई त्रय धारा। 

मृत्यु लोक नभ अरु पातारा।। 


गईं पाताल प्रभावती नामा। 

मन्दाकिनी गई गगन ललामा।। 


मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनी। 

कलिमल हरनि अगम युग पावनि।। 


धनि मइया तव महिमा भारी। 

धर्मं धुरी कलि कलुष कुठारी।। 


मातु प्रभावति धनि मंदाकिनी। 

धनि सुर सरित सकल भयनासिनी।। 


पान करत निर्मल गंगा जल। 

पावत मन इच्छित अनंत फल।। 


पूरब जन्म पुण्य जब जागत। 

तबहीं ध्यान गंगा महं लागत।। 


जई पगु सुरसरी हेतु उठावहिं। 

तई जगि अश्वमेघ फल पावहि।। 


महा पतित जिन काहू न तारे। 

तिन तारे इक नाम तिहारे।। 


शत योजन हूं से जो ध्यावहिं। 

निश्‍चय विष्णु लोक पद पावहिं।। 


नाम भजत अगणित अघ नाशै। 

विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशै।। 


जिमि धन धर्मं अरु दाना। 

धर्मं मूल गंगाजल पाना।। 


तव गुन गुणन करत दुख भाजत। 

गृह गृह सम्पति सुमति विराजत।। 


गंगहि नेम सहित नित ध्यावत। 

दुर्जनहूं सज्जन पद पावत।। 


बुद्धिहीन विद्या बल पावै। 

रोगी रोग मुक्त ह्वै जावै।। 


गंगा गंगा जो नर कहहीं। 

भूखा नंगा कबहुँ न रहहीं।। 


निकसत ही मुख गंगा माई। 

श्रवण दाबि यम चलहिं पराई।। 


महा अघिन अधमन कहं तारे। 

भए नरक के बंद किवारें।।


जो नर जपे गंग शत नामा। 

सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा।। 


सब सुख भोग परम पद पावहिं। 

आवागमन रहित ह्वै जावहिं।। 


धनि मइया सुरसरि सुख दैनी। 

धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी।। 


ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा। 

सुन्दरदास गंग कर दासा।। 


जो यह पढ़े गंगा चालीसा। 

मिले भक्ति अविरल वागीसा।।


नित नव सुख सम्‍पति लहैं

धरे गंग का ध्‍यान। 


अंत समय सुर पुर बसे

सादर बैठि विमान ।।


संवत भुज नभदिशी 

राज जन्‍म दिन चैत्र। 


पूरण चालीसा कियो 

हरि भक्‍तन हित नेत्र।।

*****

टेलीग्राम चैनल पर हमसे जुड़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें

सिया मनमोहन राम की || आरती श्री रामचन्‍द्र जी की || Siya Manmohan Ram Ki || Shri Ram Chandra Ji Ki Aarty || Lyrics in Hindi

सिया मनमोहन राम की |आरती श्री रामचन्‍द्र जी की | Siya Manmohan Ram Ki | Shri Ram Chandra Ji Ki Aarty | Lyrics in Hindi and English

**
सिया मनमोहन राम की 
शुभ आरती की जय
सिया मनमोहन राम की 
शुभ आरती की जय
**
राम जी की जय लखन जी की जय
सीता सुंदरी स्याम की 
शुभ आरती की जय
सीता सुंदरी स्याम की 
शुभ आरती की जय
**
सिया मनमोहन राम की 
शुभ आरती की जय
**
भरत जी की जय 
शत्रुघन जी की जय 
भरत जी की जय 
शत्रुघन जी की जय
वीर हनुमंता लाल की 
शुभ आरती की जय
वीर हनुमंता लाल की 
शुभ आरती की जय
**
सिया मनमोहन राम की 
शुभ आरती की जय
**
मोर मुकट मकराकृत कुण्डल 
मोर मुकट मकराकृत कुण्डल
दशरथ प्यारे लाल की 
शुभ आरती की जय
दशरथ प्यारे लाल की 
शुभ आरती की जय
**
सिया मनमोहन राम की 
शुभ आरती की जय
*****

सिया मनमोहन राम की |आरती श्री रामचन्‍द्र जी की | Siya Manmohan Ram Ki | Shri Ram Chandra Ji Ki Aarty | Lyrics in Hindi and English

**
Siyā manamohan rām kī 
Shubh āratī kī jaya
Siyā manamohan rām kī 
Shubh āratī kī jaya
**
Rām jī kī jaya lakhan jī kī jaya
Sītā suandarī syām kī 
Shubh āratī kī jaya
Sītā suandarī syām kī 
Shubh āratī kī jaya
**
Siyā manamohan rām kī 
Shubh āratī kī jaya
**
Bharat jī kī jaya 
Shatrughan jī kī jaya 
Bharat jī kī jaya 
Shatrughan jī kī jaya
Vīr hanumantā lāl kī 
Shubh āratī kī jaya
Vīr hanumantā lāl kī 
Shubh āratī kī jaya
**
Siyā manamohan rām kī 
Shubh āratī kī jaya
**
Mor mukaṭ makarākṛut kuṇḍal 
Mor mukaṭ makarākṛut kuṇḍala
Dasharath pyāre lāl kī 
Shubh āratī kī jaya
Dasharath pyāre lāl kī 
Shubh āratī kī jaya
**
Siyā manamohan rām kī 
Shubh āratī kī jaya
*****