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बुधवार, 13 जुलाई 2022

जय जय जय मात ब्रह्माणी भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी| श्री ब्रह्माणी चालीसा | Shri Brahmani Chalisa Lyrics in Hindi

जय जय जय मात ब्रह्माणी भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी| श्री ब्रह्माणी चालीसा | Shri Brahmani Chalisa Lyrics in Hindi 


श्री ब्रहमाणी माताजी का मंदिर-पल्लू

राजस्थान राज्य के हनुमानगढ़ जिले का कस्बां पल्लू ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं। इसकी भौगोलिक स्थिति बाड़मेर, जैसलमेर और चुरू की तरह हैं। इस गाँव के चारों ओर थार मरुस्थल हैं, आस पास कहीं भी पहाड़ नहीं हैं। गांव में मध्य युग से पूर्व चूने का एक किला था। इसका निर्माण तीन चरण में हुआ। कस्बे में माता ब्रह्माणी, सरस्वती व महाकाली का मंदिर है। ये पुराने किले की थेहड़ पर बना है। माता की दूर-दूर तक मान्यता है। वर्ष भर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मंदिर में स्थापित मूर्तियों पर जैन सभ्यता की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है।

बताया जाता है कि हजारों वर्ष पूर्व गीगासर (बीकानेर) के भोजराज सिंह यहां अपना घोड़ा खोजते हुए आए थे। रात हो जाने के कारण वे यहां विश्राम करने एक पेड़ के नीचे रुक गए। उन्हें रात्रि में माता ने दर्शन देकर पूजा करने को कहा। भोजराज सिंह ने सुबह उठकर देखा तो मां ब्रह्माणी, सरस्वती और काली की मूर्तियां जमीन से निकली हुई दिखाई दी। उसी दिन से वे यहां पर पूजा करने लगे। तत्पश्चात मंदिर का निर्माण कराया गया। समय बीतता गया और मंदिर की प्रसिद्ध दूर-दूर तक फैलती गई।

वर्तमान में मंदिर परिसर में दो मंदिर हैं। श्री ब्राह्मणी मंदिर का निर्माण गाँव सिंगरासर के सारसवा भादु और श्री माँ काली मंदिर का काबा भादुओं द्वारा किया गया था। दोनों ही कुलों की ये पारिवारिक देवी हैं। दोनों ही मंदिरों के चांदी के दरवाजे हैं, जो वर्षों पूर्व बनाए गए थे। किंतु आज भी नए जैसे ही दिखते हैं। मंदिर में पूजा सदियों से भोजराज सिंह के वंशज पीढ़ी-दर-पीढ़ी करते आ रहे हैं। मंदिर का एक सार्वजनिक ट्रस्ट बना हुआ है। प्रतिदिन चढ़ने वाला प्रसाद और चढ़ावा पुजारियों के पांचों भाइयों भागूसिंह, गुलाबसिंह, अमरसिंह, उदयसिंह और रिड़माल सिंह के परिवार में बांट दिया जाता है। इनके गांव में करीब 20-25 घर हैं। ये सभी भोजराजसिंह के वंशज है।

माँ ब्राह्मणी का मेला और पदयात्रा:

राजस्थान राज्य के हनुमानगढ़ जिले का पल्लू कस्बा माँ ब्राह्मणी माता के मन्दिर के लिये समस्त भारत देश में प्रसिद्ध है। वर्ष में दो बार यहाँ नवरात्र में विशाल मेला भरता है। माँ ब्राह्मणी पल्लू वाली का मुख्य मेला सप्तमी और अष्टमी को भरता है। सप्तमी और अष्टमी को धोक लगाने वाले भगतों की संख्या एक अनुमान के अनुसार 50 हजार से दो लाख के बीच होती हैं। देशभर से भक्त पैदल, धोक देते हुये, निशान उठा कर या जिस तरह से मानता की हो उस के अनुसार माता के दरबार में आते हैं। अरजनसर से पल्लू आने वाले और हनुमानगढ़ से पल्लू और सालासर वाले मेगा हाइवे पर एक तरफ सालासर बाबा की जय तो दूसरी तरफ जय माता दी के नारों से भक्त माहौल को भक्तिमय बना देते है।

द्वारपाल श्री सादूलाजी

पल्लू में श्री ब्रहमाणी माताजी के मंदिर के पहले माता जी के द्वारपाल श्री सादूला जी का मंदिर बना हुआ है, इसमें श्री सादूलाजी की एक सफेद मारबल की मुर्ति लगी हुई हैं । धार्मिक मान्यताओ के अनुसार श्री सादूला जी को माँ ब्रहमाणी ने एक वरदान दे कर उन्हे एक श्रेष्ठ पद दिया । जो भी भक्त जन माता जी मंदिर के धोक लगाने और दर्शन करने आते है उनको माता जी दर्शन करने से पहले द्वारपाल श्री सादूला जी को धोक लगानी होती और प्रसाद चढ़ाना होता हैं।


श्री ब्रह्माणी चालीसा
दोहा
कोटि कोटि नमन मेरे माता पिता को 
जिसने दिया शरीर
बलिहारी जाऊँ गुरू देव ने 
दिया हरि भजन में सीर ॥
*****
श्री ब्रह्माणी स्तुति
चन्द्र दिपै सूरज दिपै 
उड़गण दिपै आकाश ।
इन सब से बढकर दिपै 
माताऒ का सुप्रकाश ॥
*****
मेरा अपना कुछ नहीं 
जो कुछ है सो तोय ।
तेरा तुझको सौंपते 
क्या लगता है मोय ॥
*****
पद्म कमण्डल अक्ष 
कर ब्रह्मचारिणी रूप ।
हंस वाहिनी कृपा करे 
पडूँ नहीं भव कूप ॥
*****
जय जय श्री ब्रह्माणी 
सत्य पुंज आधार ।
चरण कमल धरि ध्यान में 
प्रणबहुँ बारम्बार ॥
*****
चौपाई
जय जय जय मात ब्रह्माणी । 
भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी ॥ १ ॥
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वीणा पुस्तक कर में सोहे । 
मात शारदा सब जग सोहे ॥ २ ॥
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हँस वाहिनी जय जग माता । 
भक्त जनन की हो सुख दाता ॥ ३ ॥
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ब्रह्माणी ब्रह्मा लोक से आई । 
मात लोक की करो सहाई ॥ ४ ॥
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क्षीर सिन्धु में प्रकटी जब ही । 
देवों ने जय बोली तब ही ॥ ५ ॥
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चतुर्दश रतनों में मानी । 
अद॒भुत माया वेद बखानी ॥ ६ ॥
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चार वेद षट शास्त्र की गाथा । 
शिव ब्रह्मा कोई पार न पाता  ॥ ७ ॥
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आदि शक्ति अवतार भवानी । 
भक्त जनों की  मां कल्याणी ॥ ८ ॥
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जब−जब पाप बढे अति भारे । 
माता शस्त्र कर में धारे ॥ ९ ॥
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पाप विनाशिनी तू जगदम्बा । 
धर्म हेतु ना करो विलम्बा ॥ १० ॥
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नमो नमो ब्रह्मी सुखकारी । 
ब्रह्मा विष्णु शिव तोहे मानी ॥ ११ ॥
*****
तेरी लीला अजब निराली । 
सहाय करो माँ पल्लू वाली ॥ १२ ॥
*****
दुःख चिन्ता सब बाधा हरणी । 
अमंगल में मंगल करणी ॥ १३ ॥
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अन्न पूरणा हो अन्न की दाता । 
सब जग पालन करती माता ॥ १४ ॥
*****
सर्व व्यापिनी असंख्या रूपा । 
तव कृपा से टरता भव कूपा ॥ १५ ॥
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चंद्र बिंब आनन सुखकारी । 
अक्ष माल युत हंस सवारी ॥ १६ ॥
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पवन पुत्र की करी सहाई । 
लंक जार अनल  सित लाई ॥ १७ ॥
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कोप किया दश कन्ध पे भारी । 
कुटम्ब संहारा सेना भारी  ॥ १८ ॥
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तु ही मात विधी हरि हर देवा । 
सुर नर मुनी सब करते सेवा ॥ १९ ॥
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देव दानव का हुआ सम्वादा । 
मारे पापी मेटी बाधा ॥ २० ॥
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श्री नारायण अंग समाई । 
मोहनी रूप धरा तू माई ॥ २१ ॥
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देव दैत्यों की पंक्ती बनाई । 
देवों को मां सुधा पिलाई ॥ २२ ॥
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चतुराई कर के महा माई । 
असुरों को तू दिया मिटाई ॥ २३ ॥
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नौ खण्ङ मांही नेजा फरके । 
भागे दुष्ट अधम जन डर के ॥ २४ ॥
*****
तेरह सौ पेंसठ की साला । 
आस्विन  मास पख उजियाला ॥ २५ ॥
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रवि सुत बार अष्टमी ज्वाला । 
हंस आरूढ कर लेकर भाला ॥ २६ ॥
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नगर कोट से किया पयाना । 
पल्लू कोट भया अस्थाना ॥ २७ ॥
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चौसठ योगिनी बावन बीरा । 
संग में ले आई रणधीरा ॥ २८ ॥
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बैठ भवन में न्याय चुकाणी । 
द्वार पाल सादुल अगवाणी ॥ २९ ॥
*****
सांझ सवेरे बजे नगारा । 
उठता भक्तों का जयकारा ॥ ३० ॥
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मढ़ के बीच खड़ी मां ब्रह्माणी । 
सुन्दर छवि होंठो की लाली ॥ ३१ ॥
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पास में बैठी मां वीणा वाली । 
उतरी मढ़ बैठी महा काली ॥ ३२ ॥
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लाल ध्वजा तेरे मंदिर फरके । 
मन हर्षाता दर्शन करके ॥ ३३ ॥
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चैत आसोज में भरता मेला । 
दूर दूर से आते चेला ॥ ३४ ॥
*****
कोई संग में, कोई अकेला । 
जयकारो का देता हेला ॥ ३५ ॥
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कंचन कलश शोभा दे भारी । 
दिव्य पताका चमके न्यारी ॥ ३६ ॥
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सीस झुका जन श्रद्धा देते । 
आशीष से झोली भर लेते ॥ ३७ ॥
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तीन लोकों की करता भरता । 
नाम लिए सब  कारज सरता ॥ ३८ ॥
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मुझ बालक पे कृपा की ज्यो । 
भूल चूक सब माफी दीज्यो ॥ ३९ ॥
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मन्द मति यह दास तुम्हारा । 
दो मां अपनी भक्ती अपारा ॥ ४० ॥
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जब लगि जिऊ दया फल पाऊं । 
तुम्हरो जस मैं सदा ही गाऊं ॥ ४१ ॥
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दोहा
राग द्वेष में लिप्त मन 
मैं कुटिल बुद्धि अज्ञान ।
भव से पार करो मातेश्वरी 
अपना अनुगत जान ॥
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यह जानकारी वेबसाइट https://palludevi.com से ली गयी है। इस हेतु आभार। अधिक एवं विस्‍तृत जानकारी के लिए कृपया वेबसाइट https://palludevi.com पर पधारें। 

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बुधवार, 6 अप्रैल 2022

नमो नमो पीताम्बरा भवानी || Namo Namo Pitambara Bhawani || Shri Pitambara Mata Chalisa Lyrics in Hindi Sanskrit

नमो नमो पीताम्बरा भवानी || Namo Namo Pitambara Bhawani || Shri Pitambara Mata Chalisa Lyrics in Hindi Sanskrit 

श्री बगलामुखी चालीसा


॥ श्री गणेशाय नमः ॥


नमो महाविद्या बरद, बगलामुखी दयाल।

स्तम्भन क्षण में करे, सुमिरत अरिकुल काल ॥ 


नमो नमो पीताम्बरा भवानी, 

बगलामुखी नमो कल्यानी ॥


भक्त वत्सला शत्रु नशानी, 

नमो महाविद्या वरदानी ॥


अमृत सागर बीच तुम्हारा, 

रत्न जड़ित मणि मंडित प्यारा ॥


स्वर्ण सिंहासन पर आसीना, 

पीताम्बर अति दिव्य नवीना ॥


स्वर्णाभूषण सुन्दर धारे, 

सिर पर चन्द्र मुकुट श्रृंगारे ॥


तीन नेत्र दो भुजा मृणाला, 

धारे मुद्गर पाष कराला ॥


भैरव करें सदा सेवर्काइ, 

सिद्ध काम सब विघ्न नर्साइ ॥


तुम हताश का निपट सहारा, 

करे अकिंचन अरिकल धारा ॥


तुम काली तारा भवनेशी, 

त्रिपुर सुन्दरी भैरवी वेशी ॥


छिन्नभाल धूमा मातंगी, 

गायत्री तुम बगला रंगी ॥


सकल शक्तियाँ तुम में साजें, 

ह्रीं बीज के बीज बिराजें ॥


दुष्ट स्तम्भन अरिकुल कीलन, 

मारण वशीकरण सम्मोहन ॥


दुष्टोच्चाटन कारक माता, 

अरि जिव्हा कीलक सघाता ॥


साधक के विपति की त्राता, 

नमो महामाया प्रख्याता ॥


मुद्गर शिला लिये अति भारी, 

प्रेतासन पर किये सवारी ॥


तीन लोक दस दिशा भवानी, 

बिचरहु तुम जन हित कल्यानी ॥


अरि अरिष्ट सोचे जो जन को 

बुद्धि नाशकर कीलक तन को ॥


हाथ पांव बांधहुं तुम ताके, 

हनहु जीभ बिच मुदर बाके ॥


चोरों का जब संकट आवे, 

रण में रिपुओं से घिर जावे ॥


अनल अनिल बिप्लव घहरावे, 

वाद विवाद न निर्णय पावे ॥


मूठ आदि अभिचारण संकट, 

राजभीति आपत्ति सन्निकट ॥


ध्यान करत सब कष्ट नसावे, 

भूत प्रेत न बाधा आवे ॥


सुमिरत राजद्वार बंध जावे, 

सभा बीच स्तम्भवन छावे ॥


नाग सर्प बृच्छ्रिकादि भयंकर, 

खल विहंग भागहिं सब सत्वर ॥


सर्व रोग की नाशन हारी, 

अरिकुल मूलोच्चाटन कारी ॥


स्त्री पुरुष राज सम्मोहक, 

नमो नमो पीताम्बर सोहक ॥


तुमको सदा कुबेर मनावें, 

श्री समृद्धि सुयश नित गावें ॥


शक्ति शौर्य की तुम्हीं विधाता, 

दुःख दारिद्र विनाशक माता ॥


यश ऐश्वर्य सिद्धि की दाता, 

शत्रु नाशिनी विजय प्रदाता ॥


पीताम्बरा नमो कल्यानी, 

नमो मातु बगला महारानी ॥


जो तुमको सुमरै चितर्लाइ, 

योग क्षेम से करो सर्हाई ॥


आपत्ति जन की तुरत निवारो, 

आधि व्याधि संकट सब टारो ॥


पूजा विधि नहिं जानत तुम्हरी, 

अर्थ न आखर करहूं निहोरी ॥


मैं कुपुत्र अति निवल उपाया, 

हाथ जोड़ षरणागत आया ॥


जग में केवल तुम्हीं सहारा, 

सारे संकट करहुँ निवारा ॥


नमो महादेवी हे माता, 

पीताम्बरा नमो सुखदाता ॥


सौम्य रूप धर बनती माता, 

सुख सम्पत्ति सुयश की दाता ॥


रौद्र रूप धर षत्रु संहारो, 

अरि जिव्हा में मुद्गर मारो ॥


नमो महाविद्या आगारा, 

आदि शक्ति सुन्दरी आपारा ॥


अरि भंजक विपत्ति की त्राता, 

दया करो पीताम्बरी माता ॥

॥ दोहा ॥

रिद्धि सिद्धि दाता तुम्ही, 

अरि समूल कुल काल।

मेरी सब बाधा हरो, 

माँ बगले तत्काल ॥ 


जय जय जय श्री बगला माता || Jay Jay Jay Shri Bagla Mata || Shri Baglamukhi Mata Chalisa Lyrics in Hindi Sanskrit

जय जय जय श्री बगला माता || Jay Jay Jay Shri Bagla Mata || Shri Baglamukhi Mata Chalisa Lyrics in Hindi Sanskrit 



॥ दोहा ॥

सिर नवाइ बगलामुखी लिखूं चालीसा आज॥

कृपा करहु मोपर सदा पूरन हो मम काज ॥


॥ चौपाई ॥

जय जय जय श्री बगला माता ।

आदिशक्ति सब जग की त्राता ॥


बगला सम तब आनन माता ।

एहि ते भयउ नाम विख्याता ॥


शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी ।

अस्‍तुति करहिं देव नर-नारी ॥


पीतवसन तन पर तव राजै ।

हाथहिं मुद्गर गदा विराजै ॥


तीन नयन गल चम्पक माला ।

अमित तेज प्रकटत है भाला ॥


रत्न-जटित सिंहासन सोहै ।

शोभा निरखि सकल जन मोहै ॥


आसन पीतवर्ण महारानी ।

भक्तन की तुम हो वरदानी ॥


पीताभूषण पीतहिं चन्दन ।

सुर नर नाग करत सब वन्दन ॥


एहि विधि ध्यान हृदय में राखै ।

वेद पुराण संत अस भाखै ॥


अब पूजा विधि करौं प्रकाशा ।

जाके किये होत दुख-नाशा ॥


प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावै ।

पीतवसन देवी पहिरावै ॥


कुंकुम अक्षत मोदक बेसन ।

अबिर गुलाल सुपारी चन्दन ॥


माल्य हरिद्रा अरु फल पाना ।

सबहिं चढ़इ धरै उर ध्याना ॥


धूप दीप कर्पूर की बाती ।

प्रेम-सहित तब करै आरती ॥


अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे ।

पुरवहु मातु मनोरथ मोरे ॥


मातु भगति तब सब सुख खानी ।

करहुं कृपा मोपर जनजानी ॥


त्रिविध ताप सब दुख नशावहु ।

तिमिर मिटाकर ज्ञान बढ़ावहु ॥


बार-बार मैं बिनवहुं तोहीं ।

अविरल भगति ज्ञान दो मोहीं ॥


पूजनांत में हवन करावै ।

सा नर मनवांछित फल पावै ॥


सर्षप होम करै जो कोई ।

ताके वश सचराचर होई ॥ 


तिल तण्डुल संग क्षीर मिरावै ।

भक्ति प्रेम से हवन करावै ॥


दुख दरिद्र व्यापै नहिं सोई ।

निश्चय सुख-सम्पत्ति सब होई ॥


फूल अशोक हवन जो करई ।

ताके गृह सुख-सम्पत्ति भरई ॥


फल सेमर का होम करीजै ।

निश्चय वाको रिपु सब छीजै ॥


गुग्गुल घृत होमै जो कोई ।

तेहि के वश में राजा होई ॥


गुग्गुल तिल संग होम करावै ।

ताको सकल बंध कट जावै ॥


बीलाक्षर का पाठ जो करहीं ।

बीज मंत्र तुम्हरो उच्चरहीं ॥


एक मास निशि जो कर जापा ।

तेहि कर मिटत सकल संतापा ॥


घर की शुद्ध भूमि जहं होई ।

साध्का जाप करै तहं सोई ॥


सेइ इच्छित फल निश्चय पावै ।

यामै नहिं कदु संशय लावै ॥


अथवा तीर नदी के जाई ।

साधक जाप करै मन लाई ॥


दस सहस्र जप करै जो कोई ।

सक काज तेहि कर सिधि होई ॥


जाप करै जो लक्षहिं बारा ।

ताकर होय सुयशविस्तारा ॥


जो तव नाम जपै मन लाई ।

अल्पकाल महं रिपुहिं नसाई ॥


सप्तरात्रि जो पापहिं नामा ।

वाको पूरन हो सब कामा ॥


नव दिन जाप करे जो कोई ।

व्याधि रहित ताकर तन होई ॥


ध्यान करै जो बन्ध्या नारी ।

पावै पुत्रादिक फल चारी ॥


प्रातः सायं अरु मध्याना ।

धरे ध्यान होवैकल्याना ॥


कहं लगि महिमा कहौं तिहारी ।

नाम सदा शुभ मंगलकारी ॥


पाठ करै जो नित्या चालीसा ।

तेहि पर कृपा करहिं गौरीशा ॥


॥ दोहा ॥

सन्तशरण को तनय हूं

कुलपति मिश्र सुनाम ।

हरिद्वार मण्डल बसूं 

धाम हरिपुर ग्राम ॥


उन्नीस सौ पिचानबे सन् की,

श्रावण शुक्ला मास ।

चालीसा रचना कियौ,

तव चरणन को दास ॥

*****

मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

जय जननी जगदीश्वरी, कह कर बारम्बार || Jay Janni Jagdishwari Kah Kar Barambar || Karni Mata Chalisa Lyrics in Hindi

जय जननी जगदीश्वरी, कह कर बारम्बार || Jay Janni Jagdishwari Kah Kar Barambar || Karni Mata Chalisa Lyrics in Hindi



।।दोहा।।

जय गणेश जय गजबदन, करण सुमंगल मूल।

करहुँ कृपा निज दास पर, रहहुँ  सदा अनुकूल॥

जय जननी जगदीश्वरी, कह कर बारम्बार।

जगदम्बा करणी सुयश, वरणउ मति अनुसार ॥


सुमिरौं जय जगदम्ब भवानी।

महिमा अकथ न जाय बखानी॥१॥


नमो नमो मेहाई करणी।

नमो नमो अम्बे दुःख हरणी॥२॥


आदि शक्ति जगदम्बे माता।

दुःख को हरणि सुख की दाता॥३॥


निरंकार है ज्योति तुम्हारी।

तिहूं लोक फैली उजियारी॥४॥


जो जेहि रूप से ध्यान लगावे।

मन वांछित सोई फल पावे॥५॥


धौलागढ़ में आप विराजो।

सिंह सवारी सन्मुख साजो॥६॥


भैरो वीर रहे अगवानी।

मारे असुर सकल अभिमानी॥७॥


ग्राम सुआप नाम सुखकारी।

चारण वंश करणी अवतारी॥८॥


मुख मण्डल की सुन्दरताई।

जाकी महिमा कही न जाई॥९॥


जब भक्तों ने सुमिरण कीन्हा।

ताही समय अभय करि दीन्हा॥१०॥


साहूकार की करी सहाई।

डूबत जल में नाव बचाई ॥११॥


जब कान्हे न कुमति बिचारी।

केहरि रूप धरयो महतारी॥१२॥


मारयो ताहि एक छन मांई।

जाकी कथा जगत में छाई॥१३॥


नेड़ी जी शुभ धाम तुम्हारो।

दर्शन करि मन होय सुखारो॥१४॥


कर सौहै त्रिशूल विशाला।

गल राजे पुष्प की माला॥१५॥


शेखोजी पर किरपा कीन्ही।

क्षुधा मिटाय अभय कर दीन्‍ही ॥१६॥


निर्बल होई जब सुमिरन कीन्हा।

कारज सबि सुलभ कर दीन्हा॥१७॥


देशनोक पावन थल भारी।

सुन्दर मंदिर की छवि न्यारी॥१८॥


मढ़ में ज्योति जले दिन राती।

निखरत ही त्रय ताप नशाती॥१९॥


कीन्ही यहाँ तपस्या आकर।

नाम उजागर सब सुख सागर॥२०॥


जय करणी दुःख हरणी मइया।

भव सागर से पार करइया॥२१॥


बार बार ध्याऊं जगदम्बा।

कीजे दया करो न विलम्बा ॥२२॥


धर्मराज नै जब हठ कीन्हा।

निज सुत को जीवित करि लीन्हा ॥२३॥


ताहि समय मर्याद बनाई।

तुम पह मम वंशज नहि आई ॥२४॥


मूषक बन मंदिर में रहि है।

मूषक ते पुनि मानुष तन धरि है ॥२५॥


दिपोजी को दर्शन दीन्हा।

निज लीला से अवगत कीन्हा॥२६॥


बने भक्त पर कृपा कीन्ही।

दो नैनन की ज्योती दीन्ही॥२७॥


चरित अमित अति कीन्ह अपारा।

जाको यश छायो संसारा॥२८॥


भक्त जनन को मात तारती।

मगन भक्त जन करत आरती॥२९॥


भीड़ पड़ी भक्तों पर जब ही।

भई सहाय भवानी तब ही॥३०॥


मातु दया अब हम पर कीजै।

सब अपराध क्षमा कर दीजे॥३१॥


मोको मातु कष्ट अति घेरो।

तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो॥३२॥


जो नर धरे मात कर ध्यान।

ताकर सब विधि हो कल्याण॥३३॥


निशि वासर पूजहिं नर-नारी।

तिनको सदा करहूं रखवारी॥ ३४॥


भव सागर में नाव हमारी।

पार करहु करणी महतारी॥३५॥


कंह लगी वर्णऊ कथा तिहारी।

लिखत लेखनी थकत हमारी॥३६॥


पुत्र जानकर किरपा कीजै।

सुख सम्पत्ति नव निधि कर दीजै॥३७॥


जो यह पाठ करे हमेशा।

ताके तन नहि रहे कलेशा॥३८॥


संकट में जो सुमिरन करई।

उनके ताप मात सब हरई॥३९॥


गुण गाथा गाऊं कर जोरे।

हरहुँ मात सब संकट मोरे॥४०॥

         

।।दोहा।। 

आदि शक्ति अम्बा सुमिर, धरि करणी का ध्यान।

मन मंदिर में बास करो मैया, दूर करो अज्ञान ।।

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करणी माता की आरती || Karni Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi

सोमवार, 28 मार्च 2022

नमो: नमो: वैष्णो वरदानी || Namo Namo Vaishno Vardani || Shri Vaishno Mata Chalisa Lyrics in Hindi

नमो: नमो: वैष्णो वरदानी || Namo Namo Vaishno Vardani || Shri Vaishno Mata Chalisa Lyrics in Hindi

।। दोहा ।।

गरुड़ वाहिनी वैष्णवी

त्रिकुटा पर्वत धाम

काली, लक्ष्मी, सरस्वती,

शक्ति तुम्हें प्रणाम।

 

।। चौपाई ।।

नमो: नमो: वैष्णो वरदानी,

कलि काल मे शुभ कल्याणी।

मणि पर्वत पर ज्योति तुम्हारी,

पिंडी रूप में हो अवतारी॥


देवी देवता अंश दियो है,

रत्नाकर घर जन्म लियो है।

करी तपस्या राम को पाऊं,

त्रेता की शक्ति कहलाऊं॥


कहा राम मणि पर्वत जाओ,

कलियुग की देवी कहलाओ।

विष्णु रूप से कल्कि बनकर,

लूंगा शक्ति रूप बदलकर॥


तब तक त्रिकुटा घाटी जाओ,

गुफा अंधेरी जाकर पाओ।

काली-लक्ष्मी-सरस्वती मां,

करेंगी पोषण पार्वती मां॥


ब्रह्मा, विष्णु, शंकर द्वारे,

हनुमत, भैरों प्रहरी प्यारे।

रिद्धि, सिद्धि चंवर डुलावें,

कलियुग-वासी पूजत आवें॥


पान सुपारी ध्वजा नारीयल,

चरणामृत चरणों का निर्मल।

दिया फलित वर मॉ मुस्काई,

करन तपस्या पर्वत आई॥


कलि कालकी भड़की ज्वाला,

इक दिन अपना रूप निकाला।

कन्या बन नगरोटा आई,

योगी भैरों दिया दिखाई॥


रूप देख सुंदर ललचाया,

पीछे-पीछे भागा आया।

कन्याओं के साथ मिली मॉ,

कौल-कंदौली तभी चली मॉ॥


देवा माई दर्शन दीना,

पवन रूप हो गई प्रवीणा।

नवरात्रों में लीला रचाई,

भक्त श्रीधर के घर आई॥


योगिन को भण्डारा दीनी,

सबने रूचिकर भोजन कीना।

मांस, मदिरा भैरों मांगी,

रूप पवन कर इच्छा त्यागी॥


बाण मारकर गंगा निकली,

पर्वत भागी हो मतवाली।

चरण रखे आ एक शीला जब,

चरण-पादुका नाम पड़ा तब॥


पीछे भैरों था बलकारी,

चोटी गुफा में जाय पधारी।

नौ मह तक किया निवासा,

चली फोड़कर किया प्रकाशा॥


आद्या शक्ति-ब्रह्म कुमारी,

कहलाई माँ आद कुंवारी।

गुफा द्वार पहुँची मुस्काई,

लांगुर वीर ने आज्ञा पाई॥


भागा-भागा भैंरो आया,

रक्षा हित निज शस्त्र चलाया।

पड़ा शीश जा पर्वत ऊपर,

किया क्षमा जा दिया उसे वर॥


अपने संग में पुजवाऊंगी,

भैंरो घाटी बनवाऊंगी।

पहले मेरा दर्शन होगा,

पीछे तेरा सुमिरन होगा॥


बैठ गई मां पिंडी होकर,

चरणों में बहता जल झर झर।

चौंसठ योगिनी-भैंरो बर्वत,

सप्तऋषि आ करते सुमरन॥


घंटा ध्वनि पर्वत पर बाजे,

गुफा निराली सुंदर लागे।

भक्त श्रीधर पूजन कीन,

भक्ति सेवा का वर लीन॥


सेवक ध्यानूं तुमको ध्याना,

ध्वजा व चोला आन चढ़ाया।

सिंह सदा दर पहरा देता,

पंजा शेर का दु:ख हर लेता॥


जम्बू द्वीप महाराज मनाया,

सर सोने का छत्र चढ़ाया।

हीरे की मूरत संग प्यारी,

जगे अखण्ड इक जोत तुम्हारी॥


आश्विन चैत्र नवरात्रे आऊं,

पिण्डी रानी दर्शन पाऊं।

सेवक 'कमल' शरण तिहारी,

हरो वैष्णो विपत हमारी॥

 

।। दोहा ।।

कलियुग में महिमा तेरी,

है मां अपरंपार।

धर्म की हानि हो रही,

प्रगट हो अवतार।।

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जय वैष्णवी माता || Jay Vaishnavi Mata || Vaishno Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi 

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