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रविवार, 19 दिसंबर 2021

श्री तुलसी चालीसा || वृक्ष रूपिणी पावनी || नमो नमो तुलसी गुणकारी || Shri Tulsi Chalisa || Namo Namo Tulsi Gunkari Lyrics in Hindi

श्री तुलसी चालीसा || वृक्ष रूपिणी पावनी || नमो नमो तुलसी गुणकारी || Shri Tulsi Chalisa || Namo Namo Tulsi Gunkari Lyrics in Hindi 


वृक्ष रूपिणी पावनी 

तुलसी है तव नाम। 

विश्‍वपूजिता कृष्‍ण जीवनी 

वृंन्‍दा तुम्‍हें प्रणाम ।।


नमो नमो तुलसी गुणकारी 

तुम त्रिलोक में शुभ हितकारी। 

वन उपवन में शोभा तुम्‍हारी 

वृक्ष रूप में हो अवतारी।। 


देवी देवता अरु नर नारी

गावत महिता मात तुम्‍हारी। 

जहॉं चरण हो तुम्‍हरे माता 

स्‍थान वही पावन हो जाता।। 


गोपी तुम्‍हीं गौ लोक निवासी 

तुलसी नाम कृष्‍ण की दासी। 

अंश रूप थी तुम भगवन की

प्राण प्रिये जैसी मोहन की।। 


मुरलीधर संग तुमको पाया

क्रोध राधे को तुम पर आया।

कहा राधा ने श्राप है मेरा

मनुज योनि में जन्‍म हो तेरा।। 


हरि बोले तुलसी तुम जाओ

भरत खंड जा ध्‍यान लगाओ।

ब्रह्मा के वरदान फलेंगे

नारायण पति रूप मिलेंगे।।


राजा धर्मध्‍वज माधवी रानी 

जन्‍मी बनकर सुता सयानी। 

उपमा कोई काम न आई

तब से तुम तुलसी कहलाई।।


बद्रिका आश्रम का पथ लीन्‍हा 

उत्‍तम तप वहॉं जाकर कीन्‍हा। 

फलदाई दिन वो भी आया 

जब ब्रह्मा का दर्शन पाया।।


कहा ब्रह्मा ने मांगो तुम वर

तुमने कहा दे दो मुरलीधर।

ब्रह्मा जी ने राह बताई

तुमको तब ये कथा सुनाई।।


ब्रह्मा बोले सुन हे बाला 

शंखचूड़ है दैत्‍य निराला। 

मोहित है तुझ पर वो तब से

देखा है गौ लोक में जबसे।। 


था ग्‍वाला वो नाम सुदामा 

क्रोधित थी उस पर भी श्‍यामा। 

श्राप मिला पृथ्‍वी पर आया

शंखचूड़ है वो कहलाया।। 


पहले तू उसको ब्‍याहेगी

नारायण को फिर पायेगी।

नारायण के श्राप से पावन

बन जायेगी तू वृन्‍दावन।।


वृक्षों में देवी बन जायेगी

वृन्‍दावनी तू कहलायेगी। 

पूजा होगी तुझ बिन निशफल

संग रहेंगे विष्‍णु हर पल।।


राधा मंत्र तब दिया निराला 

तात ने सौलह अक्षर वाला। 

जब कर तुमने सिद्धि पाई 

लक्ष्‍मी सम सिद्धा कहलाई।।


शंखचूड़ से ब्‍याह रचाया 

सती के जैसा धर्म निभाया। 

शंखचूड़ पर ईर्ष्‍या आई

देवगणों की मति भरमाई।। 


शंखचूड़ को छल से मारा

काम किया ये शिव ने सारा।

शंखचूड़ का रूप धरा था

हरि ने सती का शील हरा था।।


श्राप दिया तुलसी ने रोकर

नाथ रहो तुम पत्‍थर होकर।

हरि बोले अ‍ब ये तन छोड़ो

तुम मेरे संग नाता जोड़ो।। 


क्‍या कहूँ आये तुम्‍हरा सरीरा

बने दंड की निर्मल नीरा। 

वृक्ष हो तुलसी केश तुम्‍हारे 

स्‍थान हो तुमसे पावन सारे।।


वर देकर फिर बोले भगवन

धन्‍य हो तुमसे सबके जीवन।

चरण जहॉं तव पड़ जायेंगे

तीर्थ स्‍थान वे कहलायेंगे।।


तुलसीयुक्‍त जल से जो नहाये

यज्ञ आदि का वो फल पाये।

विष्‍णु को प्रिय तुलसी चढ़ाये 

कोटि चढ़ावों का फल पाये।।


जो फल दे दो दान हजारा 

दे कार्तिक में दान तुम्‍हारा। 

भरत है भैया दास तुम्‍हारा 

अपनी शरण का दे दो सहारा।। 


कलियुग में महिमा तेरी

है मॉं अपरम्‍पार।

दिशा दिशा मे हो रही

तेरी जय जयकार।।

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शनिवार, 18 दिसंबर 2021

श्री गुरु चालीसा || ॐ नमो गुरुदेव दयाला || Om Namo Gurudev Dayala || Shri Gurudev Chalisa Lyrics in Hindi || Guru Dev Chalisa || Guru Purnima Chalisa

श्री गुरु चालीसा ||ॐ नमो गुरुदेव दयाला || Om Namo Gurudev Dayala || Shri Gurudev Chalisa Lyrics in Hindi || Guru Dev Chalisa || Guru Purnima Chalisa


।। दोहा ।।


ॐ नमो गुरुदेवजी, सबके सरजन हार।

व्यापक अंतर बाहर में, पार ब्रह्म करतार।।


देवन के भी देव हो, सिमरुं मैं बारम्बार।

आपकी किरपा बिना, होवे न भव से पार।।


ऋषि-मुनि सब संत जन, जपें तुम्हारा जाप।

आत्मज्ञान घट पाय के, निर्भय हो गये आप।।


गुरु चालीसा जो पढ़े, उर गुरु ध्यान लगाय।

जन्म-मरण भव दुःख मिटे, काल कबहुँ नहिं खाय।।


गुरु चालीसा पढ़े-सुने, रिद्धि-सिद्धि सुख पाय।

मन वांछित कारज सरें, जन्म सफल हो जाय।।


।। चौपाई ।।

 

ॐ नमो गुरुदेव दयाला, 

भक्तजनों के हो प्रतिपाला। 

पर उपकार धरो अवतारा, 

डूबत जग में हंस उबारा।। 


तेरा दरश करें बड़भागी, 

जिनकी लगन हरि से लागी। 

नाम जहाज तेरा सुखदाई, 

धारे जीव पार हो जाई।। 


पारब्रह्म गुरु हैं अविनाशी, 

शुद्ध स्वरूप सदा सुखराशी। 

गुरु समान दाता कोई नाहीं, 

राजा प्रजा सब आस लगायी।। 


गुरु सन्मुख जब जीव हो जावे, 

कोटि कल्प के पाप नसावे। 

जिन पर कृपा गुरु की होई, 

उनको कमी रहे नहिं कोई।। 


हिरदय में गुरुदेव को धारे, 

गुरु उसका हैं जन्म सँवारें। 

राम-लखन गुरु सेवा जानी, 

विश्व-विजयी हुए महाज्ञानी।। 


कृष्ण गुरु की आज्ञा धारी, 

स्वयं जो पारब्रह्म अवतारी। 

सद्गुरु कृपा अती है भारी, 

नारद की चौरासी टारी।। 


कठिन तपस्या करें शुकदेव, 

गुरु बिना नहीं पाया भेद। 

गुरु मिले जब जनक विदेही, 

आतमज्ञान महा सुख लेही।। 


व्यास, वसिष्ठ मर्म गुरु जानी, 

सकल शास्त्र के भये अति ज्ञानी। 

अनंत ऋषि मुनि अवतारा, 

सद्गुरु चरण-कमल चित धारा।। 


सद्गुरु नाम जो हृदय धारे, 

कोटि कल्प के पाप निवारे। 

सद्गुरु सेवा उर में धारे, 

इक्कीस पीढ़ी अपनी वो तारे।। 


पूर्वजन्म की तपस्या जागे, 

गुरु सेवा में तब मन लागे। 

सद्गुरु-सेवा सब सुख होवे, 

जनम अकारथ क्यों है खोवे।। 


सद्गुरु सेवा बिरला जाने, 

मूरख बात नहीं पहिचाने। 

सद्गुरु नाम जपो दिन-राती, 

जन्म-जन्म का है यह साथी।। 


अन्न-धन लक्ष्मी जो सुख चाहे, 

गुरु सेवा में ध्यान लगावे। 

गुरुकृपा सब विघ्न विनाशी, 

मिटे भरम आतम परकाशी।। 


पूर्व पुण्य उदय सब होवे, 

मन अपना सद्गुरु में खोवे। 

गुरु सेवा में विघ्न पड़ावे, 

उनका कुल नरकों में जावे।। 


गुरु सेवा से विमुख जो रहता, 

यम की मार सदा वह सहता। 

गुरु विमुख भोगे दुःख भारी, 

परमारथ का नहीं अधिकारी।। 


गुरु विमुख को नरक न ठौर, 

बातें करो चाहे लाख करोड़। 

गुरु का द्रोही सबसे बूरा, 

उसका काम होवे नहीं पूरा।। 


जो सद्गुरु का लेवे नाम, 

वो ही पावे अचल आराम। 

सभी संत हैं नाम से तरिया, 

निगुरा नाम बिना ही मरिया।। 


यम का दूत दूर ही भागे, 

जिसका मन सद्गुरु में लागे। 

भूत, पिशाच निकट नहीं आवे, 

गुरुमंत्र जो निशदिन ध्यावे।। 


जो सद्गुरु की सेवा करते, 

डाकन-शाकन सब हैं डरते। 

जंतर-मंतर, जादू-टोना, 

गुरु भक्त के कुछ नहीं होना।। 


गुरू भक्त की महिमा भारी, 

क्या समझे निगुरा नर-नारी। 

गुरु भक्त पर सद्गुरु बूठे, 

धरमराज का लेखा छूटे।। 


गुरु भक्त निज रूप ही चाहे, 

गुरु मार्ग से लक्ष्य को पावे। 

गुरु भक्त सबके सिर ताज, 

उनका सब देवों पर राज।।


।। दोहा ।।


यह सद्गुरु चालीसा, पढ़े सुने चित्त लाय। 

अंतर ज्ञान प्रकाश हो, दरिद्रता दुःख जाय।। 

गुरु महिमा बेअंत है, गुरु हैं परम दयाल। 

साधक मन आनंद करे, गुरुवर करें निहाल।।


।। सभी प्रेम से बोलो गुरुदेव भगवान की जय ।।

बुधवार, 15 दिसंबर 2021

श्री गंगा चालीसा || जय जग जननी हरण अघखानी || Shri Ganga Chalisa || Jay Jag Janani Haran Aghkhani || Lyrics in Hindi

श्री गंगा चालीसा || जय जग जननी हरण अघखानी || Shri Ganga Chalisa || Jay Jag Janani Haran Aghkhani || Lyrics in Hindi


।। दोहा ।। 

जय जय जय जग पावनी, 

जयति देवसरि गंग। 

जय शिव जटा निवासिनी 

अनुपम तुंग तरंग।।


।। चौपाई ।।

जय जग जननी हरण अघखानी। 

आनंद करनि गंग महारानी।। 


जय भगीरथी सुरसरि माता। 

कलिमल मूल दलिनि विख्याता।। 


जय जय जय हनु सुता अघ हननी। 

भीष्म की माता जय जय जननी।। 


धवल कमल दल सम तनु सजे। 

लखी शत शरद चंद्र छवि लाजै।। 


वाहन मकर विमल शुचि सोहें। 

अमिया कलश कर लखी मन मोहें।। 


जाड़त रत्ना कंचन आभूषण। 

हिया मणि हार हरणि तम दूषण।। 


जग पावनी त्रय ताप नासवनी। 

तरल तरंग तंग मन भावनी।। 


जो गणपति अति पूज्य प्रधाना। 

तिहूं ते प्रथम गंग अस्नाना।। 


ब्रह्मा कमंडल वासिनी देवी। 

श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवी।। 


साथी सहस्त्र सगर सुत तारयो। 

गंगा सागर तीरथ धारयो।। 


अगम तरंग उठ्यो मन भावन। 

लखि तीरथ हरिद्वार सुहावन।। 


तीरथ राज प्रयाग अक्षयवट। 

धरयो मातु पुनि काशी करवट।। 


धनि धनि सुरसरि स्वर्ग की सीढ़ी। 

तारणी अमित पित्र पद पीढ़ी।। 


भागीरथ तप कियो अपारा। 

दियो ब्रह्म तब सुरसरि धारा।। 


जब जग जननी चल्यो हहराई। 

शम्भु जटा महं रह्यो समाई।। 


वर्ष पर्यंत गंग महारानी। 

रहीं शम्‍भु के जटा भुलानी।। 


पुनि भागीरथ शम्भुहीं ध्यायो। 

तब इक बूंद जटा से पायो।। 


ताते मातु भई त्रय धारा। 

मृत्यु लोक नभ अरु पातारा।। 


गईं पाताल प्रभावती नामा। 

मन्दाकिनी गई गगन ललामा।। 


मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनी। 

कलिमल हरनि अगम युग पावनि।। 


धनि मइया तव महिमा भारी। 

धर्मं धुरी कलि कलुष कुठारी।। 


मातु प्रभावति धनि मंदाकिनी। 

धनि सुर सरित सकल भयनासिनी।। 


पान करत निर्मल गंगा जल। 

पावत मन इच्छित अनंत फल।। 


पूरब जन्म पुण्य जब जागत। 

तबहीं ध्यान गंगा महं लागत।। 


जई पगु सुरसरी हेतु उठावहिं। 

तई जगि अश्वमेघ फल पावहि।। 


महा पतित जिन काहू न तारे। 

तिन तारे इक नाम तिहारे।। 


शत योजन हूं से जो ध्यावहिं। 

निश्‍चय विष्णु लोक पद पावहिं।। 


नाम भजत अगणित अघ नाशै। 

विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशै।। 


जिमि धन धर्मं अरु दाना। 

धर्मं मूल गंगाजल पाना।। 


तव गुन गुणन करत दुख भाजत। 

गृह गृह सम्पति सुमति विराजत।। 


गंगहि नेम सहित नित ध्यावत। 

दुर्जनहूं सज्जन पद पावत।। 


बुद्धिहीन विद्या बल पावै। 

रोगी रोग मुक्त ह्वै जावै।। 


गंगा गंगा जो नर कहहीं। 

भूखा नंगा कबहुँ न रहहीं।। 


निकसत ही मुख गंगा माई। 

श्रवण दाबि यम चलहिं पराई।। 


महा अघिन अधमन कहं तारे। 

भए नरक के बंद किवारें।।


जो नर जपे गंग शत नामा। 

सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा।। 


सब सुख भोग परम पद पावहिं। 

आवागमन रहित ह्वै जावहिं।। 


धनि मइया सुरसरि सुख दैनी। 

धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी।। 


ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा। 

सुन्दरदास गंग कर दासा।। 


जो यह पढ़े गंगा चालीसा। 

मिले भक्ति अविरल वागीसा।।


नित नव सुख सम्‍पति लहैं

धरे गंग का ध्‍यान। 


अंत समय सुर पुर बसे

सादर बैठि विमान ।।


संवत भुज नभदिशी 

राज जन्‍म दिन चैत्र। 


पूरण चालीसा कियो 

हरि भक्‍तन हित नेत्र।।

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श्री शिव चालीसा || श्री गणेश गिरिजा सुवन || Shri Shiv Chalisa || Shri Ganesh Girija Suvan || जय गिरिजा पति दीन दयाला || Jay Girijapati Deen Dayala || Lyrics in Hindi

श्री शिव चालीसा || श्री गणेश गिरिजा सुवन || Shri Shiv Chalisa || Shri Ganesh Girija Suvan || जय गिरिजा पति दीन दयाला || Jay Girijapati Deen Dayala || Lyrics in Hindi

(चित्र गूगल से साभार)

।। दोहा ।।

श्री गणेश गिरिजा सुवन,

मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम,

देहु अभय वरदान।।


।। चौपाई ।।

जय गिरिजा पति दीन दयाला।

सदा करत सन्तन प्रतिपाला।।


भाल चन्द्रमा सोहत नीके।

कानन कुण्डल नागफनी के।।


अंग गौर शिर गंग बहाये।

मुण्डमाल तन क्षार लगाए।।


वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।

छवि को देखि नाग मुनि मोहे।।


मैना मातु की हवे दुलारी।

बाम अंग सोहत छवि न्यारी।।


कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।

करत सदा शत्रुन क्षयकारी।।


नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।

सागर मध्य कमल हैं जैसे।।


कार्तिक श्याम और गणराऊ।

या छवि को कहि जात न काऊ।।


देवन जबहीं जाय पुकारा।

तब ही दुख प्रभु आप निवारा।।


किया उपद्रव तारक भारी।

देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी।।


तुरत षडानन आप पठायउ।

लवनिमेष महँ मारि गिरायउ।।


आप जलंधर असुर संहारा।

सुयश तुम्हार विदित संसारा।।


त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।

सबहिं कृपा कर लीन बचाई।।


किया तपहिं भागीरथ भारी।

पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी।।


दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं।

सेवक स्तुति करत सदा हीं।।


वेद नाम महिमा तव गाई।

अकथ अनादि भेद नहिं पाई।।


प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला।

जरत सुरासुर भए विहाला।।


कीन्ही दया तहं करी सहाई।

नीलकण्ठ तब नाम कहाई।।


पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा।

जीत के लंक विभीषण दीन्हा।।


सहस कमल में हो रहे धारी।

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी।।


एक कमल प्रभु राखेउ जोई।

कमल नयन पूजन चहं सोई।।


कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।

भए प्रसन्न दिए इच्छित वर।।


जय जय जय अनन्त अविनाशी।

करत कृपा सब के घटवासी।।


दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।

भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै।।


त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।

येहि अवसर मोहि आन उबारो।।


लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।

संकट ते मोहि आन उबारो।।


मातु-पिता भ्राता सब होई।

संकट में पूछत नहिं कोई।।


स्वामी एक है आस तुम्हारी।

आय हरहु मम संकट भारी।।


धन निर्धन को देत सदा हीं।

जो कोई जांचे सो फल पाहीं।।


अस्तुति केहि विधि करूँ तुम्हारी।

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।।


शंकर हो संकट के नाशन।

मंगल कारण विघ्न विनाशन।।


योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।

नारद शारद शीश नवावैं।।


नमो नमो जय नमः शिवाय।

सुर ब्रह्मादिक पार न पाय।।


जो यह पाठ करे मन लाई।

ता पर होत है शम्भु सहाई।।


ॠनियां जो कोई हो अधिकारी।

पाठ करे सो पावन हारी।।


पुत्र हीन कर इच्छा जोई।

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई।।


पण्डित त्रयोदशी को लावे।

ध्यान पूर्वक होम करावे।।


त्रयोदशी व्रत करै हमेशा।

ताके तन नहीं रहै कलेशा।।


धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे।।


जन्म जन्म के पाप नसावे।

अन्त वास शिवपुर में पावे।।


कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी।

जानि सकल दुःख हरहु हमारी।।


।। दोहा ।।

नित्त नेम कर प्रातः ही,

पाठ करौं चालीस।

तुम मेरी मनोकामना,

पूर्ण करो जगदीश।।


मगसर छठि हेमन्त ॠतु,

संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि,

पूर्ण कीन कल्याण।।

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शिव जी बोलो तो सही आंखें खोलो तो सही || Shiv Ji Bolo To Sahi || Shiv Stuti || Shiv Bhajan || Shiv Keertan


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शनिवार, 11 दिसंबर 2021

शारदा माता की चालीसा || मूर्ति स्वयंभू शारदा || Sharda Mata Ki Chalisa || Murti Swayambhu Sharda || Maihar Wali Mata || Chalisa Lyrics in Hindi

शारदा माता की चालीसा || मूर्ति स्वयंभू शारदा || Sharda Mata Ki Chalisa || Murti Swayambhu Sharda || Maihar Wali Mata || Chalisa Lyrics in Hindi

(चित्र गूगल से साभार)

।। दोहा ।। 

मूर्ति स्वयंभू शारदा मैहर आन विराज। 

माला पुस्तक धारिणी वीणा कर में साज।।

।। चालीसा ।।

जय जय जय शारदा महारानी। 

आदि शक्ति तुम जग कल्याणी।।

 

रूप चतुर्भुज तुम्हरो माता। 

तीन लोक महं तुम विख्याता।। 


दो सहस्त्र वर्षहि अनुमाना ।

प्रगट भई शारदा जग जाना।। 


मैहर नगर विश्व विख्याता ।

जहाँ बैठी शारदा जग माता।। 


त्रिकूट पर्वत शारदा वासा।

मैहर नगरी परम प्रकाशा।। 


सर्द इन्दु सम बदन तुम्हारो ।

रूप चतुर्भुज अतिशय प्यारो।। 


कोटि सुर्य सम तन द्युति पावन। 

राज हंस तुम्हरो शचि वाहन।। 


कानन कुण्डल लोल सुहवहि ।

उर्मणि भाल अनूप दिखावहिं।। 


वीणा पुस्तक अभय धारिणी। 

जगत्मातु तुम जग विहारिणी।। 


ब्रह्म सुता अखंड अनूपा। 

शारदा गुण गावत सुरभूपा।। 


हरिहर करहिं शारदा वन्दन। 

वरुण कुबेर करहिं अभिनन्दन।। 


शारदा रूप चण्‍डी अवतारा। 

चण्ड-मुण्ड असुरन संहारा।। 


महिषा सुर वध कीन्हि भवानी। 

दुर्गा बन शारदा कल्याणी।। 


धरा रूप शारदा भई चण्डी। 

रक्त बीज काटा रण मुण्डी।। 


तुलसी सूर्य आदि विद्वाना। 

शारदा सुयश सदैव बखाना।। 


कालिदास भए अति विख्याता। 

तुम्हरी दया शारदा माता।। 


वाल्मीकि नारद मुनि देवा। 

पुनि-पुनि करहिं शारदा सेवा।। 


चरण-शरण देवहु जग माया। 

सब जग व्यापहिं शारदा माया।।


अणु-परमाणु शारदा वासा। 

परम शक्तिमय परम प्रकाशा।। 


हे शारद तुम ब्रह्म स्वरूपा। 

शिव विरंचि पूजहिं नर भूपा।। 


ब्रह्म शक्ति नहि एकउ भेदा। 

शारदा के गुण गावहिं वेदा।। 


जय जग वन्दनि विश्व स्वरूपा। 

निर्गुण-सगुण शारदहिं रूपा।। 


सुमिरहु शारदा नाम अखंडा। 

व्यापहिं नहिं कलिकाल प्रचण्डा।। 


सूर्य चन्द्र नभमण्डल तारे। 

शारदा कृपा चमकते सारे।। 


उद्भव स्थिति प्रलय कारिणी। 

बन्दउ शारदा जगत तारिणी।। 


दु:ख दरिद्र सब जाहिं नसाई। 

तुम्हारी कृपा शारदा माई।। 


परम पुनीत जगत अधारा।

मातु शारदा ज्ञान तुम्हारा।। 


विद्या बुद्धि मिलहिं सुखदानी। 

जय जय जय शारदा भवानी।। 


शारदे पूजन जो जन करहिं। 

निश्चय ते भव सागर तरहीं।।

 

शारद कृपा मिलहिं शुचि ज्ञाना। 

होई सकल विधि अति कल्याणा।। 


जग के विषय महा दु:खदाई। 

भजहुँ शारदा अति सुख पाई।। 


परम प्रकाश शारदा तोरा। 

दिव्य किरण देवहुँ मम ओरा।। 


परमानन्द मगन मन होई। 

मातु शारदा सुमिरई जोई।।

 

चित्त शान्त होवहिं जप ध्याना। 

भजहुँ शारदा होवहिं ज्ञाना।। 


रचना रचित शारदा केरी।

पाठ करहिं भव छटई फेरी।। 


सत् - सत् नमन पढ़ीहे धरिध्याना। 

शारदा मातु करहिं कल्याणा।। 


शारदा महिमा को जग जाना। 

नेति-नेति कह वेद बखाना।। 


सत् - सत् नमन शारदा तोरा। 

कृपा दृष्टि कीजै मम ओरा।।

 

जो जन सेवा करहिं तुम्हारी। 

तिन कहँ कतहुँ नाहि दु:खभारी।। 


जो यह पाठ करै चालीसा। 

मातु शारदा देहुँ आशीषा।।

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शारदा मैया की आरती || जय शारदे माता || Sharda Maiya Ki Aarti || Jay Sharde Mata || Sharada Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi 


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मंगलवार, 7 दिसंबर 2021

मनसा देवी की चालीसा || मनसा माँ नागेश्वरी || Mansa Mata Ki Chalisa || Mansa Ma Nageshwari || Mansa Mata Ki Stuti

मनसा देवी की चालीसा || मनसा माँ नागेश्वरी || Mansa Mata Ki Chalisa || Mansa Ma Nageshwari || Mansa Mata Ki Stuti

 
मनसा माँ नागेश्वरी 

कष्ट हरन सुखधाम।

चिंताग्रस्त हर जीव के 

सिद्ध करो सब काम।।


देवी घट-घट वासिनी 

ह्रदय तेरा विशाल।

निष्ठावान हर भक्त पर 

रहियो सदा तैयार।।


पदमावती भयमोचिनी अम्बा 

सुख संजीवनी माँ जगदंबा।

मनशा पूरक अमर अनंता 

तुमको हर चिंतक की चिंता।।


कामधेनु सम कला तुम्हारी 

तुम्ही हो शरणागत रखवाली।

निज छाया में जिनको लेती 

उनको रोगमुक्त कर देती।।


धनवैभव सुखशांति देना 

व्यवसाय में उन्नति देना।

तुम नागों की स्वामिनी माता 

सारा जग तेरी महिमा गाता।।


महासिद्धा जगपाल भवानी 

कष्ट निवारक माँ कल्याणी।

याचना यही सांझ सवेरे 

सुख संपदा मोह ना फेरे।।


परमानंद वरदायनी मैया 

सिद्धि ज्योत सुखदायिनी मैया।

दिव्य अनंत रत्नों की मालिक 

आवागमन की महासंचालक।।


भाग्य रवि कर उदय हमारा 

आस्तिक माता अपरंपारा।

विद्यमान हो कण कण भीतर 

बस जा साधक के मन भीतर।।


पापभक्षिणी शक्तिशाला 

हरियो दुख का तिमिर ये काला।

पथ के सब अवरोध हटाना 

कर्म के योगी हमें बनाना।।


आत्मिक शांति दीजो मैया 

ग्रह का भय हर लीजो मैया।

दिव्य ज्ञान से युक्त भवानी 

करो संकट से मुक्त भवानी।।


विषहरी कन्या, कश्यप बाला 

अर्चन चिंतन की दो माला।

कृपा भगीरथ का जल दे दो 

दुर्बल काया को बल दे दो।।


अमृत कुंभ है पास तुम्हारे 

सकल देवता दास तुम्हारे।

अमर तुम्हारी दिव्य कलाएँ 

वांछित फल दे कल्प लताएँ।।


परम श्रेष्ठ अनुकम्‍पा वाली 

शरणागत की कर रखवाली।

भूत पिशाचर टोना टंट 

दूर रहे माँ कलह भयंकर।।


सच के पथ से हम ना भटके 

धर्म की दृष्टि में ना खटके।

क्षमा देवी, तुम दया की ज्योति 

शुभ कर मन की हमें तुम होती।।


जो भीगे तेरे भक्ति रस में 

नवग्रह हो जाए उनके वश में।

करुणा तेरी जब हो महारानी 

अनपढ बनते है महाज्ञानी।।


सुख जिन्हें हो तुमने बांटें 

दुख की दीमक उन्हे ना छांटें।

कल्पवृक्ष तेरी शक्ति वाला 

वैभव हमको दे निराला।।


दीनदयाला नागेश्वरी माता 

जो तुम कहती लिखे विधाता।

देखते हम जो आशा निराशा 

माया तुम्हारी का है तमाशा।।


आपद विपद हरो हर जन की 

तुम्हें खबर हर एक के मन की।

डाल के हम पर ममता आँचल 

शांत कर दो समय की हलचल।।


मनसा माँ जग सृजनहारी 

सदा सहायक रहो हमारी।

कष्ट क्लेश ना हमें सतावे 

विकट बला ना कोई भी आवे।।


कृपा सुधा की वृष्टि करना 

हर चिंतक की चिंता हरना।

पूरी करो हर मन की मंशा 

हमें बना दो ज्ञान की हंसा।।


पारसमणियाँ चरण तुम्हारे 

उज्वल करदे भाग्य हमारे।

त्रिभुवन पूजित मनसा माई 

तेरा सुमिरन हो फलदाई।।


इस गृह अनुग्रह रस बरसा दे 

हर जीवन निर्दोष बना दे।

भूलेंगें उपकार ना तेरे

पूजेंगे माँ सांझ सवेरे।।


सिद्ध मनसा सिद्धेश्वरी 

सिद्ध मनोरथ कर।

भक्तवत्सला दो हमें 

सुख संतोष का वर।। 

(चित्र गूगल से साभार)

श्री मनसा देवी की आरती || जय मनसा माता श्री जय मनसा माता || Shri Mansa Devi Ki Aarti || Jay Mansa Mata Shri Mansa Mata || Mansa Mata Aarti Lyrics in Hindi


श्री पार्वती चालीसा || ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे || Brahma Bhed Na Tumro Pave || Shri Parvati Chalisa || Shri Parvati Stuti || Shri Parvati Aarti || Lyrics in Hindi ||

श्री पार्वती चालीसा || ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे || Brahma Bhed Na Tumro Pave || Shri Parvati Chalisa || Shri Parvati Stuti || Shri Parvati Aarti || Lyrics in Hindi ||   

(चित्र गूगल से साभार)

 ।। दोहा ।।


जय गिरितनये दक्षजे शम्‍भुप्रिये गुणखानि। 

गणपति जननी पार्वती अम्बे शक्ति भवानि।।


।। चौपाई ।।


ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे 

पंचबदन नित तुमको ध्यावे। 

षड्मुख कहि न सकत यश तेरो 

सहसबदन श्रम करत घनेरो।।


तेऊ पार न पावत माता, 

स्थित रक्षालय हिय सजाता। 

अधर प्रवाल सदृश अरुणारे, 

अति कमनीय नयन कजरारे।। 


ललित ललाट विलेपित केशर 

कुंकुंम अक्षत शोभा मनहर। 

कनक बसन कंचुकी सजाए 

कटी मेखला दिव्य लहराए।। 


कंठ मंदार हार की शोभा 

जाहि देखि सहज मन लोभा। 

बालारुण अनंत छबि धारी 

आभूषण की शोभा प्यारी।। 


नाना रत्न जड़ित सिंहासन 

तापर राजति हरि चतुरानन। 

इन्द्रादिक परिवार पूजित 

जग मृग नाग यक्ष रव कूजित।। 


गिर कैलास निवासिनि जय जय 

कोटिक प्रभा विकासिनि जय जय।

त्रिभुवन सकल कुटुंब तिहारी 

अणु अणु महं तुम्‍हरी उजियारी।। 


हैं महेश प्राणेश तुम्हारे 

त्रिभुवन के जो नित रखवारे।

उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब 

सुकृत पुरातन उदित भए तब।। 


बूढ़ा बैल सवारी जिनकी 

महिमा का गावे कोउ तिनकी। 

सदा श्मशान बिहारी शंकर 

आभूषण हैं भुजंग भयंकर।। 


कण्ठ हलाहल को छबि छायी 

नीलकण्ठ की पदवी पायी। 

देव मगन के हित अस कीन्हो, 

विष लै आपु तिनहि अमि दीन्हो।। 


ताकी तुम पत्नी छवि धारिणी 

दुरित विदारिणी मंगल कारिणी। 

देखि परम सौंदर्य तिहारो 

त्रिभुवन चकित बनावन हारो।।


भयभीता सो माता गंगा 

लज्जा मय है सलिल तरंगा। 

सौत समान शम्भू पह आयी 

विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी।। 


तेहि कों कमल बदन मुरझायो 

लखी सत्वर शिव शीश चढ़ायो। 

नित्यानंद करी बरदायिनी 

अभय भक्त कर नित अनपायिनी।। 


अखिल पाप त्रयताप निकन्दिनी 

माहेश्वरी हिमालय नन्दिनी । 

काशी पुरी सदा मन भायी 

सिद्धपीठ तेहि आपु बनायी।। 


भगवति प्रतिदिन भिक्षा दात्री 

कृपा प्रमोद सनेह विधात्री। 

रिपुक्षय कारिणी जय जय अम्बे 

वाचा सिद्ध करि अवलम्बे।। 


गौरी उमा शंकरी काली 

अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली। 

सब जन की ईश्वरी भगवती 

पतिप्राणा परमेश्वरी सती।। 


तुमने कठिन तपस्या कीनी 

नारद सों जब शिक्षा लीनी। 

अन्न न नीर न वायु अहारा 

अस्थिमात्र तन भयउ तुम्हारा।। 


पत्र घास को खाद्य न भायउ 

उमा नाम तब तुमने पायउ।

तप बिलोकि ऋषि सात पधारे 

लगे डिगावन डिगी न हारे।।


तब तब जय जय जय उच्चारेउ 

सप्तऋषि निज गेह सिद्धारेउ

सुर विधि विष्णु पास तब आए

वर देने के वचन सुनाए।।


मांगे उमा वर पति तुम तिनसों 

चाहत जग त्रिभुवन निधि जिनसों। 

एवमस्तु कहि ते दोऊ गए 

सुफल मनोरथ तुमने लए।।

 

करि विवाह शिव सों भामा 

पुनः कहाई हर की बाना। 

जो पढ़िहै जन यह चालीसा

धन जन सुख देइहै तेहि ईसा।।


।। दोहा ।। 

कोटि चन्द्रिका सुभग सिर जयति जयति सुख खानि।

पार्वती निज भक्त हित, रहहु सदा वरदानि।।

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पार्वती माता की आरती || जय पार्वती माता || Parvati Mata Ki Aarti || Jay Parvati Mata || Parvati Mata Ki Aarti || Aarti Lyrics in Hindi || Shiv Parvati Stuti

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रविवार, 28 नवंबर 2021

श्री भैरव चालीसा || जय डमरूधर नयन विशाला || Jaya Damrudhar Nayan Vishala || Shri Bhairav Chalisa || Shri Bhairav Nath Kashi Vishwanath Varanasi

श्री भैरव चालीसा || जय डमरूधर नयन विशाला || Jaya Damrudhar Nayan Vishala ||  Shri Bhairav Chalisa || Shri Bhairav Nath Kashi Vishwanath Varanasi 

(चित्र गूगल से साभार)

।। दोहा ।।

श्री भैरव संकट हरन

मंगल करन कृपालु।

करहु दया निज दास पे

निशिदिन दीनदयालु।।


।। चौपाई ।।


जय डमरूधर नयन विशाला।

श्याम वर्ण वपु महा कराला।।


जय त्रिशूलधर जय डमरूधर।

काशी कोतवाल संकटहर।।


जय गिरिजासुत परमकृपाला।

संकटहरण हरहु भ्रमजाला।।


जयति बटुक भैरव भयहारी।

जयति काल भैरव बलधारी।।


अष्टरूप तुम्हरे सब गायें।

सकल एक ते एक सिवाये।।


शिवस्वरूप शिव के अनुगामी।

गणाधीश तुम सबके स्वामी।।


जटाजूट पर मुकुट सुहावै।

भालचन्द्र अति शोभा पावै।।


कटि करधनी घुँघरू बाजै।

दर्शन करत सकल भय भाजै।।


कर त्रिशूल डमरू अति सुन्दर।

मोरपंख को चंवर मनोहर।।


खप्पर खड्ग लिये बलवाना।

रूप चतुर्भुज नाथ बखाना।।


वाहन श्वान सदा सुखरासी।

तुम अनन्त प्रभु तुम अविनाशी।।


जय जय जय भैरव भय भंजन।

जय कृपालु भक्तन मनरंजन॥


नयन विशाल लाल अति भारी।

रक्तवर्ण तुम अहहु पुरारी।।


बं बं बं बोलत दिनराती।

शिव कहँ भजहु असुर आराती।।


एकरूप तुम शम्भु कहाये।

दूजे भैरव रूप बनाये।।


सेवक तुमहिं तुमहिं प्रभु स्वामी।

सब जग के तुम अन्तर्यामी।।


रक्तवर्ण वपु अहहि तुम्हारा।

श्यामवर्ण कहुं होई प्रचारा।।


श्वेतवर्ण पुनि कहा बखानी।

तीनि वर्ण तुम्हरे गुणखानी।।


तीनि नयन प्रभु परम सुहावहिं।

सुरनर मुनि सब ध्यान लगावहिं।।


व्याघ्र चर्मधर तुम जग स्वामी।

प्रेतनाथ तुम पूर्ण अकामी।।


चक्रनाथ नकुलेश प्रचण्डा।

निमिष दिगम्बर कीरति चण्डा।।


क्रोधवत्स भूतेश कालधर।

चक्रतुण्ड दशबाहु व्यालधर।।


अहहिं कोटि प्रभु नाम तुम्हारे।

जयत सदा मेटत दुःख भारे।।


चौंसठ योगिनी नाचहिं संगा।

क्रोधवान तुम अति रणरंगा।।


भूतनाथ तुम परम पुनीता।

तुम भविष्य तुम अहहू अतीता।।


वर्तमान तुम्हरो शुचि रूपा।

कालजयी तुम परम अनूपा।।


ऐलादी को संकट टार्यो।

साद भक्त को कारज सारयो।।


कालीपुत्र कहावहु नाथा।

तव चरणन नावहुं नित माथा।।


श्री क्रोधेश कृपा विस्तारहु।

दीन जानि मोहि पार उतारहु।।


भवसागर बूढत दिनराती।

होहु कृपालु दुष्ट आराती।।


सेवक जानि कृपा प्रभु कीजै।

मोहिं भगति अपनी अब दीजै।।


करहुँ सदा भैरव की सेवा।

तुम समान दूजो को देवा।।


अश्वनाथ तुम परम मनोहर।

दुष्टन कहँ प्रभु अहहु भयंकर।।


तम्हरो दास जहाँ जो होई।

ताकहँ संकट परै न कोई।।


हरहु नाथ तुम जन की पीरा।

तुम समान प्रभु को बलवीरा।।


सब अपराध क्षमा करि दीजै।

दीन जानि आपुन मोहिं कीजै।।


जो यह पाठ करे चालीसा।

तापै कृपा करहुँ जगदीशा।।


।। दोहा ।।

जय भैरव जय भूतपति

जय जय जय सुखकन्‍द।

करहु कृपा नित दास पे

देहुँ सदा आनन्द।।

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श्री भैरव चालीसा || जय जय श्री काली के लाला || Jay Jay Shri Kali Ke Lala || Shri Bhairav Chalisa || Kashi Kotwal Chalisa || Bhairav Stuti lyrics in Hindi

श्री भैरव चालीसा ||जय जय श्री काली के लाला ||  Jay Jay Shri Kali Ke Lala || Shri Bhairav Chalisa || Kashi Kotwal Chalisa || Bhairav Stuti lyrics in Hindi 

(चित्र गूगल से साभार)

।। दोहा ।।


श्री गणपति गुरु गौरी पद प्रेम सहित धरि माथ।

चालीसा वंदन करो श्री शिव भैरवनाथ॥

श्री भैरव संकट हरण मंगल करण कृपाल।

श्याम वरण विकराल वपु लोचन लाल विशाल॥


।। चालीसा ।। 


जय जय श्री काली के लाला।

जयति जयति काशी-कुतवाला॥


जयति बटुक-भैरव भय हारी।

जयति काल-भैरव बलकारी॥


जयति नाथ-भैरव विख्याता।

जयति सर्व-भैरव सुखदाता॥


भैरव रूप कियो शिव धारण।

भव के भार उतारण कारण॥


बटुक नाथ हो काल गंभीरा। 

श्‍वेत रक्त अरु श्याम शरीरा॥


करत नीनहूं रूप प्रकाशा। 

भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा।।


रत्‍न जड़ित कंचन सिंहासन। 

व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन।।


तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं। 

विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं।।


जय प्रभु संहारक सुनन्द जय। 

जय उन्नत हर उमा नन्द जय।।


भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय। 

वैजनाथ श्री जगतनाथ जय।।


महा भीम भीषण शरीर जय। 

रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय।।


अश्‍वनाथ जय प्रेतनाथ जय। 

स्वानारूढ़ सयचंद्र नाथ जय।।


निमिष दिगंबर चक्रनाथ जय। 

गहत अनाथन नाथ हाथ जय।।


त्रेशलेश भूतेश चंद्र जय। 

क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय।।


श्री वामन नकुलेश चण्ड जय। 

कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय।।


रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर। 

चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर।।


करि मद पान शम्भु गुणगावत। 

चौंसठ योगिन संग नचावत।।


करत कृपा जन पर बहु ढंगा। 

काशी कोतवाल अड़बंगा।।


देय काल भैरव जब सोटा। 

नसै पाप मोटा से मोटा।।


जनकर निर्मल होय शरीरा। 

मिटै सकल संकट भव पीरा।।


श्री भैरव भूतों के राजा। 

बाधा हरत करत शुभ काजा।।


ऐलादी के दुख निवारयो। 

सदा कृपाकरि काज सम्हारयो।।


सुन्दर दास सहित अनुरागा। 

श्री दुर्वासा निकट प्रयागा।।


श्री भैरव जी की जय लेख्यो। 

सकल कामना पूरण देख्यो।।


।। दोहा ।।


जय जय जय भैरव बटुक स्वामी संकट टार।

कृपा दास पर कीजिए शंकर के अवतार।।

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