मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

जय जननी जगदीश्वरी, कह कर बारम्बार || Jay Janni Jagdishwari Kah Kar Barambar || Karni Mata Chalisa Lyrics in Hindi

जय जननी जगदीश्वरी, कह कर बारम्बार || Jay Janni Jagdishwari Kah Kar Barambar || Karni Mata Chalisa Lyrics in Hindi



।।दोहा।।

जय गणेश जय गजबदन, करण सुमंगल मूल।

करहुँ कृपा निज दास पर, रहहुँ  सदा अनुकूल॥

जय जननी जगदीश्वरी, कह कर बारम्बार।

जगदम्बा करणी सुयश, वरणउ मति अनुसार ॥


सुमिरौं जय जगदम्ब भवानी।

महिमा अकथ न जाय बखानी॥१॥


नमो नमो मेहाई करणी।

नमो नमो अम्बे दुःख हरणी॥२॥


आदि शक्ति जगदम्बे माता।

दुःख को हरणि सुख की दाता॥३॥


निरंकार है ज्योति तुम्हारी।

तिहूं लोक फैली उजियारी॥४॥


जो जेहि रूप से ध्यान लगावे।

मन वांछित सोई फल पावे॥५॥


धौलागढ़ में आप विराजो।

सिंह सवारी सन्मुख साजो॥६॥


भैरो वीर रहे अगवानी।

मारे असुर सकल अभिमानी॥७॥


ग्राम सुआप नाम सुखकारी।

चारण वंश करणी अवतारी॥८॥


मुख मण्डल की सुन्दरताई।

जाकी महिमा कही न जाई॥९॥


जब भक्तों ने सुमिरण कीन्हा।

ताही समय अभय करि दीन्हा॥१०॥


साहूकार की करी सहाई।

डूबत जल में नाव बचाई ॥११॥


जब कान्हे न कुमति बिचारी।

केहरि रूप धरयो महतारी॥१२॥


मारयो ताहि एक छन मांई।

जाकी कथा जगत में छाई॥१३॥


नेड़ी जी शुभ धाम तुम्हारो।

दर्शन करि मन होय सुखारो॥१४॥


कर सौहै त्रिशूल विशाला।

गल राजे पुष्प की माला॥१५॥


शेखोजी पर किरपा कीन्ही।

क्षुधा मिटाय अभय कर दीन्‍ही ॥१६॥


निर्बल होई जब सुमिरन कीन्हा।

कारज सबि सुलभ कर दीन्हा॥१७॥


देशनोक पावन थल भारी।

सुन्दर मंदिर की छवि न्यारी॥१८॥


मढ़ में ज्योति जले दिन राती।

निखरत ही त्रय ताप नशाती॥१९॥


कीन्ही यहाँ तपस्या आकर।

नाम उजागर सब सुख सागर॥२०॥


जय करणी दुःख हरणी मइया।

भव सागर से पार करइया॥२१॥


बार बार ध्याऊं जगदम्बा।

कीजे दया करो न विलम्बा ॥२२॥


धर्मराज नै जब हठ कीन्हा।

निज सुत को जीवित करि लीन्हा ॥२३॥


ताहि समय मर्याद बनाई।

तुम पह मम वंशज नहि आई ॥२४॥


मूषक बन मंदिर में रहि है।

मूषक ते पुनि मानुष तन धरि है ॥२५॥


दिपोजी को दर्शन दीन्हा।

निज लीला से अवगत कीन्हा॥२६॥


बने भक्त पर कृपा कीन्ही।

दो नैनन की ज्योती दीन्ही॥२७॥


चरित अमित अति कीन्ह अपारा।

जाको यश छायो संसारा॥२८॥


भक्त जनन को मात तारती।

मगन भक्त जन करत आरती॥२९॥


भीड़ पड़ी भक्तों पर जब ही।

भई सहाय भवानी तब ही॥३०॥


मातु दया अब हम पर कीजै।

सब अपराध क्षमा कर दीजे॥३१॥


मोको मातु कष्ट अति घेरो।

तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो॥३२॥


जो नर धरे मात कर ध्यान।

ताकर सब विधि हो कल्याण॥३३॥


निशि वासर पूजहिं नर-नारी।

तिनको सदा करहूं रखवारी॥ ३४॥


भव सागर में नाव हमारी।

पार करहु करणी महतारी॥३५॥


कंह लगी वर्णऊ कथा तिहारी।

लिखत लेखनी थकत हमारी॥३६॥


पुत्र जानकर किरपा कीजै।

सुख सम्पत्ति नव निधि कर दीजै॥३७॥


जो यह पाठ करे हमेशा।

ताके तन नहि रहे कलेशा॥३८॥


संकट में जो सुमिरन करई।

उनके ताप मात सब हरई॥३९॥


गुण गाथा गाऊं कर जोरे।

हरहुँ मात सब संकट मोरे॥४०॥

         

।।दोहा।। 

आदि शक्ति अम्बा सुमिर, धरि करणी का ध्यान।

मन मंदिर में बास करो मैया, दूर करो अज्ञान ।।

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करणी माता की आरती || Karni Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi

ॐ जय अम्बे करणी, मैया जय अम्बे करणी।| Om Jay Ambe Karni Maiya Jay Ambe Karni || Karni Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi

ॐ जय अम्बे करणी, मैया जय अम्बे करणी।| Om Jay Ambe Karni Maiya Jay Ambe Karni || Karni Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi



ॐ जय अम्बे करणी, मैया जय अम्बे करणी

ॐ जय अम्बे करणी, मैया जय अम्बे करणी।

भक्त जनन भय संकट, पल छिनमे हरणी॥

ॐ जय अम्बे करणी, मैया जय अम्बे करणी।


आदि शक्ति अविनाशी, वेदन में वरणी।

अगम अनंत अगोचर, विश्वरूप धरणी॥

ॐ जय अम्बे करणी, मैया जय अम्बे करणी।


काली तू किरपाली, दुर्गे दुःख हरणी।

चंडी तूं चिरताली, ब्रह्माणी वरणी॥

ॐ जय अम्बे करणी, मैया जय अम्बे करणी।


लक्ष्मी तूं हिंगलाजा, आवड़ अ घहरणी।

दैत्य दलण डाढाली, अवनी अबतरणी॥

ॐ जय अम्बे करणी, मैया जय अम्बे करणी।


ग्राम सुवाप सुहाणो, धिन थलवट धरणी।।

देवला माँ मेहा घर, जनमी जग जननी॥

ॐ जय अम्बे करणी, मैया जय अम्बे करणी।


राज दियों रिड़मल ने, कानो खय करणी।

धेन दूहत वणिये को, तारी कर तरणी॥

ॐ जय अम्बे करणी, मैया जय अम्बे करणी।


शेखो लाय सिन्ध सूं, पेथड़ आचरणी।

दशरथ थान दिपायी, सांपू सुख सरणी।।

ॐ जय अम्बे करणी, मैया जय अम्बे करणी।


जेतल भूप जिताड्यो, कमरु दल दलणी।

प्राण बचाय बखत के पीर कला हरणी॥

ॐ जय अम्बे करणी, मैया जय अम्बे करणी।


परचा गिण नहीं पाउ, मा अशरण शरणी।

सोहन चरण शरण में दास अभय करणी॥

ॐ जय अम्बे करणी, मैया जय अम्बे करणी।


ॐ जय अम्बे करणी, मैया जय अम्बे करणी।

भक्त जनन भय संकट, पल छिनमे हरणी॥


करणी माता की चालीसा || Karni Mata Ki Chalisa Lyrics in Hindi


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सोमवार, 28 मार्च 2022

जय वैष्णवी माता || Jay Vaishnavi Mata || Vaishno Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi

जय वैष्णवी माता || Jay Vaishnavi Mata || Vaishno Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi 

जय वैष्णवी माता,

मैया जय वैष्णवी माता ।

हाथ जोड़ तेरे आगे,

आरती मैं गाता ॥

।। मैया जय वैष्णवी माता ।।

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शीश पे छत्र विराजे,

मूरतिया प्यारी ।

गंगा बहती चरनन,

ज्योति जगे न्यारी ॥

।। मैया जय वैष्णवी माता ।।

 **

ब्रह्मा वेद पढ़े नित द्वारे,

शंकर ध्यान धरे ।

सेवक चंवर डुलावत,

नारद नृत्य करे ॥

।। मैया जय वैष्णवी माता ।।

 **

सुन्दर गुफा तुम्हारी,

मन को अति भावे ।

बार-बार देखन को,

ऐ माँ मन चावे ॥

।। मैया जय वैष्णवी माता ।।

 **

भवन पे झण्डे झूलें,

घंटा ध्वनि बाजे ।

ऊँचा पर्वत तेरा,

माता प्रिय लागे ॥

।। मैया जय वैष्णवी माता ।।

 **

पान सुपारी ध्वजा नारियल,

भेंट पुष्प मेवा ।

दास खड़े चरणों में,

दर्शन दो देवा ॥

।। मैया जय वैष्णवी माता ।।

 **

जो जन निश्चय करके,

द्वार तेरे आवे ।

उसकी इच्छा पूरण,

माता हो जावे ॥

।। मैया जय वैष्णवी माता ।।

 **

इतनी स्तुति निश-दिन,

जो नर भी गावे ।

कहते सेवक ध्यानू,

सुख सम्पत्ति पावे ॥

 **

जय वैष्णवी माता,

मैया जय वैष्णवी माता ।

हाथ जोड़ तेरे आगे,

आरती मैं गाता ॥

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नमो: नमो: वैष्णो वरदानी || Namo Namo Vaishno Vardani || Shri Vaishno Mata Chalisa Lyrics in Hindi

नमो: नमो: वैष्णो वरदानी || Namo Namo Vaishno Vardani || Shri Vaishno Mata Chalisa Lyrics in Hindi

।। दोहा ।।

गरुड़ वाहिनी वैष्णवी

त्रिकुटा पर्वत धाम

काली, लक्ष्मी, सरस्वती,

शक्ति तुम्हें प्रणाम।

 

।। चौपाई ।।

नमो: नमो: वैष्णो वरदानी,

कलि काल मे शुभ कल्याणी।

मणि पर्वत पर ज्योति तुम्हारी,

पिंडी रूप में हो अवतारी॥


देवी देवता अंश दियो है,

रत्नाकर घर जन्म लियो है।

करी तपस्या राम को पाऊं,

त्रेता की शक्ति कहलाऊं॥


कहा राम मणि पर्वत जाओ,

कलियुग की देवी कहलाओ।

विष्णु रूप से कल्कि बनकर,

लूंगा शक्ति रूप बदलकर॥


तब तक त्रिकुटा घाटी जाओ,

गुफा अंधेरी जाकर पाओ।

काली-लक्ष्मी-सरस्वती मां,

करेंगी पोषण पार्वती मां॥


ब्रह्मा, विष्णु, शंकर द्वारे,

हनुमत, भैरों प्रहरी प्यारे।

रिद्धि, सिद्धि चंवर डुलावें,

कलियुग-वासी पूजत आवें॥


पान सुपारी ध्वजा नारीयल,

चरणामृत चरणों का निर्मल।

दिया फलित वर मॉ मुस्काई,

करन तपस्या पर्वत आई॥


कलि कालकी भड़की ज्वाला,

इक दिन अपना रूप निकाला।

कन्या बन नगरोटा आई,

योगी भैरों दिया दिखाई॥


रूप देख सुंदर ललचाया,

पीछे-पीछे भागा आया।

कन्याओं के साथ मिली मॉ,

कौल-कंदौली तभी चली मॉ॥


देवा माई दर्शन दीना,

पवन रूप हो गई प्रवीणा।

नवरात्रों में लीला रचाई,

भक्त श्रीधर के घर आई॥


योगिन को भण्डारा दीनी,

सबने रूचिकर भोजन कीना।

मांस, मदिरा भैरों मांगी,

रूप पवन कर इच्छा त्यागी॥


बाण मारकर गंगा निकली,

पर्वत भागी हो मतवाली।

चरण रखे आ एक शीला जब,

चरण-पादुका नाम पड़ा तब॥


पीछे भैरों था बलकारी,

चोटी गुफा में जाय पधारी।

नौ मह तक किया निवासा,

चली फोड़कर किया प्रकाशा॥


आद्या शक्ति-ब्रह्म कुमारी,

कहलाई माँ आद कुंवारी।

गुफा द्वार पहुँची मुस्काई,

लांगुर वीर ने आज्ञा पाई॥


भागा-भागा भैंरो आया,

रक्षा हित निज शस्त्र चलाया।

पड़ा शीश जा पर्वत ऊपर,

किया क्षमा जा दिया उसे वर॥


अपने संग में पुजवाऊंगी,

भैंरो घाटी बनवाऊंगी।

पहले मेरा दर्शन होगा,

पीछे तेरा सुमिरन होगा॥


बैठ गई मां पिंडी होकर,

चरणों में बहता जल झर झर।

चौंसठ योगिनी-भैंरो बर्वत,

सप्तऋषि आ करते सुमरन॥


घंटा ध्वनि पर्वत पर बाजे,

गुफा निराली सुंदर लागे।

भक्त श्रीधर पूजन कीन,

भक्ति सेवा का वर लीन॥


सेवक ध्यानूं तुमको ध्याना,

ध्वजा व चोला आन चढ़ाया।

सिंह सदा दर पहरा देता,

पंजा शेर का दु:ख हर लेता॥


जम्बू द्वीप महाराज मनाया,

सर सोने का छत्र चढ़ाया।

हीरे की मूरत संग प्यारी,

जगे अखण्ड इक जोत तुम्हारी॥


आश्विन चैत्र नवरात्रे आऊं,

पिण्डी रानी दर्शन पाऊं।

सेवक 'कमल' शरण तिहारी,

हरो वैष्णो विपत हमारी॥

 

।। दोहा ।।

कलियुग में महिमा तेरी,

है मां अपरंपार।

धर्म की हानि हो रही,

प्रगट हो अवतार।।

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जय वैष्णवी माता || Jay Vaishnavi Mata || Vaishno Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi 

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शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

शरद पूर्णिमा व्रत की कथा || पूर्णमासी व्रत कथा || Sharad Purnima Vrat Ki Katha || Purnmaasi Vrat Katha || Lyrics in Hindi

शरद पूर्णिमा व्रत की कथा || पूर्णमासी व्रत कथा || Sharad Purnima Vrat Ki Katha || Purnmaasi Vrat Katha || Lyrics in Hindi



आश्विन मास की पूर्णिमा ही शरद पूर्णिमा कहलाती हैं। इसे 'रास पूर्णिमा' भी कहा जाता है। धर्म शास्त्रों में इस दिन 'कोजागर व्रत' माना गया है। इसी को 'कौमुदी व्रत' भी कहते हैं। ज्योतिष मान्यता के अनुसार संपूर्ण वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा षोडश यानि 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है।

रासोत्सव का यह दिन वास्तव में भगवान श्री कृष्ण ने जगत की भलाई के लिए निर्धारित किया है, माना जाता है कि इस रात को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है। 

मान्यता है कि घर में सुख-समृद्धि के लिए इस दिन सुहागिन महिलाओं को भोजन कराने के अलावा सूर्यास्त से पहले कुछ भेंट भी देनी चाहिए। इस दिन सूर्यास्त के बाद बालों में कंघी करना या अग्नि पर तवा चढ़ाना शुभ नहीं माना जाता।

मान्यता के अनुसार इसी दिन श्रीकृष्ण को 'कार्तिक स्नान' करते समय स्वयं (कृष्ण) को पति के रूप में प्राप्त करने की कामना से देवी पूजन करने वाली कुमारियों को दिए वरदान की याद आई थी और उन्होंने मुरलीवादन करके यमुना के तट पर गोपियों के संग रास रचाया था।

इस दिन मंदिरों में विशेष सेवा-पूजन किया जाता है। इस दिन प्रात:काल स्नान करके आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करके आवाहन, आसन, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से उनका पूजन करना चाहिए।

रात्रि के समय गौदुग्ध (गाय के दूध) से बनी खीर में घर और चीनी मिलाकर अर्द्धरात्रि के समय भगवान को अर्पित (भोग लगाना)करनी चाहिए। पूर्ण चंद्रमा के आकाश के मध्य स्थित होने पर उनका पूजन करें और खीर का नैवेद्य अर्पित करके, रात को खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करना चाहिए साथ ही सबको इसका प्रसाद देना चाहिए।

पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुननी चाहिए। कथा सुनने से पहले एक लोटे में जल व गिलास में गेहूं, पत्ते के दोने में रोली और चावल रखकर कलश की वंदना करके दक्षिणा चढ़ाएं। फिर तिलक करने के बाद गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनें। फिर गेहूं के गिलास पर हाथ फेरकर पंडिताइन के पांव स्पर्श करके गेहूं का गिलास उन्हें दे दें। लोटे के जल का रात को चंद्रमा को अर्घ्य दें।

शरद पूर्णिमा से ही उत्सव और व्रत प्रारंभ हो जाता है। माताएं अपनी संतान की मंगल कामना से देवी-देवताओं का पूजन करती हैं। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत नजदीक आ जाता है। कार्तिक का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारंभ होता है। विवाह होने के बाद पूर्णिमा (पूर्णमासी) के व्रत का संकल्प शरद पूर्णिमा से लेना चाहिए।

शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ हरता है। इस दिन आकाश में नतो बादल होते हैं और न ही धूल-गुबार। इस राति में भ्रमण और चंद्रकिरणों का शरीर परपड़ना अत्यंत शुभ माना जाता है।

प्रति पूर्णिमा को व्रत करने वाले दस दिन भी चंद्रमा का पूजन करके भोजन करते हैं। इस दिन शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा का विधान है वहीं पूर्णिमा पर कार्तिक स्नान के साथ, राधा-दामोदर पूजन निय व्रत धारण करने का भी दिन है।

शरद पूर्णिमा की कथा:

एक साहूकार की दो पुत्रिया थीं। वे दोनों पूर्णिमासी का व्रत करती थीं। बड़ी बहन तो पूरा व्रत करती थी, लेकिन छोटी बहन अधूरा। छोटी बहन की जो भी संतान होती, वह जन्म लेते ही मर जाती। परंतु बड़ी बहन की सारी संताने जीवित रहतीं। एक दिन छोटी बहन ने बड़े बड़े पंडितों को बुलाकर अपना दुख बताया और उनसे इसका कारण पूछा।

इस पर पंडितों ने बताया कि तुम पूर्णिमा का अधूराव्रत करती हो, इसलिए तुम्हारे संतानों की अकाल मृत्यु हो जाती है। पूर्णिका का विधिपूर्वक पूर्ण व्रत करने से तुम्हारी संतानें जीवित रहा करेंगी।

तब उसने पंडितों की आज्ञा मानकर विधि-विधान से पूर्णमासी का व्रत किया। कुछ समय बाद उसका एक लड़का हुआ, लेकिन वह भी शीघ्र ही मर गया। तब उसके लड़कों को पीढे पर लेटाकर उसके उपर कपड़ा ढक दिया।

फिर उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और उसे वहीं पीढ़ा बैठने को दे दिया। जब बड़ी बहन उस पर बैठने लगी तो उसके वस्त्र बच्चे को छूते ही लड़का जीवित होकर रोने लगा। तब क्रोधित होकर बड़ी बहन बोली, तू मुझ पर कलंक लगाना चाहती थी। यदि में बैठ जाती तो लड़का मर जाता।

तब छोटी बहन बोली यह तो पहले से ही मरा हुआ था। तेरे भाग्य से जीवित हुआ है। हम दोनों बहनें पूर्णिमा का व्रत करती हैं। तू पूरा करती है और मैं अधूरा, जिसके दोष से मेरी संतानें मर जाती हैं। लेकिन तेरे पुण्य से यह बालक जीवित हुआ है।

इसके बाद उसने पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि आज से सभी पूर्णिमा का पूरा व्रत करें, यह संतान सुख देने वाला है।

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