बुधवार, 15 दिसंबर 2021

एकादशी व्रत कथा || Ekadashi Vrat Katha || मोक्षदा एकादशी व्रत कथा || Mokshada Ekadashi Vrat Katha || Lyrics in Hindi

एकादशी व्रत कथा || Ekadashi Vrat Katha || मोक्षदा एकादशी व्रत कथा || Mokshada Ekadashi Vrat Katha || Lyrics in Hindi

(चित्र गूगल से साभार)

एकादशी व्रत कथा Ekadashi Vrat Katha
मोक्षदा एकादशी का महत्त्व Mokshda Ekadashi Ka Mahattva

धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! मैंने मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी अर्थात उत्पन्ना एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप कृपा करके मुझे मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइये। इस एकादशी का क्या नाम है तथा इसके व्रत का क्या विधान है? इसकी विधि क्या है? इसका व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है? कृपया यह सब विधानपूर्वक कहिए।

भगवान श्रीकृष्ण बोले: मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष मे आने वाली इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। यह व्रत मोक्ष देने वाला तथा चिंतामणि के समान सब कामनाएँ पूर्ण करने वाला है। जिससे आप अपने पूर्वजो के दुखों को खत्म कर सकते हैं। इसका माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो।

एकादशी व्रत कथा || Ekadashi Vrat Katha

गोकुल नाम के नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था। एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।

प्रात: वह विद्वान ब्राह्मणों के पास गया और अपना स्वप्न सुनाया। कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है। उन्होंने मुझसे कहा कि हे पुत्र मैं नरक में पड़ा हूँ। यहाँ से तुम मुझे मुक्त कराओ। जबसे मैंने ये वचन सुने हैं तबसे मैं बहुत बेचैन हूँ। चित्त में बड़ी अशांति हो रही है। मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता। क्या करूँ?

राजा ने कहा- हे ब्राह्मण देवताओं! इस दु:ख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है। अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए। उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सके। एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मुर्ख पुत्रों से अच्छा है। जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, परंतु हजारों तारे नहीं कर सकते। ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहाँ पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे।

ऐसा सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया। उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया। मुनि ने राजा से सांगोपांग कुशल पूछी। राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अकस्मात मेरे चित्त में अत्यंत अशांति होने लगी है। ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आँखें बंद की और भूत विचारने लगे। फिर बोले हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है। उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान माँगने पर भी नहीं दिया। उसी पापकर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा।

तब राजा ने कहा ‍इसका कोई उपाय बताइए। मुनि बोले: हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य नर्क से मुक्ति होगी। मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया। इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो। ऐसा कहकर वे स्वर्ग चले गए।

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श्री शिव चालीसा || श्री गणेश गिरिजा सुवन || Shri Shiv Chalisa || Shri Ganesh Girija Suvan || जय गिरिजा पति दीन दयाला || Jay Girijapati Deen Dayala || Lyrics in Hindi

श्री शिव चालीसा || श्री गणेश गिरिजा सुवन || Shri Shiv Chalisa || Shri Ganesh Girija Suvan || जय गिरिजा पति दीन दयाला || Jay Girijapati Deen Dayala || Lyrics in Hindi

(चित्र गूगल से साभार)

।। दोहा ।।

श्री गणेश गिरिजा सुवन,

मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम,

देहु अभय वरदान।।


।। चौपाई ।।

जय गिरिजा पति दीन दयाला।

सदा करत सन्तन प्रतिपाला।।


भाल चन्द्रमा सोहत नीके।

कानन कुण्डल नागफनी के।।


अंग गौर शिर गंग बहाये।

मुण्डमाल तन क्षार लगाए।।


वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।

छवि को देखि नाग मुनि मोहे।।


मैना मातु की हवे दुलारी।

बाम अंग सोहत छवि न्यारी।।


कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।

करत सदा शत्रुन क्षयकारी।।


नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।

सागर मध्य कमल हैं जैसे।।


कार्तिक श्याम और गणराऊ।

या छवि को कहि जात न काऊ।।


देवन जबहीं जाय पुकारा।

तब ही दुख प्रभु आप निवारा।।


किया उपद्रव तारक भारी।

देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी।।


तुरत षडानन आप पठायउ।

लवनिमेष महँ मारि गिरायउ।।


आप जलंधर असुर संहारा।

सुयश तुम्हार विदित संसारा।।


त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।

सबहिं कृपा कर लीन बचाई।।


किया तपहिं भागीरथ भारी।

पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी।।


दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं।

सेवक स्तुति करत सदा हीं।।


वेद नाम महिमा तव गाई।

अकथ अनादि भेद नहिं पाई।।


प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला।

जरत सुरासुर भए विहाला।।


कीन्ही दया तहं करी सहाई।

नीलकण्ठ तब नाम कहाई।।


पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा।

जीत के लंक विभीषण दीन्हा।।


सहस कमल में हो रहे धारी।

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी।।


एक कमल प्रभु राखेउ जोई।

कमल नयन पूजन चहं सोई।।


कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।

भए प्रसन्न दिए इच्छित वर।।


जय जय जय अनन्त अविनाशी।

करत कृपा सब के घटवासी।।


दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।

भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै।।


त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।

येहि अवसर मोहि आन उबारो।।


लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।

संकट ते मोहि आन उबारो।।


मातु-पिता भ्राता सब होई।

संकट में पूछत नहिं कोई।।


स्वामी एक है आस तुम्हारी।

आय हरहु मम संकट भारी।।


धन निर्धन को देत सदा हीं।

जो कोई जांचे सो फल पाहीं।।


अस्तुति केहि विधि करूँ तुम्हारी।

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।।


शंकर हो संकट के नाशन।

मंगल कारण विघ्न विनाशन।।


योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।

नारद शारद शीश नवावैं।।


नमो नमो जय नमः शिवाय।

सुर ब्रह्मादिक पार न पाय।।


जो यह पाठ करे मन लाई।

ता पर होत है शम्भु सहाई।।


ॠनियां जो कोई हो अधिकारी।

पाठ करे सो पावन हारी।।


पुत्र हीन कर इच्छा जोई।

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई।।


पण्डित त्रयोदशी को लावे।

ध्यान पूर्वक होम करावे।।


त्रयोदशी व्रत करै हमेशा।

ताके तन नहीं रहै कलेशा।।


धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे।।


जन्म जन्म के पाप नसावे।

अन्त वास शिवपुर में पावे।।


कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी।

जानि सकल दुःख हरहु हमारी।।


।। दोहा ।।

नित्त नेम कर प्रातः ही,

पाठ करौं चालीस।

तुम मेरी मनोकामना,

पूर्ण करो जगदीश।।


मगसर छठि हेमन्त ॠतु,

संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि,

पूर्ण कीन कल्याण।।

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शिव जी बोलो तो सही आंखें खोलो तो सही || Shiv Ji Bolo To Sahi || Shiv Stuti || Shiv Bhajan || Shiv Keertan


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रविवार, 12 दिसंबर 2021

परिक्रमा क्‍या है || कैसे करें परिक्रमा || परिक्रमा का महत्‍त्‍व एवं विधि || Parikrama Kya Hai || Parikrama Kaise Kare || Parikrama ka Mahattva aur Vidhi

परिक्रमा क्‍या है || कैसे करें परिक्रमा || परिक्रमा का महत्‍त्‍व एवं विधि || Parikrama Kya Hai || Parikrama Kaise Kare || Parikrama ka Mahattva aur Vidhi



परिक्रमा का महत्व क्या है?

परिक्रमा करने की विधि 

किस देव की कितनी परिक्रमा करनी चाहिये?

परिक्रमा के संबंध में नियम

जब हम मंदिर जाते है तो हम भगवान की परिक्रमा जरुर लगाते है। पर क्या कभी हमने ये सोचा है कि देव मूर्ति की परिक्रमा क्यों की जाती है? 

शास्त्रों में लिखा है कि जिस स्थान पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई हो, उसके मध्यबिंदु से लेकर कुछ दूरी तक दिव्य प्रभा अथवा प्रभाव रहता है। यह निकट होने पर अधिक गहरा और दूर होने पर घटता जाता है, इसलिए प्रतिमा के निकट परिक्रमा करने से दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मंडल से निकलने वाले तेज की सहज ही प्राप्ति हो जाती है।

देवमूर्ति की परिक्रमा सदैव दाएं हाथ की ओर से करनी चाहिए क्योकि दैवीय शक्ति की आभामंडल की गति दक्षिणावर्ती होती है। बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मडल की गति और हमारे अंदर विद्यमान दिव्य परमाणुओं में टकराव पैदा होता है, जिससे हमारा तेज नष्ट हो जाता है। जाने-अनजाने की गई उल्टी परिक्रमा का दुष्परिणाम भुगतना पडता है।

वैसे तो सामान्यत: सभी देवी-देवताओं की एक ही परिक्रमा की जाती है परंतु शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं के लिए परिक्रमा की अलग संख्या निर्धारित की गई है। इस संबंध में धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान की परिक्रमा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और इससे हमारे पाप नष्ट होते है। सभी देवताओं की परिक्रमा के संबंध में अलग-अलग नियम बताए गए हैं।

1.  महिलाओं द्वारा “वटवृक्ष” की परिक्रमा करना सौभाग्य का सूचक है।

2.  “शिवजी” की आधी परिक्रमा की जाती है। शिव जी की परिक्रमा करने से बुरे विचार और अनर्गल स्वप्नों नष्‍ट होते हैं। भगवान शिव की परिक्रमा करते समय अभिषेक की धार को नहीं लॉंघना चाहिए। 

3. देवी माँ की एक परिक्रमा की जानी चाहिए।

4.  श्रीगणेशजी और हनुमानजी की तीन परिक्रमा करने का विधान है। 

गणेश जी की परिक्रमा करने से अपनी सोची हुई कई अतृप्त कामनाओं की तृप्ति होती है। गणेशजी के विराट स्वरूप व मंत्र का विधिवत ध्यान करने पर कार्य सिद्ध होने लगते हैं।

5. भगवान विष्णुजी एवं उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए। विष्णु जी की परिक्रमा करने से हृदय परिपुष्ट और संकल्प ऊर्जावान बनकर सकारात्मक सोच की वृद्धि करते हैं।

6. सूर्य मंदिर की सात परिक्रमा करने से मन पवित्र और आनंद से भर उठता है तथा बुरे और कड़वे विचारों का विनाश होकर श्रेष्ठ विचार पोषित होते हैं। हमें भास्कराय मंत्र का भी उच्चारण करना चाहिए, जो कई रोगों का नाशक है जैसे सूर्य को अर्घ्य देकर “ॐ भास्कराय नमः” का जाप करना, देवी के मंदिर में मात्र एक परिक्रमा कर नवार्ण मंत्र का ध्यान जरूरी है; इससे सँजोए गए संकल्प और लक्ष्य सकारात्मक रूप लेते हैं।

1.  परिक्रमा शुरु करने के पश्चात बीच में रुकना नहीं चाहिए; साथ ही परिक्रमा वहीं खत्म करें जहां से शुरु की गई थी, ध्यान रखें कि परिक्रमा बीच में रोकने से वह पूर्ण नही मानी जाती।

2. परिक्रमा के दौरान किसी से बातचीत कतई ना करें।  जिस देवता की परिक्रमा कर रहे हैं, उनका ही ध्यान करें।

3. उलटी अर्थात बाये हाथ की तरफ परिक्रमा नहीं करनी चाहिये।

इस प्रकार देवी-देवताओं की परिक्रमा विधिवत करने से जीवन में हो रही उथल-पुथल व समस्याओं का समाधान सहज ही हो जाता है। इस प्रकार सही परिक्रमा करने से पूर्ण लाभ होता है।

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शनिवार, 11 दिसंबर 2021

शारदा मैया की आरती || जय शारदे माता || Sharda Maiya Ki Aarti || Jay Sharde Mata || Sharada Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi

शारदा मैया की आरती || जय शारदे माता || Sharda Maiya Ki Aarti || Jay Sharde Mata || Sharada Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi 


जय शारदे माता 

मैया जय शारदे माता 

वीणा पुस्‍तक धारिणी

वीणा पुस्‍तक धारिणी 

विद्या की दाता 

मैया जय शारदे माता


जय शारदे माता 

मैया जय शारदे माता 

वीणा पुस्‍तक धारिणी

वीणा पुस्‍तक धारिणी 

विद्या की दाता 

मैया जय शारदे माता


हंस सवारि विराजत

भक्‍तों की हितकारी

मैया भक्‍तों की हितकारी 

तुमको निशदिन पूजत

मैया जी को निशदिन पूजत

सेवक नर नारी

मैया जय शारदे माता


कर में हैं फूल कमल के

ज्ञान बुद्धि देती 

मैया ज्ञान बुद्धि देती

अज्ञानी हो ज्ञानी 

अज्ञानी हो ज्ञानी

हो जग विख्‍याता 

मैया जय शारदे माता


ब्रह्मा विष्‍णु पूजे

पूजे अविनाशी

मैया पूजे अविनाशी

आके पूजे मैंहर 

आके पूजे मैंहर

छोड़ के शिव काशी

मैया जय शारदे माता


अपने पास बुला लो 

माता दो शिक्षा

ओ माता दो शिक्षा

तेरे चरण पखारें

तेरे चरण पखारें

है सब की इच्‍छा

मैया जय शारदे माता


जय शारदे माता

मैया जय शारदे माता

वीणा पुस्‍तक धारिणी

वीणा पुस्‍तक धारिणी

विद्या की दाता

मैया जय शारदे माता


जय शारदे माता

मैया जय शारदे माता

वीणा पुस्‍तक धारिणी

वीणा पुस्‍तक धारिणी

विद्या की दाता

मैया जय शारदे माता

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शारदा माता की चालीसा || मूर्ति स्वयंभू शारदा || Sharda Mata Ki Chalisa || Murti Swayambhu Sharda || Maihar Wali Mata || Chalisa Lyrics in Hindi

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शारदा माता की चालीसा || मूर्ति स्वयंभू शारदा || Sharda Mata Ki Chalisa || Murti Swayambhu Sharda || Maihar Wali Mata || Chalisa Lyrics in Hindi

शारदा माता की चालीसा || मूर्ति स्वयंभू शारदा || Sharda Mata Ki Chalisa || Murti Swayambhu Sharda || Maihar Wali Mata || Chalisa Lyrics in Hindi

(चित्र गूगल से साभार)

।। दोहा ।। 

मूर्ति स्वयंभू शारदा मैहर आन विराज। 

माला पुस्तक धारिणी वीणा कर में साज।।

।। चालीसा ।।

जय जय जय शारदा महारानी। 

आदि शक्ति तुम जग कल्याणी।।

 

रूप चतुर्भुज तुम्हरो माता। 

तीन लोक महं तुम विख्याता।। 


दो सहस्त्र वर्षहि अनुमाना ।

प्रगट भई शारदा जग जाना।। 


मैहर नगर विश्व विख्याता ।

जहाँ बैठी शारदा जग माता।। 


त्रिकूट पर्वत शारदा वासा।

मैहर नगरी परम प्रकाशा।। 


सर्द इन्दु सम बदन तुम्हारो ।

रूप चतुर्भुज अतिशय प्यारो।। 


कोटि सुर्य सम तन द्युति पावन। 

राज हंस तुम्हरो शचि वाहन।। 


कानन कुण्डल लोल सुहवहि ।

उर्मणि भाल अनूप दिखावहिं।। 


वीणा पुस्तक अभय धारिणी। 

जगत्मातु तुम जग विहारिणी।। 


ब्रह्म सुता अखंड अनूपा। 

शारदा गुण गावत सुरभूपा।। 


हरिहर करहिं शारदा वन्दन। 

वरुण कुबेर करहिं अभिनन्दन।। 


शारदा रूप चण्‍डी अवतारा। 

चण्ड-मुण्ड असुरन संहारा।। 


महिषा सुर वध कीन्हि भवानी। 

दुर्गा बन शारदा कल्याणी।। 


धरा रूप शारदा भई चण्डी। 

रक्त बीज काटा रण मुण्डी।। 


तुलसी सूर्य आदि विद्वाना। 

शारदा सुयश सदैव बखाना।। 


कालिदास भए अति विख्याता। 

तुम्हरी दया शारदा माता।। 


वाल्मीकि नारद मुनि देवा। 

पुनि-पुनि करहिं शारदा सेवा।। 


चरण-शरण देवहु जग माया। 

सब जग व्यापहिं शारदा माया।।


अणु-परमाणु शारदा वासा। 

परम शक्तिमय परम प्रकाशा।। 


हे शारद तुम ब्रह्म स्वरूपा। 

शिव विरंचि पूजहिं नर भूपा।। 


ब्रह्म शक्ति नहि एकउ भेदा। 

शारदा के गुण गावहिं वेदा।। 


जय जग वन्दनि विश्व स्वरूपा। 

निर्गुण-सगुण शारदहिं रूपा।। 


सुमिरहु शारदा नाम अखंडा। 

व्यापहिं नहिं कलिकाल प्रचण्डा।। 


सूर्य चन्द्र नभमण्डल तारे। 

शारदा कृपा चमकते सारे।। 


उद्भव स्थिति प्रलय कारिणी। 

बन्दउ शारदा जगत तारिणी।। 


दु:ख दरिद्र सब जाहिं नसाई। 

तुम्हारी कृपा शारदा माई।। 


परम पुनीत जगत अधारा।

मातु शारदा ज्ञान तुम्हारा।। 


विद्या बुद्धि मिलहिं सुखदानी। 

जय जय जय शारदा भवानी।। 


शारदे पूजन जो जन करहिं। 

निश्चय ते भव सागर तरहीं।।

 

शारद कृपा मिलहिं शुचि ज्ञाना। 

होई सकल विधि अति कल्याणा।। 


जग के विषय महा दु:खदाई। 

भजहुँ शारदा अति सुख पाई।। 


परम प्रकाश शारदा तोरा। 

दिव्य किरण देवहुँ मम ओरा।। 


परमानन्द मगन मन होई। 

मातु शारदा सुमिरई जोई।।

 

चित्त शान्त होवहिं जप ध्याना। 

भजहुँ शारदा होवहिं ज्ञाना।। 


रचना रचित शारदा केरी।

पाठ करहिं भव छटई फेरी।। 


सत् - सत् नमन पढ़ीहे धरिध्याना। 

शारदा मातु करहिं कल्याणा।। 


शारदा महिमा को जग जाना। 

नेति-नेति कह वेद बखाना।। 


सत् - सत् नमन शारदा तोरा। 

कृपा दृष्टि कीजै मम ओरा।।

 

जो जन सेवा करहिं तुम्हारी। 

तिन कहँ कतहुँ नाहि दु:खभारी।। 


जो यह पाठ करै चालीसा। 

मातु शारदा देहुँ आशीषा।।

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