गुरुवार, 4 नवंबर 2021

श्री महालक्ष्मी अष्टकम || Shri Mahalakshmi Ashtakam || श्री महालक्ष्‍मी अष्‍टकम संस्‍कृत और हिन्‍दी अनुवाद || Shri Mahalakshmi Ashtakam Sanskrit aur Hindi Anuvad || Mahalakshmi Ashtakam Hindi Sanskrit Lyrics||श्री वैभव लक्ष्‍मी यन्‍त्र || Shri Vaibhav Lakshmi Yantra

श्री महालक्ष्मी अष्टकम || Shri Mahalakshmi Ashtakam || श्री महालक्ष्‍मी अष्‍टकम संस्‍कृत और हिन्‍दी अनुवाद || Shri Mahalakshmi Ashtakam Sanskrit aur Hindi Anuvad || Mahalakshmi Ashtakam Hindi Sanskrit Lyrics || श्री वैभव लक्ष्‍मी यन्‍त्र || Shri Vaibhav Lakshmi Yantra

।। श्री महालक्ष्मी अष्टकम ।।

श्री महालक्ष्‍मी अष्‍टकम हिन्‍दी अनुवाद || Shri Mahalakshmi Ashtakam Hindi Lyrics and Anuvaad

महालक्ष्मीअष्टकम स्तोत्रम् यः पठेत्भक्तिमानरः। 
सर्वसिद्धिमवापनोति राज्यम प्राप्तयोति सर्वदा ।।

।। ॐ श्री गणेशाय नमः ।।
।। इन्द्र उवाच: ।।
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठेसुरपूजिते 
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते||1|| 

नमस्ते गरुड़ारूढे कोलासुरभयंकरि 
सर्वपापहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते||2||

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरी 
सर्व दुःखहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते||3||

सिद्धिबुधिप्रदे देवी भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी 
मंत्रमुर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते||4||

आद्यन्तरहिते देवी आद्यशक्तिमहेश्वरी 
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोस्तुते||5||

स्थूलसूक्ष्म महारौद्रे महाशक्तिमहोदरे 
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते||6||

पद्मासनस्थिते देवी परब्रह्मस्वरूपिणि 
परमेशि जगन्माता महालक्ष्मी नमोस्तुते ||7||

श्वेताम्बरधरे देवी नानालङ्कारभूषिते 
जगतस्थिते जगन्माता महालक्ष्मी नमोस्तुते||8||

।। फल स्तुति ।।

महालक्ष्मीअष्टकम स्तोत्रम्यः पठेत्भक्तिमानरः । 
सर्वसिद्धिमवापनोति राज्यम प्राप्तयोति सर्वदा||9||

एककाले पठेनित्यं महापापविनाशनं 
द्विकालं यः पठेन्नित्यम् धनधान्यसमन्वित:||10||

त्रिकालं यः पठेनित्यं महाशत्रुविनाशनम् । 
महालक्ष्मिरभवेर्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा||11||

।। श्री महालक्ष्मी अष्टकम ।।
।। ॐ श्री गणेशाय नमः ।।
।। इन्द्र उवाच: ।।
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठेसुरपूजिते 
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते||1||

देवराज इंद्र बोले: मैं महालक्ष्मी की पूजा करता हूं, जो महामाया का प्रतीक हैंं और जिनकी पूजा सभी देवता करते हैं। मैं महालक्ष्मी का ध्यान करता हूं जो अपने हाथों में शंख, चक्र और गदा लिए हुए हैं ।

नमस्ते गरुड़ारूढे कोलासुरभयंकरि ।
सर्वपापहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते||2||

देवराज इंद्र बोले: पक्षीराज गरुड़ जिनका वाहन है, भयानक से भयानक दानव भी जिनके भय से कॉंपते है| सभी पापों को हरने वाली देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरी । 
सर्व दुःखहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते||3||

देवराज इंद्र बोले: मैं उन देवी की पूजा करता हँ जो सब जानने वाली हैं और सभी वर देने वाली हैं, वह सभी दुष्टो का नाश करती हैं। सभी दुखों को हरने वाली देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

सिद्धिबुधिप्रदे देवी भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी 
 मंत्रमुर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते||4||

देवराज इंद्र बोले: हे भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली देवी महालक्ष्मी कृपा कीजिये और हमें सिद्धि व सदबुद्धि प्रदान कीजिये। सभी मंत्रों का आप मूल हैं देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

आद्यन्तरहिते देवी आद्यशक्तिमहेश्वरी । 
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोस्तुते||5||

देवराज इंद्र बोले: हे आद्यशक्ति देवी महेश्वरी महालक्ष्मी, आप शुरु व अंत रहित हैं। आप योग से उत्पन्न हुईं और आप ही योग की रक्षा करने वाली हैं। देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

स्थूलसूक्ष्म महारौद्रे महाशक्तिमहोदरे 
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते||6||

देवराज इंद्र बोले: महालक्ष्मी आप जीवन की स्थूल और सूक्ष्म दोनों ही अभिव्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। आप एक महान शक्ति हैं और आप का स्वरुप दुष्‍टों के लिए महारौद्र है। सभी पापो को हरने वाली देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

पद्मासनस्थिते देवी परब्रह्मस्वरूपिणि । 
परमेशि जगन्माता महालक्ष्मी नमोस्तुते||7||

देवराज इंद्र बोले: हे परब्रह्मस्वरूपिणि देवी आप कमल पर विराजमान हैं| परमेश्वरि आप इस संपूर्ण ब्रह्मांड की माता हैं देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

श्वेताम्बरधरे देवी नानालङ्कारभूषिते । 
जगतस्थिते जगन्माता महालक्ष्मी नमोस्तुते||8||

देवराज इंद्र बोले: हे देवी महालक्ष्मी, आप अनेको आभूषणों से सुशोभित हैं और श्वेत वस्त्र धारण किए हैं| आप इस संपूर्ण ब्रह्माण्‍ड में व्याप्त हैं और इस संपूर्ण ब्रह्माण्‍ड की माता हैं देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

।। फल स्तुति ।।

जो भी व्यक्ति इस महालक्ष्मी अष्टकम स्तोत्र का पाठ भक्तिभाव से करते हैं उन्हें सर्वसिद्धि प्राप्त होंगी और उनकी समस्त इच्छाएं सदैव पूरी होंगी।

एककाले पठेनित्यं महापापविनाशनं ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यम् धनधान्यसमन्वित:||10||

महालक्ष्मी अष्टकम का प्रतिदिन एक बार पाठ करने से भक्‍तों के महापापों का विनाश हो जाता है। प्रतिदिन प्रातः व संध्या काल यह पाठ करने से भक्‍तों को धन और धान्य की प्राप्ति होती है।

त्रिकालं यः पठेनित्यं महाशत्रुविनाशनम् । 
महालक्ष्मिरभवेर्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा||11||

प्रतिदिन प्रातः दोपहर व संध्याकाल यह पाठ करने से भक्‍तों के शक्तिशाली दुश्मनों का नाश होता है और उनसे माता महालक्ष्मी सदैव प्रसन्न रहती हैं तथा उनके वरदान स्वरुप भक्तो के सभी कार्य शुभ होते हैं।

श्री वैभव लक्ष्‍मी यन्‍त्र || Shri Vaibhav Lakshmi Yantra

मंगलवार, 2 नवंबर 2021

पंच पर्व || Panch Parv || धन त्रयोदशी अथवा धनतेरस || Dhan Teras Dhan Trayodashi

पंच पर्व || Panch Parv || धन त्रयोदशी अथवा धनतेरस || Dhan Teras Dhan Trayodashi

क्‍या हैं पंच पर्व 

भारतवर्ष उत्‍सवों एवं पर्वों का देश है। यहॉं कोई भी ऐसी तिथि या दिन नहीं होता जिस दिन को कोई न कोई पौराणिक या लौकिक महत्‍व न बताया गया हो। सनातन धर्म (हिन्‍दू धर्म) में दीपावली के पर्व का विशेष महत्व होता है। दीपावली के दिन ही भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के उपरान्‍त अयोध्‍या वापस लौटे थे। इस अवसर पर समस्‍त अयोध्‍यावासियों ने अपनी खुशी और उल्‍लास हजारों घी के दिये जलाकर प्रकट किये थे। दीपावली के पर्व को पंच पर्व भी कहा जाता है क्‍योंकि यह पर्व धन त्रयोदशी, नर्क चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा एवं भाई दूज आदि त्‍यौहारों की एक श्रृंखला के रूप में मनाया जाता है।   दीपावली से पहले धन त्रयोदशी का त्योहार मनाया जाता है। हिन्‍दी पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धन त्रयोदशी के पर्व के रूप में मनाया जाता है। धन त्रयोदशी को ही कालान्‍तर में धनतेरस के नाम से पुकारा जाने लगा।

 

क्‍यों मनाया जाता है धन त्रयोदशी अथवा धनतेरस का पर्व 

पौराणिक कथा के अनुसार देवों और असुरों ने अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन किया था। इस समुद्र मंथन के दौरान धन के देवता धनवन्‍तरि और माता लक्ष्मी क्षीर-सागर से धनत्रयोदशी के दिन प्रकट हुए थे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब प्रभु धन्वंतरि प्रकट हुए थे तब उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। भगवान धनवन्‍तरि को भगवान विष्णु के अवतार के रूप में जाना जाता है। भगवान धनवन्‍तरि को चिकित्सा और औषधि के देवता के रूप में जाना जाता है साथ ही वे देव चिकित्‍सक भी हैं। भगवान धनवन्‍तरि समुद्र में वास करते हैं,  वे कमल पर विराजित हैं और शंख तथा चक्र धारण करते हैं। अमृता और जोंक उनके प्रतीक हैं। 

धन त्रयोदशी अथवा धनतेरस मनाने का तरीका 

मान्यता है कि इस दिन भगवान धनवन्‍तरि की पूजा करने से पूरे साल धन की कमी नहीं होती, साथ ही,  मॉं लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। धन त्रयोदशी (धनतेरस) के अवसर पर शुभ मुहूर्त में सोने-चांदी और अन्य कई तरह की चीजें खरीदी जाती है। ऐसी मान्‍यता है कि धनतेरस के दिन अगर कुछ चीजें खरीदकर घर लाई जाए तो धन की देवी माता लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर बहुत ही प्रसन्न होते हैं। मान्यताओं के अनुसार धनतेरस पर सोना-चांदी और पीतल के बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। इस तिथि को धनव‍न्‍तरि जयन्‍ती या धन त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान कुबेर की पूजा की भी विधान है। लोक मान्‍यताओं के अनुसार इस शुभ अवसर पर  सोने-चांदी के सिक्के,  झाड़ू,  धनिया, अक्षत एवं पीतल के बर्तन आदि खरीदने का प्रावधान है।

धन त्रयोदशी के दिन क्‍या क्‍या करना चाहिए और क्‍या नहीं खरीदना चाहिए 

धन त्रयोदशी अथवा धनतेरस को नई चीजों की खरीदारी शुभता का प्रतीक माना जाता है। खरीदारी के अलावा कुछ विशेष बातें पर ध्‍यान देकर हम इस त्‍यौहार को और भी लाभकारी बना सकते हैं-

1- लोक मान्‍यता के अनुसार धनतेरस के दिन नई झाड़ू खरीदना शुभता एवं समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस दिन खरीदी गई नई झाड़ू पूजा के स्थान पर रखें और दीपावली की सुबह से इसका प्रयोग  करें। इसके साथ ही पुरानी या टूटी झाड़ू को धनतेरस की मध्य रात्रि में घर से बाहर कर देना चाहिए। हर वर्ष धनतेरस पर सोने-चांदी के आभूषण और बर्तन खरीदने के साथ झाड़ू खरीदने की परंपरा निभाई जाती है। इसके पीछे की मान्यता है कि झाड़ू मॉं लक्ष्मी को बहुत ही प्रिय होती है। धनतेरस और दिवाली पर मां लक्ष्मी का आगमन होता है। इससे माता प्रसन्न होती हैं और घर से सारी नकारात्मकता दूर भाग जाती है। इस कारण से हर साल धनतेरस पर झाड़ू खरीदने की प्रथा है। साथ ही झाड़ू स्‍वच्‍छता एवं साफ-सफाई का प्रतीक भी है। जिस घर में साफ-सफाई रहती है उस घर के लोग ज्‍यादा स्‍वस्‍थ एवं ऊर्जावान बने रहने के कारण धन-समृद्धि के मालिक होते हैं। 

2- दीपावली के अवसर पर घरों की साफ-सफाई की परम्‍परा रही है। साफ सफाई के उपरान्‍त निकले अनुपयोगी अथवा टूटे फूटे सामानों को धनतेरस से पहले ही घर से बाहर निकाल देना चाहिए और साथ ही इनका समुचित निस्‍तारण भी सुनिश्चित करना चाहिए। 

3- ऐसी मान्‍यता है कि घर के मुख्य द्वार के जरिए घर में माता लक्ष्मी का आगमन होता है इसलिए यह स्थान हमेशा साफ-सुथरा रहना चाहिए। साथ ही घर के मुख्य द्वार या मुख्य कक्ष के सामने अनुपयोगी एवं टूटी-फूटी वस्तुएं नहीं रखना चाहिए। समय से इनका समुचित निस्‍तारण कर देना चाहिए। 

4-इस दिन श्री कुबेर जी के साथ मॉं लक्ष्मी और भगवान धनवन्‍तरि की उपासना का विधान है। इसलिए तीनों की ही पूजा करना शुभ माना गया है। 

5- धन त्रयोदशी के दिन खरीदारी के अलावा दीपक भी जलाए जाते हैं। इस दिन धनिया,  झाडू,  कलश, बर्तन और सोने-चांदी की चीजें खरीदना शुभ होता है साथ ही घर के प्रवेश द्वार पर दीपक जलाने से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। 

6- मान्‍यता है कि धनतेरस के दिन दोपहर या शाम के समय नहीं सोना चाहिए। बीमारी की दशा में अथवा बालक और वृद्ध सो सकते हैं। इस दिन संभव हो सके तो रात्रि जागरण करें और ईश्‍वर का ध्‍यान करें।

7- धनतेरस के दिन घर में किसी भी तरह के कलह से बचना चाहिए। मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किसी की शिकायत अथवा चुगली मन में न लायें। ईश्‍वर को साक्षी बनाकर पूरी निष्‍ठा से अपने कर्तव्‍यों का पालन करना चाहिए। 

8- लोक मान्‍यता के अनुसार धनतेरस के दिन यदि बहुत आवश्‍यक न हो तो उधार देने से बचना चाहिए। ऐसा कहा भी जाता है कि उधार प्रेम की कैंची है। 

9- धनतेरस के दिन लोहे का सामान्‍ खरीना शुभ नहीं माना जाता किन्‍तु वाहन खरीदा जा सकता है।

10- लोक मान्‍यता के अनुसार धन त्रयोदशी की शाम को यमदेव के लिए दीपक जलाना चाहिए। धनतेरस की शाम को घर के दक्षिण दिशा की तरफ यम देव को समर्पित करते हुए दीपदान करना शुभ माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन घर के बाहर दक्षिण दिशा में यम के नाम का दीपक जलाने से अकाल मृत्‍यु का भय टल जाता है।

11- इस दिन सुलभता के नाम पर अशुद्ध धातु अथवा सामग्री से बनी मूर्तियों की पूजा से बचना चाहिए। सोने-चॉंदी की मूर्तियों से पूजा करना उत्‍तम माना जाता है किन्‍तु अभवा में मिट्टी सर्वोत्‍तम विकल्‍प है।  

धन त्रयोदशी अथवा धनतेरस की पूजा विधि

1. सबसे पहले स्‍वच्‍छ होकर साफ-स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करके पूजा स्‍थान पर चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाया जाय। 

2. इसके पश्‍चात गंगाजल छिड़क कर भगवान धनवन्‍तरि,  माता महालक्ष्मी और भगवान कुबेर की प्रतिमा या तस्‍वीर स्थापित करना चाहिए। प्रतिमा अथवा तस्‍वीर न होने की दशा में लक्ष्‍मी यन्‍त्र, कुबेर यन्‍त्र और धनवन्‍तरि यन्‍त्र स्‍थापित कर सकते हैं।


3- प्रथम पूज्‍य भगवान गणेश का मन में ध्‍यान करके उनकी आराधना करें और नीचे दिये गये मंत्र का उच्‍चारण कर उनकी पूजा करें -

वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभ ।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥

4. भगवान को धूप, देशी घी का दीपक, नेवेद्य (प्रसाद) पुष्‍प (सम्‍भव हो तो लाल पुष्‍प) एवं अक्षत आदि अर्पित करें। 

5. अब आपने इस दिन जिस भी धातु या फिर बर्तन अथवा ज्वेलरी की खरीदारी की है, उसे चौकी पर स्‍थापित करें। 

6. लक्ष्मी स्तोत्र, लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मी यंत्र, कुबेर यंत्र और कुबेर स्तोत्र का पाठ करें।

7- जितना सम्‍भव हो सके इस मन्‍त्र के जप के द्वारा भगवान धनवन्‍तरि को प्रसन्‍न करना चाहिए 

ॐ नमो भगवते महा सुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वन्तरये अमृत कलश हस्ताय सर्व भय विनाशाय सर्व रोग निवारणाय त्रैलोक्य पतये, त्रैलोक्य निधये श्री महा विष्णु स्वरूप, श्री धन्वंतरि  स्वरुप श्री श्री श्री औषध चक्र नारायणाय स्वाहा

8- भगवान धनवन्तिरि की उपासना के उपरान्‍त धन के अधिपति भगवान कुबेर की पूजा और मंत्र जाप करना चाहिए

ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं में देहि दापय।

9-  अंत में माता भगवती लक्ष्मी की पूजा नीचे लिखे मंत्र से करना चाहिए 

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद, ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥

10- अन्‍त में घर के दक्षिण दिशा की तरफ यम देव को समर्पित करते हुए दीपदान करना चाहिए। 

11. पूजन के उपरान्‍त परिवार के लोग माता लक्ष्‍मी जी की आरती करें और प्रसाद वितरित करें।

**समाप्‍त**

विनम्र अनुरोध: अपनी उपस्थिति दर्ज करने एवं हमारा उत्साहवर्धन करने हेतु कृपया टिप्पणी (comments) में जय श्री लक्ष्‍मी माता अथवा जय श्री कुबेर भगवान अथवा जय श्री धनवन्‍तरि महाराज अवश्य अंकित करें।

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021

श्री खाटू श्‍याम जी का भजन || Most Popular Khatu Shyam Bhajan | SHRI KRISHAN CHANDER SAMJHAVE | PAPPU SHARMA JI || श्री कृष्ण चन्द्र समझावे

श्री खाटू श्‍याम जी का भजन || Most Popular Khatu Shyam Bhajan | SHRI KRISHAN CHANDER SAMJHAVE | PAPPU SHARMA JI || श्री कृष्ण चन्द्र समझावे 


खाटू श्याम वाले चलो रे चलो रे चलो बाबा के -2 

श्री कृष्ण चन्द्र समझावे, 

जो कोई साँचे मन से ध्यावे 

उसका सब दुखड़ा मिट जावे, 

चालो बाबा के ।। टेक ।। 

बाबा भोत घणो दातार, 

पल में भर देवे भंडार, 

याको नाम है लखदातार, 

चालो बाबा के ।। टेक ।। 

पहल्या शाम कुंड में नहावा, 

फिर बाबा के मंदिर आवा

आपा नाच नाच के गावां, 

चालो बाबा के ।। टेक।। 

जो भी श्याम बाग में जावे, 

उसकी बुद्धि हरी हो जावे 

मन को भंवर मगन हो जावे 

चालो बाबा के ।। टेक ।। 

हंसो हंसा में मिल जावे-2, 

थारो "सोहनलाल" गुण गावे 

थारो नाम अमर हो जावे, चालो बाबा के ।।

यह सुन्‍दर भजन हमें श्री सन्‍तोष कुमार जी ने उपलब्‍ध कराया है। हम उनके प्रति हृदय से आभार व्‍यक्‍त करते हैं। ईश्‍वर उन पर और उनके परिवार पर कृपालु हों। 

शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

श्री संतोषी माता की व्रत कथा || Shri Santoshi Mata Ki Vrat Katha || शुक्रवार की व्रत कथा

 श्री संतोषी माता की व्रत कथा || Shri Santoshi Mata Ki Vrat Katha || शुक्रवार की व्रत कथा || Shukravar Ki Vrat Katha


व्रत करने की विधि 

इस व्रत को करने वाला कथा कहते वह सुनते समय हाथ में गुड़ व भुने हुए चने रखेा। सुनने वाले ''संतोषी माता की जय'', ''संतोषी माता की जय'' इस प्रकार जय-जयकार मुख से बोलते जाए। कथा समाप्त होने पर कथा का गुड़-चना गौ माता को खिलायें। कलश में रखा हुआ गुड़-चना सब को प्रसाद के रूप में बांट दें। कथा से पहले कलश को जल से भरें। उसके ऊपर गुड़-चने से भरा कटोरा रखें।  कथा समाप्त होने और आरती होने के बाद कलश के जल को घर में सब जगहों पर छिड़कें और बचा हुआ जल तुलसी की क्यारी में डाल देवें।

सवा आने का गुण चना लेकर माता का व्रत करें। सवा पैसे का ले तो कोई आपत्ति नहीं। गुड़ घर में हो तो ले लेवें, विचार न करें।  क्योंकि माता भावना की भूखी है, कम ज्यादा का कोई विचार नहीं, इसलिए जितना भी बन पड़े अर्पण करें।  श्रद्धा और प्रेम से प्रसन्न मन हो व्रत करना चाहिए।  व्रत के उद्यापन में अढ़ाई सेर खाजा मोमनदार पूड़ी, खीर, चने का साग नैवेद्य रखें। घी का दीपक जलाकर संतोषी माता की जय जयकार बोलकर नारियल फोड़ें।  इस दिन घर में कोई खटाई ना खावे और न आप खावें न किसी दूसरे को खाने दें। इस दिन आठ लड़कों को भोजन करावें। देवर, जेठ, घर के कुटुंब के लड़के मिलते हो तो दूसरों को बुलाना नहीं चाहिए। कुटुंब में ना मिले तो, ब्राह्मणों के, रिश्तेदारों के या पड़ोसियों के लड़के बुलावे। उन्हें खटाई की कोई वस्तु न दें तथा भोजन कराकर यथाशक्ति दक्षिणा देवें। नगद पैसे ना दें बल्कि कोई वस्तु दक्षिणा में दें। व्रत करने वाला कथा सुन प्रसाद ले तथा एक समय भोजन करे। इस तरह से माता अत्यंत खुश होंगी और दुख, दरिद्रता दूर होकर मनोकामना पूरी होगी।

माता की कथा प्रारंभ

कथा सुनने के लिए यहॉं क्लिक करें

एक बुढ़िया थी और उसके सात पुत्र थे। छ: कमाने के वाले थे एक निकम्मा था। बुढ़िया मां छ: पुत्रों की रसोई बनाती, भोजन कराती और पीछे से जो बचता उसे सातवें को दे देती। परंतु वह बोला था, मन में कुछ विचार ना करता था।

एक दिन अपनी बहू से बोला देखो मेरी माता का मुझ पर कितना प्यार है। वह बोली क्यों नहीं, सब का झूठा बचा हुआ तुमको खिलाती है। वह बोला ऐसा भी कहीं हो सकता है, मैं जब तक अपनी आंखों से न देखूँ  मान नहीं सकता। बहू ने कहा देख लोगे तब तो मानोगे।

कुछ दिन बाद बड़ा त्यौहार आया। घर में सात प्रकार के भोजन और चूरमा के लड्डू बने। वह जांचने को सिर दर्द का बहाना कर पतला कपड़ा सिर पर ओढ़कर रसोई में सो गया और कपड़े में से सब देखता रहा। छहो भाई भोजन करने आए, उसने देखा मां ने उनके लिए सुंदर-सुंदर आसन बिछाए हैं, सात प्रकार की रसोई परोसी है। वह आग्रह कर उन्हें जिमाती है। वह देखता रहा। भाई भोजन करके उठे। तब झूठी थालियों में से लड्डुओं के टुकड़ों को उठाया और लड्डू बनाया, जूठन साफ कर बुढ़िया मां ने पुकारा उठ बेटा, छहो भाई भोजन कर गए, अब तू ही बाकी है। उठ न, कब खाएगा।

वह कहने लगा मां मुझे भूख नहीं। भोजन नहीं करना। मैं परदेस जा रहा हूं। माता ने कहा कल जाता हो तो आज ही चला जा। वह बोला हां हां आज ही जा रहा हूं। यह कह कर वह घर से निकल गया।

चलते-चलते बहू की याद आई। वह गौशाला में कंडे थाप रही थी। जाकर बोला मेरे पास तो कुछ नहीं है बस यह अंगूठी है, सो ले लो और अपनी कुछ निशानी मुझे दे दो। वह बोली मेरे पास क्या है, यह गोबर भरा हाथ है। यह कह कर उसके पीठ में गोबर के हाथ की थाप मार दी। वह चल दिया।

चलते-चलते दूर देश में पहुंचा। वहां एक साहूकार की दुकान थी। वही जाकर कहने लगा भाई मुझे नौकरी पर रख लो। साहूकार को जरूरत थी सो वह बोला रह जा। लड़के ने पूछा तनखा क्या दोगे? साहूकार ने कहा काम देखकर दाम मिलेंगे। साहूकार की नौकरी मिली। वह सवेरे से रात तक नौकरी करने लगा। कुछ दिनों में दुकान का लेन-देन, हिसाब-किताब, ग्राहकों को माल बेचना, सारा काम वह करने लगा। साहूकार के सात आठ नौकर और थे। सब चक्कर खाने लगे कि यह तो बहुत होशियार बन गया। सेठ ने भी काम देखा और तीन महीने में उसे आधे मुनाफे का साझीदार बना लिया। वह बारह वर्ष में नामी सेठ बन गया और मालिक सारा कारोबार उसके ऊपर छोड़ कर बाहर चला गया।

अब बहू पर क्या बीती सुनो। सास-ससुर उसे दुख देने लगे सारे गृहस्थी का काम कराकर उसे लकड़ी लेने जंगल भेजते और घर की रोटियों के आटे से जो भूसी निकलती उसकी रोटी बनाकर रख दी जाती और फूटे नारियल की नरेली में पानी दिया जाता।

इस तरह दिन बीतते रहे। एक दिन वह लकड़ी लेने जा रही थी कि रास्ते में बहुत सी स्त्रियां संतोषी माता का व्रत करती दिखाई दीं। वह खड़ी हो कथा सुनकर बोली, बहनों तुम किस देवता का व्रत करती हो और इसके करने से क्या फल होता है? इस व्रत के करने की क्या विधि है? यदि तुम अपने इस व्रत का विधान मुझे समझा कर कहोगी तो मैं तुम्हारा बड़ा अहसान मानूंगी। तब उनमें से एक स्त्री बोली सुनो संतोषी माता का व्रत है। इसके करने से निर्धनता-दरिद्रता का नाश होता है, लक्ष्मी आती हैं, मन की चिंताएं दूर होती हैं, घर में सुख होने से मन को प्रसन्नता और शांति मिलती है, निपुत्र को पुत्र मिलता है, प्रीतम बाहर गया हो तो जल्दी आ जाता है, कुंवारी कन्या को मनपसंद वर मिलता है, राजद्वार में बहुत दिनों से मुकदमा चलता हो तो खत्म हो जाता है, सब तरह सुख-शांति होती है, घर में धन जमा होता है जायजाद-पैसा का लाभ होता है, रोग दूर होता है तथा मन में जो कामना हो वह भी पूरी हो जाती है इसमें संदेह नहीं।

वह पूछने लगी यह व्रत कैसे किया जाता है, यह भी तो बताओ। आपकी बड़ी कृपा होगी। स्त्री कहने लगी सवा आने का गुड़ चना लेना। इच्छा हो तो सवा पॉंच आने का लेना या सवा रुपए का भी सहूलियत के अनुसार लेना। बिना परेशानी श्रद्धा और प्रेम से जितना बन सके लेना। सवा पैसे से सवा पॉंच आना तथा इससे भी ज्‍यादा शक्ति और भक्ति अनुसार लेना। हर शुक्रवार को निराहार रहकर कथा कहना। कथा के बीच में क्रम टूटे नहीं। लगातार नियम पालन करना। सुनने वाला कोई ना मिले तो घी का दीपक जला उसके आगे जल के पात्र को रख कथा कहना, परंतु कथा कहने का नियम न टूटे। जब तक कार्य सिद्धि ना हो नियम पालन करना और कार्य सिद्ध हो जाने पर व्रत का उद्यापन करना। तीन माह में माता फल पूरा करती हैं। यदि किसी के खोटे ग्रह हो तो भी माता तीन वर्ष में कार्य को अवश्य सिद्ध कर देती हैं। कार्य होने पर ही उद्यापन करना चाहिए बीच में नहीं करना चाहिए। उद्यापन में अढ़ाई सेर आटे का खाजा तथा इसी अनुपात में खीर तथा चने का साग करना। आठ लड़कों को भोजन कराना। जहां तक मिले देवर, जेठ, भाई-बंधु के लड़के लेना, ना मिले तो रिश्तेदारों और पड़ोसियों के लड़के बुलाना। उन्हें भोजन कराना, यथाशक्ति दक्षिणा देना। माता का नियम पूरा करना। उस दिन घर में कोई खटाई ना खाए।

यह सुनकर बहू चल दी। रास्ते में लकड़ी के बोझ को बेच दिया और उस पैसे से गुड़ चना ले माता के व्रत की तैयारी कर आगे चली और सामने मंदिर देख पूछने लगी यह मंदिर किसका है? सब बच्चे कहने लगे संतोषी माता का मंदिर है। यह सुन माता के मंदिर में जा माता के चरणों में लोटने लगी। दीन हो विनती करने लगी मां में निपट मूर्ख व्रत के नियम को जानती नहीं, मैं बहुत दुखी हूं माता, जगजननी मेरा दुख दूर कर मैं तेरी शरण में हूं। माता को दया आई। एक शुक्रवार बीता कि दूसरे शुक्रवार को ही उसके पति का पत्र आया और तीसरे को उसका भेजा पैसा भी पहुंचा यह देख जेठानी मुंह सिकोड़ने लगी  इतने दिनों में इतना पैसा आया इसमें क्या बड़ाई है? लड़के ताना देने लगे काकी के पास पत्र आने लगे और रुपया  आने लगा, अब तो काकी की खातिर बढ़ेगी, तब तो काकी बोलने से भी नहीं बोलेगी।

बेचारी सरलता से कहती भैया पत्र आवे, रुपया आवे तो हम सबके लिए अच्छा है ऐसा कह कर आंखों में आंसू भर कर संतोषी माता के मंदिर में मातेश्वरी के चरणों में गिर कर रोने लगी। मां मैंने तुमसे पैसा नहीं मांगा, मुझे पैसे से क्या काम है? मुझे तो अपने सुहाग से काम है। मैं तो अपने स्वामी के दर्शन और सेवा मांगती हूं। तब माता ने प्रसन्न होकर कहा जा बेटी तेरा स्वामी आएगा।

यह सुन खुशी से बावली हो घर में जाकर काम करने लगी। अब संतोषी मां विचार करने लगी इस भोली पुत्री से मैंने कह तो दिया तेरा पति आवेगा पर आवेगा कहां से? वह तो उसे स्वप्न में भी याद नहीं करता। उसे याद दिलाने के लिए मुझे जाना पड़ेगा। इस तरह माता बुढ़िया के बेटे के पास जा स्वप्न में प्रकट हो कहने लगी साहूकार के बेटे सोता है या जागता है? वह बोला माता सोता भी नहीं हूँ और जागता भी नहीं हूं बीच में ही हूं कहो क्या आज्ञा है? मां कहने लगी तेरा घर बार कुछ है या नहीं? वह बोला मेरा सब कुछ है मां, बाप, भाई, बहन, व बहू। क्या कमी है? मां बोली भोले पुत्र तेरी स्‍त्री कष्ट उठा रही है, मां-बाप उसे कष्ट दे रहे हैं, दुख दे रहे हैं वह तेरे लिए तरस रही है। तू उसकी सुधि‍ ले। वह बोला माता यह तो मालूम है, परंतु जाऊं कैसे? परदेश की बात है, लेन-देन का कोई हिसाब नहीं। जाने का कोई रास्ता नजर नहीं आता। कैसे चला जाऊं? मां कहने लगी मेरी बात मान सवेरे नहा धोकर माता का नाम ले घी का दीपक जला दंडवत कर दुकान पर जा बैठना। तब देखते देखते तेरा लेनदेन सब हो जाएगा, माल बिक जाएगा और शाम होते-होते धन का ढेर लग जाएगा।

तब सवेरे बहुत जल्दी उठ उसने लोगों से अपने सपने की बात कही तो वे सब उसकी बात को अनसुनी करके खिल्ली उड़ाने लगे कहीं सपने सच होते हैं। एक बूढ़ा बोला भाई मेरी बात मान इस तरह सच झूठ कहने के बदले देवता ने जैसा कहा है वैसा ही करना तेरा इसमें क्या जाता है। अब बूढ़े की बात मानकर वह नहा धोकर संतोषी माता को दंडवत कर घी का दीपक जला दुकान पर जा बैठा। थोड़ी देर में क्या देखता है कि देने वाले रुपया लाए, लेने वाले हिसाब लेने लगे, कोठे में भरे सामानों के खरीददार नकद दाम में सौदा करने लगे और शाम तक धन का ढेर लग गया। माता का नाम ले घर ले जाने के वास्ते गहना कपड़ा खरीदने लगा और वहां से काम से निपट तुरंत घर को रवाना हुआ।

वहां बहू बेचारी जंगल में लकड़ी लेने जाती है। लौटते वक्त माताजी के मंदिर में विश्राम करती है। वह तो उसका रोज रुकने का स्थान जो ठहरा। दूर से धूल उड़ती देख माता से पूछती है माता धूल कैसे उड़ रही है? मां कहती है पुत्री तेरा पति आ रहा है। अब तू ऐसा कर लकड़ियों के तीन बोझ बना ले, एक नदी के किनारे रख, दूसरा मेरे मंदिर पर और तीसरा अपने सिर पर रख। तेरे पति को लकड़ी का गट्ठा देख कर मोह पैदा होगा। वह यहॉं रुकेगा, नाश्ता पानी बना, खा पीकर मां से मिलने जाएगा। तब तू लकड़ी का बोझ उठाकर जाना और बोझ आंगन में डाल कर दरवाजे पर जोर से लगाना, लो सासूजी लकड़ियों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो और नारियल के खोपड़े में पानी दो, आज मेहमान कौन आया है?

मां की बात सुन बहुत अच्छा माता कहकर प्रसन्न हो लकड़ियों के तीन गटठे ले आई, एक नदी के तट पर, एक माता के मंदिर पर रखा। इतने में एक मुसाफिर वहॉं आ पहुँचा। सूखी लकड़ी देख उसकी इच्‍छा हुई कि यहीं निवास करे और भोजन बना कर खापीकर गॉंव जायेा इस प्रकार भोजन बना कर विश्राम ले, गॉंव को गया, सबसे प्रेम से मिला उसी समय बहू सिर पर लकड़ी का गट्ठा लिये आती है।

लकड़ी का भारी बोझ आंगन में डाल जोर से तीन आवाज देती है ... लो सासू जी! लकड़ी का गट्ठा लो, भूसी की रोटी दो, नारियल के खोपड़े में पानी दो। आज मेहमान कौन आया है? यह सुनकर उसकी सास अपने दिये हुए कष्‍टाों को भुलाने हेतु कहती है ... बहू ऐसा क्यों कहती है, तेरा मालिक ही तो आया है। आ बैठ, मीठा भात खा, भोजन कर, कपड़े गहने पहन।

इतने में आवाज सुन उसका स्वामी बाहर आता है और अंगूठी देख व्याकुल हो मां से पूछता है -मां यह कौन है? मां कहती है बेटा तेरी बहू है। आज बारह वर्ष हो गए तू जब से गया है, तब से सारे गांव में जानवर की तरह भटकती फिरती है, कामकाज घर का कुछ करती नहीं, चार समय आ कर खा जाती है। अब तुझे देखकर भूसी की रोटी और नारियल की खोपड़ी में पानी मांगती है। वह लज्जित होकर बोला ठीक है मैंने इसे भी देखा है और तुम्हें भी देखा है। अब मुझे दूसरे घर की ताली दो तो उसमें रहूं। तब मॉं बोली ठीक है बेटा जैसी तेरी मर्जी। कहकर ताली का गुच्छा पटक दिया। उसने ताली ले दूसरे कमरे में जो तीसरी मंजिल के ऊपर था खोलकर सारा सामान जमाया। एक दिन में ही वहां राजा के महल जैसा ठाठ बाट बन गया।

अब क्या था वह दोनों सुख पूर्वक रहने लगे। इतने में अगला शुक्रवार आया। बहू ने अपने पति से कहा कि मुझको माता का उद्यापन करना है। पति बोला बहुत अच्छा, खुशी से करो। वह तुरंत ही उद्यापन की तैयारी करने लगी।  जेठ के लड़कों को भोजन के लिए कहने गई। उन्होंने मंजूर किया परंतु जेठानी अपने बच्चों को सिखाती है देखो रे! भोजन के बाद सब लोग खटाई मांगना जिससे उसका उद्यापन पूरा न हो। लड़के भोजन करने आए। खीर पेट भर कर खाई परंतु याद आते हैं कहने लगे हमें कुछ खटाई दो फिर खाना हमें भाता नहीं देखकर अरुचि होती है। बहू कहने लगी खटाई किसी को नहीं दी जाएगी। यह तो संतोषी माता का प्रसाद है। लड़के उठ खड़े हुए और बोले पैसा लाओ। भोली बहु कुछ जानती नहीं थी तो उन्हें पैसे दे दिए। लड़के उसी समय हठ करके इमली लाकर खाने लगे। यह देखकर बहू पर माताजी ने कोप  किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गए। जेठ जेठानी मनमाने खोटे वचन कहने लगे।लूट कर धन इकट्ठा कर लाया था, सो राजा के दूत उसको पकड़ कर ले गए। अब मालूम पड़ जाएगा जब जेल की मार खाएगा।

बहू से यह वचन सहन नहीं हुए। रोती रोती माता के मंदिर में गई और बोली हे माता तुमने यह क्या किया? हंसा कर क्यों रुलाने लगी? माता बोली पुत्री तूने उद्यापन करके मेरा व्रत भंग किया। इतनी जल्दी सब बातें भुला दी। वह कहने लगी माता भूली तो नहीं हूँ? न कुछ अपराध किया है। मुझे तो लड़कों ने भूल में डाल दिया। मैंने भूल से उन्हें पैसे दे दिए। मुझे क्षमा करो मां।

मां बोली ऐसी भी कहीं भूल होती है। वह बोली मां मुझे माफ कर दो। मैं फिर से तुम्हारा उद्यापन करूंगी। मां बोली भूल मत जाना। वह बोली अब भूल न होगी मां। अब बताओ वे कैसे आएंगे। मां बोली तेरा मालिक तुझे रास्ते में आता मिलेगा। वह घर की ओर चली राह में पति आता मिला। उसने पूछा तुम कहां गए थे। तब वह कहने लगा इतना धन जो कमाया है, उसका टैक्स राजा ने मांगा था, वह भरने गया था। वह प्रसन्न हो बोली भला हुआ अब घर को चलो। कुछ दिन बाद फिर शुक्रवार आया। वह बोली मुझे माता का उद्यापन करना है। पति ने कहा करो।  फिर जेठ के लड़कों से भोजन को कहने गई।

जेठानी ने एक दो बातें सुनाई। लड़कों को सिखा दिया कि पहले ही खटाई मांगने लगना। लड़के कहने लगे हमें खीर नहीं भाता, जी बिगड़ता है, कुछ खटाई खाने को देना। वह बोली खटाई खाने को नहीं मिलेगा, खाना हो तो खाओ।

वह ब्राह्मण के लड़कों को लेकर भोजन कराने लगी। यथाशक्ति दक्षिणा की जगह एक एक फल उन्हें दिया। इससे संतोषी मां प्रसन्‍न हुई । माता की कृपा होते ही नौवे मास उसको चंद्रमा के समान सुंदर पुत्र प्राप्त हुआ। पुत्र को लेकर प्रतिदिन माता के मंदिर जाने लगी। मॉं ने सोचा कि वह रोज आती है आज क्यों ना मैं इसके घर चलूँ। इसका आसरा देखूँ तो सही। यह विचार कर माता ने भयानक रूप बनाया। गुड़ और चने से सना मुख ऊपर सूर्य के समान होठ उस पर मक्खियां भिनभिना रही हैं। दहलीज में पांव रखते ही सास चिल्‍लाई देखो रे कोई चुड़ैल चली आ रही है। लड़कों इसे भगाओ नहीं तो किसी को खा जाएगी। लड़के डरने लगे और चिल्लाकर खिड़की बंद करने लगे। बहु रोशनदान से देख रही थी। प्रसन्‍नता से पागल होकर चिल्लाने लगी। आज मेरी माता घर आई है यह कह कर बच्चे को दूध पीने से हटाती है। इतने में सास का क्रोध फूट पड़ा। इसे देखकर कैसी उतावली हुई है जो बच्चे को पटक दिया। इतने में मां के प्रताप से जहां देखो वहीं लड़के ही लड़के नजर आने लगे। वह बोली मां जी जिनका मैं व्रत करती हूं यह वही संतोषी माता है। इतना कह कर झट से सारे घर के किवाड़ खोल देती है। सबने माता के चरण पकड़ लिए और विनती कर कहने लगे हैं माता हम मूर्ख हैं। हम अज्ञानी हैं, पापी हैं, तुम्हारे व्रत की विधि हम नहीं जानते। तुम्हारा व्रत भंग कर हमने बड़ा अपराध किया है, हे माता आप हमारे अपराध को क्षमा करो। इस प्रकार माता प्रसन्न हुई। माता ने बहू को जैसा फल दिया वैसा माता सबको दे। जो पढ़े उसका मनोरथ पूर्ण हो। बोलो संतोषी माता की जय।

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नोट - यह व्रत कथा हमें सुश्री तनुप्रिया मिश्र, बीरसिंहपुर पाली, जिला उमरिया (म.प्र.) के द्वारा उपलब्‍ध कराई गयी है। आपके प्रति हृदय से आभार। 

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शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

श्री गणपति जी की आरती || Shri Ganapati Ji Ki Aarti || ओम जय गौरीनन्‍दा || Om Jay Gaurinanda

श्री गणपति जी की आरती || Shri Ganapati Ji Ki Aarti || ओम जय गौरीनन्‍दा || Om Jay Gaurinanda


ओम जय गौरीनन्‍दा, 
हरि जय गिरिजानन्‍दा । 
गणपति आनन्‍दकन्‍दा, 
गुरुगणपति आनन्‍दकन्‍दा । 
मैं चरणन वंदा। 
ओम जय गौरीनन्‍दा। 

सूंंड सूंडालो नेत्रविशालो कुण्‍डल झलकन्‍दा, 
हरि कुण्‍डल झलकन्‍दा।  
कुंकुम केशर चन्‍दन, कुंकुम केशर चन्‍दन, 
सिंदुर वदन बिंदा। 
ओम जय गौरीनन्‍दा। 

मुकुट सुघड सोहंता मस्‍तक शोभन्‍ता, 
हरि मस्‍तक शोभन्‍ता। 
बहियां बाजूबन्‍दा हरि बहियां बाजूबन्‍दा, 
पहुंची निरखन्‍ता। 
ओम जय गौरीनन्‍दा। 

रत्‍न जडित सिंहासन सोहत गणपति आनंदा, 
हरि गणपति आनन्‍दा। 
गले मोतियन की माला गले वैजयन्‍ती माला 
सुरनर मुनि वृन्‍दा ।
ओम जय गौरीनन्‍दा। 

मूषक वाहन राजत शिवसुत आनन्‍दा 
हरि शिवसुत आनन्‍दा। 
भजत शिवानन्‍द स्‍वामी जपत हरि हर स्‍वामी 
मेटत भवफन्‍दा। 
ओम जय गौरीनन्‍दा। 

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