श्रीगणेशकवचम् // Shri Ganesh Kavacham // Shri Ganesh Kavacham in Hindi in Sanskrit // Lyrics in Hindi // Lyrics in English
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यह ब्लॉग धार्मिक भावना से प्रवृत्त होकर बनाया गया है। इस ब्लॉग की रचनाएं श्रुति एवं स्मृति के आधार पर लोक में प्रचलित एवं विभिन्न महानुभावों द्वारा संकलित करके पूर्व में प्रकाशित की गयी रचनाओं पर आधारित हैं। ये ब्लॉगर की स्वयं की रचनाएं नहीं हैं, ब्लॉगर ने केवल अपने श्रम द्वारा इन्हें सर्वसुलभ कराने का प्रयास किया है। इसी भाव के साथ ईश्वर की सेवा में ई-स्तुति
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दुर्गाधीशो द्रुतिज्ञो द्रुतिनुतिविषयो दूरदृष्टिर्दुरीशो
दिव्यादिव्यैकराध्यो द्रुतिचरविषयो दूरवीक्षो दरिद्रः ।
देवैः सङ्कीर्तनीयो दलितदलदयादानदीक्षैकनिष्ठो
दानी दीनार्तिहारी भवदवदहनो दीयतां दृष्टिवृष्टिः ॥ 1॥
क्षेत्रज्ञः क्षेत्रनिष्ठः क्षयकलितकलः क्षात्रवर्गैकसेव्यः
क्षेत्राधीशोऽक्षरात्मा क्षितिप्रथिकरणः क्षालितः क्षेत्रदृश्यः ।
क्षोण्या क्षीणोऽक्षरज्ञो क्षरपृथुकलितः क्षीणवीणैकगेयः
क्षौरः क्षोणीध्रवर्ण्यः क्षयतु मम बलक्षीणतां सक्षणं सः ॥ 2॥
क्रूरः क्रूरैककर्मा कलितकलकलैः कीर्तनीयः कृतिज्ञः
कालः कालैककालो विकलितकर्णः कारणाक्रान्तकीर्तिः ।
कोपः कोपेऽप्यकुप्यन् कुपितकरकराघातकीलः कृतान्तः
कालव्यालालिमालः कलयतु कुशलं वः करालः कृपालुः ॥ 3॥
गौरी स्निह्यतु मोदतां गणपतिः शुण्डामृतं वर्षताद्
नन्दीशः शुभवृष्टिमावितनुतां श्रीमान् गणाधीश्वरः ।
वायुः सान्द्रसुखावहः प्रवहतां देवाः समृद्धादयाः
सम्पूर्तिं दधतां सुखस्य नितरां विश्वेश्वरः प्रीयताम् ॥ 4॥
श्रीविश्वेश्वरमन्दिरं प्रविलसेत् सम्पूर्णसिद्धं शुभं
पुष्टं तुष्टसुखाकरं प्रभवतां सम्मोदमोदावहम् ।
एतद्दर्शनकामना जगति सञ्जायेत सन्निन्दतः
सर्वेषां भगवान् महेश्वरकृपापूर्णो निरीक्षेत नः ॥ 5॥
इति काशीपीठाधीश्वरः श्रीमहेश्वरानन्दः विरचिता
श्रीकाशीविश्वनाथस्तुतिः समाप्ता ।
सूर्य नमस्कार का शाब्दिक अर्थ सूर्य को अर्पण या नमस्कार करना है। यह योग आसन शरीर को सही आकार देने और मन को शांत व स्वस्थ रखने का उत्तम तरीका है। सूर्य नमस्कार १२ शक्तिशाली योग आसनों का एक समन्वय है, जो एक उत्तम कार्डियो-वॅस्क्युलर व्यायाम भी है और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
यदि हम प्रतिदिन नियम से सूर्य नमस्कार का अभ्यास करेंगे तो हमें किसी भी तरह के अन्य व्यायाम एवं योगासन करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। प्रतिदिन सुबह के समय सूर्य के सामने इसे करने से शरीर को पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी प्राप्त होता है जिससे शरीर को मजबूती मिलने के साथ ही स्वस्थ रखने में भी मदद मिलती है।
खुले मैदान में योगा मैट के ऊपर खड़े हो जाएं और सूर्य को नमस्कार करने के हिसाब से खड़े हो जाएं। सीधे खड़े हो जाएं और दोनों हाथों को जोड़ कर सीने से सटा लें और गहरी, लंबी सांस लेते हुए आराम की अवस्था में खड़े हो जाएं।
पहली अवस्था में खड़े रहते हुए सांस लीजिए और हाथों को ऊपर की ओर उठाएं। और पीछे की ओर थोड़ा झुकें। इस बात का ध्यान रखें कि दोनों हाथ कानों से सटे हुए हों। हाथों को पीछे ले जाते हुए शरीर को भी पीछे की ओर ले जाएं।
सूर्य नमस्कार की यह खासियत होती है कि इसके सारे चरण एक दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। हस्तोतानासन की मुद्रा से सीधे हस्त पादासन की मुद्रा में आना होता है। इसके लिए हाथों को ऊपर उठाए हुए ही आगे की ओर झुकने की कोशिश करें। ध्यान रहें कि इस दौरान सांसों को धीरे-धीरे छोड़ना होता है। कमर से नीचे की ओर झुकते हुए हाथों को पैरों के बगल में ले आएं। ध्यान रहे कि इस अवस्था में आने पर पैरों के घुटने मुड़े हुए न हों।
हस्त पादासन से सीधे उठते हुए सांस लें और बांए पैर को पीछे की ओर ले जाएं और दांये पैर को घुटने से मोड़ते हुए छाती के दाहिने हिस्से से सटाएं। हाथों को जमीन पर पूरे पंजों को फैलाकर रखें। ऊपर की ओर देखते हुए गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं।
गहरी सांस लेते हुए दांये पैर को भी पीछे की ओर ले जाएं और शरीर को एक सीध में रखे और हाथों पर जोर देकर इस अवस्था में रहें।
अब धीरे-धीरे गहरी सांस लेते हुए घुटनों को जमीन से छुआएं और सांस छोड़ें। पूरे शरीर पर ठोड़ी, छाती, हाथ, पैर को जमीन पर छुआएं और अपने कूल्हे के हिस्से को ऊपर की ओर उठाएं।
कोहनी को कमर से सटाते हुए हाथों के पंजे के बल से छाती को ऊपर की ओर उठाएं। गर्दन को ऊपर की ओर उठाते हुए पीछे की ओर ले जाएं।
भुजंगासन से सीधे इस अवस्था में आएं। अधोमुख शवासन के चरण में कूल्हे को ऊपर की ओर उठाएं लेकिन पैरों की एड़ी जमीन पर टिका कर रखें। शरीर को अपने V के आकार में बनाएं।
अब एक बार फिर से अश्व संचालासन की मुद्रा में आएं लेकिन ध्यान रहें अबकी बार बांये पैर को आगे की ओर रखें।
अश्न संचालनासन मुद्रा से सामान्य स्थिति में वापस आने के बाद अब पादहस्तासन की मुद्रा में आएं। इसके लिए हाथों को ऊपर उठाए हुए ही आगे की ओर झुकने की कोशिश करें। ध्यान रहें कि इस दौरान सांसों को धीरे-धीरे छोड़ना होता है। कमर से नीचे की ओर झुकते हुए हाथों को पैरों के बगल में ले आएं। ध्यान रहे कि इस अवस्था में आने पर पैरों के घुटने मुड़े हुए न हों।
पादहस्तासन की मुद्रा से सामान्य स्थिति में वापस आने के बाद हस्तउत्तनासन की मुद्रा में वापस आ जाएं। इसके लिए हाथों को ऊपर की ओर उठाएं और पीछे की ओर थोड़ा झुकें। हाथों को पीछे ले जाते हुए शरीर को भी पीछे की ओर ले जाएं।
हस्तउत्तनासन की मुद्रा से सामान्य स्थिति में वापस आने के बाद सूर्य की तरफ चेहरा कर एक बार फिर से प्रणामासन की मुद्रा में आ जाएं।
ॐ ध्येयः सदा सवितृमण्डल मध्यवर्ति
नारायणः सरसिजासन्संनिविष्टः ।
केयूरवान मकरकुण्डलवान किरीटी
हारी हिरण्मयवपुधृतशंखचक्रः ।।
ॐ ह्रां मित्राय नमः ।
ॐ ह्रीं रवये नमः ।
ॐ ह्रूं सूर्याय नमः ।
ॐ ह्रैं भानवे नमः ।
ॐ ह्रौं खगाय नमः ।
ॐ ह्रः पूष्णे नमः ।
ॐ ह्रां हिरण्यगर्भाय नमः ।
ॐ ह्रीं मरीचये नमः ।
ॐ ह्रूं आदित्याय नमः ।
ॐ ह्रैं सवित्रे नमः ।
ॐ ह्रौं अर्काय नमः ।
ॐ ह्रः भास्कराय नमः ।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः
ॐ श्रीसवितृसूर्यनारायणाय नमः ।।
आदितस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने
जन्मान्तरसहस्रेषु दारिद्र्यं दोषनाशते ।
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्
सूर्यपादोदकं तीर्थं जठरे धारयाम्यहम् ।।
योगेन चित्तस्य पदेन वाचा मलं शरीरस्य च वैद्यकेन ।
योपाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां पतंजलिं प्रांजलिरानतोऽस्मि ।।
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अस्य श्रीऋणमोचनमहागणपतिस्तोत्रस्य शुक्राचार्य ऋषिः,
अनुष्टुप्छन्दः, श्रीऋणमोचक महागणपतिर्देवता।
मम ऋणमोचनमहागणपतिप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।।
रक्ताङ्गं रक्तवस्त्रं सितकुसुमगणैः पूजितं रक्तगन्धैः
क्षीराब्धौ रत्नपीठे सुरतरुविमले रत्नसिंहासनस्थम्।
दोर्भिः पाशाङ्कुशेष्टाभयधरमतुलं चन्द्रमौलिं त्रिणेत्रं
ध्यायेत् शान्त्यर्थमीशं गणपतिममलं श्रीसमेतं प्रसन्नम्।।
स्मरामि देव देवेशं वक्रतुण्डं महाबलम् ।
षडक्षरं कृपासिन्धुं नमामि ऋणमुक्तये।।1।।
एकाक्षरं ह्येकदन्तमेकं ब्रह्म सनातनम्।
एकमेवाद्वितीयं च नमामि ऋणमुक्तये।।2।।
महागणपतिं देवं महासत्वं महाबलम्।
महाविघ्नहरं शम्भोः नमामि ऋणमुक्तये।।3।।
कृष्णाम्बरं कृष्णवर्णं कृष्णगन्धानुलेपनम्।
कृष्णसर्पोपवीतं च नमामि ऋणमुक्तये।।4।।
रक्ताम्बरं रक्तवर्णं रक्तगन्धानुलेपनम्।
रक्तपुष्पप्रियं देवं नमामि ऋणमुक्तये।।5।।
पीताम्बरं पीतवर्णं पीतगन्धानुलेपनम्।
पीतपुष्पप्रियं देवं नमामि ऋणमुक्तये।।6।।
धूम्राम्बरं धूम्रवर्णं धूम्रगन्धानुलेपनम्।
होम धूमप्रियं देवं नमामि ऋणमुक्तये।।7।।
फालनेत्रं फालचन्द्रं पाशाङ्कुशधरं विभुम्।
चामरालङ्कृतं देवं नमामि ऋणमुक्तये।।8।।
इदं त्वृणहरं स्तोत्रं सन्ध्यायां यः पठेन्नरः।
षण्मासाभ्यन्तरेणैव ऋणमुक्तो भविष्यति।।9।।
इति श्रीऋणमोचनमहागणपतिस्तोत्रं सम्पूर्णम्।