मंगलवार, 7 दिसंबर 2021

मनसा देवी की चालीसा || मनसा माँ नागेश्वरी || Mansa Mata Ki Chalisa || Mansa Ma Nageshwari || Mansa Mata Ki Stuti

मनसा देवी की चालीसा || मनसा माँ नागेश्वरी || Mansa Mata Ki Chalisa || Mansa Ma Nageshwari || Mansa Mata Ki Stuti

 
मनसा माँ नागेश्वरी 

कष्ट हरन सुखधाम।

चिंताग्रस्त हर जीव के 

सिद्ध करो सब काम।।


देवी घट-घट वासिनी 

ह्रदय तेरा विशाल।

निष्ठावान हर भक्त पर 

रहियो सदा तैयार।।


पदमावती भयमोचिनी अम्बा 

सुख संजीवनी माँ जगदंबा।

मनशा पूरक अमर अनंता 

तुमको हर चिंतक की चिंता।।


कामधेनु सम कला तुम्हारी 

तुम्ही हो शरणागत रखवाली।

निज छाया में जिनको लेती 

उनको रोगमुक्त कर देती।।


धनवैभव सुखशांति देना 

व्यवसाय में उन्नति देना।

तुम नागों की स्वामिनी माता 

सारा जग तेरी महिमा गाता।।


महासिद्धा जगपाल भवानी 

कष्ट निवारक माँ कल्याणी।

याचना यही सांझ सवेरे 

सुख संपदा मोह ना फेरे।।


परमानंद वरदायनी मैया 

सिद्धि ज्योत सुखदायिनी मैया।

दिव्य अनंत रत्नों की मालिक 

आवागमन की महासंचालक।।


भाग्य रवि कर उदय हमारा 

आस्तिक माता अपरंपारा।

विद्यमान हो कण कण भीतर 

बस जा साधक के मन भीतर।।


पापभक्षिणी शक्तिशाला 

हरियो दुख का तिमिर ये काला।

पथ के सब अवरोध हटाना 

कर्म के योगी हमें बनाना।।


आत्मिक शांति दीजो मैया 

ग्रह का भय हर लीजो मैया।

दिव्य ज्ञान से युक्त भवानी 

करो संकट से मुक्त भवानी।।


विषहरी कन्या, कश्यप बाला 

अर्चन चिंतन की दो माला।

कृपा भगीरथ का जल दे दो 

दुर्बल काया को बल दे दो।।


अमृत कुंभ है पास तुम्हारे 

सकल देवता दास तुम्हारे।

अमर तुम्हारी दिव्य कलाएँ 

वांछित फल दे कल्प लताएँ।।


परम श्रेष्ठ अनुकम्‍पा वाली 

शरणागत की कर रखवाली।

भूत पिशाचर टोना टंट 

दूर रहे माँ कलह भयंकर।।


सच के पथ से हम ना भटके 

धर्म की दृष्टि में ना खटके।

क्षमा देवी, तुम दया की ज्योति 

शुभ कर मन की हमें तुम होती।।


जो भीगे तेरे भक्ति रस में 

नवग्रह हो जाए उनके वश में।

करुणा तेरी जब हो महारानी 

अनपढ बनते है महाज्ञानी।।


सुख जिन्हें हो तुमने बांटें 

दुख की दीमक उन्हे ना छांटें।

कल्पवृक्ष तेरी शक्ति वाला 

वैभव हमको दे निराला।।


दीनदयाला नागेश्वरी माता 

जो तुम कहती लिखे विधाता।

देखते हम जो आशा निराशा 

माया तुम्हारी का है तमाशा।।


आपद विपद हरो हर जन की 

तुम्हें खबर हर एक के मन की।

डाल के हम पर ममता आँचल 

शांत कर दो समय की हलचल।।


मनसा माँ जग सृजनहारी 

सदा सहायक रहो हमारी।

कष्ट क्लेश ना हमें सतावे 

विकट बला ना कोई भी आवे।।


कृपा सुधा की वृष्टि करना 

हर चिंतक की चिंता हरना।

पूरी करो हर मन की मंशा 

हमें बना दो ज्ञान की हंसा।।


पारसमणियाँ चरण तुम्हारे 

उज्वल करदे भाग्य हमारे।

त्रिभुवन पूजित मनसा माई 

तेरा सुमिरन हो फलदाई।।


इस गृह अनुग्रह रस बरसा दे 

हर जीवन निर्दोष बना दे।

भूलेंगें उपकार ना तेरे

पूजेंगे माँ सांझ सवेरे।।


सिद्ध मनसा सिद्धेश्वरी 

सिद्ध मनोरथ कर।

भक्तवत्सला दो हमें 

सुख संतोष का वर।। 

(चित्र गूगल से साभार)

श्री मनसा देवी की आरती || जय मनसा माता श्री जय मनसा माता || Shri Mansa Devi Ki Aarti || Jay Mansa Mata Shri Mansa Mata || Mansa Mata Aarti Lyrics in Hindi


पार्वती माता की आरती || जय पार्वती माता || Parvati Mata Ki Aarti || Jay Parvati Mata || Parvati Mata Ki Aarti || Aarti Lyrics in Hindi || Shiv Parvati Stuti

पार्वती माता की आरती || जय पार्वती माता || Parvati Mata Ki Aarti || Jay Parvati Mata || Parvati Mata Ki Aarti || Aarti Lyrics in Hindi || Shiv Parvati Stuti


जय पार्वती माता

जै जै पार्वती माता

ब्रह्म सनातन देवी

ब्रह्म सनातन देवी 

शुभ फल की दाता।। जय०


अरि कुल पद्म विनासिनि 

जय सेवक त्राता।

मैया जय सेवक त्राता। 

जग जीवन जगदम्‍बा 

जग जीवन जगदम्‍बा

हरिहर गुण गाता।। जय० 


सिंहक वाहन साजे

कुण्‍डल है साथा

मैया कुण्‍डल है साथा 

देवबन्‍धु जस गावत

देवबन्‍धु जस गावत

नृत्‍य करत ताथा।। जय० 


सतयुग रूप शील अति सुन्‍दर

नाम सती कहलाता

नाम सती कहलाता

हेमांचल घर जनमी

हेमांचल घर जनमी

सखियन संग राता।। जय०


शुंभ निशुम्‍भ विदारे 

हेमांचल स्‍थाता 

मैया हेमांचल स्‍थाता 

सहस्रभुज तनु ध‍रिके 

सहस्रभुज तनु ध‍रिके

चक्र लियो हाथा।। जय०


सृष्टि रूप तुही जननी

शिव संग रंगराता 

मैया शिव संग रंगराता

नन्‍दी भृंगी बीन लही है

नन्‍दी भृंगी बीन लही है

हाथन मदमाता।। जय० 


देवन अरज करत 

तव चित को लाता

मैया तव चित को लाता

गावत दे दे ताली 

गावत दे दे ताली

मन में रंगराता।। जय०


श्री प्रताप आरती मैया की 

जो कोई गाता 

मैया जो कोई गाता

सदा सुखी नित रहता 

सदा सुखी नित रहता 

सुख सम्‍पति पाता।। जय०


जय पार्वति माता 

जय जय पार्वति माता 

ब्रह्म सनातन देवी 

ब्रह्मसनातन देवी 

शुभ फल की दाता।।

जय पार्वती माता 

जय पार्वती माता 

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श्री पार्वती चालीसा || ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे || Brahma Bhed Na Tumro Pave || Shri Parvati Chalisa || Shri Parvati Stuti || Shri Parvati Aarti || Lyrics in Hindi ||


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श्री पार्वती चालीसा || ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे || Brahma Bhed Na Tumro Pave || Shri Parvati Chalisa || Shri Parvati Stuti || Shri Parvati Aarti || Lyrics in Hindi ||

श्री पार्वती चालीसा || ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे || Brahma Bhed Na Tumro Pave || Shri Parvati Chalisa || Shri Parvati Stuti || Shri Parvati Aarti || Lyrics in Hindi ||   

(चित्र गूगल से साभार)

 ।। दोहा ।।


जय गिरितनये दक्षजे शम्‍भुप्रिये गुणखानि। 

गणपति जननी पार्वती अम्बे शक्ति भवानि।।


।। चौपाई ।।


ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे 

पंचबदन नित तुमको ध्यावे। 

षड्मुख कहि न सकत यश तेरो 

सहसबदन श्रम करत घनेरो।।


तेऊ पार न पावत माता, 

स्थित रक्षालय हिय सजाता। 

अधर प्रवाल सदृश अरुणारे, 

अति कमनीय नयन कजरारे।। 


ललित ललाट विलेपित केशर 

कुंकुंम अक्षत शोभा मनहर। 

कनक बसन कंचुकी सजाए 

कटी मेखला दिव्य लहराए।। 


कंठ मंदार हार की शोभा 

जाहि देखि सहज मन लोभा। 

बालारुण अनंत छबि धारी 

आभूषण की शोभा प्यारी।। 


नाना रत्न जड़ित सिंहासन 

तापर राजति हरि चतुरानन। 

इन्द्रादिक परिवार पूजित 

जग मृग नाग यक्ष रव कूजित।। 


गिर कैलास निवासिनि जय जय 

कोटिक प्रभा विकासिनि जय जय।

त्रिभुवन सकल कुटुंब तिहारी 

अणु अणु महं तुम्‍हरी उजियारी।। 


हैं महेश प्राणेश तुम्हारे 

त्रिभुवन के जो नित रखवारे।

उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब 

सुकृत पुरातन उदित भए तब।। 


बूढ़ा बैल सवारी जिनकी 

महिमा का गावे कोउ तिनकी। 

सदा श्मशान बिहारी शंकर 

आभूषण हैं भुजंग भयंकर।। 


कण्ठ हलाहल को छबि छायी 

नीलकण्ठ की पदवी पायी। 

देव मगन के हित अस कीन्हो, 

विष लै आपु तिनहि अमि दीन्हो।। 


ताकी तुम पत्नी छवि धारिणी 

दुरित विदारिणी मंगल कारिणी। 

देखि परम सौंदर्य तिहारो 

त्रिभुवन चकित बनावन हारो।।


भयभीता सो माता गंगा 

लज्जा मय है सलिल तरंगा। 

सौत समान शम्भू पह आयी 

विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी।। 


तेहि कों कमल बदन मुरझायो 

लखी सत्वर शिव शीश चढ़ायो। 

नित्यानंद करी बरदायिनी 

अभय भक्त कर नित अनपायिनी।। 


अखिल पाप त्रयताप निकन्दिनी 

माहेश्वरी हिमालय नन्दिनी । 

काशी पुरी सदा मन भायी 

सिद्धपीठ तेहि आपु बनायी।। 


भगवति प्रतिदिन भिक्षा दात्री 

कृपा प्रमोद सनेह विधात्री। 

रिपुक्षय कारिणी जय जय अम्बे 

वाचा सिद्ध करि अवलम्बे।। 


गौरी उमा शंकरी काली 

अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली। 

सब जन की ईश्वरी भगवती 

पतिप्राणा परमेश्वरी सती।। 


तुमने कठिन तपस्या कीनी 

नारद सों जब शिक्षा लीनी। 

अन्न न नीर न वायु अहारा 

अस्थिमात्र तन भयउ तुम्हारा।। 


पत्र घास को खाद्य न भायउ 

उमा नाम तब तुमने पायउ।

तप बिलोकि ऋषि सात पधारे 

लगे डिगावन डिगी न हारे।।


तब तब जय जय जय उच्चारेउ 

सप्तऋषि निज गेह सिद्धारेउ

सुर विधि विष्णु पास तब आए

वर देने के वचन सुनाए।।


मांगे उमा वर पति तुम तिनसों 

चाहत जग त्रिभुवन निधि जिनसों। 

एवमस्तु कहि ते दोऊ गए 

सुफल मनोरथ तुमने लए।।

 

करि विवाह शिव सों भामा 

पुनः कहाई हर की बाना। 

जो पढ़िहै जन यह चालीसा

धन जन सुख देइहै तेहि ईसा।।


।। दोहा ।। 

कोटि चन्द्रिका सुभग सिर जयति जयति सुख खानि।

पार्वती निज भक्त हित, रहहु सदा वरदानि।।

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पार्वती माता की आरती || जय पार्वती माता || Parvati Mata Ki Aarti || Jay Parvati Mata || Parvati Mata Ki Aarti || Aarti Lyrics in Hindi || Shiv Parvati Stuti

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सोमवार, 29 नवंबर 2021

श्री काल भैरव अष्टक || Shri Kal Bhairav Astak || देवराजसेव्यमान || Devraj Sevyaman || Bhairavastaka || Kal Bhairav

 श्री काल भैरव अष्टक || Shri Kal Bhairav Astak || देवराजसेव्यमान || Devraj Sevyaman || Bhairavastaka || Kal Bhairav 


देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं 

व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्।

नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। १ ।।


भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं 

नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम्।

कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। २।।


शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं 

श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम्।

भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। ३ ।।


भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं 

भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम्।

विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। ४ ।।


धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशनं 

कर्मपाशमोचकं सुशर्मधायकं विभुम्।

स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। ५ ।।


रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं 

नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम्।

मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। ६ ।।


अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं 

दृष्टिपात्तनष्टपापजालमुग्रशासनम्।

अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। ७ ।।


भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं 

काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम्।

नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं 

काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ।। ८ ।।


।। फल श्रुति ।।


कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं 

ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम्।

शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं 

प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम्।।

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रविवार, 28 नवंबर 2021

श्री भैरव चालीसा || जय डमरूधर नयन विशाला || Jaya Damrudhar Nayan Vishala || Shri Bhairav Chalisa || Shri Bhairav Nath Kashi Vishwanath Varanasi

श्री भैरव चालीसा || जय डमरूधर नयन विशाला || Jaya Damrudhar Nayan Vishala ||  Shri Bhairav Chalisa || Shri Bhairav Nath Kashi Vishwanath Varanasi 

(चित्र गूगल से साभार)

।। दोहा ।।

श्री भैरव संकट हरन

मंगल करन कृपालु।

करहु दया निज दास पे

निशिदिन दीनदयालु।।


।। चौपाई ।।


जय डमरूधर नयन विशाला।

श्याम वर्ण वपु महा कराला।।


जय त्रिशूलधर जय डमरूधर।

काशी कोतवाल संकटहर।।


जय गिरिजासुत परमकृपाला।

संकटहरण हरहु भ्रमजाला।।


जयति बटुक भैरव भयहारी।

जयति काल भैरव बलधारी।।


अष्टरूप तुम्हरे सब गायें।

सकल एक ते एक सिवाये।।


शिवस्वरूप शिव के अनुगामी।

गणाधीश तुम सबके स्वामी।।


जटाजूट पर मुकुट सुहावै।

भालचन्द्र अति शोभा पावै।।


कटि करधनी घुँघरू बाजै।

दर्शन करत सकल भय भाजै।।


कर त्रिशूल डमरू अति सुन्दर।

मोरपंख को चंवर मनोहर।।


खप्पर खड्ग लिये बलवाना।

रूप चतुर्भुज नाथ बखाना।।


वाहन श्वान सदा सुखरासी।

तुम अनन्त प्रभु तुम अविनाशी।।


जय जय जय भैरव भय भंजन।

जय कृपालु भक्तन मनरंजन॥


नयन विशाल लाल अति भारी।

रक्तवर्ण तुम अहहु पुरारी।।


बं बं बं बोलत दिनराती।

शिव कहँ भजहु असुर आराती।।


एकरूप तुम शम्भु कहाये।

दूजे भैरव रूप बनाये।।


सेवक तुमहिं तुमहिं प्रभु स्वामी।

सब जग के तुम अन्तर्यामी।।


रक्तवर्ण वपु अहहि तुम्हारा।

श्यामवर्ण कहुं होई प्रचारा।।


श्वेतवर्ण पुनि कहा बखानी।

तीनि वर्ण तुम्हरे गुणखानी।।


तीनि नयन प्रभु परम सुहावहिं।

सुरनर मुनि सब ध्यान लगावहिं।।


व्याघ्र चर्मधर तुम जग स्वामी।

प्रेतनाथ तुम पूर्ण अकामी।।


चक्रनाथ नकुलेश प्रचण्डा।

निमिष दिगम्बर कीरति चण्डा।।


क्रोधवत्स भूतेश कालधर।

चक्रतुण्ड दशबाहु व्यालधर।।


अहहिं कोटि प्रभु नाम तुम्हारे।

जयत सदा मेटत दुःख भारे।।


चौंसठ योगिनी नाचहिं संगा।

क्रोधवान तुम अति रणरंगा।।


भूतनाथ तुम परम पुनीता।

तुम भविष्य तुम अहहू अतीता।।


वर्तमान तुम्हरो शुचि रूपा।

कालजयी तुम परम अनूपा।।


ऐलादी को संकट टार्यो।

साद भक्त को कारज सारयो।।


कालीपुत्र कहावहु नाथा।

तव चरणन नावहुं नित माथा।।


श्री क्रोधेश कृपा विस्तारहु।

दीन जानि मोहि पार उतारहु।।


भवसागर बूढत दिनराती।

होहु कृपालु दुष्ट आराती।।


सेवक जानि कृपा प्रभु कीजै।

मोहिं भगति अपनी अब दीजै।।


करहुँ सदा भैरव की सेवा।

तुम समान दूजो को देवा।।


अश्वनाथ तुम परम मनोहर।

दुष्टन कहँ प्रभु अहहु भयंकर।।


तम्हरो दास जहाँ जो होई।

ताकहँ संकट परै न कोई।।


हरहु नाथ तुम जन की पीरा।

तुम समान प्रभु को बलवीरा।।


सब अपराध क्षमा करि दीजै।

दीन जानि आपुन मोहिं कीजै।।


जो यह पाठ करे चालीसा।

तापै कृपा करहुँ जगदीशा।।


।। दोहा ।।

जय भैरव जय भूतपति

जय जय जय सुखकन्‍द।

करहु कृपा नित दास पे

देहुँ सदा आनन्द।।

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