मंगलवार, 9 नवंबर 2021

श्री शिव अष्टोत्तर शतनामावली || Shri Shiv Ashtottar Shatnamavali || Shiv Stuti || 108 Names of Lord Shiva

श्री शिव अष्टोत्तर शतनामावली || Shri Shiv Ashtottar Shatnamavali || Shiv Stuti || 108 Names of Lord Shiva







ॐ शिवाय नमः ।1।

ॐ महेश्वराय नमः ।

ॐ शंभवे नमः ।

ॐ पिनाकिने नमः ।

ॐ शशिशेखराय नमः ।


ॐ वामदेवाय नमः ।

ॐ विरूपाक्षाय नमः ।

ॐ कपर्दिने नमः ।

ॐ नीललोहिताय नमः ।

ॐ शंकराय नमः ।। १० ।।


ॐ शूलपाणये नमः ।

ॐ खट्वांगिने नमः ।

ॐ विष्णुवल्लभाय नमः ।

ॐ शिपिविष्टाय नमः ।

ॐ अंबिकानाथाय नमः ।


ॐ श्रीकंठाय नमः ।

ॐ भक्तवत्सलाय नमः ।

ॐ भवाय नमः ।

ॐ शर्वाय नमः ।

ॐ त्रिलोकेशाय नमः ।। २० ।।


ॐ शितिकंठाय नमः ।

ॐ शिवाप्रियाय नमः ।

ॐ उग्राय नमः ।

ॐ कपालिने नमः ।

ॐ कामारये नमः ।


ॐ अंधकासुरसूदनाय नमः ।

ॐ गंगाधराय नमः ।

ॐ ललाटाक्षाय नमः ।

ॐ कालकालाय नमः ।

ॐ कृपानिधये नमः ।। ३० ।।


ॐ भीमाय नमः ।

ॐ परशुहस्ताय नमः ।

ॐ मृगपाणये नमः ।

ॐ जटाधराय नमः ।

ॐ कैलासवासिने नमः ।


ॐ कवचिने नमः ।

ॐ कठोराय नमः ।

ॐ त्रिपुरांतकाय नमः ।

ॐ वृषकाय नमः ।

ॐ वृषभारूढाय नमः ।। ४० ।।


ॐ भस्‍मोद्धूलित विग्रहाय नमः ।

ॐ सामप्रियाय नमः ।

ॐ स्वरमयाय नमः ।

ॐ त्रयीमूर्तये नमः ।

ॐ अनीश्वराय नमः ।


ॐ सर्वज्ञाय नमः ।

ॐ परमात्मने नमः ।

ॐ सोमसूर्याग्निलोचनाय नमः ।

ॐ हविषे नमः ।

ॐ यज्ञमयाय नमः ।। ५० ।।


ॐ सोमाय नमः ।

ॐ पंचवक्त्राय नमः ।

ॐ सदाशिवाय नमः ।

ॐ विश्‍वेश्वराय नमः ।

ॐ वीरभद्राय नमः ।


ॐ गणनाथाय नमः ।

ॐ प्रजापतये नमः ।

ॐ हिरण्यरेतसे नमः ।

ॐ दुर्धर्षाय नमः ।

ॐ गिरीशाय नमः ।। ६० ।।


ॐ गिरिशाय नमः ।

ॐ अनघाय नमः ।

ॐ भुजंगभूषणाय नमः ।

ॐ भर्गाय नमः ।

ॐ गिरिधन्वने नमः ।


ॐ गिरिप्रियाय नमः ।

ॐ कृत्तिवाससे नमः ।

ॐ पुरारातये नमः ।

ॐ भगवते नमः ।

ॐ प्रमथाधिपाय नमः ।। ७० ।।


ॐ मृत्युंजयाय नमः ।

ॐ सूक्ष्मतनवे नमः ।

ॐ जगद्व्यापिने नमः ।

ॐ जगद्गुरवे नमः ।

ॐ व्‍योमकेशाय नमः ।


ॐ महासेनजनकाय नमः ।

ॐ चारुविक्रमाय नमः ।

ॐ रुद्राय नमः ।

ॐ भूतपतये नमः ।

ॐ स्थाणवे नमः ।। ८० ।।


ॐ अहिर्बुध्न्याय नमः ।

ॐ दिगंबराय नमः ।

ॐ अष्टमूर्तये नमः ।

ॐ अनेकात्मने नमः ।

ॐ सात्त्विकाय नमः ।


ॐ शुद्धविग्रहाय नमः ।

ॐ शाश्वताय नमः ।

ॐ खंडपरशवे नमः ।

ॐ अजाय नमः ।

ॐ पाशविमोचकाय नमः ।। ९० ।।


ॐ मृडाय नमः ।

ॐ पशुपतये नमः ।

ॐ देवाय नमः ।

ॐ महादेवाय नमः ।

ॐ अव्ययाय नमः ।


ॐ हरये नमः ।

ॐ पूषदंतभिदे नमः ।

ॐ अव्यग्राय नमः ।

ॐ दक्षाध्वरहराय नमः ।

ॐ हराय नमः ।। १०० ।।


ॐ भगनेत्रभिदे नमः ।

ॐ अव्यक्ताय नमः ।

ॐ सहस्राक्षाय नमः ।

ॐ सहस्रपदे नमः ।

ॐ अपवर्गप्रदाय नमः ।

ॐ अनंताय नमः ।

ॐ तारकाय नमः ।

ॐ परमेश्वराय नमः ।। १०८ ।।


।। इति श्री शिवाष्टॊत्तर शतनामावलि सम्‍पूर्णम ।।

(चित्र पिक्‍साबे.कॉम से साभार)

श्री काली चालीसा || Shri Kali Chalisa || Kali Chalisa Lyrics in Hindi Free Download || जयकाली कलिमलहरण || Jaya Kali Kalimalharan || Jay Kali Kalkatte Wali

 श्री काली चालीसा || Shri Kali Chalisa || Kali Chalisa Lyrics in Hindi Free Download || जयकाली कलिमलहरण || Jaya Kali Kalimalharan || Jay Kali Kalkatte Wali


॥दोहा ॥


जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार ।

महिष मर्दिनी कालिका , देहु अभय अपार ॥

।। चौपाई।।

अरि मद मान मिटावन हारी । 

मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥

अष्टभुजी सुखदायक माता । 

दुष्टदलन जग में विख्याता ॥

भाल विशाल मुकुट छविछाजै । 

कर में शीश शत्रु का साजै ॥

दूजे हाथ लिए मधु प्याला । 

हाथ तीसरे सोहत भाला ॥

चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे । 

छठे त्रिशूलशत्रु बल जांचे ॥

सप्तम करदमकत असि प्यारी । 

शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥

अष्टम कर भक्तन वर दाता । 

जग मनहरण रूप ये माता ॥

भक्तन में अनुरक्त भवानी । 

निशदिन रटेंॠषी-मुनि ज्ञानी ॥

महशक्ति अति प्रबल पुनीता । 

तू ही काली तू ही सीता ॥

पतित तारिणी हे जग पालक । 

कल्याणी पापीकुल घालक ॥

शेष सुरेश न पावत पारा । 

गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥

तुम समान दाता नहिं दूजा । 

विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥

रूप भयंकर जब तुम धारा । 

दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥

नाम अनेकन मात तुम्हारे । 

भक्तजनों के संकट टारे ॥

कलि के कष्ट कलेशन हरनी । 

भव भय मोचन मंगल करनी ॥

महिमा अगम वेद यश गावैं । 

नारद शारद पार न पावैं ॥

भू पर भार बढ्यौ जब भारी । 

तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥

आदि अनादि अभय वरदाता । 

विश्वविदित भव संकट त्राता ॥

कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा । 

उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥

ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा । 

काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥

कलुआ भैंरों संग तुम्हारे । 

अरि हित रूप भयानक धारे ॥

सेवक लांगुर रहत अगारी । 

चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥

त्रेता में रघुवर हित आई । 

दशकंधर की सैन नसाई ॥

खेला रण का खेल निराला । 

भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥

रौद्र रूप लखि दानव भागे । 

कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥

तब ऐसौ तामस चढ़ आयो । 

स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥

ये बालक लखि शंकर आए । 

राह रोक चरनन में धाए ॥

तब मुख जीभ निकर जो आई । 

यही रूप प्रचलित है माई ॥

बाढ्यो महिषासुर मद भारी । 

पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥

करूण पुकार सुनी भक्तन की । 

पीर मिटावन हित जन-जन की ॥

तब प्रगटी निज सैन समेता । 

नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥

शुंभ निशुंभ हने छन माहीं । 

तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥

मान मथनहारी खल दल के । 

सदा सहायक भक्त विकल के ॥

दीन विहीन करैं नित सेवा । 

पावैं मनवांछित फल मेवा ॥

संकट में जो सुमिरन करहीं । 

उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥

प्रेम सहित जो कीरतिगावैं । 

भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥

काली चालीसा जो पढ़हीं । 

स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥

दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा । 

केहि कारणमां कियौ विलम्बा ॥

करहु मातु भक्तन रखवाली । 

जयति जयति काली कंकाली ॥

सेवक दीन अनाथ अनारी। 

भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥


॥ दोहा ॥

प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ ।

तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ ॥

श्री मोहन ब्रह्म स्‍तुति||श्री मोहन ब्रह्म चालीसा||श्री मोहन ब्रह्म धाम बेलहरा मिर्जापुर || Mohan Brahm Dham Belahara Mirzapur Bhoot Pret Pishach Dakini Shakini Betal se mukti

श्री मोहन ब्रह्म स्‍तुति||श्री मोहन ब्रह्म चालीसा||श्री मोहन ब्रह्म धाम बेलहरा मिर्जापुर || Mohan Brahm Dham Belahara Mirzapur Bhoot Pret Pishach Dakini Shakini Betal se mukti  


ऐसा कहा जाता है कि जहॉं से विज्ञान की सीमाएं समाप्‍त होती हैं वहॉं से पराविज्ञान की सीमा प्रारम्‍भ होती है और यदि आपको इस तथ्‍य का प्रमाण देखना हो तो आपको इस पवित्र धाम पर जाना चाहिए। यह वह पवित्र स्‍थान है जहॉं पर श्री मोहन ब्रह्म साक्षात विराजमान हैं और जन-जन के प्रति अपना वात्‍सल्‍य निछावर कर उन्‍हें उनके कष्‍टों से मुक्‍त कर रहे हैं। हर तरह की ऊपरी बाधाओं से मुक्ति इस धाम में प्राप्‍त होती है। इस धाम में कोई ओझा अथवा वैद्य की आवश्‍यकता नहीं है वरन श्री मोहन ब्रह्म जी स्‍वयं साक्षात प्रकट होकर हर बाधा का निदान करते हैं। ज्‍यों गूंगो मीठे फल को रस अन्‍तरगत ही भावै अर्थात जिस प्रकार एक गूंगा व्‍यक्ति किसी अच्‍छे व्‍यंजन का बखान करने में असमर्थ होता है उसी प्रकार उनकी महिमा का बखान नहीं किया जा सकता केवल अनुभूति हो सकती है। जो भी व्‍यक्ति किसी भी भूत, प्रेत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस, डाकिनी, शाकिनी, बेताल, जिन्‍न जैसी समस्‍याओं से परेशान हो उसे एक बार अवश्‍य बाबा के दरबार में हाजिरी लगानी चाहिए। श्री मोहन ब्रह्म के दरबार में प्रत्‍येक नवरात्रि में मेला लगता है। किसी को कोई समस्‍या हो तो उसे नवरात्रि तक प्रतीक्षा करने की आवश्‍यकता नहीं है वह व्‍यक्ति किसी भी समय बाबा के दरबार में हाजिरी लगा सकता है। सोमवार को बाबा के दरबार में जाकर पूजा, आरती और हवन आदि का विशेष महत्‍व है। जो कोई किसी ऊपरी बाधा से पीडि़त है उसे 5 सोमवार बाबा के दरबार में हाजिरी लगवाने से सब संकट दूर होते हैं। यदि आप स्‍वयं नहीं आ सकते तो आप धाम के पुजारी जी से सम्‍पर्क कर अपनी समस्‍या बताकर निदान प्राप्‍त कर सकते हैं। 


मिर्जापुर रेलवे स्‍टेशन अथवा बस स्‍टैशन से लगभग 16 किमी की दूरी पर स्थित है श्री मोहन ब्रह्म का पवित्र और पावन धाम। पूरा पता है श्री मोहन ब्रह्म धाम, ग्राम व पो०- बलहरा, जिला- मीरजापुर-231001। मिर्जापुर रेलवे स्‍टेशन देश के लगभग हर भाग से रेलवे नेटवर्क से जुड़ा हुआ है। मिर्जापुर प्रयागराज और वाराणसी के मध्‍य में स्थित है और प्रयागराज तथा वाराणसी तक की हवाई सेवाऍं भी उपलब्‍ध हैं। मिर्जापुर पहुँचकर किसी से भी पूँछने पर वह श्री मोहन ब्रह्म धाम का रास्‍ता बता देता है और हर तरह के वाहन भी उपलब्‍ध होते हैं। जो व्‍यक्ति पहुँच नहीं सकते वे अपने घर से ही प्रत्‍येक दिन प्रात:काल स्‍नानादि से निवृत्‍त होकर श्री मोहन ब्रह्म का मन में ध्‍यान करके उनकी चालीसा का पाठ करके आरती करे तो निश्चित ही उसे लाभ होता है। कहा जाता है कि प्रत्‍यक्षं किं प्रमाणम् अर्थात प्रत्‍यक्ष को प्रमाण की आवश्‍यकता नहीं होती है। सोइ जानइ जेहि देहु जनाई अथात उसे वहीं जान सकता है जिसे वह जनवाना चाहता है। इसे जो जानता है वही मानता है। जिस पर पड़ती है वही जान भी पाता है। एक बार बाबा के दरबार में हाजिरी अवश्‍य लगायें। बोलो श्री मोहन ब्रह्म महाराज की जय। श्री मोहन ब्रह्म बाबा स‍बका कल्‍याण करें। जय हो महाराज की 

  


।। श्री हरि ॐ।।
अथ श्री मोहन ब्रह्म स्तुति प्रारम्भ
मंगलाचरणम्

ॐ सहस्त्र शीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्त्रपात्। 

सभूमिगुंसर्वतः त्वात्यतिष्ठद् स्पृवात्यतिष्ठ दशांगुलम् ॥

।। मंगलाचरणम् ।। 
हरिओम्

आस्ते श्री चरणैकदेशविमले तन्नामनामांकिते 

ग्रामे श्री महिदेवराज हरषू श्री ब्रह्मदेवोऽधुना। 

हत्वा चैनपुराधिप सतनयं दत्वाभयं भू सुरान् 

सर्वाभोष्टद् श्री जगत्पतिरिव तस्मै नमो ब्राह्मणे।।

यदेवासुर किन्नरोरगणाः प्रेता पिचाशादयः 

ध्यायन्ते च सुरस्त्रियो हृाहरहः गायन्ति नृत्यन्ति।।

च भूपाला मनुजाखिला महिसुरास्वस्यधिकाराय वै

यस्मिन्न ब्रह्मबलिं वपन्ति पारितः तस्मै नमो ब्राह्मणे।।


दोहा

बन्दौ गणपति के चरण, तो जग में परसिद्ध ।

जेहि के सुमिरन ते मिलत, अष्टसिद्धि नवनिद्धि।।

श्री गुरु चरणहि सुमिर के सुमिरौ मोहन ब्रह्म।

कृपा करहुँ मम ऊपर, तेरो ध्यानावलम्ब।।


चौपाई

ग्राम बलहरा ऊँच निवासा। 

तह भऐ मोहन ब्रह्म प्रकाशा।।

जा दिन सोमवार चलि आवै। 

नर नारी सब दर्श जावै।। 

जब पहरि के ऊपर जाहीं। 

देखि फरहरा मन हरषाहीं।। 

करै फरहरै दण्ड प्रनामा।

करहु नाथ मम पूरन कामा।।


दोहा

आश्रम निकटहि जाइके, 

तब सब नावहि माथ। 

पुनि तड़ाग मह जाइके, 

धोवहि पग अरू हाथ।।


चौपाई

तब सब बैठे आश्रम माहीं। 

मोहन मोहन जप मन माहीं।। 

जो मोहन को ध्यान लगावै। 

त्रिविध ताप नहि ताहि सतावै।।

भूत पिशाच सतावहि जाहीं। 

मोहन नाम लेत भग जाहीं।।

जो कोई भूत रहा अरूझाई। 

दूत मोहन के पहुंचे जाई।। 

हरसू ब्रह्म के कुण्ड मझारा। 

भूत पिशाच को धइ जारा।। 

हरसू ब्रह्मकृपा जब कीनो। 

मोहन के जमादारी दीनो।।

मोहन संग जो बैरी बढ़ावा। 

कुल परिवार नाश करि पावा।।

मोहन दर्श को यह फल भाई। 

अधमई तो गति होई जाई।।

सुनि आश्चर्य न माने कोई। 

दर्श प्रभाव सुलभ सो होई।।

मोहन ब्रह्म को तेज प्रकाशा। 

जिमि शशि निर्मल सोह अकाशा।।


सोरठा

मोहन ब्रह्म धरि ध्यान,

 जो नर मन वच कपट तजि। 

तेहि के सब मन काम, 

सफल करेंगे ब्रह्म जी।। 


चौपाई

जय जय श्री मोहन स्वामी। 

तुम्हरो चरण सरोज नमामी।। 

जय द्विज के सुख देने काजा। 

धरेउ रूप ब्रह्म महराजा।।

रूप विशाल दुष्ट भयहारी। 

संतन के सुख देने कारी।। 


दोहा 

मोहन ब्रह्म के चरण पर, 

जो नर अति लवलीन। 

तेहि के ऊपर कृपा करि,

ब्रह्म रहै सुखदीन।। 


चौपाई

दूबे वंश तव अवतारा। 

नाम तुम्हारा जनन के तारा।।

एक समय निज कुल पर कोपे। 

बैठे चैन पुरा प्रण रोपे।।

बीत गये षट मास सुहाई। 

तब सब दूबे गये अकुलाई।।

तब सब मन विचार करि कीन्हा। 

कँवरिन में गंगाजल लीन्हा।।

गये जहाँ हरसू द्विज राजा। 

करि प्रणाम बोले निज काजा।।

जबते मोहन इति चलि आयो। 

तब से देश दुखित भए पायो।। 

पुरवासी सब भयऊ निराशा। 

छोड़न चहत सकल निज वासा।। 

ताते हरसू ब्रह्म कृपाला। 

देहु भेजि मनमोहन लाला।।


दोहा

सुनि विनती जिन जनन के, 

हरसू अति हरषाय।। 

कहेउ बहोरि मोहन सो, 

इनकी करहु सहाय।। 


चौपाई

तब मोहन निज आश्रम आये। 

राम अवतार के स्वप्न दिखाये।।

कहेउ करहु तुम मम सेवकाई। 

सुयश तुम्हार रहे जग छाई।। 

राम अवतार सुने तब बानी। 

उठे तुरत पुनि होत बिहानी।।

ब्रह्मभक्ति उपजी मनमाही। 

मन क्रम वचन आन कछु नाहीं।।


दोहा

लगे करन द्विज सेवा, 

बहु प्रकार मन लाइ।। 

ब्रह्म कृपा ते उनकर 

सुयश रहा जग छाइ।। 


चौपाई

बरणौ यहि स्थान कर शोभा। 

जो विलोकि सब कर मन लोभा।। 

बाग सुभग सुन्दर छवि छाई। 

नाना भांति सुलभ सुखदाई।।

चौरा के पश्चिम दिशि भाई। 

भंडारा गृह सुभग सुहाई।।

दक्षिण दिशि तड़ाग अति सुन्दर। 

जेहिं मह मज्जन करहि नारीनर।।

मज्जन किए पाप छुट जाहीं। 

सुन्दर सुख पावत नर नारी।।

कहाँ तक करौ तड़ाग बड़ाई। 

बनरत रसना जात सिराई।। 

सोन फरहरा सुभग सुहाये। 

सीताराम सोनार बनाये।। 

तेहि के ब्रह्म कार्य सब कीन्हा। 

सुन्दर सुभग पुत्र दै दीन्हा।।


दोहा

ऐसे ब्रह्म दयाल है, 

कारण रहित कृपाल। 

द्विज सुरेश के ऊपर, 

दीजै भक्ति विशाल।। 


चौपाई

जो परलोक चहौ सुख भाई। 

भजहुं ब्रह्म सब काम विहाई।। 

सुलभ सुखद मारग सुखदाई। 

मोहन ब्रह्म के भक्ति सुहाई।। 

जो कोई ओझा बैद्य बुलावे। 

सो नर ब्रह्म के मन नहि भावै।।

ब्राह्मण साधु जो कोई माने। 

ताके ब्रह्म प्राण सम जाने।। 

सुनु ममबचन सत्य यह भाई। 

हरितोषण व्रत द्विज सेवकाई।। 

इन्द्र कुलिशशिव शूल विशाला। 

कालदण्ड हरिचक्र कराला।। 

जो इनकर मारा नहीं मरही। 

विप्र द्रोह पावक सो जरहीं।।


दोहा

अस विचार जिय जानिके,

 भजहुँ ब्रह्म मनलाइ।। 

जेहिते पावहि इहां सुख, 

उहऊ जन्म बन जाई।।


चौपाई

सोन खराऊ पर प्रभु चलहीं। 

हाथे लिये सुमिरिनी रहहीं।। 

राम राम नित सुमिरत रहही। 

हरसू ब्रह्म के आज्ञा करही।।

कृपा दास पर नित प्रभु करही। 

तेहिके भक्ति सकल दुख हरही।।

तुम्हरे चरण शरण दास के। 

जाउ कहां तजि चरन ताथ के।।


दोहा 

द्विज सुरेश के ऊपर, 

देहु भक्ति वरदान। 

उभय लोक सुख पावहीं, 

होइ सदा कल्यान।। 


चौपाई

आरत हरण नाव तव माथा। 

दासन के प्रभु करिही सनाथा।।

जे तव आश्रम आय न सकहीं। 

घरहीं में सुमिरन तब करही।। 

ताहू कर तुम करत गुहारी। 

ऐसे नाथ सकल हितकारी।। 

ज्ञान शिरोमणि नाथ कहावा। 

तव यश विमल दास बहु गावा।। 

मोहन नाम जगत विख्याता। 

भजहि तुमहि सब सज्जन ज्ञाता।।


दोहा

नाथ तुमहि जे नर भजहि 

तजि ममता अभिमान। 

तेहि के ऊपर कृपा करि 

देत सकल मनकाम।।

यह स्तुति जो गाईहैं 

प्रेम सहित मन लाय, 

सकल सलभ सो पाइहैं 

मोहन करै सहाय।। 

शोभा बरणौं ब्रह्म की 

जैसी है मति मोर। 

बल बुद्धि विद्या दीजिए, 

कृपा अनुग्रह तोर।। 


कवित्त

मोहन ब्रह्म की तेज बढ़ै जब 

ब्राह्मण के तुम रक्षा करैया। 

दुष्टन मारि विध्वंश कियो तब 

संतन के सुख देत बढ़ैया।।


जे तव नाम जपे निशिवासर 

तापर हो तुम वास करैया। 

ऐसा तेज बढ़े महराज को 

हरसू ब्रह्म संग-वास करैया।। 


स्थान को तेज कहां तक भाखहु 

यात्रिन के दुख लेत करैया। 

जो कोई जाई शरण पहुंचे तव 

ताकर तुम सब गाढ़ कटैया।। 


द्वजि सुरेश के दास करो प्रभु 

तुम्हे चरण के सुयश गवैया।

कांधे जनेऊ सुभग अति सुन्दर 

देखत के मन लेत चुरैया।।


चन्दन माथे झकाझक भाल के 

देखि वर्णि न जाहि अपारी। 

पहिरे अति सुन्दर धोतीकटी 

जेहि में है लगी सुभगीही किनारी।। 


देखत रूप सब मनमोहत 

बालक वृद्ध युवा नर नारी। 

होत अनन्दित प्रेम पगे 

सब नावहि माथ सो बारहि बारी।।


मोहन ब्रह्म को तेज बढ़े, 

जब ते हरसू जमादार करैया।

भूत व प्रेत पिशाच सबै, 

अरू डाकिन शकिन देत जरैया।। 


जो नर ब्रह्मसे से बैर करै 

तेहि के परिवार के नाश करैया।। 

जो प्रभु के शरणागत आयहु 

ताहि सबै विधि देत बढ़ैया।। 


गगन घहराने जैसे जैसे बाजे निशाने, 

झरि लागे द्वारे हरसू द्विजराज के।

हरसू द्विजराज महराज जमादार कियो मोहन, 

महाराज जू के प्रेतन को बांधि बांधि कुण्ड बीच जारे हैं।। 


कालू महाराज जू कालहू को दण्ड करैं, 

मोहन महाराज शोक मोह हर लेत हैं।

 

मोहन महाराज कुलपालियै को ब्रह्म भयो

कालू महाराज जे ऐसे सुख देइ हैं। 


मोहन महाराज ऐसे देवादानी भए,

भक्तन के रक्षा करें, दुष्टन के मान मथै। 


ऐसे महाराज जी को धूप करौ दीप करौ  

ब्रह्म जी को ध्यान करौं, 

सकल कलेश नाश करि देत हैं।  


अंधन को प्रभु आंख दियो तुम 

पंगुन को जोरे गाई दियो, 


बाझन के पुत्र दियो तुम 

संतन के दुख हरण कियो है। 


बार-बार दास जु पुकार महाराज जू को 

मेरी अरजी सुनि के तुम देरी काहे लाये हो 


किधौ महाराज गयो बाबा के दरबार के ब्रह्मलोक सिधायों हैं

कि महाराज गयो गिरिनाल कि भूलि परै मथुरा नगरी 


कपटिन्ह को तुम दण्ड दियो हैं, 

गरीबन को दुख हरण कियो हैं । 


द्विजराज पुकार करै विनती, 

महाराज विलंब कहां करते हो । 


एक समय परिवार विरूद्ध की 

मोहन कोप कियो मनमाही । 


जाय बसे तब चैनपुरा जह 

ब्रह्म सभा शुभ आश्रम जानी। 


बीति गये षट्मास जबै तब 

नग्र के लोग सबै अकुलाने, 


लै गंगा जल गये हरसू गृह 

बोलत आरत सुन्दर बानी 


मोहन ब्रह्म को सुन्दर रूप 

स्वरूप देखि सबै मन भाये। 


ब्रह्मा विष्णु महेश सबै 

वर दे के मृत्युलोक पठायों 


तेज प्रताप बढ्यों तुम्हरों तब 

देश के लोग महासुख पायो ।


हरसू द्विजराज बड़े महाराज जू 

ब्राह्मण के सदेह छोड़ायों 


भूत पिशाच रहयो जितने 

बांधि के कुण्ड के बीच जलायो । 


मोहन महाराज जू को ब्राह्मण 

दुलरूवा है कोई लाख कहै ताहि 


ब्राह्मण के बीच में पापी जो 

दुष्ट जो किनारे चौरा के मोहन 
महराज जू को पुण्य से पताका फहराता है


श्री अजगर नाथ कृतं आवाहन छन्द

हरसु ब्रह्म सुसंगमे सुनिपुणो ये ते समा भास्यताम् 

दीपौ चातक श्री पतिर्वदवले नोखा तथा कोडिराम् ।। 

गिरि नाले शुभ तीर्थ के द्विज वरो दामोदरो ब्राह्मणः । 

एवं ब्रह्म सुसंगमे सुनिपुणों गदाधरों वाहनः।।

सीताराम गदा धरो कन्हैया कोड़ी तथा श्रीपतिः। 

यादो राम मधूधरा च रमई लक्षू सदामोदरः।। 

कालू श्री परमेश्वरो नरहरिः रामेश्वरः श्रीमुखः। 

भोला ब्रह्म बसावनो रघुवरा पुरूषोत्तमो माधवः।। 

परमानन्द फकीरमणि कजई गंगधरों मोहनः। 

मनसा रामहुलासपुष्करदुलं श्रीशंकरोमापतिः।। 

शिवनारायण श्री गरीब खड़गू विश्वम्भर श्रीफलो। 

दत्त ब्रह्म कलन्दरो विजयते आगच्छमां पातुवै।। 

श्रीमद्रामनेवाज शोभित खुदी जै कृष्ण जीउत वै। 

दीनानाथ गुलाब बधन हिडगू शिवनाथ गोवर्धन।।

तुलसीराम विष्णुदयाल दिपई श्री कालिका बेचनः।

हृषिकेशकुमार त्रिभुवन दयूनाथो मिठाई पुनः।। 

श्री गिरिधर शिव दीन बंधु विजई मुकुन्द श्री पर्शनः। 

श्री मद्ब्रह्म किशोर मून्य कंधई दुर्गादयालोडपर।

गोपीनाथ सुषेन बाल कमलौ शरनाम हरनाम को।  

फेकू भूषणा शूरसेन बसतो रामो गोपालो रघू।। 

अन्ये भूमि सुराधिपा महितले ये धात पातादिभिः। 

कालेन निधनं गता विधिवशाः स्थाने स्थिता भूतले।। 

भूदेवारि विनाशनोद्यत सदा सस्भारितों यैर्यदा। 

तेभ्यः सर्वसुखं बलं प्रतिदिनं प्रायच्छ मां पातुर्वे।। 

||इति श्री अजगर नाथ कृतं आवाहन छन्द||


उत्तम के गृह जन्म लियो अरू 

उत्तम नाम धरा है तुम्हारे 

प्रथम पयान चैनपुर कीन्हों 

हरसू दरबार पहुँचे जाई, 

गाढ़ परे तब ध्यान धरा 

अब मोन भयो बोलते कछु नाहीं।

हरसू द्विजराज बड़े महराज 

बड़े धार भी जहाँ न्याय के पुंज 

राजा विध्वंस कियो शालिवाहन 

गढ़ तोरह के खधम पठायो। 

आई के तुरत चौरा बन्धवो तब 

नौदिशि बाग लगि अमराई। 

दक्षिण सागर नीर भरो जब 

सुबरन की ध्वजा फहराई 

पूरब ग्राम गरीब बसत हौ 

का वरणौ चौरा छवि छाई । 

जैसे समुद्र बहे चहु ओर 

हहाई के उठत है लहरा । 

सोइ प्रताप बढ़े तब मोहन 

कथित राजग्राम बलहरा।।


दोहा

उनअइस सौ पैसठ सुभे 

विक्रम शब्द प्रणाम । 

माघे सुभे सीतपक्ष अरू, 

नौमी तिथि जग जान ।। 

राम अवतार द्विजबर विभो 

ब्रह्म भगवती सनमान।।

मोहन हरसू भजतही 

सुरपुर कीन्ह पयान । 

ब्रह्म सुसेवा करन को 

उर अन्दर अभिलाष । 

बेनीमाधो सिंह को 

हरषू पद मन लाग । 

भुवन तपस्या भर रही

ब्रत दन नवम महान । 

हरसू द्विज तब गवन किये 

मास खटहि परमान ।


चौपाई

नौरातर जब आई तुलाना। 

जुड़े सकल द्विनाथ महाना। 

हर नारायण पंडित ज्ञानी, 

ब्रह्म चरण सेवत मनमानी।

कीन उपाय विविधविधि नाना, 

स्तुति कर मन ध्यान महाना। 

प्रगटे नहि ब्रह्मसु बरासी, 

नौमी तिथि मधुमास सुपासी।  

हर नारायण कर रख बड़ायो। 

मोहन उर हौ क्रोध तब छायो। 

फरकत अधर कोप मन माहीं, 

प्रकटी माधो तन परिछाही। 

हवन होत ज्वाला प्रगटानी। 

तापर तन धरि दीन सुजानी। 

बाला प्रबल अग लपटानी। 

गूढ़समुत्त रोमन सरसानी। 

जरी न रोम एक तुन बाक्यो। 

ब्रह्म प्रभाव प्रगट सब ताक्‍यो। 

बड़े भाग्य मानुष तन पावा। 

सुर दुर्लभ सद्ग्रन्थ न गावा।।

साधन धाम मोक्ष कर द्वारा। 

पाई न जेहि परलोक सवारा।। 

यहि तनु कर फल विषम न भाई, 

स्वर्गह स्वल्प अन्त दुखदाई।।

नर तन पाई विषय मन देही, 

पलटि सुधा ते सठ विष लेही।।


दोहा 

कालू मोहन ब्रह्म भयो, 

दोऊ तेज प्रचंड। 

हरसू द्विज आज्ञा दिया, 

लेहू दण्ड नव खण्ड।।


प्रबल प्रचंड तेज डबत सुरेश शेष जबही सैन्य साजि चल्यो

द्विजराजू भूत और पिशाच दुष्ट दानव अनेक वाम्हो दुष्ट ब्रह्म

की जय। दूसरी बार मोहन ब्रह्म की जय।।

मोर मनोरथ जो पुरबो प्रभू सत्य कहौ करि तोरि दुहाई। 

विप्रन बन्द जेबाई भली विधि, दासन को दुख द्वन्द्व मिटाई

है द्विजराज मेरे सब काज की पूरण आज करो अतुराई 

ठाढ़ पुकारत हौ कबसे प्रभूजी हमरी सुधि क्यों बिसराई । 

तुम दानी बड़े हम दीन महा हमरी तुम्हरी अबतौ सरिहैजू । 

कितनाम की लाज करौ अबही न होइ है इसी हमका फरिहैजू 

टूक कोर से देखो अधिनहु को पद पंकज शीश हिए धरिहैजू 

प्रभूजी हरिय हमरी विपदा तुम्हरे बिन कौन कृपा करहैजू । 


सभी ससायन हम करी, 

नहि नाम सम कोय । 

रचक घर में संवरे, 

सब तन कच्चक होय।। 

जब जी नाम हृदय धरयो, 

भयो पाप को नाश ।

मानो चिनगी अग्नि की, 

परी पुरानी घास।। 

जागत से सोवन भला, 

जो कोई जाने सोय। 

अस्तर जब लागी रहैस, 

सहजे सुमिरन होय।। 

लेने को हरिनाम है, 

देने को अन्न दान। 

तरने की अधीनता, 

डूबन को अभिमान।। 


कबिरा सब जग निर्धना धनवन्ता नहि कोय। 

धनवन्ता सोई जानिये, जाहि राम नाम धन होय।। 

सुख के माथे सिल पड़ी जो मम हृदय से जाय । 

बलिहारी वा दुख की, जो पल पल नाम जपाय ।। 

सुमिरन की सुख योकरो, ज्यों सुरभों सुत माही ।

कह कबीर चारे चरठ विसरत कबहु नाहिं ।। 

सुमरनसी मन लाइयो, जैसे कीड़ा भृंग । 

कबिर बिसारे आपको, हीय जाय तिहि रंग ।। 

सुमिरन सुरत लगाई, मुख ते कुछ न बोल । 

बाहर की पट देखकर, अन्तर के पट खोल।। 

मन फुरनां से रिहितकर, ज़ाही विधि से होय । 

चहै भगति ध्यान कर, चहै ज्ञान से खोय ।। 

केशव केशव कूकिये, ना सोइय असार । 

रात दिवस के कूकते, कबहुँ सुने पुकार ।। 

काज कहै मै कल भभू काल कहैं फिर काला ।

आज काल के करत हों, अवसर जासो चाला।। 

काल भजन्ता आज भज, आज भजन्ता अब्य । 

पल में परलय होयगी, फेर करोगे कब्य ।। 

इस औसर केता नहीं, पशु च्यो पाली देह। 

राम नाम जाना नहीं, पाला सकल कुटुम्ब । 

पांच पहर धंधे गया, तीन पहर रहा सोय। 

एक पहर हरि न जपा, मुक्ति कहा से होय ।।

धूमधाम में दिन गया, सोचत हो गयि साँझ 

एक घरी हरि ना भज्या, जननी जनि भई बाँझ।

कबिरा यह तान जात है, सकै तो ठौर लगाय ।

कै सेवा कर साधु की, कै गोविंद गुन गा।।


श्री मोहन ब्रह्म महाराज की आरती || Shri Mohan Brahm Ki Aarti

आरती कीजै ब्रह्म लला की। 

दुष्ट दलन श्री ब्रह्म लला की।। 

जाके बल से निश्चर कापै। 

भूत प्रेत जाके निकट न झांके।। 

हरषु भक्त महाबलदाई। 

भक्तन के प्रभु सदा सहाई।।

आज्ञा दे जब हरषु पठाये। 

मोहन ब्रह्म बलहरा आये।। 

बाग सुभग सुन्दर छवि छाई। 

नाना भाँति सुलभ सुखदाई।। 

प्रेत पिशाच असुर संहारे। 

हरषु ब्रह्म के काज सवारे।। 

आश्रम पैठि भक्त दुःख हारे। 

प्रेत पिशाच कुण्ड महि जारे।। 

बांये भुजा असुर दल मारे। 

दाहिने भुजा संत जन तारे।। 

सुर नर मुनि आरती उतारे। 

जय जय मोहन ब्रह्म उचारे।।

कंचन थाल कपूर लै छाई। 

आरत करत भक्त जन भाई।। 

जो मोहन की आरती गावै। 

बसि बैकुण्ठ परम पद पावै।। 


सुमरन से मन लाइये, जैसे दीप पतंग। 

प्राण तजे छिनएक में, जरत चिता पर अंग।।


चिंता तो हरि नाम की और न चितवै दास। 

जो कुछ चितवै राम बिनु, सोई काल की पास।।


कबिरा हरि के नाम में बात चलावै और। 

तिस अपराधी सिद्ध को, तीन लोक कित ठौर।। 


राम नाम को सुमरनते, उबरे पतित अनेक। 

कह कबीर नहीं छोड़िये राम नाम की टेक।।


श्री मोहन ब्रह्म निवास करें जहँ, 

नीम की छाँव घनी अमराई। 

साँझ सकारे दुआरे बजै नित नौबत, 

धाम ध्वजा फहराई।। 

मोर मिलिन्द सरोज-सरोवर, 

पुष्प शकुन्तन से छवि छाई। 

राव कि रंक, जो माथ नवाइ, 

करै विनती दुःख जाई नसाई।।


दोहा

जै जै मोहन ब्रह्म की, 

सकल प्रेत-सिरताज। 

मम अनाथ के नाथ प्रभु, 

पूरण कीजै काज।

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चालीसा पुस्‍तक प्राप्‍त करने हेतु श्रीमोहन ब्रह्म धाम के पुजारी जी से सम्‍पर्क किया जा सकता है। आप जब भी श्रीमोहन ब्रह्म धाम में दर्शन करने जावें तो पुजारी जी से आशीर्वाद एवं चालीसा पुस्‍तक लेना न भूलें। पुजारी जी से निम्‍न पते पर सम्‍पर्क किया जा सकता है 

पं० आशीष दूबे (पुजारी) {स्व० पं० रामनारायण दूबे}, ग्राम व पो०- बलहरा, जिला- मीरजापुर-231001


यह चालीसा हमें श्री मोहन ब्रह्म महाराज की भक्‍त श्रीमती ज्‍योति अंकित शुक्‍ला,  प्रयागराज (उ०प्र०) द्वारा जनकल्‍याणार्थ उपलब्‍ध करायी गयी है, हम उनके प्रति हृदय से आभार व्‍यक्‍त करते हैं। 

रविवार, 7 नवंबर 2021

दुर्गा स्तोत्र || Shri Durga Stotra || Durga Stotra Sanskrit / Hindi Lyrics || Devi Stotra for a prosperous life || जय भगवति देवि || Jaya Bhagawati Devi

दुर्गा स्तोत्र || Shri Durga Stotra || Durga Stotra Sanskrit / Hindi Lyrics || Devi Stotra for a prosperous life || जय भगवति देवि || Jaya Bhagawati Devi


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जय भगवति देवि नमो वरदे 

जय पापविनाशिनि बहुफलदे।

जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे 

प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥१॥

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जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे 

जय पावकभूषितवक्त्रवरे।

जय भैरवदेहनिलीनपरे 

जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥२॥

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जय महिषविमर्दिनि शूलकरे 

जय लोकसमस्तकपापहरे।

जय देवि पितामहविष्णुनते 

जय भास्करशक्रशिरोवनते॥३॥

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जय षण्मुखसायुधईशनुते 

जय सागरगामिनि शम्भुनुते।

जय दु:खदरिद्रविनाशकरे 

जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥४॥

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जय देवि समस्तशरीरधरे 

जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे।

जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे 

जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥५॥

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एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:।

गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥६॥

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