शनिवार, 6 नवंबर 2021

श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र || Shri Shiv Panchakshar Stotra || Shiv Stotra || Nagendraharaya Trilochanayay Lyrics in Hindi Sanskrit || नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय

श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र || Shri Shiv Panchakshar Stotra || Shiv Stotra || Nagendraharaya Trilochanayay Lyrics in Hindi Sanskrit || नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय

श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्रम् – पाठ, अर्थ, महत्व और लाभ
**
परिचय
**
हिन्दू धर्म में भगवान शिव को भोलेनाथ, महादेव, शंकर, नीलकंठ, रूद्र आदि अनेक नामों से पूजा जाता है। शिव जी को त्रिदेवों में संहारक कहा गया है लेकिन वे सृष्टि के पालनहार और अनंत करुणा के स्रोत भी हैं। आदि शंकराचार्य जी द्वारा रचित शिव पंचाक्षर स्तोत्रम् एक अत्यंत पवित्र स्तोत्र है जिसमें “ॐ नमः शिवाय” मंत्र के पाँच अक्षरों (न, म, शि, व, य) का महत्व वर्णित है। इस स्तोत्र का पाठ करने से मन शुद्ध होता है, पाप नष्ट होते हैं, भक्ति और ज्ञान की प्राप्ति होती है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम इस स्तोत्र के श्लोक, अर्थ, लाभ, वैज्ञानिक दृष्टि और सामान्य प्रश्नों पर चर्चा करेंगे।
**
श्लोकवार भावार्थ 
**
1. नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय... : शिव जी नाग (सर्प) का हार धारण करते हैं, उनके तीन नेत्र हैं, वे भस्म से अंगों को सजाते हैं और सदैव शुद्ध, दिगम्बर स्वरूप में रहते हैं। इसलिए “न” अक्षर शिव को समर्पित है।
**
2. मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय... : शिव जी गंगाजल और चंदन से पूजित हैं, नन्दी और भूतगण उनके सेवक हैं, तथा वे दिव्य पुष्पों से सुशोभित होते हैं। इसलिए “म” अक्षर शिव को समर्पित है।
**
3. शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द... : शिव जी माता गौरी के मुखकमल के सूर्य हैं, वे दक्षयज्ञ के विनाशक हैं, नीलकंठ और वृषभ ध्वजधारी हैं। इसलिए “शि” अक्षर शिव को अर्पित है।
**
4. वशिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य... :  जो मुनियों और देवताओं द्वारा पूजित हैं, जिनकी आँखें सूर्य, चन्द्र और अग्नि हैं, वे जगत के शिखर हैं। इसलिए “व” अक्षर शिव को समर्पित है।
**
5. यक्षस्वरूपाय जटाधराय... : जो यक्षस्वरूप धारण करते हैं, जिनकी जटाओं से गंगा प्रवाहित होती है, जो पिनाक धनुष धारण करते हैं, वे अनादि और सनातन हैं। इसलिए “य” अक्षर शिव को अर्पित है।
**
6. फलश्रुति : जो भक्त शिव जी के सम्मुख इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह शिवलोक की प्राप्ति करता है और शिव के साथ आनंद में निवास करता है।
***
शिव पंचाक्षर स्तोत्र पाठ के लाभ
**
मन शुद्धि और पाप नाश – पुराने पाप मिटते हैं और मन निर्मल होता है।
घर में मंगल और शांति – परिवार में शांति और सौहार्द स्थापित होता है।
आरोग्य और रोगमुक्ति – रोग-दुःख दूर होते हैं।
ज्ञान और भक्ति – अध्यात्मिक उन्नति और बुद्धि-विवेक में वृद्धि होती है।
शिव कृपा की प्राप्ति – जीवन में सफलता और शिव जी की विशेष कृपा मिलती है।
मोक्ष की प्राप्ति – अंततः शिवलोक और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
**
शिव पंचाक्षर स्तोत्र : वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि
**
“ॐ नमः शिवाय” मंत्र के पाँच अक्षर (न, म, शि, व, य) मानव शरीर के पाँच तत्वों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश – का प्रतीक हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से शरीर और मस्तिष्क में ध्वनि कंपन (vibrations) फैलते हैं जो तनाव और चिंता को दूर करते हैं। नियमित पाठ से सकारात्मक ऊर्जा, मानसिक शांति और आत्मबल प्राप्त होता है।
**
शिव पंचाक्षर स्तोत्रम् केवल एक प्रार्थना नहीं बल्कि एक दिव्य साधना है। इसमें ॐ नमः शिवाय मंत्र के पाँच अक्षरों का गहन महत्व छिपा है। इसका पाठ करने से पापों का नाश, रोगमुक्ति, घर में शांति, ज्ञान की प्राप्ति और अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है। आदि शंकराचार्य जी द्वारा रचित यह स्तोत्र हर शिवभक्त को जीवन में अवश्य अपनाना चाहिए।
**
शिव पंचाक्षर स्तोत्र से जुड़े 10 महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQs)
**
Q1: शिव पंचाक्षर स्तोत्र किसने लिखा था?
इसे आदि शंकराचार्य जी ने रचा था।
**
Q2: पंचाक्षर का अर्थ क्या है?
“पंचाक्षर” का अर्थ है पाँच अक्षर। यहाँ यह “ॐ नमः शिवाय” मंत्र के पाँच अक्षरों (न, म, शि, व, य) को दर्शाता है।
**
Q3: शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ कब करना चाहिए?
सुबह स्नान के बाद, शिवलिंग या शिव प्रतिमा के सामने। सोमवार और महाशिवरात्रि पर इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।
**
Q4: शिव पंचाक्षर स्तोत्र पढ़ने से क्या लाभ मिलता है?
पापों का नाश, मानसिक शांति, रोगों से मुक्ति, घर में सुख-शांति, भक्ति और ज्ञान की वृद्धि तथा अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है।
**
Q5: क्या स्त्रियाँ भी इसका पाठ कर सकती हैं?
हाँ, हर कोई – स्त्री, पुरुष, गृहस्थ या संन्यासी – इस स्तोत्र का पाठ कर सकता है।
**
Q6: क्या इसे मन ही मन पढ़ सकते हैं?
जी हाँ, शिव पंचाक्षर स्तोत्र को ऊँचे स्वर में या मन ही मन पढ़ सकते हैं। भाव और श्रद्धा सबसे महत्वपूर्ण हैं।
**
Q7: क्या इस स्तोत्र को रोज़ पढ़ना ज़रूरी है?
रोज़ पढ़ना उत्तम है, परंतु केवल सोमवार या शिवरात्रि पर भी इसका पाठ करने से अत्यधिक फल प्राप्त होता है।
**
Q8: पंचाक्षरी मंत्र और पंचाक्षर स्तोत्र में क्या अंतर है?
पंचाक्षरी मंत्र “ॐ नमः शिवाय” है। जबकि पंचाक्षर स्तोत्र इस मंत्र के पाँच अक्षरों का स्तुति रूप में विस्तार है।
**
Q9: क्या इसे पाठ करने के लिए कोई विशेष नियम है?
स्वच्छता, श्रद्धा और एकाग्र मन आवश्यक है। पाठ करते समय पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करना श्रेष्ठ माना गया है।
**
Q10: क्या शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ करने से मोक्ष मिलता है?
हाँ, शास्त्रों में कहा गया है कि इस स्तोत्र के नियमित पाठ से भक्त शिवलोक जाता है और अंततः मोक्ष प्राप्त करता है।
*****

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय 

भस्मांग रागाय महेश्वराय।

नित्याय शुद्धाय दिगंबराय 

तस्मे “न” काराय नमः शिवायः॥


मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय 

नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।

मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय 

तस्मे “म” काराय नमः शिवायः॥


शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय 

दक्षाध्वरनाशकाय।

श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय 

तस्मै “शि” काराय नमः शिवायः॥


वषिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमाय 

मुनींद्र देवार्चित शेखराय।

चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय 

तस्मै “व” काराय नमः शिवायः॥


यक्षस्वरूपाय जटाधराय 

पिनाकस्ताय सनातनाय।

दिव्याय देवाय दिगंबराय 

तस्मै “य” काराय नमः शिवायः॥


पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ।

शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥


॥ इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं 

श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

*****
Nāgendrahārāya trilochanāya
Bhasmāṅg rāgāya Maheshwarāya।
Nityāya shuddhāya digambarāya
Tasmai "Na" kārāya Namah Shivāyah॥
**
Mandākinī salil chandan charchitāya
Nandīshwar pramathanāth Maheshwarāya।
Mandārapushpa bahupushpa supūjitāya
Tasmai "Ma" kārāya Namah Shivāyah॥
**
Shivāya Gauri vadanābja-vrinda sūryāya
Dakshādhvaranāshakāya।
Shri Nīlakaṇṭhāya vrishabhaddhajaya
Tasmai "Shi" kārāya Namah Shivāyah॥
**
Vashishṭha kumbhodbhav Gautamāya
Munīndra devārchit shekharāya।
Chandrārka vaishvānara lochanāya
Tasmai "Va" kārāya Namah Shivāyah॥
**
Yakṣasvarūpāya jaṭādharāya
Pinākastāya sanātanāya।
Divyāya devāya digambarāya
Tasmai "Ya" kārāya Namah Shivāyah॥
**
Panchākṣharam idam puṇyam yah paṭhet Shiva sannidhau।
Shivalokam avāpnoti Shivena saha modate॥
**
॥ Iti Shrīmachchhankarāchāryavirachitam
Shrī Shiva-Panchākṣhar Stotram sampūrṇam॥
*****

शुक्रवार, 5 नवंबर 2021

श्री नाग स्तोत्र || Shri Naag Stotra || श्री नाग गायत्री मंत्र || Shri Naag Gayatri Mantra || अथ सर्प स्तोत्र || Ath Sarp Stotra || Snake Mantra

श्री नाग स्तोत्र || Shri Naag Stotra || श्री नाग गायत्री मंत्र || Shri Naag Gayatri Mantra || अथ सर्प स्तोत्र || Ath Sarp Stotra || Snake Mantra 

श्री नाग स्तोत्र || Shri Naag Stotra

अनंतं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।

शड्खपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।

एतानि नव नामानि नागानां च महात्मानाम्।

सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातः काले विशेषतः।।

तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयीं भवेत्।

श्री नाग गायत्री मंत्र || Shri Naag Gayatri Mantra

ॐ नवकुलाय विद्यमहे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात् ।।


अथ सर्प स्तोत्र || Ath Sarp Stotra


विष्णु लोके च ये सर्पा: वासुकी प्रमुखाश्च ये । 

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदश्च ।।१।।


रुद्र लोके च ये सर्पा: तक्षक: प्रमुखस्तथा 

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।२।।


ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:। 

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।३।।


इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासु‍कि प्रमुखाद्य:।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।४।।


कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।


सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।६।।


मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।७।।


पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।८।।


सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।९।।


ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति च ।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।१०।।


समुद्रतीरे ये सर्पा ये सर्पा जंलवासिन:।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।११।।


रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।१२।

गुरुवार, 4 नवंबर 2021

श्री महालक्ष्मी अष्टकम || Shri Mahalakshmi Ashtakam || श्री महालक्ष्‍मी अष्‍टकम संस्‍कृत और हिन्‍दी अनुवाद || Shri Mahalakshmi Ashtakam Sanskrit aur Hindi Anuvad || Mahalakshmi Ashtakam Hindi Sanskrit Lyrics||श्री वैभव लक्ष्‍मी यन्‍त्र || Shri Vaibhav Lakshmi Yantra

श्री महालक्ष्मी अष्टकम || Shri Mahalakshmi Ashtakam || श्री महालक्ष्‍मी अष्‍टकम संस्‍कृत और हिन्‍दी अनुवाद || Shri Mahalakshmi Ashtakam Sanskrit aur Hindi Anuvad || Mahalakshmi Ashtakam Hindi Sanskrit Lyrics || श्री वैभव लक्ष्‍मी यन्‍त्र || Shri Vaibhav Lakshmi Yantra

।। श्री महालक्ष्मी अष्टकम ।।

श्री महालक्ष्‍मी अष्‍टकम हिन्‍दी अनुवाद || Shri Mahalakshmi Ashtakam Hindi Lyrics and Anuvaad

महालक्ष्मीअष्टकम स्तोत्रम् यः पठेत्भक्तिमानरः। 
सर्वसिद्धिमवापनोति राज्यम प्राप्तयोति सर्वदा ।।

।। ॐ श्री गणेशाय नमः ।।
।। इन्द्र उवाच: ।।
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठेसुरपूजिते 
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते||1|| 

नमस्ते गरुड़ारूढे कोलासुरभयंकरि 
सर्वपापहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते||2||

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरी 
सर्व दुःखहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते||3||

सिद्धिबुधिप्रदे देवी भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी 
मंत्रमुर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते||4||

आद्यन्तरहिते देवी आद्यशक्तिमहेश्वरी 
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोस्तुते||5||

स्थूलसूक्ष्म महारौद्रे महाशक्तिमहोदरे 
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते||6||

पद्मासनस्थिते देवी परब्रह्मस्वरूपिणि 
परमेशि जगन्माता महालक्ष्मी नमोस्तुते ||7||

श्वेताम्बरधरे देवी नानालङ्कारभूषिते 
जगतस्थिते जगन्माता महालक्ष्मी नमोस्तुते||8||

।। फल स्तुति ।।

महालक्ष्मीअष्टकम स्तोत्रम्यः पठेत्भक्तिमानरः । 
सर्वसिद्धिमवापनोति राज्यम प्राप्तयोति सर्वदा||9||

एककाले पठेनित्यं महापापविनाशनं 
द्विकालं यः पठेन्नित्यम् धनधान्यसमन्वित:||10||

त्रिकालं यः पठेनित्यं महाशत्रुविनाशनम् । 
महालक्ष्मिरभवेर्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा||11||

।। श्री महालक्ष्मी अष्टकम ।।
।। ॐ श्री गणेशाय नमः ।।
।। इन्द्र उवाच: ।।
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठेसुरपूजिते 
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते||1||

देवराज इंद्र बोले: मैं महालक्ष्मी की पूजा करता हूं, जो महामाया का प्रतीक हैंं और जिनकी पूजा सभी देवता करते हैं। मैं महालक्ष्मी का ध्यान करता हूं जो अपने हाथों में शंख, चक्र और गदा लिए हुए हैं ।

नमस्ते गरुड़ारूढे कोलासुरभयंकरि ।
सर्वपापहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते||2||

देवराज इंद्र बोले: पक्षीराज गरुड़ जिनका वाहन है, भयानक से भयानक दानव भी जिनके भय से कॉंपते है| सभी पापों को हरने वाली देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरी । 
सर्व दुःखहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते||3||

देवराज इंद्र बोले: मैं उन देवी की पूजा करता हँ जो सब जानने वाली हैं और सभी वर देने वाली हैं, वह सभी दुष्टो का नाश करती हैं। सभी दुखों को हरने वाली देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

सिद्धिबुधिप्रदे देवी भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी 
 मंत्रमुर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते||4||

देवराज इंद्र बोले: हे भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली देवी महालक्ष्मी कृपा कीजिये और हमें सिद्धि व सदबुद्धि प्रदान कीजिये। सभी मंत्रों का आप मूल हैं देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

आद्यन्तरहिते देवी आद्यशक्तिमहेश्वरी । 
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोस्तुते||5||

देवराज इंद्र बोले: हे आद्यशक्ति देवी महेश्वरी महालक्ष्मी, आप शुरु व अंत रहित हैं। आप योग से उत्पन्न हुईं और आप ही योग की रक्षा करने वाली हैं। देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

स्थूलसूक्ष्म महारौद्रे महाशक्तिमहोदरे 
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तुते||6||

देवराज इंद्र बोले: महालक्ष्मी आप जीवन की स्थूल और सूक्ष्म दोनों ही अभिव्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। आप एक महान शक्ति हैं और आप का स्वरुप दुष्‍टों के लिए महारौद्र है। सभी पापो को हरने वाली देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

पद्मासनस्थिते देवी परब्रह्मस्वरूपिणि । 
परमेशि जगन्माता महालक्ष्मी नमोस्तुते||7||

देवराज इंद्र बोले: हे परब्रह्मस्वरूपिणि देवी आप कमल पर विराजमान हैं| परमेश्वरि आप इस संपूर्ण ब्रह्मांड की माता हैं देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

श्वेताम्बरधरे देवी नानालङ्कारभूषिते । 
जगतस्थिते जगन्माता महालक्ष्मी नमोस्तुते||8||

देवराज इंद्र बोले: हे देवी महालक्ष्मी, आप अनेको आभूषणों से सुशोभित हैं और श्वेत वस्त्र धारण किए हैं| आप इस संपूर्ण ब्रह्माण्‍ड में व्याप्त हैं और इस संपूर्ण ब्रह्माण्‍ड की माता हैं देवी महालक्ष्मी आपको नमस्कार है।

।। फल स्तुति ।।

जो भी व्यक्ति इस महालक्ष्मी अष्टकम स्तोत्र का पाठ भक्तिभाव से करते हैं उन्हें सर्वसिद्धि प्राप्त होंगी और उनकी समस्त इच्छाएं सदैव पूरी होंगी।

एककाले पठेनित्यं महापापविनाशनं ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यम् धनधान्यसमन्वित:||10||

महालक्ष्मी अष्टकम का प्रतिदिन एक बार पाठ करने से भक्‍तों के महापापों का विनाश हो जाता है। प्रतिदिन प्रातः व संध्या काल यह पाठ करने से भक्‍तों को धन और धान्य की प्राप्ति होती है।

त्रिकालं यः पठेनित्यं महाशत्रुविनाशनम् । 
महालक्ष्मिरभवेर्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा||11||

प्रतिदिन प्रातः दोपहर व संध्याकाल यह पाठ करने से भक्‍तों के शक्तिशाली दुश्मनों का नाश होता है और उनसे माता महालक्ष्मी सदैव प्रसन्न रहती हैं तथा उनके वरदान स्वरुप भक्तो के सभी कार्य शुभ होते हैं।

श्री वैभव लक्ष्‍मी यन्‍त्र || Shri Vaibhav Lakshmi Yantra

मंगलवार, 2 नवंबर 2021

पंच पर्व || Panch Parv || धन त्रयोदशी अथवा धनतेरस || Dhan Teras Dhan Trayodashi

पंच पर्व || Panch Parv || धन त्रयोदशी अथवा धनतेरस || Dhan Teras Dhan Trayodashi

क्‍या हैं पंच पर्व 

भारतवर्ष उत्‍सवों एवं पर्वों का देश है। यहॉं कोई भी ऐसी तिथि या दिन नहीं होता जिस दिन को कोई न कोई पौराणिक या लौकिक महत्‍व न बताया गया हो। सनातन धर्म (हिन्‍दू धर्म) में दीपावली के पर्व का विशेष महत्व होता है। दीपावली के दिन ही भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के उपरान्‍त अयोध्‍या वापस लौटे थे। इस अवसर पर समस्‍त अयोध्‍यावासियों ने अपनी खुशी और उल्‍लास हजारों घी के दिये जलाकर प्रकट किये थे। दीपावली के पर्व को पंच पर्व भी कहा जाता है क्‍योंकि यह पर्व धन त्रयोदशी, नर्क चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा एवं भाई दूज आदि त्‍यौहारों की एक श्रृंखला के रूप में मनाया जाता है।   दीपावली से पहले धन त्रयोदशी का त्योहार मनाया जाता है। हिन्‍दी पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धन त्रयोदशी के पर्व के रूप में मनाया जाता है। धन त्रयोदशी को ही कालान्‍तर में धनतेरस के नाम से पुकारा जाने लगा।

 

क्‍यों मनाया जाता है धन त्रयोदशी अथवा धनतेरस का पर्व 

पौराणिक कथा के अनुसार देवों और असुरों ने अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन किया था। इस समुद्र मंथन के दौरान धन के देवता धनवन्‍तरि और माता लक्ष्मी क्षीर-सागर से धनत्रयोदशी के दिन प्रकट हुए थे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब प्रभु धन्वंतरि प्रकट हुए थे तब उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। भगवान धनवन्‍तरि को भगवान विष्णु के अवतार के रूप में जाना जाता है। भगवान धनवन्‍तरि को चिकित्सा और औषधि के देवता के रूप में जाना जाता है साथ ही वे देव चिकित्‍सक भी हैं। भगवान धनवन्‍तरि समुद्र में वास करते हैं,  वे कमल पर विराजित हैं और शंख तथा चक्र धारण करते हैं। अमृता और जोंक उनके प्रतीक हैं। 

धन त्रयोदशी अथवा धनतेरस मनाने का तरीका 

मान्यता है कि इस दिन भगवान धनवन्‍तरि की पूजा करने से पूरे साल धन की कमी नहीं होती, साथ ही,  मॉं लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। धन त्रयोदशी (धनतेरस) के अवसर पर शुभ मुहूर्त में सोने-चांदी और अन्य कई तरह की चीजें खरीदी जाती है। ऐसी मान्‍यता है कि धनतेरस के दिन अगर कुछ चीजें खरीदकर घर लाई जाए तो धन की देवी माता लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर बहुत ही प्रसन्न होते हैं। मान्यताओं के अनुसार धनतेरस पर सोना-चांदी और पीतल के बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। इस तिथि को धनव‍न्‍तरि जयन्‍ती या धन त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान कुबेर की पूजा की भी विधान है। लोक मान्‍यताओं के अनुसार इस शुभ अवसर पर  सोने-चांदी के सिक्के,  झाड़ू,  धनिया, अक्षत एवं पीतल के बर्तन आदि खरीदने का प्रावधान है।

धन त्रयोदशी के दिन क्‍या क्‍या करना चाहिए और क्‍या नहीं खरीदना चाहिए 

धन त्रयोदशी अथवा धनतेरस को नई चीजों की खरीदारी शुभता का प्रतीक माना जाता है। खरीदारी के अलावा कुछ विशेष बातें पर ध्‍यान देकर हम इस त्‍यौहार को और भी लाभकारी बना सकते हैं-

1- लोक मान्‍यता के अनुसार धनतेरस के दिन नई झाड़ू खरीदना शुभता एवं समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस दिन खरीदी गई नई झाड़ू पूजा के स्थान पर रखें और दीपावली की सुबह से इसका प्रयोग  करें। इसके साथ ही पुरानी या टूटी झाड़ू को धनतेरस की मध्य रात्रि में घर से बाहर कर देना चाहिए। हर वर्ष धनतेरस पर सोने-चांदी के आभूषण और बर्तन खरीदने के साथ झाड़ू खरीदने की परंपरा निभाई जाती है। इसके पीछे की मान्यता है कि झाड़ू मॉं लक्ष्मी को बहुत ही प्रिय होती है। धनतेरस और दिवाली पर मां लक्ष्मी का आगमन होता है। इससे माता प्रसन्न होती हैं और घर से सारी नकारात्मकता दूर भाग जाती है। इस कारण से हर साल धनतेरस पर झाड़ू खरीदने की प्रथा है। साथ ही झाड़ू स्‍वच्‍छता एवं साफ-सफाई का प्रतीक भी है। जिस घर में साफ-सफाई रहती है उस घर के लोग ज्‍यादा स्‍वस्‍थ एवं ऊर्जावान बने रहने के कारण धन-समृद्धि के मालिक होते हैं। 

2- दीपावली के अवसर पर घरों की साफ-सफाई की परम्‍परा रही है। साफ सफाई के उपरान्‍त निकले अनुपयोगी अथवा टूटे फूटे सामानों को धनतेरस से पहले ही घर से बाहर निकाल देना चाहिए और साथ ही इनका समुचित निस्‍तारण भी सुनिश्चित करना चाहिए। 

3- ऐसी मान्‍यता है कि घर के मुख्य द्वार के जरिए घर में माता लक्ष्मी का आगमन होता है इसलिए यह स्थान हमेशा साफ-सुथरा रहना चाहिए। साथ ही घर के मुख्य द्वार या मुख्य कक्ष के सामने अनुपयोगी एवं टूटी-फूटी वस्तुएं नहीं रखना चाहिए। समय से इनका समुचित निस्‍तारण कर देना चाहिए। 

4-इस दिन श्री कुबेर जी के साथ मॉं लक्ष्मी और भगवान धनवन्‍तरि की उपासना का विधान है। इसलिए तीनों की ही पूजा करना शुभ माना गया है। 

5- धन त्रयोदशी के दिन खरीदारी के अलावा दीपक भी जलाए जाते हैं। इस दिन धनिया,  झाडू,  कलश, बर्तन और सोने-चांदी की चीजें खरीदना शुभ होता है साथ ही घर के प्रवेश द्वार पर दीपक जलाने से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। 

6- मान्‍यता है कि धनतेरस के दिन दोपहर या शाम के समय नहीं सोना चाहिए। बीमारी की दशा में अथवा बालक और वृद्ध सो सकते हैं। इस दिन संभव हो सके तो रात्रि जागरण करें और ईश्‍वर का ध्‍यान करें।

7- धनतेरस के दिन घर में किसी भी तरह के कलह से बचना चाहिए। मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किसी की शिकायत अथवा चुगली मन में न लायें। ईश्‍वर को साक्षी बनाकर पूरी निष्‍ठा से अपने कर्तव्‍यों का पालन करना चाहिए। 

8- लोक मान्‍यता के अनुसार धनतेरस के दिन यदि बहुत आवश्‍यक न हो तो उधार देने से बचना चाहिए। ऐसा कहा भी जाता है कि उधार प्रेम की कैंची है। 

9- धनतेरस के दिन लोहे का सामान्‍ खरीना शुभ नहीं माना जाता किन्‍तु वाहन खरीदा जा सकता है।

10- लोक मान्‍यता के अनुसार धन त्रयोदशी की शाम को यमदेव के लिए दीपक जलाना चाहिए। धनतेरस की शाम को घर के दक्षिण दिशा की तरफ यम देव को समर्पित करते हुए दीपदान करना शुभ माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन घर के बाहर दक्षिण दिशा में यम के नाम का दीपक जलाने से अकाल मृत्‍यु का भय टल जाता है।

11- इस दिन सुलभता के नाम पर अशुद्ध धातु अथवा सामग्री से बनी मूर्तियों की पूजा से बचना चाहिए। सोने-चॉंदी की मूर्तियों से पूजा करना उत्‍तम माना जाता है किन्‍तु अभवा में मिट्टी सर्वोत्‍तम विकल्‍प है।  

धन त्रयोदशी अथवा धनतेरस की पूजा विधि

1. सबसे पहले स्‍वच्‍छ होकर साफ-स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करके पूजा स्‍थान पर चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाया जाय। 

2. इसके पश्‍चात गंगाजल छिड़क कर भगवान धनवन्‍तरि,  माता महालक्ष्मी और भगवान कुबेर की प्रतिमा या तस्‍वीर स्थापित करना चाहिए। प्रतिमा अथवा तस्‍वीर न होने की दशा में लक्ष्‍मी यन्‍त्र, कुबेर यन्‍त्र और धनवन्‍तरि यन्‍त्र स्‍थापित कर सकते हैं।


3- प्रथम पूज्‍य भगवान गणेश का मन में ध्‍यान करके उनकी आराधना करें और नीचे दिये गये मंत्र का उच्‍चारण कर उनकी पूजा करें -

वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभ ।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥

4. भगवान को धूप, देशी घी का दीपक, नेवेद्य (प्रसाद) पुष्‍प (सम्‍भव हो तो लाल पुष्‍प) एवं अक्षत आदि अर्पित करें। 

5. अब आपने इस दिन जिस भी धातु या फिर बर्तन अथवा ज्वेलरी की खरीदारी की है, उसे चौकी पर स्‍थापित करें। 

6. लक्ष्मी स्तोत्र, लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मी यंत्र, कुबेर यंत्र और कुबेर स्तोत्र का पाठ करें।

7- जितना सम्‍भव हो सके इस मन्‍त्र के जप के द्वारा भगवान धनवन्‍तरि को प्रसन्‍न करना चाहिए 

ॐ नमो भगवते महा सुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वन्तरये अमृत कलश हस्ताय सर्व भय विनाशाय सर्व रोग निवारणाय त्रैलोक्य पतये, त्रैलोक्य निधये श्री महा विष्णु स्वरूप, श्री धन्वंतरि  स्वरुप श्री श्री श्री औषध चक्र नारायणाय स्वाहा

8- भगवान धनवन्तिरि की उपासना के उपरान्‍त धन के अधिपति भगवान कुबेर की पूजा और मंत्र जाप करना चाहिए

ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं में देहि दापय।

9-  अंत में माता भगवती लक्ष्मी की पूजा नीचे लिखे मंत्र से करना चाहिए 

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद, ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥

10- अन्‍त में घर के दक्षिण दिशा की तरफ यम देव को समर्पित करते हुए दीपदान करना चाहिए। 

11. पूजन के उपरान्‍त परिवार के लोग माता लक्ष्‍मी जी की आरती करें और प्रसाद वितरित करें।

**समाप्‍त**

विनम्र अनुरोध: अपनी उपस्थिति दर्ज करने एवं हमारा उत्साहवर्धन करने हेतु कृपया टिप्पणी (comments) में जय श्री लक्ष्‍मी माता अथवा जय श्री कुबेर भगवान अथवा जय श्री धनवन्‍तरि महाराज अवश्य अंकित करें।

शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2021

श्री खाटू श्‍याम जी का भजन || Most Popular Khatu Shyam Bhajan | SHRI KRISHAN CHANDER SAMJHAVE | PAPPU SHARMA JI || श्री कृष्ण चन्द्र समझावे

श्री खाटू श्‍याम जी का भजन || Most Popular Khatu Shyam Bhajan | SHRI KRISHAN CHANDER SAMJHAVE | PAPPU SHARMA JI || श्री कृष्ण चन्द्र समझावे 


खाटू श्याम वाले चलो रे चलो रे चलो बाबा के -2 

श्री कृष्ण चन्द्र समझावे, 

जो कोई साँचे मन से ध्यावे 

उसका सब दुखड़ा मिट जावे, 

चालो बाबा के ।। टेक ।। 

बाबा भोत घणो दातार, 

पल में भर देवे भंडार, 

याको नाम है लखदातार, 

चालो बाबा के ।। टेक ।। 

पहल्या शाम कुंड में नहावा, 

फिर बाबा के मंदिर आवा

आपा नाच नाच के गावां, 

चालो बाबा के ।। टेक।। 

जो भी श्याम बाग में जावे, 

उसकी बुद्धि हरी हो जावे 

मन को भंवर मगन हो जावे 

चालो बाबा के ।। टेक ।। 

हंसो हंसा में मिल जावे-2, 

थारो "सोहनलाल" गुण गावे 

थारो नाम अमर हो जावे, चालो बाबा के ।।

यह सुन्‍दर भजन हमें श्री सन्‍तोष कुमार जी ने उपलब्‍ध कराया है। हम उनके प्रति हृदय से आभार व्‍यक्‍त करते हैं। ईश्‍वर उन पर और उनके परिवार पर कृपालु हों।