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शुक्रवार, 24 सितंबर 2010
श्री कृष्ण चालीसा || Shri Krishna Chalisa ||
दोहा
वंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्ब फल, नयन कमल अभिराम॥
पूर्ण इन्द्र अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्ण चन्द्र महाराज॥
चौपाई
जय यदुनन्दन जय जगवन्दन,
जय वसुदेव देवकी नन्दन।
जय यशोदा सुत नन्द दुलारे,
जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नटनागर नाग नथइया,
कृष्ण कन्हैया धेनु चरइया।
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो,
आओ दीनन कष्ट निवारो॥
वंशी मधुर अधर धरि टेरी,
होवे पूर्ण विनय यह मेरी।
आओ हरि पुनि माखन चाखो,
आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोल चिबुक अरुणारे,
मृदु मुस्कान मोहिनी डारे।
रंजित राजिव नयन विशाला,
मोर मुकुट बैजन्ती माला॥
कुण्डल श्रवण पीतपट आछे,
कटि किंकणी काछन काछे।
नील जलज सुन्दर तनु सोहै,
छवि लखि सुर नर मुनि मन मोहै॥
मस्तक तिलक अलक घुंघराले,
आओ कृष्ण बासुरी वाले।
करि पय पान, पूतनहिं तारयो,
अका बका कागा सुर मारयो॥
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला,
भये शीतल, लखितहिं नन्दलाला।
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई,
मूसर धार वारि वर्षाई॥
लगत-लगत ब्रज चहन बहायो,
गोवर्धन नखधारि बचायो।
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई,
मुख मंह चौदह भुवन दिखाई॥
दुष्ट कंस अति उधम मचायो,
कोठि कमल जब फूल मंगायो।
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हे,
चरणचिन्ह दे निर्भय कीन्हे॥
करि गोपिन संग रास विलासा,
सबकी पूरण करि अभिलाषा।
केतिक महा असुर संहारियो,
कंसहि केस पकडि दै मारियो॥
मात-पिता की वंन्दि छुड़ाई,
उग्रसेन कहं राज दिलाई।
महि से मृतक छहों सुत लायो,
मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी,
लाये षट दस सहस कुमारी।
दे भमहिं तृणचीर संहारा,
जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥
असुर बकासुर आदिक मारयो,
भक्तन के तब कष्ट निवारियो।
दीन सुदामा के दुख टारयो,
तंदुल तीन मूठि मुख डारयो॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे,
दुर्योधन के मेवा त्यागे।
लखी प्रेम की महिमा भारी,
ऐसे श्याम दीन हितकारी॥
मारथ के पारथ रथ हांके,
लिए चक्र करि नहिं बल थाके।
निज गीता के ज्ञान सुनाये,
भक्तन हृदय सुधा वर्षाये॥
मीरा थी ऐसी मतवाली,
विष पी गई बजा कर ताली।
राणा भेजा सांप पिटारी,
शालिग्राम बने बनवारी॥
निज माया तुम विधिहिं दिखायो,
उरते संशय सकल मिटायो।
तव शत निन्दा करि तत्काला,
जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रोपदी टेर लगाई,
दीनानाथ लाज अब जाई।
तुरतहि वसन बने नन्दलाल,
बढ़े चीर भये अरि मुह काला॥
अस अनाथ के नाथ कन्हैया,
डूबत भंवर बचावत नइया।
सुन्दरदास आस उर धारी,
दयादृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो,
क्षमहुबेगि अपराध हमारो।
खोलो पट अब दर्शन दीजै,
बोलो कृष्ण कन्हैया की जय॥
दोहा
यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करे उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिद्धि फल, लहै पदारथ चारि॥
चित्र www-acad.sheridanc.on.ca से साभार
शनिवार, 21 अगस्त 2010
श्री शिव चालीसा || जय गणेश गिरिजा सुवन || Shri Shiv Chalisa || Jay Ganesh Girija Suvan || Jay Girijapati Deen Dayala || Shri Shiv Stuti
श्री शिव चालीसा || जय गणेश गिरिजा सुवन || Shri Shiv Chalisa || Jay Ganesh Girija Suvan || Jay Girijapati Deen Dayala || Shri Shiv Stuti
(चित्र गूगल से साभार)
दोहा
जय गणेश गिरिजा सुवन,मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान॥
चौपाई
जय गिरिजापति दीनदयाला,सदा करत सन्तन प्रतिपाला।
भाल चन्द्रमा सोहत नीके,
कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये,
मुण्डमाल तन छार लगाये।
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे,
छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु कि हवे दुलारी,
वाम अंग सोहत छवि न्यारी।
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी,
करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहैं तहं कैसे,
सागर मध्य कमल हैं जैसे।
कार्तिक श्याम और गणराऊ,
या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा,
तबहीं दुःख प्रभु आप निवारा।
किया उपद्रव तारक भारी,
देवन सब मिलि तुमहि जुहारी॥
तुरत षड़ानन आप पठायउ,
लव निमेष महं मारि गिरायउ।
आप जलंधर असुर संहारा,
सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई,
सबहिं कृपा कर लीन बचाई।
दानिन महं तुम सम कोई नाहीं,
सेवक अस्तुति करत सदा ही॥
वेद नाम महिमा तव गाई,
अकथ अनादि भेद नहिं पाई।
प्रगटी उदधि मंथन में ज्वाला,
जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्हीं दया तहं करी सहाई,
नीलकण्ठ तब नाम कहाई।
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा,
जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी,
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखे जोई,
कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर,
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर।
जै जै जै अनन्त अविनासी,
करत कृपा सबही घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै,
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो,
यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो,
संकट से मोहि आन उबारो,
मातु पिता भ्राता सब कोई,
संकट में पूछत नहीं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी,
आय हरहुं मम संकट भारी।
धन निर्धन को देत सदा ही,
जो कोई जाचें वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करो तिहारी,
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।
शंकर हो संकट के नाशन,
मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगि यति मुनि ध्यान लगावै,
नारद शारद शीश नवावै।
नमो नमो जय नमो शिवायै,
सुर ब्रह्मादिक पार न पाए॥
जो यह पाठ करे मन लाई,
तापर होत हैं शम्भु सहाई।
दुनिया में जो हो अधिकारी,
पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्रहीन इच्छा कर कोई,
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई।
पंडित त्रयोदशी को लावे,
ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करे हमेशा,
तन नहिं ताके रहे कलेशा।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे,
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावै,
अन्त वास शिवपुर में पावै।
कहै अयोध्या आस तुम्हारी,
जानि सकल दुख हरहु हमारी॥
दोहा
नित्त नेम कर प्रातः ही,पाठ करौ चालीसा।
तु मेरी मनोकामना,
पूर्ण करो जगदीशा॥
मगसर छठि हेमन्त ऋतु,
संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहिं,
पूर्ण कीन कल्याण॥
रविवार, 8 अगस्त 2010
आरती श्री शिव जी की || Aarti Shri Shiv Ji Ki || जय शिव ओंकारा || Jay Shiv Onkara || Shri Shiv Stuti || Shiv Ratri Special
आरती श्री शिव जी की || Aarti Shri Shiv Ji Ki || जय शिव ओंकारा || Jay Shiv Onkara || Shri Shiv Stuti || Shiv Ratri Special
जय शिव ओंकारा, हर शिव ओंकारा,
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा।
एकानन चतुरानन पंचानन राजै
हंसानन गरुणासन वृषवाहन साजै।
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहै,
तीनों रूप निरखते त्रिभुवन मन मोहे।
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी,
चन्दन मृगमद चंदा सोहै त्रिपुरारी।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे,
सनकादिक ब्रह्मादिक भूतादिक संगे।
कर मध्ये च कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी,
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका।
त्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे
कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पत्ति पावे॥
बुधवार, 4 अगस्त 2010
Aarti Kije Shri Raghuvar Ji Ki | श्री रघुवर जी की आरती (Lyrics in Hindi & Hinglish)
श्री राम जी की आरती || आरती श्री रघुवर जी की ||Aarti Shri Raghuvar Ji Ki || Shri Ram Chandra Ji Ki Aarti || Shri Ram Stuti
सत चित आनन्द शिव सुन्दर की॥
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सुर मुनि रक्षक दैत्य निकन्दन॥
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मर्यादा पुरुषोत्तम वर की॥
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सकल लोक वन्दित विभिन्न विधि॥
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माया रहित दिव्य नर वर की॥
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अखिल लोक पालक त्रिलोक गति॥
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एक मात्र गति सचराचर की॥
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भक्त कल्प तरुवर असुरारी॥
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वानर सखा दीन दुख हर की॥
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Aarti kije Shri Raghuvar ji ki,
Sat Chit Anand Shiv Sundar ki॥
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Dashrath tanay Kaushalya nandan,
Sur muni rakshak daitya nikandan॥
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Anugat bhakt bhakt ur chandan,
Maryada Purushottam var ki॥
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Nirgun sagun anup roop nidhi,
Sakal lok vandit vibhinn vidhi॥
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Haran shok-bhay dayak nav nidhi,
Maya rahit divya nar var ki॥
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Janaki pati sur adhipati jagpati,
Akhil lok palak trilok gati॥
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Vishv vandya avanah amit gati,
Ek matra gati sacharachar ki॥
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Sharanagat vatsal vratdhari,
Bhakt kalp taruvar asurari॥
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Naam let jag pavan kari,
Vanar sakha deen dukh har ki॥
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शनिवार, 17 जुलाई 2010
श्री राम चालीसा || श्री रघुवीर भक्त हितकारी || Shri Ram Chalisa || Shri Raghubeer Bhakt Hitkari || Shri Ram Stuti || Ran Navami
श्री राम चालीसा || श्री रघुवीर भक्त हितकारी || Shri Ram Chalisa || Shri Raghubeer Bhakt Hitkari || Shri Ram Stuti || Ran Navami
दोहा
सात दिवस जो नेम कर,
हरिदास हरि कृपा से,
जो इच्छा मन में करै,