शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

शरद पूर्णिमा व्रत की कथा || पूर्णमासी व्रत कथा || Sharad Purnima Vrat Ki Katha || Purnmaasi Vrat Katha || Lyrics in Hindi

शरद पूर्णिमा व्रत की कथा || पूर्णमासी व्रत कथा || Sharad Purnima Vrat Ki Katha || Purnmaasi Vrat Katha || Lyrics in Hindi



आश्विन मास की पूर्णिमा ही शरद पूर्णिमा कहलाती हैं। इसे 'रास पूर्णिमा' भी कहा जाता है। धर्म शास्त्रों में इस दिन 'कोजागर व्रत' माना गया है। इसी को 'कौमुदी व्रत' भी कहते हैं। ज्योतिष मान्यता के अनुसार संपूर्ण वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा षोडश यानि 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है।

रासोत्सव का यह दिन वास्तव में भगवान श्री कृष्ण ने जगत की भलाई के लिए निर्धारित किया है, माना जाता है कि इस रात को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है। 

मान्यता है कि घर में सुख-समृद्धि के लिए इस दिन सुहागिन महिलाओं को भोजन कराने के अलावा सूर्यास्त से पहले कुछ भेंट भी देनी चाहिए। इस दिन सूर्यास्त के बाद बालों में कंघी करना या अग्नि पर तवा चढ़ाना शुभ नहीं माना जाता।

मान्यता के अनुसार इसी दिन श्रीकृष्ण को 'कार्तिक स्नान' करते समय स्वयं (कृष्ण) को पति के रूप में प्राप्त करने की कामना से देवी पूजन करने वाली कुमारियों को दिए वरदान की याद आई थी और उन्होंने मुरलीवादन करके यमुना के तट पर गोपियों के संग रास रचाया था।

इस दिन मंदिरों में विशेष सेवा-पूजन किया जाता है। इस दिन प्रात:काल स्नान करके आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करके आवाहन, आसन, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से उनका पूजन करना चाहिए।

रात्रि के समय गौदुग्ध (गाय के दूध) से बनी खीर में घर और चीनी मिलाकर अर्द्धरात्रि के समय भगवान को अर्पित (भोग लगाना)करनी चाहिए। पूर्ण चंद्रमा के आकाश के मध्य स्थित होने पर उनका पूजन करें और खीर का नैवेद्य अर्पित करके, रात को खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करना चाहिए साथ ही सबको इसका प्रसाद देना चाहिए।

पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुननी चाहिए। कथा सुनने से पहले एक लोटे में जल व गिलास में गेहूं, पत्ते के दोने में रोली और चावल रखकर कलश की वंदना करके दक्षिणा चढ़ाएं। फिर तिलक करने के बाद गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनें। फिर गेहूं के गिलास पर हाथ फेरकर पंडिताइन के पांव स्पर्श करके गेहूं का गिलास उन्हें दे दें। लोटे के जल का रात को चंद्रमा को अर्घ्य दें।

शरद पूर्णिमा से ही उत्सव और व्रत प्रारंभ हो जाता है। माताएं अपनी संतान की मंगल कामना से देवी-देवताओं का पूजन करती हैं। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत नजदीक आ जाता है। कार्तिक का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारंभ होता है। विवाह होने के बाद पूर्णिमा (पूर्णमासी) के व्रत का संकल्प शरद पूर्णिमा से लेना चाहिए।

शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ हरता है। इस दिन आकाश में नतो बादल होते हैं और न ही धूल-गुबार। इस राति में भ्रमण और चंद्रकिरणों का शरीर परपड़ना अत्यंत शुभ माना जाता है।

प्रति पूर्णिमा को व्रत करने वाले दस दिन भी चंद्रमा का पूजन करके भोजन करते हैं। इस दिन शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा का विधान है वहीं पूर्णिमा पर कार्तिक स्नान के साथ, राधा-दामोदर पूजन निय व्रत धारण करने का भी दिन है।

शरद पूर्णिमा की कथा:

एक साहूकार की दो पुत्रिया थीं। वे दोनों पूर्णिमासी का व्रत करती थीं। बड़ी बहन तो पूरा व्रत करती थी, लेकिन छोटी बहन अधूरा। छोटी बहन की जो भी संतान होती, वह जन्म लेते ही मर जाती। परंतु बड़ी बहन की सारी संताने जीवित रहतीं। एक दिन छोटी बहन ने बड़े बड़े पंडितों को बुलाकर अपना दुख बताया और उनसे इसका कारण पूछा।

इस पर पंडितों ने बताया कि तुम पूर्णिमा का अधूराव्रत करती हो, इसलिए तुम्हारे संतानों की अकाल मृत्यु हो जाती है। पूर्णिका का विधिपूर्वक पूर्ण व्रत करने से तुम्हारी संतानें जीवित रहा करेंगी।

तब उसने पंडितों की आज्ञा मानकर विधि-विधान से पूर्णमासी का व्रत किया। कुछ समय बाद उसका एक लड़का हुआ, लेकिन वह भी शीघ्र ही मर गया। तब उसके लड़कों को पीढे पर लेटाकर उसके उपर कपड़ा ढक दिया।

फिर उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और उसे वहीं पीढ़ा बैठने को दे दिया। जब बड़ी बहन उस पर बैठने लगी तो उसके वस्त्र बच्चे को छूते ही लड़का जीवित होकर रोने लगा। तब क्रोधित होकर बड़ी बहन बोली, तू मुझ पर कलंक लगाना चाहती थी। यदि में बैठ जाती तो लड़का मर जाता।

तब छोटी बहन बोली यह तो पहले से ही मरा हुआ था। तेरे भाग्य से जीवित हुआ है। हम दोनों बहनें पूर्णिमा का व्रत करती हैं। तू पूरा करती है और मैं अधूरा, जिसके दोष से मेरी संतानें मर जाती हैं। लेकिन तेरे पुण्य से यह बालक जीवित हुआ है।

इसके बाद उसने पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि आज से सभी पूर्णिमा का पूरा व्रत करें, यह संतान सुख देने वाला है।

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बुधवार, 19 जनवरी 2022

श्री दुर्गाष्टकम् || Shri Durga Astakam || कात्यायनि महामाये || Katyayani MahaMaye || Shri Durga Mata Stuti || Lyrics in Hindi and Samskrit

श्री दुर्गाष्टकम् || Shri Durga Astakam || कात्यायनि महामाये || Katyayani MahaMaye || Shri Durga Mata Stuti || Lyrics in Hindi and Samskrit 



कात्यायनि महामाये खड्गबाणधनुर्धरे । 

खड्गधारिणि चण्डि दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते ।।१।।


वसुदेवसुते कालि वासुदेवसहोदरी ।

वसुन्धराश्रिये नन्दे दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते ।।२।।


योगनिद्रे महानिद्रे योगमाये महेश्वरी ।

योगसिद्धिकरी शुद्धे दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते ।।३।। 


शङ्खचक्रगदापाणे शार्ङ्गज्यायतबाहवे । 

पीताम्बरधरे धन्ये दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते ।।४।।


ऋग्यजुस्सामाथर्वाणश्चतुस्सामन्तलोकिनी । 

ब्रह्मस्वरूपिणि ब्राह्मि दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते ।।५।।


वृष्णीनां कुलसम्भूते विष्णुनाथसहोदरी । 

वृष्णिरूपधरे धन्ये दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते ।।६।।


सर्वज्ञे सर्वगे शर्वे सर्वेशे सर्वसाक्षिणी । 

सर्वामृतजटाभारे दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते ।।७।।


अष्टबाहु महासत्त्वे अष्टमी नवमी प्रिये । 

अट्टहासप्रिये भद्रे दुर्गादेवि नमोऽस्तु ते ।।८।।


दुर्गाष्टकमिदं पुण्यं भक्तितो यः पठेन्नरः । 

सर्वकाममवाप्नोति दुर्गालोकं स गच्छति ।।९।।


इति श्री दुर्गाष्टकम् ।

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सोमवार, 3 जनवरी 2022

सर्वदेव पूजा || Sarvadev Puja || Sarva Dev Puja Padhati || Shri Satyanarayan Sarva Dev Puja Vidhi || Lyrics in Hindi

 सर्वदेव पूजा || Sarvadev Puja || Sarva Dev Puja Padhati || Shri Satyanarayan Sarva Dev Puja Vidhi || Lyrics in Hindi 


श्री गणेश


जय गणनायक सिद्धि विनायक 

मंगलदायक मोक्ष प्रदाता। 

हो तुम ही सबके शुभदायक 

कष्ट हरो हे भाग्य विधाता ।। 

ऋद्धि औ सिद्धि के स्वामी तुम ही हो 

पिता शुभ-लाभ के भवदाता। 

छोड़ के गोदि माँ गौरी की आओ 

तुम्हे आज भक्त तुम्हारा बुलाता।।



वन्दहु शम्भु भवानी के नन्दन, 

आनन्द कन्द निकन्द पति जै।

दीनन दायक ऋद्धि वा सिद्धि के, 

हे गणनायक मो पे पसीजै।। 

बुद्धि के दाता गजानन आनन, 

मोरी कुबुद्धि सुबुद्धि करीजै।

मूषक वाहन छाड़ि विनायक, 

पूजा में आयके आसन कीजै ।।

जय गणनायक सिद्धि विनायक, 

मंगल दायक मोक्ष प्रदाता।

हो तुमही सबके शुभदायक, 

कष्ट हरो हे भाग्यविधाता।। 

ऋद्धि औ सिद्धि के स्वामी तुम्ही हो, 

पिता शुभलाभ के हे भवदाता। 

छोड़ के गोदी माँ गौरी की आओ, 

तुम्हे आज भक्त तुम्हारा बुलाता।


चतुःषष्ठि योगिनी



ज्ञान की दायिनी बुद्धि प्रदायिनी, 

दूर करो मन का अंधियारा।

मूढ़ हूँ मैं असहाय हूँ मै, 

जननी ममता का माँ दे दो सहारा।। 

मातु कृपा करि कष्ट हरो, 

अपराध विसार के आज हमारा।

देवी तुम्हारी करूँ विनती, 

शरणागत है यह पुत्र तुम्हारा।।


गंगाजी


हे भय हारिणि हे भवतारिणि 

शोक विनासिनी पावनि गंगा। 

शंभुजटा में विराज रही 

शुभदायिनी मोक्ष प्रदायिनी गंगा।।

भागिरथी जननी जन की 

शुचि अमृत धार प्रवाहिनि गंगा। 

कष्ट हरो दुःख दूर करो, 

शुभ दायिनि हे वर दायिनि गंगा।।


वास्तु पुरुष श्री हनुमान जी 


जय रघुनन्दन है सत बन्दन,

भाल पे चन्दन की छविन्यारी।

सिय के कन्त प्रभु हनुमन्त 

कृपा करि के सुधि लीजै हमारी।। 

भक्‍तों की कामना पूर्ण करें, 

तो आज हमारी भी आयी है बारी। 

राम का नाम जपें जी सदा, 

कट जाते हैं संकट भारी से भारी।।


वरुण देव


वास करहिं मुख में लक्ष्मीपति, 

कण्ठ में वास करें त्रिपुरारी। 

मूल में ब्रह्मा निवास करें, 

मध्य में माताएं मंगलकारी।।

सागर द्विप नदी वसुधा, 

सब तीरथ वेद भी है शुभकारी। 

हे वरुण देव विराजो यहाँ, 

दुःख दूर करो विनती है हमारी।।


श्री विष्णु ध्यानम्


हाथ में चक्र रहे जिनके 

अरु शेष की शय्या विराज रहे हैं। 

भक्त का मान सदा रखते 

निज भक्त का भाव निहार रहे हैं।। 

ध्यान करें जो सदा इनका 

उसकी मनसा को सवाँर रहे हैं। 

हे शालिग्राम ! हे विष्णु चतुर्भुज ! 

आपको भक्त पुकार रहे हैं।।


क्षेत्रपाल ध्यानम्


यज्ञ की रक्षा करें जो सदा, 

और काशी के कोतवाल कहाते। 

भक्तों की कामना पूर्ण करें, 

माता वैष्णों के धाम की शोभा बढ़ाते।। 

कष्ट अमंगल दूर करें, 

कर जोरि के आज है शीश नवाते। 

हे अष्ट भैरव सुनो विनती 

हो के आतुर भक्त तुम्हारे बुलाते ।।


नवग्रह ध्यानम्


सूर्य हरें तम कष्ट करें कम, 

चन्द्र बड़े मुद मंगलकारी। 

बुद्धि पवित्र करे बुध नित्य, 

बढ़ावत ज्ञान गुरु सुखकारी।। 

सुचि शुक्र सदैव करे, 

शनि शोक हरें रवि दृष्टि निहारी। 

राहु रहें गति, केतु करें मति, 

दिव्य नवग्रह सोहत भारी।।


शिव जी ध्यानम्


शीश पे गंगा है कण्ठ भुजंगा 

हे कोटि अनंग लजावन वाले। 

हाथ त्रिशूल है नाशक शूल 

वही डमरू के बजावन वाले।। 

मृगछाल सुशोभित है कटि पे 

और भक्त की लाज बचावन वाले। 

शंकर की महिमा है अपार 

ये दानी बड़े हैं बड़े भोले भाले।।


श्री देवी जी ध्यानम्


शक्ति स्वरूपा सुमंगलकारिणी, 

काज सवाँरती हो सबके माँ।

होति कृपा जो तुम्हारी रहे तो, 

बने सब काज न देर लगे माँ।।

सीता ने पूजा तुम्हारी किया तो 

प्रसन्न हुई वर राम मिले माँ।

मेरी भी कामना पूर्ण करो, 

मातु गौरी हमारा भी कष्ट हरो माँ।।


षोडश मातृका


गणनाथ के साथ उमा पदमा, 

शचि मेधा कृपा करि दीजे सहारा।

सावित्री विजया और जया, 

देवसेना स्वधा करुणामय धारा।।

स्वाहा स्वधा लोकमाता धृति, 

शुचि पुष्टि व तुष्टि हरौ महि भारा।

आत्मानः कुलदेवता है षोडश, 

पूर्ण करो शुभ काम हमारा।।


सप्तघृत मातृका


सातहुं विन्दु पे सातहुं माता,

श्री लक्ष्मी धृति मेधा जी आओ।

स्वाहा सुप्रभा सरस्वती मातु, 

हमें भय सिंधु से पार लगाओ।। 

है बसुधारा सदा वसुधा 

तल पे करुणामय धार बहाओ। 

पूजा में आय सनाथ करो मॉं

भक्त के माथे माँ हाथ लगाओ।।

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शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

भीमसेनी एकादशी व्रत कथा || निर्जला एकादशी व्रत कथा || Bhimseni Ekadashi Vrat Katha || Nirjala Ekadashi Vrat Katha Lyrics in Hindi PDF

भीमसेनी एकादशी व्रत कथा || निर्जला एकादशी व्रत कथा || Bhimseni Ekadashi Vrat Katha || Nirjala Ekadashi Vrat Katha Lyrics in Hindi PDF


भीमसेनी एकादशी व्रत कथा || Bhimseni Ekadashi Vrat Katha 

निर्जला एकादशी व्रत का महत्व

एकादशी पूजा सामग्री

बहुत समय पहले की बात है। एक बार भीमसेन व्यासजी से कहने लगे कि हे पितामह! भ्राता युधिष्ठिर, माता कुन्‍ती, द्रोपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सब एकादशी का व्रत करने को कहते हैं, परंतु महाराज मैं उनसे कहता हूँ कि भाई मैं भगवान की शक्ति पूजा आदि तो कर सकता हूँ, दान भी दे सकता हूँ परन्‍तु भोजन के बिना नहीं रह सकता।

इस पर व्यासजी कहने लगे कि हे भीमसेन! यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो तो प्रत्‍येक मास की दोनों एकादशियों को अन्न मत खाया करो। भीम कहने लगे कि हे पितामह! मैं तो पहले ही कह चुका हूँ कि मैं भूख सहन नहीं कर सकता। यदि वर्ष भर में कोई एक ही व्रत हो तो वह मैं रख सकता हूँ, क्योंकि मेरे पेट में वृक नाम वाली अग्नि है सो मैं भोजन किए बिना नहीं रह सकता। भोजन करने से वह शान्‍त रहती है, इसलिए पूरा उपवास तो क्या एक समय भी बिना भोजन किए रहना कठिन है।

अत: आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जो वर्ष में केवल एक बार ही करना पड़े और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए। श्री व्यासजी कहने लगे कि हे पुत्र! बड़े-बड़े ऋषियों ने बहुत शास्त्र आदि बनाए हैं जिनसे बिना धन के थोड़े परिश्रम से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इसी प्रकार शास्त्रों में दोनों पक्षों की एका‍दशी का व्रत मुक्ति के लिए रखा जाता है।

व्यासजी के वचन सुनकर भीमसेन नरक में जाने के नाम से भयभीत हो गए और काँपकर कहने लगे कि अब क्या करूँ? मास में दो व्रत तो मैं कर नहीं सकता, हाँ वर्ष में एक व्रत करने का प्रयत्न अवश्य कर सकता हूँ। अत: वर्ष में एक दिन व्रत करने से यदि मेरी मुक्ति हो जाए तो ऐसा कोई व्रत बताइए।

यह सुनकर व्यासजी कहने लगे कि वृषभ और मिथुन की संक्रां‍‍ति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला है। तुम उस एकादशी का व्रत करो। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल वर्जित है। आचमन में छ: मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए अन्यथा वह मद्यपान के सदृश हो जाता है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है।

यदि एकादशी को सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न करे तो उसे सारी एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। द्वादशी को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके ब्राह्मणों का दान आदि देना चाहिए। इसके पश्चात भूखे और सत्पात्र ब्राह्मण को भोजन कराकर फिर आप भोजन कर लेना चाहिए। इसका फल पूरे एक वर्ष की संपूर्ण एकादशियों के बराबर होता है।

व्यासजी कहने लगे कि हे भीमसेन! यह मुझको स्वयं भगवान ने बताया है। इस एकादशी का पुण्य समस्त तीर्थों और दानों से अधिक है। केवल एक दिन मनुष्य निर्जल रहने से पापों से मुक्त हो जाता है।

जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं उनकी मृत्यु के समय यमदूत आकर नहीं घेरते वरन भगवान के पार्षद उसे पुष्पक विमान में बिठाकर स्वर्ग को ले जाते हैं। अत: संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत है। इसलिए यत्न के साथ इस व्रत को करना चाहिए। उस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का उच्चारण करना चाहिए और गौदान करना चाहिए।

इस प्रकार व्यासजी की आज्ञानुसार भीमसेन ने इस व्रत को किया। इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी या पांडव एकादशी भी कहते हैं। निर्जला व्रत करने से पूर्व भगवान से प्रार्थना करें कि हे भगवन! आज मैं निर्जला व्रत करता हूँ, दूसरे दिन भोजन करूँगा। मैं इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करूँगा, अत: आपकी कृपा से मेरे सब पाप नष्ट हो जाएँ। इस दिन जल से भरा हुआ एक घड़ा वस्त्र से ढँक कर स्वर्ण सहित दान करना चाहिए।

जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं उनको करोड़ पल सोने के दान का फल मिलता है और जो इस दिन यज्ञादिक करते हैं उनका फल तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस दिन अन्न खाते हैं, ‍वे चांडाल के समान हैं। वे अंत में नरक में जाते हैं। जिसने निर्जला एकादशी का व्रत किया है वह चाहे ब्रह्म हत्यारा हो, मद्यपान करता हो, चोरी की हो या गुरु के साथ द्वेष किया हो मगर इस व्रत के प्रभाव से स्वर्ग जाता है।

हे कुन्‍तीपुत्र! जो पुरुष या स्त्री श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करते हैं उन्हें अग्रलिखित कर्म करने चाहिए। प्रथम भगवान का पूजन, फिर गौदान, ब्राह्मणों को मिष्ठान्न व दक्षिणा देनी चाहिए तथा जल से भरे कलश का दान अवश्य करना चाहिए। निर्जला के दिन अन्न, वस्त्र, उपाहन (जूती) आदि का दान भी करना चाहिए। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस कथा को पढ़ते या सुनते हैं, उन्हें निश्चय ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

भगवान विष्णु को समर्पित निर्जला एकादशी व्रत नियमपूर्वक रखने से व्यक्ति के न केवल वर्ष भर की सभी एकादशी के व्रत का फल मिलता है बल्कि  उसके लिए विष्णुलोक की भी प्राप्ति का द्वार खुल जाता है। व्यक्ति के समस्त पाप कर्म निष्फल हो जाते हैं।

भगवान श्री विष्‍णु जी की तस्‍वीर अथवा मूर्ति, पुष्प, नारियल, सुपारी, फल, लौंग, धूप, दीप, घी , पंचामृत, अक्षत, तुलसी दल, चंदन और मिष्ठान आदि।

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श्री बृहस्‍पति देव जी की आरती || Shri Brihaspati Dev Ji Ki Aarti || जय बृहस्पति देवा || Jay Brihaspati Deva

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रविवार, 19 दिसंबर 2021

श्री तुलसी चालीसा || वृक्ष रूपिणी पावनी || नमो नमो तुलसी गुणकारी || Shri Tulsi Chalisa || Namo Namo Tulsi Gunkari Lyrics in Hindi

श्री तुलसी चालीसा || वृक्ष रूपिणी पावनी || नमो नमो तुलसी गुणकारी || Shri Tulsi Chalisa || Namo Namo Tulsi Gunkari Lyrics in Hindi 


वृक्ष रूपिणी पावनी 

तुलसी है तव नाम। 

विश्‍वपूजिता कृष्‍ण जीवनी 

वृंन्‍दा तुम्‍हें प्रणाम ।।


नमो नमो तुलसी गुणकारी 

तुम त्रिलोक में शुभ हितकारी। 

वन उपवन में शोभा तुम्‍हारी 

वृक्ष रूप में हो अवतारी।। 


देवी देवता अरु नर नारी

गावत महिता मात तुम्‍हारी। 

जहॉं चरण हो तुम्‍हरे माता 

स्‍थान वही पावन हो जाता।। 


गोपी तुम्‍हीं गौ लोक निवासी 

तुलसी नाम कृष्‍ण की दासी। 

अंश रूप थी तुम भगवन की

प्राण प्रिये जैसी मोहन की।। 


मुरलीधर संग तुमको पाया

क्रोध राधे को तुम पर आया।

कहा राधा ने श्राप है मेरा

मनुज योनि में जन्‍म हो तेरा।। 


हरि बोले तुलसी तुम जाओ

भरत खंड जा ध्‍यान लगाओ।

ब्रह्मा के वरदान फलेंगे

नारायण पति रूप मिलेंगे।।


राजा धर्मध्‍वज माधवी रानी 

जन्‍मी बनकर सुता सयानी। 

उपमा कोई काम न आई

तब से तुम तुलसी कहलाई।।


बद्रिका आश्रम का पथ लीन्‍हा 

उत्‍तम तप वहॉं जाकर कीन्‍हा। 

फलदाई दिन वो भी आया 

जब ब्रह्मा का दर्शन पाया।।


कहा ब्रह्मा ने मांगो तुम वर

तुमने कहा दे दो मुरलीधर।

ब्रह्मा जी ने राह बताई

तुमको तब ये कथा सुनाई।।


ब्रह्मा बोले सुन हे बाला 

शंखचूड़ है दैत्‍य निराला। 

मोहित है तुझ पर वो तब से

देखा है गौ लोक में जबसे।। 


था ग्‍वाला वो नाम सुदामा 

क्रोधित थी उस पर भी श्‍यामा। 

श्राप मिला पृथ्‍वी पर आया

शंखचूड़ है वो कहलाया।। 


पहले तू उसको ब्‍याहेगी

नारायण को फिर पायेगी।

नारायण के श्राप से पावन

बन जायेगी तू वृन्‍दावन।।


वृक्षों में देवी बन जायेगी

वृन्‍दावनी तू कहलायेगी। 

पूजा होगी तुझ बिन निशफल

संग रहेंगे विष्‍णु हर पल।।


राधा मंत्र तब दिया निराला 

तात ने सौलह अक्षर वाला। 

जब कर तुमने सिद्धि पाई 

लक्ष्‍मी सम सिद्धा कहलाई।।


शंखचूड़ से ब्‍याह रचाया 

सती के जैसा धर्म निभाया। 

शंखचूड़ पर ईर्ष्‍या आई

देवगणों की मति भरमाई।। 


शंखचूड़ को छल से मारा

काम किया ये शिव ने सारा।

शंखचूड़ का रूप धरा था

हरि ने सती का शील हरा था।।


श्राप दिया तुलसी ने रोकर

नाथ रहो तुम पत्‍थर होकर।

हरि बोले अ‍ब ये तन छोड़ो

तुम मेरे संग नाता जोड़ो।। 


क्‍या कहूँ आये तुम्‍हरा सरीरा

बने दंड की निर्मल नीरा। 

वृक्ष हो तुलसी केश तुम्‍हारे 

स्‍थान हो तुमसे पावन सारे।।


वर देकर फिर बोले भगवन

धन्‍य हो तुमसे सबके जीवन।

चरण जहॉं तव पड़ जायेंगे

तीर्थ स्‍थान वे कहलायेंगे।।


तुलसीयुक्‍त जल से जो नहाये

यज्ञ आदि का वो फल पाये।

विष्‍णु को प्रिय तुलसी चढ़ाये 

कोटि चढ़ावों का फल पाये।।


जो फल दे दो दान हजारा 

दे कार्तिक में दान तुम्‍हारा। 

भरत है भैया दास तुम्‍हारा 

अपनी शरण का दे दो सहारा।। 


कलियुग में महिमा तेरी

है मॉं अपरम्‍पार।

दिशा दिशा मे हो रही

तेरी जय जयकार।।

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