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रविवार, 24 नवंबर 2024

बृहस्‍पतिवार के व्रत की सम्‍पूर्ण पौराणिक कथा | Brihaspativar Vrat Ki Sampurna Pauranik Katha | Vrihaspativar Vrat Katha

बृहस्‍पतिवार के व्रत की सम्‍पूर्ण पौराणिक कथा | Brihaspativar Vrat Ki Sampurna Pauranik Katha | Vrihaspativar Vrat Katha

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वृहस्पतिवार के व्रत की विधि | Vrihaspativar Ke Vrat Ki Vidhi | Brihaspativar Vrat Ki Vidhi

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वृहस्पतिवार के दिन जो भी स्त्री-पुरुष व्रत करे उनको चाहिए कि वे दिन में एक ही समय भोजन करें। क्योंकि वृहस्पतेश्वर भगवान् का इस दिन पूजन होता है, भोजन पीले चने की दाल आदि का करें परन्तु नमक नहीं खावें और पीले वस्त्र पहनें, पीले ही फलों का प्रयोग करें, पीले चन्दन से पूजन करें। पूजन के बाद प्रेमपूर्वक गुरु महाराज की कथा सुननी चाहिए। इस व्रत को करने से मन की इच्छाएं पूरी होती हैं और वृहस्पति महाराज प्रसन्न होते हैं। धन, पुत्र, विद्या तथा मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है। परिवार को सुख तथा शान्ति मिलती है, इसलिए यह व्रत सर्वश्रेष्ठ और अति फलदायक सब स्त्री व पुरुषों के लिए है। इस व्रत में केले का पूजन करना चाहिए। कथा और पूजन के समय मन, क्रम, वचन से शुद्ध होकर जो इच्छा हो वृहस्पतिदेव से प्रार्थना करनी चाहिए। उनकी इच्छाओं को वृहस्पति देव अवश्य पूर्ण करते हैं ऐसा मन में दृढ़ विश्वास रखना चाहिए।
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अथ श्री वृहस्पतिवार व्रत कथा | Brihaspativar Vrat Katha | Vrihaspativar Vrat Katha

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एक समय की बात है कि भारतवर्ष में एक नृपति राज्य करता था। वह बड़ा ही प्रतापी और दानी था। वह नित्यप्रति मन्दिर में दर्शन करने जाता था। वह ब्राह्मण और गुरु की सेवा किया करता था। उसके दरवाजे से कोई भी निराश होकर नहीं लौटता था तथा वह प्रत्येक गुरुवार को व्रत रखता एवं पूजन करता था। हर दिन गरीबों की सहायता करता था। परन्तु यह सब बातें उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थीं। वह न व्रत करती और न किसी को एक दमड़ी तक दान में देती थी तथा राजा से भी ऐसा करने को मना किया करती थी।
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एक समय की बात है कि राजा तो शिकार खेलने जंगल को गए हुए थे। घर पर रानी और दासी थी। उस समय गुरु वृहस्पतिदेव एक साधु का रूप धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने गए तथा भिक्षा मांगी। तो रानी कहने लगी- हे साधु महाराज! मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं। मुझसे तो घर का ही कार्य समाप्त नहीं होता। इस कार्य के लिए तो मेरे पतिदेव ही बहुत हैं। अब आप इस प्रकार की कृपा करें कि यह सब धन नष्ट हो जावे तथा मैं आराम से रह सकूं। साधु बोले-हे देवी,  तुम तो बड़ी विचित्र हो। सन्तान और धन से कोई दुःखी नहीं होता है। इसको सभी चाहते हैं। पापी भी पुत्र और धन की इच्छा करता है। अगर आपके पास धन अधिक है तो भूखे मनुष्यों को भोजन कराओ। प्याऊ लगवाओ। ब्राह्मणों को दान दो। धर्मशाला बनवाओ। कुंआ, तालाब, बावड़ी, बाग-बगीचों आदि के निर्माण कराओ। निर्धन मनुष्यों की कुंआरी कन्याओं का विवाह कराओ और अनेकों यज्ञादि धर्म करो। इस प्रकार के कर्मों से आपके कुल का और आपका नाम परलोक में सार्थक होगा एवं स्वर्ग की प्राप्ति होगी। मगर वह रानी इन बातों से खुश न हुई। वह बोली- हे साधु महाराज ! मुझे ऐसे धन की भी आवश्यकता नहीं जिसको और मनुष्यों को दान दूं तथा जिसको रखने उठाने में मेरा सारा समय ही बरबाद हो जावे। साधु ने कहा- हे देवी! तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो ऐसा ही होगा। मैं तुम्हें बताता हूं वैसा ही करना। वृहस्पतिवार के दिन घर को गोबर से लीपना। अपने केशों को धोना, केशों को धोते समय स्नान करना, राजा से कहना वह हजामत करवाए। भोजन में मांस मंदिरा खाना, कपड़ा धोबी के यहां धुलने डालना। इस प्रकार सात वृहस्पतिवार करने से तुम्हारा सब धन नष्ट हो जावेगा। ऐसा कहकर वह साधु महाराज वहाँ से अन्तर्ध्यान हो गए।
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रानी ने साधू के कहने के अनुसार वैसा ही किया तीन वृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसका समस्त धन नष्ट हो गया और भोजन के लिए दोनों समय तरसने लगे। सांसारिक भोगों से दुखी रहने लगे। तब वह राजा रानी से कहने लगा कि रानी तुम यहाँ पर रहो मैं दूसरे देश को जाऊँ क्योंकि यहाँ पर मुझे सभी मनुष्य जानते हैं इसलिए कोई कार्य भी नहीं कर सकता। देश चोरी परदेश भीख बराबर है ऐसा कहकर राजा परदेश चला गया। वहां जंगल में जाता और लकड़ी काट कर लाता और शहर में बेचता इस तरह जीवन व्यतीत करने लगा। इधर राजा के घर रानी और दासी दुःखी रहने लगी किसी दिन भोजन मिलता और किसी दिन जल पीकर ही रह जातीं। एक समय रानी और दासी को सात रोज बिना भोजन के व्यतीत हो गये तो रानी ने अपनी दासी से कहा- हे दासी! यहाँ पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है। वह बड़ी धनवान है तू उसके पास जा और वहां से पांच सेर बेझर मांग ला जिससे कुछ समय के लिए गुजर हो जावेगी। इस प्रकार रानी की आज्ञा मानकर दासी उसकी बहन के पास गई तो रानी की बहन उस समय पूजन कर रही थी। क्योंकि उस दिन वृहस्पतिवार था। जब दासी ने रानी की बहन को देखा और उससे बोली- हे रानी। मुझे तुम्हारी बहन ने भेजा है। मेरे लिए पांच सेर बेझर दे दो। इस प्रकार दासी ने अनेक बार कहा परन्तु रानी ने कुछ उत्तर नहीं दिया। क्योंकि वह उस समय वृहस्पतिवार की व्रत कथा सुन रही थी। इस प्रकार जब दासी को किसी प्रकार उत्तर नहीं मिला तो वह बहुत दुखी हुई और क्रोध भी आया और लौटकर अपने गांव आ रानी के पास आकर बोली- हे रानी ! आपकी बहन बहुत ही बड़ी आदमी है। वह छोटे मनुष्यों से बात भी नहीं करती। क्योंकि मैंने उनसे कहा तो उसने कोई उत्तर नहीं दिया। मैं वापिस चली आई। रानी बोली- हे दासी ! इसमें उसका कोई दोष नहीं है जब बुरे दिन आते हैं तब कोई सहारा नहीं देता। अच्छे बुरे का पता विपत्ति में ही लगता है। जो ईश्वर की इच्छा होगी वही होगा। वह सब हमारे भाग्य का दोष है। इधर उस रानी ने देखा कि मेरी बहन की दासी आई थी परन्तु मैं उससे नहीं बोली इससे वह बहुत दुखी हुई होगी। यह सोच कथा को सुन और विष्णु भगवान् का पूजन समाप्त कर वह रानी अपनी बहन के घर चल दी और जाकर अपनी बहन से कहने लगी कि हे बहन ! मैं वृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी। तुम्हारी दासी गई परन्तु जब तक कथा होती है तब तक न उठते हैं और न बोलते हैं इसलिये मैं न बोली। कहो दासी क्यों गई थी? रानी बोली- बहन । हमारे अनाज नहीं था। वैसे तुमसे कोई बात छिपी नहीं है। इस कारण मैंने दासी को तुम्हारे पास पांच सेर बेझर लेने के लिये भेजा था। रानी बोली बहन देखो। वृहस्पति भगवान् सबका मनोकामना पूर्ण करते हैं। देखो शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो। इस प्रकार का वचन जब रानी ने सुना तो घर के अन्दर गई और वहां उसे एक घड़ा बेझर का भरा मिल गया। तब तो वह रानी और दासी को बहुत ही दुख हुआ। दासी कहने लगी हे रानी देखो। वैसे हमको जब खाने को नहीं मिलता तो हम प्रतिदिन ही व्रत करते हैं। अगर इनसे व्रत की विधि और कथा पूछ ली जावे तो उसे हम भी किया करेंगे। तब उस रानी ने अपनी बहन से पूछा। रानी की बहन ने बताया कि हे बहन वृहस्पतिवार के व्रत में चना की दाल, मुनक्का से विष्णु भगवान् का केले की जड़ में पूजन करे तथा दीपक जलावे। पीला भोजन करे तथा कहानी सुने। इस प्रकार करने से गुरु भगवान् प्रसन्न होते हैं। अन्न, पुत्र, धन देते हैं। मनोकामना पूर्ण करते हैं। इस प्रकार रानी और दासी दोनों ने निश्चय किया कि वृहस्पति भगवान् का पूजन जरूर करेंगे। सात दिन बाद जब वृहस्पतिवार आया तो उन्होंने व्रत रखा। घुड़साल में जाकर चना गुड़ बीन लाई तथा उसकी दाल से केले की जड़ का तथा विष्णु भगवान् का पूजन किया। अब भोजन पीला कहां से आवे। विचारी बड़ी दुखी हुई। परन्तु उन्होंने व्रत किया था इस कारण गुरु भगवान् प्रसन्न थे। दो थालों में सुन्दर पीला भोजन लेकर आये और दासी को देकर बोले-हे दासी ! यह तुम्हारे और रानी के लिए भोजन है। तुम दोनों करना। दासी भोजन पाकर बड़ी प्रसन्न हुई और रानी से बोली चलो रानी जी भोजन कर लो। रानी को इस विषय में कुछ पता नहीं था इसलिए वह दासी से बोली-तूही भोजन कर क्योंकि तू हमारी व्यर्थ में हंसी उड़ाती है। दासी बोली एक महात्मा भोजन दे गया है। रानी कहने लगी वह भोजन तेरे ही लिए दे गया है तू ही भोजन कर। दासी ने कहा-वह महात्मा हम दोनों को दो थालों में भोजन दे गया है। इसलिए हम और तुम दोनों ही साथ-साथ भोजन करेंगी। इस प्रकार रानी और दासी दोनों ने गुरु भगवान् को नमस्कार कर भोजन प्रारम्भ किया तथा अब वह प्रत्येक वृहस्पतिवार को गुरु भगवान् का व्रत और विष्णु पूजन करने लगी। वृहस्पति भगवान् की कृपा से फिर रानी और दासी के पास धन हो गया रानी फिर उस प्रकार आलस्य करने लगी। तब दासी बोली-देखो रानी। तुम पहले इस प्रकार आलस्य करती थी। तुम्हें धन के रखने में कष्ट होता था। इस कारण सभी धन नष्ट हो गया। अब गुरु भगवान् की कृपा से धन मिला है तो फिर तुम्हें आलस्य होता है। बड़ी मुसीबतों के बाद हमने यह धन पाया है। इसलिये हमें दान पुण्य करना चाहिए तथा भूखे मनुष्यों को भोजन कराओ, प्याऊ लगवाओ, ब्राह्मणों को दान दो। कुआँ, तालाब, बावड़ी आदि का निर्माण करो। मन्दिर पाठशाला बनवाकर दान दो। कुवांरी कन्याओं का विवाह करवाओ। धन को शुभ धन कर्मों में खर्च करो जिससे तुम्हारे कुल का यश बढ़े तथा स्वर्ग प्राप्त हो और पित्तर प्रसन्न होवें।
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तब रानी ने इसी प्रकार के कर्म करने प्रारम्भ किए तो काफी यश फैलने लगा। एक दिन रानी और दासी विचार करने लगी न जाने राजा किस प्रकार से होंगे। उनकी कोई खबर नहीं। गुरु भगवान् से उन्होंने प्रार्थना की और भगवान् ने रात्रि में राजा को स्वप्न में कहा- हे राजा ! उठ तेरी रानी तुझको याद करती है। अपने देश को चला जा। राजा प्रातःकाल उठा और विचार करने लगा। स्त्री जाति खाने और पहनने की सङ्गिन होती है पर भगवान् की आज्ञा मानकर वह अपने नगर के लिए चलने को तैयार हुआ इससे पूर्व जब राजा परदेश चला गया तो परदेश में दुखी रहने लगा। प्रतिदिन जंगल में से लकड़ी बीनकर लाता और उन्हें शहर में बेचकर अपने दुखी जीवन को बड़ी कठिनता से व्यतीत करता था। एक दिन राजा दुखी हो अपनी पुरानी बातों को याद करके रोने लगा। तब उस जंगल में से वृहस्पति देव एक साधु का रूप धारण कर आ गये और राजा के पास आकर बोले-हे लकड़हारे। तुम इस सुनसान जंगल में किस चिन्ता में बैठे हो। मुझको बतलाओ यह सुन राजा के नेत्रों में जल भर आया और साधु को वन्दना कर बोला- हे प्रभो आप ! आप सब कुछ जानने वाले हो। इतना कह साधु को अपनी सम्पूर्ण कहानी बतला दी। महात्मा दयालु होते हैं। उससे बोले- हे राजा ! तुम्हारी स्त्री ने वृहस्पति देव का अपराध किया था। जिस कारण तुम्हारी यह दशा हुई। अब तुम किसी प्रकार की चिन्ता मत करो। भगवान् तुम्हें पहले से अधिक धनवान करेगा। देखो तुम्हारी स्त्री ने गुरुवार का व्रत प्रारम्भ कर दिया है और तुम मेरा कहा मानकर वृहस्पतिवार को व्रत करके चने की दाल गुड़ जल को लोटे में डाल कर केला का पूजन करो। फिर कथा कहो और सुनो। भगवान् तेरी सब कामनाओं को पूर्ण करेगा। साधु को प्रसन्न देखकर राजा बोला- हे प्रभो! मुझे लकड़ी बेचकर इतना पैसा नहीं मिलता जिससे भोजन करने के उपरान्त कुछ बचा सकूं। मैंने रात्रि में अपनी रानी को ब्याकुल देखा है। मेरे पास कुछ भी नहीं जिससे उसकी खबर तो मंगा सकूं और फिर मैं कौन सी कहानी कहूं यह मुझको कुछ भी मालूम नहीं है। साधु ने कहा- हे राजा । तुम किसी बात की चिन्ता मत करो। वृहस्पतिवार के दिन तुम रोजाना की तरह लकड़ियां लेकर शहर को जाओ। तुम को रोज से दुगुना धन प्राप्त होगा। जिससे तुम भली-भांति भोजन कर लोगे तथा वृहस्पति देव की पूजा का सामान भी आ जावेगा और वृहस्पतिवार की कहानी निम्न प्रकार से है।
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वृहस्पति देव की कहानी । Brihaspati Dev Ki Kahani Lyrics in Hindi

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प्राचीन काल में एक ब्राह्मण था। वह बहुत ही निर्धन था। उसके कोई भी सन्तान नहीं थी। उसकी स्त्री बहुत मलिनता के साथ रहती थी। वह स्नान न करती। किसी देवता का पूजन न करती। प्रातः काल उठते ही सर्व प्रथम भोजन करती बाद में कोई अन्य कार्य करती थी। इससे ब्राह्मण देवता बड़े दुखी थे। बेचारे बहुत कुछ कहते थे किन्तु उसका कोई परिणाम न निकला। भगवान की कृपा से ब्राह्मण की स्त्री के कन्या रूपी रत्न पैदा हुआ और वह कन्या अपने पिता के घर में बड़ी होने लगी। वह बालिका प्रातः स्नान करके विष्णु भगवान् का जाप करने लगी। वृहस्पतिवार का व्रत करने लगी। अपने पूजा पाठ को समाप्त करके पाठशाला जाती तो अपनी मुट्ठी में जौ भरके ले जाती और पाठशाला के मार्ग में डालती जाती। तब ये जौ स्वर्ण के हो जाते लौटते समय उनको बीनकर घर ले आती थी। एक दिन वह बालिका सूप में उन सोने के जौओं को फटक कर साफ कर रही थी उसकी मां ने देख लिया और कहा-हे बेटी! सोने के जौओं को फटकने के लिये सोने का सूप होना चाहिए। दूसरे दिन गुरुवार था इस कन्या ने व्रत रखा और वृहस्पति देव से प्रार्थना करके कहा- हे प्रभो! मैंने आपकी पूजा सच्चे मन से की हो तो मेरे लिए सोने का सूप दे दो। वृहस्पति देव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। प्रतिदिन की तरह वह कन्या जौ फैलाती हुई जाने लगी जब लौटकर जौ बीन रही थी तो वृहस्पति देव की कृपा से सोने का सूप मिला। उसे वह घर ले आई और उससे जौ साफ करने लगी। परन्तु उसकी मां का वही ढंग रहा। एक दिन की बात है कि वह कन्या सोने के सूप में जौ साफ कर रही थी। उस समय उस शहर का राजपुत्र वहां होकर निकला। इस कन्या के रूप और कार्य को देखकर मोहित हो गया तथा अपने घर आकर भोजन तथा जल त्याग कर उदास होकर लेट गया। राजा को जब इस बात का पता लगा तो अपने प्रधान मन्त्रियों के साथ उसके पास गये और बोले- हे बेटा ! तुम्हें किस बात का कष्ट है। किसी ने अपमान किया है अथवा कोई और कारण है सो कहो मैं वही कार्य करूंगा जिससे तुम्हें प्रसन्नता हो। अपने पिता की राजकुमार ने बातें सुनी तो वह बोला मुझे आपकी कृपा से किसी बात का दुःख नहीं है। किसी ने मेरा अपमान नहीं किया है। परन्तु मैं उस लड़की के साथ विवाह करना चाहता हूँ जो सोने के सूप में जौ को साफ कर रही थी। यह सुन राजा आश्चर्य में पड़ा और बोला- हे बेटा! इस तरह की कन्या का पता तुम्हीं लगाओ। मैं उसके साथ तेरा विवाह अवश्य ही करवा दूंगा। राजकुमार ने उस लड़की के घर का पता बतलाया। तब मंत्री उस लड़की के घर गये और ब्राह्मण की कन्या का विवाह राजकुमार के साथ हो गया।
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कन्या के घर से जाते ही पहले की भांति उस ब्राह्मण देवता के घर में गरीबी का निवास हो गया। अब भोजन के लिए भी अन्न बड़ी मुश्किल से मिलता था। एक दिन दुखी होकर ब्राह्मण देवता अपनी पुत्री के पास गये। बेटी ने पिता की दुखी अवस्था को देखा और अपनी मां का हाल पूछा? तब ब्राह्मण ने सभी हाल कहा। कन्या ने बहुत सा धन देकर अपने पिता को विदा कर दिया। इस तरह ब्राह्मण का कुछ समय सुख पूर्वक व्यतीत हुआ। कुछ दिन बाद फिर वही हाल हो गया। ब्राह्मण फिर अपनी कन्या के यहाँ गया और सभी हाल कहा तो लड़की बोली-हे पिताजी ! आप माताजी को यहां लिवा लाओ। मैं उसे विधि बता दूंगी। जिससे गरीबी दूर हो जाए। वह ब्राह्मण देवता अपनी स्त्री को साथ लेकर पहुंचे तो पुत्री अपनी मां को समझाने लगी-हे मां! तुम प्रातःकाल उठकर प्रथम स्नानादि करके विष्णु भगवान् का पूजन करो तो सब दरिद्रता दूर हो जावेगी। परन्तु उसकी मां ने एक भी बात नहीं मानी और प्रातःकाल उठकर अपनी पुत्री के बच्चों का झूठन खा लिया है। एक दिन उसकी पुत्री को बहुत गुस्सा आया और एक रात कोठरी से सभी सामान निकाल दिया और अपनी मां को उसमें बन्द कर दिया। प्रातःकाल उसमें से निकाला तथा स्नानादि कराके पूजा पाठ करवाया तो उसकी माँ की बुद्धि ठीक हो गई और फिर प्रत्येक वृहस्पतिवार को व्रत रखने लगी। इस व्रत के प्रभाव से उसकी माँ भी बहुत ही धनवान तथा पुत्रवती हो गई और वृहस्पति जी के प्रभाव से स्वर्ग को प्राप्त हुई तथा वह ब्राह्मण भी सुख पूर्वक इस लोक के सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त हुए। इस तरह कहानी कहकर साधु देवता वहाँ से लोप हो गए। 
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धीरे-धीरे समय व्यतीत होने पर फिर वही वृहस्पतिवार का दिन आया राजा जंगल से लकड़ी काट कर किसी शहर में बेचने गया। उसे उस दिन और दिन से अधिक पैसा मिला। राजा ने चना गुड़ आदि लाकर वृहस्पतिवार का व्रत किया। उस दिन से उसके सभी क्लेश दूर हुए। परन्तु जब दुबारा गुरुवार का दिन आया तो वृहस्पतिवार का व्रत करना भूल गया। इस कारण वृहस्पति भगवान् नाराज हो गए। उस दिन उस नगर के राजा ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया तथा शहर में यह घोषणा करा दी की कोई भी मनुष्य अपने घर भोजन न बनावे और न ही आग जलावे। समस्त लोग मेरे यहाँ भोजन करने आवे। इस आज्ञा को जो न मानेगा उसके लिये फाँसी की सजा दी जायेगी। इस तरह की घोषणा सम्पूर्ण नगर में करवा दी गई। राजा की आज्ञानुसार शहर के सभी लोग भोजन करने गये। लेकिन लकड़हारा कुछ देर से पहुंचा। इस लिए राजा उसको अपने साथ घर लिवा ले गये और ले जाकर भोजन करा रहे थे। तो रानी की दृष्टि उस खूंटी पर पड़ी जिस पर उसका हार लटका हुआ था। वह वहाँ पर दिखाई नहीं दिया। रानी ने निश्चय किया कि मेरा हार इस मनुष्य ने चुरा लिया है उसी समय सिपाहियों को बुलाकर उसको जेल खाने में डलवा दिया। जब राजा जेलखाने में पड़ गया और बहुत दुखी होकर विचार करने लगा कि न जाने कौन से पूर्व जन्म के कर्म से मेरे लिए दुःख प्राप्त हुआ है। उसी साधु को याद करने लगा जो कि जंगल में मिला था। उसी समय तत्काल वृहस्पति देव साधु के रूप में प्रगट हो गये और उसकी दशा को देखकर कहने लगे अरे मूर्ख। तूने वृहस्पति देवता की कथा नहीं करी इस कारण तुझे दुःख प्राप्त हुआ है। अब चिन्ता मत कर वृहस्पतिवार के दिन जेलखाने के दरवाजे पर चार पैसा पड़े मिलेंगे। उनसे तू वृहस्पति देव की पूजा करना तेरे सभी कष्ट दूर हो जायेंगे। वृहस्पतिवार के दिन उसे चार पैसे मिले। राजा ने कथा कही। उसी रात्रि को वृहस्पति देव ने उस नगर के राजा को स्वप्न में कहा-हे राजा ! तुमने जिस आदमी को जेलखाने में बन्द कर दिया है वह निर्दोष है। वह राजा है। उसे छोड़ देना। रानी का हार उसी खूंटी पर लटका हुआ है। अगर तू ऐसा नहीं करेगा तो मैं तेरे राज्य को नष्ट कर दूंगा। इस तरह के रात्रि स्वप्न को देख राजा प्रातःकाल उठा और खूंटी पर हाल देख कर लकड़हारे को बुलाकर क्षमा मांगी तथा राजा को योग्य सुन्दर वस्त्र आभूषण देकर विदा किया तथा गुरुदेव की आज्ञानुसार राजा अपने नगर को चल दिया। 
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राजा जब नगर के निकट पहुंचा तो उसे बड़ा ही आश्चर्य हुआ। नगर में पहले से अधिक बाग तालाब और कुएं तथा बहुत सी धर्मशाला मन्दिर आदि बने हुए थे। राजा ने पूछा कि यह किसका बाग और धर्मशाला है। तब नगर के सब लोग कहने लगे कि यह सब रानी और दासी के हैं। तो राजा को आश्चर्य हुआ और गुस्सा भी आया। जब रानी ने यह खबर सुनी कि राजा आ रहे हैं तो उसने दासी से कहा कि हे दासी! देख राजा हमको कितनी बुरी हालात में छोड़ गये थे। वह हमारी ऐसी हालत देख कर लौट न जाय। इसलिए तू दरवाजे पर खड़ी हो जा। आज्ञानुसार दासी दरवाजे पर खड़ी हो गई और राजा आए तो उन्हें अपने साथ लिवा लाई। तब राजा ने क्रोध करके अपनी तलवार निकाली और पूछने लगे यह बताओ कि यह धन तुम्हें कैसे प्राप्त हुआ है। तब उन्होंने कहा हमें यह सब धन वृहस्पति देव के इस व्रत के प्रभाव से प्राप्त हुआ है।
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राजा ने निश्चय किया कि सात दिन बाद तो सभी वृहस्पति देव का पूजन करते हैं। परन्तु मैं प्रतिदिन दिन में तीन बार कहानी कहा करूंगा तथा रोज व्रत किया करूंगा। अब हर समय राजा के दुपट्टे में चने की दाल बंधी रहती तथा दिन में तीन बार कहानी कहता। एक दिन राजा ने विचार किया कि चलो अपनी बहन के यहां हो आवें। इस तरह निश्चय कर राजा घोड़े पर सवार हो अपनी बहन के यहां चलने लगा। मार्ग में उसने देखा कि कुछ आदमी एक मुर्दे को लिए जा रहे हैं उन्हें रोक कर राजा कहने लगा अरे भाइयों। मेरी वृहस्पति की कहानी सुन लो। वे बोले लो हमारा तो आदमी मर गया है इसको अपनी कथा की पड़ी है परन्तु कुछ आदमी बोले अच्छा कहो हम तुम्हारी कथा भी सुनेंगे। राजा ने दाल निकाली और जब कथा आधी हुई थी कि मुर्दा हिलने लग गया और जब कथा समाप्त हो गई तो राम राम करके वह मनुष्य खड़ा हो गया।
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आगे मार्ग में उसे एक किसान खेत में हल चलाता मिला। राजा ने उसे देखा और उससे बोला-अरे भइया ! तुम मेरी वृहस्पतिवार की कथा सुन लो। किसान बोला जब तक मैं तेरी कथा सुनूंगा तब तक चार हरैया जोत लूंगा! जा अपनी कथा किसी और को सुनाना। इस तरह राजा आगे चलने लगा। राजा के हटते ही बैल पछाड़ खा कर गिर गए तथा उसके पेट में पहुत जोर से दर्द होने लगा! उस समय उसकी मां रोटी लेकर आई। उस ने जब यह देखा तो अपने पुत्र से सब हाल पूछा और बेटे ने सभी हाल कह दिया तो बुढ़िया दौड़ी-दौड़ी उस घुड़सवार के पास गई और उससे बोली मैं तेरी कथा सुनूंगी। तू अपनी कथा मेरे खेत पर ही चल कर कहना। राजा ने बुढ़िया के खेत पर जाकर कथा कही जिसके सुनते ही वह बैल खड़े हुए तथा किसान के पेंट का दर्द बन्द हो गया। 
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राजा अपनी बहन के घर पहुंच गया। बहन ने भाई की खूब मेहमानी की। दूसरे दिन प्रातःकाल राजा जगा तो वह देखने लगा कि सब लोग भोजन कर रहे हैं। राजा ने अपनी बहन से कहा कि ऐसा कोई मनुष्य है जिसने भोजन नहीं किया हो। मेरी वृहस्पतिवार की कथा सुन ले। बहिन बोली- हे भैया । यह देश ऐसा ही है। पहले यहां लोग भाजन करते हैं, बाद में अन्य काम करते हैं। अगर कोई पड़ोस में हो तो देख आऊँ। वह ऐसा कहकर देखने चली परन्तु उसे कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जिसने भोजन न किया किया हो। अतः वह एक कुम्हार के घर गई जिसका लड़का बीमार था। उसे मालूम हुआ कि उनके यहां तीन रोज से किसी ने भोजन नहीं किया है। रानी ने अपने भाई की कथा सुनने के लिए कुम्हार से कहा। वह तैयार हो गया। राजा ने जाकर वृहस्पतिवार की कथा कही। जिसको सुनकर उसका लड़का ठीक हो गया। अब तो राजा की प्रशंसा होने लगी।
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एक दिन राजा ने अपनी बहन से कहा कि हे बहन, हम अपने घर को जायेंगे। तुम भी तैयार हो जाओ। राजा की बहन ने अपनी सास से पूँछा, सास बोली हाँ चली जा। परन्तु अपने लड़कों को मत ले जाना क्योंकि तेरे भाई के कोई औलाद नहीं होती है। बहन ने अपने भझ्या से कहा हे भइया। मैं तो चलूंगी किन्‍तु कोई बालक नहीं जायेगा। राजा बोला जब कोई बालक नहीं चलेगा तब तुम ही क्या करोगी? बड़े दुखी मन से राजा अपने नगर को लौट आया। राजा ने अपनी रानी से कहा हम निरवन्शी राजा हैं। हमारा मुँह देखने का धर्म नहीं है और कुछ भोजन आदि नहीं किया। रानी बोली- हे प्रभो! वृहस्पतिदेव ने हमें सब कुछ दिया है। हमें औलाद अवश्य देंगे। उसी रात को वृहस्पति देव ने राजा को स्वप्न में कहा हे राजा, उठ सभी सोच को त्याग दे। तेरी रानी गर्भ से है। राजा को यह बात सुनकर बड़ी खुशी हुई। नवें महीने में उसके गर्भ से एक सुन्दर पुत्र पैदा हुआ। तब राजा बोला- हे रानी ! स्त्री बिना भोजन के रह सकती है बिना कहे नहीं रह सकती। जब मेरी बहन आवे तुम उससे कुछ कहना मत। रानी ने सुन कर हाँ कर दिया।
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जब राजा की बहन ने यह शुभ समाचार सुना तो वह बहुत खुश हुई तथा बधाई लेकर अपने भाई के यहाँ आई। तभी रानी ने कहा घोड़ा चढ़कर तो नहीं आई गधा चढ़ी आई। राजा की बहन बोली भाई मैं इस प्रकार न कहती तो तुम्हें औलाद कैसे मिलती ? वृहस्पति देव ऐसे ही हैं, जैसी जिसके मन में कामनाएं हैं, सभी को पूर्ण करते हैं। जो सद्भावना पूर्वक वृहस्पतिवार का व्रत करता है एवं कथा पढ़ता है अथवा सुनता है और दूसरों को सुनाता है वृहस्पति देव उसकी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं। भगवान् वृहस्पति देव उनकी सदैव रक्षा करते हैं। संसार में सद्भावना से भगवान् जी का पूजन व्रत सच्चे हृदय से करते हैं तो उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। जैसी सच्ची भावना से रानी और राजा ने उनकी कथा का गुणगान किया तो उनकी सभी इच्छाएं वृहस्पति देव जी ने पूर्ण की इसलिए कथा सुनने के बाद प्रसाद लेकर जाना चाहिए। हृदय से उनका मनन करते हुए जयकारा बोलना चाहिए। बोलो बृहस्‍पतिदेव की जय। 
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आरती वृहस्पति देव की । ॐ जय वृहस्पति देवा । Om Jay Brihaspati Deva | Brihaspati Dev Ki Aarti Lyrics in Hindi & English

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ॐ जय वृहस्पति देवा 
जय वृहस्पति देवा 
छिन छिन भोग लगाऊँ 
कदली फल मेवा ॥ॐ॥ 
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तुम पूर्ण परमात्मा 
तुम अन्तर्यामी  
जगत पिता जगदीश्वर 
तुम सबके स्वामी ॥ ॐ ॥ 
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चरणामृत निज निर्मल 
सब पातक हर्ता  
सकल मनोरथ दायक 
कृपा करो भर्ता ॥ॐ॥ 
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तन, मन, धन, अर्पणकर 
जो जन शरण पड़े 
प्रभु प्रकट तब होकर 
आकर द्वार खड़े ॥ॐ ॥ 
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दीन दयाल दयानिधि 
भक्तन हितकारी 
पाप दोष सब हर्ता 
भव बन्धन हारी ॥ॐ॥ 
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सकल मनोरथ दायक 
सब संशय तारी  
विषय विकार मिटाओ 
सन्तन सुखकारी ॥ॐ॥ 
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जो कोई आरती तेरी 
प्रेम सहित गावे  
जेष्टानन्द, बंद सो 
सो निश्चय पावे ॥ॐ॥
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सब बोलो विष्णु भगवान् की जय 
बोलो वृहस्पति देव भगवान् की जय
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लक्ष्मी जी की आरती । जय लक्ष्मी माता । Lakshmi Ji Ki Aarti | Jay Lakshmi Mata Lyrics in Hindi & English

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जय लक्ष्मी माता 
जय लक्ष्मी माता  
तुमको निशि दिन सेवत 
हर विष्णु विधाता ॥ जय ॥ 
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ब्रह्मा कमला तूही 
है जग की माता 
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत 
नारद ऋषि गाता ॥ जय॥ 
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दुर्गा रूप निरंजन 
सुख सम्पति दाता 
जो कोई तुमको ध्यावत 
ऋद्धि-सिद्धि पाता ॥ जय॥ 
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तूही पाताल निवासिनी  
तूही है शुभ दाता 
कर्म प्रभाव प्रकाशक 
जग विधि से त्राता॥ जय ॥ 
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जिस घर थारी बास 
तेही में गुण आता  
कर न सके सोई करले 
मन नहीं धड़काता ॥ जय ॥ 
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तुम बिन यज्ञ न होवे 
वस्त्र न कोई पाता 
तुम बिन मिले न खाने 
को वैभव गुणगाता ॥ जय॥ 
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शुभ गुण सुन्दर मुक्ता 
क्षीर निधि जाता 
रतन चतुर्दश तोको 
कोई नहीं पाता ॥ जय॥ 
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ये आरती लक्ष्मी जी की 
जो कोई गाता 
उर आनन्द अति उमड़े 
पार उतर जाता ॥ जय ॥ 
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स्थिर चर जगत बचाये 
कर्म प्रख्याता  
राम प्रताप मैया की 
शुभ दृष्टि चाहता ॥ जय ॥ 
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जय लक्ष्मी माता 
जय लक्ष्मी माता 
तुम को निशि दिन ध्यावत 
हर विष्णु विधाता ॥ जय ॥
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श्री जगदीश्वरजी की आरती । ॐ जय जगदीश हरे । Om Jay Jagadish Hare | Jagdishwar Ji Ki Aarti | Brihaspativar Ki Aarti

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ॐ जय जगदीश हरे 
प्रभु जय जगदीश हरे 
भक्तजनों के संकट 
छिन में दूर करे ॥ ॐ॥ 
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जो ध्यावै फल पावे 
दुख बिनसे मनका  
सुख सम्पति घर आवे 
कष्ट मिटे तनका ॥ ॐ॥ 
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मात-पिता तुम मेरे 
शरण गहूँ मैं किसकी 
तुम बिन और न दूजा 
आस करूं जिसकी ॥ ॐ॥ 
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तुम पूरन परमात्मा 
तुम अन्तर्यामी  
पारब्रह्म परमेश्वर 
तुम सबके स्वामी ॥ ॐ ॥ 
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तुम करुणा के सागर 
तुम पालन कर्ता  
मैं मूरख खल कामी 
कृपा करो भर्ता ॥ ॐ॥ 
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तुम हो एक अगोचर 
सबके प्राणपती  
किस विधि मिलूं दयामय 
तुमको मैं कुमती ॥ ॐ ॥ 
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दीनबन्धु दुःख हर्ता 
रक्षक तुम मेरे 
अपने हाथ उठाओ 
द्वार पड़ा तेरे ॥ ॐ॥ 
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विषय विकार मिटाओ 
पाप हरो देवा  
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ 
संतन की सेवा ॥ ॐ ॥ 
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तन मन धन 
सब कुछ है तेरा 
तेरा तुझको अर्पण 
क्या लागे मेरा ॥ ॐ ॥ 
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श्यामसुन्दर जी की आरती 
जो कोई नर गावे  
कहत शिवानंद स्वामी 
सुख सम्पत्ति पावे ॥ ॐ॥
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शनिवार, 23 नवंबर 2024

Jay Kapi Badvanta | जय कपि बडवंता | श्री कष्टभंजन हनुमानजी की आरती | Shri Kashtbhanjan Hanuman Ji Ki Aarti Lyrics in Hindi and English

Jay Kapi Badvanta | जय कपि बडवंता | श्री कष्टभंजन हनुमानजी की आरती | Shri Kashtbhanjan Hanuman Ji Ki Aarti Lyrics in Hindi and English 

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जय कपि बडवंता
प्रभु जय कपि बडवंता
सुर नर मुनिजन वंदित
सुर नर मुनिजन वंदित
पदरज हनुमंता
जय कपि बडवंता
प्रभु जय कपि बलवंता
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प्रौढ़ प्रताप पवनसुत
त्रिभुवन जयकारी
प्रभु त्रिभुवन जयकारी
असुर रिपू मदगंजन
असुर रिपू मद गंजन
भय संकट हारी
जय कपि बडवंता
प्रभु जय कपि बडवंता
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जय कपि बडवंता
प्रभु जय कपि बडवंता
सुर नर मुनिजन वंदित
सुर नर मुनिजन वंदित
पदरज हनुमंता
जय कपि बडवंता
प्रभु जय कपि बडवंता
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भूत पिशाच विकट ग्रह
पीड़त नही जम्पे
प्रभु पीड़त नही जम्पे
हनुमंत हाक सुणीने 
हनुमंत हाक सुणीने 
थर थर थर कंपे
प्रभु थर थर थर कंपे
जय कपि बडवंता
प्रभु जय कपि बलवंता
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जय कपि बडवंता
प्रभु जय कपि बडवंता
सुर नर मुनिजन वंदित
सुर नर मुनिजन वंदित
पदरज हनुमंता
जय कपि बडवंता
प्रभु जय कपि बडवंता
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रघुवीर सहाय ओढंग्यो
सागर अति भारी
प्रभु सागर अति भारी
सीता सोध ले आए
सीता सोध ले आए
कपि लंका जारी
जय कपि बडवंता
प्रभु जय कपि बडवंता
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जय कपि बडवंता
प्रभु जय कपि बडवंता
सुर नर मुनिजन वंदित
सुर नर मुनिजन वंदित
पदरज हनुमंता
जय कपि बडवंता
प्रभु जय कपि बडवंता
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राम चरण रतिदायक
शरणागत त्राता
प्रभु शरणागत त्राता
प्रेमानंद कहे हनुमत
प्रेमानंद कहे हनुमत
वांछित फल दाता
जय कपि बडवंता
प्रभु जय कपि बडवंता
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जय कपि बडवंता
प्रभु जय कपि बडवंता
सुर नर मुनिजन वंदित
सुर नर मुनिजन वंदित
पदरज हनुमंता
जय कपि बडवंता
प्रभु जय कपि बडवंता
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Jay Kapi Badvanta | जय कपि बडवंता | श्री कष्टभंजन हनुमानजी की आरती | Shri Kashtbhanjan Hanuman Ji Ki Aarti Lyrics in Hindi and English

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Jaya kapi baḍavantā
Prabhu jaya kapi baḍavantā
Sur nar munijan vandita
Sur nar munijan vandita
Padaraj hanumantā
Jaya kapi baḍavantā
Prabhu jaya kapi balavantā
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Prauḍha pratāp pavanasuta
Tribhuvan jayakārī
Prabhu tribhuvan jayakārī
Asur ripū madaganjana
Asur ripū mad ganjana
Bhaya sankaṭ hārī
Jaya kapi baḍavantā
Prabhu jaya kapi baḍavantā
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Jaya kapi baḍavantā
Prabhu jaya kapi baḍavantā
Sur nar munijan vandita
Sur nar munijan vandita
Padaraj hanumantā
Jaya kapi baḍavantā
Prabhu jaya kapi baḍavantā
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Bhūt pishāch vikaṭ graha
Pīḍat nahī jampe
Prabhu pīḍat nahī jampe
Hanumanta hāk suṇīne 
Hanumanta hāk suṇīne 
Thar thar thar kanpe
Prabhu thar thar thar kanpe
Jaya kapi baḍavantā
Prabhu jaya kapi balavantā
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Jaya kapi baḍavantā
Prabhu jaya kapi baḍavantā
Sur nar munijan vandita
Sur nar munijan vandita
Padaraj hanumantā
Jaya kapi baḍavantā
Prabhu jaya kapi baḍavantā
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Raghuvīr sahāya oḍhangyo
Sāgar ati bhārī
Prabhu sāgar ati bhārī
Sītā sodh le āe
Sītā sodh le āe
Kapi lankā jārī
Jaya kapi baḍavantā
Prabhu jaya kapi baḍavantā
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Jaya kapi baḍavantā
Prabhu jaya kapi baḍavantā
Sur nar munijan vandita
Sur nar munijan vandita
Padaraj hanumantā
Jaya kapi baḍavantā
Prabhu jaya kapi baḍavantā
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Rām charaṇ ratidāyaka
Sharaṇāgat trātā
Prabhu sharaṇāgat trātā
Premānanda kahe hanumata
Premānanda kahe hanumata
Vāanchhit fal dātā
Jaya kapi baḍavantā
Prabhu jaya kapi baḍavantā
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Jaya kapi baḍavantā
Prabhu jaya kapi baḍavantā
Sur nar munijan vandita
Sur nar munijan vandita
Padaraj hanumantā
Jaya kapi baḍavantā
Prabhu jaya kapi baḍavantā
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सोमवार, 4 नवंबर 2024

करें भगत हो आरती || दुर्गा माता की आरती || Durga Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi and English

करें भगत हो आरती || दुर्गा माता की आरती || Durga Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi and English

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करें भगत हो आरती 
माई दोई बेरियां ॥
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सोने के लोटा गंगा जल पानी 
माई दोई बेरियां
अतर चढें दो दो सिसियां 
माई दोई बेरियां
करें भगत जन आरती 
माई दोई बेरियां
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लाए नंदन वन से फुलवा  
माई दोई बेरियां
हार बनाये चुन चुन कलियां 
माई दोई बेरियां
करें भगत जन आरती 
माई दोई बेरियां
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पान सुपारी ध्वजा नारियल 
माई दोई बेरियां
धूप कपूर चढ़े चुड़ियाँ 
माई दोई बेरियां
करें भगत जन आरती 
माई दोई बेरियां
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लाल वरण सिंगार करे 
माई दोई बेरियां
मेवा खीर सजी थरियां 
माई दोई बेरियां
करें भगत जन आरती 
माई दोई बेरियां
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गुप्तेश्वर की पीर हरो 
माई दोई बेरियां
काटो बिपत की भई जरियां 
माई दोई बेरियां
करें भगत जन आरती 
माई दोई बेरियां
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करें भगत हो आरती || दुर्गा माता की आरती || Durga Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi and English

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Karean bhagat ho āratī 
Māī doī beriyāan ॥
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Sone ke loṭā gangā jal pānī 
Māī doī beriyāan
Atar chaḍhean do do sisiyāan 
Māī doī beriyāan
Karean bhagat jan āratī 
Māī doī beriyāan
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Lāe nandan van se fulavā  
Māī doī beriyāan
Hār banāye chun chun kaliyāan 
Māī doī beriyāan
Karean bhagat jan āratī 
Māī doī beriyāan
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Pān supārī dhvajā nāriyal 
Māī doī beriyāan
Dhūp kapūr chaḍha़e chuḍaiyā 
Māī doī beriyāan
Karean bhagat jan āratī 
Māī doī beriyāan
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Lāl varaṇ siangār kare 
Māī doī beriyāan
Mevā khīr sajī thariyāan 
Māī doī beriyāan
Karean bhagat jan āratī 
Māī doī beriyāan
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Gupteshvar kī pīr haro 
Māī doī beriyāan
Kāṭo bipat kī bhaī jariyāan 
Māī doī beriyāan
Karean bhagat jan āratī 
Māī doī beriyāan
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शनिवार, 2 नवंबर 2024

सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी || देवी आरती लिरिक्स || Devi Aarti Lyrics in Hindi & English

सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी || देवी आरती लिरिक्स || Devi Aarti Lyrics in Hindi & English 

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सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी  
कोई तेरा पार ना पाया माँ 
पान सुपारी ध्वजा नारियल 
ले तेरी भेंट चढ़ायो माँ 
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सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी 
कोई तेरा पार ना पाया माँ 
सुवा चोली तेरी अंग विराजे 
केसर तिलक लगाया 
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सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी 
कोई तेरा पार ना पाया माँ 
नंगे पग मां अकबर आया 
सोने का छत्र चढाया  
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सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी 
कोई तेरा पार ना पाया माँ 
ऊंचे पर्वत बन्‍यो देवालय 
नीचे शहर बसाया 
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सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी 
कोई तेरा पार ना पाया माँ 
सत्युग द्वापर त्रेता मध्ये 
कालियुग राज सवाया 
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सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी 
कोई तेरा पार ना पाया माँ
धूप दीप नैवैद्य आरती 
मोहन भोग लगाया 
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सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी 
कोई तेरा पार ना पाया माँ 
ध्यानू भगत मैया तेरे गुन गाया 
मनवांछित फल पाया 
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सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी 
कोई तेरा पार ना पाया माँ 
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सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी || देवी आरती लिरिक्स || Devi Aarti Lyrics in Hindi & English

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Sun merī devī parvatavāsinī  
Koī terā pār nā pāyā mā 
Pān supārī dhvajā nāriyal 
Le terī bheanṭa chaḍhaāyo mā 
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Sun merī devī parvatavāsinī 
Koī terā pār nā pāyā mā 
Suvā cholī terī aanga virāje 
Kesar tilak lagāyā 
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Sun merī devī parvatavāsinī 
Koī terā pār nā pāyā mā 
Nange pag māan akabar āyā 
Sone kā chhatra chaḍhāyā  
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Sun merī devī parvatavāsinī 
Koī terā pār nā pāyā mā 
Ūanche parvat banyo devālaya 
Nīche shahar basāyā 
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Sun merī devī parvatavāsinī 
Koī terā pār nā pāyā mā 
Satyug dvāpar tretā madhye 
Kāliyug rāj savāyā 
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Sun merī devī parvatavāsinī 
Koī terā pār nā pāyā mā
Dhūp dīp naivaidya āratī 
Mohan bhog lagāyā 
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Sun merī devī parvatavāsinī 
Koī terā pār nā pāyā mā 
Dhyānū bhagat maiyā tere gun gāyā 
Manavāanchhit fal pāyā 
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Sun merī devī parvatavāsinī 
Koī terā pār nā pāyā mā 
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शुक्रवार, 1 नवंबर 2024

ॐ जै यक्ष कुबेर हरे || कुबेर जी की आरती || Shri Kuber Ji Ki Aarti Lyrics in Hindi & English

ॐ जै यक्ष कुबेर हरे || कुबेर जी की आरती || Shri Kuber Ji Ki Aarti Lyrics in Hindi & English

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कौन हैं धन के देवता श्री कुबेर जी
श्री कुबेर जी भारतीय पौराणिक कथाओं में धन और समृद्धि के देवता माने जाते हैं। उन्हें धन के रक्षक और संपत्ति के स्वामी के रूप में पूजा जाता है। वे दवों का ग्रह (ग्रह) भी माने जाते हैं और उनकी पूजा से आर्थिक समस्याओं का समाधान हो सकता है। कुबेर जी को अक्सर हिमालय के राजा और रिद्धि-सिद्धि के देवता के रूप में चित्रित किया जाता है। वे यक्षों के राजा भी हैं। वे उत्तर दिशा के दिक्पाल हैं और लोकपाल (संसार के रक्षक) भी हैं। इनके पिता महर्षि विश्रवा थे और माता देववर्णिणी थीं।
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कुबेर देव की पूजा करने के लाभ
1. धन की प्राप्ति: कुबेर जी की पूजा करने से धन और समृद्धि के मार्ग खुलते हैं।
2. व्यापार में सफलता: व्यापारी वर्ग के लिए उनकी पूजा विशेष रूप से लाभकारी होती है।
3. ऋण से मुक्ति: कुबेर जी की कृपा से ऋण से छुटकारा पाया जा सकता है।
4. धन का संरक्षण: पूजा करने से धन का संरक्षण और वृद्धि होती है।
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कुबेर किसका अवतार हैं
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार धन के देवता कुबेर ऋषि विश्रवा के पुत्र और लंकापति रावण के सौतेले भाई हैं। विश्रवा का पुत्र होने के नाते कुबेर को वैश्रवण भी कहा जाता है। मान्यता हैं कि घर की उत्तर दिशा में कुबेर देव का वास होता है और ये भगवान शिव के परम भक्त और नौ निधियों के देवता माने जाते हैं।
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ॐ जै यक्ष कुबेर हरे 
स्वामी जै यक्ष कुबेर हरे
शरण पड़े भगतों के 
भण्डार कुबेर भरे 
ॐ जै यक्ष कुबेर हरे
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शिव भक्तों में भक्त कुबेर बड़े 
स्वामी भक्त कुबेर बड़े 
दैत्य दानव मानव से 
कई-कई युद्ध लड़े 
ॐ जै यक्ष कुबेर हरे
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स्वर्ण सिंहासन बैठे 
सिर पर छत्र फिरे 
स्वामी सिर पर छत्र फिरे 
योगिनी मंगल गावैं 
सब जय जयकार करैं 
ॐ जै यक्ष कुबेर हरे
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गदा त्रिशूल हाथ में 
शस्त्र बहुत धरे 
स्वामी शस्त्र बहुत धरे
दुख भय संकट मोचन 
धनुष टंकार करें 
ॐ जै यक्ष कुबेर हरे
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भांति भांति के व्यंजन बहुत बने 
स्वामी व्यंजन बहुत बने 
मोहन भोग लगावैं 
साथ में उड़द चने 
ॐ जै यक्ष कुबेर हरे
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बल बुद्धि विद्या दाता 
हम तेरी शरण पड़े 
स्वामी हम तेरी शरण पड़े 
अपने भक्त जनों के 
सारे काम संवारे 
ॐ जै यक्ष कुबेर हरे
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मुकुट मणी की शोभा 
मोतियन हार गले 
स्वामी मोतियन हार गले 
अगर कपूर की बाती 
घी की जोत जले 
ॐ जै यक्ष कुबेर हरे
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यक्ष कुबेर जी की आरती 
जो कोई नर गावे 
स्वामी जो कोई नर गावे 
कहत प्रेमपाल स्वामी 
मनवांछित फल पावे 
ॐ जै यक्ष कुबेर हरे
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ॐ जै यक्ष कुबेर हरे || कुबेर जी की आरती || Shri Kuber Ji Ki Aarti Lyrics in Hindi & English

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Aum jai yakṣha kuber hare 
Svāmī jai yakṣha kuber hare
Sharaṇ paḍe bhagatoan ke 
Bhaṇḍār kuber bhare 
Aum jai yakṣha kuber hare
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Shiv bhaktoan mean bhakta kuber baḍae 
Svāmī bhakta kuber baḍae 
Daitya dānav mānav se 
Kaī-kaī yuddha laḍae 
Aum jai yakṣha kuber hare
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Svarṇa sianhāsan baiṭhe 
Sir par chhatra fire 
Svāmī sir par chhatra fire 
Yoginī mangal gāvaian 
Sab jaya jayakār karaian 
Aum jai yakṣha kuber hare
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Gadā trishūl hāth mean 
Shastra bahut dhare 
Svāmī shastra bahut dhare
Dukh bhaya sankaṭ mochan 
Dhanuṣh ṭankār karean 
Aum jai yakṣha kuber hare
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Bhāanti bhāanti ke vyanjan bahut bane 
Svāmī vyanjan bahut bane 
Mohan bhog lagāvaian 
Sāth mean uḍad chane 
Aum jai yakṣha kuber hare
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Bal buddhi vidyā dātā 
Ham terī sharaṇ paḍae 
Svāmī ham terī sharaṇ paḍae 
Apane bhakta janoan ke 
Sāre kām sanvāre 
Aum jai yakṣha kuber hare
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Mukuṭ maṇī kī shobhā 
Motiyan hār gale 
Svāmī motiyan hār gale 
Agar kapūr kī bātī 
Ghī kī jot jale 
Aum jai yakṣha kuber hare
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Yakṣha kuber jī kī āratī 
Jo koī nar gāve 
Svāmī jo koī nar gāve 
Kahat premapāl swāmī 
Manavāanchhit fal pāve 
Aum jai yakṣha kuber hare
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गुरुवार, 31 अक्तूबर 2024

सुख कर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची || सिद्धिविनायक जी की आरती || Shri Siddhivinayak Ji Ki Aarti Lyrics in Hindi & English

सुख कर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची || सिद्धिविनायक जी की आरती || Shri Siddhivinayak Ji Ki Aarti Lyrics in Hindi & English

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वक्रतुण्ड महाकाय 
सूर्यकोटि समप्रभ 
निर्विघ्नम् कुरु मे देव 
सर्व कार्येषु सर्वदा
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ॐ गं गणपतये नमो नम: 
श्री सिध्धी-विनायक नमो नम: 
अष्ट-विनायक नमो नम: 
गणपती बाप्पा मौर्य 
मंगल मूर्ति मौर्य 
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सुख कर्ता दुखहर्ता 
वार्ता विघ्नाची 
नूर्वी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची 
सर्वांगी सुन्दर 
उटी-शेंदु राची 
कंठी-झलके माल 
मुकता फळांची 
जय देव जय देव 
जय देव जय देव 
जय मंगल मूर्ति 
दर्शन मात्रे मनःकामना पूर्ति 
जय देव जय देव 
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रत्न खचित फरा 
तुझ गौरी कुमरा 
चंदनाची उटी 
कुमकुम केशरा 
हीरे जडित मुकुट 
शोभतो बरा 
रुन्झुनती नूपुरे 
चरनी घागरिया 
जय देव जय देव 
जय देव जय देव 
जय मंगल मूर्ति 
दर्शन मात्रे मनःकामना पूर्ति 
जय देव जय देव 
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लम्बोदर पीताम्बर 
फनिवर वंदना 
सरल सोंड 
वक्रतुंडा त्रिनयना 
दास रामाचा 
वाट पाहे सदना 
संकटी पावावे 
निर्वाणी रक्षावे 
सुरवर वंदना 
जय देव जय देव  
जय देव जय देव 
जय मंगल मूर्ति 
दर्शन मात्रे मनःकामना पूर्ति 
जय देव जय देव
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शेंदुर-लाल चढायो 
अच्छा गज मुख को 
दोन्दिल लाल बिराजे 
सूत गौरिहर को 
हाथ लिए गुड लड्डू 
साई सुरवर को 
महिमा कहे ना जाय 
लागत हू पद को 
जय देव जय देव 
जय जय जी गणराज 
विद्या सुखदाता 
धन्य तुम्हारो दर्शन 
मेरा मन रमता 
जय देव जय देव
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अष्ट सिधि दासी 
संकट को बैरी 
विघन विनाशन मंगल 
मूरत अधिकारी 
कोटि सूरज प्रकाश 
ऐसे छवि तेरी 
गंडस्थल मदमस्तक 
झूल शशि बहरी 
जय देव जय देव 
जय जय जी गणराज 
विद्या सुखदाता 
धन्य तुम्हारो दर्शन 
मेरा मन रमता 
जय देव जय देव 
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भाव भगत से कोई 
शरणागत आवे 
संतति संपत्ति सब ही 
भरपूर पावे 
ऐसे तुम महाराज 
मोको अति भावे 
गोसावी नंदन 
निशि दिन गुण गावे 
जय देव जय देव 
जय जय जी गणराज 
विद्या सुखदाता 
हो स्वामी सुख दाता 
धन्य तुम्हारो दर्शन 
मेरा मन रमता 
जय देव जय देव
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जय देव जय देव 
जय मंगल मूर्ति
दर्शन मात्रे मनःकामना पूर्ति 
जय देव जय देव
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सुख कर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची || सिद्धिविनायक जी की आरती || Shri Siddhivinayak Ji Ki Aarti Lyrics in Hindi & English

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Vakratuṇḍa mahākāya 
Sūryakoṭi samaprabh 
Nirvighnam kuru me dev 
Sarva kāryeṣhu sarvadā
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Aum gan gaṇapataye namo nama: 
Shrī sidhdhī-vināyak namo nama: 
Aṣhṭa-vināyak namo nama: 
Gaṇapatī bāppā maurya 
Mangal mūrti maurya 
**
Sukh kartā dukhahartā 
Vārtā vighnāchī 
Nūrvī pūrvī prem kṛupā jayāchī 
Sarvāangī sundar 
Uṭī-sheandu rāchī 
Kanṭhī-jhalake māl 
Mukatā faḷāanchī 
Jaya dev jaya dev 
Jaya dev jaya dev 
Jaya mangal mūrti 
Darshan mātre manahkāmanā pūrti 
Jaya dev jaya dev 
**
Ratna khachit farā 
Tuz gaurī kumarā 
Chandanāchī uṭī 
Kumakum kesharā 
Hīre jaḍit mukuṭ 
Shobhato barā 
Runzunatī nūpure 
Charanī ghāgariyā 
Jaya dev jaya dev 
Jaya dev jaya dev 
Jaya mangal mūrti 
Darshan mātre manahkāmanā pūrti 
Jaya dev jaya dev 
**
Lambodar pītāmbar 
Fanivar vandanā 
Saral soanḍa 
Vakratuanḍā trinayanā 
Dās rāmāchā 
Vāṭ pāhe sadanā 
Sankaṭī pāvāve 
Nirvāṇī rakṣhāve 
Suravar vandanā 
Jaya dev jaya dev  
Jaya dev jaya dev 
Jaya mangal mūrti 
Darshan mātre manahkāmanā pūrti 
Jaya dev jaya deva
**
Sheandura-lāl chaḍhāyo 
Achchhā gaj mukh ko 
Dondil lāl birāje 
Sūt gaurihar ko 
Hāth lie guḍ laḍḍū 
Sāī suravar ko 
Mahimā kahe nā jāya 
Lāgat hū pad ko 
Jaya dev jaya dev 
Jaya jaya jī gaṇarāj 
Vidyā sukhadātā 
Dhanya tumhāro darshan 
Merā man ramatā 
Jaya dev jaya deva
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Aṣhṭa sidhi dāsī 
Sankaṭ ko bairī 
Vighan vināshan mangal 
Mūrat adhikārī 
Koṭi sūraj prakāsh 
Aise chhavi terī 
Ganḍasthal madamastak 
Zūl shashi baharī 
Jaya dev jaya dev 
Jaya jaya jī gaṇarāj 
Vidyā sukhadātā 
Dhanya tumhāro darshan 
Merā man ramatā 
Jaya dev jaya dev 
**
Bhāv bhagat se koī 
Sharaṇāgat āve 
Santati sanpatti sab hī 
Bharapūr pāve 
Aise tum mahārāj 
Moko ati bhāve 
Gosāvī nandan 
Nishi din guṇ gāve 
Jaya dev jaya dev 
Jaya jaya jī gaṇarāj 
Vidyā sukhadātā 
Ho swāmī sukh dātā 
Dhanya tumhāro darshan 
Merā man ramatā 
Jaya dev jaya deva
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Jaya dev jaya dev 
Jaya mangal mūrti
Darshan mātre manahkāmanā pūrti 
Jaya dev jaya deva
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