श्री मदभगवद्गीता की आरती || जय भगवद्गीते , जय भगवद्गीते || Shri Madbhagwadgeeta ki Aarti || आरती || Aarti || Jay Bhagwatgeete
जय भगवद्गीते
जय भगवद्गीते ।
*****
हरि-हिय-कमल विहारिणि
सुन्दर सुपुनीते।।
कर्म-सुकर्म-प्रकाशिनि
कामासक्तिहरा।
तत्त्वज्ञान-विकाशिनि
विद्या ब्रह्म परा ।। जय ०
*****
निश्चल-भक्ति-विधायिनि
निर्मल, मलहारी।
शरण-रहस्य-प्रदायिनि
सब विधि सुखकारी।। जय ०
*****
राग-द्वेष-विदारिणि
कारिणि मोद सदा।
भव-भय-हारिणि,
तारिणि परमानन्दप्रदा ।। जय ०
*****
आसुर-भाव-विनाशिनि
नाशिनि तम-रजनी।
दैवी सद्गुणदायिनि
हरि-रसिका सजनी ।। जय ०
*****
समता, त्याग सिखावनि
हरि-मुखकी बानी ।
सकल शास्त्र की स्वामिनि
श्रुतियों की रानी ।। जय ०
*****
दया-सुधा बरसावनि
मातु कृपा कीजै।
हरिपद-प्रेम दान कर
अपनो कर लीजै।। जय ०
*****
जय भगवद्गीते ।
*****
हरि-हिय-कमल विहारिणि
सुन्दर सुपुनीते।।
कर्म-सुकर्म-प्रकाशिनि
कामासक्तिहरा।
तत्त्वज्ञान-विकाशिनि
विद्या ब्रह्म परा ।। जय ०
*****
निश्चल-भक्ति-विधायिनि
निर्मल, मलहारी।
शरण-रहस्य-प्रदायिनि
सब विधि सुखकारी।। जय ०
*****
राग-द्वेष-विदारिणि
कारिणि मोद सदा।
भव-भय-हारिणि,
तारिणि परमानन्दप्रदा ।। जय ०
*****
आसुर-भाव-विनाशिनि
नाशिनि तम-रजनी।
दैवी सद्गुणदायिनि
हरि-रसिका सजनी ।। जय ०
*****
समता, त्याग सिखावनि
हरि-मुखकी बानी ।
सकल शास्त्र की स्वामिनि
श्रुतियों की रानी ।। जय ०
*****
दया-सुधा बरसावनि
मातु कृपा कीजै।
हरिपद-प्रेम दान कर
अपनो कर लीजै।। जय ०
*****