यह ब्लॉग धार्मिक भावना से प्रवृत्त होकर बनाया गया है। इस ब्लॉग की रचनाएं श्रुति एवं स्मृति के आधार पर लोक में प्रचलित एवं विभिन्न महानुभावों द्वारा संकलित करके पूर्व में प्रकाशित की गयी रचनाओं पर आधारित हैं। ये ब्लॉगर की स्वयं की रचनाएं नहीं हैं, ब्लॉगर ने केवल अपने श्रम द्वारा इन्हें सर्वसुलभ कराने का प्रयास किया है। इसी भाव के साथ ईश्वर की सेवा में ई-स्तुति
संकटमोचक पद्मावती स्तोत्र || Sankatmochak Padmavati Stotra || Jay Jay Jay Padmavati Maata || जय-जय-जय पद्मावती माता
**
** ।। दोहा ।। ** देवी मां पद्मावती, ज्योति रूप महान। विघ्न हरो मंगल करो, करो मात कल्याण। ** ।। चौपाई।। ** जय-जय-जय पद्मावती माता, तेरी महिमा त्रिभुवन गाता। मन की आशा पूर्ण करो मां, संकट सारे दूर करो मां ।। ** तेरी महिमा परम निराली, भक्तों के दुख हरने वाली। धन-वैभव-यश देने वाली, शान तुम्हारी अजब निराली।। ** बिगड़ी बात बनेगी तुम से, नैया पार लगेगी तुम से। मेरी तो बस एक अरज है, हाथ थाम लो यही गरज है।। ** चतुर्भुजी मां हंसवाहिनी, महर करो मां मुक्तिदायिनी। किस विध पूजूं चरण तुम्हारे, निर्मल हैं बस भाव हमारे।। ** मैं आया हूं शरण तुम्हारी, तू है मां जग तारणहारी। तुम बिन कौन हरे दुख मेरा, रोग-शोक-संकट ने घेरा।। ** तुम हो कल्पतरु कलियुग की, तुमसे है आशा सतयुग की। मंदिर-मंदिर मूरत तेरी, हर मूरत में सूरत तेरी।। ** रूप तुम्हारे हुए हैं अनगिन, महिमा बढ़ती जाती निशदिन । तुमने सारे जग को तारा, सबका तूने भाग्य संवारा।। ** हृदय-कमल में वास करो मां, सिर पर मेरे हाथ धरो मां। मन की पीड़ा हरो भवानी, मूरत तेरी लगे सुहानी ।। ** पद्मावती मां पद्म-समाना, पूज रहे सब राजा-राणा। पद्म-हृदय पद्मासन सोहे, पद्म-रूप पद-पंकज मोहे।। ** महामंत्र का मिला जो शरणा, नाग-योनी से पार उतरना। पारसनाथ हुए उपकारी, जय-जयकार करे नर-नारी।। ** पारस प्रभु जग के रखवाले, पद्मावती प्रभु पार्श्व उबारे। जिसने प्रभु का संकट टाला, उसका रूप अनूप निराला ।। ** कमठ-शत्रु क्या करे बिगाड़े, पद्मावती जहं काज सुधारे। मेघमाली की हर चट्टानें, मां के आगे सब चित खाने ।। ** मां ने प्रभु का कष्ट निवारा, जन्म-जन्म का कर्ज उतारा। पद्मावती दया की देवी, प्रभु-भक्तों की अविरल सेवी ।। ** प्रभु भक्तों की मंशा पूरे, चिंतामणि सम चिंता चूरे। पारस प्रभु का जयकारा हो, पद्मावती का झंकारा हो ।। ** माथे मुकुट भाल सूरज ज्यों, बिंदिया चमक रही चंदा। अधरों पर मुस्कान शोभती, मां की मूरत नित्य मोहती।। ** सुरनर मुनिजन मां को ध्यावे, संकट नहीं सपने में आवे। मां का जो जयकारा बोले, उनके घर सुख-संपत्ति बोले ।। ** ॐ ह्रीं श्री क्लीं मंत्र से ध्याऊं, धूप-दीप-नैवेद्य चढ़ाऊं। रिद्धि-सिद्धि सुख-संपत्ति दाता, सोया भाग्य जगा दो माता ।। ** मां को पहले भोग लगाऊं, पीछे ही खुद भोजन पाऊं। मां के यश में अपना यश हो, अंतरमन में भक्ति-रस हो।। ** सुबह उठो मां की जय बोलो, सांझ ढले मां की जय बोलो। जय-जय मां जय-जय नित तेरी, मदद करो मां अविरल मेरी।। ** शुक्रवार मां का दिन प्यारा, जिसने पांच बरस व्रत धारा। उसका काज सदा ही संवरे, मां उसकी हर मंशा पूरे ।। ** एकासन-व्रत-नियम पालकर, धूप-दीप-चंदन पूजन कर। लाल-वेश हो चूड़ी-कंगना, फल-श्रीफल-नैवेद्य भेंटना ।। ** मन की आशा पूर्ण हुए जब, छत्र चढ़ाएं चांदी का तब। अंतर में हो शुक्रगुजारी, मां का व्रत है मंगलकारी।। ** मैं हूं मां बालक अज्ञानी, पर तेरी महिमा पहचानी। सांचे मन से जो भी ध्यावे, सब सुख भोग परम पद पावे।। ** जीवन में मां का संबल हो, हर संकट में नैतिक बल हो। पाप न होवे पुण्य संजोएं, ध्यान धरें अंतरमन धोएं।। ** दीन-दुखी की मदद हो मुझसे, मात-पिता की अदब हो मुझसे। अंतर-दृष्टि में विवेक हो, घर-संपति सब नेक-एक हो ।। ** कृपादृष्टि हो माता मुझ पर, मां पद्मावती जरा रहम कर। भूलें मेरी माफ करो मां, संकट सारे दूर करो मां ।। ** पद्म नेत्र पद्मावती जय हो, पद्म-स्वरूपी पद्म हृदय हो। पद्म-चरण ही एक शरण है, पद्मावती मां विघ्न-हरण है।। ** ।।दोहा।। ** पद्म रूप पद्मावती, पारस प्रभु हैं शीष। 'ललित' तुम्हारी शरण में, दो मंगल आशीष ।। ** पार्श्व प्रभु जयवंत हैं, जिन शासन जयवंत। पद्मावती जयवंत हैं, जयकारी भगवंत ।। ** चरण-कमल में 'चन्द्र' का, नमन करो स्वीकार। भक्तों की अरजी सुनो, वरते मंगलाचार ।। **
संकटमोचक पद्मावती स्तोत्र || Sankatmochak Padmavati Stotra || Jay Jay Jay Padmavati Maata || जय-जय-जय पद्मावती माता
** ।। Dohā ।। ** Devī māan padmāvatī, Jyoti rūp mahāna। Vighna haro mangal karo, Karo māt kalyāṇa। ** ।। chaupāī।। ** Jaya-jaya-jaya padmāvatī mātā, Terī mahimā tribhuvan gātā। Man kī āshā pūrṇa karo māan, Sankaṭ sāre dūr karo māan ।। ** Terī mahimā param nirālī, Bhaktoan ke dukh harane vālī। Dhana-vaibhava-yash dene vālī, Shān tumhārī ajab nirālī।। ** Bigaḍaī bāt banegī tum se, Naiyā pār lagegī tum se। Merī to bas ek araj hai, Hāth thām lo yahī garaj hai।। ** Chaturbhujī māan hansavāhinī, Mahar karo māan muktidāyinī। Kis vidh pūjūan charaṇ tumhāre, Nirmal haian bas bhāv hamāre।। ** Maian āyā hūan sharaṇ tumhārī, Tū hai māan jag tāraṇahārī। Tum bin kaun hare dukh merā, Roga-shoka-sankaṭ ne gherā।। ** Tum ho kalpataru kaliyug kī, Tumase hai āshā satayug kī। Mandira-mandir mūrat terī, Har mūrat mean sūrat terī।। ** Rūp tumhāre hue haian anagina, Mahimā baḍhatī jātī nishadin । Tumane sāre jag ko tārā, Sabakā tūne bhāgya sanvārā।। ** Hṛudaya-kamal mean vās karo māan, Sir par mere hāth dharo māan। Man kī pīḍaā haro bhavānī, Mūrat terī lage suhānī ।। ** Padmāvatī māan padma-samānā, Pūj rahe sab rājā-rāṇā। Padma-hṛudaya padmāsan sohe, Padma-rūp pada-pankaj mohe।। ** Mahāmantra kā milā jo sharaṇā, Nāga-yonī se pār utaranā। Pārasanāth hue upakārī, Jaya-jayakār kare nara-nārī।। ** Pāras prabhu jag ke rakhavāle, Padmāvatī prabhu pārshva ubāre। Jisane prabhu kā sankaṭ ṭālā, Usakā rūp anūp nirālā ।। ** Kamaṭha-shatru kyā kare bigāḍae, Padmāvatī jahan kāj sudhāre। Meghamālī kī har chaṭṭānean, Māan ke āge sab chit khāne ।। ** Māan ne prabhu kā kaṣhṭa nivārā, Janma-janma kā karja utārā। Padmāvatī dayā kī devī, Prabhu-bhaktoan kī aviral sevī ।। ** Prabhu bhaktoan kī manshā pūre, Chiantāmaṇi sam chiantā chūre। Pāras prabhu kā jayakārā ho, Padmāvatī kā zankārā ho ।। ** Māthe mukuṭ bhāl sūraj jyoan, Biandiyā chamak rahī chandā। Adharoan par muskān shobhatī, Māan kī mūrat nitya mohatī।। ** Suranar munijan māan ko dhyāve, Sankaṭ nahīan sapane mean āve। Māan kā jo jayakārā bole, Unake ghar sukha-sanpatti bole ।। ** Aum hrīan shrī klīan mantra se dhyāūan, Dhūpa-dīpa-naivedya chaḍhaāūan। Riddhi-siddhi sukha-sanpatti dātā, Soyā bhāgya jagā do mātā ।। ** Māan ko pahale bhog lagāūan, Pīchhe hī khud bhojan pāūan। Māan ke yash mean apanā yash ho, Aantaraman mean bhakti-ras ho।। ** Subah uṭho māan kī jaya bolo, Sāanjha ḍhale māan kī jaya bolo। Jaya-jaya māan jaya-jaya nit terī, Madad karo māan aviral merī।। ** Shukravār māan kā din pyārā, Jisane pāancha baras vrat dhārā। Usakā kāj sadā hī sanvare, Māan usakī har manshā pūre ।। ** Ekāsana-vrata-niyam pālakara, Dhūpa-dīpa-chandan pūjan kara। Lāla-vesh ho chūḍaī-kanganā, Fala-shrīfala-naivedya bheanṭanā ।। ** Man kī āshā pūrṇa hue jaba, Chhatra chaḍhaāean chāandī kā taba। Aantar mean ho shukragujārī, Māan kā vrat hai mangalakārī।। ** Maian hūan māan bālak ajnyānī, Par terī mahimā pahachānī। Sāanche man se jo bhī dhyāve, Sab sukh bhog param pad pāve।। ** Jīvan mean māan kā sanbal ho, Har sankaṭ mean naitik bal ho। Pāp n hove puṇya sanjoean, Dhyān dharean aantaraman dhoean।। ** Dīna-dukhī kī madad ho mujhase, Māta-pitā kī adab ho mujhase। Aantara-dṛuṣhṭi mean vivek ho, Ghara-sanpati sab neka-ek ho ।। ** Kṛupādṛuṣhṭi ho mātā muz para, Māan padmāvatī jarā raham kara। Bhūlean merī māf karo māan, Sankaṭ sāre dūr karo māan ।। ** Padma netra padmāvatī jaya ho, Padma-svarūpī padma hṛudaya ho। Padma-charaṇ hī ek sharaṇ hai, Padmāvatī māan vighna-haraṇ hai।। ** ।।Dohā।। ** Padma rūp padmāvatī, Pāras prabhu haian shīṣha। 'lalita' tumhārī sharaṇ mean, Do mangal āshīṣh ।। ** Pārshva prabhu jayavanta haian, Jin shāsan jayavanta। Padmāvatī jayavanta haian, Jayakārī bhagavanta ।। ** Charaṇa-kamal mean 'chandra' kā, Naman karo svīkāra। Bhaktoan kī arajī suno, Varate mangalāchār ।। **
श्री कनकधारा स्तोत्र कथा || Shri Kanak Dhara Stotra Katha
श्री कनकधारा स्तोत्र अत्यंत दुर्लभ है। यह माता लक्ष्मी को अत्यधिक प्रिय है और लक्ष्मी प्राप्ति के लिये यह रामबाण उपाय है। दरिद्र भी एकाएक धनोपार्जन करने लगता है। यह अद्भुत स्तोत्र तुरन्त फलदायी है। सिर्फ इतना ही नहीं यह अपने आप में स्वयं सिद्ध है। ऐश्वर्य प्रदान करने में सर्वथा समर्थ है। इस स्तोत्र का प्रयोग करने से रंक भी राजा बन सकता है इसमें कोई संशय नहीं है। अगर यह स्तोत्र यंत्र के साथ किया जाये तो लाभ कई गुना अधिक हो जाता है।
यह यन्त्र व स्तोत्र के विधान से व्यापारी व्यापार में वृद्धि करता है, दुःख दरिद्रता का विनाश हो जाता है। प्रसिद्ध शास्त्रोक्त ग्रन्थ "शंकर दिग्विजय" के "चौथे सर्ग में" इस कथा का उल्लेख है।
एक बार शंकराचार्यजी भिक्षा हेतु घूमते-घूमते एक सद्गृहस्थ निर्धन ब्राह्मण के घर पहुंच गए और भिक्षा हेतु याचना करते हुए कहा "भिक्षां देहि"। किन्तु संयोग से इन तेजस्वी अतिथि को देखकर संकोच के मारे उस ब्राह्मण की पत्नी लज्जित हो गई। क्योकि भिक्षा देने के लिए घर में एक दाना तक नहीं था। संकल्प में उलझी उस अतिथिप्रिय, पतिव्रता स्त्री को अपनी दुर्दशा पर रोना आ गया और अश्रुपूर्ण आँखों को लेकर घर में से कुछ आंवलो को लेकर आ गई। अत्यन्त संकोच से इन सूखे आंवलो को उसने उन तपस्वी को भिक्षा में दिए।
साक्षात् शंकरस्वरुप उन शंकराचार्यजी को उसकी यह दीनता देखकर उस पर तरस आ गया। करुणासागर आचार्यपाद का हृदय करुणा से भर गया।
इन्होंने तत्काल ऐश्वर्यदायी, दशविध लक्ष्मी देने वाली, अधिष्ठात्री, करुणामयी, वात्सल्यमयी, नारायण पत्नी, महालक्ष्मी को सम्बोधित करते हुए, कोमलकांत पद्यावली में एक स्तोत्र की रचना की थी और वही स्तोत्र "श्री कनकधारा स्तोत्र" के नाम से प्रसिद्ध हुआ । कनकधारा स्तोत्र की अनायास रचना से भगवती लक्ष्मी प्रसन्न हुईं और त्रिभुवन मोहन स्वरुप में आचार्यश्री के सम्मुख प्रकट हो गयीं तथा अत्यन्त मधुरवाणी से पूछा ''हे पुत्र अकारण ही मेरा स्मरण क्यों किया? आचार्य शंकर ने ब्राह्मण परिवार की दरिद्र अवस्था को बताया। उसे संपन्न, सबल एवं धनवान बनाने की प्रार्थना की। तब माता लक्ष्मी ने प्रत्युत्तर दिया "इस गृहस्थ के पूर्व जन्म के उपार्जित पापों के कारण इस जन्म में उसके पास लक्ष्मी होना संभव नहीं है। इसके प्रारब्ध में लक्ष्मी है ही नहीं।
आचार्य शंकर ने विनयपूर्वक माता से कहा क्या मुझ जैसे याचक के इस स्तोत्र की रचना के बाद भी यह संभव नहीं है? भगवती महालक्ष्मी अंतर्ध्यान हो गयीं। लेकिन इतिहास साक्षी है इस स्तोत्र के पाठ के बाद उस दरिद्र ब्राह्मण का दुर्दैव नष्ट हो गया। कनक की वर्षा हुई अर्थात सोने की वर्षा हुई। इसी कारण से इस स्तोत्र का नाम कनकधारा नाम पड़ा और इसी महान स्तोत्र के तीनों काल पाठ करने से अवश्य ही रंक भी राजा बनता है।