रविवार, 20 अगस्त 2023

ललही छठ (हलछठ) की पौराणिक व्रत कथा || Lalahi Chhath (Hal Chhath) ki Pauranik Katha Lyrics in Hindi

ललही छठ (हलछठ) की पौराणिक व्रत कथा || Lalahi Chhath (Hal Chhath) ki Pauranik Katha Lyrics in Hindi || Lyrics in English


हलछठ की कथा, पूजा विधि

ललही छठ कब मनाया जाता है Lalahi Chhath Kab Manate Hain- 
भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को ललही छठ व्रत का त्योहार मनाया जाता है। 

ललही छठ को और किन नामों से जाना जाता है Lalahi Ke Aur Kya Naam Hain - 
इसे हलछठ, हरछठ, पीन्नी छठ, खमर छठ, राधन छठ, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ, ललही छठ आदि नामों से जाना जाता है| 

ललही छठ में किस देवी की पूजा की जाती है Lalahi Chhath me Kis Devi Ke Puja Hoti Hai - 
इस दिन षष्ठी माता की पूजा की जाती है। जन्माष्टमी से से ठीक दो दिन  पहले मनाए जाने वाले  हलछठ  के पर्व  को श्री कृष्ण भगवान के बड़े भ्राता बलराम  की जयंती के रूप में भी जाना जाता है। बलराम जिन्हें बलदेव, बलभद्र और बलदाऊ के नाम से भी जाना जाता है  वास्तव में शेषनाग  के अवतार थे। बलराम को हल और मूसल से खास प्रेम था। यही उनके प्रमुख अस्त्र भी थे। इसलिए ललही छठ के दिन किसान हल, मूसल और बैल की पूजा करते हैं। इसे किसानों के त्योहार के रूप में भी देखा जाता है।

ललही छठ क्‍यों मनाया जाता है Lalahi Chhath Kyon Manate Hain - 
जब कंस को पता चला की वासुदेव और देवकी की संतान उसकी मृत्यु का कारण बनेंगी तो उसने उन्हे कारागार में डाल दिया और उसकी सभी 6 जन्मी संतानों वध कर डाला। देवकी को जब सांतवा पुत्र होना था तब उनकी रक्षा के लिए नारद मुनि ने उन्हे हलष्ठी माता की व्रत करने की सलाह दी। जिससे उनका पुत्र कंस के कोप से सुरक्षित हो जाए। देवकी ने षष्ठी माता का व्रत किया। जिसके प्रभाव से भगवान ने योग माया से कह कर देवकी के गर्भ में पल रहे बच्चे को वासुदेव की बड़ी रानी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया जिससे कंस को भी धोखा हो गया और उसने समझा देवकी का सातवॉं पुत्र जीवित नहीं है। उधर रोहिणी के गर्भ से भगवान बलराम का जन्म हुआ। भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को हुआ था। इसलिए इस दिन को बलराम जयंती भी कहा जाता है। इसके बाद देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रुप में श्री कृष्ण का जन्म हुआ। देवकी के षष्ठी माता का व्रत करने से दोनों पुत्रों की रक्षा हुई। इसीलिए यह व्रत स्त्रियां अपने संतान की दीर्घ आयु और स्वस्थ्य के लिए करती हैं।  संतान प्राप्ति के लिए भी महिलाएं हलषष्ठी का व्रत करती है।

ललही छठ व्रत का महत्‍व Lalahi Chhath Vrat Ka Mahattva - 
भगवती षष्ठी देवी शिशुओं की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। इनकी पूजा से संतान को दीर्घायु प्राप्त होती है साथ ही जिनके संतान नहीं होती उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। ये  मूल प्रकृति के छठे अंश से प्रकट हुई हैं जिस कारण इनका नाम षष्ठी देवी पड़ा है| भगवती षष्ठी देवी अपने योग के प्रभाव से शिशुओं के पास सदा वृद्धमाता के रूप में अप्रत्यक्ष रुप से विद्यमान रहती हैं, ये इनकी यानि शिशुओं की रक्षा करने के साथ-साथ इनका भरण-पोषण भी करती हैं। ये देवी बच्चों को स्वप्न में कभी रुलाती हैं, कभी हंसाती हैं, कभी खिलाती हैं तो कभी दुलार करती हैं। कहा जाता है कि जन्म के छठे दिन जो छठी मनाई जाती हैं वो इन्हीं षष्ठी देवी की ही पूजा की जाती है। अपने पति की रक्षा और आरोग्य जीवन के लिए स्त्रियां मां गौरी की पूजा भी करती हैं और उन्हें सुहाग का समान चढ़ाती हैं। 

ललही छठ व्रत कथा Lalahi Chhath Vrat Katha 


एक समय की बात है। किसी गॉंव में एक ग्वालिन रहती थी। उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था। एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा।

यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई। वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया।

वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया।

उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान खेत जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया।

इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने तुरन्‍त झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया। 

कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है।

वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध भैंस का बताकर न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती। अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों के सामने सच स्‍वीकार करके प्रायश्चित करना चाहिए।

ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था। वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर दया करके उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया।

बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है। तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया ।

*****
सभी प्रेम से बोलो ललही माता की जय 
हलछठ माता की जय
*****
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सोमवार, 7 अगस्त 2023

श्री गोलू देव की आरती || Shri Golu Dev Ki Aarti Lyrics in Hindi \\जय गोलज्यू महाराज \\ Jay Goljyu Maharaj

श्री गोलू देव की आरती || Shri Golu Dev Ki Aarti Lyrics in Hindi || Lyrics in English


जय गोलज्यू महाराज,

जय हो जय गोलज्यू महाराज ..!


जय गोल ज्यू महाराज,

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!!


ज्योत जगुनों तेरी…

सुफल करिए काज….!

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!!


जय गोल ज्यू महाराज,

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..

ज्योति जगुनों तेरी…

सुफल करिए काज….!

जय गोल ज्यू महाराज !!


पाड़ी में बगन तू आछे ,

लुवे को पिटार में नादान,

(देवा लुवे को पीटार में नादान)

गोरी घाट भाना पायो..

पड़ी गयो गोरिया नाम..!

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!!


जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!!

ज्योति जलूनों तेरी…

सुफल करिए काज….!

जय गोल ज्यू महाराज !!


हरुआ, कलुवा भाई तेरो,

बड़ छेना जो दीवान..!

माता कालिंका तेरी…

बाबू झालो राज…!

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!!


जय हो जय गोल ज्यू महाराज

जय हो जय गोल ज्यू महाराज

ज्योति जलूनों तेरी…

सुफल करिए काज….!

जय गोल ज्यू महाराज !!


सुखिले लुकड़ टांक तेरो

कांठ का घोड़ में सवार !

(देवा काठ को घोड़ में सवार )

लुवे की लगाम हाथयू में..

चाबुक छू हथियार…!!

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..!!


जय हो जय गोल ज्यू महाराज .

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..

ज्योति जलूनों तेरी…

सुफल करिए काज….!

जय गोल ज्यू महाराज !!


न्याय तेरो हूँ साची,

सब उनी तेरो द्वार,

देवा सब उनी तेरो द्वार !

जो मांखी तेरो नो ल्यूं …

लगे वीक नय्या पार !


जय गोल ज्यू महाराज !!

जय हो जय गोल ज्यू महाराज .

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..

ज्योति जलूनों तेरी…

सुफल करिए काज….!

जय गोल ज्यू महाराज !!


दूध, बतास और नारियल,

फूल चडनी तेरो द्वार,

देवा फूल चडनी तेरो द्वार !

प्रथम मंदीर चम्पावत..

फिर चितई, घोड़ाखाल.!

जय गोल ज्यू महाराज !!


जय हो जय गोल ज्यू महाराज .

जय हो जय गोल ज्यू महाराज ..

ज्योति जलूनों तेरी…

सुफल करिए काज….!

जय गोल ज्यू महाराज !!


*****

(2)


ॐ जय-जय गोल्ज्यू महाराज, 

स्वामी जय गोल्ज्यू महाराज ।

कृपा करो हम दीन रंक पर, 

दुख हरियो प्रभु आज ।।ॐ।।


राज झलराव के तुम बालक होकर, 

जग में बड़े बलवान ।

सब देवों में तुम्हारा, 

प्रथम मान है आज ।। ॐ जय ।।


भान धेवर में धर्म पुत्र बनकर, 

काठ के घोड़े में चढ़ कर ।

दिखाये कई चमत्‍कार, 

किया सभी का उद्धार ।। ॐ जय।।


जो भी भक्तगण भक्तिभाव से, 

गोल्ज्यू दरबार में आये ।

शीश प्रभु के चरणों मे झुकाये, 

उसकी सब बधाये ।

और विघ्न गोल्ज्यू हर लेते ।। ॐ जय ।।


न्याय देवता है प्रभु करते है इंसाफ ।

क्षमा शांति दो हे गोल्ज्यू प्रमाण लो महाराज ।।ॐ जय ।।


जो कोई आरती तेरी प्रेम सहित गावे, 

प्रभु भक्ति सहित गावे ।

सब दुख उसके मिट जाते, 

पाप उतर जाते ।। ॐ जय ।।


बोलो न्याय देवता श्री 1008 गोल्ज्यू देवता की जय ।


*****
(3)
ओम जय गोलू देवा 
प्रभु जयगोलू स्‍वामी
सदा कृपा बरसाना 
सदा कृपा बरसाना 
हे अन्‍तर्यामी 
ओम जय गोलू स्‍वामी  

ओम जय गोलू देवा 
प्रभु जयगोलू स्‍वामी
सदा कृपा बरसाना 
सदा कृपा बरसाना 
हे अन्‍तर्यामी 
ओम जय गोलू स्‍वामी  

चम्‍पावत में जन्‍मे 
घर घर वास कियो 
प्रभु घर घर वास कियो 
दुखियों के दुख हरने 
दुखियों का दुख हरने 
मानव जन्‍म लियो 
ओम जय गोलू स्‍वामी 

श्‍वेताम्‍बर धारण कर  
श्‍वेत रंग प्रेमी 
प्रभु श्‍वेत रंग प्रेमी 
काष्‍ठ अश्‍व में राजत
काष्‍ठ अश्‍व में राजत
गति है अलबेली 
ओम जय गोलू स्‍वामी 

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श्री गोलू देव चालीसा || Shri Golu Dev Chalisa Lyrics in Hindi || Lyrics in English

श्री गोलू देव चालीसा || Shri Golu Dev Chalisa Lyrics in Hindi || Lyrics in English


॥ दोहा ॥

 

बुद्धिहीन हूँ नाथ मैं, करो बुद्धि का दान।

सत्य न्याय के धाम तुम, हे गोलू भगवान।।

 

जय काली के वीर सुत, हे गोलू भगवान।

सुमिरन करने मात्र से, कटते कष्ट महान।।

 

जप कर तेरे नाम को, खुले सुखों के द्वार।

जय जय न्याय गौरिया नमन करे स्वीकार।।

 

।। चौपाई ।।

 

जय जय ग्वेल महाबलवाना।

हम पर कृपा करो भगवाना।।

 

न्याय सत्य के तुम अवतारा।

दुखियों का दुख हरते सारा ।।

 

द्वार पे आके जो भी पुकारे।

मिट जाते पल में दुख सारे।।

 

तुम जैसा नहीं कोई दूजा ।

पुनित होके भी बिन सेवा पूजा ।।

 

शरण में आये नाथ तिहारी।

रक्षा करना हे अवतारी ।।

 

माँ की सौत थी अत्याचारी ।

तुमको कष्ट दिये अतिभारी ।।

 

झाड़ी में तुमको गिरवाया।

विविध भांतिथा तुम्हे सताया ।।

 

नदी मध्य जल में डुबवाया।

फिर भी मार तुम्हें नहीं पाया ।।

 

सरल हृदय था धेवरहे का।

हरिपद रति बहुनिगुनविवेका।।

 

भाना नाम सकल जग जाना।

जल में देख बाल भगवाना।।

 

मन प्रसन्न तन कुलकित भारी।

बोला जय हे नाथ तुम्हारी ।।

 

कर गयी बालक गोद उठायो।

हृदय लगा किहीं अति सुख पायो।।

 

मन प्रसन्न मुख वचन न आवा।

मन हूँ महानिधि धेवर पावा।।

 

नहूँ उरततेहि शिशु द्रिह ले आयो।

नाम गौरिया तब रखवायो।।

 

सकल काज तज शिशु संगरहयी।

देखी बाल लीला सुख लहयी ।।

 

करत खेल या चरज अनेका।

देखी चकित हुई बुद्धि विवेका।।

 

ध्यालु कथा सुनीं जब काना।

देखन चले ग्वेल भगवाना।।

 

देखनपति बालक मुस्काया।

जन्मकाल यें कांड सुनाया ।।

 

सौतेली जननी की करनी।

ग्वेल पति संग मुख सब बरनी ।।

 

निपति ग्वेल निज हृदय लगायो।

प्रेम पुरत नय नन जल पायो ।।

 

चल हूँ तात अब निजरज धामी।

दंड देव में सातों: रानी।।

 

काट - काट सिर कठिन कृपाना।

कुटिल नारी हरि लेहूँ में प्राणा ।।

 

हृदय कम्प ऊपजा अति क्रोधा।

दंड देहु सुत नारी अबोधा।।

 

सुनहुँ तात एक बात हमारी।

क्षमा करोहुँ ये सब नारी बिचारी।।

 

हम ही देखी होई मृतक समाना।

जब लगी जियें पड़ी पछताना।।

 

अयशतात केहि कारण लेहूँ।

मात सौत कह दंड न देहुँ ।।

 

दया वन्त प्रिय ग्वेल सुझाना।

मनुज नहीं तुम देव महाना ।।

 

अमर सदा हो नाम तुम्हारा।

ग्वेल गौरिया गोलू प्यारा ।।

 

राज करहुँ चम्पावत वीरा।

हरहुँ तात जन-जन की पीरा ।।

 

मात - पिता भय धन्य तुम्हारें।

उदय आज हुए पुण्य हमारे।।

 

पितुआ ज्ञाधर सविनय शीशा।

ग्वेल बनें चम्पावत ईशा।।

 

सत्य न्याय है तुम्हें प्यारा।

तीनों हित तुमने कनधारा।।

 

दुखियों के दुख देखन पाते।

सुनी पुकार तुम उस थल जाते।।

 

विश्व विविध है न्याय तुम्हारे।

निर्बल के तुम एक सहारे ।।

 

चितई नमला मंदिर तेरे।

बजते घंटे जहाज घनेरे ।।

 

घोड़ाखाल प्रिय धाम तुम्हारा।

चमड़खान तुमको अति प्यारा।।

 

ताड़ीखेत में महिमा न्यारी ।

चम्पावत रजधानी प्यारी ।।

 

गाँव - गाँव में थान तुम्हारें।

न्याय हेतु जन तुम ही पुकारें ।।

 

सदा कृपा करना हे स्वामी।

ग्वेल देव हे अन्तर्यामी ।।

 

ये दस बार पाठ कर जोई।

विपदा टरें सदा सुख होई ।।


।। दोहा ।।

जय गोलू जय गौरिया, जय काली के लाल।

मौसानी ना कर सकी, तेरा बांका बाल ।।

 

सुमिरन करके नाम का, मिटते कष्ट हजार ।

जय हे न्यायी देवता, हे गोलू अवतार ।।

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सोमवार, 28 नवंबर 2022

श्रीगणेशकवचम् // Shri Ganesh Kavacham // Shri Ganesh Kavacham in Hindi in Sanskrit // Lyrics in Hindi // Lyrics in English

श्रीगणेशकवचम् // Shri Ganesh Kavacham // Shri Ganesh Kavacham in Hindi in Sanskrit // Lyrics in Hindi // Lyrics in English



श्रीगणेशकवचम् 
श्रीगणेशाय नमः ॥
।। गौर्युवाच ।।
एषोऽतिचपलो दैत्यान्बाल्येऽपि नाशयत्यहो ।
अग्रे किं कर्म कर्तेति न जाने मुनिसत्तम।।1।।
*****
दैत्या नानाविधा दुष्टाः साधुदेवद्रुहः खलाः ।
अतोऽस्य कण्ठे किञ्चित्त्वं रक्षार्थं बद्धुमर्हसि।।2।।
*****
।। मुनिरुवाच ।।
ध्यायेत्सिंहहतं विनायकममुं दिग्बाहुमाद्ये युगे
त्रेतायां तु मयूरवाहनममुं षड्बाहुकं सिद्धिदम् ।
द्वापारे तु गजाननं युगभुजं रक्ताङ्गरागं विभुम्
तुर्ये तु द्विभुजं सिताङ्गरुचिरं सर्वार्थदं सर्वदा।।3।।
*****
विनायकः शिखां पातु परमात्मा परात्परः ।
अतिसुन्दरकायस्तु मस्तकं सुमहोत्कटः।।4।।
*****
ललाटं कश्यपः पातु भृयुगं तु महोदरः ।
नयने भालचन्द्रस्तु गजास्यस्त्वोष्ठपल्लवौ।।5।।
*****
जिह्वां पातु गणक्रीडश्चिबुकं गिरिजासुतः।
वाचं विनायकः पातु दन्तान् रक्षतु विघ्नहा।।6।।
*****
श्रवणौ पाशपाणिस्तु नासिकां चिन्तितार्थदः।
गणेशस्तु मुखं कण्ठं पातु देवो गणञ्जयः।।7।।
*****
स्कन्धौ पातु गजस्कन्धः स्तनौ विघ्नविनाशनः।
हृदयं गणनाथस्तु हेरंबो जठरं महान्।।8।।
*****
धराधरः पातु पार्श्वौ पृष्ठं विघ्नहरः शुभः।
लिङ्गं गुह्यं सदा पातु वक्रतुण्डो महाबलः।।9।।
*****
गणक्रीडो जानुसङ्घे ऊरु मङ्गलमूर्तिमान्।
एकदन्तो महाबुद्धिः पादौ गुल्फौ सदाऽवतु।।10।।
*****
क्षिप्रप्रसादनो बाहू पाणी आशाप्रपूरकः।
अङ्गुलीश्च नखान्पातु पद्महस्तोऽरिनाशनः।।11।।
*****
सर्वाङ्गानि मयूरेशो विश्वव्यापी सदाऽवतु।
अनुक्तमपि यत्स्थानं धूम्रकेतुः सदाऽवतु।।12।।
*****
आमोदस्त्वग्रतः पातु प्रमोदः पृष्ठतोऽवतु।
प्राच्यां रक्षतु बुद्धीश आग्नेयां सिद्धिदायकः।।13।।
*****
दक्षिणास्यामुमापुत्रो नैरृत्यां तु गणेश्वरः।
प्रतीच्यां विघ्नहर्ताऽव्याद्वायव्यां गजकर्णकः।।14।।
*****
कौबेर्यां निधिपः पायादीशान्यामीशनन्दनः।
दिवाऽव्यादेकदन्तस्तु रात्रौ सन्ध्यासु विघ्नहृत्।।15।।
*****
राक्षसासुरवेतालग्रहभूतपिशाचतः।
पाशाङ्कुशधरः पातु रजःसत्त्वतमः स्मृतिः।।16।।
*****
ज्ञानं धर्मं च लक्ष्मीं च लज्जां कीर्ति तथा कुलम्।
वपुर्धनं च धान्यं च गृहान्दारान्सुतान्सखीन्।।17।।
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सर्वायुधधरः पौत्रान् मयूरेशोऽवतात्सदा।
कपिलोऽजादिकं पातु गजाश्वान्विकटोऽवतु ।।18।।
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भूर्जपत्रे लिखित्वेदं यः कण्ठे धारयेत्सुधीः।
न भयं जायते तस्य  यक्षरक्षःपिशाचतः।।19।।
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त्रिसन्ध्यं जपते यस्तु वज्रसारतनुर्भवेत्।
यात्राकाले पठेद्यस्तु निर्विघ्नेन फलं लभेत्।।20।।
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युद्धकाले पठेद्यस्तु विजयं चाप्नुयाद्द्रुतम् ।
मारणोच्चाटकाकर्षस्तम्भमोहनकर्मणि ।।21।।
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सप्तवारं जपेदेतद्दिनानामेकविंशतिम् ।
तत्तत्फलवाप्नोति साधको नात्रसंशयः ।।22।।
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एकविंशतिवारं च पठेत्तावद्दिनानि यः ।
कारागृहगतं सद्योराज्ञा वध्यं च मोचयेत्।।23।।
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राजदर्शनवेलायां पठेदेतत्त्रिवारतः ।
स राजसं वशं नीत्वा प्रकृतीश्च सभां जयेत् ।।24।।
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इदं गणेशकवचं कश्यपेन समीरितम् ।
मुद्गलाय च ते नाथ माण्डव्याय महर्षये ।।25।।
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मह्यं स प्राह कृपया कवचं सर्वसिद्धिदम् ।
न देयं भक्तिहीनाय देयं श्रद्धावते शुभम् ।।26।।
*****
यस्यानेन कृता रक्षा न बाधास्य भवेत्क्वचित् ।
राक्षसासुरवेतालदैत्यदानवसम्भवा ।।27।।
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इति श्रीगणेशपुराणे उत्तरखण्डे बालक्रीडायां
षडशीतितमेऽध्याये गणेशकवचं सम्पूर्णम् ।।
*****

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रविवार, 13 नवंबर 2022

श्रीकाशीविश्वनाथस्तुतिः // Shri Kashi Vishwanath Stutih

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दुर्गाधीशो द्रुतिज्ञो द्रुतिनुतिविषयो दूरदृष्टिर्दुरीशो

दिव्यादिव्यैकराध्यो द्रुतिचरविषयो दूरवीक्षो दरिद्रः ।

देवैः सङ्कीर्तनीयो दलितदलदयादानदीक्षैकनिष्ठो

दानी दीनार्तिहारी भवदवदहनो दीयतां दृष्टिवृष्टिः ॥ 1॥


क्षेत्रज्ञः क्षेत्रनिष्ठः क्षयकलितकलः क्षात्रवर्गैकसेव्यः

क्षेत्राधीशोऽक्षरात्मा क्षितिप्रथिकरणः क्षालितः क्षेत्रदृश्यः ।

क्षोण्या क्षीणोऽक्षरज्ञो क्षरपृथुकलितः क्षीणवीणैकगेयः

क्षौरः क्षोणीध्रवर्ण्यः क्षयतु मम बलक्षीणतां सक्षणं सः ॥ 2॥


क्रूरः क्रूरैककर्मा कलितकलकलैः कीर्तनीयः कृतिज्ञः

कालः कालैककालो विकलितकर्णः कारणाक्रान्तकीर्तिः ।

कोपः कोपेऽप्यकुप्यन् कुपितकरकराघातकीलः कृतान्तः

कालव्यालालिमालः कलयतु कुशलं वः करालः कृपालुः ॥ 3॥


गौरी स्निह्यतु मोदतां गणपतिः शुण्डामृतं वर्षताद्

नन्दीशः शुभवृष्टिमावितनुतां श्रीमान् गणाधीश्वरः ।

वायुः सान्द्रसुखावहः प्रवहतां देवाः समृद्धादयाः

सम्पूर्तिं दधतां सुखस्य नितरां विश्वेश्वरः प्रीयताम् ॥ 4॥


श्रीविश्वेश्वरमन्दिरं प्रविलसेत् सम्पूर्णसिद्धं शुभं

पुष्टं तुष्टसुखाकरं प्रभवतां सम्मोदमोदावहम् ।

एतद्दर्शनकामना जगति सञ्जायेत सन्निन्दतः

सर्वेषां भगवान् महेश्वरकृपापूर्णो निरीक्षेत नः ॥ 5॥


इति काशीपीठाधीश्वरः श्रीमहेश्वरानन्दः विरचिता

श्रीकाशीविश्वनाथस्तुतिः समाप्ता ।

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