मंगलवार, 29 अक्तूबर 2024

ॐ जय नरसिंह हरे || नरसिंह जी की आरती || Narsingh Bhagwan Ki Aarti Lyrics in Hindi & English

ॐ जय नरसिंह हरे || नरसिंह जी की आरती || Narsingh Bhagwan Ki Aarti Lyrics in Hindi & English

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श्री नरसिंह अवतार और नरसिंह भगवान की पूजा के बारे में सम्‍पूर्ण जानकारी आरती सहित  

परिचय  

नरसिंह अवतार भगवान विष्‍णु के दशावतार में से एक है और यह भगवान विष्‍णु का एक विशिष्‍ट रूप है जिसमें भगवान नर एवं सिंह के रूप में अपने भक्‍तों के कष्‍टों का हरण करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्‍णु अपने महान भक्‍त प्रहलाद की रक्षा के लिए आधा नर एवं आधा सिंह के रूप में प्रकट हुए और हिरण्‍यकश्‍यप का वध करके धरती को राक्षसों के आतंक से मुक्‍त किया। भगवान नरसिंह अवतार भक्‍तों के मन में अटूट श्रद्धा एवं विश्‍वास पैदा करती है और हमें बताती है कि अगर हम भगवान में हटूट विश्‍वास रखते हैं तो एक न एक दिन वे अवश्‍य ही हमें अपनी शरणागति प्रदान करते हैं। 

नरसिंह अवतार की पौराणिक कथा 

भगवान नरसिंह अवतार की कथा रोचक होने के साथ ही साथ अत्‍यन्‍त प्रेरणादायी भी है। एक बार की बात है कि असुर राज हिरण्‍यकश्‍यप ने अपना आतंक पूरी पृथ्‍वी पर फैला रखा था। हिरण्‍यकश्‍यप ने ब्रह्मदेव की घोर तपस्‍या करके उन्‍हें प्रसन्‍न कर लिया और उनसे अमरता का वरदान मांगा। ब्रह्मदेव ने अमरता के अतिरिक्‍त और कोई अन्‍य वर मांगने को कहा तो हिरण्‍यकश्‍यप ने बड़ी ही चालाकी से यह वर मांगा कि वह न तो पशु से मरे और न ही नर से मरे, न वह दिन में मरे और न ही रात में मरे, न ही वह घर के बाहर मरे और न ही घर के अन्‍दर मरे, न वह जमीन पर मरे और नही वह आसमान में मरे यहॉं तक कि उसने यह भी मांग लिया कि वह किसी भी अस्‍त्र एवं शस्‍त्र से भी न मरे। ब्रह्मदेव ने तथास्‍तु कहकर उसके द्वारा मांगे गये सभी वर दे दिये। वरदान मिलते ही हिरण्‍यकश्‍यप ने पूरी पृथ्‍वी पर आतंक फैला दिया। हिरण्‍यकश्‍यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्‍णु का परम भक्‍त हुआ और इस कारण से हिरण्‍यकश्‍यप ने उन्‍हें अनेक प्रकार से मारने का प्रयास किया। उन्‍हें पहाड़ परे ने नीचे फेंकने का आदेश दिया, पागल हाथी के सामने फेंक दिया और तो और भक्‍त प्रहलाद की बुआ ने भी उन्‍हें मारने में अपने भाई का साथ दिया जिसमें वह स्‍वयं ही जलकर नष्‍ट हो गयी और इस प्रकार होलिका दहन के रूप में होली का त्‍यौहार भी मनाया जाता है। जब हिरण्‍यकश्‍यप का अत्‍याचार अपने चरम पर पहुँच गया तो भगवान ने सोचा कि अब इस अत्‍याचारी राक्षस का अन्‍त कर देना चाहिए। भगवान नरसिंह हिरण्‍यकश्‍यप के राजमहल में एक खम्‍भे से प्रकट हुए जिनका मुँह तो सिंह का था और बाकी का पूरा शरीर मनुष्‍य का था। भगवान नरसिंह ने विकराल रूप धारण कर रखा था और हिरण्‍यकश्यप को घसीट कर उसके महल के दरवाजे (डेहरी) पर ले गये और अपनी जॉंघ पर रखकर अपने नाखूनों से उसके पेट को फाड़ डाला। जब हिरण्‍यकश्‍यप के प्राण उसके शरीर से निकलने लगे तो उसके कहा कि ब्रह्मदेव ने मेरे साथ धोखा किया है उन्‍होंने मुझे अमरता का वरदान दिया था जो कि अब झूठा साबित हो रहा है। इस पर भगवान नरसिंह ने कहा कि तुझे मारने वाला न तो मनुष्‍य है और न ही जानवर है, देख मेरी ओर मैं नरसिंह अवतार में प्रकट हुआ हूँ। तू न तो जमीन पर और न ही आसमान में मर रहा है, मैंने तुझे अपनी जॉंघ पर रख रखा है। तू न तो दिन में मर रहा है और न ही रात में, क्‍योंकि इस समय सूर्यास्‍त होने वाला है। तुझे मैं किसी अस्‍त्र या शस्‍त्र से नहीं वरन अपने नाखूनों से मार रहा हूँ। तू इस समय न अपने घर में है और न ही घर के बाहर है तू अपने घर की डेहरी पर है। इतना कहकर भगवान नरसिंह ने हिरण्‍कश्‍यप के जीवन का अंत कर दिया। भक्‍त प्रहलाद ने भगवान नरसिंह की स्‍तुति की और उनके क्रोध को शान्‍त किया। 

भगवान नरसिंह का स्‍वरूप 

भगवान नरसिंह का स्‍वरूप अत्‍यन्‍त विकराल एवं भयानक होता है। वे जहॉं दैत्‍यों एवं बुरे कर्म करने वालों के काल के रूप में प्रकट होते हैं वहीं अपने भक्‍तों के लिए वात्‍सल्‍य का रूप भी प्रदर्शित करते हैं। उनका मुख तो सिंह का है और बाकी का शरीर मनुष्‍य का है। उनकी ऑंखें तेज से भरी होती हैं। उनकी ऑंखों में भक्‍तों को करुणा के दर्शन होते हैं जबकि दैत्‍यों को वे भयानक लगती हैं। भगवान नरसिंह का विग्रह सदैव वीरता के प्रतीक के रूप में प्रदर्शित किया जाता है जिसमें वे अपनी जॉंघ पर दैत्‍यराज हिरण्‍यकश्‍यप को रखकर उसका वध करते हुए प्रदर्शित होते हैं साथ ही बगल में खड़े हुए प्रहलाद उनकी प्रार्थना करते हुए प्रदर्शित किये जाते हैं। 

नरसिंह भगवान की पूजा 

भगवान नरसिंह की पूजा करने से वे प्रसन्‍न होते हैं और उनकी कृपा से भक्‍तों जीवन से समस्‍याऍं दूर हो जाती हैं। भगवान नरसिंह भक्‍तों के भाव के भूखे होते हैं और थोड़े से प्रयास से भी प्रसन्‍न हो जाते हैं। उनकी पूजन सामग्री इस प्रकार है-
पूजन सामग्री - धूप, दीप, फूल, अक्षत, नैवेद्य (प्रसाद), फल, चन्‍दन आदि  

पूजन विधि -

1- सबसे शुद्ध मन से स्‍नान आदि से निवृत्‍त होकर साफ स्‍थान पर स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करके पूजा के लिए तैयार हो जाऍं। 
2- उसके बाद शुद्ध स्‍थान पर स्‍वच्‍छता से गाय के गोबर से लीप कर उस पर आसन बिछा कर भगवान का विग्रह स्‍थापित करना चाहिए। विग्रह न होने पर तस्‍वीर भी लगायी जा सकती है। 
3- उसके उपरान्‍त भगवान को स्‍नान कराके धूप, दीप, नैवेद्य, पूंगीफल आदि से उनकी विधिवत पूजा करनी चाहिए। 
4- पूजा के बाद आरती करें एवं प्रसाद का वितरण करें। 
5- यदि सम्‍भव हो सके तो ब्राह्मण को भोजन करावें अथवा दान करें। 

नरसिंह जयन्‍ती कब मनायी जाती है

भगवान नरसिंह के अवतरण दिवस को भी भगवान नरसिंह जयन्‍ती के रूप में मनाया जाता है। भगवान नरसिंह जयन्‍ती चैत्र मास की शुक्‍ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनायी जाती है। इस दिन भक्‍त पूर्ण उत्‍साह एवं समर्पण के साथ भगवान नरसिंह की पूजा करते हैं और उनकी कृपा प्राप्‍त करते हैं। इस दिन भगवान नरसिंह की कथा सुनने, भजन - कीर्तन आदि करने, दान देने, पवित्र नदी में स्‍नान करने का विशेष महत्‍व माना गया है। 

नरसिंह भगवान की महिमा 

भगवान नरसिंह की पूजा भक्‍तों के मन में उत्‍साह एवं शक्ति का संचार करती है। जो भक्‍तगण सच्‍चे मन से नरसिंह भगवान की पूजा करते हैं उनके जीवन से समस्‍याओं का अन्‍त होता है। भगवान नरसिंह अपने भक्‍तों के जीवन को सुख, समृद्धि और धन-सम्‍पदा से भर देते हैं। भगवान नरसिंह अपने भक्‍तों पर सदैव कृपा बनाये रखते हैं जिससे दुख और क्‍लेश कभी भी उनके पास भी नहीं फटकने पाते। 

नर‍सिंह भगवान की पूजा प्रमुख रूप से कहॉं कहॉं होती है

वैसे तो भगवान नरसिंह की पूजा सम्‍पूर्ण भारत में की जाती है। फिर भी नर‍सिंह भगवान की पूजा निम्नलिखित स्थानों पर विशेष रूप से होती है। इन स्थलों पर विशेष अवसरों, जैसे कि नरसिंह जयंती, पर बड़ी धूमधाम से पूजा और उत्सव मनाए जाते हैं:
1. नरसिंहपुर: मध्य प्रदेश में स्थित, यह स्थान नरसिंह भगवान के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है।
2. उदपुर: राजस्थान में, यहाँ एक प्रसिद्ध नरसिंह मंदिर है जहाँ भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
3. कर्नाटक: कर्नाटक के कई स्थानों, जैसे कि हंपी और कुडली में, नरसिंह भगवान के मंदिर हैं।
4. मथुरा: मथुरा में भी नरसिंह भगवान की पूजा विशेष रूप से होती है।
5. हिमाचल प्रदेश: यहाँ के कुछ मंदिरों में भी नरसिंह भगवान की पूजा की जाती है, जैसे कि नादौन के नरसिंह मंदिर।
6. आंध्र प्रदेश: यहाँ कई स्थानों पर नरसिंह भगवान के मंदिर हैं, विशेष रूप से तिरुपति के निकट।
7. गुजरात: सूरत और द्वारका में भी नरसिंह भगवान की पूजा होती है।

नरसिंह भगवान की आरती

नरसिंह भगवान की पूजा के उपरान्‍त आरती अवश्‍यक करनी चाहिए। आरती एक विशेष प्रार्थना है जो भक्तों द्वारा भगवान की आराधना के दौरान गाई जाती है। यह आरती भगवान नरसिंह की महिमा, शक्ति और उनके प्रति श्रद्धा को व्यक्त करती है। आरती के द्वारा भक्तों को मानसिक शांति और सुरक्षा का अनुभव होता है। नरसिंह भगवान को समर्पित यह आरती, उनके भक्तों के लिए संकटों से मुक्ति और समृद्धि का संचार करती है। आरती का महत्व केवल भक्ति में नहीं, बल्कि इसे गाते समय मन की एकाग्रता और सकारात्मकता भी महत्वपूर्ण है। जब भक्त आरती गाते हैं, तो वे अपने मन में भक्ति और श्रद्धा को जागृत करते हैं, जो उन्हें आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाती है। इस प्रकार, नरसिंह भगवान की आरती न केवल एक पूजा का हिस्सा है, बल्कि यह भक्तों के जीवन में सकारात्मकता एवं ऊजा का संचार करती है। यह भगवान के प्रति भक्‍त की भावनाओं और श्रद्धा को व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम है।

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ॐ जय नरसिंह हरे 
प्रभु जय नरसिंह हरे 
स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे 
स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे 
जनका ताप हरे
ॐ जय नरसिंह हरे 
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तुम हो दिन दयाला 
भक्तन हितकारी 
प्रभु भक्तन हितकारी 
अद्भुत रूप बनाकर 
अद्भुत रूप बनाकर 
प्रकटे भय हारी 
ॐ जय नरसिंह हरे
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सबके हृदय विदारण 
दुस्यु जियो मारी 
प्रभु दुस्यु जियो मारी  
दास जान अपनायो 
दास जान अपनायो 
जनपर कृपा करी 
ॐ जय नरसिंह हरे
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ब्रह्मा करत आरती 
माला पहिनावे 
प्रभु माला पहिनावे 
शिवजी जय जय कहकर 
पुष्पन बरसावे 
ॐ जय नरसिंह हरे 
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ॐ जय नरसिंह हरे || नरसिंह जी की आरती || Narsingh Bhagwan Ki Aarti Lyrics in Hindi & English

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Aum jaya narasianha hare 
Prabhu jaya narasianha hare 
Stanbha fāḍa prabhu prakaṭe 
Stanbha fāḍa prabhu prakaṭe 
Janakā tāp hare
Aum jaya narasianha hare 
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Tum ho din dayālā 
Bhaktan hitakārī 
Prabhu bhaktan hitakārī 
Adbhut rūp banākar 
Adbhut rūp banākar 
Prakaṭe bhaya hārī 
Aum jaya narasianha hare
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Sabake hṛudaya vidāraṇ 
Dusyu jiyo mārī 
Prabhu dusyu jiyo mārī  
Dās jān apanāyo 
Dās jān apanāyo 
Janapar kṛupā karī 
Aum jaya narasianha hare
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Brahmā karat āratī 
Mālā pahināve 
Prabhu mālā pahināve 
Shivajī jaya jaya kahakar 
Puṣhpan barasāve 
Aum jaya narasianha hare 
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