यह ब्लॉग धार्मिक भावना से प्रवृत्त होकर बनाया गया है। इस ब्लॉग की रचनाएं श्रुति एवं स्मृति के आधार पर लोक में प्रचलित एवं विभिन्न महानुभावों द्वारा संकलित करके पूर्व में प्रकाशित की गयी रचनाओं पर आधारित हैं। ये ब्लॉगर की स्वयं की रचनाएं नहीं हैं, ब्लॉगर ने केवल अपने श्रम द्वारा इन्हें सर्वसुलभ कराने का प्रयास किया है। इसी भाव के साथ ईश्वर की सेवा में ई-स्तुति
शुक्रवार, 18 जून 2010
आरती श्री शनि देव जी की Shri Shani Dev Ji Ki Aarti
जय जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी,
सूर्य पुत्र प्रभुछाया महतारी॥ जय जय जय शनि देव॥
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी,
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥ जय ॥
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी,
मुक्तन की माल गले शोभित बलिहारी॥ जय ॥
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी,
लोहा तिल तेल उड द महिषी अति प्यारी ॥ जय ॥
देव दनुज ऋषि मुनी सुमिरत नर नारी,
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ॥ जय जय जय श्री शनि देव॥
चित्र https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhEy_SQIulH7s04NiW87PJGBaPOxZAywCSSZWQQNLNfT4XHNaqmEY0VW3pyJmiiq4cf5Mb7ytHfaOUVuePCuKUsWtjQPZhZY3yuHmrGgxuWLTzImCpnuXO1Yn1-yHxShjzAWaKXG6fANMnF/s1600/shani-dev.jpg से साभार
रविवार, 13 जून 2010
श्री जानकीनाथ जी की आरती (Shri Janki Nath Ji Ki Aarti)
ओउम जय जानकिनाथा,
हो प्रभु जय श्री रघुनाथा।
दोउ कर जोड़े विनवौं,
प्रभु मेरी सुनो बाता॥ ओउम॥
तुम रघुनाथ हमारे,
प्राण पिता माता।
तुम हो सजन संघाती,
भक्ति मुक्ति दाता ॥ ओउम॥
चौरासी प्रभु फन्द छुड़ावो,
मेटो यम त्रासा।
निश दिन प्रभु मोहि राखो,
अपने संग साथा॥ ओउम॥
सीताराम लक्ष्मण भरत शत्रुहन,
संग चारौं भैया।
जगमग ज्योति विराजत,
शोभा अति लहिया॥ ओउम॥
हनुमत नाद बजावत,
नेवर ठुमकाता।
कंचन थाल आरती,
करत कौशल्या माता॥ ओउम॥
किरिट मुकुट कर धनुष विराजत,
शोभा अति भारी।
मनीराम दरशन कर, तुलसिदास दरशन कर,
पल पल बलिहारी॥ ओउम॥
जय जानकिनाथा,
हो प्रभु जय श्री रघुनाथा।
हो प्रभु जय सीता माता,
हो प्रभु जय लक्ष्मण भ्राता॥ ओउम॥
हो प्रभु जय चारौं भ्राता,
हो प्रभु जय हनुमत दासा।
दोउ कर जोड़े विनवौं,
प्रभु मेरी सुनो बाता॥ ओउम॥
रविवार, 6 जून 2010
आरती गणेश जी की (Aarti Ganesh Ji Ki)
आरती गणेश जी की (Aarti Ganesh Ji Ki)
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे पे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥
हार चढ़ै , फूल चढ़ै और चढ़ै मेवा।
लडुअन का भोग लागे, सन्त करें सेवा॥
दीनन की लाज राखो शंभु सुतवारी।
कामना को पूरा करो जग बलिहारी॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
सब प्रेम से बोलो श्री गणेश भगवान की जय
सोमवार, 31 मई 2010
जय अंबे गौरी || दुर्गा मैया की आरती || Durga Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi and English
जय अंबे गौरी || दुर्गा मैया की आरती || Durga Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi and English
जय अंबे गौरी
मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निश दिन ध्यावत
हरि ब्रह्मा शिवरी॥
**
मांग सिंदूर विराजत
टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना
चन्द्रवदन नीको॥
**
कनक समान कलेवर
रक्तांबर राजे।
रक्तपुष्प की माला
कंठन पर साजे॥
**
केहरि वाहन राजत
खड्ग खप्पर धारी।
सुर-नर-मुनि जन सेवत
तिनके दुख हारी॥
**
कानन कुंडल शोभित
नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर
राजत सम ज्योति॥
**
शुंभ-निशुंभ बिदारे
महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना
निशदिन मदमाती॥
**
चंड-मुंड संहारे
शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोउ मारे
सुर भयहीन करे॥
**
ब्रह्माणी, रुद्राणी
तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी
तुम शिव पटरानी॥
**
चौंसठ योगिनी मंगल गावत
नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा
अरु बाजत डमरू॥
**
तुम ही जग की माता
तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुख हरता
सुख संपति करता॥
**
भुजा चार अति शोभित
वरमुद्रा धारी।
मनवांछित फल पावत
सेवत नर-नारी॥
**
कंचन थाल विराजत
अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत
कोटि रतन ज्योति॥
**
श्री अम्बे जी की आरती
जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी
सुख-सम्पत्ति पावे॥
**
बोलो अम्बे मैया की जय
बोलो दुर्गे मैया की जय
**
जय अंबे गौरी || दुर्गा मैया की आरती || Durga Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi and English
**
Jaya aanbe gaurī
Maiyā jaya shyāmā gaurī।
Tumako nish din dhyāvat
Hari brahmā shivarī॥
**
Māanga siandūr virājat
Ṭīko mṛugamad ko।
Ujjval se dou nainā
Chandravadan nīko॥
**
Kanak samān kalevar
Raktāanbar rāje।
Raktapuṣhpa kī mālā
Kanṭhan par sāje॥
**
Kehari vāhan rājat
Khaḍg khappar dhārī।
Sura-nara-muni jan sevat
Tinake dukh hārī॥
**
Kānan kuanḍal shobhit
Nāsāgre motī।
Koṭik chandra divākar
Rājat sam jyoti॥
**
Shuanbha-nishuanbha bidāre
Mahiṣhāsur ghātī।
Dhūmra vilochan nainā
Nishadin madamātī॥
**
Chanḍa-muanḍa sanhāre
Shoṇit bīj hare।
Madhu-kaiṭabh dou māre
Sur bhayahīn kare॥
**
Brahmāṇī, rudrāṇī
Tum kamalā rānī।
Āgam nigam bakhānī
Tum shiv paṭarānī॥
**
Chauansaṭh yoginī mangal gāvat
Nṛutya karat bhairū।
Bājat tāl mṛudangā
Aru bājat ḍamarū॥
**
Tum hī jag kī mātā
Tum hī ho bharatā।
Bhaktan kī dukh haratā
Sukh sanpati karatā॥
**
Bhujā chār ati shobhit
Varamudrā dhārī।
Manavāanchhit fal pāvat
Sevat nara-nārī॥
**
Kanchan thāl virājat
Agar kapūr bātī।
Shrīmālaketu mean rājat
Koṭi ratan jyoti॥
**
Shrī ambe jī kī āratī
Jo koī nar gāve।
Kahat shivānanda swāmī
Sukha-sampatti pāve॥
**
Bolo ambe maiyā kī jaya
Bolo durge maiyā kī jaya
**
सोमवार, 24 मई 2010
श्री हरसू ब्रह्म चालीसा || Shri Harsu Brahm Chalisa || हरसू ब्रह्म चैनपुर कैमूर || Harsu Brahm Chainpur Kaimur || Harsu Brahm Maharaj ji || हरसू ब्रह्म रूप अवतारी Harsu Brahm Rup Avatari
श्री हरसू ब्रह्म चालीसा || Shri Harsu Brahm Chalisa || हरसू ब्रह्म चैनपुर कैमूर || Harsu Brahm Chainpur Kaimur || Harsu Brahm Maharaj ji || हरसू ब्रह्म रूप अवतारी Harsu Brahm Rup Avatari
चरणों का करि ध्यान।
चालीसा प्रस्तुत करूं
चालीसा प्रस्तुत करूं
पावन यश गुण गान॥
**
हरसू ब्रह्म रूप अवतारी।
जेहि पूजत नित नर अरु नारी॥१॥
**
शिव अनवद्य अनामय रूपा।
जन मंगल हित शिला स्वरूपा॥ २॥
**
विश्व कष्ट तम नाशक जोई।
ब्रह्म धाम मंह राजत सोई ॥३॥
**
निर्गुण निराकार जग व्यापी।
प्रकट भये बन ब्रह्म प्रतापी॥४॥
**
अनुभव गम्य प्रकाश स्वरूपा।
सोइ शिव प्रकट ब्रह्म के रूपा॥५॥
**
जगत प्राण जग जीवन दाता।
हरसू ब्रह्म हुए विखयाता॥६॥
**
पालन हरण सृजन कर जोई।
ब्रह्म रूप धरि प्रकटेउ सोई॥७॥
**
मन बच अगम अगोचर स्वामी।
हरसू ब्रह्म सोई अन्तर्यामी॥८॥
**
भव जन्मा त्यागा सब भव रस।
शित निर्लेप अमान एक रस॥९॥
**
चैनपुर सुखधाम मनोहर।
जहां विराजत ब्रह्म निरन्तर॥१०॥
**
ब्रह्म तेज वर्धित तव क्षण-क्षण।
प्रमुदित होत निरन्तर जन-मन॥११॥
**
द्विज द्रोही नृप को तुम नासा।
आज मिटावत जन-मन त्रासा॥१२॥
**
दे संतान सृजन तुम करते।
कष्ट मिटाकर जन-भय हरते॥१३॥
**
सब भक्तन के पालक तुम हो।
दनुज वृत्ति कुल घालक तुम हो॥१४॥
**
कुष्ट रोग से पीड़ित होई।
आवे सभय शरण तकि सोई॥१५॥
**
भक्षण करे भभूत तुम्हारा।
चरण गहे नित बारहिं बारा॥१६॥
**
परम रूप सुन्दर सोई पावै।
जीवन भर तव यश नित गावै॥१७॥
**
पागल बन विचार जो खोवै।
देखत कबहुं हंसे फिर रोवै॥१८॥
**
तुम्हरे निकट आव जब सोई।
भूत पिशाच ग्रस्त उर होई॥१९॥
**
तुम्हरे धाम आई सुख माने।
करत विनय तुमको पहिचाने॥२०॥
**
तव दुर्धष तेज के आगे।
भूत-पिशाच विकल होई भागे॥२१॥
**
नाम जपत तव ध्यान लगावत।
भूत पिशाच निकट नहिं आवत॥२२॥
**
भांति-भांति के कष्ट अपारा।
करि उपचार मनुज जब हारा॥२३॥
**
हरसू ब्रह्म के धाम पधारे।
श्रमित-भ्रमित जन मन से हारे॥२४॥
**
तव चरणन परि पूजा करई।
नियत काल तक व्रत अनुसरई॥२५॥
**
श्रद्धा अरू विश्वास बटोरी।
बांधे तुमहि प्रेम की डोरी॥२६॥
**
कृपा करहुं तेहि पर करुणाकर।
कष्ट मिटे लौटे प्रमुदित घर॥२७॥
**
वर्ष-वर्ष तव दर्शन करहीं।
भक्ति भाव श्रद्धा उर भरहीं॥२८॥
**
तुम व्यापक सबके उर अंतर।
जानहुं भाव कुभाव निरन्तर॥२९॥
**
मिटे कष्ट नर अति सुख पावे।
जब तुमको उन मध्य बिठावे॥३०॥
**
करत ध्यान अभ्यास निरन्तर।
तब होइहहिं प्रकाश उर अंतर॥३१॥
**
देखिहहिं शुद्ध स्वरूप तुम्हारा।
अनुभव गम्य विवेक सहारा॥३२॥
**
सदा एक-रस जीवन भोगी।
ब्रह्म रूप तब होइहहिं योगी॥३३॥
**
यज्ञ-स्थल तव धाम शुभ्रतर।
हवन-यज्ञ जहं होत निरंतर॥३४॥
**
सिद्धासन बैठे योगी जन।
ध्यान मग्न अविचल अन्तर्मन॥३५॥
**
अनुभव करहिं प्रकाश तुम्हारा।
होकर द्वैत भाव से न्यारा॥३६॥
**
पाठ करत बहुधा सकाम नर।
पूर्ण होत अभिलाष शीघ्रतर॥३७॥
**
नर-नारी गण युग कर जोरे।
विनवत चरण परत प्रभु तोरे॥३८॥
**
भूत पिशाच प्रकट होई बोले।
गुप्त रहस्य शीघ्र ही खोले॥३९॥
**
ब्रह्म तेज तव सहा न जाई।
छोड़ देह तब चले पराई॥४०॥
**
पूर्ण काम हरसू सदा,
पूरण कर सब काम।
परम तेज मय बसहुं तुम,
भक्तन के उर धाम॥
**
**
हरसू ब्रह्म रूप अवतारी।
जेहि पूजत नित नर अरु नारी॥१॥
**
शिव अनवद्य अनामय रूपा।
जन मंगल हित शिला स्वरूपा॥ २॥
**
विश्व कष्ट तम नाशक जोई।
ब्रह्म धाम मंह राजत सोई ॥३॥
**
निर्गुण निराकार जग व्यापी।
प्रकट भये बन ब्रह्म प्रतापी॥४॥
**
अनुभव गम्य प्रकाश स्वरूपा।
सोइ शिव प्रकट ब्रह्म के रूपा॥५॥
**
जगत प्राण जग जीवन दाता।
हरसू ब्रह्म हुए विखयाता॥६॥
**
पालन हरण सृजन कर जोई।
ब्रह्म रूप धरि प्रकटेउ सोई॥७॥
**
मन बच अगम अगोचर स्वामी।
हरसू ब्रह्म सोई अन्तर्यामी॥८॥
**
भव जन्मा त्यागा सब भव रस।
शित निर्लेप अमान एक रस॥९॥
**
चैनपुर सुखधाम मनोहर।
जहां विराजत ब्रह्म निरन्तर॥१०॥
**
ब्रह्म तेज वर्धित तव क्षण-क्षण।
प्रमुदित होत निरन्तर जन-मन॥११॥
**
द्विज द्रोही नृप को तुम नासा।
आज मिटावत जन-मन त्रासा॥१२॥
**
दे संतान सृजन तुम करते।
कष्ट मिटाकर जन-भय हरते॥१३॥
**
सब भक्तन के पालक तुम हो।
दनुज वृत्ति कुल घालक तुम हो॥१४॥
**
कुष्ट रोग से पीड़ित होई।
आवे सभय शरण तकि सोई॥१५॥
**
भक्षण करे भभूत तुम्हारा।
चरण गहे नित बारहिं बारा॥१६॥
**
परम रूप सुन्दर सोई पावै।
जीवन भर तव यश नित गावै॥१७॥
**
पागल बन विचार जो खोवै।
देखत कबहुं हंसे फिर रोवै॥१८॥
**
तुम्हरे निकट आव जब सोई।
भूत पिशाच ग्रस्त उर होई॥१९॥
**
तुम्हरे धाम आई सुख माने।
करत विनय तुमको पहिचाने॥२०॥
**
तव दुर्धष तेज के आगे।
भूत-पिशाच विकल होई भागे॥२१॥
**
नाम जपत तव ध्यान लगावत।
भूत पिशाच निकट नहिं आवत॥२२॥
**
भांति-भांति के कष्ट अपारा।
करि उपचार मनुज जब हारा॥२३॥
**
हरसू ब्रह्म के धाम पधारे।
श्रमित-भ्रमित जन मन से हारे॥२४॥
**
तव चरणन परि पूजा करई।
नियत काल तक व्रत अनुसरई॥२५॥
**
श्रद्धा अरू विश्वास बटोरी।
बांधे तुमहि प्रेम की डोरी॥२६॥
**
कृपा करहुं तेहि पर करुणाकर।
कष्ट मिटे लौटे प्रमुदित घर॥२७॥
**
वर्ष-वर्ष तव दर्शन करहीं।
भक्ति भाव श्रद्धा उर भरहीं॥२८॥
**
तुम व्यापक सबके उर अंतर।
जानहुं भाव कुभाव निरन्तर॥२९॥
**
मिटे कष्ट नर अति सुख पावे।
जब तुमको उन मध्य बिठावे॥३०॥
**
करत ध्यान अभ्यास निरन्तर।
तब होइहहिं प्रकाश उर अंतर॥३१॥
**
देखिहहिं शुद्ध स्वरूप तुम्हारा।
अनुभव गम्य विवेक सहारा॥३२॥
**
सदा एक-रस जीवन भोगी।
ब्रह्म रूप तब होइहहिं योगी॥३३॥
**
यज्ञ-स्थल तव धाम शुभ्रतर।
हवन-यज्ञ जहं होत निरंतर॥३४॥
**
सिद्धासन बैठे योगी जन।
ध्यान मग्न अविचल अन्तर्मन॥३५॥
**
अनुभव करहिं प्रकाश तुम्हारा।
होकर द्वैत भाव से न्यारा॥३६॥
**
पाठ करत बहुधा सकाम नर।
पूर्ण होत अभिलाष शीघ्रतर॥३७॥
**
नर-नारी गण युग कर जोरे।
विनवत चरण परत प्रभु तोरे॥३८॥
**
भूत पिशाच प्रकट होई बोले।
गुप्त रहस्य शीघ्र ही खोले॥३९॥
**
ब्रह्म तेज तव सहा न जाई।
छोड़ देह तब चले पराई॥४०॥
**
पूर्ण काम हरसू सदा,
पूरण कर सब काम।
परम तेज मय बसहुं तुम,
भक्तन के उर धाम॥
**
श्री हरसू ब्रह्म चालीसा || Shri Harsu Brahm Chalisa || हरसू ब्रह्म चैनपुर कैमूर || Harsu Brahm Chainpur Kaimur || Harsu Brahm Maharaj ji || हरसू ब्रह्म रूप अवतारी Harsu Brahm Rup Avatari
**
Bābā harasū brahm ke
Charaṇoan kā kari dhyāna।
Chālīsā prastut karūan
Pāvan yash guṇ gāna॥
**
Harasū brahm rūp avatārī।
Jehi pūjat nit nar aru nārī॥1॥
**
Shiv anavadya anāmaya rūpā।
Jan mangal hit shilā svarūpā॥ 2॥
**
Vishva kaṣhṭa tam nāshak joī।
Brahm dhām manha rājat soī ॥3॥
**
Nirguṇ nirākār jag vyāpī।
Prakaṭ bhaye ban brahm pratāpī॥4॥
**
Anubhav gamya prakāsh svarūpā।
Soi shiv prakaṭ brahm ke rūpā॥5॥
**
Jagat prāṇ jag jīvan dātā।
Harasū brahm hue vikhayātā॥6॥
**
Pālan haraṇ sṛujan kar joī।
Brahm rūp dhari prakaṭeu soī॥7॥
**
Man bach agam agochar swāmī।
Harasū brahm soī antaryāmī॥8॥
**
Bhav janmā tyāgā sab bhav rasa।
Shit nirlep amān ek rasa॥9॥
**
Chainapur sukhadhām manohara।
Jahāan virājat brahm nirantara॥10॥
**
Brahm tej vardhit tav kṣhaṇa-kṣhaṇa।
Pramudit hot nirantar jana-mana॥11॥
**
Dvij drohī nṛup ko tum nāsā।
Āj miṭāvat jana-man trāsā॥12॥
**
De santān sṛujan tum karate।
Kaṣhṭa miṭākar jana-bhaya harate॥13॥
**
Sab bhaktan ke pālak tum ho।
Danuj vṛutti kul ghālak tum ho॥14॥
**
Kuṣhṭa rog se pīḍit hoī।
Āve sabhaya sharaṇ taki soī॥15॥
**
Bhakṣhaṇ kare bhabhūt tumhārā।
Charaṇ gahe nit bārahian bārā॥16॥
**
Param rūp sundar soī pāvai।
Jīvan bhar tav yash nit gāvai॥17॥
**
Pāgal ban vichār jo khovai।
Dekhat kabahuan hanse fir rovai॥18॥
**
Tumhare nikaṭ āv jab soī।
Bhūt pishāch grasta ur hoī॥19॥
**
Tumhare dhām āī sukh māne।
Karat vinaya tumako pahichāne॥20॥
**
Tav durdhaṣh tej ke āge।
Bhūta-pishāch vikal hoī bhāge॥21॥
**
Nām japat tav dhyān lagāvata।
Bhūt pishāch nikaṭ nahian āvata॥22॥
**
Bhāanti-bhāanti ke kaṣhṭa apārā।
Kari upachār manuj jab hārā॥23॥
**
Harasū brahm ke dhām padhāre।
Shramita-bhramit jan man se hāre॥24॥
**
Tav charaṇan pari pūjā karaī।
Niyat kāl tak vrat anusaraī॥25॥
**
Shraddhā arū vishvās baṭorī।
Bāandhe tumahi prem kī ḍorī॥26॥
**
Kṛupā karahuan tehi par karuṇākara।
Kaṣhṭa miṭe lauṭe pramudit ghara॥27॥
**
Varṣha-varṣha tav darshan karahīan।
Bhakti bhāv shraddhā ur bharahīan॥28॥
**
Tum vyāpak sabake ur aantara।
Jānahuan bhāv kubhāv nirantara॥29॥
**
Miṭe kaṣhṭa nar ati sukh pāve।
Jab tumako un madhya biṭhāve॥30॥
**
Karat dhyān abhyās nirantara।
Tab hoihahian prakāsh ur aantara॥31॥
**
Dekhihahian shuddha svarūp tumhārā।
Anubhav gamya vivek sahārā॥32॥
**
Sadā eka-ras jīvan bhogī।
Brahm rūp tab hoihahian yogī॥33॥
**
Yagna-sthal tav dhām shubhratara।
Havana-yagna jahan hot nirantara॥34॥
**
Siddhāsan baiṭhe yogī jana।
Dhyān magna avichal antarmana॥35॥
**
Anubhav karahian prakāsh tumhārā।
Hokar dvait bhāv se nyārā॥36॥
**
Pāṭh karat bahudhā sakām nara।
Pūrṇa hot abhilāṣh shīghratara॥37॥
**
Nara-nārī gaṇ yug kar jore।
Vinavat charaṇ parat prabhu tore॥38॥
**
Bhūt pishāch prakaṭ hoī bole।
Gupta rahasya shīghra hī khole॥39॥
**
Brahm tej tav sahā n jāī।
Chhoḍ deh tab chale parāī॥40॥
**
Pūrṇa kām harasū sadā,
Pūraṇ kar sab kāma।
Param tej maya basahuan tuma,
Bhaktan ke ur dhāma॥
**
आभार
रचनाकार : श्री लालजी त्रिपाठी
व्याकरण साहित्याचार्य, एम०ए० द्वय, स्वर्णपदक प्राप्त
प्रकाशक : श्री रंगनाथ पाण्डेय (शिक्षक)
विक्रेता : पाण्डेय पुस्तक मंदिर, चैनपुर, कैमूर
सदस्यता लें
संदेश (Atom)